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rajnish manga 10-08-2020 04:49 PM

गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
 
गुरुदत्त की फिल्म प्यासा

वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण, जिन्हें हिंदी सिनेमा जगत गुरुदत्त के नाम से पुकारता है. उन्होंने सिनेमा को उस वक्त सार्थक पहचान दी, जब ज्यादातर फिल्म निर्देशक समाज के दुख और दुर्दशा को भुलकर मनोरंजन का तिलिस्म गढ़ने में व्यस्त थे.
भारतीय सिनेमा के इतिहास में जब भी कल्ट फिल्मों की बात होती है तो उसमें गुरुदत्त की फिल्मों का नाम सबसे उपर होता है. गुरुदत्त की फिल्में ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’ और ‘साहब, बीवी और गुलाम’ आज कई फिल्में संस्थानों के कोर्स में पढ़ाई जाती हैं. इतना ही नहीं विश्वप्रसिद्ध टाइम मैगज़ीन ने अपनी 100 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची में गुरुदत्त की फिल्म ‘प्यासा’ और ‘काग़ज़ के फूल’ को जगह देकर इसे प्रामाणिक भी किया है.
साल 1957 में रिलीज हुई गुरुदत्त की फिल्म ‘प्यासा’ में निभाए गए उनके किरदार ‘विजय’ को देखकर सभी हैरान रह गए थे. बेरोजगार शायर विजय सोसायटी और सिस्टम से निराश है, वह कहीं भी फिट नहीं पा रहा है. फिल्म में बोला गया विजय का एक संवाद इसकी तस्दीक कुछ ऐसे कर रहा है. ‘मुझे शिकायत है उस समाज के उस ढांचे से जो इंसान से उसकी इंसानियत छीन लेता है, मतलब के लिए अपने भाई को बेगाना बनाता है. दोस्त को दुश्मन बनाता है. बुतों को पूजा जाता है, जिन्दा इंसान को पैरों तले रौंदा जाता है. किसी के दुःख दर्द पर आंसू बहाना बुज़दिली समझी जाती है. छुप कर मिलना कमजोरी मानी जाती है.’ आज हम उसी फिल्म ‘प्यासा’ को आपके सामने लेखनी के जरिए रख रहे हैं.

rajnish manga 10-08-2020 04:51 PM

Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
 
फिल्म का नायक विजय एक बेरोजगार शायर है. वह वही लिखता है, जो जीती जागती दुनिया में देखता है. लेकिन इस दुनिया के लिए विजय एक निहायत ही नाकार शख्स है. पब्लिशर्स विजय की शायरी को रद्दी का पुलिंदा समझते हैं. विजय अपने ही मुहल्*ले में दबे पांव गुजर रहा है. तभी विजय के कानों में एक महिला की आवाज़ पड़ती है. ‘भईया जी, भाजी तौल रहे हो या सोना?’ यह सुनने के बाद विजय ठहर सा जाता है. उसके पांव आगे नहीं बढ़ रहे हैं. यह आवाज़ उसकी मां (लीला मिश्रा) की है, जो उससे बहुत प्*यार करती है, पर मजबूरी में विजय के बड़े भाईयों के साथ रह रही है. मां बाजार में एक ठेलेवाले से सब्*ज़ी ख़रीद रही है. विजय को उसका भतीजा देख लेता है. वह विजय की मां से कहता है, ‘दादी, चाचा!’. भाईयों की वजह से विजय कई दिनों से अपने घर नहीं गया है. विजय की उजड़ी हालत को देखकर मां रोने लगती है. वह विजय को ज़बरदस्*ती घर ले जाती है. कहती है ‘मैंने तेरे लिए कुछ पकवान बचा कर रखे हैं.’

rajnish manga 10-08-2020 04:51 PM

Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
 
विजय घर को चौके में जाता है, जहां मां उसे चोरी से खाना निकाल कर देती है. तभी रसोई में विजय का मंझला भाई (महमूद) प्रवेश करता है और विजय को ताना मारता है. ‘क्यों मां, आ गया तुम्*हारा कालीदास!’ मझंला भाई आगे कहता है, ‘पराई खेती समझ कर सब गधे चरने लगे!’. अभी यह हो ही रहा था कि बड़ा भाई खाना खाते हुए विजय पर ताने कसता है, ‘मैं तो खाने वाले की बेशर्मी की दाद देता हूं.’ मां दोनों बेटों को डांटती है. बड़ा बेटा विजय की ओर देखते हुए कहता है, ‘हाथ पैर वाला है! कुछ कमा धमा कर खाए. हमारे टुकड़ों पर क्यों पड़ा है?’. इतना सुनकर मां झल्लाती हुई कहती है, ‘बेशर्मों, तुम्*हारा सगा भाई है वह! बाप के मरने के बाद तुम लोग उसके बाप की जगह हो!’. इस पर मझला भाई कहता है, ‘मां-बाप से हमने तो नहीं कहा था कि ऐसी निखट्टू औलाद पैदा करे.!’

rajnish manga 10-08-2020 04:52 PM

Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
 
इतना सुनकर विजय थाली छोड़कर उठ जाता है और वहीं चौके से भाई की पत्नी को आवाज़ देकर पूछता है, ‘भाभी, मेरी
नज़्मों की फ़ाइल कहां है?’. जवाब मंझला भाई देता है, ‘औरतों को क्*या दीदे दिखाते हो? मुझसे बात करो, मुझसे! मैंंने वो रद्दी वाले बनिए को बेच दीं!”. गुस्से में विजय बोलता है, ‘आप जैसा ज़ाहिल ही उन्हें रद्दी समझेगा!’.
विजय के भाईयों की नज़र में वो शायरी कबाड़ी को बेचने के लायक थी. विजय कबाड़ी के पास गया. कबाड़ी वाले ने विजय को बताया कि एक औरत उसके नज्मों की फाइल ले गई. निराश विजय पार्क में पेड़ के नीचे बेंच पर उदास बैठा था. तभी विजय को एक औरत गुनगुनाते हुए सुनाई दी, ‘फिर न कीजे मेरी गुस्*ताख़-निगाही का गिला… देखिए आपने फिर प्*यार से देखा मुझको!’.
विजय एकदम से चौंक उठा, यह तो उसी की नज़्म है. आखिर इस औरत के पास कहां से आई. विजय ने गाने वाली औरत की ओर देखा और उसके पास आया. विजय ने कहा, ‘सुनिए…’ इतना सुनते ही गाने वाली औरत उठकर चल दी और एक कातिल अदा से विजय की ओर देखने लगी. यह गुलाबो (वहीदा रहमान) थी.

rajnish manga 10-08-2020 04:53 PM

Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
 
विजय ने कुछ घबराते हुए कहा, ‘मैंने कहा…’ गुलाबो मुस्कुराने लगी और गाते हुए वहां से चल दी. ‘जाने क्या तू ने कही..

जाने क्या मैंने सुनी… बात कुछ बन ही गई… सनसनाहट सी हुई… सरसराहट सी हुई… जाग उठे ख्*़वाब कई… बात कुछ बन ही गई…’ धीरे-धीरे गीत खत्म होता है और विजय गुलाबो के पीछे-पीछे तंग गलियों में पहुंच गया. गुलाबो एक टूटे हुए पुराने मकान की सीढ़ियों पर चढ़ने लगी.
विजय ने फिर कहा, ‘सुनिए!’. गुलाबो ने बलखाते हुए कहा, ‘सुनाइए! क्*या चाहिए आपको’. विजय ने कहा, ‘वो फ़ाइल, जिसमें आपको गीत मिला.’ गुलाबो ने कहा, ‘बस! और कुछ नहीं?’. विजय ने गुलाबो के इशारे को समझते हुए कहा, ‘देखिए, मुझे ऐसा बेतुका मज़ाक़ पसंद नहीं.’ गुलाबो ने कहा, ‘मैं पसंद हूं!’. विजय ने एक झटके में कहा, ‘जी, नहीं!’

rajnish manga 10-08-2020 04:56 PM

Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
 
विजय के जवाब से गुलाबो भड़क उठी और ग़ुस्*से से बोली, ‘तो मेरे पीछे क्यों आए?’ विजय ने कहा, ‘वो गीतों वाली फाइल आपके पास है या नहीं. मेरे पास जब पैसे…’. इतना सुनते ही गुलाबो ने गुस्से से कहा, ‘तू ख़ाली हाथ आया मेरी पीछे! इस गोदी को ख़ाला जी का घर समझा है क्*या? चल… निकल यहां से!’.
घर में उपर आकर गुलाबो सोच रही है कि आज की शाम तो बेकार हो गई थी. कितनी मुश्किल से ग्राहक पटा था. वह भी भिखारी निकला. कमरे में गुलाबो की नजर नज़्मों की फ़ाइल पर गई, अचानक ही उसे लगा कि कहीं पीछा करना वाला वह शख्स ही तो उन नज्मों को लिखने वाला शायर नहीं था. गुलाबो तुरंत भागी भागी बाहर आई, पर विजय उसकी दहलीज से जा चुका था.

rajnish manga 10-08-2020 04:57 PM

Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
 
एक दिन विजय पार्क में बैठा है, तभी उसके साथ पढ़ी पुष्*पलता (टुनटुन) से उसकी मुलाकात होती है. पुष्*पलता विजय से कहती है, ‘आज शाम कॉलेज में जलसा है, साथ के पढ़े लोग आएंगे, तुम भी ज़रूर आना’. शाम को विजय कॉलेज के जलसे में पहुंचता है. वहां विजय अपनी कॉलेज के दिनों की प्रेमिका मीना (माला सिन्हा) से टकराता है. लोग विजय से शायरी सुनाने को कहते हैं. विजय कविता शुरू करता है. ‘तंग आ चुके हैं कश्मकश-ए-ज़िंदगी से हम… ठुकरा न दें जहां को कहीं बेदिली से हम’.
तभी दर्शकों में शामिल एक आदमी चीख़ता है, ‘ख़ुशी के मौक़े पे क्*या बेदिली का राग छेड़ा हुआ है… कोई ख़ुशी का गीत सुनाइए!’. एक पल को ठहरा हुआ विजय गाता है, ‘हम ग़मज़दा हैं… लाएं कहां से ख़ुशी के गीत… देंगे वही जो पाएंगे इस ज़िंदगी से हम… उभरेंगे एक बार अभी दिल के वलवले… माना कि दब गए हैं ग़म-ए-ज़िंदगी से हम… लो, आज हमने तोड़ दिया रिश्*ता-ए-उम्*मीद… लो, अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम…’.

rajnish manga 10-08-2020 04:58 PM

Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
 
विजय अपनी शायरी पढ़ रहा है और उसकी पूर्व प्रेमिका मीना के चेहरे पर उसे खो देने का अफसोस साफ दिखाई पड़ रहा है. मीना ने बेरोजगार विजय को छोड़कर एक पैसे वाले रईस पब्लिशर मिस्टर घोष (रहमान) से शादी कर ली थी. कॉलेज के जलसे में मीना के शक़्क़ी पति मिस्टर घोष सब कुछ समझ जाते हैं. मिस्टर घोष ने बदले की भावना से विजय को अपने यहां नौकरी का ऑफर देते हैं. विजय मिस्टर घोष ऑफर स्वीकार कर लेता है.
जलन और बदले की भावना से विजय को नीचा दिखाने के लिए मिस्टर घोष एक शाम अपने घर पर पार्टी रखते हैं. पार्टी में शेर-ओ-शायरी की महफ़िल जमी. शराब का दौर शुरू हुआ और मेहमानों को शराब परोसने की जिम्मेदारी विजय को दी गई. महफिल में लोग अपने-अपने कलाम सुना रहे थे, उन बेकार नज्मों को सुनकर विजय खुद को रोक न सका और खड़े-खड़े गुनगुनाने लगा. ‘जाने वो कैसे लोग थे, जिनके प्*यार को प्*यार मिला’. मेहमान शायरों ने मिस्*टर घोष से कहा, ‘भाई… बहुत खुब वाह!… बहुत सुख़ननवाज़ है घर आपका… नौकर-चाकर भी शायरी करते हैं!’. एक शायर ने विजय की ओर मुड़ कर कहा, ‘तुम कुछ कह रहे थे, बर्ख़ुरदार? चुप क्यों हो गए? कहो! कहो!.

rajnish manga 10-08-2020 04:59 PM

Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
 
विजय किताबों की शेल्फ के सहारे एक कोने में खड़े होकर दोनों हाथ किताबों की शेल्फ पर टिका कर गाना शुरू किया. ‘जाने वो कैसे लोग थे, जिनके प्*यार को प्*यार मिला… हमने तो जब कलियां मांगीं कांटों का हार मिला… खु़शियों की मंजिल ढूंढी तो ग़म की गर्द मिली… चाहत के नग्में चाहे तो आहें सर्द मिली… दिल के बोझ को दूना कर गया जो ग़मख्*़वार मिला… बिछड़ गया हर साथी देकर पल दो पल का साथ… किसको फ़ुर्सत है जो थामे दीवानों का हाथ… हमको अपना साया तक अक्सर बेज़ार मिला… हमने तो जब कलियां मांगी…’. मीना विजय के इस गीत को बर्दाश्त न कर सकी और कमरे को कोने में रोने लगी. वहीं दूसरी तरफ मिस्टर घोष सब देख रहे हैं. विजय गा रहा है, ‘इसको ही जीना कहते हैं तो यूं ही जी लेंगे… उफ़ न करेंगे, लब सी लेंगे, आंसू पी लेंगे… ग़म से अब घबराना कैसा, ग़म सौ बार मिला…’.
विजय की इतनी बेइज्जती के बाद मीना नहीं चाहती थी कि विजय यहां नौकरी करे. मीना विजय को यह समझा रही थी कि मिस्टर घोष ने देख लिया और समझा कि मीना-विजय के बीच पुराने प्यार की कोई बात चल रही है. मिस्टर घोष ने विजय को नौकरी से निकाल दिया.

rajnish manga 10-08-2020 05:00 PM

Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
 
इसके बाद फिल्म टर्न लेती है और घूमकर गुलाबो पर चली आती है

गुलाबो के कमरे में घायल विजय गहरी नींद में है. गुलाबो विजय को चादर ओढ़ाती है. उसके बाद वो कमरे के दरवाजे़ के सहारे बैठकर सो जाती है. लंबी नींद के बाद विजय की आंखें खुलती हैं. विजय के कानों में तरह-तरह की आवाज़ें गूंज रही हैं. ‘क्यों छापूं, साहब! मेरा दिमाग़ ख़राब हुआ है क्*या? आपकी बकवास कोई शायरी है…!’
इसके बाद विजय को गुलाबो की आवाज़ सुनाई देती है, ‘दुनिया को तुम्*हारी शायरी की ज़रूरत है!’. गुलाबो की आवाज़ पर मिस्*टर घोष की आवाज़ सुपरइंपोज होती है. ‘हमारी मैगज़ीन में मशहूर शायरों की नज्में छपती हैं, किसी नौसिखिए की
बकवास नहीं!’.

rajnish manga 10-08-2020 05:00 PM

Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
 
इसी आवाज़ में मीना की आवाज़ मिल जाती है, ‘तुम ख़ुद का पेट तो पाल नहीं सकते थे, तुमसे मैं ब्*याह करती?’. विजय को अपना जीवन बेकार मालूम पड़ने लगा. उसके कानों में भाईयों की आवाज़ गूंजती है, ‘माताजी, बाप से हमने तो नहीं कहा था कि ऐसी निखट्टू औलाद पैदा करें!’. घबरा कर विजय उठता है. अपनी जेब से एक काग़ज़ निकालता है, जिस पर कुछ लिखकर जेब में रख लेता है. विजय दबे पांव कमरे से निकल आता है, बाहर निकलते हुए वह गुलाबो की ओर देखता है.
विजय रेलवे यार्ड से गुजर रहा है, देखता है कि एक भिखारी सर्दी में ठिठुर रहा है. विजय उसे अपना कोट दे देता है. कोट देने के बाद विजय पुल की सीढ़ियों से उतर कर रेल की पटरियों की तरफ़ बढ़ने लगता है. भिखारी को विजय पर शक होता है. वह विजय के पीछे चल देता है. विजय के पीछे-पीछे चल रहे भिखारी का पैर बदलते हुए रेल ट्रैक में फंस जाता है. उस पटरी पर दूर से ट्रेन आ रही है, विजय भिखारी को बचाने का प्रयास करता है. लेकिन विजय उस भिखारी को बचा नहीं पाता है.
अगले दिन सुबह मिस्*टर घोष अख़बार में भिखारी के मरने की छपी हुई खबर को पढ़ रहे हैं. दरअसल मिस्टर घोष उस खबर को पढ़ने से ज्यादा पास बैठकर चाय बना रही पत्नी मीना को सुना रहे हैं. मिस्टर घोष, ‘शक्ल पहचानना भी मुश्किल हो गया है. उस नौजवान की जेब में एक ख़त पाया गया. जिसमें वह एक नज़्म अपने आख़िरी पैग़ाम की सूरत में दुनिया के लिए छोड़ गया. शायर का नाम विजय था.’

rajnish manga 10-08-2020 05:01 PM

Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
 
लेकिन किसी को पता नहीं था कि विजय मरा नहीं है, वह एक पागलख़ाने में है. वहीं दूसरी तरफ अब गुलाबो की जिंदगी का एक ही मक़सद है कि वो विजय की किताब छपवाना चाहती है. वह मिस्टर घोष के पास जाती है और अपने ज़ेवरों की पोटली रख देती है. गुलाबो कहती है, ‘मेरी ज़िंदगी की सारी पूंजी… ये इन्हें छपवाने की क़ीमत है. मैं इससे ज्*़यादा और कुछ नहीं दे सकती. इनका छपना मेरे लिए बहुत ज़रूरी है. अगर आप इन्हें छाप दें तो उम्र भर आपका एहसान मानूंगी.’
विजय की किताब छप गई है. किताब की जबरदस्त बिक्री होती है. एक दुकान के कोने में गुलाबो कहती है, ‘काश! तुम यह अपनी आंखों देखते!’.
दूसरी तरफ अस्*पताल में विजय लेटा है. बगल में बैठी नर्स ‘परछाइयां’ की नज़्म बोल बोल कर पढ़ रही है. जिसे सुनने के बाद विजय बिस्तर से उठ जाता है. यह देखकर नर्स चौंक जाती है और ‘डॉक्*टर!… डॉक्*टर!’ चिल्*लाने लगती है. डॉक्टर के आने पर विजय कहता है कि यह उसकी नज़्में हैं. विजय को सुनने के बाद डॉक्*टर ने कहा, ‘अजी साहब, जिस
विजय ने यह किताब लिखी है, वह न जाने कब के मर चुके हैं! ठीक से याद कीजिए… क्*या नाम है आपका?’

rajnish manga 10-08-2020 05:03 PM

Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
 
विजय अपने विजय होने का दावा करता है. उसकी शिनाख़्त के लिए मिस्टर घोष को बुलाया जाता है. मिस्टर घोष झूठ बोलते हैं कि यह विजय नहीं है. इस तरह से विजय पागलख़ाने आ जाता है. पागलखाने में एक दिन विजय सड़क पर मालिश वाले अब्*दुल सत्तार (जॉनी वाकर) को गुजरे हुए देखता है. विजय ने अब्दुल को आवाज़ दी. पहले तो अब्*दुल सत्तार उसे विजय का भूत समझा, बाद में उसके जीवित होने का पूरा भरोसा होने पर चालाकी पागलख़ाने से निकाल लिया. पागलख़ाने से निकल कर विजय भाईयों के पास पहुंचा, जहां दोनों भाईयों ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. मंझले भाई ने यहां तक कहा, ‘मान न मान… मैं तेरा मेहमान! हमारा झूठा भाई बनते हुए तुम्*हें शर्म नहीं आती!’.

rajnish manga 10-08-2020 05:03 PM

Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
 
भाईयों से धक्के खाकर विजय ट्राम में बैठता है. विजय की झूठी मौत को आज एक साल पूरा हो गया. कलकत्ते के ही किसी बड़े हाल में बड़ी शान के साथ विजय की मौत की पहली बरसी मनाई जाने वाली है. ट्राम में बैठा एक शख़्स अपने दोस्*त कह रहा है, ‘विजय बहुत बड़े शायर तो थे ही, साथ में मेरे दोस्*त भी थे. अक़्सर मेरे पास पैसों की मदद मांगने आया करते थे. मैं न होता तो वो 6 महीने पहले ही आत्*महत्*या करके मर गए होते.’ विजय बड़ी खामोशी से यह सब सुन रहा है.
लोगों से खचाखच भरा एक बहुत बड़ा सा हॉल. स्टेज पर मिस्*टर घोष, उनकी पत्नी मीना और अन्*य लोग बैठे हैं. दर्शकों में अब्*दुल सत्तार और गुलाबो बैठे हैं. विजय के दोनों भाई और दोस्त भी मौजूद हैं. विजय हॉल में सबसे पीछे है. स्टेज पर मिस्*टर घोष विजय की शान में भाषण दे रहे हैं, ‘साहिबान, आप लोग तो जानते हैं कि शायर-ए-आज़म विजय मरहूम की बरसी मनाने हम लोग यहां जमा हुए हैं. पिछले साल इसी दिन वह मनहूस घड़ी आई थी, जिसने दुनिया से इतना बड़ा शायर छीन लिया. अगर हो सकता तो मैं अपनी सारी दौलत लुटा कर भी, ख़ुद बिक कर भी, विजय को बचा लेता लेकिन ऐसा न हो सका. क्यों? आप लोगों की वज़ह से! कहने को तो दुनिया कहती है विजय ने अपनी जान दे दी, लेकिन दरअसल आप लोगों ने उनकी जान ले ली. काश! आज विजय मरहूम ज़िंदा होते तो वह देखते कि जिस समाज ने उन्हें भूखा मारा, आज वही समाज उन्हें हीरे और जवाहरात में तौलने के लिए तैयार है. जिस दुनिया में वह गुमनाम रहे, आज वही दुनिया उन्हें अपने दिलों के तख्*़त पर बैठाना चाहती है. उन्हें शोहरत का ताज पहनाना चाहती है. उन्हें ग़रीबी और मुफ़लिसी की गलियों से निकाल कर महलों में राजा बनाना चाहती है’.

rajnish manga 10-08-2020 05:04 PM

Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
 
यह सब सुनने के बाद विजय हॉल में पीछे की तरफ़ फ़र्श पर बैठ जाता है. विजय के दोनों हाथ चौखठों से लगे हुए हैं. चौखठ के पीछे रोशनी है और इस रोशनी में विजय गा रहा है, ‘ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया, ये इंसा के दुश्मन, समाजों की दुनिया, ये दौलत के अंधे रिवाज़ों की दुनिया, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! हर इक जिस्म घायल, हर एक रूह प्यासी, निगाहों में उलझन, दिलों में उदासी, ये दुनिया है या आलम-ए-बदहवासी, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है!, यहां इक खिलौना है इंसा की हस्ती, ये बस्ती है मुर्दापरस्तों की बस्ती, यहां पर तो जीवन से है मौत सस्ती, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है!, जवानी भटकती है बदकार बन कर, यहां जिस्म सजते हैं बाज़ार बन कर, यहां प्यार की क़द्र ही कुछ नहीं है, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है!, जला दो इसे, फूंक डालो ये दुनिया, मेरे सामने से हटा दो ये दुनिया, तुम्हारी है तुम ही सम्हालो ये दुनिया, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है….

abhisays 06-09-2020 04:01 PM

Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 567957)

‘मुझे शिकायत है उस समाज के उस ढांचे से जो इंसान से उसकी इंसानियत छीन लेता है, मतलब के लिए अपने भाई को बेगाना बनाता है. दोस्त को दुश्मन बनाता है. बुतों को पूजा जाता है, जिन्दा इंसान को पैरों तले रौंदा जाता है. किसी के दुःख दर्द पर आंसू बहाना बुज़दिली समझी जाती है. छुप कर मिलना कमजोरी मानी जाती है.’ आज हम उसी फिल्म ‘प्यासा’ को आपके सामने लेखनी के जरिए रख रहे हैं.

यह बातें आज भी कितनी प्रासंगिक है. गुरुदत्त की फिल्में आज भी आपको सोचने पर विवश करती हैं. रजनीश जी, इस सूत्र के लिए धन्यवाद.

dipu 08-09-2020 07:29 PM

Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
 
बहुत बढ़िया सर जी


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