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-   -   मजेदार मनोरंजनात्मक :......... (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=11627)

Dr.Shree Vijay 10-01-2014 05:38 PM

मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 


मजेदार मनोरंजनात्मक :.........



Dr.Shree Vijay 12-01-2014 11:47 AM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 
5 Attachment(s)

Dr.Shree Vijay 12-01-2014 11:48 AM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

Dr.Shree Vijay 12-01-2014 11:48 AM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

Dr.Shree Vijay 12-01-2014 11:48 AM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

Dr.Shree Vijay 12-01-2014 11:49 AM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

Dr.Shree Vijay 22-01-2014 04:55 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

Dr.Shree Vijay 22-01-2014 06:05 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

Dr.Shree Vijay 22-01-2014 08:12 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

Dr.Shree Vijay 24-01-2014 08:02 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

Dr.Shree Vijay 24-01-2014 08:04 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

Dr.Shree Vijay 26-01-2014 10:53 AM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

Dr.Shree Vijay 17-02-2014 10:00 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 



Just Plane Comedy :


Dr.Shree Vijay 19-02-2014 05:35 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

KADLI KE PAAT कदली के पात :
चतुर नरन की बात में, बात बात में बात !
जिमी कदली के पात में पात पात में पात !!

आठवां अजूबा - हास्य-व्यंग :.........

अडोसी-पडोसी और मोहल्ले वाले मुझे मनोरंजन कह्कर पुकारते हैं ! उनका कहना है कि मैं अपने मां-बाप के मनोरंजन का नतीजा हूँ ! जब मैंने आईने में अपनी शक्ल देखी तो मुझे भी पडोसियों की बात पर यकीन करना पडा ! जैसी मेरी शक्ल सूरत है वो तो किसी के मनोरंजन का ही नतीजा हो सकती है ! यदि मेरे माता-पिता अपने मनोरंजन के बजाय मेरे बारे में ज़रा सा भी गम्भीर होते या उन्होंने ज़रा सी भी मेहनत की होती तो मेरी शक्ल, मेरी अक्ल, मेरा ढांचा, मेरा कद, मेरा नाम, मेरा काम, मेरा दाम कुछ और ही होता ! लेकिन मनोरंजन को कौन टाल सकता है ? ….

मेरा मतलब है कि होनी को कौन टाल सकता है ? उनका मनोरंजन ठहरा, मेरी ऐसी-तैसी फिर गई ! मैंने तो देखा नहीं, लोग कहते हैं कि होली से ठीक नौ महीने पहले मेरे पूज्य पिता जी ने मनोरंजन ही मनोरंजन में मेरी पूज्य माता जी पर अपने प्रेम रूपी रंगो की बौछार की थी ! उसी मनोरंजन के परिणाम स्वरूप ठीक होली वाले दिन मैं पैदा हुआ ! लम्बा सिर, लम्बा मुंह, लम्बे हाथ, लम्बे पैर ! सीधे खडे बाल ! चाहे जितना तेल लगा लो चाहे जितनी कंघी कर लो सिर के बाल हमेशा सरकंडे की तरह खडे रहते थे ! मेरे रंग में और नान-स्टिक तवे के रंग में कोई अंतर नहीं कर पाता था !

हर अंग बेडौल ! ना कोई माप ना कोई तौल ! पता ही नहीं लगता कि सिर बिच मुंह है कि मुंह बिच सिर है ! जब मैं खडा होता हूं तो ऐसा लगता है जैसे किसी ने बांस पर कपडे टांग दिए हों ! जब मैं बैठता हूं तो ऐसा लगता है जैसे किसी ने होलिका दहन के लिए लकडियां इकट्ठा कर के सज़ा कर रख दी हों ! “जसुमति मैया से बोले नंदलाला” की तर्ज पर मैंने अपनी माता-श्री से कई बार पूछा कि मेरे साथ ही ऐसा मनोरंजन क्यों ? परंतु मेरा प्रश्न सुनकर हर बार वे मौन समाधि में चली गईं !:.........



Dr.Shree Vijay 19-02-2014 05:37 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

KADLI KE PAAT कदली के पात :
चतुर नरन की बात में, बात बात में बात !
जिमी कदली के पात में पात पात में पात !!

आठवां अजूबा - हास्य-व्यंग :.........

उधर जब मैं पैदा हुआ तो भी हादसा हो गया ! शायद होली के दिन पैदा होने के कारण पैदा होते ही मैंने दाई के उपर रंग बिरंगा सू-सू कर दिया ! दाई कुछ ईनाम-कराम पाने की तमन्ना लिए उसी प्रकार उठ कर कमरे से बाहर बैठे मेरे पिता-श्री को बेटा होंने की खबर सुनाने के लिए हिरनी की तरह छलांगे लगाते हुए बाहर आई ! बेटे की खबर सुनकर खुशी में मेरे पिता-श्री ने दाई को अपने बाजुओं में भरकर उसे चूमना चाहा ! लेकिन उसके मुंह और कपडों पर मेरा रंग बिरंगा सू-सू देखकर पीछे हट गए ! इस प्रकार से मेरे सू-सू ने मेरे पिता-श्री को पर-स्त्री-चुम्बन के आरोप में कुम्भी पाक नर्क में जाने से बचा लिया !

हरि कथा कि तरह मेरे नाम भी अनंत हैं ! मां मुझे राज दुलारा कहकर बुलाती है ! उसका कहना है कि मेरा बेटा चाहे जैसा भी है, है तो मेरा ! मैं तो इसे नौ महीने कोख में लिए ढोती- डोलती रही हूं ! पिता जी मुझे निकम्मा और नकारा कहकर बुलाते हैं ! स्कूल में मेरे पूज्य गुरुजन मुझे डफर और नालायक कहते हैं ! मेरी सखियां (गर्ल-फ्रेन्डस) प्यार से मुझे कांगचिडि कहती हैं ! मेरे बाल-सखा मेरे नाम के बदले मुझे बेवकूफ, गधा, ईडियट, उल्लू आदि आदि विशेषणों से अलंकरित करते रहते हैं ! हमारे मुहल्ले में एक सरदार जी रहते हैं वो मुझे झांऊमांऊ कहकर मुस्कराते हुए मेरे हाथ में एक टाफी पकडा देते हैं ! मैं खुश हो जाता हूं !:.........



Dr.Shree Vijay 19-02-2014 05:39 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

KADLI KE PAAT कदली के पात :
चतुर नरन की बात में, बात बात में बात !
जिमी कदली के पात में पात पात में पात !!

आठवां अजूबा - हास्य-व्यंग :.........

मैं पूरा का पूरा ओ-पाज़िटिव हूं ! अर्थात जैसे ओ-पाज़िटिव ग्रुप का ब्लड सबको रास आ जाता है उसी प्रकार अडोसी-पडोसी अपनी जरुरत के मुताबिक अपने अपने तरीके से मेरा उपयोग कर लेते हैं ! मोहल्ले में गुप्ता जी की कोठी बन रही थी ! अचानक रात को तेज हवा चलने के कारण उनकी छत पर टंगा हुआ नज़रबट्टू कहीं उड गया ! दूसरे दिन जब गुप्ता जी को पता चला तो उन्हें बिना नज़रबट्टू के कोठी को नज़र लगने का डर सताने लगा ! वे दौडे-दौडे आए और मुझे काले कपडे पहना कर अपनी छत पर ले गए ! मैं सारा दिन जीभ निकाल कर उनकी छत पर खडा रहा ! शाम को गुप्ता जी का लडका बाज़ार से नया नज़रबट्टू लेकर आया तो उसने वो नज़रबट्टू छत पर टांगा तब मुझे नीचे उतारा !

शर्मा जी हाथ में झोला लिए बाजार से सामान लेने जा रहे थे ! तभी मैली-कुचैली सी 18-20 साल की दो लडकियां शर्मा जी से खाने के लिए कुछ पैसे मांगने लगीं ! शर्मा जी को बातों में उलझा कर उनका पर्स मार लिया ! शर्मा जी को पता लग गया ! उन्होंने शोर मचा दिया ! मोहल्ला इकट्ठा हो गया ! लडकियां बहुत शातिर थीं ! पैरों पर पानी नही पडने देती थीं ! तभी किसी ने पुलिस को फोन कर दिया ! थानेदार साहब दो सिपाही लेकर मौका-ए-वारदात पर आ धमके ! उन्होंने भी उनसे सच उगलवाने की बडी कोशिश की लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात ! तभी उनकी नज़र मुझ पर पडी ! थानेदार साहब ने मेरी तरफ इशारा करके उन लडकियों से कहा कि सच सच बता दो नहीं तो तुम्हारी शादी इस लंगूर से कर देंगें ! मेरी तो शक्ल ही काफी है !दोनों लडकियों ने अपने अपने ब्लाउज़ों में हाथ डाला और शर्मा जी के पर्स के साथ तीन पर्स और निकाल कर थानेदार के हाथ पर रख दिए !:.........



Dr.Shree Vijay 19-02-2014 05:44 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

KADLI KE PAAT कदली के पात :
चतुर नरन की बात में, बात बात में बात !
जिमी कदली के पात में पात पात में पात !!

आठवां अजूबा - हास्य-व्यंग :.........

पिछले साल कुछ साथी मेले में जाने का प्रोग्राम बनाने लगे ! सौ-सौ रुपये इकट्ठा करके पैसे बिरजू को पकडा दिए ! मैंने भी साथ जाने की जिद पकड ली ! मेले में बहुत भीड थी ! हम लोग अपनी मस्ती में टहल रहे थे ! लोग मेला कम मुझे अधिक देख रहे थे ! कोई मुझे देखकर हंस रहा था तो कोई भगवान की कुदरत की दुहाई दे रहा था ! हलवाई की दुकान आई तो जलेबी खाने का मन कर आया ! जलेबी तुलवा कर जब पैसे देने लगे तो पता चला कि जेब खाली हो चुकी है !

कोई जेबकतरा अपने कौशल का प्रदर्शन कर गया था ! सबके चेहरे सफेद पड गए ! वापिस जाने का किराया भी नहीं था ! करें तो क्या करें ? बिरजू का दिमाग बहुत काम करता है ! उसने हलवाई से एक चादर मांगी ! दो लकडियां लेकर गाड दीं ! रस्सी से उन पर चादर बांध कर पर्दा सा बना दिया ! मेरे कपडे उतार कर मुझे चादर के पीछे खडा कर दिया एक गत्ते पर “पांच रुपये में दुनिया का आठ्वां अजूबा देखिए” लिख कर बोर्ड टांग दिया ! शाम तक बिरजू की जेब नोटों से भर गई ! :.........



Dr.Shree Vijay 19-02-2014 05:46 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

KADLI KE PAAT कदली के पात :
चतुर नरन की बात में, बात बात में बात !
जिमी कदली के पात में पात पात में पात !!

आठवां अजूबा - हास्य-व्यंग :.........

उसकी अम्मा जी का कहना है कि जब वो पैदा हुई थी तब भी उसके सिर पर बाल नहीं थे ! आज जब वो “मेरी उमर है सोलह साल, जमाना दुश्मन है” गीत गुनगुनाती रहती है तब भी उसके सिर पर बाल नहीं हैं ! उसकी अम्मा जी बडे गर्व से कहती हैं आज तक मेरी बेटी ने जमीन पर पैर नहीं रखा ! कैसे रखती ? 150 किलो वज़न का पहलवानी शरीर है उसका ! हर चीज़ गोल-मटोल ! बस सिर और मुंह के बारे में मार खा गई !

उसका मुंह बिल्कुल चुहिया जैसा है ! पूरा रोज़गार कार्यालय है ! उसके कारण पांच लोगों को रोजगार मिला हुआ है ! पैदल तो वो चल ही नहीं सकती ! रिक्शा पर बैठाने-उतारने, उसके कपडे आदि बदलने के लिए अलग अलग नौकर हैं ! मैं तो उसे ही आंठवा अजूबा मानता हूं ! लेकिन मैं बहुत खुश हूं ! क्योंकि मेरी शादी उसके साथ तय हो गई है ! आप सब लोगो को मेरा खुला निमंत्रण है ! नोटों से भरा शगुन का लिफाफा हाथ में लेकर शादी में जरुर आना ! :.........



Dr.Shree Vijay 11-03-2014 06:13 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

"व्यवस्था" :

http://1.bp.blogspot.com/_tI1KZVgR-G...Rg/s1600/k.JPG

प्रदीप चौबे :

साभार :.........




Dr.Shree Vijay 19-03-2014 06:46 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

Dr.Shree Vijay 23-03-2014 09:04 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

अब तो यही उनकी पहचान है! :

नेता ने सुबह-सुबह दर्पण में झांका तो एकदम से सन्न रह गया।उसके चेहरे से नाक ही गायब थी।घबराकर पत्नी को पुकारा।‘मेरी नाक नहीं दिख रही। कहां गई?’‘वो तो कई सालों से नहीं है, कहां से दिखेगी?’‘नहीं है? और मुझे ही पता नहीं।’‘तुम दूसरी हरकतों में ऐसे व्यस्त रहते हो कि अपनी नाक देखने की फुर्सत ही कहां है तुम्हें?’‘वाह! यह भी खूब कही! अरे, मैं बिना नाक के घूम रहा हूं तो कोई तो कुछ पूछता? कुछ कहता?’‘कौन, क्या कहता? ..समाज तो आपको अब बिना नाक का ही मानता है।’‘कैसी अनर्गल बातें करती हों? क्या नेता नकटे होते हैं? क्या उनके नाक नहीं होती?’‘कभी होती थी। नेहरुजी के जमाने में तो खासी लंबी होती थी।

बाद में वह नाक नेतागीरी के काम में आड़े आने लगी। आप लोगों के काम ऐसे हो गए कि नाक होती तो रोज कटती। इसलिए यह झंझट ही खत्म कर डाली आपने।’‘तुझे यह सब कैसे पता?’‘सारे देश को पता है।’‘और हमें ही नहीं पता? वाह!’‘तुम्हें नहीं पता, क्योंकि तुम्हें अपनी नाक की परवाह ही नहीं। याद करो। जब तुम छुटभैये थे, रोज कहीं न कहीं से थोड़ी-थोड़ी नाक कटाकर आते थे। नाक छोटी होती गई, तुम बड़े होते चले गए। पूरी नाक गायब हुई, तब तो तुम इत्ते बड़े नेता बन सके।’पत्नी नाक और नेतागीरी के विलोम अंतरसंबधों पर बोलती रही।

नेता इस दौरान दर्पण में झांककर अपने चेहरे का मुआयना करता रहा। उसने हर कोण से चेहरा देखा। फिर मुस्काता रहा। फिर हंसने लगा। फिर खिलखिलाने लगा। वैसा लगने लगा, जैसा बिना नाक का हंसता आदमी दिखता है। आप टीवी पर रोज देखते ही हो। नेता हंसते हुए बोला, ‘वैसे, बिना नाक के भी मैं ऐसा कोई बुरा नहीं दिखता। क्या कहती हों?’‘जैसे तुम्हारे बाकी साथी दिखते हैं, वैसे ही तुम भी दिखते हो।’ पत्नी ने कूटनीतिक उत्तर दिया। उसने पुन: दर्पण में स्वयं को गौर से देखा।‘अब तो यही मेरी पहचान है। अब यदि मैंने नाक लगा भी ली तो पॉलिटिक्स में कोई मुझे पहचानेगा भी नहीं।

..अब नाक नहीं है तो न सही। क्यों?’ वह हंस रहा है।पत्नी उसे ध्यान से देख रही है। स्मरण करने की कोशिश भी कर रही है। अब तो याद ही नहीं आ रहा कि जब कभी इसके नाक होती थी, तब यह लगता कैसा था :.........



ज्ञान चतुर्वेदी :
(लेखक जाने-माने व्यंग्यकार हैं)


साभार :.........




Dr.Shree Vijay 04-04-2014 05:59 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

आप चिंता न करें, सब बाबा की माया है! :

ल रात बाबा टीवी पर थे। एक अच्छे खासे टीवी चैनल पर इंटरव्यू चल रहा था बाबा का। वही लंबी दाढ़ी, भगवे वस्त्र वाले बाबा। उन्होंने कहा कि एक करोड़ से ज्यादा लोगों का प्यार उन्हें मिला है। लोग उन्हें चाहते हैं। उन्होंने कहा कि वे लघुशंका के लिए भी गाड़ी से उतरते हैं तो पांच हजार लोगों की भीड़ खड़ी हो जाती है। मैंने कहा,‘बाबा की जय! हमारे देश में बाबाओं के बड़े भक्त हैं। बाबा के ऊपर हमारा बड़ा विश्वास है।

और बात समझ भी आती है, जब रोजगार आपके पास न हो, विद्या न हो, बीमारी की हालत में अस्पताल जाने के लिए पैसे भी न हो, तो फिर एकमात्र आशा की किरण तो बाबा ही बचे न? बताइए!बाबा जो कि मुट्ठी में से भभूत निकालकर आपके हाथ में दें, तो आपका गर्भ ठहर जाए। बाबा अगर आपके सिर पर हाथ रख दें तो कैंसर खुद-ब-खुद शर्म से भाग खड़ा हो। और अगर बाबा ने आपको अपनी मुस्कान से सम्मानित किया तो समलैंगिकता जैसे कई रोग आपसे दूर हो जाते हैं। बड़ी महिमा है बाबा की।

और इसी उम्मीद का कटोरा लिए लाखों लोग रोज बाबा के दर्शन को चले जाते हैं।बाबा के शब्दों में ताकत है। बाबा की बोली में बड़ी मिठास है। बाबा हमेशा मुस्कुराते रहते हैं। बाबा की दाढ़ी देखो अभी भी काली है। बाबा 50 के हैं, लेकिन 25 के दिखते हैं! अरे हमारे यहां तो एक और बाबा थे, जो 20 साल से 14 ही साल के हैं। अब बोलो!तो क्या अगर बाबा पिछले साल किसी एक राजनीतिक पार्टी के साथ थे और आज किसी और के साथ। बाबा की आवाज में बड़ा दम है। बाबा जिसको कहेंगे हम तो उसी को वोट देंगे।

अरे भाई घर के बड़ों का कहना तो आप सुनते ही हैं न, तो फिर हम बाबा का कहना कैसे न मानें?हमारे देश में तो हम अपने 12-15 साल की लड़कियों को भी बाबा की देख-रेख में छोड़ देते हैं, ताकि बाबा उनकी झाड़-फूंक कर सकें। वह अलग कहानी है कि कुछ वक्त के बाद पता चलता है कि वह लड़की, लड़की नहीं बच्ची है और अब पेट से है। अरे गर्भवती है तो इसमें बाबा का क्या दोष? उन्होंने तो बच्ची के सिर पर हाथ रखा होगा, उसको गर्भ ठहर गया तो इसमें बाबा की क्या गलती? बताइए! हां ठीक है कहीं किसी और बाबा को पुलिस पकड़ ले गई थी।

बलात्कार के आरोप हैं उनपर, इसका यह मतलब तो नहीं कि सारे ही बाबा एक जैसे हैं। हमारे बाबा निराले हैं, योगी हैं। किसी चीज का मोह नहीं है उन्हें। वे तो अब भी जमीन पर सोते हैं। दो वस्त्रों में रहते हैं। सच्ची! अरे वो क्या भीड़ लगी है जाके देखें? हजारों लोग जमा हैं, क्यों भाई? अरे कुछ नही बाबा तो लघुशंका के लिए अपनी लक्जरी कार से उतरे थे, भीड़ जमा हो गई। लोग भी न, किसी को चैन से रहने नहीं देते ! :.........



रजत कपूर :
(फिल्म अभिनेता, निर्देशक और लेखक हैं.. )


साभार :.........




Dr.Shree Vijay 11-04-2014 05:39 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 




दैनिक भास्कर के सौजन्य से :.........


Dr.Shree Vijay 11-04-2014 06:27 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

आओ पकाएं हरा-भरा सांसद! :

मारा कोई भी पर्व पकवानों के बिना अधूरा है। दिवाली पर गुजिया और ईद पर सैवइयां। तो लोकतंत्र में चुनाव के इस महापर्व के मौके पर पेश है एक विशेष डिश - ‘हरा-भरा सांसद।’ राजनीतिक दल इस तरह से डिश तैयार करके अपने मतदाताओं का दिल खुश कर सकते हैं।

सामग्री : एक भरा-पूरा नेता। मालदार होगा तो अच्छा रहेगा। ब्लैक मनी जिसका कोई हिसाब-किताब न हो। फर्जी सोशल अकाउंट्स। शोरबे के लिए देसी दारू। खटास के लिए गालियां। सजावट के लिए देसी कट्टे-बंदूकें या ऐसी कोई भी सामग्री। लोकलुभावन वादे। जातिगत जुगाड़ नेता की जाति अनुसार।

विधि : सबसे पहले एक अच्छे से ऐसे नेता का चयन करें जो जीत सकता हो। उसके पास भरपूर पैसा हो, क्षेत्र में जातिगत प्रभाव हो और साथ ही डराने-धमकाने की ताकत भी। उस पर थोड़े-बहुत दाग होंगे तो उससे स्वाद और बढ़ जाएगा। उसे सबसे पहले अच्छे से छील लें। (यानी पार्टी कोष के नाम पर जितना हो सके, पैसा कबाड़ लें) अब एक अलग बॉउल में ब्लैक मनी व देसी दारू को आपस में मिलाकर शोरबा तैयार करें। शोरबे के कालेपन को मिटाने के लिए सोशल वेबसाइट्स का तड़का लगा दें। इससे कालापन थोड़ा कम हो जाएगा। थोड़ा-सा रहेगा तो कोई दिक्कत नहीं। स्वाद के शौकीनों को थोड़ा कालापन अच्छा लगता है। अब एक फ्राइंग पैन लें। उसमें नेता को रखें और उस पर ब्लैकमनी-देसी दारू का तैयार शोरबा डाल दें। इतना डालें कि नेता उससे सराबोर हो जाए। अब इस मिश्रण को धर्म की आंच में धीरे-धीरे पकने दें। नेता जितना लिजलिजा होगा, वह उतना ही स्वादिष्ट होगा। जब नेता अच्छी तरह पक जाए तो उसे फिर आंच से उतार लें। धीरे-धीरे ठंडा होने दें ताकि निर्वाचन आयोग को चटका न लगे लेकिन हलका-हलका गरम रहेगा तो स्वाद बना रहेगा। फिर थोड़ी गालियों व अपशब्दों की खटास डालें, और साथ में विरोधी दलों से पाला बदलकर आई थोड़ी शक्कर भी मिला दें। खट-मिट स्वाद आएगा। अब इसे निकालकर तश्तरी में रखें, उसके ऊपर थोड़े-से लोकलुभावन वादे बुरकें। आपकी यह डिश लगभग तैयार है। लेकिन ध्यान रखें, अच्छी डिश के साथ-साथ उसकी सजावट भी जरूरी है। इसके लिए देसी कट्टों, बंदूकों और चाकुओं की सजावट करना न भूलें। इससे अगर स्वाद में थोड़ी-बहुत कमी भी होगी तो उसकी पूर्ति हो जाएगी। लीजिए हरा-भरा सांसद तैयार :.........


ए. जयजीत :
(लेखक डीबी स्टार में न्यूज एडिटर हैं)


साभार :.........




Dr.Shree Vijay 14-04-2014 05:48 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

Dr.Shree Vijay 19-04-2014 11:20 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

नेता पहलवान का दांव! :

चुनाव में टिकट बांटने के हर दल के अपने मापदंड होते हैं। एक पार्टी नेता की क्षेत्र में सक्रियता देखती है तो दूसरी समाज में उसकी स्वीकार्यता। कोई धन बल के आधार पर उम्मीदवार तय करता है तो कोई बाहुबली पर दांव लगाता है। चुनाव में टिकट दिलवाने से ज्यादा कटवाने वाले एक्टिव रहते हैं। ऐसे ही कुछ दिलजलों ने तीन दशक पहले एक नेताजी का टिकट कटवा दिया। वह भी यह कहकर कि अब नेताजी काफी थक गए हैं।

चतुर विरोधियों ने नेताजी के बदले उस क्षेत्र से उनके बेटे को टिकट दिला दिया। पेशे से किसान और शौकियापहलवान नेताजी बुढ़ापे में भी काफी फिटफाट थे। मगर विरोधियों का यह ऐसा प्रहार था कि ‘जबरा मारे और रोने न दे’। नेताजी मन मसोसकर रह गए और पूरी शिद्दत से बेटे को जिताने में जुट गए। लिहाजा बेटा जीतकर विधानसभा भी पहुंच गया। पांच वर्षो में नेता पुत्र भी सत्ता का स्वाद चख चुका था। इसलिए वह भी जोड़-तोड़ कर दोबारा टिकट ले आया।

इस बार भी विरोधियों ने बेटे का साथ दिया, लेकिन उसका भाग्य धोखा दे गया और वह हार गया। एक दशक तक सियासत से दूर रहने के कारण नेताजी खूंखार हो गए थे। वे अक्सर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को कोसने से बाज नहीं आते। एक मर्तबा उन्हें पार्टी प्रमुख से मिलने का मौका मिल गया। फिर क्या था? नेताजी ने उन पर पूरी भड़ास निकाल दी। साथ ही पूछ लिया कि दो बार से मेरा टिकट क्यों काट रहे हो? आलाकमान ने कहा कि आपके विरोधियों ने बताया था कि आप बहुत बुजुर्ग हो गए हैं और अपनी जगह अपने बेटे के लिए टिकट चाहते हैं। इस आधार पर हमने आपके बेटे को टिकट दे दिया।

नेताजी ने हाईकमान को समझाया कि यह विरोधियों की चाल है, मैं तो आपके सामने पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त खड़ा हूं। एक भी चुनाव नहीं हारा हूं विपरीत हालात में भी जीतकर आया हूं। अब अगली बार टिकट बांटने से पहले इतनी मेहरबानी जरूर करें कि सभी दावेदारों के साथ मुझे भी बुला लें, फिर आप चाहें तो एक-एक से मेरी कुश्ती करा लें, चाहे उनमें मेरा बेटा ही क्यों न हो, और जो जीते उसे टिकट दे दें। यह सुनकर पार्टी प्रमुख भी ठहाका लगाए बिना नहीं रहे। उन्हें यह आश्वस्त कर आगे बढ़ गए कि अगली बार आपको ही अवसर देंगे। इस तरह फिर से नेताजी बेटे का टिकट कटवाकर खुद का टिकट ले आए। जीतकर मंत्री भी बने :.........


गणेश साकल्ले :
(लेखक डीबी स्टार भोपाल के स्थानीय संपादक हैं)


साभार :.........




Dr.Shree Vijay 25-04-2014 06:38 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

नेताजी का यूं दु:खी होना! :

चुआज वे बहुत दु:खी हैं। इतने दु:खी कि सोफा भी उनके दु:ख में भावुक हो गया है। सोफे का नेताजी से और नेताजी का सोफे से बड़ा आत्मीय लगाव रहा है। नेताजी देशहित में जब भी दु:खी होते हैं, इसी सोफे में धंसते हैं और तब सोफा भी इतना दु:खी हो जाता है कि नेताजी को पुचकार कर कहना पड़ता है, ‘अब रुलाएगा क्या!’ आज दु:ख जायज भी है। पूरे लोकतंत्र पर कालिख जो पुत गई है। संसद का सबसे शर्मनाक दिन। उन्होंने तय कर लिया है कि वे दो दिन तक सोफे पर बैठकर ही दु:ख मनाएंगे। तो वे सोफे से तभी उठते, जब कोई टीवी चैनल वाला आता या कोई प्राकृतिक आपदा आती। आज उन्होंने मिर्च का भी बहिष्कार कर दिया है। इसलिए सुबह से उन्होंने सात-आठ बार केवल फलों का जूस ही लिया है। बीच-बीच में देशहित में थोड़ा-बहुत ड्राय फ्रूट्स जरूर ले लेते हैं। सेहत के लिए जरूरी है, क्योंकि दु:खी एक बार तो होना नहीं है। सेहत अच्छी होगी तभी तो राष्ट्रहित के मुद्दों पर दु:ख जता सकेंगे। खैर लंच तक आते-आते वे इस बात पर राजी हो गए कि चिकन-कबाब पर थोड़ी-सी मिर्च बुरक लेंगे। आखिर, जो हुआ उसमें मिर्च का क्या दोष भला। नेताजी ऐसे ही रहमदिल हैं।
शाम हो गई है और नेताजी दुख में गढ़े हुए हैं। नेताजी को इतना दु:खी देखकर हमसे रहा नहीं गया। हम उनके बंगले पहुंचे और दो-टूक कह दिया, ‘बहुत दु:खी हो लिए। बयान जारी हो गया। टीवी पर बाइट चल गई। और कितना दु:खी होंगे। दूसरों को भी दु:खी होने का मौका दीजिए। आप ही दु:खी होते रहेंगे तो बेचारे आपकी ही पार्टी के रामलालजी, श्यामलालजी जैसे युवा नेता क्या करेंगे? इनकी हमेशा शिकायत रहती है कि आप इन्हें दु:खी होने नहीं देते। खुद ही दु:खी हो लेते हैं।’
‘अरे हमें तो कभी बताया नहीं।’ नेताजी ने आश्चर्यमिश्रित दुख जताया। ‘अब आपका लिहाज रखकर कुछ बोलते नहीं बेचारे।’‘अरे, यह तो हमारी गलती है। हमें दूसरों का भी कुछ सोचना चाहिए था।’ नेताजी के कई दु:ख एक-दूसरे में गड्ड-मड्ड हो रहे हैं।‘खैर, उन्हें संदेशा पहुंचा दो कि आज रात आठ बजे के बाद से वे दु:खी हो लें। हम पर्याप्त दु:खी हो लिए हैं।’ नेताजी बोले।हमने मन ही मन सोचा। नेताजी धन्य हैं। दु:ख की घड़ी में भी दूसरों का कितना ख्याल रखते हैं। एकदम मानवता की मूर्ति।अपने वादे के अनुसार रात आठ बजते ही नेताजी सोफे से उठ गए। गम भुलाने वे चौथे माले पर बने विशेष कक्ष में चले गए हैं। ऊपर से कोई आवाज आई है। शायद कांच का कोई गिलास टूटा है :.........


जय :



साभार :.........




Dr.Shree Vijay 06-05-2014 09:07 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

कभी-कभी अज्ञानी होना भी जरूरी होता है.!! :

चुआजकल कितना भी हटो-बचो सूचनाओं से लदे-फदे सरपट दिमाग टकरा ही जाते हैं। एनसाइक्लोपीडिया हो रहे व्यक्तित्व तो कुचलते हुए निकल रहे हैं। हर कोने से विश्लेषण के बम फेंके जा रहे हैं। हर मुद्दे पर खूंखार तरीके से बहस के पंजे फैल रहे हैं। बस, नहीं दिख रहा है तो अज्ञानता का मजा! सहजता की मस्ती! विचार उल्टा है लेकिन चिंतन की मांग करता है क्योंकि एक मासूम-सा वो आदमी कहीं से भी झांकता नहीं मिल पा रहा है जिसे कुछ नया बताने पर आश्चर्य से खुला मुंह और चौंककर फैली आंखों का मजा मिल सके।

आखिर कहां लुप्त हो गए सब अज्ञानी?इलेक्शन को ही लीजिए, कौन जीतेगा, किसकी हालत पतली होगी हर कोने से आवाजें आ रही हैं। घर के कुत्ते-बिल्ली तक बताना चाह रहे हैं लेकिन आदमी कुछ इस दिशा में तवज्जो दे नहीं रहा है वरना, उनकी काएं-काएं को ध्यान से सुनिए तो बस, यही सबकुछ निकलेगा।मैच ही देख लीजिए टीम इंडिया क्यों हारी, विराट खराब क्यों खेला, कोई इतनी बारीकी से आपको समझा जाएगा कि इसके बाद तो आपके पास हर खिलाड़ी की तकनीकी खामी के चलते सिर धुनने या फिक्सिंग के बारे में सोचने के आलावा कोई काम नहीं रह जाएगा।

इन विशेषज्ञ सलाहों के बीच हर शॉट पर लोटने वाले वो क्लासिकल खेलप्रेमी कहां गए?अखबार उठा लीजिए, सेमीनार, लेक्चर प्रबंधन की शिक्षा दी जा रही होगी। जिंदगी की चुनौतियों से निपटने के गुर बताए जा रहे हैं। हर समस्या के साथ विशेषज्ञ मौजूद है पूरी सलाह के साथ। ज्ञान का अजीर्ण दिखाई दे रहा है हर तरफ। अब इसी आजीर्ण के चलते ही तो जिंदगी में तकलीफें हैं ये कोई नहीं बता रहा है!पहले जिंदगी सहज थी। जीने सीधा पैटर्न था। लालच भी एक स्तर से ज्यादा लालची नहीं था। अब नॉलेज बढ़ा है। दुश्वारियां बढ़ीं हैं। कंप्लीकेशन बढ़ा है।

तुर्रा देखिए हर दिशा से सरपट फेंका जा रहा नॉलेज संतोष नहीं दे रहा, कमतरी दिखा रहा है। दिमाग सूचनाओं का स्टोररूम बना जा रहा है। लोग बिना विचारे भरते जा रहे हैं।माना जाता है कि अज्ञानता के साथ तो फर-फर प्रश्न पूछने का हौसला रहता है। उधर, सूचनाओं की इफरात तो पहल करने में ही रोड़ा बन रही है। लोगों को हक्कानी गुट की पूरी मालूमात है, तालीबानियों के मामले में पेंटागन से ज्यादा जानकारी रखते हैं लेकिन दोस्ती के लिए फेसबुक नहीं ईमानदारीभरा दिल चाहिए, इसकी ‘नॉलेज’ नहीं है।

मूंदी चोट लगने पर संसार भर के डॉक्टरों के नंबर मिल जाएंगे। लेकिन घर बैठी मां के बताए हल्दी मिले दूध पर ‘बिलीव’ नहीं है।सो, इस रेडीमेड बुद्धिमानी के लिए क्या कहें। आपको नहीं लगता इससे ज्यादा तो खालिस अज्ञानता अच्छी है जो कम से कम आपकी अपनी तो है, है ना! :.........


अनुज खरे :
(लेखक युवा व्यंग्यकार हैं)


साभार :.........



Dr.Shree Vijay 16-05-2014 06:56 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

http://i6.dainikbhaskar.com/thumbnai...jsid_pak10.jpg

अब पाकिस्तान कह रहा है कि हमें कश्मीर नहीं चाहिए,
पर हम अब करांची नहीं देंगे । इसका क्या मतलब निकाला जाए ? :




दैनिक भास्कर के सौजन्य से :.........


Dr.Shree Vijay 28-05-2014 04:24 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

जब कोई नॉन पॉलिटिकल बंदा पॉलिटिक्स में उतरता है..! :

डिस्क्लेमर :नीचे लिखी गई जीवनी एक गैर-राजनीतिक आदमी की है, जिसका उद्देश्य जनहित है। किसी भी बंदे से इसका संयोग वास्तविकता मात्र है। तो उनका व्यक्तित्व बेहद लीचड़। कृतित्व भयंकर। एक नंबर के भिनकू। गालियों का ओजमयी प्रवाह। टुच्चेपन से ओतप्रोत। उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में जितनी जानकारी मिलती है, उसके आधार पर उनका जन्म भी कभी शिशु के रूप में ही हुआ होगा।

बताते हैं कि जब उनका जन्म हुआ तो वे अन्य नवजातों के समान रोए भी, अन्यथा तो उनके संपूर्ण प्रयास दूसरों के आंसू ही निकालते रहे। मोहल्ले के अनुसार, बचपन से ही वे सभी आवारा बच्चों के आदर्श बन गए थे और आवारागर्दी इतनी ऊंचाई की कि सारे बच्चों के बराबर हरकतें अकेले कर सकते थे। पैसे से अपनी तीसरी प्रेमिका और भ्रष्टाचार से अपने भाई से भी ज्यादा प्रेम करते हैं।

लोग जानवरों से भी उनकी तुलना काफी करते थे। कहते थे- बड़े आदमी से बात करते समय वह गऊ टाइप बन जाते हैं। आम आदमी से बात करते समय वे भेड़िए जैसे हो जाते हैं। पत्नी से बात करते समय बकरे के जैसे हो जाते हैं। आलाकमान से बात करते समय वे बिना पूंछ के वफादार जानवर-सी हरकत लगातार करते रहते हैं।

चमचों से बात करते समय वे उन्हें पैरों तले रौंदने के चक्कर में रहते हैं। रहते हर जगह वे ‘वे’ ही हैं, बस समय-समय पर केंचुली उतारते रहते हैं। केंचुली उतारने के प्रति वे इतना श्रद्धाभाव रखते हैं कि आस्तीन में सांप कैसे रहते होंगे, कन्फ्यूजन के बाद भी सांपों को काफी पसंद करते हैं। लोगों का उनकी प्रतिभा के बारे में मानना था, गिरगिट तो कितना भी रंग बदल ले, फिर भी दिख ही जाता है, वे दिखते हैं क्या? कुत्ते के प्रति उनमें दुश्मनी का भाव हमेशा से रहा, वफादारी जैसी बात कोई कहता तो वे कुत्तेपन पर उतर आते हैं।

समस्त विशेषताओं के साथ जिस अनुपात में उनके प्रति लोगों की नफरत बढ़ी, वे आगे बढ़ते चले गए..हमारा प्रश्न है साला आखिर हुआ क्या जो किसी के बारे में गली-चौराहे पर ऐसी बातें चर्चित हुईं, जो बाद में ‘जन-जीवनी’ जैसी शक्ल में ढल गईं। हालांकि कभी उनका व्यक्तित्व सादा, जीवनशैली सहज थी। बाद में एक किराए के मकान में शिफ्ट होने के बाद उनके जीवन में भारी परिवर्तन आया।

पहली मंजिल पर उनके मकान के नीचे एक पार्टी का दफ्तर था। वे सहज जिज्ञासावश लोगों को वहां आते-जाते देखते थे। कई बार दफ्तर का चक्कर भी मार आते। इतने प्रभावित हुए कि जो देखा-सुना जीवन में उतार लिया। भाई साब क्या अब इसके बाद यह भी बताना पड़ेगा कि उनकी ऐसी ‘जन-जीवनी’ क्यों चर्चित हुई :.........


अनुज खरे :
(लेखक युवा व्यंग्यकार हैं)


साभार :.........


Dr.Shree Vijay 11-06-2014 09:26 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

आजादी के लिए सूअर ने चलते ट्रक से लगाई छलांग :

http://i5.dainikbhaskar.com/thumbnai.../08/4613_1.jpg


आजादी सिर्फ इंसान ही नहीं, जानवर भी चाहते हैं। कुछ ऐसी ही घटना चीन में सामने आई है। दक्षिणी चीन के गुआंगडोंग प्रांत के फोशान कस्बे में एक सुअर ने बचने के लिए चलते हुए ट्रक से छलांग लगा दी। यह तस्वीर उस समय की है, जब पकड़े गए सूअरों को ट्रक से दूसरी जगह भेजा जा रहा था। ट्रक में चढ़ाए जाने के बाद भी इस सुअर ने खुद को बचाने के लिए हिम्मत नहीं हारी। आजाद होने के लिए उसने यह अंतिम कोशिश की।

सड़क पर छलांग लगाने के बावजूद भी सुअर को कोई चोट नहीं आई। आजादी के लिए करो और मरो की स्थिति में यह कोशिश वाकई में बेहद साहसी थी, लेकिन उसकी स्वतंत्रता ज्यादा देर तक कायम नहीं रह सकी। कूदने के बाद सूअर व्यस्त हाईवे पर थोड़ा आगे बढ़ा ही था कि ट्रक के ड्राइवर ने पीछा कर उसे पकड़ लिया :.........



दैनिक भास्कर के सौजन्य से :.........



Dr.Shree Vijay 11-06-2014 09:27 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

आजादी के लिए सूअर ने चलते ट्रक से लगाई छलांग :

http://i2.dainikbhaskar.com/thumbnai.../08/4613_3.jpg




दैनिक भास्कर के सौजन्य से :.........



Dr.Shree Vijay 11-06-2014 09:28 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

आजादी के लिए सूअर ने चलते ट्रक से लगाई छलांग :

http://i4.dainikbhaskar.com/thumbnai.../08/4615_2.jpg




दैनिक भास्कर के सौजन्य से :.........



Suraj Shah 12-06-2014 06:26 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 

हास्यरस से भरपूर...

Dr.Shree Vijay 14-06-2014 07:12 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 
Quote:

Originally Posted by Suraj Shah (Post 509404)

हास्यरस से भरपूर...

:iagree::iagree::iagree:

Dark Saint Alaick 15-06-2014 09:45 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 
वाह श्रीविजयजी। बहुत ही मज़ेदार सूत्र है। प्रस्तुति के लिए धन्यवाद।

Dr.Shree Vijay 19-06-2014 09:08 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 
Quote:

Originally Posted by dark saint alaick (Post 509641)
वाह श्रीविजयजी। बहुत ही मज़ेदार सूत्र है। प्रस्तुति के लिए धन्यवाद।


प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए आपका हार्दिक आभार.........

Swati M 20-06-2014 06:59 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 
सुंदर.

Dr.Shree Vijay 24-06-2014 11:06 AM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 
Quote:

Originally Posted by Swati M (Post 510088)
सुंदर.

:thanks:

rafik 24-06-2014 03:04 PM

Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
 
:bravo::bravo::bravo::bravo::bravo:


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