अकबर - बीरबल..
अकबर और बीरबल के व्यंग............ |
Re: अकबर - बीरबल...........................
अकबर और बीरबल की पहली मुलाकात................. अकबर को शिकार का बहुत शौक था. वे किसी भी तरह शिकार के लिए समय निकल ही लेते थे. बाद में वे अपने समय के बहुत ही अच्छे घुड़सवार और शिकारी भी कहलाये. एक बार राजा अकबर शिकार के लिए निकले, घोडे पर सरपट दौड़ते हुए उन्हें पता ही नहीं चला और केवल कुछ सिपाहियों को छोड़ कर बाकी सेना पीछे रह गई. शाम घिर आई थी, सभी भूखे और प्यासे थे, और समझ गए थे की वो रास्ता भटक गए हैं. राजा को समझ नहीं आ रहा था की वह किस तरफ़ जाएं. कुछ दूर जाने पर उन्हें एक तिराहा नज़र आया. राजा बहुत खुश हुए – चलो, अब तो किसी तरह वे अपनी राजधानी पहुँच ही जायेंगे. लेकिन जाएं तो जायें किस तरफ़. राजा उलझन में थे. वे सभी सोच में थे किंतु कोई युक्ति नहीं सूझ रही थी. तभी उन्होंने देखा कि एक लड़का उन्हें सड़क के किनारे खड़ा-खडा घूर रहा है. सैनिकों ने यह देखा तो उसे पकड़ कर राजा के सामने पेश किया. राजा ने कड़कती आवाज़ में पूछा, “ऐ लड़के, आगरा के लिए कौन सी सड़क जाती है”? लड़का मुस्कुराया और कहा, “जनाब, ये सड़क चल नहीं सकती तो ये आगरा कैसे जायेगी”. महाराज जाना तो आपको ही पड़ेगा और यह कहकर वह खिलखिलाकर हंस पड़ा................... |
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सभी सैनिक मौन खड़े थे, वे राजा के गुस्से से वाकिफ थे. लड़का फ़िर बोला,” जनाब, लोग चलते हैं, रास्ते नहीं”. यह सुनकर इस बार राजा मुस्कुराया और कहा,” नहीं, तुम ठीक कह रहे हो. तुम्हारा नाम क्या है, अकबर ने पूछा. मेरा नाम महेश दास है महाराज, लड़के ने उत्तर दिया, और आप कौन हैं? अकबर ने अपनी अंगूठी निकाल कर महेश दास को देते हुए कहा, “तुम महाराजा अकबर – हिंदुस्तान के सम्राट से बात कर रहे हो”. मुझे निडर लोग पसंद हैं. तुम मेरे दरबार में आना और मुझे ये अंगूठी दिखाना. ये अंगूठी देख कर मैं तुम्हें पहचान लूंगा. अब तुम मुझे बताओ कि मैं किस रास्ते पर चलूँ ताकि मैं आगरा पहुँच जाऊं. महेश दास ने सिर झुका कर आगरा का रास्ता बताया और जाते हुए हिंदुस्तान के सम्राट को देखता रहा. और इस तरह अकबर भविष्य के बीरबल से मिला................. |
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अतिसुन्दर, अपडेटस का इन्तजार है ।
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Re: अकबर - बीरबल...........................
बहुत बढ़िया सूत्र. अकबर बीरबल की मनोरंजक और ज्ञानवर्धक नोक-झोंक का इंतज़ार रहेगा.
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Re: अकबर - बीरबल...........................
आपने अच्छी शुरुआत तो कर दी है।
अब आगे भी ले जाइए। इन्तजार रहेगा। धन्यवाद |
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हमे भी
इन्तेजार रहेगा हार्दिक धन्यवाद |
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अकबर के दरबारियों को अकबर की चित्रकला में अभिरुचि के बारे में पता था और यह भी मालूम था कि अकबर को व्यक्ति-चित्र (पोर्ट्रेट) बनाने वाले कलाकारों से विशेष मोह था. अकबर के दरबार में श्रेष्ठ कलाकारों का सम्मान किया जाता था. एक नौजवान कलाकार भी अपनी कला का प्रदर्शन करना चाहता था. उसने सोचा कि पहले किसी दरबारी से मिल कर उसे प्रभावित किया जाये.
दरबारी ने उस नये कलाकार को अपना चित्र बनाने के लिए कहा. जब वह चित्र पूरा कर के बाद दरबारी को दिखाने की आज्ञा मांगी. नियत समय पर चित्रकार दरबारी के यहां पहुंचा तो दरबारी ने अपनी दाड़ी मुंडवा राखी थी. अपना चित्र देख कर दरबारी ने कलाकार की हंसी उड़ाते हुये कहा कि क्या मैं ऐसा लगता हूँ. कलाकार ने कहा कि जब चित्र बनाया गया था तो आपने चेहरे पर दाड़ी थी, हुजूर. खैर, कलाकार ने कहा कि मैं फिर से आपका चित्र बनाता हूँ. अगली बार जब कलाकार चित्र दिखाने ले गया तो दरबारी ने अपनी मूंछें काट दी थीं. इस बार भी उसने कलाकार की खिल्ली उड़ाई. इस प्रकार कलाकार ने चार बार दरबारी का चित्र बनाया लेकिन हर बार दरबारी ने उसके चित्रों में कुछ न कुछ कमी निकाल कर कलाकार की तौहीन की. हार कर कलाकार बीरबल के पास गया और अपनी राम कहानी कह सुनाई. बीरबल ने उसे कहा कि अबकी बार वह उस दरबारी का कोई चित्र न बनाये. उसके स्थान पर बीरबल ने उसे एक उपाय करने को कहा. सो, जिस दिन दरबारी ने कलाकार को बुलाया था, कलाकार उसके यहां पहुँच गया. जब उसने चित्र दिखाने की फरमाइश की तो कलाकार ने मुंह देखने वाला दर्पण थैले में से निकाल कर उसके चेहरे के सामने कर दिया. दरबारी कहने लगा कि यह तो शीशा है!! कलाकार बोला कि हाँ हुजूर, यह शीशा ही है. यदि आप हू-ब-हू अपने आप को वैसा देखना चाहते हैं जैसे आप अभी हैं, तो आपको चित्र की नहीं दर्पण की जरुरत है. दरबारी बहुत शर्मिंदा हुआ. उसने कलाकार को सभी चित्रों का मेहनताना दिया और खूब प्रशंसा भी की. दरबारी द्वारा यह पूछे जाने पर कि यह उपाय किसने सुझाया था तो उसने बीरबल से हुई मुलाकात के विषय में बताया. दरबारी को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने अकबर के सम्मुख उस चित्रकार की बहुत तारीफ़ की. |
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बीरबल का जन्म............. जब महेश दास जवान हुआ तो वह अपना भाग्य आजमाने राजा अकबर के पास गया. उसके पास राजा द्वारा दी गई अंगूठी भी थी जो उसने कुछ समय पहले राजा से प्राप्त की थी. वह अपनी माँ का आशीर्वाद लेकर भारत की नई राजधानी – फतहपुर सिकरी की तरफ़ चल दिया. भारत की नई राजधानी को देख कर महेश दास हतप्रभ था. वह भीड़-भाड़ से बचते हुए लाल दीवारों वाले महल की तरफ़ चल दिया. महल का द्वार बहुत बड़ा और कीमती पत्थरों से सजा हुआ था | ऐसा दरवाजा महेश दास ने कभी सपनों में भी नहीं देखा था. उसने जैसे ही महल में प्रवेश करना चाहा तभी रौबदार मूछों वाले दरबान ने अपना भाला हवा में लहराया. “तुम्हें क्या लगता है, कि तुम कहाँ प्रवेश कर रहे हो”? पहरेदार ने कड़कती आवाज़ में पूछा. महाशय, मैं महाराज से मिलने आया हूँ, नम्रता से महेश ने उत्तर दिया. ” अच्छा! तो महाराज तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं, कि तुम कब आओगे”? दरबान ने हँसते हुए पूछा. महेश मुस्कुराया और बोला, ” बिल्कुल महाशय, और देखो मैं आ गया हूँ”. और हाँ, ” तुम बेशक बहुत बहादुर और वीर होंगे किंतु तुम मुझे महल में जाने से रोक कर अपनी जान को खतरे में डाल रहे हो”. सुनकर दरबान सहम गया पर फ़िर भी हिम्मत कर के बोला, “तुम ऐसा क्यों कहा रहे हो”? तुम्हें पता है इस बात के लिए मैं तुम्हारा सिर कलम कर सकता हूँ. लेकिन महेश हार माने वालों में से नहीं था, उसने झट से महाराज कि अंगूठी दरबान को दिखाई. अब महाराज कि अंगूठी को न पहचानने कि हिम्मत दरबान में नहीं थी, और ना चाहते हुए भी उसे महेश को अंदर आने कि इजाज़त देनी पड़ी. हालांकि वह उसे नहीं जाने देना चाहता था | इसलिए वह महेश से बोला – ठीक है, तुम अन्दर जा सकते हो | लेकिन मेरी एक शर्त है. वो क्या, महेश ने आश्चर्य से पूछा. दरबान बोला, “तुम्हें महाराज जो भी ईनाम देंगे उसका आधा हिस्सा तुम मुझे दोगे”. महेश ने एक पल सोचा और फ़िर मुस्कुराकर बोला ठीक है, मुझे मंजूर है. और इस प्रकार महेश ने महल के अन्दर प्रवेश किया, अन्दर उसने देखा महाराजा अकबर सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं. धीरे-धीरे महेश अकबर के बिल्कुल करीब पहुँच गया और अकबर को झुक कर सलाम किया और कहा – आपकी कीर्ति सारे संसार में फैले. अकबर मुस्कुराया और कहा, “तुम्हे क्या चाहिए, कौन हो तुम”? महेश अपने पंजों पर उचकते हुए कहा महाराज मैं यहाँ आपकी सेवा में आया हूँ. और यह कहते हुए महेश ने राजा कि दी हुई अंगूठी राजा के सामने रख दी. ओहो! याद आया, तुम महेश दास हो है ना. जी महाराज मैं वही महेश हूँ. बोलो महेश, तुम्हें क्या चाहिए? महाराज मैं चाहता हूँ कि आप मुझे सौ कोडे मारिये. यह क्या कहा रहे हो महेश? राजा ने चौंकते हुए कहा. मैं ऐसा आदेश कैसे दे सकता हूँ जब तुमने कोई अपराध ही नहीं किया. महेश ने नम्रता से उत्तर दिया,” नहीं महाराज, मुझे तो सौ कोडे ही मारिये”. अब ना चाहते हुए भी अकबर को सौ कोडे मारने का आदेश देना ही पड़ा. जल्लाद ने कोडे मारने शुरू किए – एक, दो, तीन, चार, . . . . . . . . . . . पचास. बस महाराज बस, महेश ने दर्द से करते हुए कहा. क्यों, क्या हुआ महेश, दर्द हो रहा है क्या? नहीं महाराज ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो केवल अपना वादा पूरा करना चाहता हूँ. कैसा वादा महेश? महाराज, जब मैं महल में प्रवेश कर रहा था तो दरबान ने मुझे इस शर्त पर अन्दर आने दिया कि मुझे जो भी उपहार प्राप्त होगा उसका आधा हिस्सा मैं दरबान को दूँगा. अपने हिस्से के पचास कोडे तो मैं खा चुका अब उस दरबान को भी उसका हिस्सा मिलना चाहिए. यह सुन कर सभी दरबारी हंसने लगे. दरबान को बुलाया गया और उसको पचास कोडे लगाये गए. राजा ने महेश से कहा,”तुम बिल्कुल ही वैसे ही बहादुर और निडर हो जैसे बचपन में थे”. मैं अपने दरबार में से भ्रष्ट कर्मचारियों को पकड़ना चाहता था जिसके लिए मैंने बहुत से उपाय किए किंतु कोई भी काम नहीं आया. लेकिन यह काम तुमने जरा सी देर में ही कर दिया. तुम्हारी इसी बुद्धिमानी कि वजह से आज से तुम बीरबल कहालोगे. और तुम मेरे मुख्य सलाहकार नियुक्त किए जाते हो. और इस तरह महेशदास से बीरबल का जन्म हुआ .......................... |
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वासना की उम्र.............. एक दिन सम्राट अकबर ने दरबार में अपने मंत्रियों से पूछा कि मनुष्य में काम-वासना कब तक रहती है। कुछ ने कहा ३० वर्ष तक, कुछ ने कहा ६० वर्ष तक। बीरबल ने उत्तर दिया – “मरते दम तक”। अकबर को इस पर यकीन नहीं आया। वह बीरबल से बोला – मैं इसे नहीं मानता। तुम्हें यह सिद्ध करना होगा की इंसान में काम-वासना मरते दम तक रहती है”। बीरबल ने अकबर से कहा कि वे समय आने पर अपनी बात को सही साबित करके दिखा देंगे। एक दिन बीरबल सम्राट के पास भागे-भागे आए और कहा – “आप इसी वक़्त राजकुमारी को साथ लेकर मेरे साथ चलें”। अकबर जानते थे कि बीरबल की हर बात में कुछ प्रयोजन रहता था। वे उसी समय अपनी बेहद खूबसूरत युवा राजकुमारी को अपने साथ लेकर बीरबल के पीछे चल दिए। बीरबल उन दोनों को एक व्यक्ति के घर ले गया। वह व्यक्ति बहुत बीमार था और बिल्कुल मरने ही वाला था। बीरबल ने सम्राट से कहा – “आप इस व्यक्ति के पास खड़े हो जायें और इसके चेहरे को गौर से देखते रहें”। इसके बाद बीरबल ने राजकुमारी को कमरे में बुलाया। मरणासन्न व्यक्ति ने राजकुमारी को इस दृष्टि से देखा कि अकबर के समझ में सब कुछ आ गया। बाद में अकबर ने बीरबल से कहा – “तुम सही कहते थे। मरते-मरते भी एक सुंदर जवान लडकी के चेहरे की एक झलक आदमी के भीतर हलचल मचा देती है”....................... |
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बहुत खुब ड़ाक्टर साहब मजा आगया
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धन्यवाद मित्र....................... आप भी इस में योगदान दे...................... |
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धन्यवाद |
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इस दुनिया में सबसे अधिक मूर्ख किस देश में रहते हैं.............. बादशाह अकबर का दरबार लगा हुआ था. सारे दरबारी अपने अपने काम में व्यस्त थे कि अकबर ने बीरबल की तरफ देखते हुये कहा, “बीरबल कई दिनों से एक सवाल मुझे काफ़ी परेशान किये जा रहा है. शायद तुम्हारे पास इस सवाल का कोई जवाब हो.” बीरबल ने सर झुका कर कहा, “हुज़ूर आप अपना सवाल पूछिये. मैं पूरी कोशिश करूँगा आपके सवाल का वाज़िब जवाब देने की.” अकबर ने कहा, “बीरबल मुझे ये मालुम करना है कि इस दुनिया में सबसे अधिक मूर्ख किस देश में रहते हैं.” बीरबल ने कुछ देर सोचा और कहा, “हुज़ूर इस सवाल का जवाब ढूँढने के लिये मुझे संसार के सारे देशों में घूम घूम कर वहाँ के लोगों के बारे में जानकारी लेनी होगी, और ये यात्रा पूरी करने में मुझे कम से कम तीन साल तो लग ही जायेगा.” अकबर ने तुरंत जवाब दिया, “ठीक है मैं तुम्हें दो साल की मोहलत देता हूँ. आज से ठीक दो साल के बाद यहाँ आकर सारे दरबार के सामने अपना जवाब देना.” बीरबल ने अदब से सर झुका कर कहा, “तो फिर जहाँपनाह मुझे इज़ाज़त दें, मैं घर जा कर अपनी यात्रा की तैयारी करता हूँ.” ये कह कर बीरबल ने दरबार से विदा ली. बीरबल को गये हुये पूरे तीन हफ्ते गुज़र गये थे और अकबर को बीरबल के बिना दरबार में सूनापन महसूस होने लगा. बादशाह सलामत आँख मूँद कर ये सोचने लगे कि बीरबल न जाने इस समय किस देश में होगा कि अचानक दरबार में होने वाली खुसर पुसर ने उनकी आँखें खोल दीं – और, अकबर ने अपने सामने बीरबल को हाथ जोड़े खड़ा पाया............. क्रमशः ... |
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अकबर ने अचंभित हो कर पूछा, “अरे बीरबल तुम इतनी जल्दी कैसे वापस आ गये? और, मेरे सवाल के जवाब का क्या हुआ?” बीरबल ने कहा, “हुज़ूर मुझे आपके सवाल का जवाब मिल गया है और इसी लिये मैं वापस आ गया हूँ.” “तो फिर बताओ तुम्हारा जवाब क्या है?” अकबर ने अधीरतापूर्वक पूछा. बीरबल ने विनती की, “हुज़ूर पहले वचन दीजिये कि मेरा जवाब सुन कर आप मुझे किसी भी तरह का दंड नहीं दीजियेगा.” “ठीक है मैं वचन देता हूँ. अब तो बताओ तुम्हारा जवाब क्या है?”, अकबर ने कहा. बीरबल ने सर झुका कर उत्तर दिया, “सरकार दुनिया में सबसे ज्यादा मूर्ख हमारे ही देश हिन्दुस्तान में रहते हैं.” “पर बीरबल बिना किसी और देश गये सिर्फ़ तीन हफ्तों में तुमने ये कैसे जान लिया कि हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा मूर्ख रहते हैं?” अकबर ने खीजते हुये पूछा. “हुज़ूर मैं विस्तार से आपको बताता हूँ कि पिछले तीन हफ्तों में मैंने क्या क्या देखा. और, मैंने जो कुछ भी देखा उसी के आधार पर आपके सवाल का जवाब दिया है.”, ये कहते हुये बीरबल ने अपनी पिछले तीन हफ्तों की दास्तान बयान करनी शुरू कर दी. उस दिन दरबार से जाने के बाद मैं सीधा घर गया और बोरी बिस्तर बाँध कर अगले दिन सुबह सुबह ही विश्व भ्रमण के लिये निकल पड़ा. दो दिन की घुड़सवारी के बाद एक छोटे से नगर में पहुँचा तो देखा कि गुस्से से तमतमाते हुये लोगों की एक भीड़ सड़क पर खड़े वाहनों को आग लगा रही थी और साथ ही साथ ईंटे पत्थर मार कर दुकानों को तोड़ने में लगी हुई थी. मैंने भीड़ में से एक युवक को कोने में खींच कर पूछा कि ये सब क्यों किया जा रहा है. पता चला कि नगर के पीने के पानी वाले कुयें में एक चूहा पाया गया है – बस नागरिकों को आ गया गुस्सा. पहले तो नगर अधिकारी की जम के पिटाई की और फिर तोड़ फ़ोड़ में लग गये. मैंने पूछा कि अखिर चूहे को कुयें में से निकाला किसने – तो जवाब मिला कि चूहा तो अभी भी उसी कुयें में मरा पड़ा है और उसे निकालना तो सरकार का काम है. खैर मैंने गुस्से से लाल पीली भीड़ को समझाने की कोशिश की कि इस तोड़ फ़ोड़ से तो उनको ही नुकसान होगा. अगर सारे वाहन जला दिये तो क्या गधे पर बैठ कर जगह जगह जायेंगे? दुकानें और दुकानों में रखा सामान तुम्हारे जैसे नागरिकों की ही सम्पत्ति है – उसे जलाने से आखिर नुकसान किसका होगा. ये सुनना था कि सारी भीड़ ये चिल्लाते हुये कि मैं एक निकम्मा सरकारी जासूस हूँ मेरी तरफ डंडे ले कर दौड़ पड़ी. सरकार मैं किसी तरह जान बचा कर भागा और पास की ही एक सराय में जा कर छुप गया. क्रमशः ... |
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पूरी रात सराय में बिता कर मैं अगले दिन सूरज निकलने से पहले ही आगे के लिये निकल पड़ा. अगले पाँच सात दिन बड़े चैन से गुजरे – कोई बड़ा हादसा भी नहीं हुआ. दो हफ्ते पूरे होने को आये थे और मैं अब तक पिछले नगर की घटना को थोड़ा थोड़ा भूल भी चुका था. पर हुज़ूर-ए-आला अगले दिन जो मैंने देखा वैसा नज़ारा तो शायद नरक में भी देखने को नहीं मिलेगा. शहर की सड़कें खून से लाल थीं, चारों तरफ बच्चों, आदमियों, औरतों, बकरियों और तकरीबन हर चलने फ़िरने वाली चीज़ों की लाशें पड़ी हुई थीं. इमारतें आग में जल रहीं थी. मैंने सड़क के कोने में सहमे से बैठे हुये एक बूढ़े से पूछा कि क्या किसी दुश्मन की फौज ने आ कर ये कहर ढा दिया है. बूढ़े ने आँसू पोंछते हुये बताया शहर में हिन्दू और मुसलमानों के बीच दंगा हो गया और बस मार काट शुरू हो गयी. मैंने विचलित आवाज़ में पूछा कि दंगा शुरू कैसे हुआ. पता चला कि एक आवारा सुअर दौड़ते दौड़ते एक मस्जिद में घुस गया – किसी ने चिल्ला कर कह दिया कि ये किसी हिन्दू की ही करतूत होगी. बस दोनों गुटों के बीच तलवारें तन गयीं और जो भी सामने आया अपने मजहब के लिये कुर्बान हो गया. मुझसे वो सब देखा नहीं गया और मैं घोड़ा तेजी से दौड़ाते हुये उस शहर से कोसों दूर निकल गया. तीसरा हफ्ता शुरू हो गया था और मैं भगवान से मना रहा था कि हिन्दुस्तान की सीमा पार होने से पहले मुझे अब कोई और बेवकूफी भरा नजारा देखने को न मिले. पर जहाँपनाह शायद ऊपर वाले को इतनी नीचे से कही गयी फरियाद सुनाई नहीं दी. अगले दिन जब मैं मूढ़गढ़ पहुँचा तो क्या देखता हूँ कि युवकों की एक टोली कुछ खास लोगों को चुन चुन कर पीट रही है. मैं एक घायल को ले कर जब चिकित्सालय गया तो पता चला कि सारे चिकित्सक हड़ताल पर हैं और किसी भी मरीज़ को नहीं देखेंगे. खैर मैं उस घायल को चिकित्सालय में ही छोड़ कर बाजार की तरफ चल पड़ा जरूरत का कुछ सामान खरीदने के लिये. बाजार पहुँचा तो पाया कि सारी दुकानें बंद हैं. और, कुछ एक जो खुली हैं उनके दुकानदार अपनी टूटी हुई टाँगो को पकड़ कर अपनी दुकानों को लुटता हुआ देख रहे हैं – पता चला कि वो लोग बंद में हिस्सा न लेने की सज़ा भुगत रहे हैं. सारी स्तिथि से मुझे एक नौजवान ने अवगत कराया जो कि उस समय एक दूसरे युवक की पिटाई करने में जुटा हुआ था. उसने बताया कि जहाँपनाह अकबर ने दो दिन पहले घोषणा की कि अस्सी फीसदी सरकारी नौकरियाँ पिछड़ी जाति के लोगों को ही दी जायेंगी. उसी के विरोध में पिछड़ी जाति के युवकों की पिटाई की जा रही है और पूरे नगर में सब हड़ताल पर हैं. मैंने उस युवक से कहा कि इन पिछड़ी जाति के युवकों को पीट कर तुमको क्या मिलेगा – अरे पीटना ही है तो उसे पीटो जिसने ऐसी घोषणा की. और, हड़ताल और बंद करने से तो हम जैसे साधारण नागरिकों को ही तकलीफ़ उठानी पड़ती है. मेरी बातों को अनसुना कर के वो एक खुली हुई दुकान की तरफ लाठी ले कर दौड़ पड़ा.............. क्रमशः ... |
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हुज़ूर मैंने मन ही मन सोचा कि यहाँ के नागरिक तो मूर्ख हैं ही, पर यहाँ का शाशक तो महा मूर्ख है जिसके दिमाग में इस तरह का वाहयात खयाल आया. बस सरकार मैंने आगे जाना व्यर्थ समझा – मुझे आपके सवाल का जवाब मिल चुका था और मैंने वापस आना ही उचित समझा. बीरबल की व्याख्या सुन कर अकबर थोड़ी देर शाँत रहे, फ़िर मुस्कुराते हुये बीरबल के पास आ कर बोले, “बीरबल तुम्हारा जवाब सुन कर मुझे बहुत बड़ी राहत मिल गयी है.” बीरबल ने भ्रमित हो कर अकबर की तरफ़ देखते हुये कहा, “हुज़ूर मैं कुछ समझा नहीं.” अकबर ने खुलासा किया, “बीरबल अगर इस देश के प्राणी इतने मूर्ख न होते तो मैं इन पर शाशन कैसे कर पाता. और जब तक ये मुल्क़ मूर्खों से भरा रहेगा, तब तक हम और हमारी पीढ़ियाँ यहाँ राज करती रहेंगी. जहाँ तक आरक्षण का सवाल है तो तुम क्यों परेशान होते हो. तुम्हारे बच्चों को कौन सी नौकरी करनी है – कल को जहाँगीर बादशाह बनेगा और तुम्हारे बच्चे शान-ओ-शौकत से उसके दरबार में काम करेंगे. आरक्षण करने से मुझको ये फायदा हुआ कि मूर्खों की एक टोली अब मूर्खों की दो टोलियों में बँट गयी है – इन्हें जितना बाँटते जाओगे, शाशन करने में उतनी ही आसानी होगी. बीरबल तुम्हारे जवाब ने मेरे दिल पर से एक काफ़ी बड़ा बोझ हटा दिया है.” बीरबल के भी ज्ञान चक्षु खुल गये और उसने मुस्कुराते हुये पास में रखे मदिरा के प्याले को मुँह से लगा लिया............... |
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मित्र आपका हार्दिक आभार.......... आपका का भी सूत्र पे पूर्ण सहयोग अपेक्षित हैं................. |
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गधे तम्बाकू नही खाते.......... बीरबल को तम्बाकू खाने की आदत थी लेकिन अकबर न खाते थे एक दिन अकबर ने तम्बाकू के खेत मे गधे को घास खाते देखकर कहा बीरबल ये देखों तम्बाकू कैसी बुरी चीज है, गधे तक इस को नही खाते । इस पर बीरबल ने कहा- हाँ हुजुर सच है । गधे तम्बाकू नही खाते । यह सुन बाद्शाह शर्मिन्दा हुऐ.................... |
Re: अकबर - बीरबल...........................
ऐसे हज़ारो जुते दे.......... एक बार बाद्शाह ने हँसी मे बीरबल के जुते उठ्वा लिए। चलते-चलते बीरबल जूते ढूंढ्ने लगे। जब जूते न मिले तो अकबर ने सेवक से कहा कि अच्छा हमारी ओर से इन को जूते दे दो। यह सुन सेवक ने जूते पहना दिये। बीरबल ने जूते पहन कर आर्शीवाद दिया कि परमेश्वर आप को इस लोक और परलोक में ऐसे हज़ारो जुते दे। सुनते ही अकबर खिलखिला कर हँस पडे.................... |
Re: अकबर - बीरबल...........................
हर समय कौन चलता है.......... एक दिन बाद्शाह ने दरबारियों से पूछा कि हर समय कौन चलता है? उत्तर मे किसी ने पृथ्वी, किसी ने चन्द्रमा को बताया तथा किसी ने हवा आदि को बताया । बादशाह ने यह प्रश्न बीरबल से पूछा तो उन्होने उत्तर दिया की आलीजाह ! महाजन का ब्याज हर समय चलता रह्ता है इसे कभी थकावट नही होती। दिन दुगनी और रात चौगुनी वेग से चलता है । बाद्शाह को यह उत्तर पसंद आया.................... |
Re: अकबर - बीरबल...........................
सबसे बड़ी चीज............ एक दिन बीरबल दरबार में उपस्थित नहीं थे। ऐसे में बीरबल से जलने वाले सभी सभासद बीरबल के खिलाफ बादशाह अकबर के कान भर रहे थे। अक्सर ऐसा ही होता था, जब भी बीरबल दरबार में उपस्थित नहीं होते थे, तभी दरबारियों को मौका मिल जाता था। आज भी ऐसा ही मौका था | बादशाह के साले मुल्ला दो प्याजा की शह पाए कुछ सभासदों ने कहा -'जहांपनाह! आप वास्तव में बीरबल को आवश्यकता से अधिक मान देते हैं, हम लोगों से ज्यादा उन्हें चाहते हैं। आपने उन्हें बहुत सिर चढ़ा रखा है। जबकि जो काम वे करते हैं, वह हम भी कर सकते हैं। मगर आप हमें मौका ही नहीं देते। बादशाह को बीरबल की बुराई अच्छी नहीं लगती थी, अतः उन्होंने उन चारों की परीक्षा ली- 'देखो, आज बीरबल तो यहां हैं नहीं और मुझे अपने एक सवाल का जवाब चाहिए। यदि तुम लोगों ने मेरे प्रश्न का सही-सही जवाब नहीं दिया तो मैं तुम चारों को फांसी पर चढ़वा दूंगा।' बादशाह की बात सुनकर वे चारों घबरा गए................... क्रमशः............. |
Re: अकबर - बीरबल...........................
सबसे बड़ी चीज............ उनमें से एक ने हिम्मत करके कहा- 'प्रश्न बताइए बादशाह सलामत ?' 'संसार में सबसे बड़ी चीज क्या है?....और अच्छी तरह सोच-समझ कर जवाब देना वरना मैं कह चुका हूं कि तुम लोगों को फांसी पर चढ़वा दिया जाएगा।' बादशाह अकबर ने कहा- 'अटपटे जवाब हरगिज नहीं चलेंगे। जवाब एक हो और बिलकुल सही हो।' 'बादशाह सलामत? हमें कुछ दिनों की मोहलत दी जाए।' उन्होंने सलाह करके कहा। 'ठीक है, तुम लोगों को एक सप्ताह का समय देता हूं।' बादशाह ने कहा। चारों दरबारी चले गए और दरबार से बाहर आकर सोचने लगे कि सबसे बड़ी चीज क्या हो सकती है? एक दरबारी बोला- 'मेरी राय में तो अल्लाह से बड़ा कोई नहीं।’ 'अल्लाह कोई चीज नहीं है। कोई दूसरा उत्तर सोचो।' - दूसरा बोला। 'सबसे बड़ी चीज है भूख जो आदमी से कुछ भी करवा देती है।' - तीसरे ने कहा। 'नहीं…नहीं, भूख भी बर्दाश्त की जा सकती है।’ 'फिर क्या है सबसे बड़ी चीज?' छः दिन बीत गए लेकिन उन्हें कोई उत्तर नहीं सूझा।................... क्रमशः............. |
Re: अकबर - बीरबल...........................
सबसे बड़ी चीज............ हार कर वे चारों बीरबल के पास पहुंचे और उसे पूरी घटना कह सुनाई, साथ ही हाथ जोड़कर विनती की कि प्रश्न का उत्तर बता दें। बीरबल ने मुस्कराकर कहा- 'मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है।' 'हमें आपकी हजार शर्तें मंजूर हैं।' चारों ने एक स्वर में कहा- 'बस आप हमें इस प्रश्न का उत्तर बताकर हमारी जान बख्शी करवाएं। बताइए आपकी क्या शर्त है?' 'तुममें से दो अपने कंधों पर मेरी चारपाई रखकर दरबार तक ले चलोगे। एक मेरा हुक्का पकड़ेगा, एक मेरे जूते लेकर चलेगा।' बीरबल ने अपनी शर्त बताते हुए कहा। यह सुनते ही वे चारों सन्नाटे में आ गए। उन्हें लगा मानो बीरबल ने उनके गाल पर कस कर तमाचा मार दिया हो। मगर वे कुछ बोले नहीं। अगर मौत का खौफ न होता तो वे बीरबल को मुंहतोड़ जवाब देते, मगर इस समय मजबूर थे, अतः तुरंत राजी हो गए।................... क्रमशः............. |
Re: अकबर - बीरबल...........................
सबसे बड़ी चीज............ दो ने अपने कंधों पर बीरबल की चारपाई उठाई, तीसरे ने उनका हुक्का और चौथा जूते लेकर चल दिया। रास्ते में लोग आश्चर्य से उन्हें देख रहे थे। दरबार में बादशाह ने भी यह मंजर देखा और वह मौजूद दरबारियों ने भी। कोई कुछ न समझ सका। तभी बीरबल बोले- 'महाराज? दुनिया में सबसे बड़ी चीज है- गरज। अपनी गरज से यह पालकी यहां तक उठाकर लाए हैं।' बादशाह मुस्कराकर रह गए। वे चारों सिर झुकाकर एक ओर खड़े हो गए................... समाप्त:............. |
Re: अकबर - बीरबल..
हरा घोड़ा............. एक दिन बादशाह अकबर घोड़े पर बैठकर शाही बाग में घूमने गए। साथ में बीरबल भी था। चारों ओर हरे-भरे वृक्ष और हरी-हरी घास देखकर बादशाह अकबर को बहुत आनंद आया। उन्हें लगा कि बगीचे में सैर करने के लिए तो घोड़ा भी हरे रंग का ही होना चाहिए। उन्होंने बीरबल से कहा, 'बीरबल मुझे हरे रंग का घोड़ा चाहिए। तुम मुझे सात दिन में हरे रंग का घोड़ा ला दो। यदि तुम हरे रंग का घोड़ा न ला सके तो हमें अपनी शक्ल मत दिखाना।' हरे रंग का घोड़ा तो होता ही नहीं है। बादशाह अकबर और बीरबल दोनों को यह मालूम था। लेकिन बादशाह अकबर को तो बीरबल की परीक्षा लेनी थी। दरअसल, इस प्रकार के अटपटे सवाल करके वे चाहते थे कि बीरबल अपनी हार स्वीकार कर लें और कहें कि जहांपनाह मैं हार गया, मगर बीरबल भी अपने जैसे एक ही थे। बीरबल के हर सवाल का सटीक उत्तर देते थे कि बादशाह अकबर को मुंह की खानी पड़ती थी। क्रमशः........ |
Re: अकबर - बीरबल..
बीरबल हरे रंग के छोड़ की खोज के बहाने सात दिन तक इधर-उधर घूमते रहे। आठवें दिन वे दरबार में हाजिर हुए और बादशाह से बोले, 'जहांपनाह! मुझे हरे रंग का घोड़ा मिल गया है।' बादशाह को आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा, 'जल्दी बताओ, कहां है हरा घोड़ा? दरबार में उपस्थित होकर बीरबल ने बादशाह के सामने क्या शर्त रखी... बीरबल ने कहा, 'जहांपनाह! घोड़ा तो आपको मिल जाएगा, मैंने बड़ी मुश्किल से उसे खोजा है, मगर उसके मालिक ने दो शर्त रखी हैं। 'पहली शर्त तो यह है कि घोड़ा लेने के लिए आपको स्वयं जाना होगा। 'यह तो बड़ी आसान शर्त है। दूसरी शर्त क्या है ? 'घोड़ा खास रंग का है, इसलिए उसे लाने का दिन भी खास ही होगा। उसका मालिक कहता है कि सप्ताह के सात दिनों के अलावा किसी भी दिन आकर उसे ले जाओ। क्रमशः........ |
Re: अकबर - बीरबल..
बादशाह अकबर बीरबल का मुंह देखते रह गए। बीरबल ने हंसते हुए कहा, 'जहांपनाह! हरे रंग का घोड़ा लाना हो, तो उसकी शर्तें भी माननी ही पड़ेगी। बादशाह अकबर खिलखिला कर हंस पड़े। बीरबल की चतुराई से वह खुश हुए। समझ गए कि बीरबल को मूर्ख बनाना सरल नहीं है। समाप्त:........ |
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अन्ततः बीरबल को "हरा घोड़ा" तलाश करने में कामयाबी मिली. अब बादशाह किस दिन घोड़ा लेने जायेंगे, यह उन्हें तय करना है. बहुत बढ़िया, मित्र.
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सब बह जाएंगे.......... बादशाह अकबर और बीरबल शिकार पर गए हुए थे। उनके साथ कुछ सैनिक तथा सेवक भी थे। शिकार से लौटते समय एक गांव से गुजरते हुए बादशाह अकबर ने उस गांव के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। उन्होंने इस बारे में बीरबल से कहा तो उसने जवाब दिया- 'हुजूर, मैं तो इस गांव के बारे में कुछ नहीं जानता, किंतु इसी गांव के किसी बाशिन्दे से पूछकर बताता हूं।’ बीरबल ने एक आदमी को बुलाकर पूछा- 'क्यों भई, इस गांव में सब ठीकठाक तो है न?’ उस आदमी ने बादशाह को पहचान लिया और बोला- 'हुजूर आपके राज में कोई कमी कैसे हो सकती है?’ 'तुम्हारा नाम क्या है?' बादशाह ने पूछा। 'गंगा।’ 'तुम्हारे पिता का नाम?’ 'जमुना और मां का नाम सरस्वती है?’ 'हुजूर, नर्मदा।’ यह सुनकर बीरबल ने चुटकी ली और बोला- 'हुजूर तुरंत पीछे हट जाइए। यदि आपके पास नाव हो तभी आगे बढ़ें, वरना नदियों के इस गांव में तो डूब जाने का खतरा है।’ यह सुनकर बादशाह अकबर हंसे बगैर न रह सकें। |
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रेत और चीनी......... बादशाह अकबर के दरबार की कार्यवाही चल रही थे, तभी एक दरबारी हाथ में शीशे का एक मर्तबान लिए वहां आया। बादशाह ने पूछा- 'क्या है इस मर्तबान में?' दरबारी बोला- 'इसमें रेत और चीनी का मिश्रण है।' 'वह किसलिए' - फिर पूछा बादशाह अकबर ने। माफी चाहता हूं हुजूर' - दरबारी बोला। 'हम बीरबल की काबिलियत को परखना चाहते हैं, हम चाहते हैं की वह रेत से चीनी का दाना-दाना अलग कर दे।' बादशाह अब बीरबल से मुखातिब हुए, - 'देख लो बीरबल, रोज ही तुम्हारे सामने एक नई समस्या रख दी जाती है, अब तुम्हे बिना पानी में घोले इस रेत में से चीनी को अलग करना है।' 'कोई समस्या नहीं जहांपनाह' - बीरबल बोले। यह तो मेरे बाएं हाथ का काम है, कहकर बीरबल ने मर्तबान उठाया और चल दिया दरबार से बाहर! बीरबल बाग में पहुंचकर रुका और मर्तबान में भरा सारा मिश्रण आम के एक बड़े पेड़ के चारों और बिखेर दिया- 'यह तुम क्या कर रहे हो?' - एक दरबारी ने पूछा बीरबल बोले, - 'यह तुम्हे कल पता चलेगा।' अगले दिन फिर वे सभी उस आम के पेड़ के नीचे जा पहुंचे, वहां अब केवल रेत पड़ी थी, चीनी के सारे दाने चीटियां बटोर कर अपने बिलों में पहुंचा चुकी थीं, कुछ चीटियां तो अभी भी चीनी के दाने घसीट कर ले जाती दिखाई दे रही थीं! 'लेकिन सारी चीनी कहां चली गई?' दरबारी ने पूछा 'रेत से अलग हो गई' - बीरबल ने कहा। सभी जोर से हंस पड़ें, बादशाह ने दरबारी से कहा कि अब तुम्हें चीनी चाहिए तो चीटियों के बिल में घुसों।' सभी ने जोर का ठहाका लगाया और बीरबल की अक्ल की दाद दी। |
Re: अकबर - बीरबल..
सबसे बड़ा हथियार............... बादशाह अकबर और बीरबल के बीच कभी-कभी ऐसी बातें भी हुआ करती थीं जिनकी परख करने में जान का खतरा रहता था। एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा- 'बीरबल, संसार में सबसे बड़ा हथियार कौन-सा है?' 'बादशाह सलामत! संसार में सबसे बड़ा हथियार है आत्मविश्वास।' बीरबल ने जवाब दिया। बादशाह अकबर ने बीरबल की इस बात को सुनकर अपने दिल में रख लिया और किसी समय इसकी परख करने का निश्चय किया। दैवयोग से एक दिन एक हाथी पागल हो गया। ऐसे में हाथी को जंजीरों में जकड़ कर रखा जाता था। बादशाह अकबर ने बीरबल के आत्मविश्वास की परख करने के लिए उधर तो बीरबल को बुलवा भेजा और इधर हाथी के महावत को हुक्म दिया कि जैसे ही बीरबल को आता देखे, वैसे ही हाथी की जंजीर खोल दे। बीरबल को इस बात का पता नहीं था। जब वे बादशाह अकबर से मिलने उनके दरबार की ओर जा रहे थे, तो पागल हाथी को छोड़ा जा चुका था। बीरबल अपनी ही मस्ती में चले जा रहे थे कि उनकी नजर पागल हाथी पर पड़ी, जो चिंघाड़ता हुआ उनकी तरफ आ रहा था। बीरबल हाजिर जवाब, बेहद बुद्धिमान, चतुर और आत्मविश्वासी थे। वे समझ गए कि बादशाह अकबर ने आत्मविश्वास और बुद्धि की परीक्षा के लिए ही पागल हाथी को छुड़वाया है। दौड़ता हुआ हाथी सूंड को उठाए तेजी से बीरबल की ओर चला आ रहा था। बीरबल ऐसे स्थान पर खड़े थे कि वह इधर-उधर भागकर भी नहीं बच सकते थे। ठीक उसी वक्त बीरबल को एक कुत्ता दिखाई दिया। हाथी बहुत निकट आ गया था। इतना करीब कि वह बीरबल को अपनी सूंड में लपेट लेता। तभी बीरबल ने झटपट कुत्ते की पिछली दोनों टांगें पकड़ीं और पूरी ताकत से घुमाकर हाथी पर फेंका। बुरा तरह घबराकर चीखता हुआ कुत्ता जब हाथी से जाकर टकराया तो उसकी भयानक चीखें सुनकर हाथी भी घबरा गया और पलटकर भागा। बादशाह अकबर को बीरबल की इस बात की खबर मिल गई और उन्हें यह मानना पड़ा कि बीरबल ने जो कुछ कहा है, वह सच है। आत्मविश्वास ही सबसे बड़ा हथियार है। |
Re: अकबर - बीरबल..
सब लोग एक जैसा सोचते हैं........... दरबार की कार्यवाही चल रही थी। सभी दरबारी एक ऐसे प्रश्न पर विचार कर रहे थे जो राज-काज चलाने की दृष्टि से बेहद अहम न था। सभी एक-एक कर अपनी राय दे रहे थे। बादशाह दरबार में बैठे यह महसूस कर रहे थे कि सबकी राय अलग है। उन्हें आश्चर्य हुआ कि सभी एक जैसे क्यों नहीं सोचते! तब बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा, 'क्या तुम बता सकते हो कि लोगों की राय आपस में मिलती क्यों नहीं? सब अलग-अलग क्यों सोचते हैं? |
Re: अकबर - बीरबल..
सब लोग एक जैसा सोचते हैं........... 'हमेशा ऐसा नहीं होता, बादशाह सलामत!' बीरबल बोला, 'कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं जिन पर सभी के विचार समान होते हैं।' इसके बाद कुछ और काम निपटा कर दरबार की कार्यवाही समाप्त हो गई। सभी अपने-अपने घरों को लौट चले। उसी शाम जब बीरबल और बादशाह अकबर बाग में टहल रहे थे, तो बादशाह ने फिर वही राग छेड़ दिया और बीरबल से बहस करने लगे। |
Re: अकबर - बीरबल..
सब लोग एक जैसा सोचते हैं........... तब बीरबल बाग के ही एक कोने की ओर उंगली से संकेत करता हुआ बोला, 'वहां उस पेड़ के निकट एक कुंआ है। वहां चलिए, मैं कोशिश करता हूं कि आपको समझा सकूं कि जब कोई समस्या जनता से जुड़ी हो तो सभी एक जैसा ही सोचते हैं। मेरे कहने का मतलब यह है कि बहुत-सी ऐसी बातें हैं जिनको लेकर लोगों के विचार एक जैसे होते हैं।’ बादशाह अकबर ने कुछ देर कुंए की ओर घूरा, फिर बोले, 'लेकिन मैं कुछ समझा नहीं, तुम्हारे समझाने का ढंग कुछ अजीब-सा है।' बादशाह जबकि जानते थे कि बीरबल अपनी बात सिद्ध करने के लिए ऐसे ही प्रयोग करता रहता है। 'सब समझ जाएंगे हुजूर!' |
Re: अकबर - बीरबल..
सब लोग एक जैसा सोचते हैं........... बीरबल बोला, 'आप शाही फरमान जारी कराएं कि नगर के हर घर से एक लोटा दूध लाकर बाग में स्थित इस कुंए में डाला जाए। दिन पूर्णमासी का होगा। हमारा नगर बहुत बड़ा है, यदि हर घर से एक लोटा दूध इस कुएं में पड़ेगा तो यह दूध से भर जाएगा।’ बीरबल की यह बात सुन बादशाह अकबर ठहाका लगाकर हंस पड़े। फिर भी उन्होंने बीरबल के कहेनुसार फरमान जारी कर दिया। शहर भर में मुनादी करवा दी गई कि आने वाली पूर्णमासी के दिन हर घर से एक लोटा दूध लाकर शाही बाग के कुंए में डाला जाए। जो ऐसा नहीं करेगा उसे सजा मिलेगी। |
Re: अकबर - बीरबल..
सब लोग एक जैसा सोचते हैं........... पूर्णमासी के दिन बाग के बाहर लोगों की कतार लग गई। इस बात का विशेष ध्यान रखा जा रहा था कि हर घर से कोई न कोई वहां जरूर आए। सभी के हाथों में भरे हुए पात्र (बरतन) दिखाई दे रहे थे। बादशाह अकबर और बीरबल दूर बैठे यह सब देख रहे थे और एक-दूसरे को देख मुस्करा रहे थे। सांझ ढलने से पहले कुंए में दूध डालने का काम पूरा हो गया। हर घर से दूध लाकर कुंए में डाला गया था। |
Re: अकबर - बीरबल..
सब लोग एक जैसा सोचते हैं........... जब सभी वहां से चले गए तो बादशाह अकबर व बीरबल ने कुंए के निकट जाकर अंदर झांका। कुंआ मुंडेर तक भरा हुआ था। लेकिन यह देख बादशाह अकबर को बेहद हैरानी हुई कि कुंए में दूध नहीं पानी भरा हुआ था। दूध का तो कहीं नामोनिशान तक न था। हैरानी भरी निगाहों से बादशाह अकबर ने बीरबल की ओर देखते हुए पूछा, 'ऐसा क्यों हुआ? शाही फरमान तो कुंए में दूध डालने का जारी हुआ था, यह पानी कहां से आया? लोगों ने दूध क्यों नहीं डाला?’ |
Re: अकबर - बीरबल..
सब लोग एक जैसा सोचते हैं........... बीरबल एक जोरदार ठहाका लगाता हुआ बोला, 'यही तो मैं सिद्ध करना चाहता था हुजूर! मैंने कहा था आपसे कि बहुत-सी ऐसी बातें होती हैं जिस पर लोग एक जैसा सोचते हैं, और यह भी एक ऐसा ही मौका था। लोग कीमती दूध बरबाद करने को तैयार न थे। वे जानते थे कि कुंए में दूध डालना व्यर्थ है। इससे उन्हें कुछ मिलने वाला नहीं था। इसलिए यह सोचकर कि किसी को क्या पता चलेगा, सभी पानी से भरे बरतन ले आए और कुंए में उड़ेल दिए। नतीजा…दूध के बजाय पानी से भर गया कुंआ।’ बीरबल की यह चतुराई देख बादशाह अकबर ने उसकी पीठ थपथपाई। बीरबल ने सिद्ध कर दिखाया था कि कभी-कभी लोग एक जैसा भी सोचते हैं। |
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