चाणक्यगीरी
विद्योत्तमा के देश से आए गुप्तचरों ने आकर चाणक्य से कहा- ‘‘मौर्य हाईकमान की जय हो!’’
चाणक्य ने प्रश्नवाचक दृष्टि से गुप्तचरों की ओर देखा। एक गुप्तचर ने कहा- ‘‘क्षमा करें, महामहिम। आज हम बहुत बुरी ख़बर लेकर आए हैं। चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘ख़बर सुनाने वाले के लिए कोई ख़बर अच्छी-बुरी नहीं होती, गुप्तचर। यह तो ख़बर सुनने वाले पर निर्भर करता है- ख़बर को अच्छा समझे या बुरा।’’ गुप्तचरों की समझ में कुछ नहीं आया। चाणक्य ने स्पष्ट करते हुए आगे कहा- ‘‘किसी को अच्छी लगने वाली ख़बर दूसरे के लिए बुरी हो सकती है और किसी को बुरी लगने वाली ख़बर दूसरे के लिए अच्छी हो सकती है।’’ गुप्तचरों ने आश्चर्य से पूछा- ‘‘हम समझे नहीं, महामहिम। आपकी बातें गूढ़ होती हैं। सबकी समझ में नहीं आतीं।’’ चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘नंदवंश के महाभोज में नंद राजा ने मेरी बेइज्जती की। मुझे बिना खाना खिलाए महाभोज से निर्वासित कर दिया। अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए मैंने नंद वंश का नाश करके मौर्य वंश की स्थापना की। नंद साम्राज्य का पतन नंद वंश और उनके समर्थकों के लिए बुरी ख़बर थी, किन्तु मौर्य वंश की स्थापना मौर्य वंश और उनके समर्थकों के लिए अच्छी ख़बर थी। इसलिए आप बेफि़क्र होकर ख़बर सुनाइए।’’ गुप्तचरों ने भयभीत स्वर में कहा- ‘‘महामहिम, विद्योत्तमा के राजमहल के बाहर सूचनापट्ट पर बहुत बुरी ख़बर लिखी है। कहते बहुत डर लग रहा है।’’ (क्रमशः) |
Re: चाणक्यगीरी
चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं, गुप्तचरों। आप लोग भयमुक्त होकर बताइए- विद्योत्तमा के राजमहल के बाहर सूचनापट्ट पर क्या लिखा है?’’
एक गुप्तचर ने डरते हुए रुक-रुककर कहा- ‘‘सूचनापट्ट पर लिखा है... लिखा है... लिखा है- ‘विश्वासघाती विद्योत्तमा, भूतनी, चुड़ैल, डायन, परकटी बिल्ली, कौए की दुम, गधे की सींग, धोखेबाज, फरेबी, मक्कार, हार्दिक बधाई के साथ नववर्ष की शुभकामनाएँ... और आगे लिखा है...’’ गुप्तचरों की पूरी बात सुने बिना चाणक्य ने आगबबूला होते हुए कहा- ‘‘किस देश के राजा की इतनी हिम्मत जिसने विद्योत्तमा के राजमहल के बाहर सूचनापट्ट पर इतना बुरा संदेश लिखकर विद्योत्तमा को बदनाम करने की कोशिश की? मौर्य सेनापति से जाकर बोलो- मौर्य हाईकमान चाणक्य का आदेश है। तुरन्त हमले की तैयारी करे। हम उस घृष्ट राजा के देश पर चढ़ाई करके अपने मौर्य देश में मिला लेंगे और उस दुष्ट राजा को दस गज ज़मीन के नीचे दफ़ना देंगे।’’ गुप्तचरों ने कहा- ‘‘आपने पूरी ख़बर तो सुनी ही नहीं। आगे लिखा है- झूठी विद्योत्तमा, तुमने मुझे 99 बार उल्लू बनाकर 49 बार गधा साबित किया। बहुत-बहुत धन्यवाद।’’ चाणक्य ने घबड़ाकर कहा- ‘‘कक्ष का द्वार बन्द करो, गुप्तचरों। दीवारों के भी कान होते हैं। मुझे तो यह संदेश स्वयं विद्योत्तमा का ही लिखा लगता है, क्योंकि यह बात सिर्फ़ विद्योत्तमा ही जानती है- उसने मुझे कितनी बार उल्लू बनाकर गधा साबित किया।’’ गुप्तचरों ने कहा- ‘‘आप बिल्कुल ठीक समझे, महामहिम। हमारे गुप्तचरों ने विद्योत्तमा को खुद रात बारह बजे यह संदेश सूचनापट्ट पर लिखते देखा।’’ चाणक्य ने चिन्तित और गम्भीर होकर सिगार सुलगाते हुए कहा- ‘‘अगर लोगों को पता चल गया- विद्योत्तमा ने अक्ल की खदान, बुद्धि की लदान चाणक्य को 99 बार उल्लू बनाकर 49 बार गधा साबित किया है तो चाणक्य की बनी-बनाई इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी। जो राजा-महाराजा आज चाणक्य का नाम सुनकर घबड़ाते हैं, कल चाणक्य का नाम सुनकर थूकने लगेंगे। यही नहीं, अगर मौर्य राजा को पता चल गया- अब चाणक्य के दिमाग़ में दम नहीं रहा तो चाणक्यगीरी कैसे चलेगी?’’ (क्रमशः) |
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आप ‘चाणक्यगीरी’ सूत्र में पढ़ रहे हैं ऐतिहासिक पात्रों विद्योत्तमा, कालीदास और चाणक्य पर आधारित एक पूर्णतया काल्पनिक अग्रिम सूत्र ‘आई एम सिंगल अगेन’ का प्रोमोशन।
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गुप्तचरों की प्रारम्भिक सूचना के अनुसार मौर्य देश पर बहुत बड़ा संकट आने वाला था, क्योंकि पड़ोस का कोई राजा मौर्य देश पर बहुत बड़ा आक्रमण करने की गुपचुप तैयारी कर रहा था। एहतियात के तौर पर सेना को सतर्क कर दिया गया था और चाणक्य की अगुवाई में मौर्य सेनापति सेना का बहुत बड़ा चक्रव्यूह बनाकर दुश्मन के हमले का मुँहतोड़ जवाब देने के लिए चौबीसों घण्टे सतर्क खड़े थे। उसी समय गुप्तचरों ने आकर बताया कि मौर्य देश पर और कोई नहीं, विद्योत्तमा हमला करने वाली है और उसके साथ उसकी सहेली और सेनापति अजूबी भी है जो अकेले एक हज़ार लोगों से लड़ने की क्षमता रखती है। गुप्तचरों की ख़बर सुनकर मौर्य सेना में हलचल मच गई। मौर्य देश के सरकारी नियमानुसार सेना के जिन अधिकारियों और सिपाहियों के पास सी॰एल॰, ई॰एल॰, सी॰एच॰ छुट्टियाँ इत्यादि बची थीं, चाणक्य के पास छुट्टी की अर्जी लगाकर जाने लगे। जिनके पास छुट्टियाँ नहीं बची थीं, वह बीमारी का बहाना बनाकर मेडिकल लीव पर जाने लगे। जिनके पास मेडिकल लीव भी नहीं बची थी, वे पेटदर्द, सिरदर्द और सीने में भयानक दर्द का नाटक करके ज़मीन पर लोटने लगे जिससे ‘येन केन प्रकारेण’ किसी प्रकार छुट्टी मिल जाए। चाणक्य ने हैरान और परेशान होकर मौर्य सेनापति से पूछा- ‘‘हमारी सेना अचानक बीमार क्यों पड़ गई, सेनापति?’’
मौर्य सेनापति ने चुपचाप एक काग़ज़ चाणक्य के हाथ में थमा दिया। चाणक्य ने कहा- ‘‘हमारी सेना के बीमार पड़ने का लिखित कारण देने की कोई आवश्यकता नहीं, सेनापति। आप मौखिक कारण भी दे सकते हैं।’’ मौर्य सेनापति ने कहा- ‘‘यह हमारी सेना के बीमार पड़ने का लिखित कारण नहीं है, महामहिम। यह मेरा त्यागपत्र है। मुझे पड़ोस के देश में एक राजकीय काॅलसेन्टर में बहुत अच्छी नौकरी मिल गई है। कल जाॅइन करना है।’’ चाणक्य ने मौर्य सेनापति का झूठ पकड़ते हुए कहा- ‘‘सच क्या है बताइए, सेनापति। झूठ मत बोलिए। आप मौर्य देश के सेनापति का इतना बड़ा पद छोड़कर पड़ोस के देश में काॅलसेन्टर की नौकरी करेंगे?’’ मौर्य सेनापति ने सिर झुकाते हुए कहा- ‘‘आपने मेरा झूठ पकड़ लिया। काॅलसेन्टर की नौकरी तो एक बहाना था। सच तो यह है- मैं पड़ोसी देश में पाव-भाजी का ठेला लगाना चाहता हूँ। सुना है- अच्छी बिक्री हो जाती है।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘झूठ पर झूठ न बोलिए, सेनापति। आप सेनापति होकर पाव-भाजी का ठेला लगाएँगे?’’ मौर्य सेनापति ने सिर झुकाते हुए कहा- ‘‘आपने फिर मेरा झूठ पकड़ लिया। सच तो यह है- मैं पड़ोसी देश में ब्राॅइलर मुर्गी बेचना चाहता हूँ। बड़ा मुनाफ़े का धन्धा है।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘झूठ न बोलिए, सेनापति। सेनापति की नौकरी छोड़कर आप मुर्गी बेचेंगे? सच बताइए- माजरा क्या है?’’ सेनापति ने निराशा भरे स्वर में कहा- ‘‘कुछ भी करूँगा। काॅलसेन्टर की नौकरी करूँगा, पाव-भाजी बेचूँगा, ब्राॅइलर मुर्गी बेचूँगा- मगर मौर्य देश के सेनापति की नौकरी नहीं करूँगा। विद्योत्तमा की सेना से लड़ने का आदेश तो आप देंगे नहीं। कहेंगे- विद्योत्तमा को समझाने की कोशिश करता हूँ। आपके समझाने से विद्योत्तमा न मानी और उसने हमारी सेना पर आक्रमण कर दिया तो भी आप लड़ने का आदेश नहीं देंगे। बिना लड़े मर जाने से अच्छा है- सेनापति की नौकरी से त्यागपत्र दे दूँ। यही कारण है- हमारी सेना के जवान अचानक बीमार पड़ने का नाटक कर रहे हैं। मौर्य सम्राट स्वयं हताश एवं निराश होकर मूँगफली का ठेला लगाने के लिए मूँगफली खरीदने गए हैं।’’ |
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आप ‘चाणक्यगीरी’ सूत्र में पढ़ रहे हैं ऐतिहासिक पात्रों विद्योत्तमा, कालीदास और चाणक्य पर आधारित एक पूर्णतया काल्पनिक अग्रिम सूत्र ‘आई एम सिंगल अगेन’ का प्रोमोशन।
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चाणक्य अत्यधिक तन्मयता के साथ मौर्य सम्राट के लिए ‘चाणक्य नीति’ और ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ लिखने में व्यस्त थे। उसी समय गुप्तचरों ने आकर बताया- ‘‘महामहिम, पक्की ख़बर है- इस बार विद्योत्तमा की सहेली और सेनापति अजूबी नाचने-गाने वालों के भेष में हमारे देश में आ गई है और नाचते-गाते हुए राजमहल की ओर बढ़ रही है। गिरफ़्तारी का आदेश करिए।’’
चाणक्य ने कहा- ‘‘गिरफ़्तारी की कोई ज़रुरत नहीं। आने दो अजूबी को। नाचने-गाने वालों की भेष में आई है तो ज़रूर कोई विशेष बात होगी। कौन सा गीत गा रही है अजूबी?’’ गुप्तचरों ने कहा- ‘‘आप खुद सुन लीजिए, महामहिम। अब तो नाचने-गाने की आवाज़ यहाँ तक आ रही है। लगता है- अजूबी राजमहल नहीं, आपके निवास-स्थान की ओर ही आ रही है।’’ चाणक्य ने कान लगाकर गीत का बोल सुना और ज़ोर-ज़ोर से रोते हुए कहा- ‘‘अजूबी तो ‘ये कहानी, बहुत पुरानी। आज होगी कहानी ख़त्म, घर-घर में खूब मनेगा जश्न।’ गा रही है। ऐसा प्रतीत होता है- विद्योत्तमा ने अजूबी को मेरी कहानी खत्म करने के लिए नियुक्त किया है। लगता है- ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ और ‘चाणक्य नीति’ अधूरी रह जाएगी, पूरा न कर पाऊँगा।’’ उसी समय अजूबी नाचने-गाने वालों के समूह के साथ वहाँ पर आ गई और चाणक्य से बोली- ‘‘मेरा नाम मधुबाला है। हम आपको अपना नाच-गाना दिखाना चाहते हैं। आदेश करिए।’’ चाणक्य ने मरी हुई आवाज़ में अजूबी से कहा- ‘‘इतना ख़राब गीत का बोल मुझे पसन्द नहीं। नाच-गाने में मरने-मारने की बात अच्छी लगती है क्या? कोई अच्छा सा गीत सुनाओ, मधुबाला।’’ अजूबी ने नाचते हुए दूसरा गीत गाना शुरू किया- ‘‘मैं लड़की सीधी-सादी। लगती कितनी भोली-भाली। नाम है मेरा मधुबाला। मेरा चेहरा कितना भोला-भाला।’’ चाणक्य की जान में जान आई- अजूबी ने तो अच्छे बच्चों की तरह तुरन्त दूसरा गीत सुनाना शुरू कर दिया। चाणक्य ने अजूबी की प्रसंशा करते हुए कहा- ‘‘वाह-वाह... क्या सुन्दर गीत है, क्या सुन्दर नृत्य है! किन्तु अफ़सोस, मौर्य देश के खजाने में इतना धन नहीं जिससे तुम्हारी नाचने-गाने की कला को पुरस्कृत किया जा सके। मैं क्षमा चाहता हूँ, मधुबाला।’’ मधुबाला के भेष में आई अजूबी ने मुस्कुराते हुए कहा- ''ऐसा न कहिये। आप दो-चार गीत और सुनिए।'' ऐसा कहकर अजूबी ने नृत्य के साथ चार गीत और सुनाया और अन्तिम गीत के अन्त में चुपके से चाणक्य को विद्योत्तमा के देश का अपना वह राजकीय चिह्न दिखा दिया जिससे चाणक्य अच्छी तरह से समझ सके कि वह अजूबी ही है। चाणक्य ने चैन की साँस लेते हुए सोचा- 'अच्छा, तो यह बात है। अजूबी लड़ने नहीं, दोस्ती करने आई है!' |
Re: चाणक्यगीरी
आप ‘चाणक्यगीरी’ सूत्र में पढ़ रहे हैं ऐतिहासिक पात्रों विद्योत्तमा, कालीदास और चाणक्य पर आधारित एक पूर्णतया काल्पनिक अग्रिम सूत्र ‘आई एम सिंगल अगेन’ का प्रोमोशन।
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Re: चाणक्यगीरी
चाणक्य अपने लेखन-कक्ष में ‘चाणक्य नीति’ के दाँव-पेंचों को काग़ज़ पर उतारने में व्यस्त थे। उसी समय बाहर से राजकीय संगीत के साथ नाचने-गाने और ढोल-ताशा-नगाड़ा एवं बैण्ड-बाजा की आवाज़ आने लगी तो चाणक्य का ध्यान भंग हो गया। राजकीय संगीत के साथ नाचने-गाने और ढोल-ताशा-नगाड़ा एवं बैण्ड-बाजा के बजने का अर्थ था- मौर्य देश के सम्राट की ओर से किसी विशिष्ट व्यक्ति को राजमहल में ससम्मान ले जाया जा रहा था। चाणक्य सोचने लगे- ‘मौर्य देश में किस विशिष्ट व्यक्ति का आगमन हुआ है? हर पल की ख़बर देने वाले गुप्तचरों ने इस बारे में कोई सूचना अभी तक क्यों नहीं दी?’ चाणक्य ने मौर्य देश के गुप्तचर विभाग के सबसे बड़े अधिकारी ‘महागुप्तचर’ को तलब किया। महागुप्तचर ने कक्ष में आकर कहा- ‘‘मौर्य हाईकमान की जय हो। आदेश करिए।’’
चाणक्य ने कहा- ‘‘मौर्य देश में किस विशिष्ट व्यक्ति का आगमन हुआ है, महागुप्तचर? इसकी सूचना अभी तक हमें क्यों नहीं दी गई?’’ महागुप्तचर ने डरते हुए कहा- ‘‘मौर्य देश में किसी विशिष्ट व्यक्ति का आगमन नहीं हुआ, महामहिम। मौर्य सम्राट आपको तत्काल राजदरबार में देखना चाहते हैं। यह बात सुनकर आप नाराज़ न हो जाएँ, इसीलिए हमने यह सूचना आपको नहीं दी, क्योंकि हमेशा मौर्य सम्राट ही आपसे मिलने आते हैं, आप मौर्य सम्राट से मिलने राजदरबार में नहीं जाते।’’ चाणक्य ने खिड़की से बाहर झाँककर देखा- नाच-गाना बन्द हो गया था और मौर्य सेनापति के साथ सेना के बड़े-बड़े अधिकारी ज़मीन पर लेटकर ‘क्षमा-क्षमा’ चिल्ला रहे थे। चाणक्य ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘ऐसी क्या बात हो गई, महागुप्तचर जो मौर्य सम्राट हमें राजदरबार में तत्काल देखना चाहते हैं और स्वयं यहाँ आने में असमर्थ हैं? महागुप्तचर ने बताया- ‘‘महामहिम, अरब देश से कुछ कवि और शायर मौर्य देश में पधारे हुए हैं और प्रातःकाल से राजदरबार में मौर्य सम्राट को अपनी कविता और शायरी सुना रहे हैं। कविता और शायरी की पंक्तियाँ बड़ी विचित्र हैं। सुनकर मौर्य सम्राट के सिर में दर्द हो गया। विदेश से आए कवियों और शायरों का अपमान न हो, इसलिए कविता और शायरी का अर्थ समझे बिना ही सिरदर्द की गोली खा-खाकर सुबह से ‘वाह-वाह’ किए जा रहे हैं। अरब देश से आए कवियों और शायरों के साथ एक बुर्केवाली स्त्री कवि भी है। उसकी कविताएँ तो और अनोखी और विचित्र हैं। किसी की समझ में नहीं आती। बुर्केवाली स्त्री कवि की कविताएँ सुनकर तो कविताओं और शायरी के शौक़ीन मौर्य महामंत्री राजसूर्य भी अपना सिर पकड़े बैठे हैं। आपको कविताओं और शायरी को समझने के लिए ही राजदरबार में बुलाया गया है, जिससे कवियों और शायरों को यथोचित् पुरस्कार देकर सम्मानित किया जा सके।’’ चाणक्य ने विचारमग्न होकर सोचा- ‘लगता है- विद्योत्तमा की सेनापति अजूबी इस बार बुर्का पहनकर कवि के भेष में आई है। लेकिन क्यों?’ |
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Re: चाणक्यगीरी
मौर्य सम्राट के राजदरबार में पहुँचकर चाणक्य अपने उस सिंहासन पर विराजमान हुए जो उनके लिए विशेष रूप से बनाया गया था। चाणक्य का शक़ सही निकला। बुर्केवाली स्त्री की आवाज़ सुनकर चाणक्य ने पहचान लिया कि वह अजूबी ही थी। कविता सुनाते समय अजूबी ने चुपके से चाणक्य को अपना राजकीय चिह्न भी दिखा दिया। कविताएँ और शायरी सुनकर चाणक्य ने मौर्य सम्राट से कहा- ‘‘सभी कवि और शायरों को मौर्य देश का सर्वाेच्च और विशिष्ट पुरस्कार देकर राजकीय सम्मान के साथ विदा किया जाए।’’ चाणक्य के आदेश का अनुपालन करने के लिए मौर्य सम्राट ने मौर्य महामंत्री राजसूर्य को संकेत किया। महामंत्री राजसूर्य ने मौर्य देश के नियमानुसार कवियों और शायरों का परिचय-पत्र देखकर उन्हें स्वर्णमुद्राओं से सम्मानित करना आरम्भ किया। जब बुर्का पहने अजूबी की बारी आई तो अजूबी ने घबड़ाकर कहा- ‘‘मेरे पास परिचय-पत्र नहीं है।’’ मौर्य सम्राट ने समस्या का समाधान करते हुए कहा- ‘‘कोई बात नहीं। हम अभी आपका परिचय-पत्र बनाए देते हैं। आप अपना चेहरा दिखाइए।’’ पकड़े जाने के डर से अजूबी ने घबड़ाकर कहा- ‘‘नहीं-नहीं... मैं अपना परिचय-पत्र नहीं बनवाऊँगी। मुझे कोई पुरस्कार नहीं चाहिए।’’ महामंत्री राजसूर्य ने सन्देह की दृष्टि से अजूबी को देखते हुए कहा- ‘‘आपको अपना परिचय तो देना ही होगा। बुर्का हटाकर आप अपना चेहरा दिखाइए।’’ अजूबी ने घबड़ाकर कहा- ‘‘नहीं-नहीं... मैं अपना चेहरा नहीं दिखाऊँगी।’’ महामंत्री राजसूर्य ने कहा- ‘‘लगता है- कवि के भेष में दुश्मन देश की कोई गुप्तचर हमारे देश में आ गई है। इसीलिए अपना चेहरा नहीं दिखा रही है। इसे तुरन्त हिरासत में लेकर पूछताछ की जाए।’’ महामंत्री राजसूर्य के आदेशानुसार सैनिकों ने त्वरित कार्यवाही करते हुए अजूबी को घेर लिया। किसी अनहोनी की आशंका से मौर्य सेनापति ने अपनी तलवार निकाल ली। चाणक्य ने कहा- ‘‘इसे छोड़ दिया जाए।’’ चाणक्य की बात सुनकर सभी अचम्भित रह गए। मौर्य सम्राट ने चाणक्य से आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘आप दुश्मन देश से आई एक गुप्तचर को छोड़ने का आदेश दे रहे हैं? हम समझे नहीं।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘मुझे ऐसा नहीं लगता- यह स्त्री किसी देश की गुप्तचर है। अतः इसे छोड़ दिया जाए।’’ मौर्य सम्राट ने चाणक्य का विरोध करते हुए कहा- ‘‘बिना किसी पूछताछ के इस स्त्री को छोड़ना हमारे देश के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। इस स्त्री का चेहरा देखकर और पूछताछ करने के पश्चात् यदि यह सिद्ध हो गया- यह स्त्री किसी देश की गुप्तचर नहीं है तो हम अवश्य इसे छोड़ देंगे।’’ चाणक्य ने खड़े होते हुए कुपित स्वर में कहा- ‘‘लगता है- इस देश को चाणक्य की ज़रूरत नहीं रही। आप स्वयं देशहित के बारे में सोचने में सक्षम हो गए हैं। अब चाणक्य कभी इस देश में नहीं आएगा।’’ चाणक्य को कुपित देखकर मौर्य सम्राट ने हाथ जोड़कर कहा- ‘‘ऐसा न कहिए। इस देश को चाणक्य की ज़रूरत है। हम आपके आदेशानुसार इस स्त्री को छोड़ देते हैं। आपके बिना मौर्य साम्राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती।’’ अजूबी चाणक्य को धन्यवाद देकर अन्य कवियों और शायरों के साथ वहाँ से चली गई। सभी के जाने के बाद मौर्य सम्राट ने भयभीत स्वर में चाणक्य से पूछा- ‘‘आपने बुर्केवाली स्त्री को क्यों जाने दिया? हमारा सन्देह दूर करने की दया-कृपा करें। आपकी बातें गूढ़ होती हैं।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘सभी के सामने यह बात नहीं बताई जा सकती। यह एक अत्यन्त गोपनीय बात है।’’ मौर्य सम्राट के संकेत पर राजदरबार खाली हो गया तो चाणक्य ने चतुराईपूर्वक मौर्य सम्राट को समझाया- ‘‘यह बहुत छोटी सी बात है। बुर्का पहनकर आने के कारण महिला कवि ठीक से मुँह धोकर मेकअप करके नहीं आई होगी। इसीलिए बिना मेकअप के अपना चेहरा दिखाने में शर्मा रही होगी।’’ मौर्य सम्राट एक बार फिर चाणक्य की अपार बुद्धि के सामने नतमस्तक हो गया। |
Re: चाणक्यगीरी
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Re: चाणक्यगीरी
wah wah....kya logic hai.....:lol::lol:
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Re: चाणक्यगीरी
यह प्रयोग हास्यरस से भरपुर तो है ही...साथ साथ अत्यंत रोचक भी है। ईस हास्यलेख के लिए धन्यवाद! कृपया आगे जारी रखें।
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Re: चाणक्यगीरी
मजेदार ...!!
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Re: 1Ï41Ó01Ð31Î91Ô51Ñ51Ï11Ó2 1Ñ61Ó2
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Re: 1Ï41Ó01Ð31Î91Ô51Ñ51Ï11Ó2 1Ñ61Ó2
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Re: चाणक्यगीरी
विद्योत्तमा के देश से आए गुप्तचरों ने चाणक्य से कहा- ‘‘मौर्य हाईकमान की जय हो। आज हम बड़ी अनोखी ख़बर लेकर लाए हैं।’’
चाणक्य ने प्रश्नवाचक दृष्टि से गुप्तचरों की ओर देखा। एक गुप्तचर ने बताया- ‘‘विद्योत्तमा की सहेली और सेनापति अजूबी ने सेनापति के पद से त्यागपत्र दे दिया है और मैसूर महाराजा के देश की सेनापति बन गई है।’’ चाणक्य का मुँह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया। चाणक्य ने आश्चर्यचकित होकर पूछा- ‘‘आगे क्या ख़बर है, गुप्तचरों?’’ गुप्तचरों ने बताया- ‘‘हमारे गुप्तचर मैसूर गए हुए हैं। अभी तक तो कोई ख़ास ख़बर नहीं आई।’’ महागुप्तचर ने ‘गुप्तचरी की गणित’ बैठाते हुए अपना सन्देह व्यक्त किया- ‘‘कहीं ऐसा तो नहीं, महामहिम- विद्योत्तमा मैसूर महाराजा के साथ मिलकर मौर्य देश पर आक्रमण करना चाहती हो? इसीलिए अजूबी को मैसूर महाराजा के यहाँ सेनापति के पद पर नियुक्त करवा दिया हो?’’ चाणक्य ने सोचते हुए कहा- ‘‘आज तक कभी ऐसा हुआ है, महागुप्तचर- विद्योत्तमा ने मौर्य देश पर हमला किया हो? हाँ, हमले का नाटक ज़रूर किया। क्या आपको याद नहीं- एक बार विद्योत्तमा अपनी सेना के साथ मौर्य देश की सीमा तक आकर यह बहाना बनाकर लौट गई कि उसकी सेना की तलवार में धार कम है। इसलिए वह लुहार से धार लगवाकर फिर से आकर हमला करेगी। दूसरी बार उसने बहाना बनाया कि उसकी सेना के धनुष का धागा बहुत ढ़ीला हो गया है। इसलिए वह धागा कसवाकर फिर से आकर हमला करेगी। तीसरी बार उसने बहाना बनाया कि वह जल्दीबाजी में अपनी विशेष तलवार नानी के यहाँ भूल आई है। इसलिए नानी के यहाँ से तलवार लाकर फिर से हमला करेगी। चैथी बार उसने बहाना बनाया कि आक्रमण करने का उसका मूड ख़त्म हो गया है। इसलिए जब फिर से मूड बनेगा तब आकर हमला करेगी। पाँचवीं बार उसने बहाना बनाया कि आमने-सामने लड़कर खून बहाने की क्या ज़रूरत है? चाणक्य से शतरंज पर लडू़ँगी।’’ महागुप्तचर ने कहा- ‘‘हाँ... याद आ गया, महामहिम। आप दोनों दस दिन तक शतरंज पर लड़ते रहे थे, किन्तु आप दोनों में से कोई एक-दूसरे का सिपाही तक न मार सका था। मौर्य सम्राट को दस दिन तक विद्योत्तमा और उसकी सेना को दावत खिलानी पड़ी थी। छटवीं बार उसने बहाना बनाया था कि उसे चाणक्य की लाइफ़स्टाइल पसन्द नहीं है। इसलिए लड़ने का मूड ख़त्म हो गया है।’’ उसी समय मैसूर से आए गुप्तचरों ने कक्ष में प्रवेश करते हुए चाणक्य से कहा- ‘‘मौर्य हाईकमान की जय हो।’’ चाणक्य ने उत्सुकतापूर्वक पूछा- ‘‘मैसूर से क्या ख़बर लाए हैं, गुप्तचरों? कुछ पता चला- अजूबी ने विद्योत्तमा की नौकरी क्यों छोड़ी?’’ एक गुप्तचर ने कहा- ‘‘सुनने में आया है- अजूबी ने आपके डर से विद्योत्तमा की नौकरी छोड़ दी है।’’ चाणक्य ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘मेरे डर से?’’ गुप्तचर ने कहा- ‘‘हाँ, आपके डर से। विद्योत्तमा की राजज्योतिषी और आपकी धर्मबहन ज्वालामुखी विद्योत्तमा और अजूबी का कान भरती रहती है। ज्वालामुखी कहती है- चाणक्य पर कभी भरोसा न करना। चाणक्य आज पीछे हट रहा है तो इसके पीछे ज़रूर चाणक्य की कोई चाल होगी। चाणक्य एक न एक दिन पूरी ताक़त के साथ विद्योत्तमा के देश पर हमला करेगा और विद्योत्तमा के देश को मौर्य देश में मिला लेगा। लड़ाई में सबसे पहले सेनापति मारा जाता है। इसीलिए अजूबी ने डरकर विद्योत्तमा की नौकरी छोड़ दी है और मैसूर महाराजा के यहाँ सेनापति बन गई है। यही नहीं, महामहिम- आपके डर के कारण ही विद्योत्तमा और अजूबी दिन-प्रतिदिन दुबली होती जा रही हैं।’’ गुप्तचर की बात सुनकर चाणक्य को एकाएक याद आया कि ज्वालामुखी ने अपने एक गुप्त सन्देश में उसे सूचित किया था कि विद्योत्तमा के देश में सभी चाहते हैं कि मक्खियाँ मर जाएँ। ज्वालामुखी के गुप्त सन्देश का अर्थ स्पष्ट था- विद्योत्तमा के देश में मौर्य देश के खिलाफ़ गुपचुप रूप से कोई षड़यन्त्र चल रहा था। अपने ऊपर झूठा आरोप लगा देखकर चाणक्य ने तिलमिलाकर कहा- ‘‘इसे कहते हैं- बद अच्छा, बदनाम बुरा। क्या विद्योत्तमा को पता नहीं- चाणक्य महिलाओं के देश पर आक्रमण नहीं करता? यह तो अत्यधिक चिन्ता का विषय है- विद्योत्तमा और अजूबी हमारे डर से दुबली होती जा रही हैं।’’ महागुप्तचर ने कहा- ‘‘आपकी बात तो ठीक है, महामहिम। मगर यह बात विद्योत्तमा और अजूबी को समझाए कौन?’’ चाणक्य ने चिन्तित स्वर में कहा- ‘‘हम समझाएँगे अजूबी को- चाणक्य से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है।’’ महागुप्तचर ने अपना सन्देह व्यक्त किया- ‘‘क्या आपके समझाने से अजूबी मान जाएगी?’’ चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘इस समय अजूबी मैसूर महाराजा के देश की सेनापति है। सभी जानते हैं- द्रविड़ों के देश में होली नहीं खेली जाती। होली आने वाली है। अजूबी होली खेलने के लिए व्याकुल होगी। होली के दिन हम मैसूर महाराजा से मिलने मैसूर जाएँगे।’’ मैसूर से आए एक गुप्तचर ने चाणक्य की बात को काटते हुए कहा- ‘‘क्षमा करें, महामहिम। होली वाले दिन मैसूर महाराजा स्वयं बंगलौर के सुल्तान से मिलने के लिए बंगलौर जा रहे हैं और लाल बाग़ में जाकर बंगलौर के सुल्तान से भेंट करेंगे। मैसूर महाराजा की सुरक्षा में सेनापति अजूबी भी उनके साथ रहेगी।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है। अजूबी की तलाश में अब हमें अधिक दूर नहीं जाना पड़ेगा। मैसूर महाराजा से हमारी पुरानी दोस्ती है। हम मैसूर महाराजा से लाल बाग़ में भी जाकर मिल सकते हैं। वहीं पर हमारी भेंट अजूबी से भी हो जाएगी। होली खेलने के लिए व्याकुल अजूबी को जब पता चलेगा- चाणक्य नौ सौ उन्नीस योजन, एक हज़ार पाँच सौ बाँस, आठ गज, आठ कदम और पैंतालीस अंगुल चलकर उससे होली खेलने के लिए छः पसेरी रंग लेकर आया है तो अजूबी खुश हो जाएगी। हम उसका ‘ब्रेनवाश’ कर देंगे और उसके मन से चाणक्य का डर हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा।’’ मुँह लगे महागुप्तचर ने चाणक्य से कहा- ‘‘और फिर अजूबी शोले फि़ल्म का गीत गाती हुई आपसे होली खेलने लगेगी- ‘होली के दिन दिल खिल जाते हैं... रंगों में रंग मिल जाते हैं‘। सुनने में आया है- अजूबी को शोले फि़ल्म बहुत पसन्द है। महीने में पाँच बार देखती है।’’ चाणक्य ने भड़ककर कहा- ‘‘शोले फि़ल्म का गीत क्यों? हम अपना खुद का गीत लिखेंगे- ‘होली के रंगो से डर कैसा? खेलने वाला हो कोई जो तेरे जैसा।’ चाणक्य आज से होली तक मौनव्रत धारण करेगा। पिछले वर्ष मौनव्रत धारण न करने के कारण बड़ी गड़बड़ी हो गई थी!’’ महागुप्तचर ने अपना सन्देह व्यक्त करते हुए कहा- ''छः पसेरी रंग तो बहुत होता है, महामहिम। आप अजूबी से रंग खेलने जा रहे हैं या मैसूर में रंग की दूकान लगाने जा रहे हैं?'' चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा- ''इतनी सी बात आप नहीं समझे, महागुप्तचर? मँहगाई रोज़ बढ़ती जा रही है। सस्ता मिलने के कारण आज छः पसेरी रंग ले लूँगा। होली खेलने के बाद जो रंग बचेगा, वह अजूबी के पास रखवा दूँगा। अगले साल काम आएगा।'' महागुप्तचर ने कहा- ''छः पसेरी रंग ही क्यों, महामहिम? सीधा-सीधा पाँच पसेरी ले जाइए।'' चाणक्य ने आगबबूला होते हुए कहा- ''चाणक्य की बात पर लात न मारिए, महागुप्तचर। चाणक्य की बातें गूढ़ होती हैं। आपकी समझ में न आएँगी। छः पसेरी से अगर थोड़ा भी रंग कम-ज़्यादा हुआ तो अजूबी से बात न हो पाएगी। छः पसेरी से कम रंग देखकर अजूबी नाराज़ हो जाएगी, क्योंकि छः अजूबी का लकी नम्बर है!'' महागुप्तचर ठीक उसी प्रकार संतुष्ट हो गया जैसे मौर्य सम्राट एक बार संतुष्ट हो गया था। |
Re: चाणक्यगीरी
अदभुत्!
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Re: चाणक्यगीरी
बहुत बढ़िया लिखा है रजतजी ,ऐसे ही लिखना जारी रखिये।
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Re: चाणक्यगीरी
चाणक्य अपने लेखन-कक्ष में ‘ब्रेन वाश’ नामक एक नई पुस्तक लिखने में व्यस्त थे। इसी पुस्तक के आधार पर अजूबी का ‘ब्रेन वाश’ किया जाना था। उसी समय महागुप्तचर ने आकर कहा- ‘‘मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त आपसे मिलने के लिए आए हैं और अन्दर आने की अनुमति चाहते हैं।’’
चाणक्य ने कहा- ‘‘आने दो। कितनी बार कह चुका हूँ- मौर्य सम्राट को हमसे मिलने के लिए अनुमति लेने की कोई ज़रूरत नहीं। जब चाहें, सीधे आकर मिल सकते हैं।’’ महागुप्तचर ने कहा- ‘‘मौर्य सम्राट को पता है- आजकल आप ‘चाणक्य नीति’ और ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ लिखने में बहुत व्यस्त हैं। मौर्य सम्राट के एकाएक आगमन से पुस्तक लेखन कार्य में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है। इसीलिए अन्दर आने की अनुमति माँगते हैं।’’ चाणक्य ने पूछा- ‘‘मौर्य सम्राट आजकल मेरी पुस्तकों में बड़ी रुचि ले रहे हैं। आखिर बात क्या है?’’ महागुप्तचर ने कहा- ‘‘मौर्य सम्राट का कहना है- चाणक्य की पुस्तकों को सम्पूर्ण विश्व में बेचने से मौर्य देश को बहुत मुनाफ़ा होगा। मौर्य सम्राट कह रहे थे- ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ के साथ यदि ‘चाणक्य नीति’ मुफ़्त में दी जाए तो ख़रीददारों की लम्बी लाइन लग जाएगी। ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ की बिक्री दस गुना बढ़कर सम्पूर्ण विश्व में बेस्टसेलर बन जाएगी।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘मनुष्य की आकांक्षाओं का कभी अन्त नहीं होता। मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त सम्राट बनने से पहले मूँगफली का ठेला लगाता था। सम्राट बनने के बाद हमेशा अपने मौर्य देश के विस्तार और खजाने का धन बढ़ाने के चक्कर में लगा रहता है!’’ बाहर खड़े मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने चाणक्य की बात सुनकर अन्दर आते हुए कहा- ‘‘चाणक्य की जय हो! मैं तो सिर्फ़ मौर्य देश के विस्तार और खजाने का धन बढ़ाने के चक्कर में लगा रहता हूँ, मगर आप....’’ मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी। चाणक्य ने पूछा- ‘‘मगर आप क्या? आगे बोलिए। चुप क्यों हो गए?’’ मौर्य सम्राट ने अपना मुँह बन्द रखा। चाणक्य को नाराज़ करने का मतलब था- फिर से मूँगफली का ठेला लगाना जो मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त को किसी हालत में मंजू़र नहीं था। चाणक्य ने कहा- ‘‘मुझे पता है- आप क्या कहना चाहते हैं। आप कहना चाहते हैं- मगर आप तो विद्योत्तमा की सेनापति अजूबी से होली खेलने के लिए इतनी दूर मैसूर जा रहे हैं।’’ चाणक्य की दूरगामी बुद्धि के आगे मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त एक बार फिर नतमस्तक हो गया और उसने अपना सिर झुका लिया। चाणक्य ने महागुप्तचर को संदेहास्पद दृष्टि से घूरकर देखा तो महागुप्तचर दाँत दिखाकर अपना सिर खुजलाने लगा। चाणक्य का अनुमान सही निकला। अजूबी से होली खेलने के लिए मैसूर जाने वाली बात महागुप्तचर ने ही मौर्य सम्राट को बताई थी। चाणक्य ने मन ही मन में महागुप्तचर को गाली देते हुए मौर्य सम्राट से चतुराईपूर्वक कहा- ‘‘हमारा कार्यक्रम व्यक्तिगत नहीं, पूर्णतया राजकीय है। विद्योत्तमा और उसकी सेनापति अजूबी के कारण मौर्य देश पर जब-तब संकट आता रहता है। इसलिए हमने निर्णय लिया है- होली खेलने के बहाने से हम इस समस्या का अन्त हमेशा के लिए कर देंगे।’’ मौर्य सम्राट ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘होली खेलने से समस्या का अन्त कैसे होगा?’’ चाणक्य ने चतुराईपूर्वक कहा- ‘‘होली खेलना तो सिर्फ़ एक बहाना है। यह रंगों वाली होली नहीं, खून की होली है।’’ मौर्य सम्राट ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘कैसे?’’ चाणक्य ने चतुराईपूर्वक कहा- ‘‘होली के रंग में हम इलेक्शन कमीशन वाली स्याही मिला देंगे, जो वोट डालने के समय ऊँगली में लगाई जाती है। होली खेलने के बाद अजूबी चाहे जितना रंग छुड़ाए, रंग छूटने वाला नहीं। रंग छुड़ाने के चक्कर में अजूबी अपने ही नाखून से अपना चेहरा और अपना शरीर घायल कर लेगी। इसे कहते हैं- दुश्मन के नाखून से ही दुश्मन को घायल करके लहूलुहान कर देना! चाणक्य की बुद्धिमानी का कौशल देखकर विद्योत्तमा और अजूबी भयभीत होकर मौर्य देश की ओर झाँकना तक भूल जाएँगी।’’ चाणक्य की बुद्धि के आगे मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त नतमस्तक होकर चाणक्य के पैरों पर लेटकर चाणक्य की जयजयकार करने लगा। चाणक्य ने मौर्य सम्राट को उठाते हुए कहा- ‘‘चलिए, उठिए। जयजयकार करने की कोई ज़रूरत नहीं।’’ मौर्य सम्राट ने खड़े होते हुए एकाएक अपना संदेह व्यक्त करते हुए पूछा- ‘‘मगर इलेक्शन कमीशन वाली स्याही खरीदने का आर्डर तो आपने अभी तक नहीं दिया?’’ चाणक्य ने दाँत पीसकर मन ही मन में मौर्य सम्राट को गाली देते हुए मौर्य सम्राट से कहा- ‘‘सुना है- द्रविड़ों के देश चेन्नई में इलेक्शन कमीशन वाली स्याही बहुत अच्छी और सस्ती मिल जाती है। वहीं से ले लूँगा। आजकल आप बहुत प्रश्न पूछने लगे हैं। लगता है- आपको चाणक्य पर भरोसा नहीं रहा।’’ मौर्य सम्राट ने क्षमा माँगते हुए कहा- ‘‘अब नहीं पूछूँगा।’’ कहते हुए मौर्य सम्राट ने चाणक्य की उस पाण्डुलिपि को देख लिया जो वह लिखने में व्यस्त थे। चाणक्य की पाण्डुलिपि का शीर्षक देखकर मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘ब्रेन वाश? नई पुस्तक लगती है। आपने कभी बताया नहीं- आप ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ और ‘चाणक्य नीति’ के अतिरिक्त तीसरी पुस्तक ‘ब्रेन वाश’ भी लिख रहे हैं?’’ चाणक्य का बहुत मन किया कि मौर्य सम्राट का गला दबा दे, किन्तु अपनी इच्छा का बलपूर्वक दमन करते हुए चाणक्य ने अत्यधिक चतुराईपूर्वक जवाब दिया- ‘‘आपने मेरी पूरी बात सुनी कहाँ? अजूबी से खूनी होली खेलने के बाद हम मैसूर महाराजा से मिलकर मौर्य देश के नए चमत्कारी शैम्पू ‘ब्रेन वाश’ का बहुत बड़ा आर्डर बुक करेंगे। यह पुस्तक ‘ब्रेन वाश’ मौर्य देश के नए चमत्कारी शैम्पू के प्रचार और प्रसार के लिए लिखा जा रहा है।’’ मौर्य सम्राट ने प्रसन्न होकर पूछा- ‘‘इस चमत्कारी शैम्पू ‘ब्रेन वाश’ की क्या विशेषता होगी?’’ ‘ओफ़्फ़ोह! हद हो गई!! मौर्य सम्राट तो हाथ-पैर धोकर गले पड़ गया!!!’- सोचते हुए चाणक्य ने चतुराईपूर्वक जवाब दिया- ‘‘सिर और चेहरे के बालों को छोड़कर शरीर में कहीं भी लगाने पर यह शैम्पू हेयर रिमूवर का काम करता है! सारे बाल जड़ से उखड़ जाते हैं और फिर कभी नहीं उगते!’’ मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त सन्तुष्ट होकर अत्यधिक प्रसन्नतापूर्वक चाणक्य की जयजयकार करता हुआ वहाँ से चला गया। मौर्य देश को मैसूर से ‘ब्रेन वाश’ शैम्पू का बहुत बड़ा आर्डर जो मिलने वाला था! |
Re: चाणक्यगीरी
महागुप्तचर ने आकर चाणक्य को एक कैसेट देते हुए कहा— ''मौर्य हाईकमान की जय हो! मौर्य सम्राट ने यह कैसेट आपके लिए भेजा है और पूछा है— गीत के मुखड़े में गुम आता है या ग़म?''
चाणक्य ने देखा— 'रामपुर का लक्ष्मण' फ़िल्म का कैसेट था। चाणक्य ने टेपरिकार्डर में कैसेट बजाने का आदेश दिया और ध्यान लगाकर गीत सुनने लगे— 'गुम है किसी के प्यार में दिल सुबह शाम पर तुम्हें लिख नहीं पाओं मैं उसका नाम हाय राम, हाए राम कुछ लिखा? हाँ क्या लिखा? गुम है किसी के प्यार में दिल सुबह शाम पर तुम्हे लिख नहीं पाओं मैं उसका नाम हाय राम, हाए राम अच्छा, आगे क्या लिखूं? आगे? सोचा है एक दिन मैं उसे मिलके कह डालूं अपने सब हाल दिन के और कर दूं जीवन उसके हवाले फिर छोड़ दे चाहे अपना बना ले मैं तो उसका रे हुआ दीवाना अब तो जैसा भी मेरा हो अंजाम हो गुम है किसी के प्यार में दिल सुबह शाम पर तुम्हे लिख नहीं पाओं मैं उसका नाम हाय राम, हाय राम लिख लिया? हाँ ज़रा पढ़के तो सूनाओ ना चाहा है तुमने जिस बावरी को वो भी सजनवा चाहे तुम्ही को नैना उठाए तो प्यार समझो पलकें झुका दे तो इकरार समझो रखती है कब से छुपा छुपा के क्या? अपने होठों में पिया तेरा नाम हो गुम है किसी के प्यार में दिल सुबह शाम पर तुम्हे लिख नहीं पाओं मैं उसका नाम हो गुम है किसी के प्यार में दिल सुबह शाम पर तुम्हे लिख नहीं पाओं मैं उसका नाम हाय राम, हाय राम' |
Re: चाणक्यगीरी
चाणक्य ने कई बार कैसेट रिवर्स करवाकर गीत सुना, किन्तु यह बात बिल्कुल समझ में नहीं आई कि ‘किसी के प्यार में दिल गुम है’ या ‘किसी के प्यार में ग़म है’? अन्ततः चाणक्य ने महागुप्तचर से कहा- ‘‘बॉलीवुड की ओर हमारे मौर्य देश के गुप्तचरों को रवाना करिए। तभी इस समस्या का समाधान निकलेगा। वही पता लगाएँगे- ‘गुम’ है या ‘ग़म’?’’
महागुप्तचर ने दाँत निकालकर कहा- ‘‘महामहिम, होली के कारण मौर्य देश के गुप्तचर छुट्टी पर गए हुए हैं।’’ चाणक्य ने पूछा- ‘‘कितने बचे हैं?’’ महागुप्तचर ने एक ऊँगली दिखाई। चाणक्य ने कुपित स्वर में कहा- ‘‘आपके कहने का मतलब है- सिर्फ़ आप ही ड्यूटी पर बचे हैं। बाकी सारे गुप्तचर होली की छुट्टी पर चल रहे हैं!’’ महागुप्तचर ने ‘हाँ’ में सिर हिलाकर दाँत दिखाते हुए कहा- ‘‘मैं भी छुट्टी की ऐप्लकैशन लेकर आया हूँ।’’ चाणक्य ने पूछा- ‘‘आप क्या करेंगे होली की छुट्टी पर जाकर? आपके आगे-पीछे तो कोई है नहीं?’’ महागुप्तचर ने डरते हुए रुक-रुककर कहा- ‘‘मैं मालव देश जाकर विद्योत्तमा की राज ज्योतिषी ज्वालामुखी से होली खेलूँगा।’’ चाणक्य ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘आप जानते हैं ज्वालामुखी को?’’ महागुप्तचर ने कहा- ‘‘नहीं जानता तो क्या हुआ? होली खेलने की कोशिश करके देखने में क्या हर्ज है?’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘शायद आपने वह बोर्ड नहीं देखा जो ज्वालामुखी हर समय अपने गले में लटकाकर घूमती है?’’ महागुप्तचर ने अलक्ष्यता के साथ ‘‘ज्वालामुखी ज्योतिषी है। ज्योतिष के धन्धे की टाइमिंग लिखी होगी। और क्या होगा?’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘बोर्ड में ज्योतिष के धन्धे की टाइमिंग नहीं लिखी।’’ महागुप्तचर ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘फिर क्या लिखा है?’’ चाणक्य ने बताया- ‘‘बोर्ड में लिखा है- ‘सिर्फ़ राजा-महाराजा ही लाइन मारें’, समझे आप? आप राजा-महाराजा तो हैं नहीं। बिना सोचे-समझे मेरी धर्मबहन ज्वालामुखी से पंगा लेंगे तो वह अपने बॉइफ्रेन्ड से कहकर आपके लंदन और अमेरिका का वीसा कैंसिल करवा देगी। बहुत पहुँच वाली है!’’ महागुप्तचर ने घबड़ाकर छुट्टी की ऐप्लकैशन फाड़कर फेंक दिया। चाणक्य ने चतुराईपूर्वक कहा- ‘‘ज्वालामुखी से होली खेलने के लिए आप रंग ज़रूर खरीदकर लाए होंगे। मेरे छः पसेरी रंग के कोटे में शामिल कर दीजिएगा। आपको आधा दाम दे दूँगा। आप भी क्या याद करेंगे। चाणक्य के कारण आपका रंग बर्बाद नहीं हुआ।’’ |
Re: चाणक्यगीरी
महागुप्तचर ने भयभीत स्वर में कहा- ‘‘आपका छः पसेरी रंग भी अब किसी काम नहीं आने वाला, महामहिम।’’
चाणक्य ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘वह क्यों?’’ महागुप्तचर ने डरते हुए बताया- ‘‘आपकी मैसूर यात्रा खटाई में पड़ गई है, महामहिम।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘खटाई में क्यों? हमारा ‘राजरथ-वन’ प्रस्थान के लिए एकदम तैयार है। मौर्य देश के इंजीनियर और वैज्ञानिक रथ के पहियों की अन्तिम जाँच-पड़ताल कर रहे हैं। एक दर्जन पहिए स्पेयर के रूप में रखे गए हैं। लम्बी दूरी होने के कारण हमने विशेष रथ बनवाया है। चार घोड़े रथ खींचेंगे और आठ घोड़े रथ के पीछे बने विशेष कक्ष में घास और चना खाकर विश्राम करेंगे। सैनिकों के लिए लागू नियमों की तर्ज पर हर दो घण्टे पर घोड़ों को चार घण्टे का विश्राम दिया जाएगा जिससे घोड़े बिना थके चुस्ती और फुर्ती के साथ सड़क पर बिना रुके सरपट दौड़ते रहें। घोड़ों के खाने के लिए विशेष घास हमने विदेश से मँगवाया है।’’ |
Re: चाणक्यगीरी
महागुप्तचर ने कहा- ‘‘वह सब तो ठीक है, महामहिम।’’
चाणक्य ने पूछा- ‘‘फिर क्या बात है, महागुप्तचर? क्या हमारे यात्रा-मार्ग में किसी प्रकार की कोई अड़चन आ रही है?’ महागुप्तचर ने कहा- ‘‘आपके यात्रा-मार्ग’ में कोई अड़चन नहीं, महामहिम। आपकी मैसूर-यात्रा के मद्देनज़र मौर्य देश के राष्ट्रीय राजमार्ग पर तीन दिन से कर्फ़्यू लगा दिया गया है। मौर्य देश की सेनाएँ राष्ट्रीय राजमार्ग पर फ़्लैग-मार्च कर रही हैं। मैसूर से ब्रेन वाश शैम्पू का बहुत बड़ा आर्डर मिलने के लोभ में राष्ट्रीय राजमार्ग पर दिखने वालों को देखते ही तीर मारने का आदेश स्वयं मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने दिया है। यही नहीं, महामहिम... मौर्य देश से मैसूर तक पड़ने वाले सभी देशों के राजा-महाराजाओं, नवाबों और सुल्तानों को मौर्य देश के सम्राट का फ़रमान सुनाकर उनके राष्ट्रीय राजमार्ग का परिवहन मौर्य देश के नियन्त्रण में ले लिया गया है।’’ |
Re: चाणक्यगीरी
एकाएक कुछ सोचकर चाणक्य ने चिन्तित स्वर में पूछा- ‘‘अगर चम्बल के डाकुओं ने छः पसेरी रंग लूटने के चक्कर में हमारा रास्ता रोकने की कोशिश की तो?’’
महागुप्तचर ने बताया- ‘‘आपके मैसूर-यात्रा का कार्यक्रम सुनकर आपके मित्र वाल्मीकि रामायण लिखना छोड़कर चम्बल के डाकुओं को समझा आए हैं। भूतपूर्व डाकू होने के कारण सभी डाकू वाल्मीकि की बड़ी इज़्ज़त करते हैं। वाल्मीकि की बात मानकर चम्बल के डाकू इस समय जंगल मार्ग से शेर, चीता, भालू और हाथियों को खदेड़ने में लगे हैं। यही नहीं, आपका ‘राजरथ-वन’ चम्बल की सीमा में प्रवेश करते ही चम्बल के डाकू कोल्डड्रिंक पिलाकर आपका स्वागत करेंगे।’’ चाणक्य ने कुछ सोचते हुए पूछा- ‘‘डाकुओं का कोल्डड्रिंक पीने से अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में हमारी बदनामी तो नहीं हो जाएगी? कहीं सभी देश यह न कहने लगें- मौर्य देश डाकुओं को संरक्षण प्रदान कर रहा है!’’ महागुप्तचर ने अलक्ष्यता के साथ कहा- ‘‘इस बात की चिन्ता करने की ज़रूरत हमें बिल्कुल नहीं है। किस देश में इतनी हिम्मत है जो मौर्य देश के विरुद्ध अपना मुँह खोल सके। विद्योत्तमा को छोड़कर।’’ |
Re: चाणक्यगीरी
चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘तो इसमें गलत क्या है? हम भी तो मालव देश के आरपार ही जाना चाहते हैं। विद्योत्तमा के बयान का मतलब साफ है- हमारे ‘राजरथ-वन’ के मालव देश की सीमा में प्रवेश करते ही विद्योत्तमा अपनी सेना के साथ हमें खदेड़ना शुरू कर देगी और तब तक खदेड़ती रहेगी जब तक हम सीमा के उस पार न निकल जाएँ। दूसरे दिन मालव देश के समाचार-पत्रों में छपेगा- ‘वीर विद्योत्तमा ने डमी चाणक्य को मालव देश की सीमा के आरपार बड़ी बहादुरी के साथ खदेड़ा’। राजरथ-वन के भागने के रंगीन चित्र के नीचे कैप्शन भी छपा होगा- ‘वीर विद्योत्तमा से डरकर भागता हुआ डमी चाणक्य’। वाह-वाह... विद्योत्तमा ने अपनी चतुराई से कितना बड़ा पब्लिसिटी स्टंट बनाया है। इससे विद्योत्तमा का बड़ा नाम होगा।’’
महागुप्तचर ने कहा- ‘‘आपका तो नाम बदनाम होगा, महामहिम। विद्योत्तमा आपको डमी कहती है।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘डमी ही नहीं- वह तो मुझे बहुत कुछ कहती है, मगर आपको इससे क्या? क्या आपको पता नहीं- विद्योत्तमा का नाम ऊँचा होने से मुझे बड़ी खुशी होती है।’’ महागुप्तचर ने कहा- ‘‘पता है, महामहिम। आपके कहने का मतलब है- विद्योत्तमा अपनी सेना के साथ आपको खदेड़ने का हाई वोल्टेज़ ड्रामा करेगी।’’ चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘बिल्कुल ठीक समझे आप। और क्या हो रहा है मालव देश में?’’ |
Re: चाणक्यगीरी
महागुप्तचर ने बताया- ‘‘मालव देश से प्राप्त राजकीय सूचना के अनुसार बहुत बड़े युद्ध की आशंका के चलते विद्योत्तमा ने मालव देश में इमेर्जेंसी लगा दिया है। मालव देश के सैनिक पत्रकारों को दौड़ा-दौड़ाकर पीट रहे हैं। विदेशी पत्रकार पिटाई के डर से मालव देश छोड़कर भाग गए हैं। मालव देश के राष्ट्रीय राजमार्ग पर दो हफ़्ते से कर्फ़्यू लगा दिया गया है और सड़कें चौड़ी की जा रही हैं जिससे चाणक्य को खदेड़कर पकड़ने में कोई बाधा न आए। मालव देश के सौ योजन लम्बे राष्ट्रीय राजमार्ग पर सड़क के दोनों ओर कदम-कदम पर मालव देश के सैनिकों के खाने-पीने के लिए अच्छी व्यवस्था की जा रही है। इसके लिए अच्छे हलवाइयों को पड़ोसी देशों से बुलवाया गया है। कहा जा रहा है- चाणक्य को खदेड़ते समय मालव देश के सैनिकों को खाने-पीने में कोई तकलीफ़ न हो।’’
चाणक्य ने कहा- ‘‘इसका मतलब हुआ- मालव देश के सैनिकों के नाम पर हमारे खाने-पीने की ज़ोरदार व्यवस्था की जा रही है, किन्तु हमारे मालव देश की सीमा से आरपार चले जाने के बाद विद्योत्तमा रो-रोकर अपना बयान देगी- हमने बहुत कोशिश की लेकिन हम डमी चाणक्य को नहीं रोक सके और वह सीमा के पार चला गया। यह हमारे देश के लिए बड़ी शर्मनाक बात है- डमी चाणक्य हमारे देश के सैनिकों का भोजन-पानी भी चट कर गया।’’ महागुप्तचर ने पूछा- ‘‘यह आप कैसे कह सकते हैं- आपके लिए ही खाने-पीने की व्यवस्था की जा रही है?’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘सैनिकों के खाने-पीने के लिए ऐसी व्यवस्था कोई नहीं करता। क्या आपको याद नहीं- पिछले वर्ष विद्योत्तमा के आदेश पर मालव देश के सैनिक हमें पकड़ने के लिए हर देश में घूम रहे थे और हम मालव देश जाकर विद्योत्तमा से गपशप करके सुरक्षित वापस लौट आए थे।’’ मुँह लगे महागुप्तचर ने कहा- ‘‘झूठ न बोलिए, महामहिम। आप विद्योत्तमा से गपशप करके नहीं, विद्योत्तमा की डाँट-फटकार सुनकर आए थे। तांत्रिक गुग्गुल महाराज की बेवकूफ़ी की वजह से विद्योत्तमा आपसे बहुत नाराज़ चल रही थी, जिसकी वजह से उसने आपसे मर जाने तक के लिए कहा था।’’ |
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चाणक्य ने बात घुमाते हुए कहा- ‘‘चलिए छोडि़ए। जब विद्योत्तमा के आदेश पर अजूबी ने मुझे अपने घर में हाउस-अरेस्ट कर लिया था और किसी हालत में मुझे छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी तो मैंने सिर्फ़ माचिस की तीली से अजूबी के सिर पर मारा था और वह बेहोश हो गई थी।’’
महागुप्तचर ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘माचिस की तीली से मारने पर अजूबी कैसे बेहोश हो सकती है? वह तो अकेले एक हज़ार सैनिकों से लड़ती है। कहीं अजूबी बेहोश होने का नाटक तो नहीं कर रही थी?’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘मैं भी यही समझा था, लेकिन अजूबी ने बाद में बताया था- वह सदमे के कारण सचमुच बेहोश हो गई थी, क्योंकि वह इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाई थी कि मैं माचिस की तीली से ही सही, उसे मारने का प्रयत्न कर सकता हूँ। अगर मैं अजूबी को मारने के लिए कहीं लाठी-डण्डा उठा लेता तो बेचारी बिना मारे ही सदमे के कारण मर जाती। बड़ा पाप चढ़ता। क्या इन सब बातों से यह साफ पता नहीं चलता- इस बार भी सिर्फ़ खदेड़कर पकड़ने के नाटक के साथ दावत दी जा रही है।’’ उसी समय बाहर से ढोल-ताशा और नगाड़ा बजने की आवाज़ सुनकर चाणक्य ने कहा- ‘‘लीजिए, राजरथ-वन की जाँच-पड़ताल पूरी हो चुकी है और मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त महामंत्री राजसूर्य के साथ हमें सी-ऑफ़ करने के लिए आ चुके हैं। अब आप जल्दी से बताइए- हमारे मैसूर-यात्रा में बाधा कहाँ से आ रही है?’’ |
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महागुप्तचर ने बताया- ‘‘महामहिम, अजूबी के मामले की फ़ाइनल रिपोर्ट बनकर तैयार है। वही लेकर आपके पास भागा-भागा आ रहा था। मौर्य सम्राट ने गीत का कैसेट थमा दिया।’’
चाणक्य ने उत्सुकतापूर्वक पूछा- ‘‘कहाँ है फाइनल रिपोर्ट? फ़ाइल तो कहीं नज़र नहीं आ रही?’’ महागुप्तचर ने बताया- ‘‘टॉप सीक्रेट फ़ाइल होने के कारण प्रोटकॉल के मुताबिक लंगोट में बाँधकर लाया हूँ।’’ कहते हुए महागुप्तचर ने फ़ाइल निकालकर रिपोर्ट पढ़ते हुए कहा- ‘‘महामहिम, हमारे गुप्तचरों की सूचना के अनुसार आपकी और अजूबी की दोस्ती की सूचना प्रसारित होते ही विद्योत्तमा के देश में खुशियाँ मनाई गईं और मालव देश के राजपत्र में इस बारे में अधिकृत सूचना एक रंगीन चित्र के साथ जारी की गई।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘वेरी गुड।’’ |
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महागुप्तचर ने आगे बताया- ‘‘किन्तु, महामहिम... हमारे गुप्तचरों ने इस बार एक बहुत बड़ी गड़बड़ी को चिह्नित किया है। पिछले वर्ष जब आपने विद्योत्तमा से भेंट करने का कार्यक्रम तय किया था तो विद्योत्तमा ने कार्यक्रम के दो सप्ताह पहले मालव देश के राजकीय कबूतर भेजकर आपसे ‘गाली-गलौज करके’ तथा ‘न आने पर अंजाम बुरा होगा’ कहकर अपनी अधिकृत स्वीकृति प्रदान की थी, किन्तु अजूबी ने मैसूर से राजकीय कबूतर भेजकर अपनी अधिकृत स्वीकृति प्रदान नहीं की। हमारे गुप्तचरों का कहना है- मौर्य देश में आपके निवास स्थान के ऊपर कुछ कबूतर संदेहास्पद ढंग से मँडराते हुए अवश्य दिखाई दिए, किन्तु कबूतरों को पकड़कर जब जाँच-पड़ताल की गई तो पता चला कि सभी कबूतर हमारे मौर्य देश के ही थे। मैसूर का कोई भी कबूतर हमारे मौर्य देश की सीमा में दाखिल नहीं हुआ जिससे यह पता चलता- अजूबी ने आपसे भेंट करने के लिए अपनी अधिकृत स्वीकृति प्रदान की है।’’
चाणक्य ने कहा- ‘‘यह कोई बड़ी बात नहीं। राजकीय लोगों को कई देशों के कबूतर पालने का शौक़ होता है। हमारे पास भी तो कई देशों के कबूतर हैं। अजूबी के पास भी कई देशों के कबूतर हो सकते हैं।’’ |
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महागुप्तचर ने कहा- ‘‘हमारे गुप्तचरों का कहना है- महामहिम ने तो बड़ी ईमानदारी से अपने पास के सभी कबूतरों की सूची अजूबी को बता दी थी, किन्तु फिर भी अजूबी ने आज तक यह नहीं बताया- उसके पास कुल कितने कबूतर हैं? यही नहीं, महामहिम ने अजूबी से मैसूर के राजकीय न्यूज़लेटर का सब्स्क्रिप्शन माँगा था। वह भी आज तक अजूबी ने नहीं दिया।’’
चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘कोई बात नहीं। अजूबी ने यह ज़रूर बता दिया है- होली की दावत कहाँ दी जा रही है और वह कहाँ मिलेगी।’’ महागुप्तचर का मुँह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया। उसी समय ‘राजरथ-वन’ के टाइमकीपर ने एक बार शंख बजाकर प्रस्थान में एक घण्टा विलम्ब होने की चेतावनी दी। शंख की आवाज़ सुनकर चाणक्य ने कहा- ‘‘हमारे प्रस्थान में एक घण्टा विलम्ब हो चुका है। यह लीजिए- दो चित्र और इसकी सत्यता की जाँच करिए। अभी थोड़ी देर पहले दो कबूतर आकर ये चित्र छत पर गिरा गए थे। आपको इस कार्य के लिए बुलाने ही वाला था- आप खुद आ गए। इसकी रिपोर्ट हमें तत्काल चाहिए।’’ |
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महागुप्तचर ने कहा- ‘‘अब तो बहुत देर हो चुकी है, महामहिम। होली के कारण सारे गुप्तचर छुट्टी पर चल रहे हैं।’’
चाणक्य ने कहा- ‘‘तो क्या हुआ? द्रविड़ देश के गुप्तचरों की सहायता ली जाए।’’ महागुप्तचर ने बताया- ‘‘द्रविड़ देश के गुप्तचर कर्नाटक के गुप्तचरों के साथ हैदराबादी बिरयानी खाने के लिए हैदराबाद गए हुए हैं।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘हैदराबाद निजाम के गुप्तचर तो इस समय अवश्य उपलब्ध होंगे? उनकी सहायता ली जाए।’’ महागुप्तचर ने कहा- ‘‘क्षमा करें, महामहिम। हैदराबाद निजाम के गुप्तचर पाव-भाजी खाने के लिए मुम्बई गए हुए हैं।’’ चाणक्य ने पूछा- ‘‘और मुम्बई के गुप्तचर इस समय क्या कर रहे हैं?’’ महागुप्तचर ने बताया- ‘‘मुम्बई के गुप्तचर स्पेशल मसाला-डोसा खाने के लिए कन्याकुमारी गए हुए हैं।’’ चाणक्य ने पूछा- ‘‘और केरल के गुप्तचर?’’ महागुप्तचर ने बताया- ‘‘केरल के गुप्तचर होली की गुझिया खाने के लिए दिल्ली गए हुए हैं।’’ चाणक्य ने सिर पकड़कर कहा- ‘‘पेटू हैं सब के सब! तो इस समय सभी गुप्तचर कुछ न कुछ खाने-पीने के लिए इधर-उधर गए हुए है।’’ उसी समय ‘राजरथ-वन’ के टाइमकीपर ने दो बार शंख बजाकर प्रस्थान में दो घण्टा विलम्ब होने की चेतावनी दी। शंख की आवाज़ सुनकर चाणक्य ने कहा- ‘‘हमारे प्रस्थान में दो घण्टे का विलम्ब हो चुका है। मौर्य देश के तांत्रिकों को तुरन्त बुलाया जाए। अब वही अपनी तांत्रिक शक्ति से पता लगाकर बताएँगे- चित्रों की सत्यता क्या है?’’ |
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महागुप्तचर के आदेश पर मौर्य देश के राजकीय तांत्रिक गुग्गुल महाराज और याह्या बाबा चाणक्य से सामने हाजि़र हुए। तांत्रिक शक्ति में गुग्गुल महाराज याह्या बाबा से बहुत बड़े थे। चाणक्य ने गुग्गुल महाराज को वक्र दृष्टि से घूरते हुए कहा- ‘‘पिछले वर्ष आपने विद्योत्तमा के बारे में उल्टी-सीधी सूचनाएँ देकर चाणक्य को अच्छी तरह से वाट लगा दिया था। इस बार इन चित्रों की सत्यता परखकर बताइए। ध्यान से- इस बार कोई गड़बड़ी न होने पाए।’’
गुग्गुल महाराज ने चित्रों को देखकर अपनी तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए बताया- ‘‘मुझे तो कहीं पर कुछ गड़बड़ी नज़र आ रही है।’’ चाणक्य ने याह्या बाबा की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा। याह्या बाबा ने भी गुग्गुल महाराज की बात की पुष्टि करते हुए कहा- ‘‘कुछ तो ज़रूर गलत लग रहा है।’’ चाणक्य ने अपना सन्देह व्यक्त करते हुए कहा- ‘‘आप दोनों कहीं कुछ गलती तो नहीं कर रहे?’’ |
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गुग्गुल महाराज ने कुपित होकर अपनी तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग करके दीवार पर पूरे मैसूर और बंगलौर का नक्शा बनाते हुए कहा- ‘‘आप स्वयं देख लीजिए।’’
चाणक्य ने नक्शा देखते हुए कहा- ‘‘आप मैसूर नहीं, सिर्फ़ बंगलौर का नक्शा दिखाइए। इस समय अजूबी मैसूर महाराजा के साथ बंगलौर में ही है।’’ गुग्गुल महाराज ने अपनी तांत्रिक शक्तियों के प्रयोग से दीवार पर बंगलौर का नक्शा बना दिया। चाणक्य ने कहा- ‘‘नक्शे को और थोड़ा बड़ा करके दिखाइए।’’ गुग्गुल महाराज ने नक्शे को और बड़ा कर दिया। चाणक्य ने कहा- ‘‘और थोड़ा बड़ा करिए।’’ गुग्गुल महाराज ने अपनी तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए कहा- ’’बस, अब इससे अधिक बड़ा नहीं हो सकता। मैसूर के राजकीय तांत्रिकों ने अपनी शक्ति के प्रयोग से हमारी शक्ति के प्रयोग की सीमा तय कर दी है। नहीं तो हम अजूबी के सिर के बाल तक गिनकर आपको अभी बता देते।’’ दीवार पर बने बंगलौर का नक्शा देखकर चाणक्य को लगा कि गुग्गुल महाराज की बात गलत नहीं थी। मालव देश की राज ज्योतिषी ज्वालामुखी ने भी इस प्रकरण पर कोई अधिकृत भविष्यवाणी जारी नहीं की थी। यही नहीं, जब-तब विद्योत्तमा और अजूबी से छिपाकर गुप्त सूचनाएँ भेजने वाली ज्वालामुखी ने इस बार कोई गुप्त सूचना भी नहीं भेजी थी। अतः सब कुछ संदेहास्पद लग रहा था। |
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उसी समय संदेश-पत्र के साथ एक कबूतर आकर महागुप्तचर के कंधे पर बैठ गया। महागुप्तचर ने संदेश पढ़ते हुए कहा- ‘‘मैसूर के गुप्तचर ने होली की छुट्टी पर जाने से पहले अपना अन्तिम सन्देश भेजा है।’’
चाणक्य ने उत्सुकतापूर्वक पूछा- ‘‘क्या लिखा है संदेश में?’’ महागुप्तचर ने बताया- ‘‘अजूबी को तमिलनाडु के होसूर के आसपास के क्षेत्र में कुत्ते और बिल्लियों के साथ टहलता हुआ देखा गया। इस घटना के कुछ देर बार अजूबी के दोस्तों ने ‘दिल के अरमां आँसुओं में बह गए’ कहकर अजूबी का मज़ाक़ उड़ाया।’’ चाणक्य ने कुपित होते हुए कहा- ‘‘अजूबी के दोस्तों का यह कृत्य एक निंदनीय घटना है। सम्पूर्ण प्रकरण में गलती हमारी नहीं, अजूबी की ही है। फिर भी ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुत्ते और बिल्लियों के साथ अजूबी का टहलना एक अच्छा शकुन है...’’ उसी समय ‘राजरथ-वन’ के टाइमकीपर ने तीन बार शंख बजाकर प्रस्थान में तीन घण्टा विलम्ब होने की चेतावनी दी। चाणक्य ने शंख की आवाज़ सुनकर कहा- ‘‘घटनाओं की जाँच-पड़ताल समय पर पूरी न होने के कारण हमारे प्रस्थान में तीन घण्टा विलम्ब हो चुका है जिसके कारण होली पर समय से पहुँचना सम्भव नहीं। इसलिए मैसूर-यात्रा के कार्यक्रम को अस्थाई रूप से पोस्ट्पोन किया जाता है। ब्रेन वाश पुस्तक भी अभी तक कायदे से पूरी नहीं हो सकी है। ब्रेन वाश ठीक से न लिखी गई तो इतिहास में चाणक्य का मुँह काला हो जाएगा। सभी कहेंगे- चाणक्य ने अजूबी के साथ अन्याय किया।’’ |
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महागुप्तचर ने पूछा- ‘‘महामहिम कब तक के लिए मैसूर-यात्रा के कार्यक्रम को पोस्ट्पोन कर रहे हैं?’’
उसी समय मौर्य देश के सेनापति ने आकर कहा- ‘‘मौर्य हाइकमान की जय हो! राजा हरिश्चन्द्र एण्ड युधिष्ठिर फ़ैन्स एसोसिऐशन के अध्यक्ष आपसे मिलना चाहते हैं।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘आने दो।’’ राजा हरिश्चन्द्र एण्ड युधिष्ठिर फ़ैन्स एसोसिऐशन के अध्यक्ष ने अन्दर आते हुए कहा- ‘‘चाणक्य की जय हो! हम सच बोलने वालों पर बहुत बड़ा संकट आने वाला है। आप ही हमें इस संकट से बचा सकते हैं।’’ चाणक्य ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘संकट? कैसा संकट?’’ राजा हरिश्चन्द्र एण्ड युधिष्ठिर फ़ैन्स एसोसिऐशन के अध्यक्ष ने बताया- ‘‘हम सच बोलने वाले एक अप्रैल को चाहे जितना सच बोलें, हमें झूठा ही समझा जाता है। कुछ ऐसा उपाय कीजिए- हमें हमेशा सच्चा ही समझा जाए।’’ चाणक्य ने सोचते हुए कहा- ‘‘ठीक है- एक अप्रैल को हम अजूबी से भेंट करने के लिए मैसूर जा रहे हैं। जो चाणक्य की इस बात को झूठ समझेगा, वह खुद महामूर्ख कहलाएगा। हमारे इस सत्य के कारण एक अप्रैल पर लगा दाग़ हमेशा के लिए मिट जाएगा!’’ चाणक्य की बात सुनकर राजा हरिश्चन्द्र एण्ड युधिष्ठिर फ़ैन्स एसोसिऐशन का अध्यक्ष चाणक्य की जय जयकार करता हुआ वहाँ से चला गया। चाणक्य ने महागुप्तचर से कहा- ‘‘चलिए, बड़ा अच्छा हुआ- मैसूर-यात्रा का कार्यक्रम पोस्ट्पोन हो गया, क्योंकि विद्योत्तमा ने अपने राजकीय राजपत्र में होली खेलने के नए नियमों की घोषणा की है। मौर्य देश के वैज्ञानिक विद्योत्तमा द्वारा जारी नियमों की जाँच-पड़ताल कर रहे हैं। जब तक वैज्ञानिकों की फ़ाइनल रिपोर्ट नहीं आ जाती, होली खेलना किसी हालत में बुद्धिमानी न होगी।’’ महागुप्तचर ने पूछा- ‘‘घोड़ों के खाने के लिए आई विदेशी घास का क्या किया जाए?’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘विदेशी घास की गर्म-गर्म पकौड़ी बनाकर मौर्य देश की ग़रीब जनता को मुफ़्त में बाँटा जाए। मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त की चारों ओर जय जयकार होगी।’’ महागुप्तचर ने चाणक्य के दिमाग़ का लोहा मान गया। चाणक्य के मैसूर-यात्रा का कार्यक्रम एक अप्रैल तक स्थगित होने की सूचना जारी होते ही बाहर शोक संगीत बजने लगा और मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ज़ोर-ज़ोर से अपनी छाती पीटने लगे। मैसूर से ब्रेन वाश शैम्पू का बहुत बड़ा आर्डर मिलने में विलम्ब जो हो रहा था! |
Re: चाणक्यगीरी
अर्धरात्रि के उपरान्त रात के सन्नाटे को चीरती हुई महागुप्तचर के रथ में लगे साइरन और घोड़ों के सरपट दौड़ने की मिश्रित आवाज़ सुनकर गहरी नींद में सोते हुए चाणक्य की नींद भंग हो गई। प्रतिक्षण निकट आती हुई आवाज़ सुनकर चाणक्य समझ गए कि महागुप्तचर उनसे ही मिलने आ रहे हैं। कुछ देर बाद महागुप्तचर ने अन्दर आते हुए कहा- ‘‘मौर्य हाइकमान चाणक्य की जय हो! अर्धरात्रि के उपरान्त आने के लिए क्षमा करें। हमारे गुप्तचर विभाग को एक अति आवश्यक सूचना प्राप्त हुई है। आपसे बताना बहुत ज़रूरी था। इसीलिए भागा-भागा आया हूँ।’’
चाणक्य ने उत्सुकतापूर्वक पूछा- ‘‘हुआ क्या? आपने हमारी नींद खराब कर दी।’’ महागुप्तचर ने कहा- ‘‘महामहिम, सूचना मालव देश से प्राप्त हुई है।’’ मालव देश का नाम सुनकर चाणक्य की नींद उड़नछू हो गई। चाणक्य ने प्रश्नवाचक दृष्टि से महागुप्तचर की ओर देखा। महागुप्तचर ने बताया- ‘‘आपके मैसूर-यात्रा का कार्यक्रम स्थगित होने की अधिसूचना जारी होते ही विद्योत्तमा ने राज ज्योतिषी ज्वालामुखी के साथ एक आपातकालीन बैठक की और रात्रि बारह बजे के उपरान्त एक राजकीय विज्ञप्ति जारी की।’’ चाणक्य ने उत्सुकतापूर्वक पूछा- ‘‘क्या कहा गया है राजकीय विज्ञप्ति में?’’ महागुप्तचर ने बताया- ‘‘राजकीय विज्ञप्ति में कहा गया है- अजूबी मेरे लिए भूतपूर्व सेनापति और सहेली ही नहीं, मेरी छोटी बहन के समान है और मैसूर में रो-रोकर उसका बुरा हाल है।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘मतलब अजूबी के रोने का इल्ज़ाम विद्योत्तमा हम पर लगा रही है? हमने अजूबी को होली की शुभकामनाएँ समय पर भेज दी हैं, किन्तु आज तक अजूबी का कोई उत्तर नहीं आया। लगता है- बहुत नाराज़ चल रही है। यह अत्यधिक चिन्ताजनक बात है, क्योंकि हमने सिर्फ़ पचीस दिनों के लिए मैसूर-यात्रा का कार्यक्रम स्थगित किया है, रद्द नहीं किया।’’ महागुप्तचर ने आगे कहा- ''राहत के तौर पर महामन्त्री राजसूर्य ने आँसू पोछने के लिए एक लाख रूमाल से लदा रथ मैसूर भेजने की घोषणा की है।'' चाणक्य ने भड़ककर कहा- ''ख़बरदार जो अगर किसी ने बिना हमसे पूछे अजूबी को रूमाल भेजने की कोशिश की। रूमाल देखकर अजूबी और नाराज़ हो जाएगी।'' उसी समय मौर्य देश के सैनिक बड़े—बड़े जल—रथ लेकर साइरन बजाते हुए भागने लगे तो चाणक्य ने आश्चर्यपूर्वक पूछा— ''राजमहल में आग लग गई क्या?'' महागुप्तचर ने कहा— ''इस बारे में अभी तक हमारे पास कोई सूचना नहीं है, महामहिम। क्षमा करें।'' उसी समय मौर्य सेनापति ने अन्दर आते हुए कहा— ''महामहिम की जय हो! हमने मैसूर से प्राप्त अजूबी के एक गुप्त सन्देश को डिकोड करने में सफलता प्राप्त कर ली है। अजूबी ने अपने गुप्त संदेश में कहा है कि मैसूर के चर्च में लगी आग में वह फॅंस गई है। मौर्य महामन्त्री राजसूर्य के आदेशानुसार मौर्य देश के सैनिक आग बुझाने के लिए जल—रथ लेकर मैसूर रवाना हो रहे हैं।'' कहते हुए मौर्य सेनापति ने सोचा कि त्वरित कार्यवाही करने के लिए चाणक्य की शाबासी मिलेगी, किन्तु चाणक्य ने आगबबूला होते हुए कहा— ''कितनी बार कहा— बिना मुझसे पूछे अजूबी और विद्योत्तमा के मामले में टॉंग न फॅंसाइए। मगर आप लोग मानते ही नहीं।'' मौर्य सेनापति ने दॉंत निकालते हुए कहा— ''आप ही ने तो कहा था— आपातकालीन स्थिति में त्वरित कार्यवाही करने के बाद ही आपको सूचना दी जाए।'' चाणक्य ने कुपित स्वर में कहा— ''आप लोग मूर्ख नहीं, महामूर्ख हैं। चर्च में आग नहीं लगी है। एक बार मैंने अजूबी से कहा था— चर्च में तुम बहुत किलिंग और डैशिंग लग रही थीं। उसी के जवाब में अजूबी ने गुप्त सन्देश भेजा है, जिसका मतलब है— तुमने किलिंग और डैशिंग कहकर मुझे प्रज्ज्वलित कर दिया है।'' महागुप्तचर और सेनापति मूर्खों की तरह अपना मुॅंह बनाने लगे। |
Re: चाणक्यगीरी
चाणक्य ने मुस्कुराते हुए रहस्योद्घाटन करते हुए कहा- 'हमें पता है- मालव देश के लिए कौन जासूसी कर रहा है और हमारी खबरें विद्योत्तमा और अजूबी तक कैसे पहुँचती हैं। महामंत्री राजसूर्य कुत्ता है। मुझे तो तभी से महामंत्री राजसूर्य पर शक होने लगा था जब वह राजमहल छोड़कर विद्योत्तमा, अजूबी और हमारे बीच होनेवाली बातें सुनने के लिए 'चाणक्य-निवास' में कुत्ते की तरह सूँघता फिरता था। उस समय तो मेरा शक़ और गहरा गया था जब महामंत्री राजसूर्य विद्योतमा के सम्मान में अपना राजमुकुट उतारकर बेशर्मों की तरह सिर झुकाकर खड़ा था। ऐसा करके महामंत्री राजसूर्य ने मौर्य देश के साथ गद्दारी है। महामंत्री राजसूर्य का सिर कलम करके मौर्य सम्राट के समक्ष पेश किया जाए।'
चाणक्य का आदेश सुनकर महागुप्तचर का मुँह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया। उसी समय मालव देश से आए गुप्तचर ने आकर कहा- 'मौर्य महामहिम चाणक्य की जय हो! विद्योत्तमा ने अपने भेजे गए एक गुप्त सन्देश में कहा है- मालव देश के राजमहल के चौकीदार की पोस्ट खाली है। चाणक्य आने को बोले तो एक-दो हज़ार स्वर्णमुद्राएँ दे दूँगी महीने में।' मौका देखकर महागुप्तचर ने चाणक्य को विद्योत्तमा के खिलाफ भड़काते हुए कहा- 'यह तो आपका घोर अपमान है, महामहिम। विद्योत्तमा को सबक सिखाने के लिए हमें कुछ करना चाहिए।' चाणक्य ने कहा- 'ठीक है। सेनापति से कहो- युद्ध की तैयारी करे। हम मालव देश की ईंट से ईंट बजा देंगे।' महागुप्तचर खुश होकर चला गया। ×××××× मालव देश पर हमले की बात फैलते ही मालव देश में हड़कम्प मच गया, किन्तु विद्योत्तमा ने मुस्कुराते हुए कहा- 'बहुत दिनों से बोरियत लग रही थी। चाणक्य ने अपनी महाबुद्धि के प्रयोग से कितना मनोरंजक कार्यक्रम बनाया है। दोनों देशों की सेनाओं के बीच दनादन ईंटे चलेंगे।' मैसूर महाराजा की सेनापति अजूबी को जब पता चला कि मनोरंजक युद्ध होने वाला है तो वह मैसूर महाराजा से अपने सिर के बालों में भयंकर दर्द का बहाना बनाकर छुट्टी लेकर मालव देश आ गई। विद्योत्तमा ने गर्व से बताया- 'लड़ाई के लिए पाँच लाख दफ्ती की ईंटे बनकर एकदम तैयार हैं। वजन के लिए हमने अन्दर मेवे का लड्डू भरा है।' अजूबी ने मुँह बनाकर कहा- 'कागज के ईंटों से लड़ने के लिए इतना खर्च करके दफ्ती का ईंटा बनवाने की क्या जरूरत थी? तुम देख लेना- मौर्य देश की सेनाएँ कागज की ईंट लेकर लड़ने के लिए आएँगी और अन्दर पंजीरी और बताशा भरा होगा।' |
Re: चाणक्यगीरी
चाणक्य के आदेश पर भिखारिन विद्यावती के भेष में आई मालव देश की महारानी विद्योत्तमा को मौर्य महल में ठहरा दिया गया। विद्यावती की कविताएँ सुनने के लिए चाणक्य, मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त, महागुप्तचर वक्रदृष्टि और महामंत्री राजसूर्य के साथ राजमहल के अन्य पदाधिकारी मौर्य महल पहुँच जाते और विद्यावती टूटी-फूटी संस्कृत में अपनी कविताएँ सुनाती। सेनापति प्रचण्ड एक सौ आठ तोपों के साथ मौर्य महल के बाहर मुस्तैदी से खड़े रहते, क्योंकि विद्यावती की हर कविता पर एक सौ आठ तोपों की सलामी देने का आदेश चाणक्य ने जारी किया था। यही नहीं, विद्यावती का उत्साहवर्धन करने के लिए हर कविता के बाद मधुर संगीत बजाकर नाच-गाना करने वाले कलाकार अन्दर तैयार खड़े रहते। जैसे ही विद्यावती अपनी कविता सुनाकर समाप्त करती, संगीतकार जोर-शोर से अपने-अपने वाद्य-यन्त्र बजाने लगते और कलाकार तरह-तरह के नृत्य करने लगते। विद्यावती की हर कविता पर विद्यावती को मौर्य देश की ओर से एक राजकीय सम्मान दिया जाता, क्योंकि चाणक्य को डर था कि अँग्रेज़ी साहित्य में साल में दस अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान लाने वाली विद्यावती का मन सम्मान के बिना मौर्य देश में न लगा और वह मौर्य देश छोड़कर मालव देश वापस चली गई और मालवदेश में अँग्रेज़ी में कविताएँ सुनाने लग गई तो फिर विद्यावती का दर्शन करना टेढ़ी खीर होगा। विद्योत्तमा को दिए जाने वाले सम्मानों का नामकरण करने के लिए चाणक्य ने एक समिति गठित कर दी थी जिसका काम ही नए-नए सम्मानों का नाम खोजना था। देखते-देखते जब विद्यावती ने कविताएँ सुना-सुनाकर सारे सम्मान बटोर लिए और सम्मान का नामकरण करने में दिक्कत पेश आने लगी तो चाणक्य ने बीत गए और आने वाले तूफ़ानों के नाम पर सम्मान का नाम रखने का सुझाव दिया। देखते-देखते विद्यावती ने हुदहुद सम्मान, कैटरीना सम्मान करके सारे 'तूफ़ानी सम्मान' बटोर लिए तो तूफ़ानों के नाम भी कम पड़ने लगे, क्योंकि रोज़ एक नई कविता आ जाती थी, किन्तु तूफ़ान न आता था!!!
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Re: चाणक्यगीरी
विद्यावती की एक आदत बहुत ख़राब थी। मौर्य महल में रहते-रहते वह बिना किसी को बताए अचानक गायब हो जाती और कुछ दिन बाद फिर वापस आ जाती, किन्तु यह बात मौर्य देश में सिर्फ़ चाणक्य को पता थी कि विद्यावती गायब होकर मालव देश चली जाती है। महागुप्तचर वक्रदृष्टि की शक की सुई बहुत दिनों से विद्यावती की ओर लहरा रही थी और वह जब तब विद्यावती के शरीर को सूँघकर यह पता लगाने की कोशिश करता रहता कि विद्यावती कौन सा इत्र लगाती है, क्योंकि उसे पता था कि किस देश की महारानी कौन सा इत्र लगाती है। किन्तु विद्योत्तमा अति चतुर और नटखट थी। अपनी पहिचान छिपाने के लिए वह इत्र की जगह अपने शरीर पर गोबर मलकर नहाती और महागुप्तचर वक्रदृष्टि हर बार गोबर की खुशबू सूँघकर निराश हो जाता। अन्ततः चाणक्य को महागुप्तचर वक्रदृष्टि से कहना ही पड़ा- 'महागुप्तचर, विद्यावती चाणक्य की मेहमान है और चाणक्य की मेहमान की जासूसी करना कोई अच्छी बात नहीं।'
महागुप्तचर ने कहा- 'महामहिम की जान को कोई खतरा न हो, इसलिए जासूसी करनी पड़ती है। मुझे तो यह महिला किसी देश की जासूस लगती है!' चाणक्य ने पूछा- 'यह आप क्यों कह रहे हैं- विद्यावती से मेरी जान को खतरा है?' महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने रहस्योद्घाटन करते हुए कहा- 'मेरा नाम वक्रदृष्टि है। बहुत ही वक्र दृष्टि है मेरी। मेरी नज़रों से कुछ छिप नहीं सकता। विद्यावती अपने पास हर समय एक खंजर रखती है और मौर्य देश के नियमानुसार बिना लाइसेन्स खंजर रखना ज़ुर्म है।' चाणक्य ने सफाई देते हुए कहा- 'खंजर तो वह अपना शरीर खुजलाने के लिए रखती है। आप बिल्कुल चिन्ता न करिए।' महागुप्तचर ने कहा- 'पहली बार सुन रहा हूँ। खंजर से कोई शरीर खुजलाता है क्या?' चाणक्य ने सफाई देते हुए कहा- 'मोटी खाल होगी, गैंडे जैसी। बेचारी कब तक नाखून से खुजलाएगी? खुजलाते-खुजलाते थक जाती होगी, इसीलिए खंजर रखने लगी होगी।' महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने चिन्तित स्वर में कहा- 'फिर भी आपको सतर्क रहने की आवश्यकता है। वह अपने पास खंजर रखती है और आप बिना किसी सुरक्षा के अकेले मिलने चले जाते हैं।' चाणक्य ने कुपित स्वर में कहा- 'हुज्जत न करिए, महागुप्तचर। खतरा सिर्फ़ मेरी जान को है न? आज आदेश किए दे रहा हूँ। कान खोलकर सुन लीजिए- मौर्य देश में विद्यावती पर न तो किसी प्रकार का कोई मुकदमा चलाया जा सकता है और न ही उसे गिरफ्तार किया जा सकता है चाहे वह चाणक्य को ही न खंजर घोंप दे। समझे आप? जाइए, मौर्य देश के संविधान के सातवें भाग के छठवें अध्याय के सातवें अनुच्छेद, पृष्ठ संख्या अट्ठासी पर लिखे कानून की धारा नौ सौ पचीस में छियालिसवाँ संशोधन करके आइए और आते समय विद्यावती के नाम से तोप का लाइसेन्स बनाकर उसके साथ एक छोटी तोप लेकर आइए। अच्छा नहीं लगता- इतनी बड़ी कवियित्री के पास छोटी सी तोप भी न हो!' चाणक्य का आदेश सुनकर महागुप्तचर का मुँह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया और वह चाणक्य का आदेश रटता हुआ चला गया- 'मौर्य देश के संविधान के सातवें भाग के छठवें अध्याय के सातवें अनुच्छेद....' |
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