आधार कार्ड: यूआईडीः यह कार्ड खतरनाक है ?.........
आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://www.chauthiduniya.com/wp-cont.../2011/08/1.jpg |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://www.samaylive.com/pics/2012_1...15280851-l.jpg वर्ष 1991 में भारत सरकार के वित्त मंत्री ने ऐसा ही कुछ भ्रम फैलाया था कि निजीकरण और उदारीकरण से 2010 तक देश की आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी, बेरोज़गारी खत्म हो जाएगी, मूलभूत सुविधा संबंधी सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी और देश विकसित हो जाएगा. वित्त मंत्री साहब अब प्रधानमंत्री बन चुके हैं. 20 साल बाद सरकार की तरफ से भ्रम फैलाया जा रहा है, रिपोट्*र्स लिखवाई जा रही हैं, जनता को यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि आधार कार्ड बनते ही देश में सरकारी काम आसान हो जाएगा, सारी योजनाएं सफल होने लगेंगी, जो योजना ग़रीबों तक नहीं पहुंच पाती वह पहुंचने लगेगी और सही लोगों को बीज एवं खाद की सब्सिडी मिलने लगेगी. लेकिन अगर यह सब नहीं हुआ तो इसके लिए किसे ज़िम्मेदार माना जाएगा? :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://www.p7news.com/images/05-2013...AADHAR-377.jpg अब पता नहीं कि सरकार क्यों इस कार्ड को अलादीन का चिराग बता रही है. हमारी तहक़ीक़ात तो यही बताती है कि राशनकार्ड, कालेज या दफ्तर का पहचान पत्र, पासपोर्ट, पैनकार्ड और निहायत ही घटिया मतदाता पहचान पत्र की तरह हमारे पास एक और कार्ड आ जाएगा. जिसकी नकल भी मिलेगी, फर्ज़ीवाड़ा भी होगा, कार्ड बनाने वाले दलालों के दफ्तर भी खुल जाएंगे और कुछ दिनों बाद सरकार कहेगी कि कार्ड की योजना में कुछ कमी रह गई. क्या भारत सरकार संसद और सुप्रीम कोर्ट में यह हल़फनामा देगी कि इस कार्ड के बनने से ग़रीबों तक सभी योजनाएं पहुंच जाएंगी, भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा? दरअसल, इस कार्ड की संरचना, योजना और कार्यान्वयन की कामयाबी भारत में संभव ही नहीं है. आधार कार्ड से कुछ ऐसे सवाल खड़े हुए हैं, जिनका जवाब देना सरकार की ज़िम्मेदारी है :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://i3.dainikbhaskar.com/thumbnai...0_18937310.jpg इस सरकारी अलादीन के चिराग से जुड़ा पहला सवाल यह है कि दुनिया के किसी भी देश में क्या इस तरह के पहचान पत्र का प्रावधान है? क्या अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी एवं फ्रांस की सरकार ने इस कार्ड को अपने यहां लागू किया? अगर दुनिया के किसी देश ने यह नहीं किया तो क्या हमने इस बायोमेट्रिक पहचान पद्धति के क्षेत्र में रिसर्च किया या कोई प्रयोग किया या फिर हमारे वैज्ञानिकों ने कोई ऐसा आविष्कार कर दिया, जिससे इस पहचान पत्र को अनोखा बताया जा रहा है. सभी सवालों का जवाब नहीं में है. हकीकत तो यह है कि हमने सीधे तौर पर पूरी योजना को निजी कंपनियों पर आश्रित कर दिया. ऐसी कंपनियों पर, जिनका सीधा वास्ता विदेशी सरकारों और खु़फिया एजेंसियों से है :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://images.jagran.com/inext/ad_p_250913.jpg भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने इसके लिए तीन कंपनियों को चुना-एसेंचर, महिंद्रा सत्यम-मोर्फो और एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन. इन तीनों कंपनियों पर ही इस कार्ड से जुड़ी सारी ज़िम्मेदारियां हैं. इन तीनों कंपनियों पर ग़ौर करते हैं तो डर सा लगता है. एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन का उदाहरण लेते हैं. इस कंपनी के टॉप मैनेजमेंट में ऐसे लोग हैं, जिनका अमेरिकी खु़फिया एजेंसी सीआईए और दूसरे सैन्य संगठनों से रिश्ता रहा है. एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन अमेरिका की सबसे बड़ी डिफेंस कंपनियों में से है, जो 25 देशों में फेस डिटेक्शन और इलेक्ट्रानिक पासपोर्ट आदि जैसी चीजों को बेचती है. अमेरिका के होमलैंड सिक्यूरिटी डिपार्टमेंट और यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के सारे काम इसी कंपनी के पास हैं. यह पासपोर्ट से लेकर ड्राइविंग लाइसेंस तक बनाकर देती है :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://aankhodekhi.com/wp-content/up...dhaar-card.jpg इस कंपनी के डायरेक्टरों के बारे में जानना ज़रूरी है. इसके सीईओ ने 2006 में कहा था कि उन्होंने सीआईए के जॉर्ज टेनेट को कंपनी बोर्ड में शामिल किया है. जॉर्ज टेनेट सीआईए के डायरेक्टर रह चुके हैं और उन्होंने ही इराक़ के खिला़फ झूठे सबूत इकट्ठा किए थे कि उसके पास महाविनाश के हथियार हैं. अब कंपनी की वेबसाइट पर उनका नाम नहीं है, लेकिन जिनका नाम है, उनमें से किसी का रिश्ता अमेरिका के आर्मी टेक्नोलॉजी साइंस बोर्ड, आर्म्ड फोर्स कम्युनिकेशन एंड इलेक्ट्रानिक एसोसिएशन, आर्मी नेशनल साइंस सेंटर एडवाइजरी बोर्ड और ट्रांसपोर्ट सिक्यूरिटी जैसे संगठनों से रहा है. अब सवाल यह है कि सरकार इस तरह की कंपनियों को भारत के लोगों की सारी जानकारियां देकर क्या करना चाहती है? एक तो ये कंपनियां पैसा कमाएंगी, साथ ही पूरे तंत्र पर इनका क़ब्ज़ा भी होगा. इस कार्ड के बनने के बाद समस्त भारतवासियों की जानकारियों का क्या-क्या दुरुपयोग हो सकता है, यह सोचकर ही किसी का भी दिमाग़ हिल जाएगा. समझने वाली बात यह है कि ये कंपनियां न स़िर्फ कार्ड बनाएंगी, बल्कि इस कार्ड को पढ़ने वाली मशीन भी बनाएंगी. सारा डाटाबेस इन कंपनियों के पास होगा, जिसका यह मनचाहा इस्तेमाल कर सकेंगी. यह एक खतरनाक स्थिति है :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://aankhodekhi.com/wp-content/up...dhaar-card.jpg इस कंपनी के डायरेक्टरों के बारे में जानना ज़रूरी है. इसके सीईओ ने 2006 में कहा था कि उन्होंने सीआईए के जॉर्ज टेनेट को कंपनी बोर्ड में शामिल किया है. जॉर्ज टेनेट सीआईए के डायरेक्टर रह चुके हैं और उन्होंने ही इराक़ के खिला़फ झूठे सबूत इकट्ठा किए थे कि उसके पास महाविनाश के हथियार हैं. अब कंपनी की वेबसाइट पर उनका नाम नहीं है, लेकिन जिनका नाम है, उनमें से किसी का रिश्ता अमेरिका के आर्मी टेक्नोलॉजी साइंस बोर्ड, आर्म्ड फोर्स कम्युनिकेशन एंड इलेक्ट्रानिक एसोसिएशन, आर्मी नेशनल साइंस सेंटर एडवाइजरी बोर्ड और ट्रांसपोर्ट सिक्यूरिटी जैसे संगठनों से रहा है | अब सवाल यह है कि सरकार इस तरह की कंपनियों को भारत के लोगों की सारी जानकारियां देकर क्या करना चाहती है? एक तो ये कंपनियां पैसा कमाएंगी, साथ ही पूरे तंत्र पर इनका क़ब्ज़ा भी होगा. इस कार्ड के बनने के बाद समस्त भारतवासियों की जानकारियों का क्या-क्या दुरुपयोग हो सकता है, यह सोचकर ही किसी का भी दिमाग़ हिल जाएगा. समझने वाली बात यह है कि ये कंपनियां न स़िर्फ कार्ड बनाएंगी, बल्कि इस कार्ड को पढ़ने वाली मशीन भी बनाएंगी. सारा डाटाबेस इन कंपनियों के पास होगा, जिसका यह मनचाहा इस्तेमाल कर सकेंगी. यह एक खतरनाक स्थिति है :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://media2.intoday.in/aajtak/imag...1513095330.jpg यही वजह है कि कई लोग इस कार्ड की प्राइवेसी और सुरक्षा आदि पर सवाल उठा चुके हैं. बताया तो यह जा रहा है कि इस कार्ड को बनाने में उच्चस्तरीय बायोमेट्रिक और इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होगा. इससे नागरिकों की प्राइवेसी का हनन होगा, इसलिए दुनिया के कई विकसित देशों में इस कार्ड का विरोध हो रहा है. जर्मनी और हंगरी में ऐसे कार्ड नहीं बनाए जाएंगे. अमेरिका ने भी अपने क़दम पीछे कर लिए हैं. हिंदुस्तान जैसे देश के लिए यह न स़िर्फ महंगा है, बल्कि सुरक्षा का भी सवाल खड़ा करता है. अमेरिका में यह योजना सुरक्षा को लेकर शुरू की गई. हमारे देश में भी यही दलील दी गई, लेकिन विरोध के डर से यह बताया गया कि इससे सामाजिक क्षेत्र में चल रही योजनाओं को लागू करने में सहूलियत होगी. देश में जिस तरह का सड़ा-गला सरकारी तंत्र है, उसमें इस कार्ड से कई और समस्याएं सामने आ जाएंगी. सरकारी योजनाएं राज्यों और केंद्र सरकार के बीच बंटी हैं, ऐसे में केंद्र सरकार को सबसे पहले राज्य सरकारों की राय लेनी चाहिए थी :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://hindi.pardaphash.com/uploads/.../660/95326.jpg यह कार्ड राशनकार्ड की तरह तो है नहीं कि कोई भी इसे पढ़ ले. इसके लिए तो हाईटेक मशीन की ज़रूरत पड़ेगी. जिला, तहसील और पंचायत स्तर तक ऐसी मशीनें उपलब्ध करनी होंगी, जिन्हें चलाने के लिए विशेषज्ञ लोगों की ज़रूरत पड़ेगी. अब दूसरा सवाल यह है कि देश के ज़्यादातर इलाक़ों में बिजली की कमी है. हर जगह लोड शेडिंग की समस्या है. बिहार में तो कुछ जगहों को छोड़कर दो-तीन घंटे ही बिजली रहती है. क्या सरकार ने मशीनों, मैन पावर और बिजली का इंतजाम कर लिया है? अगर नहीं तो यह योजना शुरू होने से पहले ही असफल हो जाएगी. अब तो वे संगठन भी हाथ खड़े कर रहे हैं, जो इस कार्ड को बनाने के कार्य में लगे हैं. इंडो ग्लोबल सोशल सर्विस सोसायटी ने कई गड़बड़ियों और सुरक्षा का सवाल उठा दिया है. इस योजना के तहत ऐसे लोग भी पहचान पत्र हासिल कर सकते हैं, जिनका इतिहास दाग़दार रहा है. एक अंग्रेजी अ़खबार ने विकीलीक्स के हवाले से अमेरिका के एक केबल के बारे में ज़िक्र करते हुए यह लिखा कि लश्कर-ए-तैय्यबा जैसे संगठन के आतंकवादी इस योजना का दुरुपयोग कर सकते हैं :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://readerblogs.navbharattimes.in...8854d02e8c.jpg यूआईडीएआई ने न स़िर्फ प्राइवेसी को ही नज़रअंदाज़ किया है, बल्कि उसने अपने पायलट प्रोजेक्ट के रिजल्ट को भी नज़रअंदाज़ कर दिया है. इतनी बड़ी आबादी के लिए इस तरह का कार्ड बनाना एक सपने जैसा है. अब जबकि दुनिया के किसी भी देश में बायोमेट्रिक्स का ऐसा इस्तेमाल नहीं हुआ है तो इसका मतलब यह है कि हमारे देश में जो भी होगा, वह प्रयोग ही होगा. यूआईडीएआई के पायलट प्रोजेक्ट के बारे में एक रिपोर्ट आई है, जो बताती है कि सरकार इतनी हड़बड़ी में है कि उसने पायलट प्रोजेक्ट के सारे मापदंडों को दरकिनार कर दिया. मार्च और जून 2010 के बीच 20 हज़ार लोगों के डाटा पर काम हुआ. अथॉरिटी ने बताया कि फाल्स पोजिटिव आईडेंटिफिकेशन रेट 0.0025 फीसदी है. फाल्स पोजिटिव आईडेंटिफिकेशन रेट का मतलब यह है कि इसकी कितनी संभावना है कि यह मशीन एक व्यक्ति की पहचान किसी दूसरे व्यक्ति से करे. मतलब यह कि सही पहचान न बता सके :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://readerblogs.navbharattimes.in...437b77f_ls.jpg अथॉरिटी के डाटा के मुताबिक़ तो हर भारतीय नागरिक पर 15,000 फाल्स पोज़िटिव निकलेंगे. समस्या यह है कि इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए बायोमेट्रिक पहचान की किसी ने कोशिश नहीं की. कोरिया के सियोल शहर में टैक्सी ड्राइवरों के लिए ऐसा ही लाइसेंस कार्ड बना, जिसे टोल टैक्स एवं पार्किंग वगैरह में प्रयोग किया गया. एक साल के अंदर ही पता चला कि 5 से 13 फीसदी ड्राइवर इस कार्ड का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं. नतीजा यह निकला कि ऐसा सिस्टम लागू करने के कुछ समय बाद हर व्यक्ति को इस परेशानी से गुज़रना पड़ता है और एक ही व्यक्ति को बार-बार कार्ड बनवाने की ज़रूरत पड़ती है. सच्चाई यह है कि इस तरह के कार्ड के लिए हमारे पास न तो फुलप्रूव टेक्नोलॉजी है और न अनुकूल स्थितियां. 24 घंटे बिजली उपलब्ध नहीं है और न इंटरनेट की व्यवस्था है पूरे देश में. ऐसे में अगर इस कार्ड को पढ़ने वाली मशीनों में गड़बड़ियां आएंगी तो वे कैसे व़क्त पर ठीक होंगी :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://www.worldnow.in/wp-content/up...rd-Yatish1.jpg यह बिल्कुल वैसी ही हालत है कि आप एटीएम जाते हैं और वह कार्ड रिजेक्ट कर देता है, सर्वर डाउन हो या फिर कोई तकनीकी समस्या. सरकार इसे छोटी-मोटी दिक्कत कह सकती है, लेकिन आम आदमी के लिए यह जीवन-मरण का सवाल हो जाता है. इसके अलावा यह सिस्टम लागू होने के बाद छोटा सा भी बदलाव बहुत ज्यादा महंगा होगा. इन सब परिस्थितियों को देखकर तो यही लगता है कि सरकार यह योजना लागू करेगी, कुछ दिन चलाएगी और जब समस्या आने लगेगी, तब इसे बंद कर देगी. ऐसा ही इंग्लैंड में हुआ. वहां इसी तरह की योजना पर क़रीब 250 मिलियन पाउंड खर्च किए गए. आठ साल तक इस पर काम चलता रहा. हाल में ही इसे बंद कर दिया गया. इंग्लैंड की सरकार को जल्द ही इसकी कमियां समझ में आ गईं और उसके 800 मिलियन पाउंड बच गए :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://images.jagran.com/images/20_0...0utkp1-c-2.jpg नंदन नीलेकणी को मनमोहन सिंह ने यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया का चेयरमैन बना दिया. क्यों बनाया, क्या नंदन नीलेकणी किसी उच्च सरकारी पद पर विराजमान थे? नंदन नीलेकणी निजी क्षेत्र के बड़े नाम हैं. क्या सरकार को यह पता नहीं है कि सरकारी कामकाज और निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की मानसिकता और अंदाज़ में अंतर होता है, क्या संसद में इस बारे में चर्चा हुई, यह किसके द्वारा और कैसे तय हुआ कि चेयरमैन बनने के लिए क्या योग्यताएं होनी चाहिए तथा नंदन नीलेकणी को ही मनमोहन सिंह ने क्यों चुना? ऐसे कई सवाल हैं, जिनका जवाब प्रधानमंत्री ने न तो संसद में दिया और न जनता को. अ़फसोस तो इस बात का है कि विपक्ष ने भी इस मुद्दे को नहीं उठाया. क्या हम अमेरिकी सिस्टम को अपनाने लगे हैं? ऐसा तो अमेरिका में होता है कि सरकार के मुख्य पदों के लिए लोगों का चयन राष्ट्रपति अपने मन से करता है. अब तो यह पता लगाना होगा कि हिंदुस्तान में अमेरिकी सिस्टम कब से लागू हो गया. नंदन नीलेकणी ने अपनी ज़िम्मेदारियों से पहले ही हाथ खींच लिए हैं. वह स़िर्फ यूनिक नंबर जारी करने के लिए ज़िम्मेदार हैं, बाकी सारा काम देश के उन अधिकारियों पर छोड़ दिया गया है, जो अब तक राशनकार्ड बनाते आए हैं :......... स्रोत :......... |
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nice ibfo
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धन्यवाद दीपू जी................ |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://navbharattimes.indiatimes.com...adhar-card.jpg वैसे सच्चाई क्या है, इसके बारे में आधार के चीफ नंदन नीलेकणी ने खुद ही बता दिया. जब वह नेल्सन कंपनी के कंज्यूमर 360 के कार्यक्रम में भाषण दे रहे थे तो उन्होंने बताया कि भारत के एक तिहाई कंज्यूमर बैंकिंग और सामाजिक सेवा की पहुंच से बाहर हैं. ये लोग ग़रीब हैं, इसलिए खुद बाज़ार तक नहीं पहुंच सकते. पहचान नंबर मिलते ही मोबाइल फोन के ज़रिए इन तक पहुंचा जा सकता है. इसी कार्यक्रम के दौरान नेल्सन कंपनी के अध्यक्ष ने कहा कि यूआईडी सिस्टम से कंपनियों को फायदा पहुंचेगा. बड़ी अजीब बात है, प्रधानमंत्री और सरकार की ओर से यह दलील दी जा रही है कि यूआईडी से पीडीएस सिस्टम दुरुस्त होगा, ग़रीबों को फायदा पहुंचेगा, लेकिन नंदन नीलेकणी ने तो असलियत बता दी कि देश का इतना पैसा उद्योगपतियों और बड़ी-बड़ी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए खर्च किया जा रहा है. बाज़ार को वैसे ही मुक्त कर दिया गया है :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://www.bhaskarhindi.com/media_li...0805_large.jpg विदेशी कंपनियां भारत आ रही हैं, वह भी खुदरा बाज़ार में. तो क्या यह कोई साज़िश है, जिसमें सरकार के पैसे से विदेशी कंपनियों को ग़रीब उपभोक्ताओं तक पहुंचने का रास्ता दिखाया जा रहा है. बैंक, इंश्योरेंस कंपनियां और निजी कंपनियां यूआईडीएआई के डाटाबेस के ज़रिए वहां पहुंच जाएंगी, जहां पहुंचने के लिए उन्हें अरबों रुपये खर्च करने पड़ते. खबर यह भी है कि कुछ ऑनलाइन सर्विस प्रोवाइडर इस योजना के साथ जुड़ना चाहते हैं. अगर ऐसा होता है तो देश का हर नागरिक निजी कंपनियों के मार्केटिंग कैंपेन का हिस्सा बन जाएगा. यह देश की जनता के साथ किसी धोखे से कम नहीं है. अगर देशी और विदेशी कंपनियां यहां के बाज़ार तक पहुंचना चाहती हैं तो उन्हें इसका खर्च खुद वहन करना चाहिए. देश की जनता के पैसों से निजी कंपनियों के लिए रास्ता बनाने का औचित्य क्या है, सरकार क्यों पूरे देश को एक दुकान में तब्दील करने पर आमादा है? :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://asset.starnews.in/347e5aa2f8f...b6754_full.jpg क़रीब एक सौ साल पहले मोहनदास करमचंद गांधी ने अपना पहला सत्याग्रह दक्षिण अफ्रीका में किया. सरकार को शायद याद नहीं है कि गांधी ने यह क्यों किया. 22 अगस्त, 1906 को दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने एशियाटिक लॉ एमेंडमेंट आर्डिनेंस लागू किया. इस क़ानून के तहत ट्रांसवल इलाक़े के सारे भारतीयों को अपनी पहचान साबित करने के लिए रजिस्ट्रार ऑफिस में जाकर अपने फिंगर प्रिंट्स देने थे, जिससे हर भारतीय का परिचय पत्र बनना था. इस परिचय पत्र को हमेशा साथ रखने की हिदायत दी गई. न रखने पर सज़ा भी तय कर दी गई. 19वीं शताब्दी तक दुनिया भर की पुलिस चोरों और अपराधियों की पहचान के लिए फिंगर प्रिंट लेती थी. गांधी को लगा कि ऐसा क़ानून बनाकर सरकार ने सारे भारतीयों को अपराधियों की श्रेणी में डाल दिया है :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://doitc.rajasthan.gov.in/admini...s/211/full.png गांधी ने इसे काला क़ानून बताया. जोहान्सबर्ग में तीन हज़ार भारतीयों को साथ लेकर उन्होंने मार्च किया और शपथ ली कि कोई भी भारतीय इस क़ानून को नहीं मानेगा और अपने फिंगर प्रिंट नहीं देगा. यही महात्मा गांधी के पहले सत्याग्रह की कहानी है. अगर आज गांधी होते तो यूआईडी पर सत्याग्रह ज़रूर करते. झूठे वायदे करके, सुनहरे भविष्य का सपना दिखाकर सरकार देश की जनता को बेवक़ू़फ नहीं बना सकती. जनता का विश्वास उठता जा रहा है. सरकार जो वायदे कर रही है, उसके लिए वह ज़िम्मेदारी भी साथ में तय करे और विफल होने के बाद किन लोगों को सज़ा मिले, इसके लिए भी उसे आधिकारिक प्रस्ताव संसद में रखना चाहिए :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://static.ibnlive.in.com/pix/lab...card_asho2.jpg दिल्ली सल्तनत का एक राजा था सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक. मुहम्मद बिन तुग़लक वैसे तो विद्वान था, लेकिन उसने जितनी भी योजनाएं बनाईं, वे असफल रहीं. इतिहास में यह अकेला सुल्तान है, जिसे विद्वान-मूर्ख कहकर बुलाया जाता है. मुहम्मद बिन तुगलक के फैसलों से ही तुग़लकी फरमान का सिलसिला चला. तुग़लकी फरमान का मतलब होता है कि बेवक़ू़फी भरा या बिना सोच-विचार किए लिया गया फैसला. वह इसलिए बदनाम हुआ, क्योंकि उसने अपनी राजधानी कभी दिल्ली तो कभी दौलताबाद तो फिर वापस दिल्ली बनाई. इतिहास से न सीखने की हमने कसम खाई है, वरना नए किस्म का पहचान पत्र यानी यूआईडी या आधार कार्ड लागू नहीं होता. यह कार्ड खतरनाक है, क्योंकि देश के नागरिक निजी कंपनियों के चंगुल में फंस जाएंगे, असुरक्षित हो जाएंगे. सबसे खतरनाक बात यह है कि भले ही हमारी सरकार सोती रहे, लेकिन विदेशी एजेंसियों को हमारी पूरी जानकारी रहेगी. अ़फसोस इस बात का है कि सब कुछ जानते हुए भी भारत जैसे ग़रीब देश के लाखों करोड़ रुपये यूं ही पानी में बह जाएंगे. सरकार ने इतना बड़ा फैसला कर लिया और संसद में बहस तक नहीं हुई :......... स्रोत :......... |
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बहुत ही विचारणीय जानकारी !
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है - 2 ?......... http://www.chauthiduniya.com/wp-cont...52-360x216.jpg यूआईडी कार्ड की कहानी इस तरह शुरू होती है. देश में एक विशिष्ट पहचान पत्र के लिए विप्रो नामक कंपनी ने एक दस्तावेज तैयार किया. इसे प्लानिंग कमीशन के पास जमा किया गया. इस दस्तावेज का नाम है स्ट्रेटिजिक विजन ऑन द यूआईडीएआई प्रोजेक्ट. मतलब यह कि यूआईडी की सारी दलीलें, योजना और उसका दर्शन इस दस्तावेज में है. बताया जाता है कि यह दस्तावेज अब ग़ायब हो गया है. विप्रो ने यूआईडी की ज़रूरत को लेकर 15 पेजों का एक और दस्तावेज तैयार किया, जिसका शीर्षक है, डज इंडिया नीड ए यूनिक इडेंटिटी नंबर. इस दस्तावेज में यूआईडी की ज़रूरत को समझाने के लिए विप्रो ने ब्रिटेन का उदाहरण दिया. इस प्रोजेक्ट को इसी दलील पर हरी झंडी दी गई थी. हैरानी की बात यह है कि ब्रिटेन की सरकार ने अपनी योजना को बंद कर दिया. उसने यह दलील दी कि यह कार्ड खतरनाक है, इससे नागरिकों की प्राइवेसी का हनन होगा और आम जनता जासूसी की शिकार हो सकती है :......... स्रोत :......... |
Re: आधार कार्ड: यूआईडीः यह कार्ड खतरनाक है ?.........
आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है - 2 ?......... http://www.worldnow.in/wp-content/up...adhar-Card.jpg अब सवाल यह उठता है कि जब इस योजना की पृष्ठभूमि ही आधारहीन और दर्शनविहीन हो गई तो फिर सरकार की ऐसी क्या मजबूरी है कि वह इसे लागू करने के लिए सारे नियम-क़ानूनों और विरोधों को दरकिनार करने पर आमादा है. क्या इसकी वजह नंदन नीलेकणी हैं, जो यूआईडीएआई के चेयरमैन होने के साथ-साथ सरकार चलाने वाले महाशक्तिशाली राजनेताओं के क़रीबी हैं. क्या यह विदेशी ताक़तों और मल्टीनेशनल कंपनियों के इशारे पर किया जा रहा है. देश की जनता को इन तमाम सवालों के जवाब जानने का हक़ है, क्योंकि यह काम जनता के क़रीब 60 हज़ार करोड़ रुपये से किया जा रहा है, जिसे सरकार के ही अधिकारी अविश्वसनीय, अप्रमाणिक और दोहराव बता रहे हैं :......... स्रोत :......... |
Re: आधार कार्ड: यूआईडीः यह कार्ड खतरनाक है ?.........
इस लेख को पढ कर लगता है कि लोगों को हवाई यात्रा, रेल यात्रा और पैदल चलना भी छोड देना चाहिये..क्योकि उसमे भी जोखिम होता है और वो भी जान का..!!
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Re: आधार कार्ड: यूआईडीः यह कार्ड खतरनाक है ?.........
आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है - 2 ?......... http://newsnow.co.in/wp-content/uplo...-base-card.jpg आधार कार्ड यानी यूनिक आईडेंटिटी कार्ड का सपना चकनाचूर होता दिख रहा है. चारों तरफ से इस प्रोजेक्ट का विरोध हो रहा है. राज्य सरकारें, नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और विशेषज्ञ इस प्रोजेक्ट पर सवाल उठा रहे हैं. केंद्र सरकार स्वयं अंतर्विरोध का शिकार हो रही है. यही वजह है कि कभी गृह मंत्रालय तो कभी वित्त मंत्रालय यूआईडीएआई (यूनिक आईडेंटिटी कार्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया) की मांगों को ठुकरा देता है. खबर यह भी है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय ने अलग से कार्ड बनाने का फैसला लिया है. इतना ही नहीं, सरकार के विभिन्न विभागों में असहमति की वजह से सेंसस कमिश्नर यानी जनगणना आयुक्त यूआईडी की तरह अलग से एक नेशनल कार्ड जारी करेंगे. इस विरोधाभास को खत्म करने के लिए योजना आयोग भी माथापच्ची कर रहा है. जनगणना आयुक्त के मुताबिक, यूआईडी अथॉरिटी जो काम कर रही है, वह दोहराव है, यह काम उनके विभाग का है. नागरिकता क़ानून 1955 के मुताबिक़, जनसांख्यिकी संबंधी सूचनाओं को संग्रहीत करने का अधिकार स़िर्फ उनके विभाग को है :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है - 2 ?......... http://www.worldnow.in/wp-content/up.../e-aadhaar.jpg अगर यह काम यूआईडीएआई करती है तो यह क़ानून का उल्लंघन है. उनका मानना है कि यूआईडी के लिए संग्रहीत किया गया डाटा अविश्वसनीय है, क्योंकि यह प्रमाणिक नहीं है. पहचान पत्र को लेकर एक बिल संसद में है. मामला स्टैंडिंग कमेटी गया, जिसके चेयरमैन यशवंत सिन्हा हैं. इस कमेटी के एक सदस्य के मुताबिक़, स्टैंडिंग कमेटी के ज़्यादातर सदस्य यूआईडी की दलीलों से ना़खुश हैं. सरकार इस कार्ड को ज़बरदस्ती लोगों पर थोप रही है. गैस कनेक्शन से लेकर फोन का सिम लेने के लिए इस कार्ड को ज़रूरी बनाया जा रहा है, जबकि इस कार्ड की हैसियत नागरिकता प्रमाणपत्र की नहीं है. अब समझ में नहीं आता है कि जब पहले से ही देश की जनता के पास राशनकार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, पैनकार्ड और वोटिंग कार्ड मौजूद है तो फिर सरकार नागरिकों को अलग से दो-तीन कार्ड देने पर क्यों आमादा है. यूआईडी पहले से ही विवादों में घिरा है. जैसे-जैसे समय बीत रहा है, इसकी असलियत सामने आ रही है :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है - 2 ?......... http://usimages.punjabkesari.in/admi...APOOR-1-ll.jpg हमारे देश की सरकार अजीबोग़रीब है. इसे सपने दिखाने में महारथ हासिल है. यूनिक आईडेंटिटी कार्ड यानी यूआईडी को लेकर पता नहीं कितने हवाई किले बनाए गए. अ़खबारों में, टीवी पर, सेमिनारों में और कई विशिष्ट लोगों के ज़रिए यह समझाया गया था कि यह अब तक का सबसे सटीक पहचान पत्र बनेगा. इसमें कोई गड़बड़ी की गुंजाइश ही नहीं है. कार्ड बनने लगे हैं. अब तक कुल छह करोड़ यूआईडी कार्ड बन गए हैं. हैरानी की बात यह है कि इनमें से क़रीब एक करोड़ कार्ड बेकार हो गए हैं, उन पर पता ग़लत था. अधिकारी और मीडिया इसे देश की जनता की ही ग़लती बता रहे हैं. जिस देश में 48 फीसदी लोग अनपढ़ हैं, जो स्वयं अपना फॉर्म नहीं भर सकते तो ग़लतियां तो होंगी ही. इस योजना को बनाने वालों को यह पहले से पता होना चाहिए था कि देश की लगभग आधी आबादी अपने हस्ताक्षर नहीं कर सकती है. यही वजह है कि यूआईडीएआई को लगातार इस तरह की शिकायतें मिल रही हैं कि यूआईडी नंबर के लिए ग़लत पता लिखा है :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है - 2 ?......... http://media2.intoday.in/aajtak/imag...2413042801.jpg इस घटना से दूसरा सवाल उठता है. क्या कोई ग़लत पते भर कर यूआईडी बना सकता है. अगर बना सकता है तो भविष्य में भी ग़लत पते पर यूआईडी बनते रहेंगे. सवाल कार्ड बनाने वाले अधिकारियों और यूआईडीएआई के चेयरमैन नंदन नीलकेणी से पूछना चाहिए कि इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई और इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है. समस्या स़िर्फ यही नहीं है. दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में कुछ बुजुर्ग यूआईडी बनवाने पहुंचे. उन्होंने हाथों को जब मशीन पर रखा तो उसने उनके हाथों की रेखाओं को पढ़ने से इंकार कर दिया. पता चला कि 65 साल से ज़्यादा के बुजुर्गों के सूखे हाथों की रेखाओं को मशीन पढ़ ही नहीं सकती. नंदन नीलेकणी साहब इस कार्ड की टेक्नोलॉजी के बारे में कई बार व्याख्यान कर चुके हैं. यह कितनी सर्वोत्तम टेक्नोलॉजी द्वारा तैयार किया जा रहा है, अ़खबारों में इसके बारे में कसीदे हर दिन छपते हैं. हक़ीक़त यह है कि यूआईडी बनवाने की हसरत रखने वाले बुजुर्ग बड़ी संख्या में उदास होकर लौट रहे हैं :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://hindi.webdunia.com/articles/1...128073_1_1.jpg चौथी दुनिया ने पहले भी इस कार्ड को लेकर एक रिपोर्ट छापी थी, जिससे यह साबित हुआ कि किस तरह यूआईडीएआई ने देश की सुरक्षा के साथ समझौता किया. भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआर्ई) ने कार्ड बनाने के लिए तीन कंपनियों को चुना-एसेंचर, महिंद्रा सत्यम-मोर्फो और एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन. इन तीनों कंपनियों पर ही इस कार्ड से जुड़ी सारी ज़िम्मेदारियां हैं. इन तीनों कंपनियों पर ग़ौर करते हैं तो डर सा लगता है. एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन का उदाहरण लेते हैं. इस कंपनी के टॉप मैनेजमेंट में ऐसे लोग हैं, जिनका अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और दूसरे सैन्य संगठनों से रिश्ता रहा है. एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन अमेरिका की सबसे बड़ी डिफेंस कंपनियों में से है, जो 25 देशों में फेस डिटेक्शन और इलेक्ट्रानिक पासपोर्ट आदि जैसी चीजें बेचती है. अमेरिका के होमलैंड सिक्यूरिटी डिपार्टमेंट और यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के सारे काम इसी कंपनी के पास हैं. यह पासपोर्ट से लेकर ड्राइविंग लाइसेंस तक बनाकर देती है. इस कंपनी के डायरेक्टरों के बारे में जानना ज़रूरी है. इसके सीईओ ने 2006 में कहा था कि उन्होंने सीआईए के जॉर्ज टेनेट को कंपनी बोर्ड में शामिल किया है. जॉर्ज टेनेट सीआईए के डायरेक्टर रह चुके हैं और उन्होंने ही इराक़ के खिला़फ झूठे सबूत इकट्ठा किए थे कि उसके पास महाविनाश के हथियार हैं. :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://navbharattimes.indiatimes.com...adhar-card.jpg अब कंपनी की वेबसाइट पर उनका नाम नहीं है, लेकिन जिनका नाम है, उनमें से किसी का रिश्ता अमेरिका के आर्मी टेक्नोलॉजी साइंस बोर्ड, आर्म्ड फोर्स कम्युनिकेशन एंड इलेक्ट्रानिक एसोसिएशन, आर्मी नेशनल साइंस सेंटर एडवाइजरी बोर्ड और ट्रांसपोर्ट सिक्यूरिटी जैसे संगठनों से रहा है. इस सवाल का जवाब नंदन नीलेकणी और सरकार को देना चाहिए कि यूआईडी वर्ल्ड बैंक की ई-ट्रांसफॉर्म इनिशिएटिव (ईटीआई) का हिस्सा है. इस प्रोजेक्ट को 23 अप्रैल, 2010 को वाशिंगटन में शुरू किया गया. सरकार को यह बताना चाहिए कि इस प्रोजेक्ट का मक़सद क्या है, जिसे दुनिया के कई देशों में लागू किया जा रहा है. वर्ल्ड बैंक के इस प्रोजेक्ट में एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन, आईबीएम, इनटेल और माइक्रोसॉफ्ट की भी भागीदारी है. एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन की यह हक़ीक़त सरकार ने जनता से क्यों छुपाकर रखी कि इस कंपनी के बोर्ड में अमेरिकी खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारी रह चुके हैं. यूआईडी का विरोध सरकार के अंदर से हो रहा है. सरकार के नज़दीकी भी अब इस प्रोजेक्ट पर सवाल उठाने लगे हैं. कई सामाजिक कार्यकर्ता, रिटायर्ड न्यायाधीश, अधिकारी, बुद्धिजीवी एवं विशेषज्ञ इसका विरोध कर रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि इतना सब कुछ हो रहा है, लेकिन संसद में इसकी चर्चा तक नहीं हुई और न ही विपक्ष इस पर कोई दबाव दे रहा है :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://www.shrinews.com/uploads/adhar%20card.jpg यूआईडी कार्ड ना़जियों की याद दिलाता है : अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में यूएस होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूजियम है. यहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यहूदियों के नरसंहार से जुड़ी चीजें हैं. इस म्यूजियम में एक मशीन रखी है, जिसका नाम है होलेरिथ डी-11. इस मशीन को आईबीएम कंपनी ने द्वितीय विश्व युद्ध से पहले बनाया था. सवाल यह उठता है कि इस मशीन का होलोकॉस्ट म्यूजियम में क्या काम? यहूदियों के विनाश से इस मशीन का गहरा रिश्ता है. यह एक पहचान पत्र की छंटाई करने वाली मशीन है, जिसका इस्तेमाल हिटलर ने 1933 में जनगणना करने में किया था. यही वह मशीन है, जिसके ज़रिए हिटलर ने यहूदियों की पहचान की थी. अगर यह मशीन न होती तो नाज़ियों को यहूदियों के नामों और पतों की जानकारी न मिलती. नाज़ियों को यहूदियों की लिस्ट आईबीएम कंपनी ने दी थी. यह कंपनी जर्मनी में जनगणना करने के काम में थी, जिसने न स़िर्फ जातिगत जनगणना की, यहूदियों की गणना की, बल्कि उनकी पहचान भी कराई. आईबीएम और हिटलर के इस गठजोड़ ने इतिहास के सबसे खतरनाक जनसंहार को अंजाम दिया. यह योजना हिटलर, दूसरे विश्व युद्ध और उसके बाद के दौर की याद दिलाती है :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://usimages.punjabkesari.in/admi...APOOR-1-ll.jpg यूआईडी कार्ड ना़जियों की याद दिलाता है : सरकार ने खास तौर पर जर्मनी और आम तौर पर यूरोप के अनुभवों को नज़रअंदाज़ करके इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी है. जबकि यह बात दिन के उजाले की तरह सा़फ है कि निशानदेही के यही औजार बदले की भावना से किन्हीं खास धर्मों, जातियों, क्षेत्रों या आर्थिक रूप से असंतुष्ट तबकों के खिला़फ भी इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं. यह एक खतरनाक स्थिति है. शक इसलिए भी होता है, क्योंकि जिस तरह से अ़खबारों में खबरें छपवाई जा रही हैं, वह बिल्कुल प्रायोजित सा दिखता है. यह नहीं भूलना चाहिए कि इस यूनिक आईडेंटिटी कार्ड में हिटलर की जर्मनी जैसी स्थिति बनाने की क्षमता है. जो हाल यहूदियों का जर्मनी में हुआ, वैसी स्थिति भारत में पैदा हो सकती है, ऐसा खतरा हमेशा बना रहेगा. हम 1933 में नहीं, 2011 में जी रहे हैं. सरकार जिस तरह से इस कार्ड को लागू करना चाहती है, उससे तो किसी भी व्यक्ति का छुपना मुश्किल हो जाएगा. इस कार्ड के लागू होते ही फोन या एटीएम के इस्तेमाल मात्र से किसी का भी ठिकाना पता किया जा सकता है. क्या भारत की सरकार इस बात की गारंटी दे सकती है कि अगर कभी नाजी या उससे भी खतरनाक किस्म के लोग सत्ता में आ गए तो इस कार्ड का इस्तेमाल दंगा, हिंसा और हत्या के लिए नहीं किया जाएगा. इस बात की गारंटी कोई नहीं दे सकता है. क्या यूआईडी या नेशनल पापुलेशन रजिस्ट्रार वही कर रहे हैं, जो जर्मनी में किया गया. सवाल यह भी उठता है कि अगर देश के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता और विशेषज्ञ इस तरह के खतरनाक सवाल उठा रहे हैं तो उसका जवाब सरकार क्यों नहीं देती. इस कार्ड को लेकर संसद में बहस क्यों नहीं हुई. इस कार्ड को बनाने से पहले संसद को विश्वास में क्यों नहीं लिया गया. इस कार्ड को लेकर कई भ्रांतियां हैं, जिन पर खुली बहस की ज़रूरत है :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://static.ibnlive.in.com/pix/lab...card_asho2.jpg नंदन नीलेकणी सुपर मैन हैं : यूआईडी को लेकर जब भी कोई जिम्मेदार व्यक्ति मुंह खोलता है, अलग दलीलें दे जाता है. कभी ग़रीबों को रोज़गार, कभी मनरेगा, कभी सब्सिडी तो कभी स्कूल में बच्चों के एडमिशन, कभी-कभी पीडीएस सिस्टम और पता नहीं क्या-क्या. ऐसे भ्रम फैलाया जा रहा है, जैसे कि यह कोई अलादीन का चिराग है. नंदन नीलेकणी यूआईडीएआई के चेयरमैन हैं. वह भी अलग-अलग समय पर अलग-अलग बयान देते हैं, लेकिन उन्होंने यूआईडी की असलियत नेल्सन कंपनी के कंज्यूमर 360 के कार्यक्रम में बताई. उन्होंने कहा कि भारत के एक तिहाई कंज्यूमर बैंकिंग और सामाजिक सेवा की पहुंच से बाहर हैं. ये लोग ग़रीब हैं, इसलिए खुद बाज़ार तक नहीं पहुंच सकते. पहचान नंबर मिलते ही मोबाइल फोन के ज़रिए इन तक पहुंचा जा सकता है. यूआईडी सिस्टम से कंपनियों को फायदा पहुंचेगा. बाज़ार को वैसे ही मुक्त कर दिया गया है. विदेशी कंपनियां भारत आ रही हैं, वह भी खुदरा बाज़ार में. नंदन नीलेकणी ने तो असलियत बता दी कि देश का इतना पैसा उद्योगपतियों और बड़ी-बड़ी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए खर्च किया जा रहा है. भारत में नव उदारवाद के जनक मनमोहन सिंह का वरदहस्त कहें या फिर सरकार के शीर्ष राजनेताओं की नजदीकियां, नंदन नीलेकणी आज देश के सबसे जिम्मेदार व्यक्ति हैं. वह पांच सरकारी प्राधिकरणों और उपक्रमों के चेयरमैन हैं और 6 के सदस्य :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://majhimarathi.files.wordpress..../photo0058.jpg अध्यक्ष : टेक्नालॉजी एडवाइजरी ग्रुप ऑन यूनिक प्रोजेक्ट (टीएजीयूपी) यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) कमेटी ऑन इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन (ईटीसी) इंटर-मिनिस्ट्रियल टास्क फोर्स टू स्ट्रीम लाइन द सब्सिडी डिस्ट्रीब्यूशन मैकेनिज्म गवर्नमेंट ऑफ इंडिया आईटी टास्क फॉर पॉवर सेक्टर :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://biiztainment.com/img/news/LG-13664739921.jpg हम सुपर सोनिक युग में जी रहे हैं. इसका असर सरकार पर सबसे ज़्यादा दिखता है. बाज़ार, विज्ञान, तकनीक, ब्रांडिंग, कंपनियां, राजनीति, शेयर और विदेशी दौरे की ऊहापोह में सरकार इतनी उलझ सी गई है कि उसके पास दो पल शांति से बैठकर अपनी नीतियों पर विचार करने का समय नहीं रहा. अगर सरकार अपने ही द्वारा लिए गए फैसलों पर तसल्ली से पुनर्विचार करे तो वह स्वयं कई फैसलों को बदलने की ज़रूरत महसूस करेगी. यूआईडी एक ऐसी योजना है, जिस पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है. वह इसलिए, क्योंकि इस कार्ड का इस्तेमाल इतिहास के सबसे खतरनाक जनसंहार का ज़रिया बन सकता है, क्योंकि यह कार्ड सरकार में विरोधाभास पैदा कर रहा है, यह कार्ड बनाने वाली कंपनियों के तार विदेशी खुफिया एजेंसियों से हैं. इसे लागू करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. यूआईडीएआई के चेयरमैन नंदन नीलेकणी ने देश के साथ-साथ सरकार को भी गुमराह किया है. क्या भारत की सरकार इस बात की गारंटी दे सकती है कि अगर कभी नाजी या उससे भी खतरनाक किस्म के लोग सत्ता में आ गए तो इस कार्ड का इस्तेमाल दंगा, हिंसा और हत्या के लिए नहीं किया जाएगा. जो हाल यहूदियों का जर्मनी में हुआ, वैसी स्थिति भारत में पैदा हो सकती है, ऐसा खतरा हमेशा बना रहेगा :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://www.chauthiduniya.com/wp-cont...02/Page-11.jpg दिशाहीनता जब हद से गुजर जाए, तो उसे मूर्खता ही कहा जाता है. यूआईडी यानी आधार कार्ड के मामले में यूपीए सरकार ने दिशाहीनता की सारी सीमाएं अब लांघ दी हैं. आधार कार्ड पर हज़ारों करोड़ रुपये सरकार ने ख़र्च कर दिए. कांग्रेस पार्टी ने डायरेक्ट कैश ट्रांसफर का स्कीम इस कार्ड से जोड़ने का ऐलान कर दिया. कई झूठे वायदे कर लोगों को गुमराह करने में भी पीछे नहीं रही सरकार. देश के करोड़ों लोगों ने अपनी आखों की पुतली के अलावा और न जाने क्या-क्या जमा करा दिया और कैबिनेट मंत्रियों को यह भी पता नहीं है कि आधार स़िर्फ एक नंबर है या यह किसी कार्ड का नाम है. अब सवाल यह है कि वर्ष 2009 से यूआईडी कार्ड पर काम चल रहा है और अब इतने दिनों बाद देश के कई महान मंत्री यह कहें कि उन्हें यूआईडी या आधार के बारे में सही जानकारी नहीं है, तो ऐसी कैबिनेट को कौन सा ईनाम दिया जाए. ऐसी सरकार को क्या संज्ञा दी जाए. इसके अलावा यूआईडी को लेकर एक बिल संसद में लंबित है. अगर यह बिल पास हो गया, तो यूआईडीएआई को वैधता मिल जाएगी, लेकिन संसदीय समिति ने इस बिल को नकार दिया है. यह पता नहीं है कि यह बिल पास हो पाएगा या नहीं. यह भी पता नहीं है कि जब तक यह बिल पास हो, तब तक यूपीए की सरकार रहेगी या नहीं. कर्नाटक हाईकोर्ट के एक रिटायर्ड जज यूआईडी की कमियां और इसके ग़ैरक़ानूनी पहलू को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुके हैं. इस केस की सुनवाई स्वयं अल्तमस कबीर कर रहे हैं. चौथी दुनिया पिछले तीन साल से यूआईडी या आधार कार्ड के ख़तरों से अपने पाठकों को अवगत कराता रहा है. आज यह स्कीम इस मुकाम पर पहुंच गया है, जहां यूआईडी या आधार कार्ड के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लग गया है और दूसरी तरफ यूपीए सरकार है, जो क़ानूनों को ताक पर रखने की ज़िद पर अड़ी है :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://hindi.oneindia.in/img/2013/01...d-card-600.jpg पिछले दिनों हुए कैबिनेट मीटिंग में यह एक बहस का मुद्दा बन गया कि यह आधार कार्ड है या कोई नंबर. इस कैबिनेट मीटिंग में कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, समाज कल्याण मंत्री कुमारी शैलजा, हैवी इंडस्ट्री मंत्री प्रफुल्ल पटेल और रेलमंत्री पवन बंसल ने यूआईडी पर सवाल उठाए. हैरानी की बात यह है कि यूआईडी पर उठे सवालों को सुलझाने के लिए इस बैठक में एक ग्रुप ऑफ मिनिस्टर का गठन किया गया, जो आधार से जुड़े सवालों पर जबाव तैयार करेगी. अब सवाल यह है कि यह ग्रुप ऑफ मिनिस्टर क्या करेगी, क्योंकि देश में आधे लोगों का कार्ड बन गया है, कई लोग आधार कार्ड लेकर घूम रहे हैं. इतना ही नहीं, इसमें दूसरा कंफ्यूजन भी है. नेशनल पॉपुलेशन रजिस्ट्रार भी एक दूसरा कार्ड धड़ल्ले से बना रही है. यह एनपीआर कार्ड और आधार कार्ड में क्या फ़़र्क है, यह किसी को पता नहीं है और न ही कोई बता रहा है . इसके बावजूद सरकार लगातार यह अफ़वाह फैला रही है कि डायरेक्ट कैश ट्रांसफर स्कीम को आधार कार्ड से जोड़ा जाएगा. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब कैबिनेट मिनिस्टर तक को इस स्कीम के बारे में पता नहीं है, तो यह सरकार देश की जनता को क्या बता पाएगी. इस बीच योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया यूआईडी के बचाव में कूदे. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि आधार कोई कार्ड नहीं, बल्कि एक नंबर है, लेकिन यूआईडी के एक प्रचार को हम आपके सामने पेश कर रहे हैं, जिसमें साफ़- साफ़ यह लिखा है कि आधार एक कार्ड है. इस प्रचार में यह लिखा है कि मेरे पास आधार कार्ड है. इसके अलावा इसी प्रचार में हर व्यक्ति के हाथ में एक कार्ड है. हैरानी होती है कि देश चलाने वालों ने एक स्कीम को लेकर पूरे देश में तमाशा खड़ा कर दिया है और ख़ुद को हंसी का पात्र बना दिया :......... स्रोत :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://img.patrika.com/PatrikaImage/...-03-01-55N.jpg हालांकि सवाल यह है कि यूआईडी को लेकर, अब तक सरकार सारे कामकाज को क्यों गोपनीय रखा है. इस स्कीम में आख़िर ऐसी क्या बात है, जिसकी वजह से सरकार सारे नियम क़ानून को ताक पर रख दिया है. सरकार अजीबो-ग़रीब तरी़के से काम करती है. केंद्रीय सरकार ने यूआईडी/आधार नंबर को प्रॉविडेंट फंड के ऑपरेशन के लिए अनिवार्य बना दिया है, जबकि अब तक इसके लिए कोई क़ानूनी आदेश जारी नहीं किया गया है. मतलब यह कि इस कार्ड को प्रॉविडेंट फंड के लिए ग़ैरक़ानूनी तरी़के से अनिवार्य बना दिया गया है. हैरानी की बात यह है कि इसकी वेबसाइट पर आज भी यह लिखा हुआ है कि यह कार्ड स्वेच्छी है, यानी वॉलेनटरी है. इसका मतलब तो यही हुआ कि यूआईडी को लेकर सरकार कोई क़ानून नहीं बनाएगी, लेकिन अपने अलग- अलग विभागों में इसे अनिवार्य कर देगी. यहां ग़ौर करने वाली बात यह भी है कि यूआईडी तो सिर्फ देश के आधे हिस्से में लागू किया गया है और बाकी हिस्से में एनपीआर कार्ड बनेगा, तो फिर ऐसी स्थिति में आधार कार्ड को प्रॉविडेंट फंड जैसे स्कीम में अनिवार्य कैसे किया जा सकता है. और अगर सरकार इसे पीएफ में अनिवार्य करना चाहती है, तो जिन राज्यों में आधार कार्ड नहीं बनेगा, वहां किस कार्ड को वैध माना जाएगा. सरकार ने यूआईडी के नाम पर ऐसा चक्रव्यूह बना दिया है कि एक दिन ऐसा आएगा, जब देश के सारे मज़दूर यूआईडी कार्ड पर ही निर्भर हो जाएंगे. यूआईडी/आधार कार्ड के फार्म के कॉलम नंबर ९ में एक अजीबो-ग़रीब बात लिखी हुई है. इसे एक शपथ के रूप में लिखा गया है :......... चौथीदुनिया के सौजन्य से :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://www.worldnow.in/wp-content/up...adhar-Card.jpg कॉलम 9 में लिखा है कि यूडीआईएआई को उनके द्वारा दी गई सारी जानकारियों को किसी कल्याणकारी सेवा में लगी एजेंसियों को देने में उन्हें कोई ऐतराज़ नहीं है. इस कॉलम के आगे हां और ना के बॉक्स बने हैं. दरअसल, इस हां और ना का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि फॉर्म भरने वाले लोग हां पर टिक लगा देते हैं. बंगलुरु में यूआईडीएआई के डिप्टी चेयरमैन ने यह घोषणा की, यूडीआईएआई पुलिस जांच में लोगों की जानकारी मुहैया कराएगा. सवाल यह है कि क्या पुलिस एक कल्याणकारी सेवा करने वाली एजेंसी है. समस्या यह है कि इस फॉर्म पर कल्याणकारी सेवा में लगी एजेंसियों के नाम ही नहीं हैं. इसका मतलब यह है कि यूआईडीएआई जिसे भी कल्याणकारी सेवा में लगी एजेंसियां मान लेगी, उसके साथ लोगों की जानकारियां शेयर कर सकती हैं. यानी एक बार लोगों ने अपनी जानकारियां दे दी, तो उसके बाद उन जानकारियों के इस्तेमाल पर लोगों का कोई अधिकार नहीं रह जाएगा. दरअसल, इन जानकारियों को सरकार सेंट्रलाइज्ड आईडेंटिटी डाटा रजिस्टर (सीआईडीआर) और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्ट्रार के लिए जमा इसलिए कर रही है, ताकि पूरे देश के लोगों का एक डाटा बेस तैयार हो सके, लेकिन इसका एक ख़तरनाक पहलू भी है. इन जानकारियों को बायोमैट्रिक टेक्नोलॉजी कंपनियों को दे दिया जाएगा, क्योंकि यूआईडीएआई ने इन जानकारियों को ऑपरेट करने का ठेका निजी कंपनियों को दे दिया है. इन कंपनियों में सत्यम कम्प्यूटर सर्विसेज (सेगेम मोर्फो), एल 1 आईडेंटिटी सॉल्युशन, एसेंचर आदि हैं. जैसा कि चौथी दुनिया में पहले भी बताया जा चुका है कि इन कंपनियों के तार अमेरिका की ख़ुफिया एजेंसी के अधिकारियों से जुड़ी हुई है, इसलिए यह मामला और भी गंभीर हो जाता है :......... चौथीदुनिया के सौजन्य से :......... |
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