शायरी में मुहावरे
शायरी में मुहावरे
मित्रो आज हम आपको शेरो-शायरी में मुहावरों के प्रयोग के बारे में बताना चाहेंगे. वैसे तो हिंदी-उर्दू गद्य और कविता-शायरी में यदा कदा मुहावरों के दर्शन हो जाते हैं, लेकिन आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि आज से लगभग दो सौ वर्ष पहले अरबी-फ़ारसी-उर्दू और संस्कृत के विद्वान ‘सदाखैर’ मिर्ज़ा जान तपिश देहलवी (जन्म: सन 1755 के आसपास / मृत्यु: सन 1814) ने अपने संघर्षमय तथा क्रांतिकारी जीवन में मुब्तिला होने के बावजूद “हिन्दुस्तानी मुहावरों का एक दुर्लभ कोष” तैयार किया जिसका फ़ारसी में नाम रखा गया – “शम्सुल बयान फ़ी मुस्तलहातिल हिन्दुस्तान”. यहाँ यह बता देना जरुरी है कि ‘सदाखैर’ मिर्ज़ा जान नवाब शम्सुद्दौला (जो मुर्शिदाबाद –ढाका - के नवाब थे) के नाम पर इस कोष का नाम रखा गया है. इनका पत्राचार लखनऊ के अपदस्त नवाब वजीर अली से था जो नवाब आसिफुद्दौला की मृत्यु के बाद सन 1797 में लखनऊ के नवाब बने थे. अतः जब अंग्रेजों द्वारा वज़ीर अली को गिरफ़्तार किया गया तो उनके निकटवर्ती माने नवाब शम्सुद्दौला तथा उनके सहयोगी ‘सदाखैर’ मिर्ज़ा जान को भी गिरफ्तार कर लिया गया. 1806 में वह अंग्रेजों की कैद से रिहा हुये. इस बीच कलकत्ते में अपने प्रवास के दौरान ही मिर्ज़ा जान की मृत्यु सन 1814 में हुयी. अब पुनः उक्त कोष पर लौट के आते हैं. इस किताब की ख़ासियत यह है कि इसमें उर्दू और हिंदी के विद्वान् लेखक-कवि ने तत्कालीन जन-जीवन में प्रचलित मुहावरों का संकलन तथा व्याख्या ही तैयार नहीं की बल्कि हर मुहावरे को समझाने के लिये जाने-माने शायरों के माकूल अश’आर दे कर भी इस मुहावरा कोष को अनोखी गरिमा प्रदान की. यह हिंदी-उर्दू-हिन्दुस्तानी में अपनी तरह का एक अनूठा तथा दुर्लभ कोष है. इस कोष को खोजने तथा हिंदी में प्रकाशित करने का श्रेय ऐतिहासिक महत्व की संस्था “ख़ुदा बख्श ओरियेन्टल पब्लिक लाइब्रेरी, पटना (बिहार)”को जाता है. यहाँ उपरोक्त संकलन से सहायता लेते हुये केवल चुनिन्दा मुहावरे तथा अश’आर ही आपकी सेवा में देने का प्रयास किया गया है. आशा हैयह प्रयास आपको अवश्य पसंद आयेगा. |
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उधेड़ना-बुनना (1)
किसी व्यक्ति द्वारा एकांत में किसी समस्या या उसके समाधान के बारे में तनावपूर्ण स्थिति में सोच-विचार करना. उदाहरण: कुछ आप ही गिरा के, आप ही कुछ चुनता है कहता है कुछ आप ही, आप ही कुछ सुनता है ऐ ‘दर्द’ देख हमको हमेशा ये दिले-ए-दीवाना क्या कुछ उधेड़ता है, आप ही कुछ बुनता है. (शायर: दर्द) उधेड़-बुन (2) उदाहरण: क्या क्या हिर्सो-हवस की धुन है दिल को किस किस ढब की उधेड़बुन है दिल को तशवीशे मआश मग्ज़े-जां खाती जाती है दुनिया की गरज़ तलाश, धुन है दिल को. (शायर: मिर्ज़ा अली नकी ‘महशर’) |
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ओस पड़ जानी
यह मुहावरा दो अर्थों में प्रयुक्त होता है: 1. किसी कीमती वस्तु का मूल्य कम हो जाना 2. किसी वस्तु का आकर्षण एकाएक बढ़ जाना उदाहरण (1): बर्गे-गुल पर भी फिर इक ओस सी पड़ जावे है देखे आलम जो वो तेरी अरक़ अफ़शानी का ... (मिर्ज़ा जान “सदाखैर”) उदाहरण (2): जुज़ अश्के-बुलबुल अब नहीं गुल शाखसार पर क्या ओस पड़ गयी है चमन में बहार पर .... (मीर हसन) |
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मुहावरा:
आँखे पथरा जाना भावार्थ: प्रतीक्षा करते करते थक जाना उदाहरण: उस संगदिल की वादा खिलाफ़ी तो देखिये पथरा गयी हैं आँखें मेरी इंतज़ार से ..... (ख्वाजा मीर ‘दर्द’) |
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Actually I was searching the same since many days. Thanks.
edit note: external links struck off |
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मुहावरा:
एक से दिन नहीं रहते भावार्थ: विपरीत परिस्थितियाँ, कष्ट या संकट आदि सदा नहीं रहते. उदाहरण: हिज्र की रातें भी आखिर कट गयीं एक से रहते. .नहीं. .दिन हमनशीं (शायर: मीर सज्जाद) |
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मुहावरा > आँखों में खटकना
भावार्थ: आँखों को अप्रिय लगना उदाहरण: जूं अश्क़ तू नज़रों से क्योंकर न गिरा देवे आँखों में तेरी प्यारे हर वक़्त खटकता हूँ. (शायर: कोषकार स्वयं) |
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मुहावरा > आँख झपकनी
भावार्थ: मुकाबला करने की शक्ति समाप्त हो जाना उदाहरण: मुक़ाबिल हुस्न की गर्मी के तेरे कौन अब होवे कि सूरज की भी तेरे रू-ब-रू आँखें झपकती हैं. (शायर: कोषकार स्वयं) |
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मुहावरा: आस्तीन का सांप
भावार्थ: निकट रहने वाले व्यक्ति द्वारा शत्रुता का व्यवहार उदाहरण: 1. रफ़्ता रफ़्ता यार जौहर अपने दिखलाने लगा आस्तीं का सांप निकला यह तो जी खाने लगा. (शायर: मिर्ज़ा फिदवीं) 2. डस न ले आस्तीन के सांप कहीं इन से महफूज़ जिंदगी रखना .. (आधुनिक शायर: चाँद शेरी) |
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मुहावरा > आँखें नीली-पीली करना
भावार्थ: क्रोध करना उदाहरण: रोज़ आँखें नीली-पीली कर जताता है वो शोख़ बज़्म में तो चश्मे-हैरत से न देखा कर मुझे . (शायर: जुर्रअत) |
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मुहावरा > बिसराम लेना
भावार्थ: आराम करना या रात बिताना उदाहरण: दिल! साये में उस ज़ुल्फ़ के आराम किया कर टुक शाम को तो मुर्ग तू बिसराम किया कर . (शायर: क़ायम) |
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मुहावरा > बाग़ बाग़ हो जाना
भावार्थ: दिल खुश हो जाना उदाहरण: किस कदर है तेरे मकदम से खुशी गुलशन में आज देख तुझको गुल हुआ जाता है कैसा बाग़ ..... बाग़ (शायर: हेदायत) |
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मुहावरा > भबूका
भावार्थ: (प्रेमिका के) चेहरे की तेज चमक उदाहरण: भबूका इस कदर मुखड़ा है ऐ रश्के क़मर किसका ज़रा इतना भी जाना कर कि जलता है जिगर किसका (शायर: कोषकार स्वयं) |
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मुहावरा > पानी पी पी कोसना
भावार्थ: अत्यधिक बद्दुआ देना या श्राप देना उदाहरण: क्या ज़ुल्म है बस दिल मसोसा कीजिये यादे-लबे-बाम का दिनरात बोसा कीजिये ईज़ा है सख्त मोहतसिब के हाथ देखना अब उनको पानी पी पी कोसा कीजिये (शायर: मिर्ज़ा अली नकी ‘महशर’) |
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मुहावरा > पातों आ लगना (दरख्त का)
भावार्थ: 1.पत्ते झड़ना या पतझड़ का आना 2. शक्ति या सामर्थ्य का कम होना 3. प्रतिकूल परिस्थितियाँ के कारण सुख चैन की समाप्ति उदाहरण: अहवाल की हमारे तुमको तो क्या खबर है गुज़रे है जिसके जी पर सो ही ये जानता है आँखों के गिर्द मेरे मिज़गां की है ये सूरत गोया किनारे दरिया ख़स बह के आ रहा है और दिल जो है बगल में सो इस तरह का फोड़ा हरगिज़ न वो पके है ज़ालिम न फूटता है अलकिस्सा क्या कहूँ मैं गुलशन में ज़िन्दगी की तुझ बिन निहाल ‘सौदा’ पातों ही आ लगा है (शायर: सौदा) |
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मुहावरा > बात को पी जाना
भावार्थ: बात को अनसुना कर देना उदाहरण: सुख़न औरों का तिश्ना हो के सुनना और सब कहना मगर जब ‘आबरू’ की बात को सुनना तो पी जाना (तिश्ना = प्यासा) (शायर: आबरू) |
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मुहावरा > पिसना
भावार्थ: कष्ट या सज़ा का सहना उदाहरण: मरता नहीं हूँ कुछ मैं इस संगदिल के हाथों पिसता हूँ आप अपने कमबख्त दिल के हाथों (मीर दर्द) |
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मुहावरा > पानी न मांगना
भावार्थ: ऐसा वार करना जिससे शिकार तत्काल मर जाये उदाहरण: जो तुझ से बलाए नागहानी मांगे या राहे अदम की कुछ निशानी मांगे दिखलावे उसे तू अपनी शमशीरे निगाह जिस का मारा कभी न पानी मांगे (शायर: मीर सोज़) |
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मुहावरा > पाँव गाड़ना
भावार्थ: अपनी बात पर अडिग रहना उदाहरण: यारब रहे तलब में कोई कब तलक फिरे तस्कीन दे कि बैठ रहूँ पाँव गाड़ कर (शायर: मीर तक़ी ‘मीर’) |
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मुहावरा > फूंक फूंक के पाँव धरना
भावार्थ: सावधानी से काम करना या बच बच कर चलना उदाहरण: ज़माना बस की नाज़ुक तर है बुलबुल, खातिरे गुल से सबा भी फूंक फूंक इस गुलसितां में पाँव धरती है. (शायर: हिदायत) |
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मुहावरा > तारे गिनना
भावार्थ: 1.एकांत में बिना काम के रहना 2. इंतज़ार करना उदाहरण: इन्तेज़ारी में तेरे कल की तरह ऐ माहरू ! आज की रात भी गिनते ही कटी तारों को. (अर्थ: माहरू = चाँद जैसे मुख है जिसका अर्थात प्रेमिका) (शायर: कोषकार स्वयं) |
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मुहावरा > ताली
भावार्थ: 1. किसी को बुलाने या दस्तक देने के अर्थ में 2. हंसी उड़ाना या परिहास करना 3. संगीत में ताल बनाए रखने का उपक्रम उदाहरण: 1.सुबह होते जो गई आज मेरी आँख झपक दी खुशी ने वहीँ आकर दरे दिल पर दस्तक (सौदा) 2. किर्मे-शब ताब आनकर चमके है गिर्द उस माह के क्यों न लड़के देख कर उसको बजावें तालियाँ ..... (शायर: हिदायत) 3.उसकी ताली थी कि जिस पर अंतरा आ कर रुका दिल की महफ़िल में सुरों का कारवाँ आ कर रुका (आधुनिक/ रजनीश मंगा) |
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मुहावरा > जुग
भावार्थ: 1. समय की लम्बी अवधि 2. चौसर (खेल में) दो गोटियों का एक ही खाने में होना उदाहरण: 1 और 2: सदा ग़म की चौसर बिछा कर नहीफ़ बिरहा को ले बैठी हूँ......अपना हरीफ़ सो कच्ची ही पड़ती है.....हर हाल में कई जुग हुये मुझको.........जंजाल में. (शायर: फज़ायत अली खां) |
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मुहावरा > जी की अमां पाऊं
भावार्थ: कोई गंभीर बात कहने से पूर्व किसी बारुतबा व्यक्ति से क्षमा याचना करना उदाहरण: कहूँ इक बात मैं तुमसे अगर जी की अमां पाऊं मुझे कुरबान होने दे, तेरे कुरबान हो ...... जाऊं (शायर: मीर सोज़) |
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मुहावरा > जान पर खेलना
भावार्थ: कोई ऐसा काम करना जिसमे जान जाने का खतरा हो उदाहरण: पैदा हुआ जब से खूने-दिल ही मैं पिया अब तक मर मर के इश्क़बाजी में जिया कोई और न खेल, खेल आया मुझको तिफ़ली में भी जान ही पे मैं खेला किया (तिफ़ली = बचपन) (शायर: जुर्रअत) |
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मुहावरा > चुटकियों में उड़ाना
भावार्थ: बिना गंभीरता दिखाये बहाना बना कर टालना उदाहरण: आहो – फ़ुगां .. सुनी .. न कभी अंदलीब की बुलबुल को गुल ने चुटकियों ही में उड़ा दिया (शायर: हिदायत) |
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मुहावरा > 'चल' पड़ना
भावार्थ: उदाहरण: 1. लोगों के समूह का तितर बितर हो जाना 2. अपनी बात से पीछे हटना 1. चल बसे सब्रो-करारो-ताकतों-ताबो-तवां चलते ही तेरे सभों में यकबयक चल पड़ गई 2. आवारा मेरे होने का बाईस वो ज़ुल्फ़ है काफ़िर हूँ इसमें होवे अगर एक बाल चल (शायर: मीर तकी ‘मीर’) |
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मुहावरा > चारपाई (खाट)
भावार्थ: सैनिकों की (तत्कालीन) बोलचाल में घायलों और मृतकों की गिनती करना उदाहरण: तेरी गली से सदा-ए-कुशिन्द-ए-आलम हज़ारों जाती हुई हमने चारपाइयां देखी (शायर: मीर तकी ‘मीर’ ) |
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महत्वपूर्ण जानकारी मुहैया कराने के लिए आपका हार्दिक आभार......... |
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मुहावरा > चिराग़ ठंडा करना
भावार्थ: दीपक बुझाना उदाहरण: पीरी में सिर्फ सर्दी-ए हर दाग़ क्यों न हो ठंडा करे है हर कोई वक्ते-सहर चराग़ (शायर: कोशकार स्वयं) |
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मुहावरा > छेड़ना
भावार्थ: 1. बात शुरू करना या 2. हास-परिहास करना उदाहरण: किसी से गो जुदा हैं मिस्ले तारे साज़ हम लेकिन ज़रा छेड़े से मिलते हैं मिला ले जिसका जी चाहे (शायर: नवाब मुहब्बत खां) |
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मुहावरा > छुरी तले दम लेना
भावार्थ: अपना प्रयोजन प्रगट न करना और धीरज रखना उदाहरण: दिला फ़िराक़े-मिजः में तू यारे क़ातिल के तड़फ़ न इतना, ज़रा छुरी तले दम ले ले (शायर: कोशकार स्वयं) |
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मुहावरा > छछून्दर (चूहे की तरह एक छोटा जानवर)
भावार्थ: एक तीव्रगामी आतिशबाजी जो आग लगने पर नाचने लगती है. फ़ारसी में ‘मूशक’ शब्द इसी अर्थ में आता है. हिंदी-उर्दू में भी छछून्दर छोड़नी इसी अर्थ में आया है. उदाहरण: माहरू के पास जा किस ने छछून्दर छोड़ दी घर जला आशिक़ का उन लोगों का क्या टूटा हुआ (माहरू = चाँद से चेहरे वाला अर्थात प्रेमिका) (शायर: आबरू) नोट: इस मुहावरे को पढ़ कर मुझे अपने बचपन का एक वाक़या याद आ गया. यह शायद 1962 की बात है. हम लोग उन दिनों नजीबाबाद (NAJIBABAD, UTTAR PRADESH) में रहते थे. 'शब-ब-रात' (एक मुस्लिम त्यौहार) के अवसर पर बच्चों के बीच खड़ा मैं आतिशबाजी देख रहा था. दिवाली की तरह इस त्यौहार में भी आतिशबाजी छोड़ने का रिवाज है. अनारियाँ (मिटटी के छोटे-छोटे अनार जो आग लगा कर हाथ से आकाश की ओर मिसाईल की भांति फेंके जाते हैं) और छछून्दर आदि छोड़े जा रहे थे जिन्हें बच्चे और बड़े खूब enjoy कर रहे थे. अचानक छोड़ी हुई एक छछून्दर जमीन पर लहराती हुई मेरी ओर आ धमकी. इसने न सिर्फ़ मेरी एक जुराब जला दी बल्कि जुराब के नीचे टखने के ऊपर पैर की त्वचा भी जला डाली जो दो-तीन दिन में ठीक हो सकी. |
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मुहावरा > छाती फटना
भावार्थ: किसी का दुःख देख कर बहुत बैचेन होना उदाहरण: ताक़त है किसे शर्हे मुहब्बत की रक़म की सुन हाल मेरा फट गई छाती भी कलम की (शायर: हिदायत) |
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मुहावरा > छिटकना चाँदनी का
भावार्थ: साफ़ और चमकता हुआ चाँद दिखना उदाहरण: वो छिटकी हुई चांदनी जाबजा वो जाड़े की आमद वो ठंडी हवा (शायर: मीर हसन) |
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मुहावरा > हाल हाल चलना
भावार्थ: तेज तेज चलना उदाहरण: जाने है फर्शे-रह तेरी मत हाल हाल चल ऐ रश्के-हूर आदमियों की सी चाल चल (शायर: मीर तक़ी ‘मीर’) |
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मुहावरा > ख़ाक डालना
भावार्थ: 1. बदनामी के डर से किसी बात को गुप्त रखना 2. नष्ट कर देना उदाहरण: 1. गर क़त्ल किया ‘बक़ा’ को खूबां इस बात को मुंह से मत निकालो पिन्हां ही भला है खूने-आशिक़ जाने दो अब उसपे ख़ाक डालो (मो. बक़ा) 2. सुपुर्दे-खाक कर डाला तेरी आँखों की मस्ती ने हजारों साल जी लेते अगर दीदार न होता. |
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उम्दा सूत्र
ऐसे सूत्र प्रस्तुत करने के लिए रजनीश भाई को साधुवाद |
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