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Sameerchand 22-11-2012 07:16 AM

छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
दोस्तों इस सूत्र में मैं आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ प्रश्तुत करूँगा. जो काफी शिक्षाप्रद भी हैं. तो देर न करते हुए शुरू करते हैं आज की कहानी.....

आप सब के विचार यहाँ आमंत्रित हैं और अगर आप भी योगदान करना चाहे तो आपका स्वागत हैं......

Sameerchand 22-11-2012 07:16 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
मैं तुझे तो कल देख लूंगा।


सूफी संत जुनैद के बारे में एक कथा है.


एक बार संत को एक व्यक्ति ने खूब अपशब्द कहे और उनका अपमान किया. संत ने उस व्यक्ति से कहा कि मैं कल वापस आकर तुम्हें अपना जवाब दूंगा.


अगले दिन वापस जाकर उस व्यक्ति से कहा कि अब तो तुम्हें जवाब देने की जरूरत ही नहीं है.


उस व्यक्ति को बेहद आश्चर्य हुआ. उस व्यक्ति ने संत से कहा कि जिस तरीके से मैंने आपका अपमान किया और आपको अपशब्द कहे, तो घोर शांतिप्रिय व्यक्ति भी उत्तेजित हो जाता और जवाब देता. आप तो सचमुच विलक्षण, महान हैं.


संत ने कहा – मेरे गुरु ने मुझे सिखाया है कि यदि आप त्वरित जवाब देते हैं तो वह आपके अवचेतन मस्तिष्क से निकली हुई बात होती है. इसलिए कुछ समय गुजर जाने दो. चिंतन मनन हो जाने दो. कड़वाहट खुद ही घुल जाएगी. तुम्हारे दिमाग की गरमी यूँ ही ठंडी हो जाएगी. आपके आँखों के सामने का अँधेरा जल्द ही छंट जाएगा. चौबीस घंटे गुजर जाने दो फिर जवाब दो.


क्या आपने कभी सोचा है कि कोई व्यक्ति पूरे 24 घंटों के लिए गुस्सा रह सकता है? 24 घंटे क्या, जरा अपने आप को 24 मिनट का ही समय देकर देखें. गुस्सा क्षणिक ही होता है, और बहुत संभव है कि आपका गुस्सा, हो सकता है 24 सेकण्ड भी न ठहरता हो


Sameerchand 22-11-2012 07:16 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
कौन बड़ा?


एक बार एक आश्रम के दो शिष्य आपस में झगड़ने लगे – मैं बड़ा, मैं बड़ा.

झगड़ा बढ़ता गया तो फैसले के लिए वे गुरु के पास पहुँचे.

गुरु ने बताया कि बड़ा वो जो दूसरे को बड़ा समझे.

अब दोनों नए सिरे से झगड़ने लगे – तू बड़ा, तू बड़ा!

Sameerchand 22-11-2012 07:16 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
सुरक्षा का उपाय


एक बार नसरूद्दीन ने एक लड़के से उसके लिए कुँऐं से पानी खींचने का अनुरोध किया। जैसे ही वह लड़का कुँए से पानी खींचने को झुका, नसरूद्दीन ने उसके सिर में जोर से थप्पड़ मारा और कहा, "ध्यान रहे। मेरे लिए पानी खींचते समय घड़ा न टूटे।"

वहाँ से गुजरते हुए एक राहगीर ने यह सब देखा तो उसने नसरूद्दीन से कहा - "जब उस लड़के ने कोई गल्ती ही नहीं की तो तुमने उसे क्यों मारा?"

नसरूद्दीन ने दृढ़तापूर्वक उत्तर दिया - "यदि मैं यह चेतावनी घड़े के फूटने के बाद देता तो उसका कोई फायदा नहीं होता।"

Sameerchand 22-11-2012 07:16 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
एक मिनट की भी देरी किसलिए?


एक बार एक जंगल में जबरदस्त आग लग गई और जंगल का एक बड़ा हिस्सा जलकर खाक हो गया. जंगल में एक गुरु का आश्रम था. जब जंगल की आग शांत हुई तो उन्होंने अपने शिष्यों को बुलाया और उन्हें आज्ञा दी कि जंगल को फिर से हरा भरा करने के लिए देवदार का वृक्षारोपण किया जाए.


एक शक्की किस्म के चेलने ने शंका जाहिर ही - मगर गुरूदेव, देवदार तो पनपने में बरसों ले लेते हैं.


यदि ऐसा है तब तो हमें बिना देरी किए तुरंत ही यह काम शुरू कर देना चाहिए - गुरू ने कहा.

Sameerchand 22-11-2012 07:17 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
अपने भीतर के प्रकाश को देखो


एक गुरूजी लंबे समय से अचेतावस्था में थे। एक दिन अचानक उन्हें होश आया तो उन्होंने अपने प्रिय शिष्य को अपने नजदीक बैठे हुए पाया।

उन्होंने प्रेमपूर्वक कहा - "तुम इतने समय तक मेरे बिस्तर के नजदीक ही बैठे रहे और मुझे अकेला नहीं छोड़ा?"

शिष्य ने रुंधे हुए गले से कहा - "गुरूदेव मैं ऐसा कर ही नहीं सकता कि आपको अकेला छोड़ दूं।"

गुरूजी - "ऐसा क्यों?"

"क्योंकि आप ही मेरे जीवन के प्रकाशपुंज हैं।"

गुरूजी ने उदास से स्वर में कहा - "क्या मैंने तुम्हें इतना चकाचौंध कर दिया है कि तुम अपने भीतर के प्रकाश को नहीं देख पा रहे हो?"

Sameerchand 22-11-2012 07:17 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
शेर और लोमड़ी


एक लोमड़ी, जंगल के राजा शेर के अधीनस्थ एक नौकर के रूप में कार्य करने को सहमत हो गयी। कुछ समय तक तो दोनों अपने स्वभाव और सामर्थ्य के अनुसार भलीभांति कार्य करते रहे। लोमड़ी शिकार बताती और शेर हमला करके शिकार को दबोच लेता। परंतु लोमड़ी को जल्द ही यह ईर्ष्या होने लगी कि शेर शिकार का ज्यादा हिस्सा स्वयं चट कर जाता है और उसे बचाखुचा हिस्सा ही मिलता है। वह सोचने लगी कि आखिर वह किस मायने में शेर से कम है। और उसने यह घोषणा कर दी कि भविष्य में वह अकेले ही शिकार करेगी। अगले ही दिन जब वह एक भेड़शाला में से भेड़ के बच्चे को दबोचने ही वाली थी कि अचानक शिकारी और उसके पालतू कुत्ते आ गए और उसे अपना शिकार बना लिया।

"जीवन में अपना स्थान नियत करो और यह स्थान ही आपकी रक्षा करेगा।"

Sameerchand 22-11-2012 07:17 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
तुम्हारा फर्नीचर कहाँ है?


पिछली शताब्दी की बात है। एक अमेरिकी पर्यटक सुप्रसिद्ध पुलिस कर्मचारी रब्बी हॉफेज़ चैम से मिलने गया।

उसे यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि रब्बी सिर्फ एक कमरे में रहते थे और वह भी किताबों से भरा हुआ था। उसमें फर्नीचर के नाम पर सिर्फ एक मेज और कुर्सी थी।

"तुम्हारा फर्नीचर कहाँ हैं रब्बी?" - पर्यटक ने पूछा ।

"और तुम्हारा कहाँ हैं?" - रब्बी ने कहा ।

"मेरा फर्नीचर ! लेकिन मैं तो यहाँ एक पर्यटक हूँ और यहाँ से गुजर ही रहा था।"

"और मैं भी" -- -- -- रब्बी ने भोलेपन से कहा ।

Sameerchand 22-11-2012 07:17 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
आदमी और शेर


एक बार एक शेर और एक आदमी साथ-साथ यात्रा कर रहे थे। उनके मध्य यह बहस होने लगी कि कौन ज्यादा ताकतवर और श्रेष्ठ है। उनके मध्य नोक-झोंक तीखी हुई ही थी कि वे चट्टान पर उकेरी गयी एक मूर्ति के पास से गुजरे जिसमें एक आदमी को शेर का गला दबाते हुए दर्शाया गया था।

"वो देखो। हमारी श्रेष्ठता को साबित करने के लिए क्या तुम्हें और किसी प्रमाण की आवश्यकता है?" - आदमी ने गर्व से कहा।

शेर ने उत्तर दिया - "ये कहानी कहने का तुम्हारा नजरिया है। यदि हम लोग शिल्पकार होते तो शेर के एक पंजे के नीचे बीस आदमी दबे होते।"

"इतिहास सिर्फ विजेताओं द्वारा ही लिखा जाता है।"

Sameerchand 22-11-2012 07:18 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
अपनी आँखें खुली रखो


दार्जिलिंग में कुछ बुजुर्ग मित्रों का एक समूह था जो आपस में समाचारों के आदान-प्रदान और एक साथ चाय पीने के लिये मिलते रहते थे। उनका एक अन्य शौक चाय की महँगी किस्मों की खोज और उनके विभिन्न मिश्रणों द्वारा नए स्वादों की खोज करना था।

मित्रों के मनोरंजन हेतु जब समूह के सबसे उम्रदराज़ बुजुर्ग की बारी आयी तो उसने समारोहपूर्वक एक सोने के महंगे डिब्बे में से चाय की पत्तियाँ निकालते हुए चाय तैयार की। सभी लोगों को चाय का स्वाद बेहद पसंद आया और वे इस मिश्रण को जानने के लिए उत्सुक हो उठे। बुजुर्ग ने मुस्कराते हुए कहा - "मित्रों, जिस चाय को आप बेहद पसंद कर रहे हैं उसे तो मेरे खेतों पर काम करने वाले किसान पीते हैं।"

"जीवन की बेहतरीन चीजें न तो महंगी हैं और न ही उन्हें खोजना कठिन है।"

Sameerchand 22-11-2012 07:18 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
मत बदलो


वर्षों तक मैं मानसिक रोगी रहा - चिंताग्रस्त, अवसादग्रस्त और स्वार्थी। हर कोई मुझे अपना स्वभाव बदलने को कहता ।

मैं उन्हें नाराज करता, पर उनसे सहमत भी था। मैं अपने आपको बदलना चाहता था लेकिन अपने तमाम प्रयासों के बावजूद मैं चाहकर भी ऐसा नहीं कर पाया।

मुझे सबसे ज्यादा तकलीफ तब होती थी जब दूसरों की तरह मेरे सबसे नजदीकी मित्र भी मुझसे बदलने को कहते। मैं ऊर्जारहित और बंधा-बंधा सा महसूस करता ।

एक दिन उसने कहा - "अपने आप को मत बदलो। तुम जैसे भी हो मुझे प्रिय हो।"

ये शब्द मेरे कानों को मधुर संगीत की तरह लगे - "मत बदलो, मत बदलो, मत बदलो ............. तुम जैसे भी हो मुझे प्रिय हो।"

मैंने राहत महसूस की। मैं जीवंत हो उठा और अचानक मैंने पाया कि मैं बदल गया हूँ। अब मैं समझ गया हूँ कि वास्तव में, मैं तब तक नहीं बदला था जब तक कि मैंने ऐसे व्यक्ति को नहीं खोज लिया जो मुझसे हर हाल में प्रेम करता हो।

Sameerchand 22-11-2012 07:18 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
राजा से तो बेहतर वृक्ष है


एक लड़का आम के वृक्ष पर पत्थर मारकर आम तोड़ने का प्रयास कर रहा था। गलती से एक पत्थर अपने लक्ष्य से भटककर वहां से गुजर रहे राजा को लगा। राजा के सैनिकों ने दौड़कर उस लड़के को पकड़ लिया और उसे राजा के समक्ष प्रस्तुत किया ।

राजा ने कहा -"इसके लिए तुम सजा के भागीदार हो। ............ताकि फिर कभी कोई राजा के ऊपर पत्थर फेंकने की हिम्मत न करे, अन्यथा ऐसे तो शासन चलाना मुश्किल हो जाएगा।"

लड़के ने विनयपूर्वक उत्तर दिया - "हे वीर एवं न्यायप्रिय राजन, जब मैंने आम के वृक्ष पर पत्थर मारा तो मुझे उपहार स्वरूप मीठे रसीले फल खाने को मिले और जब आपको पत्थर लगा तो आप मुझे दंड दे रहे हैं....आप से भला तो वृक्ष है।"

राजा का सिर शर्म से झुक गया।

Sameerchand 22-11-2012 07:18 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
कोट के भीतर डायनामाइट


मुल्ला नसरुद्दीन खुशी-खुशी कुछ बुदबुदा रहा था। उसके मित्र ने इस खुशी का राज पूछा।

मुल्ला नसरुद्दीन बोला - "वो बेवकूफ अहमद जब भी मुझसे मिलता है, मेरी पीठ पर हाथ मारता है। आज मैंने अपने कोट के भीतर डायनामाइट की छड़ छुपा ली है। इस बार जब वो मेरी पीठ पर हाथ मारेगा तो उसका हाथ ही उड़ जाएगा।"

"भले ही मुझे हानि पहुंचे, मैं उसे क्षति पहुंचाकर बदला लूंगा।"

Sameerchand 22-11-2012 07:19 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
मृगतृष्णा


जब महात्मा बुद्ध ने राजा प्रसेनजित की राजधानी में प्रवेश किया तो वे स्वयं उनकी आगवानी के लिए आये। वे महात्मा बुद्ध के पिता के मित्र थे एवं उन्होंने बुद्ध के संन्यास लेने के बारे में सुना था।

अतः उन्होंने बुद्ध को अपना भिक्षुक जीवन त्यागकर महल के ऐशोआराम के जीवन में लौटने के लिए मनाने का प्रयास किया। वे ऐसा अपनी मित्रता की खातिर कर रहे थे।

बुद्ध ने प्रसेनजित की आँखों में देखा और कहा, "सच बताओ। क्या समस्त आमोद-प्रमोद के बावजूद आपके साम्राज्य ने आपको एक भी दिन का सुख प्रदान किया है?"

प्रसेनजित चुप हो गए और उन्होंने अपनी नजरें झुका लीं।

"दुःख के किसी कारण के न होने से बड़ा सुख और कोई नहीं है;
और अपने में संतुष्ट रहने से बड़ी कोई संपत्ति नहीं है।"

Sameerchand 22-11-2012 07:19 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
नदी का पानी बिकाऊ


गुरू जी के प्रवचन में एक गूढ़ वाक्य शामिल था।

कटु मुस्कराहट के साथ वे बोले, "नदी के तट पर बैठकर नदी का पानी बेचना ही मेरा कार्य है"।

और मैं पानी खरीदने में इतना व्यस्त था कि मैं नदी को देख ही नहीं पाया।

"हम जीवन की समस्याओं और आपाधापी के कारण प्रायः सत्य को नहीं पहचान पाते।"

Sameerchand 22-11-2012 07:19 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
प्रार्थना


वे प्रतिवर्ष पिकनिक पर सपरिवार जोशोखरोश से जाते थे और अपनी धर्मपरायण चाची को बुलाना नहीं भूलते थे. मगर इस वर्ष वे हड़बड़ी में भूल गए.

आखिरी मिनटों में किसी ने याद दिलाया. चाची को जब निमंत्रण भेजा गया तो उन्होंने कहा – “अब तो बहुत देर हो चुकी. मैंने तो आँधी-तूफ़ान और बरसात के लिए प्रार्थना भी कर ली है.”

Sameerchand 22-11-2012 07:19 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
बुद्धिमानी


मुल्ला नसरूद्दीन शादी की दावत में निमंत्रित थे. पिछली दफ़ा जब वे ऐसे ही समारोह में निमंत्रित थे तो किसी ने उनका जूता चुरा लिया था. इसलिए इस बार मुल्ला ने जूता दरवाजे पर छोड़ने के बजाए अपनी कोट की जेब में ठूंस लिए.

“आपकी जेब में रखी किताब कौन सी है” – मेजबान ने मुल्ला से पूछा.

“लगता है यह मेरे जूतों के पीछे पड़ा है” मुल्ला ने सोचा और कहा – “वैसे तो लोग मेरी बुद्धिमानी का लोहा मानते हैं.” और फिर चिल्लाया – “मेरी जेब में रखी इस भारी भरकम चीज का मुख्य विषय भी यही है - बुद्धिमानी.”

“अरे वाह!, आपने इसे कहाँ से खरीदा – ‘बुक-वार्म’ से या ‘क्रॉसवर्ड’ से?”

“मोची से”

Sameerchand 22-11-2012 07:26 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
और बाकी कहानिया, आप लोगो की प्रतिक्रियाओं के बाद।

Sikandar_Khan 22-11-2012 08:34 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
समीर भाई ! बहुत ही शानदार सीख देने वाली कहानियाँ हैँ |

abhisays 22-11-2012 09:05 AM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
बहुत ही अच्छी कहानिया हैं। :bravo::bravo:

Dark Saint Alaick 22-11-2012 04:31 PM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
आपने तो आते ही धमाका कर दिया समीरजी। श्रेष्ठ प्रस्तुतीकरण के लिए आभार स्वीकार करें। :cheers:

anjana 22-11-2012 06:05 PM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
काँच की बरनी और दो कप चाय


जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दो कप चाय" हमें याद आती है ।



दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं...उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ... आवाज आई...फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये , धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प् ?? ोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ.. कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ.. अब तो पूरी भर गई है.. सभी ने एक स्वर में कहा..सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच में स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई...प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया - इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो.... टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं , छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी...ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है...यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा... मन के सुख के लिये क्या जरूरी ह ? ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक- अप करवाओ.. टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है... पहले तय करो कि क्या जरूरी है.... बाकी सब तो रेत है.. छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे... अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप" क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले.. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया... इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।

anjana 22-11-2012 06:06 PM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
एकाग्रचित्त बनें

एक आदमी को किसी ने सुझाव दिया कि दूर से पानी लाते हो, क्यों नहीं अपने घर के पास एक कुआं खोद लेते? हमेशा के लिए पानी की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा। सलाह मानकर उस आदमी ने कुआं खोदना शुरू किया। लेकिन सात-आठ फीट खोदने के बाद उसे पानी तो क्या, गीली मिट्टी का भी चिह्न नहीं मिला। उसने वह जगह छोड़कर दूसरी जगह खुदाई शुरू की। लेकिन दस फीट खोदने के बाद भी उसमें पानी नहीं निकला। उसने तीसरी जगह कुआं खोदा, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। इस क्रम में उसने आठ-दस फीट के दस कुएं खोद डाले, पानी नहीं मिला। वह निराश होकर उस आदमी के पास गया, जिसने कुआं खोदने की सलाह दी थी।
उसे बताया कि मैंने दस कुएं खोद डाले, पानी एक में भी नहीं निकला। उस व्यक्ति को आश्चर्य हुआ। वह स्वयं चलकरउस स्थान पर आया, जहां उसने दस गड्ढे खोद रखे थे। उनकी गहराई देखकर वह समझ गया। बोला, 'दस कुआं खोदने की बजाए एक कुएं में ही तुम अपना सारा परिश्रम और पुरूषार्थ लगाते तो पानी कबका मिल गया होता। तुम सब गड्ढों को बंद कर दो, केवल एक को गहरा करते जाओ, पानी निकल आएगा।'
कहने का मतलब यही कि आज की स्थिति यही है। आदमी हर काम फटाफट करना चाहता है। किसी के पास धैर्य नहीं है। इसी तरह पचासों योजनाएं एक साथ चलाता है और पूरी एक भी नहींहो पाती।

anjana 22-11-2012 06:08 PM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
पथ का निर्माण:-

जंगल में चराई के बाद किसी बछड़े को गाँव की गौशाला तकलौटना था. नन्हा बछड़ा था तो अबोध ही, वह चट्टानों, मिट्टी के टीलों, और ढलानोंपर से उछलता-कूदता हुआ अपने गंतव्य तक पहुँचने में सफल हो गया.
अगले दिन एक कुत्ते ने भी गाँव तक पहुँचने के लिए उसीरास्ते का इस्तेमाल किया. उसके अगले दिन एक भेड़ उस रास्ते पर चल पड़ी. एक भेड़ के पीछे अनेक भेड़ चल पडीं. भेड़ जो ठहरीं!
उस रास्ते पर चलाफिरी के निशान देखकर लोगों ने भी उसका इस्तेमाल शुरू कर दिया. ऊंची-नीची पथरीली जमीन पर आते-जाते समय वे पथकी दुरूहता को कोसते रहते – पथ था ही ऐसा! लेकिन किसी ने भी सरल-सुगम पथ की खोज के लिए प्रयास नहीं किये.
समय बीतने के साथ वह पगडंडीउस गाँव तक पहुँचने का मुख्य मार्ग बन गयी जिसपर बेचारे पशु बमुश्किल गाड़ीखींचते रहते. उस कठिन पथ के स्थान पर कोई सुगम पथ होता तो लोगों को यात्रा में न केवल समय की बचत होती वरन वे सुरक्षित भी रहते.
कालांतर में वह गाँव एक नगरबन गया और पथ राजमार्ग बन गया. उस पथ की समस्याओं पर चर्चा करते रहने के अतिरिक किसी ने कभी कुछ नहीं किया.
बूढ़ा जंगल यह सब बहुत लंबेसमय से देख रहा था. वह बरबस मुस्कुराता और यह सोचता रहता कि मनुष्य हमेशा ही सामने खुले पड़े विकल्प को मजबूती से जकड़ लेते हैं औरयह विचार नहीं करते कि कहींकुछ उससे बेहतर भी किया जा सकता है.

anjana 22-11-2012 06:10 PM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
मुल्ला नसरुद्दीन के गुरु की मज़ार :-
मुल्ला नसरुद्दीन इबादत की नई विधियों की तलाश में निकला. अपने गधे पर जीन कसकर वह भारत, चीन, मंगोलिया गया और बहुत से ज्ञानियों और गुरुओं से मिला पर उसे कुछ भी नहीं जंचा.
उसे किसी ने नेपाल में रहने वाले एक संत के बारे में बताया. वह नेपाल की ओर चल पड़ा. पहाड़ी रास्तों पर नसरुद्दीन का गधा थकान से मर गया. नसरुद्दीन ने उसे वहीं दफ़न कर दिया और उसके दुःख में रोने लगा. कोई व्यक्ति उसके पास आया और उससे बोला – “मुझे लगता है कि आप यहाँ किसी संत की खोज में आये थे. शायद यही उनकी कब्र है और आप उनकी मृत्यु का शोक मना रहे हैं.”
“नहीं, यहाँ तो मैंने अपने गधे को दफ़न किया है जो थकान के कारण मर गया” – मुल्ला ने कहा.
“मैं नहीं मानता. मरे हुए गधे के लिए कोई नहीं रोता. इस स्थान में ज़रूर कोई चमत्कार है जिसे तुम अपने तक ही रखना चाहते हो!”
नसरुद्दीन ने उसे बार-बार समझाने की कोशिश की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. वह आदमी पास ही गाँव तक गया और लोगों को दिवंगत संत की कब्र के बारे में बताया कि वहां लोगों के रोग ठीक हो जाते हैं. देखते-ही-देखते वहां मजमा लग गया.
संत की चमत्कारी कब्र की खबर पूरे नेपाल में फ़ैल गयी और दूर-दूर से लोग वहां आने लगे. एक धनिक को लगा कि वहां आकर उसकी मनोकामना पूर्ण हो गयी है इसलिए उसने वहां एक शानदार मज़ार बनवा दी जहाँ नसरुद्दीन ने अपने ‘गुरु’ को दफ़न किया था.
यह सब होता देखकर नसरुद्दीन ने वहां से चल देने में ही अपनी भलाई समझी. इस सबसे वह एक बात तो बखूबी समझ गया कि जब लोग किसी झूठ पर यकीन करना चाहते हैं तब दुनिया की कोई ताकत उनका भ्रम नहीं तोड़ सकती.

Sameerchand 23-11-2012 03:39 PM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
सबसे बड़ा सबक


चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में चीन से एक दूत आया. वह चाणक्य के साथ ‘राजनीति के दर्शन’ पर विचार-विमर्श करना चाहता था. चीनी राजदूत राजशाही ठाठबाठ वाला अक्खड़ किस्म का था. उसने चाणक्य से बातचीत के लिए समय मांगा. चाणक्य ने उसे अपने घर रात को आने का निमंत्रण दिया.

उचित समय पर चीनी राजदूत चाणक्य के घर पहुँचा. उसने देखा कि चाणक्य एक छोटे से दीपक के सामने बैठकर कुछ लिख रहे हैं. उसे आश्चर्य हुआ कि चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार का बड़ा ओहदेदार मंत्री इतने छोटे से दिए का प्रयोग कर रहा है.

चीनी राजदूत को आया देख चाणक्य खड़े हुए और आदर सत्कार के साथ उनका स्वागत किया. और इससे पहले कि बातचीत प्रारंभ हो, चाणक्य ने वह छोटा सा दीपक बुझा दिया और एक बड़ा दीपक जलाया. बातचीत समाप्त होने के बाद चाणक्य ने बड़े दीपक को बुझाया और फिर से छोटे दीपक को जला लिया.

चीनी राजदूत को चाणक्य का यह कार्य बिलकुल ही समझ में नहीं आया. चलते-चलते उसने पूछ ही लिया कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया.

चाणक्य ने कहा – जब आप मेरे घर पर आए तो उस वक्त मैं अपना स्वयं का निजी कार्य कर रहा था, तो उस वक्त मैं अपना स्वयं का दीपक प्रयोग में ले रहा था. जब हमने राजकाज की बातें प्रारंभ की तब मैं राजकीय कार्य कर रहा था तो मैंने राज्य का दीपक जलाया. जैसे ही हमारी राजकीय बातचीत समाप्त हुई, मैंने फिर से स्वयं का दीपक जला लिया.

चाणक्य ने आगे कहा - मैं कभी ‘राज्य का मंत्री’ होता हूँ, तो कभी राज्य का ‘आम आदमी’. मुझे दोनों के बीच अंतर मालूम है.

Sameerchand 23-11-2012 03:40 PM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
अनजान जी, इस सूत्र में आपके योगदान के लिए बहुत बहुत धन्यवाद :bravo::bravo::bravo::bravo:

Sameerchand 23-11-2012 03:41 PM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
बुरे इरादे छुपाए नहीं छुपते


एक बार की बात है. एक गरीब बुढ़िया एक गांव से दूसरे गांव पैदल जा रही थी. उसके सिर पर एक भारी बोझ था. वह बेचारी हर थोड़ी दूर पर थक कर बैठ जाती और सुस्ताती. इतने में एक घुड़सवार पास से गुजरा. बुढ़िया ने उस घुड़सवार से कहा कि क्या वो अपने घोड़े पर उसका बोझा ले जा सकता है. घुड़सवार ने मना कर दिया और कहा – बोझा तो मैं भले ही घोड़े पर रख लूं, मगर तुम तो बड़ी धीमी रफ्तार में चल रही हो. मुझे तो देर हो जाएगी.

थोड़ी दूर आगे जाने के बाद घुड़सवार के मन में आया कि शायद बुढ़िया के बोझे में कुछ मालमत्ता हो. वो बुढ़िया की सहायता करने के नाम पर बोझा घोड़े पर रख लेगा और सरपट वहाँ से भाग लेगा. ऐसा सोचकर वह वापस बुढ़िया के पास आया और बुढ़िया से कहा कि वो उसकी सहायता कर प्रसन्न होगा.

अबकी बुढ़िया ने मना कर दिया. घुड़सवार गुस्से से लाल-पीला हो गया. उसने बुढ़िया से कहा, अभी तो थोड़ी देर पहले तुमने मुझसे बोझा ढोने के लिए अनुनय विनय किया था! और अभी थोड़ी देर में ये क्या हो गया कि तुमने अपना इरादा बदल दिया?

‘उसी बात ने मेरा इरादा बदला जिसने तुम्हारा इरादा बदल दिया.’ बुढ़िया ने एक जानी पहचानी मुस्कुराहट उसकी ओर फेंकी और आगे बढ़ चली.

Sameerchand 23-11-2012 03:41 PM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
मेरा दिल तो पहले से ही वहाँ पर है


एक बुजुर्ग हिमालय पर्वतों की तीर्थयात्रा पर था. कड़ाके की ठंड थी और बारिश भी शुरू हो गई थी.

धर्मशाला के एक कर्मचारी ने पूछा “बाबा, मौसम खराब है. ऐसे में आप कैसे जाओगे?”

बुजुर्ग ने प्रसन्नता से कहा – “मेरा दिल तो वहाँ पहले से ही है. बाकी के लिए तो कोई समस्या ही नहीं है.”

Sameerchand 23-11-2012 03:42 PM

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गगरी आधी भरी या खाली


एक बुजुर्ग ग्रामीण के पास एक बहुत ही सुंदर और शक्तिशाली घोड़ा था. वह उससे बहुत प्यार करता था. उस घोड़े को खरीदने के कई आकर्षक प्रस्ताव उसके पास आए, मगर उसने उसे नहीं बेचा.

एक रात उसका घोड़ा अस्तबल से गायब हो गया. गांव वालों में से किसी ने कहा “अच्छा होता कि तुम इसे किसी को बेच देते. कई तो बड़ी कीमत दे रहे थे. बड़ा नुकसान हो गया.”

परंतु उस बुजुर्ग ने यह बात ठहाके में उड़ा दी और कहा – “आप सब बकवास कर रहे हैं. मेरे लिए तो मेरा घोड़ा बस अस्तबल में नहीं है. ईश्वर इच्छा में जो होगा आगे देखा जाएगा.”

कुछ दिन बाद उसका घोड़ा अस्तबल में वापस आ गया. वो अपने साथ कई जंगली घोड़े व घोड़ियाँ ले आया था.

ग्रामीणों ने उसे बधाईयाँ दी और कहा कि उसका तो भाग्य चमक गया है.

परंतु उस बुजुर्ग ने फिर से यह बात ठहाके में उड़ा दी और कहा – “बकवास! मेरे लिए तो बस आज मेरा घोड़ा वापस आया है. कल क्या होगा किसने देखा है.”

अगले दिन उस बुजुर्ग का बेटा एक जंगली घोड़े की सवारी करते गिर पड़ा और उसकी टाँग टूट गई. लोगों ने बुजुर्ग से सहानुभूति दर्शाई और कहा कि इससे तो बेहतर होता कि घोड़ा वापस ही नहीं आता. न वो वापस आता और न ही ये दुर्घटना घटती.

बुजुर्ग ने कहा – “किसी को इसका निष्कर्ष निकालने की जरूरत नहीं है. मेरे पुत्र के साथ एक हादसा हुआ है, ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है, बस”

कुछ दिनों के बाद राजा के सिपाही गांव आए, और गांव के तमाम जवान आदमियों को अपने साथ लेकर चले गए. राजा को पड़ोसी देश में युद्ध करना था, और इसलिए नए सिपाहियों की भरती जरूरी थी. उस बुजुर्ग का बेटा चूंकि घायल था और युद्ध में किसी काम का नहीं था, अतः उसे नहीं ले जाया गया.

गांव के बचे बुजुर्गों ने उस बुजुर्ग से कहा – “हमने तो हमारे पुत्रों को खो दिया. दुश्मन तो ताकतवर है. युद्ध में हार निश्चित है. तुम भाग्यशाली हो, कम से कम तुम्हारा पुत्र तुम्हारे साथ तो है.”

उस बुजुर्ग ने कहा – “अभिशाप या आशीर्वाद के बीच बस आपकी निगाह का फ़र्क होता है. इसीलिए किसी भी चीज को वैसी निगाहों से न देखें. निस्पृह भाव से यदि चीजों को होने देंगे तो दुनिया खूबसूरत लगेगी.”

Sameerchand 23-11-2012 03:42 PM

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थुम्बा में रॉकेट प्रक्षेपण स्टेशन पर वैज्ञानिक एक दिन में लगभग 12 से 18 घंटे के लिए काम करते थे. इस परियोजना पर काम कर रहे वैज्ञानिकों कि संख्या सत्तर के लगभग थी . सभी वैज्ञानिक वास्तव में काम के दबाव और अपने मालिक की मांग के कारण निराश थे, लेकिन हर कोई उससे वफादार था और नौकरी छोड़ने के बारे में नहीं सोचता था .
एक दिन, एक वैज्ञानिक अपने बॉस के पास आया था और उनसे कहा - सर, मैं अपने बच्चों को वादा किया है कि मैं उन्हें हमारी बस्ती में चल रही प्रदर्शनी दिखाने के लिए ले जाऊँगा . तो मैं 5 30 बजे कार्यालय छोड़ना चाहता हूँ .

उनका बॉस ने कहा - ठीक है, तुम्हे आज जल्दी कार्यालय छोड़ने के लिए अनुमति दी जाती है.

वैज्ञानिक ने काम शुरू कर दिया. उसने दोपहर के भोजन के बाद भी अपना काम जारी रखा. हमेशा की तरह वह इस हद तक अपने काम में मशगूल था कि जब उसने अपनी घड़ी में देखा कि समय रात्रि 8.30 बज चुके थे . अचानकउसे अपना वह वादा जो उसने अपने बच्चों को किया था याद आया . उसने अपने मालिक के लिए देखा, वह वहाँ नहीं था. उसे सुबह ही बताया था, उसने सब कुछ बंद कर दिया और घर के लिए चल दिया.

अपने भीतर गहराई में, वह अपने बच्चों को निराश करने के लिए दोषी महसूस कर रहा था.

वह घर पहुंच गया. बच्चे वहाँ नहीं थे पत्नी अकेली हॉल में बैठी थी और पत्रिकाओं को पढ़ने में मशगूल थी . स्थिति विस्फोटक थी , उसे लगा कोई भी बात करने पर वह उस पर फट पड़ेगी . उसकी पत्नी ने उससे पूछा - क्या आप के लिए कॉफीलाऊं या मैं सीधे रात्रिभोज की व्यवस्था करू अगर आप भूखे है आपकी पसंद का भोजन बना है.

आदमी ने कहा - अगर तुम भी पियो तो मैं भी कॉफी लूँगा , लेकिन बच्चे कहां हैं ?? पत्नी ने कहा - आपको नहीं पता है आपका प्रबंधक 5 15 बजे आया और प्रदर्शनी के लिए बच्चों को ले गया.

असल में हुआ क्या था

मालिक ने उसे दी गई अनुमति के अनुसार उसे 5,00 बजे उसे गंभीरता से काम करते देखा और सोचा कि यह व्यक्ति काम को नहीं छोड़ सकता है , लेकिन उसने अपने बच्चों से वादा किया है कि वो उन्हें प्रदर्शनी के लिए लें जाएगा . तो वह उन्हें प्रदर्शनी के लिए लेकर गया.

मालिक ने हर बार यही नहीं किया था पर जो एक बार किया उससे उस वैज्ञानिक कि प्रतिबद्धता हमेशा के लिए स्थापित हो गयी
यही कारण है कि थुम्बा में सभी वैज्ञानिकों ने उनके मालिक के तहत काम जारी रखा जबकि तनाव जबरदस्त था.


क्या आप अनुमान लगा सकते हैं वो मेनेजर कौन था



जी हाँ वो हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री ए पी जे अब्दुल कलाम थे

Sameerchand 23-11-2012 03:43 PM

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शिकार


एक दिन सुल्तान ने नसरुद्दीन को अपने साथ भालू के शिकार पर चलने को कहा। नसरुद्दीन जाना नहीं चाहता था पर सुल्तान को खुश करने के लिए वह साथ में जाने को तैयार हो गया।

शिकार पर गया दल जब शाम को लौटा तो सभी लोग उनसे यह जानने को उत्सुक थे कि शिकार कैसा रहा और उन्होंने नसरुद्दीन से इसके बारे में पूछा।

नसरुद्दीन बोला - "बेहतरीन" !

लोगों ने फिर उत्सुकतावश पूछा - "तुमने कितने भालू मारे?"

"एक भी नहीं "- नसरुद्दीन बोला।

"तो तुमने कितने भालुओं का पीछा किया?"- उन्होंने पूछा।

"एक भी नहीं " - नसरुद्दीन फिर बोला।

"तो तुम्हें कितने भालू दिखायी दिए?"- उन्होंने पूछा।

"एक भी नहीं "- नसरुद्दीन बोला।

तो फिर तुम यह कैसे कह सकते हो कि शिकार बेहतरीन रहा? - एक व्यक्ति ने कहा।

नसरुद्दीन ने मुस्कराते हुए कहा।- "महोदय! यह जान लीजिये, कि जब आप भालू जैसे खतरनाक जानवर के शिकार पर हों तो सबसे अच्छी बात यही है कि उससे आपका सामना ही न हो।

Sameerchand 23-11-2012 03:44 PM

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संघर्ष की महत्ता


एक व्यक्ति को तितली का एक कोकून मिला, जिसमें से तितली बाहर आने के लिए प्रयत्न कर रही थी. कोकून में एक छोटा सा छेद बन गया था जिसमें से बाहर निकलने को तितली आतुर तो थी, मगर वह छेद बहुत छोटा था और तितली का उस छेद में से बाहर निकलने का संघर्ष जारी था.

उस व्यक्ति से यह देखा नहीं गया और वह जल्दी से कैंची ले आया और उसने कोकून को एक तरफ से काट कर छेद बड़ा कर दिया. तितली आसानी से बाहर तो आ गई, मगर वह अभी पूरी तरह विकसित नहीं थी. उसका शरीर मोटा और भद्दा था तथा पंखों में जान नहीं थी. दरअसल प्रकृति उसे कोकून के भीतर से निकलने के लिए संघर्ष करने की प्रक्रिया के दौरान उसके पंखों को मजबूती देने, उसकी शारीरिक शक्ति को बनाने व उसके शरीर को सही आकार देने का कार्य भी करती है. जिससे जब तितली स्वयं संघर्ष कर, अपना समय लेकर कोकून से बाहर आती है तो वह आसानी से उड़ सकती है. प्रकृति की राह में मनुष्य रोड़ा बन कर आ गया था, भले ही उसकी नीयत तितली की सहायता करने की रही हो. नतीजतन तितली कभी उड़ ही नहीं पाई और जल्द ही काल कवलित हो गई.

संघर्ष जरूरी है हमारे बेहतर जीवन के लिए.

Sameerchand 23-11-2012 03:44 PM

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शायद ऊपर कोई रास्ता निकल आए


कुछ बच्चों ने तय किया कि मुल्ला नसरूद्दीन को परेशान करने के लिए जब मुल्ला कहीं चप्पल निकाले तो उसे छुपा दिया जाए.

उन्होंने एक उपाय निकाला. जब मुल्ला पास से गुजर रहा था तो मुल्ला को सुनाने के लिए एक बच्चे ने दूसरे से जोर से कहा – “सामने वाले पेड़ पर कोई भी नहीं चढ़ सकता, और मुल्ला तो कभी भी नहीं.”

मुल्ला ठिठका, पेड़ को देखा जो कि बेहद छोटा और शाखादार था. “कोई भी चढ़ सकता है इस पर – तुम भी. देखो मैं तुम्हें दिखाता हूँ कि कैसे.” ऐसा कह कर उसने अपनी चप्पलें निकाली और उन्हें अपनी कमरबंद में खोंसा और पेड़ पर चढ़ने लगा.

“मुल्ला,” बच्चे चिल्लाए क्योंकि उनका प्लान फेल हो रहा था – “ऊपर पेड़ में तुम्हारे चप्पलों का क्या काम?”

“इमर्जेंसी के लिए हमेशा तैयार रहो,” मुल्ला ने मुस्कुराते हुए बात पूरी की – “क्या पता ऊपर कोई रास्ता मिल ही जाए”

Sameerchand 23-11-2012 03:44 PM

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किसान और गेहूँ के दाने


एक प्राचीन दृष्टान्त है. तब ईश्वर मनुष्यों के साथ धरती पर निवास करते थे. एक दिन एक वृद्ध किसान ने ईश्वर से कहा – आप ईश्वर हैं, ब्रह्माण्ड को आपने बनाया है, मगर आप किसान नहीं हैं और आपको खेती किसानी नहीं आती, इसलिए दुनिया में समस्याएँ हैं.

ईश्वर ने पूछा – “तो मुझे क्या करना चाहिए?”

किसान ने कहा - “मुझे एक वर्ष के लिए अपनी शक्तियाँ मुझे दे दो. मैं जो चाहूंगा वो हो. तब आप देखेंगे कि दुनिया से समस्याएँ, गरीबी भुखमरी सब समाप्त हो जाएंगी.”

ईश्वर ने किसान को अपनी शक्ति दे दी. किसान ने चहुँओर सर्वोत्तम कर दिया. मौसम पूरे समय खुशगवार रहने लगा. न आँधी न तूफ़ान. किसान जब चाहता बारिश हो तब बारिश होती, जब वो चाहता कि धूप निकले तब धूप निकलती. सबकुछ एकदम परिपूर्ण हो गया था. चहुँओर फ़सलें भी लहलहा रही थीं.

जब फसलों को काटने की बारी आई तब किसान ने देखा कि फसलों में दाने ही नहीं हैं. किसान चकराया और दौड़ा दौड़ा भगवान के पास गया. उसने तो सबकुछ सर्वोत्तम ही किया था. और यह क्या हो गया था. उसने भगवान को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा.

भगवान ने स्पष्ट किया – चूंकि सबकुछ सही था, कोई संधर्ष नहीं था, कोई जिजीविषा नहीं थी – तुमने सबकुछ सर्वोत्तम कर दिया था तो फसलें नपुंसक हो गईं. उनकी उर्वरा शक्ति खत्म हो गई. जीवन जीने के लिए संघर्ष अनिवार्य है. ये आत्मा को झकझोरते हैं और उन्हें जीवंत, पुंसत्व से भरपूर बनाते हैं.

यह दृष्टांत अमूल्य है. जब आप सदा सर्वदा खुश रहेंगे, प्रसन्न बने रहेंगे तो प्रसन्नता, खुशी अपना अर्थ गंवा देगी. यह तो ऐसा ही होगा जैसे कोई सफेद कागज पर सफेद स्याही से लिख रहा हो. कोई इसे कभी देख-पढ़ नहीं पाएगा.

खुशी को महसूस करने के लिए जीवन में दुःख जरूरी है. बेहद जरूरी.

Sameerchand 23-11-2012 03:45 PM

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कांच कि बरनी (बड़ा बर्तन ) और दो कप चाय

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे
आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ...

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल
टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने
की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ ...
आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे
- धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर
से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ
... कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना
शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर
हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ
.. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से
चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित
थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ...

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया –


इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ....

टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र
, स्वास्थ्य और शौक हैं ,

छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और

रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..
अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की
गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं
भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ...
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे
पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने
बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ ,
घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ... टेबल टेनिस
गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ... पहले तय करो कि क्या जरूरी है
... बाकी सब तो रेत है ..
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह
नहीं बताया
कि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही
रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ...
इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन
अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।

Sameerchand 23-11-2012 03:45 PM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
धार्मिकता और अंधभक्ति


आप धार्मिक हैं या अंधभक्त? व्यक्ति को धार्मिक तो होना चाहिए, मगर अंधभक्त नहीं.

आर्मी के एक कमांडिंग ऑफ़ीसर की यह कहानी है –

कमांडिंग ऑफ़ीसर ने अपने नए-नए रंगरूटों से पूछा कि रायफल के कुंदे में अखरोट की लकड़ी का उपयोग क्यों किया जाता है.

“क्योंकि इसमें ज्यादा प्रतिरोध क्षमता होती है” एक ने कहा.

“गलत”

“इसमें लचक ज्यादा होती है” दूसरे ने कहा.

“गलत”

“शायद इसमें दूसरी लकड़ियों की अपेक्षा ज्यादा चमक होती है” तीसरे ने अंदाजा लगाया.

“बेवकूफी की बातें मत करो.” कमांडर गुर्राया – “अखरोट की लकड़ी का प्रयोग इस लिए किया जाता है क्योंकि यह नियम-पुस्तिका में लिखा है.”

Sameerchand 23-11-2012 03:46 PM

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वृद्ध रहित भूमि


एक बार एक देश में यह निर्णय लिया गया कि वृद्ध किसी काम के नहीं होते, अकसर बीमार रहते हैं, और वे अपनी उम्र जी चुके होते हैं अतः उन्हें मृत्यु दे दी जानी चाहिए। देश का राजा भी जवान था तो उसने यह आदेश देने में देरी नहीं की कि पचास वर्ष से ऊपर के उम्र के लोगों को खत्म कर दिया जाए।

और इस तरह से सभी अनुभवी, बुद्धिमान बड़े बूढ़ों से वह देश खाली हो गया. उनमें एक जवान व्यक्ति था जो अपने पिता से बेहद प्रेम करता था। उसने अपने पिता को अपने घर के एक अंधेरे कोने में छुपा लिया और उसे बचा लिया।

कुछ साल के बाद उस देश में भीषण अकाल पड़ा और जनता दाने दाने को मोहताज हो गई। बर्फ के पिघलने का समय आ गया था, परंतु देश में बुआई के लिए एक दाना भी नहीं था. सभी परेशान थे। अपने बच्चे की परेशानी देख कर उस वृद्ध ने, जिसे बचा लिया गया था, अपने बच्चे से कहा कि वो सड़क के किनारे किनारे दोनों तरफ जहाँ तक बन पड़े हल चला ले।

उस युवक ने बहुतों को इस काम के लिए कहा, परंतु किसी ने सुना, किसी ने नहीं. उसने स्वयं जितना बन पड़ा, सड़क के दोनों ओर हल चला दिए। थोड़े ही दिनों में बर्फ पिघली और सड़क के किनारे किनारे जहाँ जहाँ हल चलाया गया था, अनाज के पौधे उग आए।

लोगों में यह बात चर्चा का विषय बन गई, बात राजा तक पहुँची. राजा ने उस युवक को बुलाया और पूछा कि ये आइडिया उसे आखिर आया कहाँ से? युवक ने सच्ची बात बता दी।

राजा ने उस वृद्ध को तलब किया कि उसे यह कैसे विचार आया कि सड़क के किनारे हल चलाने से अनाज के पौधे उग आएंगे। उस वृद्ध ने जवाब दिया कि जब लोग अपने खेतों से अनाज घर को ले जाते हैं तो बहुत सारे बीच सड़कों के किनारे गिर जाते हैं. उन्हीं का अंकुरण हुआ है।

राजा प्रभावित हुआ और उसे अपने किए पर पछतावा हुआ. राजा ने अब आदेश जारी किया कि आगे से वृद्धों को ससम्मान देश में पनाह दी जाती रहेगी।

कहावत है –

वृद्धस्य वचनम् ग्राह्यं आपात्काले ह्युपस्थिते।

जिसका अर्थ है – विपदा के समय बुजुर्गों का कहा मानना चाहिए.

Sameerchand 23-11-2012 03:46 PM

Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
 
क्या मेरा वेतन बढ़ेगा?


प्रेरक सम्मेलन (मोटिवेशन सेमिनार) से लौटकर उत्साहित प्रबंधक ने अपने एक कामगार को अपने ऑफ़िस में बुलाया और कहा – “आज के बाद से अपने काम को तुम स्वयं प्लान करोगे और नियंत्रित करोगे. इससे तुम्हारी उत्पादकता बढ़ेगी.”

“इससे क्या मेरे वेतन में बढ़ोत्तरी होगी?” कामगार ने पूछा.

“नहीं नहीं, -” प्रबंधक आगे बोला – “पैसा कहीं भी प्रेरणा देने का कारक नहीं बनता और वेतन में बढ़ोत्तरी से तुम्हें कोई संतुष्टि नहीं मिलेगी.”

“ठीक है, तो जब मेरी उत्पादकता बढ़ जाएगी तब मेरा वेतन बढ़ेगा?”

“देखो, -” प्रबंधक ने समझाया “जाहिर है कि तुम मोटिवेशन थ्योरी को नहीं समझते. इस किताब को ले जाओ और इसे अच्छी तरह से पढ़ो. इसमें सब कुछ विस्तार में समझाया गया है कि किस चीज से तुममें प्रेरक तत्व जागेंगे.”

वह आदमी बुझे मन से किताब ले कर जाने लगा. जाते जाते उसने पूछा - “यदि मैं इस किताब को अच्छी तरह से पूरा पढ़ लूं तब तो मेरा वेतन बढ़ेगा?”

Sameerchand 23-11-2012 03:46 PM

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कल्पतरू


एक बार एक आदमी घूमते-घामते स्वर्ग पहुँच गया. स्वर्ग में सुंदर नजारे देखते हुए वह बहुत देर तक घूमता रहा और अंत में थक हार कर एक वृक्ष के नीचे सो गया.

स्वर्ग में जिस वृक्ष के नीचे सोया था, वह कल्पतरू था. कल्पतरू की छांह के नीचे बैठ कर जो भी व्यक्ति जैसी कल्पना करता है, वह साकार हो जाता है.

कुछ देर बाद जब उस आदमी की आँख खुली तो उसकी थकान तो जाती रही थी, मगर उसे भूख लग आई थी. उसने सोचा कि काश यहाँ छप्पन भोग से भरी थाली खाने को मिल जाती तो आनंद आ जाता.

चूंकि वह कल्पतरू के नीचे था, तो उसकी छप्पन भोग से भरी थाली उसके कल्पना करते ही प्रकट हो गई. चूंकि उसे भूख लगी थी तो उसने झटपट उस भोजन को खा लिया. भोजन के बाद उसे प्यास लगी. उसने सोचा कि काश कितना ही अच्छा होता कि इतने शानदार भोजन के बाद एक बोतल बीयर पीने को मिल जाती. उसका यह सोचना था कि बीयर की बोतल नामालूम कहाँ से प्रकट हो गई.

उसने बीयर की बोतल खोली और गटागट पीने लगा. भूख और प्यास थोड़ी शांत हुई तो उसका दिमाग दौड़ा. यह क्या हो रहा है उसने सोचा. क्या मैं सपना देख रहा हूँ? खाना और बीयर हवा में से कैसे प्रकट हो गए? लगता है कि इस पेड़ में भूत पिशाच हैं जो मुझसे कोई खेल खेल रहे हैं. उसने सोचा.

उसका इतना सोचना था कि कल्पतरू ने उसकी यह कल्पना भी साकार कर दी. हवा में से भूत पिशाच प्रकट हो गए जो उसके साथ डरावने खेल खेलने लगे. वह आदमी डर कर सोचने लगा ये भूत प्रेत तो अब मुझे मार ही डालेंगे. मेरी मृत्यु निश्चित है.

आप समझ सकते हैं कि कल्पतरू के नीचे उसकी इस कल्पना का क्या हश्र हुआ होगा.

दरअसल हमारा दिमाग ही कल्पतरू के माफ़िक है. आप जो सोचते हैं वही होता है. सारी चीजें दो बार सृजित होती हैं. एक बार आपके दिमाग में और फिर दूसरी बार भौतिक संसार में. आज नहीं तो कल, जो आपने सोचा है, वह होकर रहेगा. बहुत बार आपकी कल्पना और चीजों के होने में इतना समय हो जाता है कि आप भूल जाते हैं कि कभी आपने इसके लिए ख्वाब भी देखे होंगे. आप अपने लिए स्वर्ग भी रचते हैं और आप अपने लिए नर्क भी रचते हैं. यदि आप स्वर्ग की सोचेंगे तो आपको स्वर्ग मिलेगा. छप्पन भोग की सोचेंगे तो छप्पन भोग मिलेगा. भूत पिशाच की सोचेंगे तो भूत पिशाच मिलेंगे.

और जब आप समझ जाते हैं कि आप अपने लिए स्वयं स्वर्ग या नर्क बुन सकते हैं तो फिर आप इस तरह की अपनी दुनिया को बनाना छोड़ सकते हैं. स्वर्ग या नर्क बनाने की जरूरत फिर किसी को नहीं होती. आप इन झंझटों से निवृत्त हो सकते हैं. मस्तिष्क की यह निवृत्ति ही मेडिटेशन (ध्यान योग) है.


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