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soni pushpa 04-11-2014 01:23 AM

------------गुस्सा------------
 
दोस्तों,... कई बार हम देखते हैं की लोग हरपल सिर्फ गुस्से में रहते हैं , हँसना क्या होता है शायद ये उन्हें मालुम ही नही होता .. बिना वजह किसी को डाटना , किसी का अपमान करना बस ये ही उन्हें आता है , और दूजो पे गुस्सा करके उन्हें सुकून मिलता है पर इससे आपकी छाप तो दूजो पर बुरी पड़ेगी ही किन्तु इससे पहले आप खुद का नुक्सान अधिक करते हैं ....

रोजमर्रा की जिंदगी में हमें तमाम तरह की मीठी-कड़वी बातों से दो-चार होना पड़ता है। ऐसे में गुस्*सा आना स्*वाभाविक है। लेकिन गुस्*सा अगर लत का रूप ले ले तो इस पर विचार करना जरूरी है। बात-बात पर गुस्*सा करने से हमारी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। देखा गया है कि जो व्यक्ति गुस्सा नहीं करते, वो कम बीमार होते हैं।गुस्सा भी भावना का एक प्रकार है। लेकिन जब यह भावना व्यवहार और आदत में बदल जाती है, तो आप के साथ-साथ दूसरों पर इसका गंभीर असर पड़ने लगता है। इसके लिए जरूरी यह है कि अपने गुस्से की सही वजह को पहचाना जाए और उन पर नियंत्रण रखा जाए। अमूमन हमारे मन में सवाल होते हैं कि हम इससे किस तरह छुटकारा पाएं। लेकिन इससे पहले यह बात जानना जरूरी है कि गुस्से से छुटकारा keise पाएं। जिस व्यक्ति को गुस्सा ज्यादा आता है, उनमें ब्लडप्रेशर, हाइपरटेंशन, गंभीर रूप से पीठ में दर्द की शिकायत देखी गई है। इसके साथ ही ऐसे लोगों को पेट की शिकायत भी हो सकती है।व्यक्ति की भावनाएं (सोच), विचार और आदत में अंतर्संबंध होता है। विचार, सोच को प्रभावित करते हैं और सोच से आदत बदलती है। दूसरे पहलू पर विचार करें तो आपकी आदतें भी विचार में और फिर विचार भावनाओं में परिवर्तन लाते हैं। इन तीनों में से किसी एक में भी बदलाव आने पर बड़ा बदलाव दिखाई देता है।


गुस्से पर नियंत्रण करने के लिए जरूरी है, अपने बारे में ठीक से जानें कि आपका अपने प्रति व्यवहार कैसा है। *अपनी समस्याओं से लड़ने की क्षमता बढ़ाएं और इस बात का पता लगाएं कि उक्त बात आपको वाकई गुस्सा दिलाने वाली थी। *अपने बदले व्यवहार से, जब आप गुस्से में हों, का आकलन करें और पता करें कि इससे आपको चाहने वाले लोग कितना आहत हुए होंगे। *इस बात का पता करें कि आपको किस बात पर गुस्सा आता है। गुस्से के समय इस बात पर ध्यान दें कि आपका शरीर, खास कर हाव-भाव और हाथ-पैरों की गतिविधि कैसी दिखती है। गुस्सा आने पर पानी पीएं। *अपना ध्यान दूसरी ओर केंद्रित करें। इस तरह की कई छोटी-छोटी बातों पर गौर करके आप अपने गुस्से पर काबू पा सकते हैं। गुस्से के दौरान किसी प्रकार की प्रतिक्रिया से बचना चाहिए। इससे लगभग सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं।हां, गुस्सा बना रहने पर इसे दूर करना जरूरी है। जिसकी बात आपको बुरी लगी है, संभव हो तो उसे सामान्य तरीके से अपनी नाराजगी के बारे में बता दें। यदि यह कर पाना ठीक नहीं लग रहा हो तो अपने किसी मित्र से इस बारे में बात करें। यहां इस बात का ध्यान जरूर रखें कि आपकी बात शिकायत में नहीं बदले .हंसने से तन-मन में उत्साह का संचार होता है और दिल से हंसना तो किसी दवा से कम नहीं। यह एक उत्तम टॉनिक का काम करती है। इसलिए आज जगह-जगह पर हास्य क्लब बनाए जा रहे हैं, ताकि भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव से मुक्ति मिले। क्या आप जानते हैं कि बातचीत करते समय हम जितनी ऑक्सीजन लेते हैं उससे छः गुना अधिक ऑक्सीजन हंसते समय लेते हैं। इस तरह शरीर को अच्छी मात्रा में ऑक्सीजन मिल जाती है।



मनोवैज्ञानिक भी तनाव से ग्रसित व्यक्तियों को हंसते रहने की सलाह देते हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जब आप मुस्कराते हैं तो आपका मस्तिष्क अपने आप सोचने लगता है कि आप खुश हैं- यही प्रक्रिया पूरे शरीर में प्रवाहित करता है और आप सुकून महसूस करने लगते हैं। जब आप हंसना शुरू करते हैं तो शरीर में रक्त का संचार तीव्र होता है। तनाव में भी हंसने की क्षमता हो तो दुःख भी कुछ कम लगने लगता है। हंसने के लाभ भी बहुत होते हैं जैसे-* हंसते समय क्रोध नहीं आता। * हंसने से आत्मसंतोष के साथ सुखद अनुभूति होती है। * शरीर में नई स्फूर्ति का संचार होता है। * हंसने से मन में उत्साह का संचार होता है। * ब्लड प्रेशर कम होता है। * हंसी मांसपेशियों में खिंचाव कम करती है।
------------------------------- हंसते-हंसते जीना सीखो----------------------
हंसने से तन-मन में उत्साह का संचार होता है और दिल से हंसना तो किसी दवा से कम नहीं। यह एक उत्तम टॉनिक का काम करती है। इसलिए आज जगह-जगह पर हास्य क्लब बनाए जा रहे हैं, ताकि भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव से मुक्ति मिले। क्या आप जानते हैं कि बातचीत करते समय हम जितनी ऑक्सीजन लेते हैं उससे छः गुना अधिक ऑक्सीजन हंसते समय लेते हैं। इस तरह शरीर को अच्छी मात्रा में ऑक्सीजन मिल जाती है।


मनोवैज्ञानिक भी तनाव से ग्रसित व्यक्तियों को हंसते रहने की सलाह देते हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जब आप मुस्कराते हैं तो आपका मस्तिष्क अपने आप सोचने लगता है कि आप खुश हैं- यही प्रक्रिया पूरे शरीर में प्रवाहित करता है और आप सुकून महसूस करने लगते हैं। जब आप हंसना शुरू करते हैं तो शरीर में रक्त का संचार तीव्र होता है। तनाव में भी हंसने की क्षमता हो तो दुःख भी कुछ कम लगने लगता है। हंसने के लाभ भी बहुत होते हैं जैसे-

* हंसते समय क्रोध नहीं आता।

* हंसने से आत्मसंतोष के साथ सुखद अनुभूति होती है।

* शरीर में नई स्फूर्ति का संचार होता है।

* हंसने से मन में उत्साह का संचार होता है।

* ब्लड प्रेशर कम होता है।

* हंसी मांसपेशियों में खिंचाव कम करती है।

पढ़ा न आपने अब आज से गुस्सा छोडिये और बस सिरफ़ और सिरफ़ हँसते रहिये.. अरे जीवन कितना छोटा है, कितना प्यारा है क्यूँ न इसे हंस के जिया जाय ?

कहिये आपकी क्या राय है?

Dr.Shree Vijay 04-11-2014 03:07 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 

प्रिय सोनी जी, इतने गंभीर विषय को आपने अति सहजता के साथ यहाँ प्रस्तुत किया उसके किये आपका हार्दिक धन्यवाद.........



soni pushpa 04-11-2014 09:22 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
[QUOTE=Dr.Shree Vijay;536972][b][size="3"][color="blue"]
प्रिय सोनी जी, इतने गंभीर विषय को आपने अति सहजता के साथ यहाँ प्रस्तुत किया उसके किये आपका हार्दिक धन्यवाद......

धन्यवाद , डॉ श्री विजय जी ,.. आपने अतिउत्तम शब्दों से इस ब्लॉग को सराहा है ....

ajaysagar 05-11-2014 08:32 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
सही बात है, कोई भी अपराध हॅंसते हँसते नहीं किया जा सकता है !

Pavitra 05-11-2014 11:43 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
Soni Pushpa ji इतना अच्छा विषय यहाँ रखने के लिए शुक्रिया।

मेरा मानना है कि व्यक्ति का व्यवहार उसकी सोच पर निर्भर करता है। कुछ लोग जो अकारण गुस्सा करते हैं वास्तव में अगर हम देखें तो ऐसे लोग ज़्यादा भावुक होते हैं। या ऐसे समझ लें कि उनका अपनी भावनाओं पर काबू नहीं होता। हर छोटी - बड़ी बात वो ह्रदय से लगा लेते हैं। गुस्सा व्यक्ति का विवेक ख़त्म कर देता है , और व्यक्ति ये नहीं सोच पाता कि उसे किस बात पर कैसी प्रतिक्रिया देनी है।

हम दूसरों को वही दे सकते हैं जो हमारे पास होता है। जो चीज़ हमारे पास ही नहीं वो हम दूसरों को कैसे दे सकते हैं। अब जिन लोगों के पास हंसी (ख़ुशी) है ही नहीं वो दूसरों को भी ख़ुशी नहीं दे सकता।
जो व्यक्ति गुस्सा ही करना जानते हैं , वो खुद भी हमेशा गुस्से में रहते हैं और दूसरों को भी वही(गुस्सा) दे सकते हैं। इसलिए खुश रहिये , आप खुश रहेंगे तो दूसरों को भी ख़ुशी दे पाएंगे।

soni pushpa 05-11-2014 03:28 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
Quote:

Originally Posted by ajaysagar (Post 537192)
सही बात है, कोई भी अपराध हॅंसते हँसते नहीं किया जा सकता है !

बहुत बहुत धन्यवाद अजय सागर जी ... आपकी प्रतिक्रिया के लिए ........

soni pushpa 05-11-2014 03:36 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
[QUOTE=Pavitra;537198]Soni Pushpa ji इतना अच्छा विषय यहाँ रखने के लिए शुक्रिया।

मेरा मानना है कि व्यक्ति का व्यवहार उसकी सोच पर निर्भर करता है। कुछ लोग जो अकारण गुस्सा करते हैं वास्तव में अगर हम देखें तो ऐसे लोग ज़्यादा भावुक होते हैं। या ऐसे समझ लें कि उनका अपनी भावनाओं पर काबू नहीं होता। हर छोटी - बड़ी बात वो ह्रदय से लगा लेते हैं। गुस्सा व्यक्ति का विवेक ख़त्म कर देता है , और व्यक्ति ये नहीं सोच पाता कि उसे किस बात पर कैसी प्रतिक्रिया देनी ह

सबसे पहले बहुत बहुत धन्यवाद पवित्रा जी ,... इस ब्लॉग पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए ... जी आपकी बात से मई पूरी तरह से सहमत हूँ .. मेरे ख्याल से जब लोग अकारण गुस्सा करते हैं तब तब या तो उनके कोई मानसिक बीमारी पल रही होती है या फिर कोई समस्या इन्सान को सता रही होती है जरुरत होती है तो सिरफ़ उसे समझने की जब एइसे लोग गुस्सा करे तब की कोई एईसी वजह तो नही जो उसे गुस्सा करने को मजबूर कर रही है .
. दूजे ये की जब एइसे लोग गुस्से से ग्रसित हों तो उन्हें खुद पर कंट्रोल रखकर आगे समस्या का हल सोचना चहिये न की गुस्सा करना चहिये .

पवित्रा जी सही कहा आपने गुस्सा व्यक्ति का विवेक ख़त्म कर देता है और विवेक हिन् व्यक्ति किसी को पसंद नही होते .

rajnish manga 05-11-2014 10:43 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
सोनी जी, क्रोध या गुस्से जैसे विषय को चिंतन के लिए प्रस्तुत करने के लिए आपका धन्यवाद. इसमें आपने स्वयं ही इतना अच्छा निबंध लिखा है कि अन्य सदस्यों को अधिक लिखने की जरुरत ही नहीं पड़ी. आपने बड़ी व्यापकता से विषय के हर पहलु पर गौर किया है. आपने सही कहा कि यदि हम किसी ऐसी स्थिति मैं जो हममें क्रोध उत्पन्न करती है, अपनी प्रतिक्रिया तत्काल न दे कर कुछ क्षणों के लिए स्थगित कर दें तो इतनी ही देर में हमारा आतंरिक संतुलन वापिस आ जाता है और हम अप्रिय व कटु व्यवहार से बच जाते हैं.

क्रोध के दुष्परिणामों के बारे में जानना हो तो दूर जाने की ज़रुरत नहीं. रोज अखबारों में ऐसी बातें पढने को मिलती हैं. कुछ उदाहरण:

1. कुछ पियक्कड़ लोगो ने एक बच्चे से सिगरेट लाने के लिए कहा. बच्चे के इनकार करने पर उसे जान से मार दिया गया.
2. दिल्ली में कार पार्किंग को ले कर दो पडौसियों में झगड़ा हो गया. गुस्से में हथियार निकल आये जिसमें एक लड़के की जान चली गई.
3. तिहाड़ जेल में एक कैदी ने दूसरे कैदी को टूथपेस्ट नहीं दी तो दूसरे ने पहले कैदी की हत्या कर दी.
4. पति पत्नी में झगड़ा हुआ तो पति ने क्रोध में आ कर बच्चों समेत पत्नी की हत्या कर दी और खुद को पुलिस के हवाले कर दिया.

क्रोध सदा इतना वीभत्स तो नहीं होता, किन्तु यह सही है कि क्रोध में व्यक्ति की सोचने समझने की क्षमता क्षीण हो जाती है. इस पर अगर काबू पाया जा सकता है तो संयम से ही पाया जा सकता है. क्रोध और उसको लगाम लगाना दोनों में ही परवरिश का बहुत हाथ होता है. अच्छे संस्कार, दूसरों के प्रति सहिष्णुता, सहनशीलता, सहअस्तित्व जैसे गुण हमें घर से व शिक्षा (तथा शिक्षकों) से मिल सकते हैं. यह किसी भी सभ्य समाज के लिए अत्यावश्यक है.

इसी प्रकार माइथोलॉजी व इतिहास में भी ऐसे अनेकों प्रसंग मिल जायेंगे जहाँ क्रोध की वजह से बड़े बड़े साम्राज्य नष्ट हो गए.

आपने हँसी की जरुरत पर बल दिया है. यह बहुत सुन्दर विचार है. इसकी महत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन मेरा इसमें रिजर्वेशन है. वह यह कि मैंने कुछ गुंडों व असामाजिक तत्वों को देखा है. वो भी बात बेबात पर हँसते रहेंगे लेकिन क्रोध में उत्तेजित होने पर वह लड़ाई-झगड़े और खून-खराबे पर उतर आते हैं. अतः सभी में अच्छे संस्कारों का होना बहुत जरुरी है.

soni pushpa 06-11-2014 12:12 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय रजनीश जी .... जी आपने सही कहा की संस्कार पहली जरुरत है .. किन्तु, कई बार हम देखते हैं की अछे भले घर के लोग भी अत्यधिक गुस्सा करते हैं. थोड़ी मुश्किल आई नही की पारा सातवे आसमान पर चला जाता है उनका , संस्कार को भी गुस्सा खा जाता है और एकपल का वो गुस्सा सारे अछे किये कामो पर पानी फेर देता है .... मैंने ये आपसे इसलिए कहा रजनीश जी क्यूंकि एइसे लोगो से पाला पड़ा है कभी हमारा . जिनका परिवार संस्कारी लोगो में गिना जाता है समाज के लिए भी बहुत अछे काम किये हैं उन्होंने मंदिरों में दान पुण्य का काम पूजा पाठ सब करते है वें,.. पर यदि उनके कहेकम को करने में किसी से जरा भूल हो जय तो वो नही देखते हैं की वें पब्लिक के बिच हैं या अकेले हैं आगबबुला होकरके सामने वाले का अपमान कर देते हैं ..इसलिए जब तक इन्सान खुद पर काबू न रखे तब तक गुस्से का हल बहुत कम समय के लिए निकलेगा .
और हाँ रजनीश जी आपकी बात से सहमत हूँ की हंसी हर समय ठीक नही कहने का आशय मेरा ये था की जीवन छोटा है हम कभी गुस्सा आये उसे पी कर हसकर उस बात बात को ही ताल दे और सामने वाले को ये जताएं की उसकी बात या कम से हमे गुस्सा आया ही नही तब बात सहज लगेगी बशर्ते की उस बात को हम मन में दबा कर न रखे नही तो दुश्मनी की भावना पनपे गी जो की गुस्से से भी अधिक खतरनाक होगी.

आपने बहुत अच्छे से गुस्से के बारे में आपने विचार यहाँ रखे रजनीश जी , इसके लिए आपका बहुत बहुत आभार...

Pavitra 06-11-2014 02:18 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
गुस्से पर काबू पाना आसान काम नहीं होता। और जहाँ तक संस्कारों की बात है तो अच्छे संस्कारों से हमारा विवेक जागृत होता है कि क्या सही है और क्या गलत। परन्तु ये संस्कार बचपन से ही सिखाये जाने चाहिए तभी ये असर कर सकते हैं।
परन्तु हर बार संस्कार प्रभावी नहीं हो पाते गुस्से के समय। क्यूंकि जब व्यक्ति को गुस्सा आता है तब वह अपनी सोचने समझने की शक्ति खो बैठता है। अब जब कुछ सोच ही नहीं पायेगा तब कैसे विचार कर सकेगा कि मैं जो कर रहा हूँ वो सही है कि नहीं ? असल में गुस्से पर काबू पाने का एक ही तरीका है वो है निरंतर अभ्यास। सबसे पहले गुस्से के कारणों का विश्लेषण हो कि किन बातों पर गुस्सा आता है ? फिर ये देखा जाए कि क्या हर बार मेरा एक ही Reaction होता है ऐसी परिस्थिति में या मैं जगह , लोग , आस-पास का वातावरण देख कर React करता हूँ। और फिर हर बार गुस्सा आने पर मुझे कैसे React करना है इसका अभ्यास किया जाए।

Meditation इसमें बहुत प्रभावी रहता है।

मेरा मानना है कि जब हम अपनी कमज़ोरियों से वाकिफ हो जाते हैं तो उन कमज़ोरियों से मुक्ति पाना आसान हो जाता है। तो अगर हमें ये पता हो कि हमें गुस्सा बहुत ज़्यादा आता है , और किन बातों पर गुस्सा आता है तो हम थोड़े से जागरूक होकर उस गुस्से पर आसानी से काबू पा सकते हैं। अगर अपनी बुरी आदतों के हम दास बन जायेंगे तो वो बुरी आदतें हमें Rule करने लगेंगी , और अगर हम अपनी आदतों को अपनी इच्छा का दास बना लें तो ज़िन्दगी ज़्यादा अच्छी हो जाएगी।

अब रही बात हंसी की। तो हंसी के बहुत से रूप होते हैं। बहुत बार हम दिल से ना हंस कर बस दिखावटी हंसी हंस सकते हैं। इसलिए हंसना उतना महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण है सुखी रहना , आनंद में रहना। ख़ुशी तो हमें बहुत सी बाहरी चीज़ों से मिल जाती है पर सुख तो तभी मिलता है जब हम संतुष्ट , और ह्रदय से आनंद महसूस करते हैं।

soni pushpa 06-11-2014 08:03 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
[QUOTE=Pavitra;537446][SIZE="3"]गुस्से पर काबू पाना आसान काम नहीं होता। और जहाँ तक संस्कारों की बात है तो अच्छे संस्कारों से हमारा विवेक जागृत होता है कि क्या सही है और क्या गलत। परन्तु ये संस्कार बचपन से ही सिखाये जाने चाहिए तभी ये असर कर सकते हैं।
परन्तु हर बार संस्कार प्रभावी नहीं हो पाते गुस्से के समय। क्यूंकि जब व्यक्ति को गुस्सा आता है




BAHUT BAHUT DHANYWAD PAVITRA JI ... बहुत अछे से आपने इस ब्लॉग पर आपने मंतव्य विचार रखे हैं और हमे बारीकी से सब समझाया है बहुत बहुत आभारी हूँ मै आपकी.

Arvind Shah 06-11-2014 10:56 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
नमस्कार मित्रों !

सोनीजी ने बहुत ही उत्तम विषय चुना है इस हेतु हार्दिक धन्यवाद !
मित्रों आप सभी के गुस्सा (क्रोध)सम्बन्धि विचार जानने पर मुझे कुछ अधुरापन सा लग रहा है !

गुस्से से सम्बन्धित उपरी बातों का ही विष्लेषण किया गया है... और समधान भी हंसी को बताया गया है !

इस सम्बन्ध में मैं अपने विचार भी रखना चाहुंगा !

गुस्सा और हंसी दोनों ही विकार भाव है !

क्रोध का समाधान हंसी ठीक वैसे ही है जैसे बिल्ली को देख कबुतर आंखे मुंद ले !! ...और समझ जाए की बिल्ली चली गई !

....या आ रही बदबु से परेशान हो इत्र का छिड़काव कर मन को प्रसन्न करें !

मित्रों उपर के उदाहरण में बिल्ली विकार रूप में स्थिर है, वो गई नहीं है जबकी कबुतर के आंख मुंद लेने से कबुतर द्वारा बिल्ली का चले जाना समझना भ्रम मात्र है ! बिल्ली तो बहीं की वहीं है !! मौंका मिलते ही कबुतर का हरि ओम कर देगी !!

यहां आप क्रोध को बिल्ली की जगह और हंसी को कबुतर की जगह रख कर समझने का प्रयास किजियेगा !


चर्चा लम्बी है एक बार में सम्भव नहीं है उपर की बातों का चिन्तन किजियेगा ..... बहुत आनन्द आने वाला है !!

क्रमश:....

soni pushpa 07-11-2014 12:02 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
[QUOTE=Arvind Shah;537659]नमस्कार मित्रों !

सोनीजी ने बहुत ही उत्तम विषय चुना है इस हेतु हार्दिक धन्यवाद !
मित्रों आप सभी के गुस्सा (क्रोध)सम्बन्धि विचार जानने पर मुझे कुछ अधुरापन सा लग रहा है !


बहुत बहुत धन्यवाददेना चाहूंगी आपको ,.. अरविन्द जी ,... आपने इस चर्चा को एक नया मोड़ दिया है . हम सब आपके अगले पॉइंट को पढ़ने के लिए उत्सुक हैं आप आपने विचार अवश्य यहाँ रखियेगा ... धन्यवाद

Arvind Shah 08-11-2014 12:50 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
[QUOTE=soni pushpa;537660]
Quote:

Originally Posted by Arvind Shah (Post 537659)
नमस्कार मित्रों !

सोनीजी ने बहुत ही उत्तम विषय चुना है इस हेतु हार्दिक धन्यवाद !
मित्रों आप सभी के गुस्सा (क्रोध)सम्बन्धि विचार जानने पर मुझे कुछ अधुरापन सा लग रहा है !


बहुत बहुत धन्यवाददेना चाहूंगी आपको ,.. अरविन्द जी ,... आपने इस चर्चा को एक नया मोड़ दिया है . हम सब आपके अगले पॉइंट को पढ़ने के लिए उत्सुक हैं आप आपने विचार अवश्य यहाँ रखियेगा ... धन्यवाद


जी आपको भी बहुत—बहुत धन्यवाद ! बहुत ही रोचक विषय चुना है सो मेरी भी उत्सुकता बढ गयी !

Arvind Shah 08-11-2014 01:32 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
... तो मित्रों अब हम मेरे दूसरे उदाहरण को समझते है ।

उदाहरण था — ...या आ रही बदबु से परेशान हो इत्र का छिड़काव कर मन को प्रसन्न करें !

मित्रो जब शरीर के अंगो में या वातावरण में बदबु आ रही हो तो सामान्यत: इत्र या परफ्युम को छिड़क के समाधान किया जाता है !

अब आप विचार किजिये कि ये सही समाधान है ?

...मित्रों इत्र के छिड़काव से वातावरण अवश्य सुगन्धमय हो जाता है ओर खुशबु को सुंघ के हमारा मन प्रसन्न होने लगता है !

..पर मित्रों जिस समय हम खुशबु सुंघ रहे होते है उसके साथ—साथ बदबु भी सुंघ रहे होते है...पर हमें बदबु का एहसास नहीं होता !......कारण ये है कि इत्र की खुशबु की ज्यादा मात्रा के कारण हमारा दिमाग बदबु को सेन्स नहीं कर पाता और हमें सिर्फ खुशबु ही महसुस होती है !

...तो मित्रों ये उदाहरण अच्छे से समझ के विचार किजिये कि क्या खुशबु ...बदबु का सही समाधान है क्या ?


...जब हम खुशबु को सुंध रहे होते है उस समय बदबु की उपस्थिति भी निश्चय ही है ! बदबु कहीं गई नहीं होती है वो तो बहीं की वहीं ही है !!!

..तो बताईये खुशबु ...बदबु का सही समाधान कैसे हुई ?


मित्रो यहां बदबु की जगह क्रोध को और खुशबु की जगह हंसी को रख कर देखिये ... सब समझ में आ जायेगा !!


मित्रों खुशबु हो या बदबु ... दोनों ही गंध मात्र है ! पहला दूसरे का सम्पूर्ण विकल्प कभी नहीं हो सकता !!


तो मित्रों मेने ये प्रुव कर दिया कि हंसी, गुस्से का सहीं समाधान नहीं है !!

क्रमश:......

kuki 08-11-2014 04:40 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
सोनी पुष्पाजी इतना अच्छा विषय चुनने के लिए धन्यवाद। मैं मानती हूँ जिस तरह से हँसाना ,रोना ,भावुक होना ,संवेदनशील होना सामान्य क्रियाएँ हैं उसी तरह से गुस्सा होना भी एक सामान्य क्रिया है। महत्वपूर्ण ये है की हमें किन बातों पर और कब गुस्सा आता है। बे-बात ही गुस्सा करना ,अपने अहंकार के लिए कमज़ोरों पर गुस्सा करना ,अपनी इच्छा पूरी न होने पर गुस्सा करना ये कमज़ोर व्यक्तित्व की निशानी है। लेकिन कई बार कई बातों पर गुस्सा करना ज़रूरी होता है ,जैसे दिल्ली में दामिनी कांड हुआ था ऐसी घटनाओं पर गुस्सा आना स्वाभाविक है। ऐसे ही हमारे जीवन में कई बार ऐसी घटनाएं होती हैं की गुस्सा आना स्वाभाविक होता है। लेकिन गुस्से को प्रदर्शित करने का हमारा तरीका क्या है ये महत्वपूर्ण होता है। गुस्से में भी हमें हमारी गरिमा का ध्यान रखना चाहिए।

soni pushpa 08-11-2014 05:57 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
[QUOTE=soni pushpa;537644]
Quote:

Originally Posted by Pavitra (Post 537446)
[SIZE="3"]गुस्से पर काबू पाना आसान काम नहीं होता। और जहाँ तक संस्कारों की बात है तो अच्छे संस्कारों से हमारा विवेक जागृत होता है कि क्या सही है और क्या गलत। परन्तु ये संस्कार बचपन से ही सिखाये जाने चाहिए तभी ये असर कर सकते हैं।

बहुत बहुत धन्यवाद पवित्रा जी ... बहुत अछे से आपने इस ब्लॉग पर आपने मंतव्य विचार रखे हैं और हमे बारीकी से सब समझाया है बहुत बहुत आभारी हूँ मै आपकी.


soni pushpa 08-11-2014 06:29 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
बहुत बहुत धन्यवाद अरविन्द जी गुस्सा ब्लॉग पर आपनी प्रतिक्रिया प्रकट करने के लिए ..... आपके तर्क बहुत अछे और समझने वाले हैं . किन्तु आपसे एक निवेदन करना चाहूंगी की जब मैंने ब्लॉग शुरू किया तब पहले ही पेराग्राफ में गुस्से की वजह के बारे में लिखा है और उसका निदान करने के लिए पहले अपनी समस्यायों पर ध्यान के लिए कहा है ,... उसके बाद हँसना क्यूँ जरुर है हंसने के क्या फायदे है ये बताया गया है चूँकि , गुस्से से होते नुक्सान को पाठकों तक पहुचने का मेरा उद्देश्य था इसलिए गुस्से से होते नुकसान से संभलकर keise हँसाने के लाभ मिलते हैं उनका वर्णन करना जरुरी था उनके लाभ बताने जरुरी थे सिरफ़ गुस्से के बारे में लिखने से पाठक इस ब्लॉग को पढ़े बिना बंद कर देते क्यूंकि उन्हें मुझपर गुस्सा आ जाता :laughing:

धन्यवाद...

soni pushpa 08-11-2014 06:44 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
[QUOTE=kuki;538486]सोनी पुष्पाजी इतना अच्छा विषय चुनने के लिए धन्यवाद। मैं मानती हूँ जिस तरह से हँसाना ,रोना ,भावुक होना ,संवेदनशील होना सामान्य क्रियाएँ हैं उसी तरह से गुस्सा होना भी एक सामान्य क्रिया है।


बहुत अछे विचार आपके प्रिय kuki जी बहुत बहुत धन्यवाद ,... जी हाँ गुस्सा भी एक मानव स्वाभाव की क्रिया ही है और आपके कहे अनुसार ये गुस्सा कही कही जरुरी भी है यदि गुस्सा न होता तब समाज में किसी को किसी का डर नही रहता सब अपनी मनमानी करते ...
पर गुस्सा हरपल,.. हर समय के लिए अच्छा नही ,. जो की हमारे स्वाभाव में ढल जाता है जब गुस्सा हमारा ( याने की इंसानी स्वाभाव बन जाय )तब वो हमारे लिए कितना खतरनाक साबित होता है इस बारे में जाताना, ये मेरा आशय था इस ब्लॉग को लिखने के पीछे ...

और जेइसे की आपने दामिनी कांड के समय की बात कही वो गुस्सा एकदम जायज़ है वो गुस्सा व्यक्तिगत नही बल्कि सामाजिक गुस्सा बन गया था पुरे मानव समाज के मन में इस दुखद और घृणित घटना के के लिए तिरस्कार से भरा गुस्सा था"" जो"" की सही था ...

जब निठल्ले कर्मचारी के लिए मालिक गुस्सा करता है वो जायज़ है , किन्तु बिना वजह घर आते ही एक व्यक्ति अपने बीवी बच्चो पर बिना वजह बरस पड़े वो गुस्सा निहायत गलत बात है .. और ये गुस्सा उसके खुद के लिए हानिकारक है .

धयवाद kuki जी..

kuki 09-11-2014 08:12 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
सोनी पुष्पा जी मैं आपकी बात से सहमत हूँ की जब गुस्सा हमारा स्वभाव बन जाता है तो वो वाकई ख़राब होता है ,और सबसे ज़्यादा नुकसान हमें ही पहुंचता है। जैसे आपने कहा की कोई व्यक्ति घर आते ही अपने बीवी -बच्चों पर बरस पड़े तो ये सही नहीं है ,लेकिन कई बार हमें पता नहीं होता की कोई व्यक्ति ऐसा व्यव्हार क्यों कर रहा है ,हम सिर्फ ऊपर से देखते हैं। हो सकता है वो व्यक्ति वाकई परेशान हो ,बाहर या उसके ऑफिस में उसके साथ ख़राब व्यव्हार हुआ हो अच्छा काम करने के बाद भी उसका बॉस या उसके सहकर्मी उपेक्षा करते हों ,कमियां निकलते हों तो फ्रस्ट्रेशन में व्यक्ति अपना गुस्सा अपनों पर ही निकलता है। अगर कोई व्यक्ति बात -बात पर गुस्सा करता हो तो हमें उसके पीछे की वजह और उसकी परिस्थिति को समझने की कोशिश करनी चाहिए ,और हो सके तो उस व्यक्ति की मदद करनी चाहिए ताकि ये गुस्सा उस व्यक्ति का स्थाई स्वभाव ना बन पाये। हमें उसे इमोशनली सपोर्ट करना चाहिए।

soni pushpa 10-11-2014 12:35 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
[QUOTE=kuki;538913]सोनी पुष्पा जी मैं आपकी बात से सहमत हूँ की जब गुस्सा हमारा स्वभाव बन जाता है तो वो वाकई ख़राब होता है ,और सबसे ज़्यादा नुकसान हमें ही पहुंचता है। जैसे आपने कहा की कोई व्यक्ति घर आते ही अपने बीवी -बच्चों पर बरस पड़े तो ये सही नहीं है ,लेकिन कई बार हमें पता

प्रिय kuki जी ,... बिलकुल सही कहा आपने , की जब कोई घर आकर सीधे बरस पड़े तब उसकी वजह जानना बहुत जरुरी होता है न की सामने वाले के गुस्से के सामने आप भी गुस्सा करने लगो और एक बात में यहाँ ये जरुर कहना चाहूंगी की एइसा गुस्सा एक दो दिन की बात हो तब ठीक है किन्तु यदि हर रोज एइसा होते रहे तब घर अखाडा बन जायेगा जहा हमेशा वाकयुद्ध होगा और साथ ही क्लेश के वातावरण में घर के सभी सदस्यों का जीना दूभर हो जायेगा इससे अच्छा ये होगा की घर में आकार अपना गुस्सा निकलने की बजाय घर के सदस्यों से बात की जाय ..

इस सूत्र को आगे बढाने के लिए आपकी अभारी हु kuki जी धन्यवाद

Arvind Shah 10-11-2014 01:50 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
Quote:

Originally Posted by soni pushpa (Post 538512)
बहुत बहुत धन्यवाद अरविन्द जी गुस्सा ब्लॉग पर आपनी प्रतिक्रिया प्रकट करने के लिए ..... आपके तर्क बहुत अछे और समझने वाले हैं . किन्तु आपसे एक निवेदन करना चाहूंगी की जब मैंने ब्लॉग शुरू किया तब पहले ही पेराग्राफ में गुस्से की वजह के बारे में लिखा है और उसका निदान करने के लिए पहले अपनी समस्यायों पर ध्यान के लिए कहा है ,... उसके बाद हँसना क्यूँ जरुर है हंसने के क्या फायदे है ये बताया गया है चूँकि , गुस्से से होते नुक्सान को पाठकों तक पहुचने का मेरा उद्देश्य था इसलिए गुस्से से होते नुकसान से संभलकर keise हँसाने के लाभ मिलते हैं उनका वर्णन करना जरुरी था उनके लाभ बताने जरुरी थे सिरफ़ गुस्से के बारे में लिखने से पाठक इस ब्लॉग को पढ़े बिना बंद कर देते क्यूंकि उन्हें मुझपर गुस्सा आ जाता :laughing:

धन्यवाद...


जी सोनीजी मैं आपकी बात से भी सहमत हूं ! पर से सतही कारण है !! असली जड़ नहीं है ! जब तक जडे नहीं काटी जायेगी तब तक असली समाधान नहीं होन वाला !!

soni pushpa 10-11-2014 10:28 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
Quote:

Originally Posted by Arvind Shah (Post 538955)
जी सोनीजी मैं आपकी बात से भी सहमत हूं ! पर से सतही कारण है !! असली जड़ नहीं है ! जब तक जडे नहीं काटी जायेगी तब तक असली समाधान नहीं होन वाला !!

जी अरविन्द जी ... आप आपने विचार जरुर रखें .
keise इस समस्या की जड़ों को कटा जा सकता है? इस बारे में आपसे हम सब जानना चाहेंगे . इस ब्लॉग को कई लोग जब पढेंगे तब आपकी कही बातो से किसी को अपना गुस्सा कम करने की राह मिल जाये शायद .

बहुत बहुत धन्यवाद ...

rafik 10-11-2014 01:08 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
हम चिल्लाते क्यों हैं गुस्से में? एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। अचानक उन्होंने सभी शिष्यों से एक सवाल पूछा। बताओ जब दो लोग एक दूसरे पर गुस्सा करते हैं तो जोर-जोर से चिल्लाते क्यों हैं? शिष्यों ने कुछ देर सोचा और एक ने उत्तर दिया : हम अपनी शांति खो चुके होते हैं इसलिए चिल्लाने लगते हैं। संत ने मुस्कुराते हुए कहा : दोनों लोग एक दूसरे के काफी करीब होते हैं तो फिर धीरे-धीरे भी तो बात कर सकते हैं। आखिर वह चिल्लाते
क्यों हैं? कुछ और शिष्यों ने भी जवाब दिया लेकिन संत संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने खुद उत्तर
देना शुरू किया। वह बोले : जब दो लोग एक दूसरे से नाराज होते हैं तो उनके दिलों में दूरियां बहुत बढ़ जाती हैं। जब दूरियां बढ़ जाएं तो आवाज को पहुंचाने के लिए उसका तेज होना जरूरी है।
दूरियां जितनी ज्यादा होंगी उतनी तेज चिल्लाना पड़ेगा। दिलों की यह दूरियां ही दो गुस्साए लोगों को चिल्लाने पर मजबूर कर देती हैं। वह आगे बोले, जब दो लोगों में प्रेम होता है तो वह एक दूसरे से बड़े आराम से और धीरे-धीरे बात करते हैं। प्रेम दिलों को करीब लाता है और करीब तक आवाज पहुंचाने के लिए चिल्लाने की जरूरत नहीं। जब दो लोगों में प्रेम और भी प्रगाढ़ हो जाता है तो वह खुसफुसा कर भी एक दूसरे तक अपनी बात पहुंचा लेते हैं। इसके बाद प्रेम की एक अवस्था यह भी आती है कि खुसफुसाने की जरूरत भी नहीं पड़ती। एक दूसरे की आंख में देख कर ही समझ आ जाता है कि क्या कहा जा रहा है। शिष्यों की तरफ देखते हुए संत बोले : अब जब
भी कभी बहस करें तो दिलों की दूरियों को न बढ़ने दें। शांत चित्त और धीमी आवाज में बात करें। ध्यान रखें कि कहीं दूरियां इतनी न बढ़े जाएं कि वापस आना ही मुमकिन न हो।

Arvind Shah 10-11-2014 10:47 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
Quote:

Originally Posted by soni pushpa (Post 539110)
जी अरविन्द जी ... आप आपने विचार जरुर रखें .
Keise इस समस्या की जड़ों को कटा जा सकता है? इस बारे में आपसे हम सब जानना चाहेंगे . इस ब्लॉग को कई लोग जब पढेंगे तब आपकी कही बातो से किसी को अपना गुस्सा कम करने की राह मिल जाये शायद .

बहुत बहुत धन्यवाद ...

जी बिल्कुल मैं भी यही चाहता हू कि सभी उस स्त्रोत को जान लें जहां से क्रोध जनम लेता है !!

Arvind Shah 10-11-2014 11:18 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
मित्रों अब मैं क्रोध के सम्बन्ध में अपनी बात आगे बढाता हूं !

मित्रों सदियों से ऋषि—मुनि, साधु—संत कहते आये है कि ये मत करो, वो मत करो ! ..और कोई पुछ ले कि क्यो ? तो वो कारण भी बता देते है कि इससे ये होगा... उससे वो हो जायेगा !!
...और ये सब कहते सुनते सदियां बित गई पर कोई सुधारा नहीं हुआ ! सब कुछ जस का तस है !
...कारण कि उन्होने कभी भी वास्तविकता को लोगो में परोसा ही नहीं ! ...और इसका भी कारण था कि इन सब बुराईयों को सही रूप में समझने के लिए पर्याप्त धैर्य, लगन, चिन्तन, मनन, विषद् अध्ययन, और व्यवहारि ज्ञान की आवश्यकता थी ! जिसकी साधारण जन मानस में अपेक्षा व्यर्थ थी !.....और कदाचित् बताते भी तो निरसता के कारण उब कर भाग जाते !

इसीलिए उन्होने इसे सरस बनाया और विभीन्न कहानियों और दृष्टान्तो से इन बुराईयों से अवगत कराया और इनसे होने वाले नुकसान आदि को बताया !

क्रमश:....

Rajat Vynar 11-11-2014 07:35 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
इसमें इतनी लम्बी-चौड़ी बहस करने की क्या ज़रुरत है? फिल्म में पाँच मिनट के एक गीत में सारा गुस्सा दूर हो जाता है. उदाहरण के लिए प्रस्तुत है वर्ष १९८२ में लोकार्पित हिंदी फिल्म देश प्रेमी का एक गीत- नफ़रत की लाठी तोड़ो, लालच का खंजर फेंको ज़िद के पीछे मत दौड़ो, तुम प्रेम के पंछी हो देश प्रेमियों, आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों ... देखो, ये धरती, हम सब की माता है सोचो, आपस में, क्या अपना नाता है हम आपस में लड़ बैठे, हम आपस में लड़ बैठे तो देश को कौन सम्भालेगा कोई बाहर वाला अपने घर से हमें निकालेगा दीवानों होश करो, मेरे देश प्रेमियों ... मीठे, पानी में, ये ज़हर न तुम घोलो जब भी, कुछ बोलो, ये सोच के तुम बोलो भर जाता है गहरा घाव जो बनता है गोली से पर वो घाव नहीं भरता जो बना हो कड़वी बोली से तो मीठे बोल कहो, मेरे देश प्रेमियों ... तोड़ो, दीवारें, ये चार दिशाओं की रोको, मत राहें इन, मस्त हवाओं की पूरब पश्चिम उत्तर दक्खिन वालों मेरा मतलब है इस माटी से पूछो क्या भाषा क्या इसका मज़हब है फिर मुझसे बात करो, मेरे देश प्रेमियों ...

soni pushpa 12-11-2014 12:30 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
[QUOTE=Arvind Shah;539291]मित्रों अब मैं क्रोध के सम्बन्ध में अपनी बात आगे बढाता हूं !

मित्रों सदियों से ऋषि—मुनि, साधु—संत कहते आये है कि ये मत करो, वो मत करो ! ..और कोई पुछ ले कि क्यो ? तो वो कारण भी बता देते है कि इससे ये होगा... उससे वो हो जायेगा !!
...और ये सब कहते सुनते सदियां बित गई पर कोई सुधारा नहीं हुआ ! सब कुछ जस का तस है !
...कारण कि उन्होने कभी भी वास्तविकता को लोगो में परोसा ही नहीं ! ...और इसका भी कारण था कि इन सब बुराईयों को सही रूप में समझने के लिए पर्याप्त धैर्य, लगन, चिन्तन, मनन, विषद् अध्ययन,

बहुत खूब अरविन्द शाह जी ,.. हमे इंतज़ार रहेगा आपकी लेखनी के द्वारा दिए गए सारे समाधान का बहुत बहुत धन्यवाद आप इतने अच्छे से समझा रहे हो

soni pushpa 12-11-2014 12:33 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
[QUOTE=Rajat Vynar;539427]इसमें इतनी लम्बी-चौड़ी बहस करने की क्या ज़रुरत है? फिल्म में पाँच मिनट के एक गीत में सारा गुस्सा दूर हो जाता है. उदाहरण के लिए प्रस्तुत है वर्ष १९८२ में लोकार्पित हिंदी फिल्म देश प्रेमी का एक गीत- नफ़रत की लाठी तोड़ो, लालच का खंजर फेंको ज़िद के





... रजत जी भले ही ये गाना फिल्मी है किन्तु शब्द सही हैं इसके गाने के द्वारा ही सही आपने अच्छा लिखा है बहुत बहुत धन्यवाद रजत जी

soni pushpa 12-11-2014 12:35 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
Quote:

Originally Posted by rafik (Post 539128)
हम चिल्लाते क्यों हैं गुस्से में? एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। अचानक उन्होंने सभी शिष्यों से एक सवाल पूछा। बताओ जब दो लोग एक दूसरे पर गुस्सा करते हैं तो जोर-जोर से चिल्लाते क्यों हैं? शिष्यों ने कुछ देर सोचा और एक ने उत्तर दिया : हम अपनी शांति खो चुके होते हैं इसलिए चिल्लाने लगते हैं। संत ने मुस्कुराते हुए कहा : दोनों लोग एक दूसरे के काफी करीब होते हैं तो फिर धीरे-धीरे भी तो बात कर सकते हैं। आखिर वह चिल्लाते
क्यों हैं? कुछ और शिष्यों ने भी जवाब दिया लेकिन संत संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने खुद उत्तर
देना शुरू किया। वह बोले : जब दो लोग एक दूसरे से नाराज होते हैं तो उनके दिलों में दूरियां बहुत बढ़ जाती हैं। जब दूरियां बढ़ जाएं तो आवाज को पहुंचाने के लिए उसका तेज होना जरूरी है।
भी कभी बहस करें तो दिलों की दूरियों को न बढ़ने दें। शांत चित्त और धीमी आवाज में बात करें। ध्यान रखें कि कहीं दूरियां इतनी न बढ़े जाएं कि वापस आना ही मुमकिन न हो।




बहुत खूब bhai बहुत अछे से इस कहानी के द्वारा गुस्से की वजह को समझाया आपने बहुत बहुत धन्यवाद bhai

Arvind Shah 14-11-2014 04:26 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
Quote:

Originally Posted by arvind shah (Post 539291)
मित्रों अब मैं क्रोध के सम्बन्ध में अपनी बात आगे बढाता हूं !

मित्रों सदियों से ऋषि—मुनि, साधु—संत कहते आये है कि ये मत करो, वो मत करो ! ..और कोई पुछ ले कि क्यो ? तो वो कारण भी बता देते है कि इससे ये होगा... उससे वो हो जायेगा !!
...और ये सब कहते सुनते सदियां बित गई पर कोई सुधारा नहीं हुआ ! सब कुछ जस का तस है !
...कारण कि उन्होने कभी भी वास्तविकता को लोगो में परोसा ही नहीं ! ...और इसका भी कारण था कि इन सब बुराईयों को सही रूप में समझने के लिए पर्याप्त धैर्य, लगन, चिन्तन, मनन, विषद् अध्ययन, और व्यवहारि ज्ञान की आवश्यकता थी ! जिसकी साधारण जन मानस में अपेक्षा व्यर्थ थी !.....और कदाचित् बताते भी तो निरसता के कारण उब कर भाग जाते !

इसीलिए उन्होने इसे सरस बनाया और विभीन्न कहानियों और दृष्टान्तो से इन बुराईयों से अवगत कराया और इनसे होने वाले नुकसान आदि को बताया !

क्रमश:....


तो मित्रों इन साधु—संतो द्वारा बताई मोटी—मोटी बातों के पिछे छुपी असल बात को हमारे मुल विषय क्रोध (गुस्सा)के बारे में जानते है !
सम्पूर्ण विश्व में ढेरों दर्शन प्रचलित है जिनमें से हरेक ने अपनी—अपनी तरह से क्रोध के बारे में व्यख्या की है । इनमें से एक जैन दर्शन के सपन्दर्भ में बात करूंगा !

जैन दर्शन में मोटे तौर पर इन चार को कषाय माना है —
क्रोध, मान, माया और लोभ !

इन सब का मुल स्त्रोत माना है — राग को !

राग का मतलब आसक्ती, लगाव, मोह आदि है !

दूनिया में आपको जहां कहीं भी क्रोध होता नज़र आये तो पक्का समझना कि इसके मुल में यही राग है !


राग यानि आसक्ती, लगाव, मोह आदि से अपेक्षा का जन्म होता है और जब अपेक्षा पुरी नहीं होती तो क्रोध का जन्म होता है ।

कैसे ..? इसका धरातलिय अध्ययन आगे करेंगे तब तक आप भी विचार किजिये !!!

क्रमश:...

soni pushpa 15-11-2014 03:40 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
[QUOTE=Arvind Shah;539928]तो मित्रों इन साधु—संतो द्वारा बताई मोटी—मोटी बातों के पिछे छुपी असल बात को हमारे मुल विषय क्रोध (गुस्सा)के बारे में जानते है !
सम्पूर्ण विश्व में ढेरों दर्शन प्रचलित है जिनमें से हरेक ने अपनी—अपनी तरह से क्रोध के बारे में व्यख्या की है । इनमें से एक जैन दर्शन के सपन्दर्भ में बात करूँगा


..
हार्दिक धन्यवाद अरविन्दजी आपके विचारो को जानकर ख़ुशी हुई ... आगे आप लिखें इसका इंतज़ार रहेगा

Arvind Shah 16-11-2014 08:37 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
Quote:

Originally Posted by arvind shah (Post 539928)
तो मित्रों इन साधु—संतो द्वारा बताई मोटी—मोटी बातों के पिछे छुपी असल बात को हमारे मुल विषय क्रोध (गुस्सा)के बारे में जानते है !
सम्पूर्ण विश्व में ढेरों दर्शन प्रचलित है जिनमें से हरेक ने अपनी—अपनी तरह से क्रोध के बारे में व्यख्या की है । इनमें से एक जैन दर्शन के सपन्दर्भ में बात करूंगा !

जैन दर्शन में मोटे तौर पर इन चार को कषाय माना है —
क्रोध, मान, माया और लोभ !

इन सब का मुल स्त्रोत माना है — राग को !

राग का मतलब आसक्ती, लगाव, मोह आदि है !

दूनिया में आपको जहां कहीं भी क्रोध होता नज़र आये तो पक्का समझना कि इसके मुल में यही राग है !


राग यानि आसक्ती, लगाव, मोह आदि से अपेक्षा का जन्म होता है और जब अपेक्षा पुरी नहीं होती तो क्रोध का जन्म होता है ।

कैसे ..? इसका धरातलिय अध्ययन आगे करेंगे तब तक आप भी विचार किजिये !!!

क्रमश:...



मित्रों अब मेरी कही बातों को समझने के लिए रजनिशजी द्वारा पोस्ट की गई पोस्ट संख्या 8 में दिये इन उदा​हरणों को समझते है—

1. कुछ पियक्कड़ लोगो ने एक बच्चे से सिगरेट लाने के लिए कहा. बच्चे के इनकार करने पर उसे जान से मार दिया गया.

...... इस उदाहरण में पियक्कड लोगों की आसक्ति सीगरेट में थी और उसे प्रस्तुत करने की अपेक्षा बच्चे से थी ! जो पुरी नहीं हुई और गुस्सा आया !!

2. दिल्ली में कार पार्किंग को ले कर दो पडौसियों में झगड़ा हो गया. गुस्से में हथियार निकल आये जिसमें एक लड़के की जान चली गई.

इस उदाहरण में आसक्ति पार्कींग स्थान की थी और दोनों पार्टीयों को एक दूसरे से अपेक्षा थी की वो गाड़ी पार्क करेगा !!

इस उदाहरण में दूसरा कारण अपने ईगो की आसक्ति का भी हो सकता है !!

3. तिहाड़ जेल में एक कैदी ने दूसरे कैदी को टूथपेस्ट नहीं दी तो दूसरे ने पहले कैदी की हत्या कर दी.

इस उदाहरण में आसक्ति टूथपेस्ट की थी और अपेक्षा दूसरे कैदी द्वारा उसे प्रस्तुत करने की थी !!


4. पति पत्नी में झगड़ा हुआ तो पति ने क्रोध में आ कर बच्चों समेत पत्नी की हत्या कर दी और खुद को पुलिस के हवाले कर दिया.

ये उदाहरण थोड़ा लिक से हट कर है ! इसमें मुल कारण तो वही है पर ज्यादा कारण मानसिक विकृति है !!

क्रमश:...

Rajat Vynar 17-11-2014 11:05 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
पको बहुत गुस्सा आता है और गुस्से मेंबेकाबू हो जाते हैं आप तो ये कुछ कदम आपके लिए काफई कारगर साबित हो सकतेहैं। ट्राई तो कीजिए...
http://s28.postimg.org/qaqchlsu5/pho...d_45087942.jpg

Rajat Vynar 17-11-2014 11:06 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
http://s2.postimg.org/qk7173b55/phot...d_45087932.jpg

Rajat Vynar 17-11-2014 11:06 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
http://s24.postimg.org/5zz97y6o5/pho...d_45087933.jpg

Rajat Vynar 17-11-2014 11:07 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
http://s24.postimg.org/dhd20wll1/pho...d_45087935.jpg

Rajat Vynar 17-11-2014 11:07 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
http://s24.postimg.org/selj1wyth/pho...d_45087936.jpg

Rajat Vynar 17-11-2014 11:08 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
http://s24.postimg.org/m7a51r32d/pho...d_45087937.jpg

Rajat Vynar 17-11-2014 11:08 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
http://s24.postimg.org/45r03y91h/pho...d_45087938.jpg


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