लघु उपन्यास: हाजी मुराद (लियो टॉलस्टॉय)
लघु उपन्यास: हाजी मुराद
लेखक: लिओ टॉलस्टॉय भाग एक मध्य गर्मियों का दिन था, मैं खेतों के रास्ते घर जा रहा था। खेतों में घास मौजूद थी और राई कटने के लिए तैयार थी। वर्ष के इन दिनों में खिले फूलों का चुनाव अद्भुत था। लाल-सफेद-गुलाबी, सुगन्धित और रोएँदार तिपतिया; दूध जैसे सफेद पर केन्द्र में चमकीले, पीले एवं मधु-कटु गन्ध वाले अक्षिपुष्प; मधुर सुगन्धि फैलाती पीली जंगली सरसों; लंबे, गुलाबी और सफेद धतूरे के घण्टाकार फूल; मोठ की चढ़ती बेलें; पीले, लाल और गुलाबी खुजलीमार पौधे; शान्त-गम्भीर बैंजनी कदली, जो नीचे पीली होने का सन्देह देती है और जिसमें से एक तीखी सुवास फूटती है; चमकीली नीली अनाज बूटियाँ जो सन्ध्या होने पर अरुणिम हो जाती हैं तथा बादामी गंध वाली कोमल वल्लरियाँ खिली हुई थीं। मैंने अलग-अलग फूलों के बड़े-बड़े गुच्छ तोड़ लिए थे और घर की ओर बढ़ रहा था। तभी मैंने खाई में उगा और पूरी तरह खिला बैंजनी गोखरू का एक शानदार पौधा देखा। इसे हम 'तातार' कहते हैं। यह कभी दराँती से काटा नहीं जाता और यदि कभी संयोग से कट भी जाए तो घसियारे अपने हाथों को इसके काँटों से बचाने के लिए इसे घास में बीन कर फेंक देते हैं। मैंने सोचा, मैं इस कँटीले फूल को उठा लूँ और इसे अपने फूलों के गुच्छे के बीच रख लूँ। बस, मैं खाई में उतर गया। एक झबरा-सा भौंरा तृप्त होकर फूल के बीच गहरी नींद में सोया पड़ा था। पहले मैंने उसे वहाँ से भगाया। अब मैंने फूल तोड़ने का प्रयत्न किया। लेकिन यह दुष्कर सिद्ध हुआ, क्योंकि डंठल काँटों से भरा हुआ था। मैंने अपने हाथ पर रूमाल लपेट लिया था, लेकिन वे रूमाल को बेध गए। डंठल भयंकर रूप से इतना मजबूत था कि मैं पाँच मिनट तक उससे जूझता रहा और उसके रेशों को एक-एक करके तोड़ता रहा। |
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अंतत: जब मैं फूल तोड़ने में सफल हुआ, तब डण्ठल फूटकर छितर चुका था। यह फूल भी उतना ताजा और सुन्दर प्रतीत नहीं हुआ। उसका रुक्ष स्थूल स्वरूप गुच्छे के दूसरे फूलों से मेल नहीं खा रहा था। मुझे पश्चात्ताप हुआ कि मैंने एक फूल को खराब कर दिया, जो अपनी जगह खिला हुआ ही सुन्दर था। मैंने उसे फेंक दिया। 'कितनीऊर्जा और जीवन-शक्ति!' अपने उस प्रयास को याद करते हुए मैंने सोचा, जो मैंने उसे तोड़ने में किया था। 'कैसी घोर निराशा के साथ उसने अपना जीवन बचाने के लिए संघर्ष किया और फिर कैसे प्यार के साथ स्वयं को समर्पित कर दिया था।'
मेरे घर का रास्ता ताजा जुते और परती पड़े खेतों के बीच से होकर धूल भरी काली धरती पर से ऊपर की ओर जाता था। जुती हुई जमीन एक बहुत विस्तृत धर्मशुल्क भूमि थी और इसके दोनों ओर और सामने जहाँ तक नजर जाती थी, बस हल से बने सीधे खाँचे, जिन पर अभी हेंगा नहीं चलाया गया था, ही दीख पड़ते थे। खेतों को भलीभाँति जोता गया था, जिससे एक भी पौधा या घास की कोई पत्ती ऊपर निकली दीख नहीं रही थी। केवल काली जमीन ही सामने थी। 'मानव कितना विध्वसंक प्राणी है! अपने जीवन निर्वाह के लिए वह किस प्रकार प्राकृतिक जीवन को ही नष्ट कर डालता है,' उस जड़ काली धरती पर किसी सचेतन जीव को अनजाने ही खोजते हुए मैंने सोचा। तभी सामने मार्ग के दाहिनी ओर एक गुच्छा-सा कुछ मुझे दीख पड़ा। जब मैं निकट गया तो मैंने देखा कि यह भटकटैया (तातार) का एक गुच्छा था। |
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इस 'तातार' की तीन शाखाएँ थीं। एक टूट कर नीचे पड़ी हुई थी। इसका बचा हुआ भाग, कटी बाँह के टुकड़े की भाँति पौधे से चिपका हुआ था। शेष दो में से प्रत्येक में एक फूल था। वे फूल कभी लाल रहे होंगे लेकिन अब काले पड़ चुके थे। एक डंठल टूटा हुआ था। इसका ऊपर का आधा भाग अपने अंतिम छोर पर एक बदरंग फूल को लिए लटक रहा था। लेकिन इसका दूसरा हिस्सा ऊपर की ओर सीधा तना हुआ था। पूरा पौधा हल के पहिए के द्वारा कुचला जाकर विखंडित हो न वह तब भी खड़ा हुआ था, जबकि उसके शरीर का एक भाग विनष्ट हो चुका था, उसकी अँतड़ियाँ निकल आई थीं, उसका एक हाथ और एक आँख समाप्त हो चुके थे, फिर भी वह उद्धत खड़ा दिख रहा था, इसके बावजूद कि मनुष्य ने उसके आस-पास के सहोदरों को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। 'कितनी ऊर्जा,' मैंने सोचा, 'मनुष्य ने सब कुछ जीतने में, घास की लाखों पत्तियों को नष्ट करने में खर्च की होगी, फिर भी यह अपराजित-सा खडा़ है।'
तभी मुझे काकेशस की एक पुरानी कहानी याद आ गई, जिसके कुछ हिस्से को मैंने स्वयं देखा, कुछ प्रत्यक्षदर्शियों से सुना और शेष को मैंने अपनी कल्पना से पूरा किया। वही कहानी, जिस रूप में मेरी स्मृति और कल्पना में साकार हुई, यहाँ प्रस्तुत है। |
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1851 के नवम्बर की एक ठण्डी शाम। रूसी सीमा से लगभग पन्द्रह मील दूर चेचेन्या के एक लड़ाकू गांव मचकट में जलते हुए उपलों का तीखा धुआं उठ रहा था, जब हाजी मुराद ने वहॉं प्रवेश किया। अजान देनेवाले मुअज्जिनों का उच्च तीखा स्वर अभी-अभी रुका था और जलते उपलों की गंध से भरी शुद्ध पहाड़ी हवा में नीचे झरने के पास इकट्ठे, बहस करते पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों की कंठ ध्वनियॉं सुनाई दे रही थीं। ये ध्वनियॉं बाड़ों में बन्द किए जा रहे पशुओं और भेड़ों के रंभाने और मिमियाने से ऊपर उठी सुनी जा सकती थीं। पशु और भेड़ें बाड़ों में वैसे ही ठूंसी जा रही थीं जैसे मधुमक्खी के छत्ते में मधुमक्खियॉं। हाजी मुराद शमील का एक लेफ्टीनेण्ट था जो रूसियों के विरुद्ध शौर्यपूर्ण कार्यों के लिए विख्यात था। वह उसे घेर कर चलते दर्जनों मुरीदों-अनुयाइयों या शिष्यों के साथ, अपने निजी ध्वज के नीचे ही युद्धों में भाग लिया करता था। वह सिर पर टोपी पहने हुए था और उसने लबादा ओढ़ रख था। उसकी राइफल की नाल बाहर निकली दीख रही थी। अपने एक मुरीद के साथ, सड़क पर मिले ग्रामीणों के चेहरों पर अपनी सतर्क काली, तेज आँखों से एक सरसरी दृष्टि डालता हुआ और अपनी ओर उनका ध्यान कम से कम आकर्षित करने का प्रयास करता हुआ वह आ रहा था। हाजी मुराद जब गॉंव के बीच में पहुंचा, तो चौराहे तक जाने वाली सड़क के बजाय वह बांयीं ओर संकरी गली में मुड़ गया। गली में वह दूसरे मकान के सामने पहुंचा, जो पहाड़ी के नीचे दबा-सा दीखता था। यहॉं वह रुका और उसने चारों ओर देखा। उस मकान के आगे सायबान के नीचे कोई नहीं था, लेकिन छत पर नया पलस्तर की गई मिट्टी की चिमनी के पीछे फर का कोट पहने एक आदमी खड़ा था। हाजी मुराद ने चाबुक फटकार कर और जीभ से ट्क-ट्क की आवाज कर उसका ध्यान आकर्षित किया। रात की टोपी और फर के कोट से झिलमिलाता हुआ दिखाई देता एक पुराना वस्त्र पहने वह एक वृद्ध व्यक्ति था। उसकी धुंधली आँखों पर बरौनियाँ नहीं थीं और पलकों को खोलने के लिए वह उन्हें मिचका रहा था। हाजी मुराद ने रिवाजी ढंग से उसे ‘सलाम आलेकुम’ कहा और अपना चेहरा दिखाया। |
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‘आलेकुम सलाम’ वृद्ध ने कहा, जिससे उसके दंतहीन मसूढ़े दीखाई पड़े। हाजी मुराद को पहचानते ही वह अपने दुर्बल पैरों को घसीटते हुए चिमनी के पास पड़ी लकड़ी के तलों वाली अपनी चप्पलों तक ले गया। फिर घीमे से और सावधानीपूर्वक उसने अपनी बाहें सकुड़नों भरी मिरजई की आस्तीनों में डालीं और छत से लगी सीढ़ी से चेहरा सामने करके नीचे उतरने लगा। वृद्ध ने धूप से झुलसी दुबली-पतली गर्दन पर टिका सिर हिलाया और दंतहीन जबड़ों से निरंतर बुदबुदाता रहा। जब वह नीचे पहुंचा तब उसने विनम्रतापूर्वक हाजी मुराद के घोड़े की लगाम और दाहिनी रकाब पकड़ ली, लेकिन हाजी मुराद का मुरीद फुर्ती से घोड़े से उतरा और उसने वृद्ध का स्थान ले लिया। उसे एक ओर हटाकर उसने घोड़े से उतरने में हाजी मुराद की सहायता की। हाजी मुराद घोड़े से उतरकर हल्का-सा लंगड़ाता हुआ सायबान के नीचे आया। लगभग पन्द्रह वर्ष का एक लड़का दरवाजे से निकलकर उसकी ओर आया और अपनी छोटी चमकदार आँखों से आगन्तुक को विस्मयपूर्वक देखने लगा।
‘‘दौड़कर मस्जिद तक जा और अपने पिता को बुला ला।” वृद्ध ने उससे कहा। इसके पश्चात् उसने बत्ती जलाई और चरमराहट के साथ हाजी मुराद के लिए घर का दरवाजा खोला। जिस समय हाजी मुराद घर में प्रवेश कर रहा था पीले ब्लाउज और नीले पायजामे पर लाल गाउन पहने एक कृशकाय वृद्धा कुछ गद्दे लिए हुए अंदर के दरवाजे से आयी। ‘‘आपका आगमन सुख-शान्ति लाए,” वह बोली और अतिथि के लेटने के लिए सामने की दीवार के साथ दुहरा करके गद्दे बिछाने लगी। ‘‘आपके बेटे जीवित रहें”, हाजी मुराद ने अपना लबादा, राइफल और तलवार उतारकर वृद्ध के हवाले करते हुए कहा। |
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वृद्ध ने सावधानीपूर्वक राइफल और तलवार गृहस्वामी के हथियारों के साथ दो बड़े प्लेटों के बीच खूंटी पर लटका दिये जो अच्छे ढंग से पलस्तर की हुई सफेदी पुती दीवार पर चमक रहे थे। हाजी मुराद ने पिस्तौल को संभालकर अपने पीछे रख लिया। वह गद्दे के पास आया। उसने अपनी ट्यूनिक उतारकर रख दी और गद्दे पर बैठ गया। वृद्ध अपनी नंगी एडि़यों पर टिककर उसके समने बैठ गया। उसने अपनी आँखे बंद कर लीं और हथेलियों को उभारते हुए हाथ ऊपर उठाये। हाजी मुराद ने भी वैसा ही किया। फिर दोनों चेहरे पर धीरे-धीरे हाथ फेरते हुए इस प्रकार सस्वर नमाज अदा करने लगे कि उनके हाथ दाढ़ी की नोक का बार-बार स्पर्श करते रहे।
‘‘ने हबार ? (कोई समाचार?) ” हाजी मुराद ने वृद्ध से पूछा। ‘‘हबार योक (कोई समाचार नहीं है)।” वृद्ध ने लाल और उदासीन आँखों से हाजी मुराद के चेहरे के बजाय उसकी छाती की ओर देखते हुए उत्तर दिया। ‘‘मैं मधुमक्खियों में गुजारा करता हूँ, और इस समय मैं अपने बेटे को देखने आया हूँ। समाचार वही जानता है।” हाजी मुराद ने अनुमान लगाया कि वृद्ध बात नहीं करना चाहता। उसने अपना सिर हिलाया और अधिक कुछ नहीं कहा। ‘‘अच्छा समाचार नहीं है।” वृद्ध बोला, ‘‘समाचार केवल यह है कि खरगोश सदैव चिन्तित रहते हैं कि उकाबों को किस प्रकार दूर रखा जाये और उकाब उन्हे एक-एक कर झपट रहे हैं। पिछले सप्ताह रूसी कुत्तों ने मिशिको में भूसा जला डाला था। लानत है उनकी आँखों को,” वृद्ध गुस्से से बुदबुदाया। हाजी मुराद का मुरीद मजबूत लंबे डग भरता हुआ धीमे से प्रविष्ट हुआ। अपना लबादा, राइफल और तलवार उसने उतार दी जैसा कि हाजी मुराद ने किया था और उन्हे उसी खूंटी पर टांग दिया जिस पर उसके स्वामी के टांगे गये थे। केवल अपनी कटार और पिस्तौल उसने अपने पास रखी। ‘‘वह कौन है?” मुरीद की ओर देखते हुए वृद्ध ने पूछा। ‘‘वह एल्दार है, मेरा मुरीद,” हाजी मुराद ने कहा। |
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‘‘बिल्कुल ठीक” वृद्ध बोला और हाजी मुराद के पास गद्दे पर आसन गृहण करने के लिए उसे इशारा किया। एल्दार पैर पर पैर रखकर बैठ गया और बातें कर रहे वृद्ध के चेहरे पर अपनी बड़ी खूबसूरत आँखें स्थिर कर दीं। वृद्ध ने उन्हें बताया कि उनके योद्धाओं ने सप्ताह भर पहले दो रूसी सैनिकों को पकड़ा था। एक को मार दिया था और दूसरे को शमील के पास भेज दिया था। हाजी मुराद ने दरवाजे की ओर सरसरी दृष्टि डाली और बाहर से आने वाली आवाज पर ध्यान केन्द्रित करते हुए अन्यमनस्क भाव से वृद्ध की बात सुनी। घर के सायबान के नीचे कदमों की आहट थी। तभी दरवाजा चरमराया और गृहस्वामी ने प्रवेश किया।
गृहस्वामी, सादो, लगभग चालीस वर्ष का व्यक्ति था। उसकी दाढ़ी छोटी, नाक लंबी और आँखें उसी प्रकार काली थीं, यद्यपि उतनी चमकदार नहीं थीं, जैसी उसके पन्द्रह वर्षीय पुत्र की थीं जो उसे बुलाने गया था। वह भी अंदर आया और दरवाजे के पास बैठ गया। सादो ने अपने लकड़ी के जूते उतार दिए। बिना हजामत किए हुए ठूंठी जैसे काले बालोंवाले बड़े सिर पर से जीर्ण-शीर्ण फर की टोपी को उसने पीछे हटाया और तुरंत हाजी मुराद के सामने पाल्थी मारकर बैठ गया। उसने उसी प्रकार आँखें बंद कर लीं, जिस प्रकार वृद्ध ने की थीं और हथेलियों को उभारते हुए हाथों को ऊपर उठाया। उसने सस्वर नमाज अदा की और बोलने से पहले चेहरे पर धीरे-धीरे अपने हाथ फेरे। फिर उसने कहा कि शमील ने हाजी मुराद को जीवित या मृत पकड़ने का आदेश भेजा था। शमील का दूत कल ही वापस गया था, और इसलिए सावधान रहना उनके लिए आवश्यक था। |
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‘‘मेरे घर में, जब तक मैं जीवित हूँ” सादो ने कहा, ‘‘कोई भी मेरे मित्र को नुकसान नहीं पहुँचा सकता। लेकिन बाहर के विषय में कौन जानता है ? हमें इस पर विचार करना चाहिए।”
हाजी मुराद ने एकाग्रतापूर्वक उसकी बात सुनी और सहमति में सिर हिलाया, और जैसे ही सादो ने बात समाप्त की, वह बोला - ‘‘हूँ … अब मुझे पत्र देकर एक आदमी रूसियों के पास भेजना है। मेरा मुरीद जाएगा, लेकिन उसे एक मार्ग-दर्शक की आवश्यकता है।” ‘‘मैं अपने भाई बाटा को भेजूंगा,” सादो ने कहा। ‘‘बाटा को बुलाओ,” उसने अपने बेटे से कहा। लडका उत्सुकतापूर्वक अपनी टांगों को उछालता और बाहों को लहराता हुआ तेजी से घर से बाहर निकल गया। दस मिनट बाद वह गहरे ताम्बई रंग, छोटी टांगों वाले एक हृष्ट-पुष्ट चेचेन के साथ लौटा। उसने आस्तीनों पर रोंयेदार मुलायम चमड़े का पैबंद लगा चिथड़ा पीला ट्यूनिक, और लंबी काली पतलून पहन रखी थी। हाजी मुराद ने आगन्तुक को अभिवादन किया और एक भी शब्द व्यर्थ किए बिना तुरंत बोला : ‘‘क्या तुम मेरे मुरीद को रूसियों के पास ले जाओगे ?” ‘‘मैं ले जा सकता हूँ।” बाटा ने प्रसन्नतापूर्वक उत्तर दिया। ‘‘मैं कुछ भी कर सकता हूँ। कोई भी चेचेन ऐसा नहीं है जो मुझसे बढ़कर हो। कुछ लोग आते हैं और आपसे दुनिया भर के वायदे करते हैं, लेकिन करते कुछ नहीं, लेकिन मैं यह कर सकता हूँ।” |
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‘‘अच्छा” हाजी मुराद बोला। ‘‘इस काम के लिए तुम्हें तीन रूबल मिलेंगे।” तीन उंगलियॉं दिखाते हुए उसने कहा।
बाटा यह प्रदर्शित करता हुआ सिर हिलाता रहा कि वह समझ गया है, लेकिन उसने आगे कहा कि वह पैसा नहीं चाहता, वह केवल आदर भाव के कारण हाजी मुराद की सेवा के लिए तैयार हुआ था। पहाड़ों में सभी इस बात को जानते हैं कि हाजी मुराद ने किस प्रकार रूसी सुअरों की पिटाई की थी।” ‘‘इतना ही पर्याप्त है।” हाजी मुराद बोला, ‘‘एक रस्सी को लंबा होना चाहिए, लेकिन भाषण छोटा होना चाहिए।” ‘‘तो मैं चुप रहूंगा।” बाटा बोला। ‘‘झरने के सामने जहॉं आर्गुन मोड़ है, वहॉं जंगल में एक खुला स्थान है और वहॉं सूखी घास के दो ढेर हैं। तुम्हे उस स्थान के विषय में मालूम है ?” ‘‘ मुझे मालूम है।‘‘ ‘‘मेरे तीन घुड़सवार वहॉं मेरा इंतजार कर रहे हैं।” हाजी मुराद ने कहा। ‘‘अहा।” सिर हिलाते हुए बाटा बोला। ‘‘खान महोमा को पूछना। खान-महोमा जानता है कि क्या करना है और क्या कहना है। क्या तुम उसे रूसी प्रधान, प्रिन्स, वोरोन्त्सोव के पास ले जा सकते हो ?” ‘‘मैं ले जा सकता हूँ।” ‘‘उसे ले जाओ और वापस ले आओ। ठीक ?” ‘‘बिल्कुल ठीक।” ‘‘उसे लेकर जंगल में वापस आओ। मैं वहीं हूंगा।” ‘‘मैं यह सब करूंगा,” अपनी छाती पर अपने हाथों को दबाकर, उठकर खड़े होते हुए और बाहर जाते हुए बाटा ने कहा। |
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‘‘एक दूसरा आदमी मुझे घेखी के पास भेजना आवश्यक है,” बाटा के चले जाने के बाद हाजी मुराद ने अपने मेजबान से कहा। ‘‘यह घेखी के लिए है,” ट्यूनिक की एक थैली को पकड़ते हुए उसने कहना जारी रखा, लेकिन जब उसने दो महिलाओं को कमरे में प्रवेश करते हुए देखा, उसने तुरन्त हाथ बाहर निकाल लिया और रुक गया।
उनमें से एक सादो की पत्नी थी। वही दुबली-पतली अधेड़ महिला, जिसने लाकर गद्दे बिछाये थे। दूसरी लाल पायजामे पर हरे रंग का वस्त्र पहने एक युवती थी जिसके वस्त्र के वक्ष भाग में धागे से चॉंदी के सिक्के जड़े हुए थे। चॉंदी का एक रूबल उसके मांसल स्कंधस्थल के बीच लटकती मजबूत काली चोटी के अंत में लटका हुआ था। वह कठोर दिखने का प्रयास कर रही थी, लेकिन पिता और भाई की भॉंति मनकों जैसी उसकी आँखें उसके चेहरे पर झपक रही थीं। उसने आगन्तुकों की ओर नहीं देखा, लेकिन स्पष्ट रूप से वह उनकी उपस्थिति से अवगत थी। सादो की पत्नी एक नीची गोल मेज में चाय, मक्खनवाले मालपुआ, चीज, पावरोटी और मधु लेकर आयी थी। लड़की एक कटोरा, एक सुराही और एक तौलिया लायी थी। जब तक दोनों महिलाएं मुलायम तलों वाले जूतों से खामोश कदम रखती हुई मेहमानों के सामने सामान रखती रहीं; तब तक सादो और हाजी मुराद चुप रहे। जब तक महिलाएं कमरे में रहीं एल्दार अपनी बड़ी आँखें आड़े-तिरछे रखे पैरों पर गड़ाये पूरे समय मूर्तिवत बैठा रहा था। जब दोनों महिलाएं कमरे से बाहर चली गयीं और दरवाजे के पीछे उनके कदमों की आवाज आनी बंद हो गयी, तब एल्दार ने राहत की ठण्डी सांस ली और हाजी मुराद ने अपनी ट्यूनिक की एक थैली को पकड़ा, उसके अंदर ठुंसी एक गोली, और उसके नीचे लपेट कर रखा पत्र निकाला। |
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‘‘इसे मेरे बेटे तक पहुँचाना है।” पत्र दिखाते हुए वह बोला।
‘‘ और उत्तर ?” सादो ने पूछा। ‘‘तुम उसे ले लेना और उसे मुझे भेज देना।” ‘‘यह हो जाएगा,” सादो ने कहा और पत्र को अपनी ट्यूनिक की जेब में रख लिया। फिर उसने सुराही अपने हाथ में पकडा और कटोरा हाजी मुराद की ओर सरकाया। हाजी मुराद ने बाहें उघाड़ी, जिससे उनका गोरापन और मांसपेशी दिखाई दीं। उसने अपने हाथों को स्वच्छ ठण्डे पानी की धार के नीचे किया जिसे सादो सुराही से ढाल रहा था। जब हाजी मुराद ने मोटे साफ तौलिये से हाथ सुखा लिये, वह भोजन के लिए मुड़ा। एल्दार ने भी वैसा ही किया। जब वे भोजन कर रहे थे, सादो उनके सामने बैठा रहा था और उनके आगमन के लिए उसने उन्हें अनेक बार धन्यवाद कहा था। लड़का दरवाजे के पास बैठा, अपनी चमकती काली आँखों से उन पर मुस्करा रहा था मानो वह अपने पिता के शब्दों की पुष्टि कर रहा था। यद्यपि हाजी मुराद ने चौबीस घण्टों से अधिक समय से भोजन नहीं किया था, फिर भी उसने बहुत थोड़ी ब्रेड और चीज खायी और ब्रेड पर चाकू से थोड़ा-सा मधु लगाया। ‘‘हमारा शहद अच्छा है। यह वर्ष शहद के लिए प्रसिद्ध रहा है। यह पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, और अच्छी गुणवत्ता वाला है,” वृद्ध ने कहा और यह देखकर प्रसन्न हुआ कि हाजी मुराद उसका शहद खा रहा था। ‘‘शुक्रिया,” हाजी मुराद ने कहा और भोजन लेना छोड़ दिया। एल्दार अभी भी भूखा था, लेकिन अपने स्वामी की भॉंति ही वह भी मेज से हट गया और उसने हाजी मुराद की ओर कटोरा और सुराही बढ़ाया। |
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सादो जानता था कि हाजी मुराद को रखकर वह अपने जीवन को खतरे में डाल रहा था। जब से हाजी मुराद का शमील के साथ झगड़ा हुआ था, मृत्यु का भय दिखाकर सभी चेचेन- वासियों के लिए उसका स्वागत ममनूअ (निषिद्ध) कर दिया गया था। वह जानता था कि ग्रामीणों को किसी भी क्षण उसके घर में हाजी मुराद के मौजूद होने की जानकारी हो सकती है और वे उसके आत्मसमर्पण की मांग कर सकते हैं। लेकिन घबड़ाने के बजाय वह प्रसन्न था। वह मानता था कि यह उसका कर्तव्य है कि वह अपने मेहमान की रक्षा करे, भले ही इसके लिए उसे अपने प्राण गंवाने पड़ें। उसने इस बात से अपने को प्रसन्न और गौरवान्वित अनुभव किया कि वह एक ‘ड्यूटी कमाण्डेण्ट’ की भॉंति व्यवहार कर रहा था।
‘‘जब तक आप मेरे घर में हैं और मेरा सिर मेरे कंधों पर है, कोई भी आपको नुकसान नहीं पहुँचा पायेगा,” उसने पुन: हाजी मुराद से दोहराया। हाजी मुराद ने उसकी चमकदार आँखों की ओर देखा और समझ गया कि वह सच कह रहा था। ‘‘ तुम्हे खुशी और लंबी उम्र मिले।” उसने औपचारिकतापूर्वक कहा। सादो ने नेक शब्दों के लिए इशारे से इल्तज़ा करते हुए अपनी छाती को अपने हाथों से दबाया। जब हाजी मुराद ने किवाड़ बन्द किये और जलाने के लिए तैयार लकडि़यॉं अंगीठी में डालने लगा, सादो विशेषरूप से प्रसन्नचित और सजीव मन:स्थिति में कमरे से विदा हुआ और घर के पीछे की ओर परिवार के लिए बने कमरों में चला गया। महिलाएं उस खतरनाक मेहमान के विषय में बातें करतीं हुई, जो आगे के कमरे में रात बिता रहा था, अभी तक जाग रही थीं। |
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उसी रात वोजविजेन्स्क में अग्रिम छावनी से तीन सैनिक और एक वारण्ट अफसर सगीर गेट की ओर रवाना हुए। वे उस गांव से लगभग बारह मील की दूरी पर थे, जहाँ हाजी मुराद रात बिता रहा था। सैनिकों ने फर के जैकेट और टोपियाँ, कंधों पर पट्टियाँ लगे ओवर कोट और घुटनों से भी ऊँचे बूट पहन रखे थे जो उन दिनों कोकेशस में यूनीफार्म का हिस्सा हुआ करते थे। अपने हिथयारों को कंधों पर लादे वे सड़क के साथ-साथ एक फर्लांग तक गए, फिर दाहिनी ओर पत्तों से होकर सरसराते हुए बीस कदम चले, और एक टूटे चिनार के पेड़ के पास खड़े हो गए, जिसका काला तना अंधेरे में अस्पष्ट दिखाई दे रहा था। उस पेड़ के पास प्राय: एक संतरी रात्रि-रक्षक के रूप में नियुक्त रहता था। जब वे जंगल से होकर गुजर रहे थे, पेड़ों के ऊपर दौड़ने का आभास देते चमकीले तारे वृक्षों की नंगी शाखाओं के पार हीरे जैसा चमकते हुए ठहरे हुए थे। ‘‘ईश्वर को धन्यवाद कि यह सूखा है,” वारण्ट अफसर पानोव बोला। उसने संगीन लगी अपनी लंबी राइफल उतारी और आवाज के साथ पेड़ के सामने टिका दी। सैनिकों ने भी उसका अनुसरण किया। ‘‘हाँ, मैं समझ गया, मैं उसे खो चुका हूँ, पानोव बुदबुदाया। “या तो मैं उसे भूल आया अथवा वह रास्ते में गिर गया।” ‘‘आप क्या खोज रहे हैं?” एक सैनिक ने हार्दिकतापूर्वक, प्रसन्न स्वर में पूछा। ‘‘मेरा पाइप… मुझे लानत है। काश… ! मैं जान पाऊँ कि वह कहाँ है।! ” ‘‘आप नली लाए हैं? ” प्रसन्न स्वर ने पूछा । ‘‘नली … यह रही वह।” ‘‘आप उसे जमीन में गाड़ देगें? ” ‘‘क्या इरादा है? ” “मैं उसे तुरंत बैठा दूंगा।” |
Re: लघु उपन्यास: हाजी मुराद (लियो टॉलस्टॉय)
गश्त के दौरान धूम्रपान सख्त वर्जित था, लेकिन यह चौकी मुश्किल से ही छुपी हुई थी। यह एक सीमा-चौकी थी जो कबीलाइयों को चोरी-छुपे तोपखाना लाने से रोकती थी, जैसा कि वे पहले करते थे और छावनी पर बमबारी किया करते थे। अंतत: अपने को तम्बाकू पीने से वंचित करने का पानोव को कोई कारण नजर नहीं आया, और उसने प्रसन्न सैनिक के प्रस्ताव पर सहमति दे दी। सैनिक ने अपनी जेब से चाकू निकाला और जमीन पर एक गड्ढा खोदने लगा। जब गड्ढा खुद गया, उसने उसे बराबर किया, नली का पाइप उस स्थान पर बैठाया, छेद में कुछ तम्बाकू रखा, उसे नीचे की ओर दबाया और सब कुछ तैयार था। दियासलाई धधकी और सैनिक के पिचके मुंह के पास एक क्षण के लिए जल उठी, क्योंकि वह पेट के बल जमीन पर लेटा था। पाइप में सीटी की-सी आवाज हुई, और पानोव ने तंबाकू जलने की रुचिकर सुगंध अनुभव की।
‘‘तुमने उसे बैठा दिया ? ” खड़े होते हुए पानोव ने पूछा। ‘‘काम ठीक ठाक हो गया।” ‘‘बहुत अच्छा किया, आवदेयेव ! एक विशिष्ट दक्ष, लौंडे, एह ? ” आवदेयेव अपने मुंह से धुआँ बाहर छोड़ता हुआ ऊपर की ओर घूम गया, और उसने पानोव के लिए रास्ता बनाया। पानोव पेट के बल लेट गया, अपनी आस्तीन से नली को पोछा और तम्बाकू पीने लगा। जब उसने पीना बंद किया सैनिकों ने बाते प्रारंभ कर दी। ‘‘ वे कहते हैं कि कमाण्डिंग अफसर पुन: आर्थिक संकट में फंस गया है। निश्चित ही उसने जुआ खेला होगा, ” एक सैनिक धीरे-धीरे बोला। ‘‘वह उसे वापस लौटा देगा।” पानोव बोला। ‘‘सभी जानते हैं कि वह एक अच्छा अफसर है, ” उसकी बात का समर्थन करते हुए आवदेयेव ने कहा। ‘‘मैं परवाह नहीं करता, यदि वह अच्छा अफसर है, ” पहला वक्ता भुनभुनाया, ‘‘मेरे विचार से कम्पनी का कर्तव्य है कि उससे पूछताछ करे। यदि उसने कुछ लिया है, तो उसे बताना चाहिए कि कितना, और वह उसे कब लौटाएगा।” ‘‘यह निर्णय करना कम्पनी का काम है, ” तम्बाकू पीना रोक कर पानोव ने कहा। ‘‘वह उससे भाग नहीं सकेगा, आप भी यह निश्चित तौर पर समझ सकते हैं,” आवदेयेव ने उसके सुर में सुर मिलाते हुए कहा। ‘‘वह सब बहुत अच्छा है, लेकिन हमें रखने के लिए तो मिली जई और हमने सामान रखने की पेटी मरम्मत करवायी वसंत के लिए… पैसा चाहिए, और यदि उसने वह लिया है…।” असंतुष्ट सैनिक ने कहना जारी रखा। ‘‘यह सब कम्पनी के ऊपर है, मैंने कहा न, ” पानोव ने दोहराया। ‘‘ऐसा पहले भी घटित हुआ था। उसने जो भी लिया है वह उसे वापस लौटा देगा।” |
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उन दिनों काकेशस में प्रत्येक कम्पनी अपने लिए आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति अपने चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा नियंत्रित करती थी। भत्ते के रूप में उसे प्रति व्यक्ति छ: रूबल पचास कोपेक प्राप्त होते थे, और वह अपने आप आपूर्ति करती थी। वह सब्जियाँ उगाती, चारागाह तैयार करती, परिवहन व्यवस्था कायम करती और अच्छी तरह पोषित घोड़ों पर विशेष गर्व करती थी। फण्ड तिजोरी में रखा जाता था, और चाबी कम्पनी कमाण्डर के पास होती थी। अपनी सहायता के लिए ऋण लेना कम्पनी कमाण्डर के लिए बार-बार की घटना हो गयी थी। इस समय भी यही घटित हुआ था, और वही सैनिकों के चर्चा का विषय था। निकितिन असंतुष्ट था और चाहता था कि हिसाब के लिए कमाण्डर को कहा जाये, लेकिन पानोव और आवदेयेव इस बात की आवश्यकता अनुभव नहीं करते थे।
पानोव ने जब पीना समाप्त किया, तब निकितिन पाइप की ओर मुड़ा। वह अपने ओवर कोट पर बैठ गया और पेड़ के सामने झुक गया। दल के लोग चुप हो गये थे और आवाज केवल उनके सिरों के ऊपर पेड़ों की फुनगियों की ऊंचाई पर हवा के सरसराने की थी। अचानक उन्हें हवा की सरसराहट से ऊपर श्रृंगालों का चीखना और विलखना सुनाई पड़ा। ‘‘ उन्हें लानत, ये कैसा शोरगुल कर रहे हैं।” आवदेयेव बोला। |
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‘‘वे तुम पर हंस रहे हैं; क्योंकि तुम्हारा चेहरा भैंगा है, ” नरम उक्र्रैनियन लहजे में तीसरे सैनिक ने कहा।
पुन: चुप्पी पसर गयी। हवा केवल पेड़ों की टहनियों को हिला रही थी, जिससे तारे कभी प्रकट होते तो कभी छुप जाते थे। ‘‘अन्तोनिच, मैं कहता हूँ,” मुस्कराते हुए आवदेयेव ने अचानक पानोव से पूछा, ‘‘आप कभी परेशान हुए ? ” ‘‘परेशान ! तुम्हारा अभिप्राय क्या है? ” पानोव ने अनिच्छापूर्वक उत्तर दिया। ‘‘मैं इस समय इतना परेशान हूँ… मात्र परेशान, कि आश्चर्य नहीं कि मैं कहीं आत्महत्या न कर लूं।” ‘‘इसे समाप्त करो।” पानोव ने कहा। ‘‘मैनें पीने में पैसे इसलिए उड़ाये, क्योंकि मैं परेशान था। मैं पीने के लिए परेशान रहता था। और मैनें सोचा, मुझे अंधाधुंध पीना है।” ‘‘नियम से मदिरा-पान करना मनुष्य को बदतर बनाता है।” ‘‘हाँ, लेकिन मैं क्या कर सकता हूँ।” ‘‘गोया, तुम किस बात से परेशान हो ? ” ‘‘मैं ? मैं गृहासक्त हूँ।” |
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‘‘क्यों ? क्या तुम घर में बेहतर थे ? ”
‘‘हम अमीर नहीं थे, लेकिन वह एक अच्छी ज़िन्दगी थी, सुन्दर जीवन।” और आवदेयेव पानोव को उस विषय में बताने लगा, जैसा कि वह पहले भी कई बार कर चुका था । ‘‘भाई के बजाय मैं स्वेच्छा से सेना में भर्ती हुआ था, ” आवदेयेव ने कहा, ‘‘उसके चार बच्चे थे, जबकि मेरी अभी शादी ही हुई थी। मेरी माँ चाहती थी कि मैं सेना में जाऊं। मैनें कभी उज्र नहीं किया। मैनें सोचा, शायद अच्छे कार्यों के लिए वे मुझे याद करेंगे। इसलिए मैं जमींदार से मिलने गया। वह एक अच्छा आदमी था, हमारा जमींदार, और उसने कहा, ‘‘अच्छा मित्र, तुम जाओ। इस प्रकार भाई के बजाय मैं सेना में भर्ती हो गया।” ‘‘बहुत अच्छा।” पानोव ने कहा। ‘‘लेकिन अंतोनिच, अब आप इस पर अवश्य विश्वास करेंगें, कि मैं परेशान हूँ। यह सब इसलिए बदतर है, क्योंकि मैनें अपने भाई का स्थान लिया था। मैं अपने से कहता हूँ कि इस समय वह एक छोटा जमींदार है, जबकि मैं तंगहाली में हूँ। और मैं जितना ही इस विषय में सोचता हूँ, यह उतना ही बदतर लगता है। इसके लिए मैं कुछ नहीं कर सकता।” आवदेयेव रुका। ‘‘क्या हम दोबारा तम्बाकू पियेंगे? ” उसने पूछा। ‘‘हाँ, उसे ठीक करो।” |
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लेकिन सैनिकों को तम्बाकू पीने का आनन्द नहीं मिला। आवदेयेव अभी उठा ही था और वह पाइप ठीक करने ही वाला था, कि उन्हें हवा की आवाज के ऊपर सड़क पर चलते कदमों की आवाज सुनाई दी। पानोव ने अपनी राइफल उठा ली और निकितिन को झिटका। निकितिन उठा और उसने अपना ओवर कोट उठाया। तीसरा बोन्दोरेन्को भी उठ खड़ा हुआ।
‘‘ क्या मैं स्वप्न देख रहा था … क्या स्वप्न …!” आवदेयेव बोन्दारेन्को पर फुफकारा, और सैनिक जड़ होकर चुपचाप सुनने का प्रयास करने लगे। जूतों पर चलते शिथिल कदम निकट आते जा रहे थे। अंधेरे में पत्तियों और सूखी टहनियों की चरमराहट साफ सुनाई दे रही थी। तभी उन्हें चेचेन की गुट्टारा भाषा में बातचीत करने की अनूठी आवाज सुनाई दी, और उन्होंने पेड़ों के बीच हल्की रोशनी में दो छायाओं को चलते देखा। एक छाया छोटी और दूसरी लंबी थी। जब वे सैनिकों के बराबर पहुंचे पानोव और उसके साथी हाथ में राइफल थामें सड़क पर आ गये। ‘‘ कौन जा रहा है ? ” पानोव चीखा। ‘‘शांतिप्रिय चेचेन, ”दोनों में से छोटे कद वाला बोला। वह बाटा था। ‘‘न बन्दूक है, न तलवार, ” अपनी ओर इशारा करते हुए उसने कहा, ‘‘प्रिन्स, आप देख सकते हैं।” लंबा व्यक्ति अपने साथी के बगल में शांत खड़ा था। उसके पास भी हथियार नहीं थे। |
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‘‘कर्नल से मिलने जानेवाले गुप्तचर हो सकते हैं।” पानोव ने अपने साथियों को स्पष्ट किया।
‘‘प्रिन्स वोरोन्त्सोव से मिलना आवश्यक है, महत्वपूर्ण कार्य है।” बाटा ने कहा। ‘‘बहुत अच्छा। हम तुम्हें उनके पास ले जायेंगे, ” पानोव बोला, ‘‘तुम और बोन्दोरेन्को इन्हे साथ लेकर जाओ,” उसने आवदेयेव से कहा, ‘‘उन्हें ड्यूटी अफसर को सौंपना और वापस लौट आना। और पूरी तरह सावधान रहना। इन्हें अपने आगे चलने देना।” ‘‘यह किसलिए है ? ” अपनी संगीन से धकियाते हुए आवदेयेव बोला। एक को धकियाया और वह मृत व्यक्ति-सा बना रहा। ‘‘तुम उसे कोंचते हो, उससे कोई लाभ ? ” बान्दोरेन्को बोला, ‘‘ठीक है, तेजी से चलो।” जब गुप्तचरों और उनके अनुरक्षकों के कदमों की ध्वनि सुनाई देनी बंद हो गयी, पानोव और निकितिन वापस चौकी में लौट गये थे। ‘‘रात में शैतान उन्हें यहाँ किसलिए लाया था ? ” निकितिन बोला। ‘‘उनके पास कोई कारण अवश्य है, ” पानोव ने कहा। ‘‘देखो रोशनी फैल रही है,” उसने आगे कहा। उसने अपने ओवरकोट को फैलाया और पेड़ के सामने बैठ गया। दो घण्टे पश्चात् आवदेयेव और बोन्दोरेन्को लौट आए। |
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‘‘हाँ, तुम उन्हें सौंप आए ? ” पानोव ने पूछा।
‘‘हाँ। कर्नल अभी तक जागे हुए थे, और वे उन्हें सीधे उन्हीं के पास ले गये थे। सफाचट सिर वाले वे लड़के कितने अच्छे थे!” आवदेयेव ने कहा, ‘‘ मैंनें उनसे अद्भुत बातचीत की।” ‘‘हम जानते हैं कि तुम अद्भुत बातूनी हो, ” निकितिन कटु स्वर में बोला। ‘‘सच, वे बलिकुल रूसियों जैसे हैं। एक विवाहित है।” ‘‘तुम्हारे पत्नी है ? ” मैनें पूछा। ‘‘हाँ।” उसने कहा। ‘‘कोई बच्चा ? ” मैनें पुन: पूछा। ‘‘हाँ, बच्चा है” ‘‘एक जोड़ी ?” ‘‘एक जोड़ी” उसने कहा। “हमने अच्छी गपशप की।…शानदार लड़के हैं।” ‘‘मैं शर्त लगाता हूँ, ” निकितिन ने कहा, ‘‘ तुम एक से अकेले मिलो, और वह जल्दी ही तुम्हारी आंते निकाल देगा।” ‘‘भोर जल्दी ही होगी।” पानोव बोला। ‘‘हाँ, अब तारे फीके पड़ने लगे हैं, ” आवदेयेव ने बैठते हुए कहा। सैनिक पुन: चुप हो गये थे। (भाग एक समाप्त) |
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लघु उपन्यास: हाजी मुराद
(लेखक: लिओ टॉलस्टॉय) भाग दो बैरकों की खिड़कियों और सैनिकों के कुटीरों में रोशनी बहुत पहले बुझ चुकी थी, लेकिन छावनी के भव्य-भवन की सभी खिड़कियाँ रौशन थीं। यह कुरियन रेजीमेण्ट के कर्नल प्रिन्स माइकल साइमन वोरेन्त्सोव का घर था, जो राज दरबार के एक उच्च अधिकारी और कमाण्डर-इन-चीफ का पुत्र था। वोरोन्त्सोव इस घर में अपनी पत्नी मेरी वसीलीव्ना के साथ रहता था, जो पीटर्सबर्ग की एक सुन्दरी थी। उसके रहन-सहन में एक प्रकार की ऐसी विशिष्टता थी जो काकेशस के इस छोटी छावनी वाले कस्बे में पहले कभी नहीं देखा गया था। वारोन्त्सोव और उसकी पत्नी सोचते कि वे अभावों से भरपूर बहुत साधारण जीवन जी रहे थे, फिर भी स्थानीय निवासी उनके असाधारण विलासितापूर्ण रहन-सहन से विस्मित थे। आधी रात का समय था। वोरोन्त्सोव अपने विशाल ड्राइंग रूम में, जिसमें कालीन बिछा हुआ था और लंबे भारी परदे पड़े हुए थे, अतिथियों के साथ मेज पर ताश खेल रहा था, जिस पर चार मोमबत्तियाँ जल रही थीं। खिलाडि़यों में एक स्वयं कर्नल वारोन्त्सोव था। उसका चेहरा लंबा, बाल सुन्दर थे और उसने राज्याधिकारी होने के चिन्ह धारण कर रखे थे। उसका साथी पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय का एक स्नातक था, जिसे प्रिन्सेज ने अपने पहले पति से उत्पन्न पुत्र के ट्यूटर के रूप में नियुक्त किया हुआ था। वह उदास भावाकृतिवाला एक सांवला नौजवान था। दो अधिकारी उनके विरुद्ध खेल रहे थे। उनमें से एक चौड़े गाल, गुलाबी चेहरे वाला कम्पनी कमाण्डर पोल्तोरत्स्की था, जो गारद सेना से स्थानांतरित होकर आया था और दूसरा रेजीमंण्टल एडजूटेण्ट था, जो अपने सुन्दर चेहरे पर ठण्डी भावाकृति लिए सीधा तना हुआ बैठा था। बड़ी आंखों और काली भौंहोवाली सुन्दर महिला प्रिन्सेज मेरी वसीलीव्ना, पोल्तोरत्स्की के बगल में बैठी थी और उसके पैरों को अपने पेटीकोट से छू रही थी और उसके हाथों की ओर देख रही थी। उसके बोलने, उसके देखने और मुस्कराने, उसक शरीर के संचलन और उसके द्वारा प्रयोग किये गये परफ्यूम, से सम्मोहित पोल्तोरत्स्की उसका सान्निध्य पाने के अतिरिक्त सब ओर से बेखबर था। उसने एक के बाद दूसरी गलती की थी और इससे उसका साथी भड़क उठा था। |
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‘‘नहीं यह तो हद है ! तुमने दूसरा इक्का बरबाद कर दिया।” लाल-पीला होता हुआ एड्जूटेण्ट बोला, क्योंकि पोल्तोरत्स्की एक इक्का फेक चुका था।
पोल्तोरत्स्की ने अपनी सौम्य बड़ी काली आंखों से क्रुद्ध एड्जूटेण्ट की ओर न समझने वाले भाव से ऐसे देखा मानो वह अभी-अभी सोकर उठा था। ‘‘अच्छा, उसे क्षमा कर दें।” मुस्कराती हुर्ह मेरी वसीलीव्ना ने कहा। “मैनें तुमको इतना बताया था,” उसने पोल्तोरत्स्की से कहा। ‘‘लेकिन तुमने मुझे सब गलत बताया था।” पोल्तोरत्स्की ने मुस्कराते हुए कहा । ‘‘सच ?” वह बोली, और मुस्कराई भी। पोल्तोरत्स्की इस मुस्कराहट से इतना उत्तेजित और प्रसन्न हुआ कि वह शर्म से लाल हो उठा और उत्तेजित-सा पत्ते फेटने लगा । ‘‘तुम्हारे पत्ते नहीं।” एड्जूटेण्ट कठोरतापूर्वक बोला और अपने गोरे हाथों को घुमाते हुए पत्ते फेटने लगा मानो वह उनसे यथाशीघ्र मुक्ति पा लेना चाहता था। एक नौकर ड्राइंगरूम में प्रविष्ट हुआ और बोला कि ड्यूटी अफसर ने प्रिन्स से भेंट करने का अनुरोध किया है। ‘‘सज्जनों, क्षमा करें,” अंग्रेजी लहजे में प्रिन्स ने रशियन में कहा, ‘‘मेरी तुम मेरा स्थान ग्रहण कर लो।” |
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‘‘मैं ?” फुर्ती से पूरी तरह खड़ी होती हुई प्रिन्सेज ने पूछा। उसके सिल्क के कपड़ों में सरसराहट हुई और एक प्रसन्न महिला की भाँति उल्लसित होती हुई वह मुस्काराई।
‘‘मैं सदैव हर बात के लिए तैयार रहता हूँ,” एड्जूटेण्ट बोला। अपने विरुद्ध प्रिन्सेज के खेलने से वह बहुत प्रसन्न था, क्योंकि प्रिन्सेज को खेलने का बिल्कुल ज्ञान नहीं था। पोल्तोरत्स्की ने सहजता से बाहें फैलायीं और मुस्कराया। प्रिन्स जब ड्राइंग रूम में वापस लौटा खेल समाप्त हो रहा था। वह बहुत उत्तेजित और प्रसन्न था। ‘‘सोचो, मैं क्या सूचित करने वाला हूँ।” ‘‘क्या ?” ‘‘आओ हम शैम्पेन पियें।” ‘‘मैं सदैव तैयार रहता हूँ,” पोल्तोरत्स्की ने कहा। ‘‘हां, कितना सुखद,” एड्जूटेण्ट बोला। ‘‘वसीली ! हम लोगों को शैम्पेन सर्व करो !” प्रिन्स ने कहा। ‘‘ तुम्हें क्यों बुलाया था?” मेरी वसीलीव्ना ने पूछा। ‘‘ड्यूटी अफसर एक दूसरे आदमी के साथ आया था?” ‘‘कौन? क्यों?” मेरे वीसीलीव्ना ने उत्सुकतापूर्वक पूछा। |
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‘‘मैं नहीं बता सकता,” वारोन्त्सोव बोला।
‘‘तुम नहीं बता सकते,” मेरी वसीलीव्ना ने दोहराया, ‘‘हम उस पर विचार कर लेगें।” शैम्पेन सर्व की गई। अतिथियों ने एक-एक गिलास पिया, खेल समाप्त किया, व्यवस्थित हुए और जाने लगे। ‘‘आपकी कम्पनी को कल जंगल के लिए तैनात किया गया है, क्या नहीं? ” प्रिन्स ने पोल्तोरत्स्की से पूछा। ‘‘हाँ, मेरी … वहाँ कुछ खास है ?” ‘‘तब मैं आपसे कल मिलूंगा।” प्रिन्स ने फीकी मुस्कान के साथ कहा। ‘‘मैं गौरवान्वित हूँ,” मेरी वसीलीव्ना से हाथ मिलाने के विचार के संभ्रम में पोल्तोरत्स्की प्रिन्स के शब्दों को पूरी तरह ग्रहण नहीं कर पाया था। मेरी वसीलीव्ना ने, प्राय: की भाँति, उसके हाथ को न केवल दृढ़ता से दबाया बल्कि जोरदार ढंग से हिलाया भी। उसने उसे एक बार पुन: उस समय की त्रुटि की याद दिलाई जब वह क्लबों का संचालन किया करता था। वह उस पर मुस्कराई। ‘‘एक मोहक, उत्तेजक और अर्थपूर्ण मुस्कान,” पोल्तोरत्स्की ने सोचा। वह ऐसी उल्लासपूर्ण मनस्थिति में घर गया, जिसे समाज में उसकी तरह पढ़े-लिखे, उसी की भाँति जन्मे और पले-बढ़े लोग ही समझ सकते थे जो उसी की तरह महीनों के एकाकी सैनिक जीवन के बाद अचानक अपनी किसी पूर्व परिचित महिला से मिलते हैं। और प्रिन्सेज वोरोन्त्सोव एक विशिष्ट महिला थीं। |
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जब वह अपने निवास पर पहुँचा उसने दरवाजे को धक्का दिया, लेकिन चिटखनी अंदर से बंद थी। उसने खटखटाया, लेकिन वह बंद ही रहा। उसका धैर्य चुक गया और उसने बूट और तलवार दरवाजे पर मारना शुरू कर दिया। अंदर पदचाप सुनाई पड़ी और पोल्तोरत्स्की के नौकर ववीला ने चिटकनी खोली।
‘‘ मूर्ख, तुमने बंद क्यों किया था ?” ‘‘लेकिन सच, अलेक्सिस व्लादीमीर …।” ‘‘दोबारा पी ? मैं तुझे सबक सिखा दूँगा …।” पोल्तोरत्स्की ववीला को लगभग मारने ही वाला था, लेकिन फिर उसने उसे सुधारने की सोचा। ‘‘तुझे लानत है, सुधरने की कभी मत सोचना। चल, मोमबत्ती जला।” ‘‘इसी क्षण।” ववीला बुरी तरह पिये हुए था। वह क्वार्टर मास्टर के जन्म दिन के आयोजन में शामिल हुआ था। जब वह घर लौटकर आया, वह अपने जीवन की तुलना क्वार्टर मास्टर इवान मैथ्यू के जीवन से करने लगा। इवान मैथ्यू की निश्चित आय थी, वह विवाहित था और आशा करता था कि एक वर्ष में पैसे देकर वह अपने को सेना से मुक्त कर लेगा। ववीला छोटी आयु में ही नौकरी में आ गया था, और इस समय वह चालीस से ऊपर था, अविवाहित था और अपने अनियंत्रित स्वामी के साथ यौद्धिक जीवन जीता आ रहा था। वह एक अच्छा मालिक था और कभी-कभी ही उसे पीटता था, लेकिन यह भी कोई ज़िन्दगी थी ! ‘‘जब वह काकेशस से लौटा था तब उसने मुझे स्वतंत्र करने का वायदा किया था, लेकिन मैं अपनी स्वतंत्रता का करूंगा क्या ? यह एक कुत्ते जैसी ज़िन्दगी है,” ववीला ने सोचा था। वह इतना उनींदा था कि उसने इस भय से दरवाजा बंद कर लिया था और सो गया था कि कोई घर में घुस आ सकता था और कुछ भी चोरी कर सकता था। |
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पोल्तोरत्स्की उस कमरे में प्रविष्ट हुआ जहाँ वह अपने साथी तिखोनोव के साथ सोता था।
‘‘अच्छा, तुम हार गये ?” उनींदे स्वर में तिखोनोव बोला। ‘‘भगवन, नहीं ! मैनें सत्तरह रूबल जीते और हमने एक बोतल क्लिकोट पी।” ‘‘और मेरी वसीलीव्ना को देखते रहे ?” ‘‘और मेरी वसीलीव्ना को देखता रहा ।” पोल्तोरत्स्की ने दोहराया। ‘‘जल्दी ही हमारे जागने का समय हो जाएगा।” तिखोनोव ने कहा, ‘‘हमें छ: बजे चल देने के लिए उठना है।” ‘‘ववीला,” पोल्तोरत्स्की चीखा, ‘‘ध्यान रहे, मुझे ठीक पाँच बजे जगा देना।” ‘‘मैं कैसे जगा सकता हूँ जब आप मुझसे झगड़ते हैं ?” ‘‘मैं कहता हूँ, मुझे जगा देना। सुना तुमने?” ‘‘बहुत अच्छा।” |
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ववीला अपने मालिक के जूते और कपड़े लेकर बाहर निकल गया।
पोल्तोरत्स्की बिस्तर पर गया और एक सिगरेट जलायी। उसने बत्ती बुझायी और मुस्कराया। अंधेरे में उसने मेरी वसीलीव्ना का मुस्कराता चेहरा अपने सामने देखा। वोरोन्त्सोव दम्पति तुरंत बिस्तर पर नहीं गया था। जब अतिथि चले गये थे तब मेरी वसीलीव्ना अपने पति के पास आयी थी और चेहरे पर कठोरता ओढे़ उसके सामने खड़ी हो गयी थी। ‘‘हाँ, तुम्हे मुझे बाताना ही है ?” ‘‘लेकिन मेरी प्यारी … ।” ‘‘तुम मुझे ‘मेरी प्यारी’ मत कहो। वह एक दूत है, क्या नहीं है ?” ‘‘सच, मैं तुम्हें नहीं बता सकता।” ‘‘तुम नहीं बता सकते ? तब वह मैं तुम्हें बताऊंगी।” ‘‘तुम ?” ‘‘वह हाजी मुराद है ? क्या वह नहीं है ?” प्रिन्सेज ने कहा, जिसने कुछ दिन पहले हाजी मुराद के साथ हुए समझौते के विषय में सुना था। उसने अनुमान लगाया था कि हाजी मुराद स्वयं उसके पति से मिलने आया था। वोरोन्त्सोव इससे इंकार नहीं कर सका, लेकिन हाजी मुराद की उपस्थिति के विषय में पत्नी का भ्रम निवारण करते हुए उसने कहा, कि वह केवल एक दूत था जिसने उसे बताया था कि अगले दिन हाजी मुराद उससे वहाँ मिलेगा जहाँ जंगल काटा जा रहा था। छावनी के उकताहटपूर्ण जीवन-चर्या में युवा वोरोन्त्सोव दम्पति इस उत्तेजनापूर्ण समाचार से प्रसन्न थे। वे इस विषय में बातें करते रहे कि इस समाचार से उसके पिता कितना प्रसन्न होंगे। और जब वे सोने के लिए बिस्तर पर गये रात के दो बज चुके थे। |
Re: लघु उपन्यास: हाजी मुराद (लियो टॉलस्टॉय)
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शमील के मुरीदों से बचते हुए हाजी मुराद ने तीन रातें बिना सोये बितायी थीं, और जैसे ही सादो ‘शुभ रात्रि’ कहकर कमरे से बाहर निकला था, वह सो गया था। वह पूरे कपड़े पहने हुए ही, लाल गद्दी के नीचे अपनी कोहनी मोड़कर, जिसे उसके मेजबान ने उसके लिए बिछाया था, सो गया था। एल्दार उसके पीछे पसर गया था। उसकी छाती उसके सफाचट नीले सिर से ऊंची उठी हुई दिख रही थी, जो तकिया से नीचे लुढ़क गया था। उसका ऊपरी होठ नीचे के होठ से हल्का-सा दबा हुआ था, और वे इस प्रकार सिकुड़-फैल रहे थे कि ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कोई बच्चा चुस्की ले रहा था। हाजी मुराद की भांति वह भी पूरे कपड़ों में, अपनी बेल्ट में पिस्टल और कटार पहने सो गया था। उसके सफेद ट्यूनिक में काली गोलियों की थैलियॉं भरी हुई थीं। अंगीठी में लकड़ियाँ जल रहीं थीं और आले में चिराग टिमटिमा रहा था। आधी रात के समय दरवाजा चरमराया। हाजी मुराद तुरंत उठ खड़ा हुआ और उसने मजबूती से अपनी पिस्टल पकड़ ली। सादो मिट्टी की फर्श पर दबे पाँव चलते हुए कमरे में प्रविष्ट हुआ। ‘‘तुम क्या चाहते हो ?” हाजी मुराद ने ऐसे पूछा जैसे वह सोया ही नहीं था। ‘‘हमें सोचना चाहिए,” हाजी मुराद के सामने बैठते हुए सादो बोला। ‘‘एक महिला ने छत से आपको घोड़े पर आते हुए देख लिया था,” उसने कहा। “उसने अपने पति को बताया और अब सारा गाँव जान गया है। एक पड़ोसी अभी-अभी अन्दर आया था और उसने मेरी पत्नी को बताया कि बुजुर्ग लोग मस्जिद में एकत्रित हुए हैं और आपको गिरफ्तार करना चाहते हैं।” ‘‘हमें जाना होगा” हाजी मुराद बोला। |
Re: लघु उपन्यास: हाजी मुराद (लियो टॉलस्टॉय)
‘‘घोड़े तैयार हैं।” सादो ने कहा और तेजी से कमरे से बाहर निकल गया।
‘‘एल्दार” हाजी मुराद फुसफुसाया और एल्दार स्वामी की आवाज सुनते ही अपनी टोपी ठीक करता हुआ उछलकर खड़ा हो गया। हाजी मुराद ने हथियार और लबादा पहना, और एल्दार ने भी वैसा ही किया। उन दोनों ने चुपचाप सायबान की ओर से घर छोड़ दिया। काली आँखों वाला लड़का घोड़े ले आया था। सख्त सड़क पर घोड़ों की टापों की खटखटाहट से बगल वाले मकान के दरवाजे से एक सिर बाहर प्रकट हुआ, और एक आदमी लकड़ी के जूतों की खटखट करता पहाड़ी पर बने मस्जिद की ओर दौड़ गया था। उस समय चाँद नहीं निकला था। काले आकाश में तारे चमक रहे थे। अंधेरे में छतों के बाहरी किनारे और मस्जिद के शिखर और उसकी मीनारों के बुर्ज गाँव के सबसे ऊंचे भाग से भी ऊपर उठे देखे जा सकते थे। मस्जिद से फुसफुसाहट भरी आवाजें सुनी जा सकती थी। हाजी मुराद ने तेजी से राइफल पकड़ी, तंग रकाब में पैर रखा और कुशलतापूर्वक उछलकर गद्दीदार काठी पर बैठ गया। ‘‘खुदा आपको इनाम दे” अपने मेजबान को संबोधित करते हुए उसने कहा। उसका दाहिना पैर स्वत: दूसरी रकाब पर पहुंच गया और चाबुक के इशारे से उसने लड़के को हटने का इशारा किया। लड़का पीछे हट गया, और घोड़ा गली से मुख्य मार्ग की ओर तेज गति से दौड़ पड़ा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि बिना कहे वह जानता था कि उसे क्या करना है। एल्दार पीछे चला और सादो अपने फर कोट में बाहें लहराता और संकरी गली में इधर से उधर छंलागें लगाता उनके पीछे दौड़ने लगा। गली के मुहाने पर एक हिलती-डुलती छाया रास्ता रोकती हुई प्रकट हुई, और फिर दूसरी प्रकटी। |
Re: लघु उपन्यास: हाजी मुराद (लियो टॉलस्टॉय)
“रुको ! कौन जा रहा है ? रुको,” चीखती हुई एक आवाज आई, और अनेक लोगों ने रास्ता रोक लिया।
रुकने के बजाय हाजी मुराद ने बेल्ट से पिस्तौल निकाली और घोड़े की गति बढ़ाकर सीधे रास्ता रोके दल की ओर बढ़ा । लोग तितर-बितर हो गये और हाजी मुराद सहज पोइयां चाल से सड़क पर उतर गया। एल्दार तेज दुलकी चाल से उसके पीछे चलता रहा। उनके पीछे दो धमाके गूंजे और सनसनाती गोलियाँ दोनों में से किसी को भी स्पर्श न कर बगल से निकल गयीं। हाजी मुराद ने अपनी रफ्तार नहीं बदली। तीन सौ गज आगे जाने के बाद उसने अपने घोड़े को रोका, जो हल्का-सा हांफ रहा था। उसने सुनने का प्रयास किया। सामने और नीचे की ओर उसे तेज बहते पानी की आवाज सुनाई दी। उसके पीछे गाँव में मुर्गे बांग दे रहे थे। इन आवाजों से ऊपर पीछे की ओर से निकट आती हुई घोड़ों की टॉपें और आवाजें उसे सुनाई दीं। हाजी मुराद ने घोड़े को छुआ और उसी गति में चलने लगा। पीछे आनेवाले घुड़सवार सरपट दौड़ रहे थे और तेजी से हाजी मुराद के निकट आते जा रहे थे। वे लगभग बीस थे। वे ग्रामीण थे जिन्होंने हाजी मुराद को गिरफ्तार करने का निर्णय किया था अथवा शमील के सामने अपनी सफाई देने के लिए वे उसे गिरफ्तार करने का नाटक करना चाहते थे। जब वे इतना निकट आ गये कि अंधेरे में भी दिखाई देने लगे तब हाजी मुराद रुक गया। उसने घोड़े की लगाम ढीली की, बायें हाथ से यंत्रवत राइफल केस खोला और दूसरे हाथ में राइफल पकड़ ली। एल्दार ने भी वैसा ही किया। |
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‘‘तुम लोग क्या चाहते हो ?” हाजी मुराद चीखा। ‘‘क्या तुम हमें पकड़ना चाहते हो ? तब आगे बढ़ो ।“ उसने अपनी राइफल ऊपर उठायी।
ग्रामीण रुक गये। राइफल हाथ में पकड़े हुए हाजी मुराद ने नदी की ओर उतरना प्रारंभ कर दिया। घुड़सवारों ने दूरी बनाए हुए उसका पीछा किया। जब हाजी मुराद नदी पार करके दूसरी ओर पहुँच गया, घुड़सवार इस प्रकार चीखे जिससे वे जो कहना चाहते थे उसे हाजी मुराद सुन सके। हाजी मुराद ने उत्तर में राइफल से फायर किया और घोड़े को सरपट दौड़ा दिया। जब वह रुका तब न किसी के पीछा करने की आवाज थी, न मुर्गों की बांग, केवल जंगल के मध्य पानी की स्पष्ट कलकल ध्वनि थी और कभी-कभी उल्लू चीख उठता था। यह वही जंगल था जहाँ उसके आदमी उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। जब वह जंगल में पहुँच गया, हाजी मुराद रुका, गहरी सांसों से फेफड़ों को भरा, सीटी बजायी और इसके बाद उत्तर सुनने के लिए रुका रहा। एक मिनट बाद ही उसे जंगल से उसी प्रकार की सीटी सुनाई दी। हाजी मुराद ने सड़क से मुड़कर जंगल में प्रवेश किया। सौ गज जाने के बाद पेड़ों के तनों के बीच से आग की चमक और उस आग के चारों ओर बैठे लोगों की छायाएं, और साथ ही हल्की रोशनी में अभी भी काठी कसा लड़खड़ाता हुआ एक घोड़ा उसे दिखाई पड़े। आग के पास चार आदमी बैठे थे। उनमें से एक आदमी तेजी से उठ खड़ा हुआ, हाजी मुराद के पास आया और उसके घोड़े की लगाम और रकाब थाम ली। वह हाजी मुराद का हमशीर (सहोदर) था जो उसके क्वार्टर मास्टर के रूप में काम करता था। |
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‘‘आग बुझा दो।“ घोड़े से उतरते हुए हाजी मुराद ने कहा। दूसरे लोगों ने आग को छितराना शुरू कर दिया और जलती लकडि़यों को रौदनें लगे।
‘‘तुमने बाटा को देखा है ?” जमीन पर बिछे हुए चादर की ओर बढ़ते हुए हाजी मुराद ने पूछा। ‘‘हाँ, कुछ देर पहले ही वह खान महोमा के साथ गया था।” ‘‘वे लोग किस रास्ते गये ?” ‘‘इस रास्ते।” हाजी मुराद जिस रास्ते से आया था, उसके विपरीत रास्ते की ओर इशारा करते हुए हनेफी ने उत्तर दिया। ‘‘ अच्छा ” हाजी मुराद बोला। उसने अपनी राइफल उतारी और उसे लोड किया। ‘‘हमें सतर्क रहना चाहिए। मेरा पीछा किया जा रहा था,” उसने उस व्यक्ति से कहा जो आग बुझा रहा था। यह हमज़ालो था, एक चेचेन। हमज़ालो चादर के पास आया, राइफल को उसके खोल में रखा और चुपचाप जंगल में उस खुले स्थान के किनारे की ओर गया जिधर से हाजी मुराद आया था। एल्दार घोड़े से उतरा, उसने हाजी मुराद के घोड़े को पकड़ा और दोनों घोड़ों की लगामें पेड़ से इस प्रकार बांध दीं कि घोड़ों के सिर ऊपर उठे रहें। फिर हमज़ालो की भांति कंधे पर अपनी राइफल लटकाकर वह जंगल के दूसरे किनारे पर जा खड़ा हुआ। आग बुझ चुकी थी। जंगल पहले जैसा अंधकारमय प्रतीत नहीं हो रहा था। तारे यद्यपि क्षीण हो चुके थे तथापि आकाश में दिखाई दे रहे थे। |
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हाजी मुराद ने तारों पर दृष्टि डाली और यह देखकर कि सप्तर्षि-मण्डल ने आधी दूरी तय कर ली है, उसने अनुमान लगाया कि आधी रात बीत चुकी थी और रात्रि की नमाज का समय हो गया था। उसने हनेफी से जग मांगा, जिसे वह पिट्ठू बैग में लेकर सदैव चलता था। उसने अपनी चादर ली और नदी किनारे गया। जूते उतारकर हाजी मुराद ने जब वु़जू समाप्त कर लिया तब वह चादर तक नंगे पाँव चलकर आया, पिण्डलियों के बल उस पर उकंड़ू बैठा, उंगलियों से कान बंद किये, आँखें मूंदी और पूरब की ओर मुड़कर रिवाज के अनुसार सस्वर नमाज अदा करने लगा।
जब उसने नमाज समाप्त कर ली, वह उस स्थान पर लौट आया जहाँ उसने पिट्ठू बैग छोड़ा था। चादर पर बैठकर उसने घुटनों पर हाथ रखे और सिर झुकाकर सोचने लगा। हाजी मुराद सदैव अपनी किस्मत पर यकीन करता था। वह जो भी योजना बनाता, कार्य प्रारंभ करने से पहले ही उसकी सफलता के विषय में आश्वस्त हो लेता था… और सब कुछ भलीभांति सम्पन्न भी होता रहा था। उसके सम्पूर्ण तूफानी यौद्धिक जीवन ने, कुछ अपवादों को छोड़कर, यह सिद्ध भी कर दिया था। इसलिए, उसे विश्वास था, कि अब भी वैसा ही होगा। उसने कल्पना की कि वोरोन्त्सोव द्वारा भेजी गयी सेना के सहयोग से वह शमील पर हमला करेगा, उसे पकड़कर अपना इंतकाम लेगा; जार उसे इनामयाफ़्ता करेगा और वह न केवल अवारिया में, बल्कि सम्पूर्ण चेचेन्या में जो उसकी अधीनता स्वीकार कर लेगी, शासन करेगा। |
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यही सब सोचते हुए वह सो गया और उसने स्वप्न देखा कि ‘हाजी मुराद‘ कहकर गाते और चिल्लाते अपने योद्धाओं के साथ वह शमील पर आक्रमण कर रहा था। उसने उसे और उसकी पत्नियों को कैद कर लिया था और उसकी पत्नियों का रुदन और क्रन्दन सुन रहा था। अचानक वह उठ बैठा ‘अल्लाह’ का आलाप, ‘हाजी मुराद’ का शोर और शमील की पत्नियों का क्रन्दन वास्तव में गीदड़ों की हुहुआहट और उनकी हंसी थी, जिसने उसे जगा दिया था। हाजी मुराद ने सिर ऊपर उठाया, आकाश की ओर देखा, जिस पर पेड़ों के पार पूरब की ओर रोशनी फैल रही थी और कुछ दूर बैठे मुरीद से उसने पूछा कि क्या खान महोमा लौट आया। यह सुनने के बाद कि वह अभी तक नहीं लौटा था, हाजी मुराद ने सिर नीचे झुका लिया और पुन: सोने की कोशिश करने लगा।
वह खान महोमा की बश्शाश ( उत्फुल्ल ) आवाज से जाग गया, जो बाटा के साथ अपने मिशन से वापस लौट आया था। खान महोमा तुरंत हाजी मुराद के बगल में बैठ गया और बताने लगा कि किस प्रकार सैनिक उनसे मिले और उन्हें लेकर प्रिन्स के पास गये, और उसने प्रिन्स से बात की। उसने उसे बताया कि प्रिन्स कितना प्रसन्न थे, और कैसे उन्होंने मिशिको के बाहर शाला जंगल में जहाँ रूसी सैनिक जंगल की सफाई कर रहे थे, सुबह के समय उनसे मिलने का वायदा किया था। बाटा ने अपने साथी को रोका और विस्तार से बताने लगा। |
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हाजी मुराद ने उनसे पूछा कि रूसियों की ओर जाने के उसके प्रस्ताव पर वोरोन्त्सोव ने उत्तर में ठीक क्या शब्द प्रयोग किये थे। खान महोमा और बाटा ने एक स्वर में उत्तर दिया कि प्रिन्स ने हाजी मुराद का एक मेहमान की तरह इस्तकबाल (स्वागत) करने और अच्छी तरह देखभाल किये जाने का ध्यान रखने का वायदा किया था। हाजी मुराद ने उनसे रास्ता पूछा, और जब खान महोमा ने उसे आश्वस्त किया कि वह अच्छी तरह रास्ता जानता है और वह उसे सीधे वहीं ले जायेगा तब हाजी मुराद ने अपना पर्स निकाला और वायदे के मुताबिक बाटा को तीन रूबल दिए। उसने अपने आदमियों को उसके पिट्ठू बैग से स्वर्ण जड़ित पिस्तौल, फर की टोपी और पगड़ी बाहर निकाल लाने का आदेश दिया और मुरीदों से कहा कि रूसियों के सामने अच्छा दिखने के लिए वे अपने को साज-संवार लें। जब वे लोग हथियार, काठी, उपकरण और घोड़ों की साफ-सफाई कर रहे थे, तारे फीके पड़ चुके थे, आकाश में पर्याप्त प्रकाश फैल चुका था और सुबह की सुहानी हवा बहने लगी थी।
(समाप्त) (साभार/ रेडिओ रूस पत्रिका/ अनुवाद – रूपसिंह चन्देल) |
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