इधर-उधर से
इधर-उधर से
प्रिय मित्रो, इस नए सूत्र के माध्यम से मैं अपनी डायरी में दर्ज कुछ प्रसंग, कुछ शेरो शायरी, कुछ श्लोक व सूक्तियाँ, कुछ नए-पुराने शब्द और उनके अर्थ, कुछ तकनीकी शब्दावली तथा अन्य विविध रोचक सामग्री आपके साथ बांटना चाहता हूँ. बहुत से विषयों की मिली जुली प्रस्तुति होने के कारण सूत्र का शीर्षक ‘इधर-उधर से’ रखा गया है जिसके लिए हिंदी में एक संज्ञा मिलेगी ‘खिचड़ी’ या अंग्रेजी/ फ्रेंच में ‘pot pourri- पॉओ पोरी’. मूल रूप से इस सब का उद्देश्य यहाँ पर मनोरंजन करना है. कुछ अच्छा लगे तो उसे ग्रहण कर लें, जो अच्छा न लगे छोड़ दे. लेकिन समय समय पर अपनी टिप्पणियाँ दे कर मेरा मार्गदर्शन अवश्य करते रहें. तो शुभारंभ करते है. |
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हर चीज़ नहीं है मरकज़ में
इक ज़र्रा इधर इक ज़र्रा उधर दुश्मन को न देखो नफ़रत से शायद वो मुहब्बत कर बैठे -- रविवार दिनांक 29/06/1997 को ज़ी टी.वी. के लोकप्रिय कार्यक्रम ‘आपकी अदालत’ में डॉ. कर्ण सिंह ने यह पंक्तियाँ सुनायीं. ***** दो गीत याद आ रहे है. ये दोनों मेरे दिल के बहुत करीब हैं: 1. हाँ दीवाना हूँ मैं/ हाँ दीवाना हूँ मैं/ ग़म का मारा हुआ इक बेगाना हूँ मैं / हाँ दीवाना हूँ मैं. उक्त गीत अभिनेता सुदेश कुमार पर फ़िल्माया गया था. फिल्म की नायिका जयश्री गडकर थीं. (फिल्म: सारंगा / स्वर: मुकेश / संगीत: सरदार मलिक) हो सकता है आप में से कई सदस्यों को मालूम न हो कि इस फिल्म के संगीतकार सरदार मलिक हमारे आज के जाने माने संगीतकार और ‘इंडियन आइडल’ कार्यक्रम के जज अन्नू मलिक के पिता हैं. 2. शोख़ नज़र की बिजलियाँ / दिल पर मेरे गिराये जा / मेरा न कुछ ख़याल कर / तू यूं ही मुस्कुराये जा / शोख़ नज़र की बिजलियाँ / (यह गीत साधना और मनोज कुमार पर फ़िल्माया गया था) (फिल्म : वोह कौन थी / स्वर: आशा भोंसले / संगीत: मदन मोहन ) |
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जिन्हें अक्सर मिसाल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है उनमे से निम्नलिखित शे’र विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं:
1. खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले ख़ुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है 2. हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा (शायर: अल्लामा मौ. इक़बाल) निम्नलिखित संस्कृत सूक्तियों पर भी कृपया दृष्टिपात करें: 1. उत्तापकत्वं हि सर्वकार्येषु सिद्धिनां प्रथमोsन्तराय: (नीति वाक्यामृतम = 10/134) भावार्थ: उत्तेजित होना सभी कार्यों की सिद्धि में प्रथम विघ्न है. 2. पापोनृषद्वरो जनः (ऐतरेय ब्राह्मण = 33/3) भावार्थ : अकर्मण्य मनुष्य श्रेष्ठ होते हुए भी पापी है. |
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शब्द-सामर्थ्य
क्या आप इन शब्दों से परिचित है? = दुर्धर्ष / दुरभिसंधि /कालक्रमानुगत आइये इनके अर्थ का परिचय भी ले लें: दुर्धर्ष = जिसे हराया न जा सके दुरभिसंधि = कुचक्र कालक्रमानुगत = बाप-दादा के समय से चला आता हुआ ***** अब कुछ अंग्रेजी शब्दों के बारे में अपनी जानकारी प्राप्त करते हैं? Medium/ Bearer / Authorized आइये अब इन अंग्रेजी शब्दों के अर्थ पर विचार करें: Medium = माध्यम Bearer = धारक Authorized = अधिकृत / प्राधिकृत |
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मित्रो, हम में से बहुतों को रागों की कोई जानकारी नहीं होगी लेकिन उसके बावजूद कई गीत हमारे मन-मस्तिष्क पर छा जाते हैं और बरसों बाद भी उन गीतों का आकर्षण ज्यों का त्यों बना रहता है. इन गीतों की लय, ताल, गायकी, ओर्केस्ट्रा, शब्द (और परदे पर अदाकारी) हमें मन्त्र-मुग्ध कर देते हैं. टी.वी. पर बहुत से कार्यक्रम इस बारे में जानकारी प्रदान करते रहे हैं. रागों की जानकारी न होते हुए भी यह जान कर अच्छा लगता है कि कौन सा गीत कौन से राग पर आधारित रचना है. कुछ फ़िल्मी गीत और उनके राग इस प्रकार हैं:
1. वक़्त करता जो वफ़ा आप हमारे होते– (राग = अहीर भैरव) 2. ज़िन्दगी भर ग़म जुदाई का हमें तड़पायेगा- (राग = मालकौंस) 3. जियरा काहे तरसाये- (राग = कलावती) 4. इतनी शक्ति हमें देना दाता- (राग = भैरवी) 5. ज़रा सी आहट होती है तो दिल सोचता है- (राग =यमन कल्याण) 6. एहसान तेरा होगा मुझ पर- (राग = यमन) 7. झनक झनक तोरी बाजे पायलिया- (राग = दरबारी) (18, 25/11/1996) |
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दो शे'र प्रस्तुत हैं:
फ़लक देता है जिनको ऐश उनको ग़म भी देता है जहाँ बजते हैं नक्कारे वहां मातम भी होता है (शायर: दाग़ दहलवी) कांटों से गुज़रना तो बड़ी बात है लेकिन फूलों पे भी चलना कोई आसान नहीं है (शायर: आसी दानापुरी) ***** नीचे हम कुछ शब्द दे रहे हैं और देखते हैं कि हम उनके अर्थ से कितना परिचित हैं: अरण्यरोदन / परिप्रेक्ष्य /प्रतिफल /विदीर्ण /मायावी / वितृष्णा आइये अब अपने सोचे हुए अर्थ का निम्नलिखित से मिलान कर लेते हैं: अरण्यरोदन = ऐसा रोना जिसे कोई सुनने वाला न हो परिप्रेक्ष्य = किसी भी दृश्य को ठीक ठीक अनुपात में प्रस्तुत करना प्रतिफल = परिणाम / नतीजा विदीर्ण = फाड़ा हुआ (वाक्य: इस दुखद समाचार ने लोगों के हृदय विदीर्ण कर दिए) मायावी = छलने वाला वितृष्णा = इच्छा से मुक्ति (29/11/1996) |
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आपके इस सूत्र का अवलोकन कर मेरे मन में सबसे पहले जो भाव उत्पन्न हुए, वह यह हैं कि आपने यह बहुरंगी सूत्र शुरू करने के लिए होली के बेहद अनुकूल अवसर का चयन किया, इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं। मुझे उम्मीद है, होली की तरह ही आपका यह विविध रंगयुक्त सूत्र बेहद मकबूल होगा और अनेक लोगों को मनोरंजन के साथ प्रेरणा भी देगा ! :cheers:
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इस गागर में सागर जैसे सूत्र के माध्यम से मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक सामग्री के सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रस्तुतीकरण के लिए आपका भावसिक्त अभिनन्दन है ..रजनीश जी।
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लघु प्रसंग
1. एक लोमड़ी ने सुबह के समय अपनी छाया पर दृष्टि डाली और कहा, "मुझे आज कलेवे के लिए ऊँट मिलना चाहिए." उसने सुबह का सारा समय ऊंट को ढूँढने में व्यतीत कर दिया, लेकिन जब दोपहर को उसने दूसरी बार अपनी छाया देखी तो कहा, "मेरे लिए एक चूहा ही काफी होगा." 2. एक बार जब मैं एक मृतक दास को दफ़न कर रहा था, तो कब्र खोदने वाला मेरे पास आया और बोला, "जितने भी लोग यहाँ दफ़न करने के लिए आते हैं, उनमे से मैं तुम्हें पसंद करता हूँ." मैंने कहा, "यह सुन कर मुझे ख़ुशी हुयी.; लेकिन आखिर तुम मुझे क्यों पसंद करते हो?" उसने जवाब दिया, "बात यह है कि और लोग तो यहाँ रोते हुए आते हैं और रोते हुए जाते हैं, मगर तुम हँसते हुए आते हो और हँसते हुए जा रहे हो." लेखक: खलील जिब्रान |
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मित्रो, अंग्रेजी में कुछेक शब्द इस प्रकार के होते हैं जिन्हें हम किसी भी ओर से पढ़ें उनके स्पेलिंग और उच्चारण एक ही होता है. ऐसे शब्द को “palindrome” कहते हैं. उदाहरण के लिए कुछ शब्द इस प्रकार हैं: rotator dad redivider इस परिभाषा के अनुसार “malayalam” भी एक palindrome है. हिंदी में भी इसी प्रकार के कुछ शब्द होते हैं. मुझे छुटपन की बात याद आती है. हम बच्चे आपस में हिंदी शब्दों का एक खेल खेलते थे जिसमे एक बच्चा दूसरे बच्चे से वह शब्द बताने का अनुरोध करता था जो शुरू से अंत तक और अंत से शुरू तक एक जैसे अक्षरों और एक से उच्चारण वाला होता था. प्रश्न करने वाला बच्चा पूछता था, “तीन अक्षर का मेरा नाम, उल्टा सीधा एक समान, आता हू खाने के काम. बोलो क्या?” उत्तर मिलता था - “डालडा” इस प्रकार के और भी शब्द हम ढूंढ सकते हैं जो तीन या तीन से अधिक अक्षरों के हैं और जो उलटे-सीधे एक समान पढ़े और उच्चारित किये जाते हैं. |
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मित्रो, अंग्रेजी के महान कवि पी.बी.शैली की जानी मानी दो कविताओं से निम्नलिखित पंक्तियाँ ली गई हैं. इनकी विशेषता यह है कि इन्हें अक्सर मिसाल के तौर पर प्रयुक्त किया जाता है जैसे कई शे’र और दोहों को हम ‘मिसाली’ कहते हैं यानि मिसाल देने योग्य और उन्हें उपयुक्त समय पर इस्तेमाल करते हैं.
We look before and after and pine for what is not, Our sweetest songs are those that tell of saddest thought. (From To A skylark by P.B.Shelley) हम समय की रेत पर चल, उसे ढूंढते जो है नहीं, पीड़ा से जो गीत उगा वो सबसे मादक और हसीं. The trumpet of prophecy, O Wind, If winter comes, can spring be far behind. (From Ode to the West Wind by P.B.Shelley) पछुआ पवन उद्घोषणा करती है सुन, क्या सार है, शिशिर के आगमन के साथ ही मधुमास भी तैयार है. |
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शनिवार / 30 नवम्बर 1996 की डायरी का एक अंश: |
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राजा भोज और चार चोर
एक बार रात के समय चार चोर धारा नगरी में चोरी करने निकले. उन दिनों राजा भोज भी कभी कभी भेष बदल कर अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए महल से बाहर निकलते थे. उस रात राजा भोज जब घूम रहा था तो उसकी मुलाक़ात इन चारों चोरों से हो गई. चोरों ने भेष बदले राजा से पूछा कि तू कौन है ? राजा ने कहा जो तुम हो वही मैं भी हूँ. राजा समझ गया कि ये चोर हैं. सो उसने उन चोरों से कहा,”यह भी खूब रही. भगवान् संयोग मिलाता है तो यूं मिलाता है.मैं भी चोर हूँ. आज रात को हम पाँचों मिल कर चोरी करते हैं और जो माल मिलेगा उसे पांच जगह बराबर बराबर बाँट लेंगे. चोरों ने कहा, ”तुममे क्या गुण है ? हम तुम्हें साथ क्यों ले जाएँ और तुम्हें क्यों हिस्सा दें?” राजा ने कहा, ”पहले तुम बताओ कि तुममे क्या क्या गुण हैं, फिर मैं अपना गुण बताऊंगा?” उनमें से एक चोर ने कहा,”मैं आँख बंद करके बता सकता हूँ कि धन कहां पड़ा है.” दूसरे ने कहा, ”मुझे देखते ही सब पहरेदारों को नींद आ जाती है.” तीसरे ने कहा, ”मैं जिस ताले को देख लेता हूँ वह खुद-ब-खुद खुल जाता है.” चौथे ने कहा, ”मैं जिस व्यक्ति को एक बार देख लूँ, उसे मैं अँधेरे में भी पहचान सकता हूँ.” इस पर राजा ने कहा, ”फिर तो हमें धन मिलने मैं कोई अड़चन नहीं होगी.” चोरों ने कहा, “सो तो ठीक है, लेकिन तुम भी तो अपना गुण बताओ,जिसके बल पर तुम हमसे अपना हिस्सा मांग रहे हो.” राजा बोला, ”न्यायाधीश के सामने मैं जा कर अगर खड़ा हो जाऊं तो उसकी मति फिर जाती है और वह अपनी सुनाई हुयी फांसी की सजा भी रद्द कर देगा.” चोरों ने कहा, “तब तो ठीक है, अब पकडे जाने पर सजा का भय भी नहीं रहेगा.” पाँचों निकले चोरी करने के लिए. पहले चोर ने आँखें बंद कर के बताया कि राजा के तहखाने में फलां जगह माल रखा है. पहले वहीँ चला जाए. पाँचों चले राजा के तहखाने में चोरी करने. वहां संगीनों का पहरा था. दूसरा चोर आगे बढ़ा तो पहरेदार अपने आप गहरी निद्रा में चले गए. अब तीसरा चोर आगे बढ़ा, तो जितनी भी तिजोरियां वहाँ रखी थीं, उन सबके ताले अपने आप खुल गए. चोरों ने खूब धन बटोरा और गठरियों में बाँध कर बाहर निकल आये. दूर जंगल में लाकर सारा धन एक गहरा गड्ढा खोद कर गाड़ दिया और तय किया कि कल इसे आपस में बाँट लेंगे. चारों चोर अपने अपने घर चले गए. राजा भी अपने महल में आकर सो गया. प्रातः होते ही हल्ला मच गया कि तहख़ाना टूट गया है और बहुत सा धन चोरी चला गया है.पहरेदारों को बुलाया गया. पूछने पर उन्होंने कहा, “महाराज, हमें तो कुछ पता नहीं कि यह चोरी कब और कैसे हुई? दोषी हम जरूर हैं और इसके लिए उचट सजा पाने के लिए हम इंकार नहीं करते, लेकिन सही बात तो यह है कि हम सारे लोगों को एक साथ ही ऐसी गहरी निद्रा आ गयी जैसे किसी ने जादू कर दिया हो.” विशेषज्ञों ने बताया कि ताले इतने मजबूत हैं और इतनी कारीगरी से बनाए गए हैं कि न तो ये सहज ही तोड़े जा सकते हैं, न इन्हें खोलने के लिए दूसरी चाबी ही बनाई जा सकती है. तब सवाल उठता है कि यह काण्ड हो कैसे गया. राजा ने कहा, “जो हुआ सो हुआ, किन्तु ऐसा लगता है कि कोई दैवी चमत्कार या देवी घटना हुयी है, लेकिन फिर भी इन चोरों का पता लगाने के लिए कोशिश तो होनी ही चाहिए. चारो तरफ आदमी दौड़ाए गए. संयोग की बात कि चारों चोर एक ही जगह पकड़ में आ गए. वे न्यायाधीश के सामने पेश किये गए और न्यायाधीश ने उन्हें सूली पर चढाने का हुक्म दिया. चोरों को सूली पर लटकाने के लिए जब ले जाया जाने वाला था, तो राजा भोज भी न्यायाधीश के बगल में आ कर बैठ गया. राजा को देखते ही चौथा चोर जोर से चिल्लाया, “अरे तुम हो! अच्छी बात है – हम चारों आदमीयों ने तो अपने करतब, अपनी कला तुम्हें दिखा दी, अब तुम इस तरह पत्थर की मूरत बने क्या देख रहे हो? तुम भी अपना करतब दिखाओ – फिर किस दिन काम आयेगी दोस्ती तेरी.” सुन कर राजा हंसा और न्यायाधीश से कह कर उनकी सूली की सजा रद्द करवा दी. चोरों को अपने पास बैठाया और उनसे कहा कि तुम जैसे गुणी आदमियों को चोरी जैसा नीच धंधा कभी नहीं करना चाहिए. बल्कि सुसंस्कृत नागरिक की तरह जीवन बिताना चाहिए. तुम लोग आज से मेरे पास रहो.” चोरों ने उस दिन से चोरी करना छोड़ दिया और वे राजा के पास सम्मानपूर्वक रहने लगे. ***** |
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ढोल के भीतर पोल हर चमकती हुयी वस्तु हीरा नहीं होती है . |
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दूरतः पर्वताः रम्याः
(पर्वत दूर से बड़े रमणीक दिखाई देते हैं) Quote:
:bravo: जय जी, सूत्र भ्रमण करने और मूल्य-सामग्री-संवर्धन करने के लिए आपका आभारी हूँ. निश्चय ही, आपके द्वारा सुझाए गए तीनों मुहावरे उपरोक्त सूक्ति के बहुत नज़दीक हैं. |
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प्रसंग: निदा फ़ाज़ली
निदा फ़ाज़ली साहब की एक किताब है “तमाशा मेरे आगे”. इसमें उन्होंने बहुत से शो’अरा और अदबी शख्सियात से जुड़े हुए संस्मरण इस प्रकार बयाँ किये हैं कि उनकी बिना पर एक तस्वीर उभारना शुरू हो जाती है. यहाँ कडवाहट भी मिलेगी, पानी की रवानी भी है, कांच की किरचें भी है और फूलों की रूह-अफ्ज़ा खुशबू भी. इसी किताब के कुछ मजेदार प्रसंग पेश हैं: डॉ. राही मासूम रज़ा के बारे में प्रसंग (सारांश) * राही मासूम रज़ा अलीगढ़ से प्रोफ़ेसरी छोड़ कर जब बम्बई आये थे, उस समय हिंदी उर्दू साहित्य के जाने पहचाने नाम थे. उनके साथ दोनों भाषाओं में एक दर्जन से जियादा किताबें, एक नयी पत्नि और उनके साथ उनके पहले पति के चार लड़के, एक चांदी की पान की डिबिया, डोरों वाला एक लखनवी बटुआ, दस्तकार हाथों से सिले हुए कुछ मुग़लई अंगरखे, अलीगढ़ कट पाजामे, कुड़ते और शेरवानियाँ थीं. * गुदाज़ इश्क़ नहीं कम, जो मैं जवान न रहा वही है आग मगर आग में धुआं न रहा. जिगर का ये शेर उनके उस दौर का था, जब वो शराब से दूर हो चुके थे. शराब की वजह से पत्नि ने उनसे तलाक ले लिया था. शराब छोड़ने के बाद उसी तलाकशुदा पत्नि नसीम (?) से फिर शादी की- ! (साभार: शेष/ जन.- मार्च 2007 में जनाब मरगूब अली की समीक्षात्मक टिप्पणी पर आधारित) |
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प्रसंग: निदा फ़ाज़ली
* मेरे एक दोस्त सागर भगत ने एक फिल्म बनायी थी. फिल्म का नाम था “बेपनाह” उस मल्टी-स्टार फिल्म में संगीत खैयाम का था और गीत मैंने लिखे थे. निर्देशन जगदीश सिंघानिया का था, जिन्होंने फिल्म के बॉक्स ऑफिस पर नाकाम होने के बाद फिल्म अभिनेत्री पद्मा खन्ना से शादी कर ली. दोनों एक दुसरे की ज़रुरत बन गए थे. जगदीश से फिल्म असफल होने के बाद फिल्म इंडस्ट्री मुंह मोड़ रही थी और पद्मा जी का साथ उम्र छोड़ रही थी. * एक शाम वे (एक शायर), कैफ़ी आज़मी, गुलाम रब्बानी ताबां और राजेंदर सिंह बेदी के साथ एक लेडी इनकम टैक्स कमिश्नर के यहां आमंत्रित थे. साथ में मैं भी गया था. ये सारे सीनियर लोग गटागट जाम चढ़ा रहे थे और हर जाम के साथ अपनी उम्रे घटा रहे थे. थोड़ी देर में मैनें देखा, सरदार जाफरी 75 से 25 के हो गए, बेदी 22 के पायदान पर खड़े हो गए और कैफ़ी 18 से आगे बढ़ने को तैयार नहीं थे. मैं क्योंकि जूनियर था, इसलिए उनकी घटाई हुयी उम्रें मेरे ऊपर सवार हो गयीं. रात जब जियादा हो गई, तो महिला ने उन्हें रुखसत किया और अपने कुत्ते को अन्दर करके दरवाजा बंद कर लिया. ये चारों बुज़ुर्ग बीच चौराहे पर खड़े होकर अपनी नयी जवानियों का प्रदर्शन कर रहे थे और मैं उन्हें 300 साल के बूढ़े की तरह सम्हाल रहा था. इतने में अचानक जाफरी को याद आया, उनकी बत्तीसी उस महिला के घर छूट गई है. मैं भागता हुआ वापस गया. मैनें बेल बजाई. जब वो बाहर आई तो मैंने आने का मक़सद बताया. उन्होंने लाईट जलाई तो देखा, उनका कुत्ता उस बत्तीसी में फंसे गोश्त के रेशों से खेल रहा था. बड़ी मुश्किल से डेंचर छीन कर मुझे दिया. उसका एक दांत टूट गया था. जाफरी ने बताया कि वो डेंचर उन्होंने स्विस में बनवाया था. (साभार: शेष/ जन.- मार्च 2007 में जनाब मरगूब अली की समीक्षात्मक टिप्पणी पर आधारित) |
Re: इधर-उधर से
बहुत ही रोचक और मूड फ्रेश कर देने वाला सूत्र है यह, रजनीश जी। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। :bravo:
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Re: इधर-उधर से
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सूत्र विज़िट करने और इसमें दर्ज सामग्री पसंद करने के लिए अतिशय धन्यवाद, अभिषेक जी. आपकी टिप्पणियाँ दिशानिर्देश का काम करती हैं. |
Re: इधर-उधर से
साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता साहित्यकार सरदार करतार सिंह दुग्गल की नाट्य कृति “पुरानी बोतलें” में एक नाटक है “कोहकन“ जिसमे एक माली बागीचे में काम करता हुआ अपनी दिलकश आवाज में निम्नलिखित पंक्तियाँ बार बार गाता है. यह गीत फिजाओं में गूंजता प्रतीत होता है. जब 1996 में मैंने यह नाटक और ये पंक्तियाँ पढ़ी तो मुझे इनका अर्थ भी मालूम नहीं था और न ही इसके रचयिता के नाम का पता था. इसके पन्द्रह बरस के बाद यानि रविवार, दिनांक 20 मार्च 2011 को Hindustan Times में सरदार खुशवंत सिंह का कॉलम “With malice towards one and all” पढ़ा तो मैं यह देख कर मैं हैरान रह गया कि यही चार पंक्तियाँ मय अंग्रेजी अनुवाद के वहाँ उद्धृत की गयी थीं. यह कॉलम हज़रत अमीर खुसरो और उनके गुरु महान सूफ़ी संत हज़रत निजामुद्दीन औलिया के बारे में लिखा गया था. |
Re: इधर-उधर से
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Re: इधर-उधर से
मेहदी अली के कुछ चुनिन्दा शे'र |
Re: इधर-उधर से
गीतांजली से— |
Re: इधर-उधर से
Where the mind is without fear and the head is held high; |
Re: इधर-उधर से
जहाँ चित्त भय से विमुक्त हो |
Re: इधर-उधर से
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Re: इधर-उधर से
घड़ी |
Re: इधर-उधर से
आज़ादी क्या आज़ादी |
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चलता फिरता फ़रिश्ता
(लेखक: यशपाल जैन) यह उन दिनों की बात है जब चंपारण में किसानों का आन्दोलन चल रहा था. गांधी जी की उस सेना में सभी प्रकार के सैनिक थे. जिनमे आत्मिक बल ता वे उस लड़ाई में शामिल हो सकते थे, सत्याग्रहियों में कुष्ठ रोग से पीड़ित एक खेतिहर मजदूर भी था. उसके शरीर में घाव थे. वह उन पर कपड़ा लपेट कर चलता था. एक दिन शाम को सत्याग्रही अपनी छावनी को लौट रहे थे. पर बिचारे कुष्ठी से चला नहीं जाता था.उसके पैरों पर बंधे कपड़े कहीं गिर गए थे. घावों से खून बह रहा था. सब लोग आश्रम में पहूँच गए. बस, एक वही व्यक्ति रह गया. प्रार्थना का समय हुआ. गाँधी जी ने निगाह उठा कर अपने चारों ओर बैठे सत्याग्रहियों को देखा, पर उन्हें वह महारोगी दिखाई नहीं दिया. उन्होंने पूछताछ की तो पता चला कि लौटते में वह पिछड़ गया था. यह सुन कर गाँधी जी तत्काल उठ खड़े हुए और हाथ में बत्ती लेकर उसकी तलाश में निकल पड़े. चलते चलते उन्होंने देखा कि रास्ते में एक पेड़ के नीचे एक आदमी बैठा है. दूर से ही गाँधी जी को पहचान कर वह चिल्लाया, “बापू!” उसके पास जा कर गाँधी जी ने बड़ी व्यथा से कहा, “अरे भाई, तुमसे चला नहीं जाता था तो मुझसे क्यों नहीं कहा?” तभी उनका ध्यान उसके पैरों की ओर गया. वे खून से लथ-पथ थे. गाँधी जी ने झट अपनी चादर को फाड़ कर उसके पेरों पर कपड़ा लपेट दिया और उसे सहारा दे कर धीरे-धीरे आश्रम में ले आये, उसके पैर धोये और फिर प्यार से अपने पास बिठा कर उन्होंने प्रार्थना की. अपने धर्म ग्रंथों में हम फरिश्तों की काहानियाँ पढ़ते हैं, जो संकट में फंसे लोगों की सहायता के लिए दोड़े चले आते थे. इससे बढ़ कर हमारा सौभाग्य और क्या हो सकता है कि एक चलता फिरता फ़रिश्ता वर्षों तक हमारे बीच रहा. ***** |
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शहर में किस किस से लेते इन्तक़ाम
घर में आके सबसे पहले सो गए. (निदा फ़ाज़ली) पराई आग़ पे हाथों को तापते रहिये नहीं तो सुब्ह तलक यूं ही कांपते रहिये. (निदा फ़ाज़ली) मंजिल मिले न मिले इसका ग़म नहीं मंजिल की जुस्तजू में मेरा कारवां तो है (संगीतकार नौशाद का एक शे’र) |
Re: इधर-उधर से
सुभाषितम
शैले शैले न माणिक्यं, मौक्तिकं न गजे गजे i साधवो न हि सर्वत्रं, चन्दनं न वने वने ii (भावार्थ: हर पर्वत पर मणियाँ नहीं मिलतीं, हर हाथी के भाल पर मोतियों की सजावट नहीं होती, हर स्थान पर सच्चे साधू नहीं पाये जाते, और हर जंगल में चन्दन के वृक्ष भी प्राप्त नहीं होते) गीतों में राग 1. आयो कहाँ से घनश्याम = खमाज 2. लागा चुनरी मैं दाग = भैरवी 3. नदिया किनारे हेराये = पीलू 4. बोले रे पपीहरा = मल्हार |
Re: इधर-उधर से
कुछ अंग्रेजी शब्द और उनके हिंदी समानार्थक शब्द:
Anomaly = असंगति Entrust... = सौंपना Guiltless = निरपराध Commentators = टीकाकार अब कुछ हिंदी शब्दावली पर विचार करते है: मनोदाह = मन की पीड़ा परिचर्या = सेवा लोकापवाद = लोकनिंदा उद्दंड = अक्खड़ |
Re: इधर-उधर से
*सबसे पहले दो शेर आपकी सेवा में प्रस्तुत हैं: |
Re: इधर-उधर से
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