भू-पर्यटन
पर्यटन भूगोल
पर्यटन भूगोल या भू-पर्यटन, मानव भूगोल की एक प्रमुख शाखा हैं। इस शाखा में पर्यटन एवं यात्राओं से सम्बन्धित तत्वों का अध्ययन, भौगोलिक पहलुओं को ध्यान मे रखकर किया जाता है। नेशनल जियोग्रेफ़िक की एक परिभाषा के अनुसार किसी स्थान और उसके निवासियों की संस्कृति, सुरुचि, परंपरा, जलवायु, पर्यावरण और विकास के स्वरूप का विस्तृत ज्ञान प्राप्त करने और उसके विकास में सहयोग करने वाले पर्यटन को "पर्यटन भूगोल" कहा जाता है। भू पर्यटन के अनेक लाभ हैं। किसी स्थल का साक्षात्कार होने के कारण तथा उससे संबंधित जानकारी अनुभव द्वारा प्राप्त होने के कारण पर्यटक और निवासी दोनों का अनेक प्रकार से विकास होता हैं। पर्यटन स्थल पर अनेक प्रकार के सामाजिक तथा व्यापारिक समूह मिलकर काम करते हैं जिससे पर्यटक और निवासी दोनों के अनुभव अधिक प्रामाणिक और महत्त्वपूर्ण बन जाते है। भू पर्यटन परस्पर एक दूसरे को सूचना, ज्ञान, संस्कार और परंपराओं के आदान-प्रदान में सहायक होता है, इससे दोनों को ही व्यापार और आर्थिक विकास के अवसर मिलते हैं, स्थानीय वस्तुओं कलाओं और उत्पाद को नए बाज़ार मिलते हैं और मानवता के विकास की दिशाएँ खुलती हैं साथ ही बच्चों और परिजनों के लिए सच्ची कहानियाँ, चित्र और फिल्में भी मिलती हैं जो पर्यटक अपनी यात्रा के दौरान बनाते हैं। पर्यटन भूगोल के विकास या क्षय में पर्यटन स्थल के राजनैतिक, सामाजिक और प्राकृतिक कारणों का बहुत महत्त्व होता है और इसके विषय में जानकारी के मानचित्र आदि कुछ उपकरणों की आवश्यकता होती है। |
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पर्यटन का भौगोलिक प्रारम्भ
भूगोल और पर्यटन का सम्बंध बहुत पुराना है, लेकिन पर्यटन का भौगोलिक प्रारम्भ धीरे-धीरे हुआ। प्राचीन काल से ही लोग एक स्थान से दूसरे स्थान को गमनागमन करते थे। अनेक प्रजातियों जैसे मंगोलायड प्रजाति, नीग्रोइड्स इत्यादि ने अन्तरमहाद्वीपीय स्थानान्तरण किया, किन्तु ये पलायन केवल जीवन के स्तर पर आधारित था और यह मानव बसाव की स्थायी प्रक्रिया थी अतएव इसका कोई पर्यटन महत्व नहीं माना जा सकता। जब खोज का युग आया तो पुर्तगाल और चीन जैसे देशों के यात्रियों ने आर्थिक कारणों, धार्मिक कारणों एवं दूसरी संस्कृतियों को जानने और समझने की जिज्ञासा के साथ अनेक अज्ञात स्थानों की खोज करने की शुरुआत की। इस समय परिवहन का साधन केवल समुद्री मार्ग एवं पैदल यात्रा थे। यहीं से पर्यटन को एक अलग रूप एवं महत्त्व मिलना प्रारम्भ हुआ। भूगोल ने पर्यटन को विकास का रास्ता दिखाया और इसी रास्ते पर चलकर पर्यटन ने भूगोल के लिए आवश्यक तथ्य एकत्रित किए। आमेरिगो वेस्पूची, फ़र्दिनान्द मैगलन, क्रिस्टोफ़र कोलम्बस, वास्को दा गामा और फ्रांसिस ड्रेक जैसे हिम्मती यात्रियों ने भूगोल का आधार लेकर समुद्री रास्तों से अनजान स्थानों की खोज प्रारम्भ की और यही से भूगोल ने पर्यटन को एक प्राथमिक रूप प्रदान किया। अनेक संस्कृतियों, धर्मों और मान्यताओं का विकास पर्यटन भूगोल के द्वारा ही संभव हुआ। विश्व के विकास और निर्माण में पर्यटन भूगोल का अत्यधिक महत्त्व है। इसकी परिभाषा करते हुए कहा भी गया है कि खोज का जादुई आकर्षण ही पर्यटन भूगोल का आधार है और स्वयं संपर्क में आकर प्राप्त किया गया प्रामाणिक अनुभव इसकी शक्ति है। आजकल भू पर्यटन का परिधि भू पार कर अंतरिक्ष की ओर बढ़ चली है। |
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http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1295128633 वास्को डि गामा कालीकट, भारत के तट पर 20 मई, 1498 || || || || http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1295128633 कोलम्बस की यात्राओं सें संबंधित यह मानचित्र १४९० में बनाया गया था |
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वास्को द गामा
जन्म: १४६०-१४६९ (साइन्स, अलेन्तेजो, पुर्तगाल) मृत्यु: दिसंबर 24, 1524 (आयु लगभग ५४-६४) कोच्चि व्यवसाय: अन्वेषक, सैन्य नैसेना कमांडर जीवनसाथी: कैटरीना द अतायदे डॉम वास्को द गामा (Vasco da Gama) (लगभग १४६० या १४६९ - २४ दिसंबर, १५२४) एक पुर्तगाली अन्वेषक, यूरोपीय खोज युग के सबसे सफल खोजकर्ताओं में से एक, और यूरोप से भारत सीधी यात्रा करने वाले जहाज़ों का कमांडर था, जो केप ऑफ गुड होप, अफ्रीका के दक्षिणी कोने से होते हुए भारत पहुँचा। वह जहाज़ द्वारा तीन बार भारत आया। उसकी जन्म की सही तिथि तो अज्ञात है लेकिन यह कहा जाता है की वह १४९० के दशक में साइन, पुर्तगाल में एक योद्धा था। |
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आरंभिक जीवन
वास्को द गामा का जन्म अनुमानतः १४६० में या में साइन्स, पुर्तगाल के दक्षिण-पश्चिमी तट के निकट हुआ था। इनका घर नोस्सा सेन्होरा दास सलास के गिरिजाघर के निकट स्थित था। तत्कालीन साइन्स जो अब अलेन्तेजो तट के कुछ बंदरगाहों में से एक है, तब कुछ सफ़ेद पुती, लाल छत वाली मछुआरों की झोंपड़ियों का समूह भर था। वास्को द गामा के पिता एस्तेवाओ द गामा, १४६० में ड्यूक ऑफ विसेयु, डॉम फर्नैन्डो के यहां एक नाइट थे। डॉम फर्नैन्डो ने साइन्स का नागर-राज्यपाल नियुक्त किया हुआ था। वे तब साइन्स के कुछ साबुन कारखानों से कर वसूलते थे।एस्तेवाओ द गामा का विवाह डोना इसाबेल सॉद्रे से हुआ था। वास्को द गामा के परिवार के बारे में आरंभिक अधिक ज्ञात नहीं है। पुर्तगाली इतिहासकार टेक्सियेरा द अरागाओ बताते हैं, कि एवोरा शहर में वास्को द गामा की शिक्षा हुई, जहां उन्होंने शायद गणित एवं नौवहन का ज्ञान अर्जित किया होगा। यह भी ज्ञात है कि गामा को खगोलशास्त्र का भी ज्ञान था, जो उन्होंने संभवतः खगोलज्ञ अब्राहम ज़क्यूतो से लिया होगा। १४९२ में पुर्तगाल के राजा जॉन द्वितीय ने गामा को सेतुबल बंदरगाह, लिस्बन के दक्षिण में भेजा। उन्हें वहां से फ्रांसीसी जहाजों को पकड़ कर लाना था। यह कार्य वास्को ने कौशल एवं तत्परता के साथ पूर्ण किया। |
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यात्रा
८ जुलाई, १४९७ के दिन चार जहाज़ (साओ गैब्रिएल, साओ राफेल, बेरियो, और अज्ञात नाम का एक संचयन जहाज़) लिस्बन से चल पड़े, और उसकी पहली भारत यात्रा आरंभ हुई। उससे पहले किसी भी यूरोपीय ने इतनी दूर दक्षिण अफ़्रीका या इससे अधिक यात्रा नहीं की थी, यद्यपि उससे पहले एक और पुर्तगाली खोजकर्ता, बारटोलोमीयु डियास बस इतनी ही दूरी तक गया था। चूंकि वह क्रिसमस के आसपास का समय था, द गामा के कर्मीदल ने एक तट का नाम, जिससे होकर वे गुजर रहे थे, "नैटाल" रखा। इसका पुर्तगाली में अर्थ है "क्रिसमस", और उस स्थान का यह नाम आज तक वही है। जनवरी तक वे लोग आज के मोज़ाम्बीक तक पहुँच गए थे, जो पूर्वी अफ़्रीका का एक तटीय क्षेत्र है जिसपर अरब लोगों ने हिन्द महासागर के व्यापार नेटवर्क के एक भाग के रूप में नियंत्रण कर रखा था। उनका पीछा एक क्रोधित भीड़ ने किया जिन्हें ये पता चल गया की वे लोग मुसलमान नहीं हैं, और वे वहाँ से कीनिया की ओर चल पड़े। वहाँ पर, मालिंडि में, द गामा ने एक भारतीय मार्गदर्शक को काम पर रखा, जिसने आगे के मार्ग पर पुर्तगालियों की अगुवाई की और उन्हें २० मई, १४९८ के दिन कालीकट (इसका मलयाली नाम कोज़ीकोड है), केरल ले आया, जो भारत के दक्षिण पश्चिमी तट पर स्थित है। गामा ने कुछ पुर्तगालियों को वहीं छोड़ दिया, और उस नगर के शासक ने उसे भी अपना सब कुछ वहीं छोड़ कर चले जाने के लिए कहा, पर वह वहाँ से बच निकला और सितंबर १४९९ में वापस पुर्तगाल लौट गया। उसकी अगली यात्रा १५०३ में हुई, जब उसे ये ज्ञात हुआ की कालीकट के लोगों ने पीछे छूट गए सभी पुर्तगालियों को मार डाला है। अपनी यात्रा के मार्ग में पड़ने वाले सभी भारतीय और अरब जहाज़ो को उसने ध्वस्त कर दिया, और कालीकट पर नियंत्रण करने के लिए आगे बढ़ चला, और उसने बहुत सी दौलत पर अधिकार कर लिया। इससे पुर्तगाल का राजा उससे बहुत प्रसन्न हुआ। सन् १५३४ में वह अपनी अंतिम भारत यात्रा पर निकला। उस समय पुर्तगाल की भारत में उपनिवेश बस्ती के वाइसरॉय (राज्यपाल) के रूप में आया, पर वहाँ पहुँचने के कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई। |
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क्रिस्टोफ़र कोलम्बस
क्रिस्टोफर कोलम्बस ( १४५१ - २० मई, १५०६) एक समुद्री-नाविक, उपनिवेशवादी, खोजी यात्री उसकी अटलांटिक महासागर में बहुत से समुद्री यात्राओं के कारण अमेरिकी महाद्वीप के बारे में यूरोप में जानकारी बढ़ी। यद्यपि अमेरिका पहुँचने वाला वह प्रथम यूरोपीय नहीं था किन्तु कोलम्बस ने यूरोपवासियों और अमेरिका के मूल निवासियों के बीच विस्तृत सम्पर्क को बढ़ावा दिया। उसने अमेरिका की चार बार यात्रा की जिसका खर्च स्पेन की रानी इसाबेला (Isabella) ने उठाया। उसने हिस्पानिओला (Hispaniola) द्वीप पर बस्ती बसाने की कोशिश की और इस प्रकार अमेरिका में स्पेनी उपनिवेशवाद की नींव रखी। इस प्रकार इस नयी दुनिया में यूरोपीय उपनिवेशवाद की प्रक्रिया आरम्भ हुई। |
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||.....अब वापस आते हैं भू-पर्यटन पर.....||
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भौगोलिक विचारधाराओं मे पर्यटन
प्राचीन एवं मध्य काल में कई प्रसिद्ध भूगोलवेत्ताओं ने अनेक स्थानों की यात्राएँ की। कुछ प्रसिद्ध भूगोलवेत्ताओं द्वारा दिए पर्यटन सम्बन्धी विचार निम्नलिखित हैं। |
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यूनानी विचारधारा प्राचीन यूनानी विद्वानों ने भूगोल का बहुत विकास किया। यह वह काल था जब संसार केवल एशिया, यूरोप और अफ़्रीका तक ही सीमित माना जाता था। अनेग्जीमेण्डर, ने अनेक स्थानों की यात्राएँ कीं। उसे संसार का सर्वप्रथम मानचित्र निर्माता बताया गया है। इरैटोस्थनिज़ ने पृथ्वी की परिधि नापने के लिए मिस्र के आस्वान क्षेत्र में साइने नामक स्थान को अपना प्रयोगस्थल बनाया,जो आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है।
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इसी प्रकार पोसिडोनियस ने भी अपने शास्त्रों में भौतिक भूगोल पर बल दिया, दूसरी तरफ उसने गेलेशिया के लोगों का भी वर्णन किया। क्लाडियस टॉलमी ने अनेक ग्रंथों एवं मानचित्रों की रचना की। एक बड़ी रोचक घटना टॉलमी के बनाए मानचित्रों से जुड़ी है, पोसिडोनियस के माप को लेकर टॉलमी ने अपने मानचित्र बनाऐ थे, लेकिन उसमें यह दोष रहा कि उसमें पृथ्वी का आकार छोटा था। टॉलमी के मानचित्रों के इस दोष का प्रभाव कोलम्बस की यात्राओं पर पड़ा, क्योंकि उसने इन मानचित्रों का अनुसरण करते हुए अमेरिका को एशिया समझा।
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रोमन विचारधारा स्ट्रैबो, पोम्पोनियस मेला और प्लिनी ने अनेक क्षेत्रों की यात्राएं कीं। स्ट्रैबो ने लिखा कि "भूगोल के द्वारा समस्त संसार के निवासियों से परिचय होता है। भूगोलवेत्ता एक ऐसा दार्शनिक होता है, जो मानवीय जीवन को सुखी बनाने और खोजो में संलग्न रहता है।" पोम्पोनियस मेला के ग्रन्थ कॉस्मोग्राफ़ी में विश्व का संक्षिप्त वर्णन मिलता है।
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अरब विचारधारा प्रमुख अरब विद्वान अल-इदरीसी ने केवल पर्यटन के उद्देश्य से ही एक ग्रंथ लिखा- उसके लिए जो मनोरंजन के लिए विश्व भ्रमण की इच्छा रखता है। इसके साथ उसने एक मानचित्रावली भी प्रकाशित की। अल-बरुनी, अल-मसूदी, इब्न-बतूता आदि अरब भूगोलवेत्ताओं ने भी अनेक यात्राएँ कर क्षेत्रीय भूगोल के अन्तर्गत पर्यटन को बढावा दिया।
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भारतीय विचारधारा भारतीय परंपरा में परिव्राजक का स्थान प्राचीन काल से ही है। संन्यासी को किसी स्थान विशेष से मोह न हो, इसलिए परिव्राजक के रूप में पर्यटन करते रहना होता है। ज्ञान के विस्तार के लिए अनेक यात्राएँ की जाती थीं। आदि शंकर और स्वामी विवेकानन्द की प्रसिद्ध भारत यात्राएँ इसी उद्देश्य से हुईं। बौद्ध धर्म के आगमन पर गौतम बुद्ध के संदेश को अन्य देशों में पहुँचाने के लिए अनेक भिक्षुओं ने लम्बी यात्राएँ कीं। अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को इसी उद्देश्य से श्रीलंका भेजा। सामान्यजन के लिए ज्ञान के विस्तार और सामूहिक विकास के लिए तीर्थ यात्राओं की व्यवस्था भी प्राचीन भूपर्यटन का ही एक रूप था।
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अल-इदरीसी का ११५४ में बनाया विश्व मानचित्र, दक्षिण दिशा को उत्तर में दिखाया गया हैं इरैटोस्थनिज़ द्वारा बनाया संसार का मानचित्र |
Re: भू-पर्यटन
बहुत अच्छा जनकारी इस जनकारी के लिए मेरे पास शब्द नही है क्या कहु
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और क्या ....? |
Re: भू-पर्यटन
मित्र
सूत्र के लिए हार्दिक बधाई बहुत ही रोचक जानकरियां उपलब्ध कराई |
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कुछ कहने की जरूरत नहीं है| मैं समझ गया| Quote:
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Re: भू-पर्यटन
एक ताजा हवा के झोँके के रूप मेँ ज्ञानवर्द्धन करने वाला सुन्दर सूत्र की
जितनी प्रशंसा की जाये कम है । मुझे अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिये समय और शब्द दोनोँ की ही आवश्यकता महसूस हो रही है । फोरम को उन्नत शिखर पर स्थापित करने मेँ ऐसे सूत्र मील का पत्थर होँगे , ऐसा मेरा विश्वास है । जेम्सबाँड मेरा सलाम कुबूल कीजिये । |
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भौगोलिक तत्वों का पर्यटन में महत्त्व
पर्यावरणीय महत्त्व पर्यावरण के अन्तर्गत जैविक तत्व पर्यटन पर प्रभाव डालते है। स्थानीय जैव संपदा आधारित विभिन्न्ता तथा पारिस्थितिक तंत्र पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इसके अन्तर्गत स्थानीय पेड़-पौधे एवं पशु-पक्षी महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ऑस्ट्रेलिया मे पाया जाने वाला जन्तु कंगारू यहाँ एक प्रमुख स्थान रखता है। विश्व में कंगारू ही ऑस्ट्रेलिया की पहचान है। यहँ तक कि ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय चिह्न मे इसे चित्रित किया जाता है। विश्व में अनेक देश अपने यहाँ के जंगली जानवरों के आवास को प्राथमिकता देते हैं। भारत के अनेक वन्य जीव संरक्षण परियोजनाएँ इसका ज्वलंत उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त भारत में अनेक राष्ट्रीय उद्यान हैं जो विश्व के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। |
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भौगोलिक दृश्यों का आकर्षण
स्थानीय स्थलाकृति का गहराई के आधार पर भौतिक भूगोल में अध्ययन किया जाता है। पर्यटन भूगोल में इसका अध्ययन केवल उन क्षेत्रों तक सीमित होता है जो अपनी विशेष स्थलाकृति के कारण अनूठे होते हैं। ये विशेषताएं निर्जन और आबादी रहित पहाड़ी प्रदेशों में भी हो सकती हैं और स्वास्थ्यवर्धक जलवायु वाले पहाड़ी प्रदेशों में भी, उदाहरण के लिए भारत में शिमला और माउंट आबू। दूसरी तरफ नदी-घाटियाँ, सागर, झरने, सूखे मरूस्थल, और भौगोलिक कारकों जैसे पानी, पवन, हिम आदि द्वारा उत्पन्न अपरदित एवं बनाई गई स्थलाकृतियाँ भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के अनेक पर्यटन क्षेत्र इसका उदाहरण हैं। ज्वालामुखी भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र समझे जाते हैं। लेकिन प्रकृति के इन्हीं आकर्षणों के भयंकर रूप धारण करने पर पर्यटन को हानि भी पहुँचती है। वर्तमान समय में जब भू पर्यटन एक व्यवसाय का रूप ले चुका है अनेक देश अपने आकर्षक भौगोलिक दृश्यों वाले स्थलों के चित्रात्मक वेब साइट बनाकर लोगों को इस ओर आकर्षित करते हैं। |
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मौसमी महत्त्व
मौसमी कारण जैसे तापमान, पवन, आर्द्रता, वर्षा, तथा ऋतु पर्यटन से सीधे संबन्ध रखते हैं। इस कारण सभी प्रमुख पर्यटन स्थलों की वेबसाइटों पर मौसम के विषय में पर्याप्त जानकारी दी जाती है। पर्यटक कहीं घूमने जाने से पहले उस स्थान की जलवायु के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं। हम जानते हैं कि मौसमी कारण मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते है। देखने में आया है कि कुछ खास वर्ग के पर्यटक जिनमें तनावग्रस्त कर्मचारी और वृद्ध पर्यटक अधिक होते हैं, जलवायु परिवर्तन को स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि से देखते हैं। चिकित्सक भी अपनी चिकित्सा-पद्धति के दौरान मरीज़ों को अनेक बार हवा-पानी बदलने पर ज़ोर देते हैं। चिकित्सक का तात्पर्य मरीज़ को मनोवैज्ञानिक एवं भौगोलिक रूप में स्वास्थ्य लाभ पहुँचाना होता है। इसे वर्तमान में स्वास्थ्य पर्यटन के रूप में जाना जाता है। दिसंबर-फरवरी के महीनों में जब अमेरिका और यूरोप मे सर्दियाँ अधिक हो जाती है तो इन देशों के पर्यटक भारत के गोवा जैसे राज्य जहाँ सर्दी अपेक्षाकृत कम होती है, में आकर सागर किनारे रेत पर सूर्य स्नान करते हुए दिन बिताना अधिक उपयुक्त समझते हैं। दूसरी तरफ मई-जून के महीनों में जब भारत के सभी भागों में भीषण गर्मी होती है तो पर्यटकों का आना भी कम हो जाता है। |
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परिवहन व्यवस्था का पर्यटन में महत्त्व एक सुव्यवस्थित परिवहन व्यवस्था किसी भी पर्यटन क्षेत्र की रीढ कही जा सकती हैं। पर्यटक चाहता है कि उसका पर्यटन-काल सभी प्रकार की परेशानियों से मुक्त हो। पर्यटक अपने मूल स्थान से गंतव्य-स्थल तक आसानी से जा सकें और इसके उपरान्त वापस अपने मूल स्थान पर आ सके। कोई भी देश अपने पर्यटन-स्थल को विकसित करने के बाद परिवहन की व्यवस्था पर अधिक बल देता है। पर्यटन के साथ परिवहन व्यवस्था इस प्रकार जुड़ गई है कि अनेक सरकारों और संस्थाओं ने पर्यटन और परिवहन नाम से अलग विभाग या मंत्रालय बनाए हैं। परिवहन व्यवस्था अन्तर्राष्ट्रीय और स्थानीय दोनो रूपों में होती है। परिवहन के प्रकार इस तरह हैं-
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http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1295226175 डेनिस एन्थोनी टीटो अंतरिक्ष में बीता समय: 07 दिन 22 घंटे 04 मिनट डेनिस टीटो एक इटेलियन अमेरिकी इंजिनियर और खरबपति है जो पहले अन्तरिक्ष पर्यटक होने के लिए जाना जाता है| |
Re: भू-पर्यटन
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Re: भू-पर्यटन
हमारे भारतीय बोंड को मेरी तरफ से हार्दिक बधाई ऐसा ज्ञानवर्धक व उपयोगी सूत्र बनाने के लिए. आपका साधुवाद. :bravo:
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वाह सर! कम्मल कर दिया. बहुत अछा थ्रेड बनाया है. जानकारियों से भरा हुआ.
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पर्यटन के सांस्कृतिक कारण
विश्व में मानव अनेक समूहों और समुदायों में बँटा है। प्रत्येक मानव-समूह के रीति-रिवाज़ और संस्कार अलग-अलग हैं। सभी अपने ढंग से अपने धर्मों, पंथों, त्योहारों, भाषाओं और पारिवारिक आचरणों का पालन करते हैं। इसी विविधता का अध्ययन सांस्कृतिक भूगोल में किया जाता है। यह विविधता ही पर्यटकों को आकर्षित करती है। |
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शिक्षा हेतु पर्यटन
यह उन पर्यटकों के लिए है जो पर्यटक दूसरी संस्कृति को जानने व समझने के इच्छुक होते हैं। ये पर्यटक शोध अथवा अनुसंधान के उद्देश्य से पर्यटक की श्रेणी में आते हैं। मुख्यत: ये छोटे-छोटे समूहों में विभिन्न प्रजातियों और जातियों का अध्ययन करते हैं। यहाँ पर्यटक मानव के संदर्भ में स्थानीय रूप से जन्म-मृत्यु दर, स्वास्थ्य, आवास, धर्म, त्यौहार, रीति-रिवाज़, शिक्षा, भोजन, मानव बस्तियों की बनावट आदि संबन्धित आँकड़ों को एकत्रित करते हैं। विभिन्न स्कूलों, विश्वविद्यालयों एवं समाज सेवी संस्थाओं द्वारा इसी प्रकार की यात्राएँ आयोजित करवाई जाती हैं। |
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मनोरंजन हेतु पर्यटन
यह उन पर्यटकों के लिए है जो दूसरी संस्कृति को जानने के साथ ही मनोरंजन की भी कामना करते हैं। उदाहरण के किए भारत में जहाँ यह विभिन्न्ता पाई जाती है। यहाँ मार्च के महीने में होली नामक त्योहार अति हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस समय यहाँ का तापमान भी अनुकूल होता है। इसी समय का उपयोग करते हुए हज़ारों की संख्या में विदेशी पर्यटक यहाँ पहुँच जाते हैं। वे भारतीय लोगों के साथ इस रंगों से युक्त त्योहार का आनन्द लेते हैं। इस प्रकार से वे यात्रा के साथ-साथ भारत के सांस्कृतिक रूप से भी परिचित होते हैं। यहाँ यह भी उल्लेख करना आवश्यक होगा कि स्थानीय शासन भी इस समय पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए अनेक योजनाएँ क्रियान्वित करता है। नई दिल्ली में दिल्ली सरकार द्वारा लागू की गई अतिथि देवो भव इसी प्रकार की एक सफल योजना है। भौगोलिक कारक भी पर्यटकों के मनोरंजन का कारण बनते हैं। क्योंकि दिन पृथ्वी पर सबसे पहले पूर्व दिशा से ही निकलता है, इसलिए नए साल का आनन्द लेने के लिए हज़ारों की संख्या में पर्यटक दुनिया के पूर्वी छोर पर चले जाते हैं। न्यूज़ीलैंड और आस्ट्रेलिया में ३१ दिसम्बर को हजारों पर्यटक अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। दूसरी तरफ ब्राज़ील की सांबा परेड को देखने और उसकी मौज-मस्ती में शामिल होने के लिए हर साल लाखों पर्यटक ब्राज़ील पहुँचते हैं। इसी प्रकार स्पेन का सांड युद्ध औए टमाटर युद्ध[१२] पर्यटकों द्वारा बहुत पसंद किया जाता है। विश्व पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए अनेक देशों ने अपनी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करना प्रारम्भ कर दिया है। इस प्रकार की स्थानीय सांस्कृतिक गतिविधियाँ अपनी रोमांचक प्रकृति और विलगता के कारण विश्व भ*र में पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन जाती हैं। |
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मूल देश एवं अपने पूर्वजो के प्रति अपनापन
आज जिस संसार को हम देख रहे है वह बहुत बदला हुआ है। वर्तमान समय में हमें विभिन्न देशों के सामाज में मिश्रित मानव समूहों के दर्शन होते हैं। अनेक साल पहले कुछ लोगों के समूह धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक कारणों से अपने मूल स्थान से स्थानान्तरित हो कर हज़ारो किलोमीटर दूर के स्थानों पर चले गये थे। वहाँ जाकर वे वहीं स्थायी रूप से बस गए और मूल स्थान से सम्पर्क समाप्त हो गया। उदाहरण के लिए अफ़्रीका महाद्वीप से नीग्रोइड निवासियों को गुलाम बनाकर संयुक्त राज्य अमेरिका लाया गया। भारत से गयाना, मॉरीशस, दक्षिण अफ़्रीका, मलेशिया आदि स्थानों में लोग रोजगार की तलाश में गए। आज अनेक साल बाद उनकी पीढ़ियाँ आर्थिक रूप मे समृद्ध होकर अपने मूल स्थान में घूमने आती हैं। ये प्रवासी अपने पूर्वजों की जन्मभूमि देखने आते हैं। भारत में तो ऐसे प्रवासियों का विशेष स्वागत किया जाता है। |
Re: भू-पर्यटन
बहुते अच्छा जानकारी दिए है बोंड भाई मेरी तरफ से ++ :bravo::bravo:
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पर्यटन में सहायक वस्तुएँ
पर्यटक अनेक प्रकार की भौगोलिक मानचित्रों, उपकरणों व पुस्तकों का प्रयोग करते हैं। एक सही भौगोलिक मानचित्रावली, किसी भी पर्यटक के लिए सर्वप्रथम और मुख्य साधन है। बहुत पहले से ही मानव ज्ञात पृथ्वी का लघु नमूना बनाता रहा है। इस समय मापनी एवं प्रक्षेपों का विकास नही हुआ था। विद्वान अपने अनुमान से ही मानचित्र बनाते थे। अल-इदरीसी का बनाया मानचित्र इनमें प्रमुख है। आज के वर्तमान मानचित्रों में अक्षांश रेखाएँ एवं देशान्तर रेखाएँ दी हुई होती हैं जिनकी सहायता से किसी भी स्थल के लघु रूप का कागज पर सतही निरीक्षण किया जा सकता है। ये प्राय मापनी पर आधारित होते हैं। आधुनिक मानचित्र उपग्रहों की सहायता से बनाए जाते हैं जो बड़ी मापनी पर अत्यधिक उपयोगी होते है। मानचित्रावली में पर्यटन पुस्तिका, पर्यटन केंद्रों या विभिन्न स्थानों के पर्यटन विभागों के विवरण जहाँ से आसपास के पर्यटन स्थलों के विवरण और अतिथिगृहों के विवरण आसानी से मालूम हो सकें, दिशासूचक या कुतुबनुमा, विभिन्न प्रकार के आँकड़े इत्यादि होते हैं। |
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पर्यटन साहित्य
पर्यटन पुस्तिका, किसी भी पर्यटक के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। मुख्यतः इसमें पर्यटक के लिए दर्शनीय-स्थल के चित्रों की सहायता से स्थल की ऐतिहासिक और भौगोलिक जानकारी को बताया जाता है। पर्यटन पुस्तिका, पर्यटक को घूमने की योजना बनाने में सहायता प्रदान करती है। पुस्तिका में स्थानीय स्तर पर घूमने योग्य स्थानों का विवरण दिया होता है। इसमें उस स्थान की वर्तमान जानकारी पर्यटक को दी जाती है। इसमें यह भी बताया जाता है कि वहाँ किस प्रकार जाया जा सकता है और कौन सा मौसम वहाँ जाने के लिये अनुकूल होगा। पर्यटन पुस्तिका में स्थानीय ट्रेवल एजेंटो का पता दिया जाता है। सभी होटलों, क्लबों, सिनेमा घरों, बाजारों, मन्दिरों, सड़कों, टैक्सी स्टेंण्डों, सरकारी कार्यालयों, आदि का संक्षिप्त ब्योरा पर्यटन पुस्तिका में दिया होता है। पर्यटन पुस्तिका का प्रकाशन स्थानीय पर्यटन मंत्रालय द्वारा किया जाता है। इसमें प्रामाणिक तथ्यों का समावेश किया जाता है। |
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