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rajnish manga 25-01-2014 07:36 PM

मनोरंजक लोककथायें
 
मनोरंजक लोककथायें

लोककथायें जन-जीवन में प्रचलित वे कथायें या कहानियाँ हैं जो मनुष्य की कथा सुनने-सुनाने की प्रवृत्ति के चलते अस्तित्व में आयीं और कालान्तर में विभिन्न परिवर्तनों को अपनाते हुये अपने वर्तमान स्वरूप में प्राप्त होती हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कुछ निश्चित कथानक क्षेत्र विशेष की संस्कृति, रूढ़ियों और शैलियों में ढल कर लोककथाओं के रूप में प्रवृत्तियों और चरित्रों से माध्यम से विकसित होती हैं। एक ही कथा विभिन्न संदर्भों और अंचलों में बदलकर अनेक रूप ग्रहण कर लेती है। लोकगीतों की भाँति लोककथाएँ भी हमें मानव की परंपरागत विरासत के रूप में प्राप्त होती हैं। दादी-नानी के पास बैठकर बचपन में जो कहानियाँ सुनी जाती है या लोक जीवन में जो कथाएं पीढ़ी दर पीढ़ी चली आती हैं उनका निर्माण कब, कहाँ कैसे और किसके द्वारा हुआ, यह बताना असंभव है।

इस सूत्र में हम आपको देश विदेश दोनों जगह की लोक कथाओं से परिचित करायेंगे. आशा है यह कहानियाँ आपको भरपूर मनोरंजन प्रदान करेंगी तथा सम्बंधित स्थानों की संस्कृति से भी परिचित कराएंगी.

rajnish manga 25-01-2014 07:38 PM

Re: लोककथा संसार
 
नार्वे की लोक कथा

घास में गुड़िया


एक राजा था। उसके बारह बेटे थे। जब वे बड़े हो गए, तब राजा ने उनसे कहा -"तुम्हे अपने अपने लिए एक-एक पत्नी ढूंढकर लानी है। लेकिन वह पत्नी एक ही दिन में सूत कातकर कपड़ा बुने, फिर उससे एक कमीज सिलकर दिखाए, तभी मैं उसे बहू के रूप में स्वीकार करूंगा।"


इसके बाद राजा ने अपने बेटों को एक-एक घोड़ा दिया। वे सभी अपनी-अपनी पत्नी खोजने निकल पड़े। कुछ ही दूर गए थे कि उन्होंने आपस में कहा कि वे अपने छोटे भाई को साथ नहीं ले जाएंगे।

ग्यारह भाई अपने छोटे भाई को अकेला छोड़कर चले गए। वह रास्ते में सोचने लगा कि वह आगे जाए या लौट जाए। उसका चेहरा उतर गया था। वह घोड़े से उतरकर घास पर बैठ गया और रोने लगा। रोते-रोते अचानक चौंक गया। उसके सामने की घास हिली और कोई सफेद चीज उसकीओर आने लगी। जब वह चीज राजकुमार के पास आई, तो उसे एक नन्ही-सी लड़की दिखाई दी।

उसने कहा- " मैं छोटी-सी गुड़िया हूँ। यहां घास पर ही रहती हूँ। तुम यहां क्यों आए हो? "

राजकुमार ने अपने बड़े भाइयों के बारे में बताया। उसने अपने पिता की शर्त के बारे मेंभी बताया। फिर उसने गुड़िया से पूछा-" क्या तुम एक दिन में सूत कातकर, कपड़ा बुनकर एक कमीज सिल सकती हो? अगर यह कर दोगी, तो मैं तुमसे शादी कर लूंगा। मैं अपने भाइयों के दुर्व्यवहारों के कारण आगे नहीं जाना चाहता।"



rajnish manga 25-01-2014 07:42 PM

Re: लोककथा संसार
 
गुड़िया ने 'हाँ' कर दी। तुरंत ही उसने सूत काता कपड़ा बुना और एक छोटी-सी कमीज लेकर महल की ओर चल पड़ा। जब वह महल में पहुंचा तो उसे शर्म आरही थी, क्योंकि कमीज बहुत छोटी थी। फिर भी राजा ने उसे विवाह करने की अनुमति दे दी।

राजकुमार गुड़िया को लेने चल पड़ा। जब वह घास पर बैठी गुड़िया के पास पहुंचा, तो उसने गुड़िया से घोड़े पर बैठने को कहा। गुड़िया ने कहा- " मैं तो अपने दो चूहों के पीछे चांदी की चम्मच बांधकर उसमें बैठकर जाऊंगी।"

राजकुमार ने उसका कहना मान लिया। राजकमार घोड़े पर सवार हो गया। गुड़िया चूहों के पीछे बंधी चांदी की चम्मच पर सवार हो गई। राजकुमार सड़क के एक ओर चलने लगा, क्योंकि उसे डर था कि कहीं उसके घोड़े का पांव गुड़िया के ऊपर न पड़ जाए। गुड़िया सड़क के जिस ओर चल रही थी, उस ओर एक नदी बह रही थी। अचानक गुड़िया नदी में गिर गई। लेकिन जब वह नदी के अंदर से ऊपर आई, तो राजकुमार के समान बड़ी हो गई थी। राजकुमार बहुत प्रसन्न हुआ।

राजकुमार महल में पहुंचा, तो उसके सभी बड़े भाई अपनी-अपनी होने वाली पत्नियों के साथ वहां आ चुके थे। लेकिन उसके भाइयों की पत्नियों का न व्यवहार अच्छा था , न ही वे सुन्दर थीं। जब उन्होंने अपने भाई की सुन्दर पत्नी को देखा, तो वे सभी जल-भुन गए। राजा को पता चला कि बड़े पुत्रों ने छोटे राजकुमार के साथ दुर्व्यवहार किया है, तो उसने बड़े बेटों की खूब निंदा की। फिर छोटे बेटे को गद्दी सौंप दी। छोटे राजकुमार का विवाह गुड़िया के साथ धूमधाम से हुआ। अब छोटा राजकुमार राजा था और गुड़िया रानी। दोनों सुख से रहने लगे।



(आलेख साभार: सुरेश चन्द्र शुक्ल)

rajnish manga 25-01-2014 09:19 PM

Re: लोककथा संसार
 
स्वीडन की लोक-कथा:
प्रियतमा के लिये...!

स्वीडन की यह लोक कथा, मूलतः डेनिश प्रेमी जोड़े को लेकर कही गई है ! कथा का नायक आरिल्ड एक कुलीन डेनिश परिवार का युवा है , वो डेनिश नौसेना में कार्यरत है और अपने बचपन की मित्र थाले से प्रेम करता है ! दोनों पड़ोसी देशों के मध्य शांति के दिनों में वो, स्वीडन के राजा एरिक के राज्याभिषेक में एक मेहमान बतौर सम्मिलित भी हुआ था ! कालांतर में, किसी कारणवश, स्वीडन और डेनमार्क में युद्ध हो जाने के बाद, वो युद्धबंदी के तौर पर स्वीडन की कैद में था, तो उसकी प्रेमिका थाले ने उसे पत्र लिख कर सूचित किया कि, उसके पिता ने, उसके विरोध के बावजूद, उसका विवाह, किसी अन्य व्यक्ति से तय करते हुए, विवाह की तिथि भी पक्की कर दी है, क्योंकि उनका मानना है कि, आरिल्ड अब कभी भी अपने वतन वापस नहीं आ पायेगा ! कैदखाने में अपनी प्रेमिका का पत्र पाकर आरिल्ड भावुक हो जाता है और उसकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं ! जेल की कोठरी की धुंधली रौशनी में पत्र को ढीले हाथों से थामे हुए, वो युद्ध की क्रूरता और उसका भयावह परिणाम देख रहा था !

उसने अपनी प्रेमिका से ब्याह का वचन दिया था, जो उसकी आजादी के बिना संभव ही नहीं था ! लड़खड़ाते हुए क़दमों से वो उठा और उसने स्वीडन के राजा एरिक को पत्र लिखा, महामहिम , आपको स्मरण होगा कि मैं आपके राज्याभिषेक के समय , आपका सम्मानित मेहमान था और आज आपका बंदी हूं ! राज्याभिषेक के दिन आपने मुझे अपना मित्र माना था, सो मैं आपसे विनती करता हूं कि आप मुझे मेरी प्रियतमा से ब्याह करने के लिए मुक्त करने की कृपा करें ! मैं आपको वचन देता हूं कि मैं, अपनी रोपणी की पहली फसल कटते ही आपकी कैद में वापस आ जाऊंगा ! राजा एरिक ने युवक के वचन पर विश्वास करते हुए उसे एक फसल की समयावधि के लिए , मुक्त करने के आदेश दे दिये ! डेनमार्क पहुंचने पर थाले से उसकी आनंदमयी मुलाकात हुई , किन्तु थाले के पिता उसकी स्वतंत्रता की एक फसली वचनबद्धता वाली योजना से खुश नहीं थे, हालांकि विरोध के बावजूद उन्होंने प्रेमी युगल का ब्याह हो जाने दिया !

rajnish manga 25-01-2014 09:21 PM

Re: लोककथा संसार
 
आरिल्ड को पता था कि, पहली फसल कटते ही, उसे राजा एरिक की कैद में वापस जाना होगा, अतः उसने सोच विचार कर, एक विशाल भूक्षेत्र में बीजारोपण कर दिया ! बसंत के मौसम के कुछ माह बाद ही, राजा एरिक के दूत ने आकर, आरिल्ड से कहा, फसल कटाई का मौसम बीत चुका है और हमारे राजा आपकी वापसी का इंतज़ार कर रहे हैं ! इस पर आरिल्ड ने कहा, मेरी फसल अभी कैसे कटेगी ? वो तो अभी तक अंकुरित भी नहीं हुई है ! यह सुनकर दूत ने आश्चर्य से पूछा, अंकुरित भी नहीं हुई ? ऐसा क्या रोपा है आपने ? ...आरिल्ड ने कहा पाइन के पौधे ! अपने दूत से यह किस्सा सुनकर, राजा एरिक ने हंसते हुए कहा, कि वो एक योग्य व्यक्ति है, उसे कैद में नहीं रखा जाना चाहिये ! इस तरह से आरिल्ड और थाले हमेशा एक साथ बने रहे ! कहते हैं कि पाइन का एक शानदार जंगल उनके प्रेम की विरासत बतौर आज भी जीवित है !

{यह आख्यान मूलतः डेनमार्क के प्रेमी युगल का है, किन्तु शांति काल के मित्रवत व्यवहार और युद्ध काल के शत्रुवत व्यवहार ने इसे दो देशों की कथा में बदल दिया है ! नायक अपने बचपन की सखि से ब्याह के लिए वचनबद्ध है तथा वह उससे ब्याह करने देने की छूट की एवज में शत्रु देश के राजा की कैद में वापस जाने के लिए भी अपना वचन दे बैठता है, उसका भावी श्वसुर उसकी वचनबद्धता के प्रति आशंकित है, इसीलिये वह अपनी पुत्री का भविष्य एक कैदी के हाथों में सौंपने का इच्छुक नहीं है ! ये बात गौरतलब है कि अनिच्छुक होकर भी वह अपनी पुत्री के निर्णय का मान रखता है और प्रेमी युगल को ब्याह करने देता है ! जब तक कथा का नायक एक स्वतंत्र देश के कुलीन परिवार का युवा है और अपने देश की नौसेना में कार्यरत है तब तक उसके प्रेम पर ग्रहण नहीं लगता, किन्तु जब उसका देश युद्ध में पराजित होता है और वह स्वयं विजेता देश में युद्धबंदी हो जाता है, तब इस प्रणय गाथा का भविष्य धुंधला दिखाई देने लगता है, इसका कारण निश्चय ही ब्याह योग्य कन्या के पिता की चिंता को माना जाये}

rajnish manga 25-01-2014 09:36 PM

Re: लोककथा संसार
 
चीनी लोककथा

बिल्ली का दर्पण



एक दिन जंगल में शेर ने एक बिल्ली पकड़ी।
वह उसे खाने की सोचने लगा।


बिल्ली ने पूछा, “तुम मुझे क्यों खाना चाहते हो?
शेर ने कहा, “इसलिए कि मैं बड़ा हूँ और तुम छोटी हो।”

बिल्ली ने आँखें मिचमिचाई और कहा, “नहीं, बड़ी तो मैं हूँ, तुम तो छोटे हो। तुम कैसे कहते हो कि तुम मुझसे बड़े हो?”

बिल्ली की बात सुनकर शेर उलझन में पड़ गया।

शेर ने मन ही मन कहा, “बात तो इसकी ठीक है। मैं कैसे जान सकता हूँ कि मैं कितना बड़ा हूँ?
बिल्ली ने कहा, “मेरे घर में एक दर्पण है, तुम दर्पण में अपने को देखोगे तो तुम्हें पता चल जाएगा।”


शेर ने अपने को दर्पण में कभी नहीं देखा था, वह ऐसा करने के लिए तुरंत तैयार हो गया।
बिल्ली का दर्पण बड़ा अजीब था। उसकी सतह तो उभरी हुई थी, पर पिछला भाग भीतर को धंसा हुआ था।


बिल्ली ने उभरा हुआ भाग शेर के सामने कर दिया।
शेर में दर्पण में देखा कि वह तो एक दुबली-पतली गिलहरी जितना लग रहा था।


बिल्ली ने कहा, “पता लग गया न! कितने बड़े हो? यह दर्पण तो असल से थोड़ा बड़ा ही दिखाता है। वास्तव में तो तुम इससे भी छोटे हो।
शेर डर गया। उसने सिर झुका लिया। बिल्ली ने चुपके से दर्पण घुमा दिया।


फिर बोली, “अब जरा तुम हटो और मुझे अपने को देखने दो।”


आँख चुराकर शेर ने भी चुपके से देखा। दर्पण में बिल्ली बड़ी व भयानक नज़र आ रही थी। बिल्ली का मुँह तो काफी बड़ा हो गया था।
वह कभी खुलता था, कभी बंद होता था और बड़ा डरावना लग रहा था।


शेर ने सोचा, बिल्ली उसे खाना चाहती है। मारे डर के वह जंगल में भाग गया।



rajnish manga 25-01-2014 09:39 PM

Re: लोककथा संसार
 
कांगड़ा की लोककथा
करम का फल
(आलेख: मनोहरलाल)

एक लड़की थी। वह बड़ी सुन्दर थी, शरीर उसका पतला था। रंग गोरा था। मुखड़ा गोल था। बड़ी-बड़ी आंखें कटी हुई अम्बियों जैसी थीं। लम्बे-लम्बे काले-काले बाल थे। वह बड़ा मीठा बोलती थी। धीरे-धीरे वह बड़ी हो गई। उसके पिता ने कुल के पुरोहित तथा नाई से वर की खोज करने को कहा, उन दानों ने मिलकर एक वर तलाश किया। न लड़की ने होनेवाले दूल्हे को देखा, न दूल्हे ने होनेवाली दुल्हन को।

धूम-धाम से उनका विवाह हो गया। जब पहली बार लड़की ने पति को देखा तो उसकी बदसूरत शकल को देखकर वह बड़ी दु:खी हुई। इसके विपरीत लड़का सुन्दर लड़की को देखकर फूला न समाया।

रात होती तो लड़की की सास दूध औटाकर उसमें गुड़ या शक्कर मिलाकर बहू को कटोरा थमा देती और कहती, "जा, अपने लाड़े (पति) को पिला आ।˝ वह कटोरा हाथ में लेकर, पकत के पास जाती और बिना कुछ बोले चुपचाप खड़ी हो जाती। उसका पति दूध का कटोरा लेलेता और पी जाता। इस तरह कई दिन बीत गये। हर रोज ऐसे ही होता। एक दिन उसका पति सोचने लगा, आखिर यह बोलती क्यों नहीं। उसने निश्चय किया कि आज इसे बुलवाये बिना मानूंगा नहीं। जबतक यह कहेगी नहीं कि लो दूध पी लो, मैं इसके हाथ से कटोरा नहीं लूंगा।

उस दिन रात को जब वह दूध लेकर उसके पास खड़ी हुई तो वह चुपचाप लेटा रहा। उसने कटोरा नहीं थामा। पत्नी भी कटोरे को हाथ में पकड़े खड़ी रही, कुछ बोली नहीं। बेचारी सारी रात खड़ी रही, मगर उसने मुंह नहीं खोला। उस हठीले आदमी ने भी दूध का कटोरा नहीं लिया।

सुबह होने को हुई तो पति नेसोचा, इस बेचारी ने मेरे लिए कितना कष्ट सहा है। यह मेरे साथ रहकर प्रसन्न नहीं है। इसे अपने पास रखना इसके साथ घोर अन्याय करना है।

इसके बाद वह उसे उसके पीहर छोड़ आया। बेचारी वहां भी प्रसन्न कैसे रहती ! वह मन-मन ही कुढ़ती। वह घुटकर मरने लगी। उसे कोई बीमारी न थी। वह बाहर से एकदम ठीक लगती थी। माता-पिता को उसके विचित्र रोग की चिंता होने लगी। वे बहुत-से वैद्यों और ज्योतिषियों के पास गये, पर किसी की समझ में उसका रोग नही आया।

अंत में एक बड़े ज्योतिषी ने लड़की के रंग-रूप और चाल-ढाल को देखकर असली बात जानली। उसने उसके हाथ की रेखाएं देखीं। ज्योतिषी ने बताया, "बेटी! पिछले जन्म में तूने जैसे कर्म किये थे, तुझे ठीक वैसा ही फल मिल रहा है। इसमें नतेरा दोष है, न तेरे पति का। तेरे पति ने पिछले जन्म में सफेद मोतियों का दान किया था और तूने ढेर सारे काले उड़द मांगने वालों की झोलियों में डाले थे। सफेद मोतियों के दान के फल से तेरे पति को सुंदर पत्नी मिली है और तुझे उड़दों जैसा बदसूरत आदमी मिला है।

"ऐसी हालत में तेरे लिए यही अच्छा है कि तू अपने पति के घर चली जा और मन में किसी भी प्रकार की बुरी भावना लाये बिना उसी से सांतोष कर, जो तुझे मिला है, ओर आगे के लिए खूब अच्छे-अच्छे काम कर। उसका फल तुझे अगले जन्म में अवश्य मिलेगा।"

ज्योतिषी की बात उस लड़की की समझ में आ गई और वह खुश होकर अपने पति के पास चली गई। वे लोग आंनंद से रहने लगे।
**

internetpremi 25-01-2014 09:43 PM

Re: लोककथा संसार
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 453571)
चीनी लोककथा

बिल्ली का दर्पण



एक दिन जंगल में शेर ने एक बिल्ली पकड़ी।
वह उसे खाने की सोचने लगा।

...
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पहले दर्पण, आजकल Photoshop!
Photoshop के सहारे आप कुछ भी दिखा सकते है!

rajnish manga 25-01-2014 09:50 PM

Re: लोककथा संसार
 
Quote:

Originally Posted by internetpremi (Post 453585)

पहले दर्पण, आजकल photoshop!
Photoshop के सहारे आप कुछ भी दिखा सकते है!


आभार प्रगट करता हूँ, विश्वनाथ जी. लेकिन मुश्किल तो ये है कि जब मुझे ही फोटोशोप का पता नहीं है तो मेरी बिल्ली को कहाँ से जानकारी मिलेगी?



dipu 26-01-2014 08:25 PM

Re: लोककथा संसार
 
great story

rajnish manga 26-01-2014 09:45 PM

Re: लोककथा संसार
 
हरियाणा की लोककथा
बदी का फल
आलेख: शशिप्रभा गोयल


किसी गांव में दो मित्र रहते थे। बचपनसे उनमें बड़ी घनिष्टता थी। उनमें से एक का नाम था पापबुद्धि और दूसरे का धर्मबुद्धि । पापबुद्धि पाप के काम करने में हिचकिचाता नहीं था। कोई भी ऐसा दिन नहीं जाता था, जबकि वह कोई-न-कोई पाप ने करे, यहां तक कि वह अपने सगे-सम्बंधियों के साथ भी बुरा व्यवहार करने में नहीं चूकता था।

दूसरा मित्र धर्मबुद्धि सदा अच्छे-अच्छे काम किया करता था। वह अपने मित्रों की कठिनाइयों को दूर करने के लिए तन, मन, धन से पूरा प्रयत्न करता था। वह अपने चरित्र के कारण प्रसिद्व था। धर्मबुद्धि को अपने बड़े परिवार का पालन-पोषण करना पड़ता था। वह बड़ी कठिनाईयों से धनोपार्जन करता था।

एक दिन पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि के पास जाकर कहा, "मित्र ! तूने अब तक किसी दूसरे स्थानों की यात्रा नहीं की। इसलिए तुझे और किसी स्थान की कुछ भी जानकारी नहीं है। जब तेरे बेटे-पोते उन स्थानों के बारे में तुझसे पूछेंगे तो तू क्या जवाब देगा ? इसलिए मित्र, मैं चाहता हूं कि तू मेरे साथ घूमने चल।"

धर्मबुद्धि ठहरा निष्कपट। वह छल-फरेब नहीं जानता था। उसने उसकी बात मान ली। ब्राह्राण से शुभ मुहूर्त निकलवा कर वे यात्रा पर चल पड़े।

चलते-चलते वे एक सुन्दर नगरी में जाकर रहने लगे। पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि की सहायता से बहुत-सा धन कमाया। जब अच्छी कमाई हो गई तो वे अपने घर की ओर रवाना हुए। रास्ते में पापबुद्धि मन-ही-मन सोचने लगा कि मैं इस धर्मबुद्धि को ठग कर इस सारे धन को हथिया लूं और धनवान बन जाऊं। इसका उपाय भी उसने खोज लिया।

दोनों गांव के निकट पहुंचे। पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि से कहा, "मित्र, यह सारा धनगांव में ले जाना ठीक नहीं।"

यह सुनकर धर्मबुद्धि ने पूछा, "इसको कैसे बचाया जा सकता है? "




rajnish manga 26-01-2014 09:47 PM

Re: लोककथा संसार
 
पापबुद्धि ने कहा, "सारा धन अगर गांव में ले गये तो इसे भाई बटवा लेंगे और अगर कोई पुलिस को खबर कर देगा तो जीना मुश्किल हो जायगा। इसलिए इस धन में से आवश्यकता के अनुसार थोड़ा-थोड़ा लेकर बाकी को किसी जंगल में गाड़ दें। जब जरुरत पड़ेगी तो आकर ले जायेंगे।"

यह सुनकर धर्मबुद्धि बहुत खुश हुआ। दोनों ने वैसा ही किया और घर लौट गए।

कुछ दिनों बाद पापबुद्धि उसी जंगल में गया और सारा धन निकालकर उसके स्थान पर मिटटी के ढेले भर आया। उसने वह धन अपने घर में छिपा लिया। तीन-चार दिन बाद वह धर्मबुद्धि के पास जाकर बोला, "मित्र, जो धन हम लाये थे वह सब खत्म हो चुका है। इसलिए चलो, जंगल में जाकर कुछ धन और लें आयें।"

धर्मबुद्धि उसकी बात मान गया और अगले दिन दोनों जंगल में पहुंचे। उन्होंने गुप्त धन वाली जगह गहरी खोद डाली, मगर धन का कहीं भी पता न था। इस पर पापबुद्वि ने बड़े क्रोध के साथ कहा, " धर्मबुद्धि, यह धन तूने ले लिया है।"

धर्मबुद्धि को बड़ा गुस्सा आया। उसने कहा, "मैंने यह धन नहीं लिया। मैंने अपनी जिंदगी में आज तक ऐसा नीच काम कभी नहीं किया ।यह धन तूने ही चुराया है।"

पापबुद्वि ने कहा, "मैंने नहीं चुराया, तूने ही चुराया है। सच-सच बता दे और आधा धन मुझे दे दे, नहीं तो मैं न्यायधीश से तेरी शिकायत करूंगा।"

धर्मबुद्धि ने यह बात स्वीकार कर ली। दोनों न्यायालय में पहुंचे। न्ययाधीश को सारी घटना सुनाई गई। उसने धर्मबुद्वि की बात मान ली और पापबुद्धि को सौ कोड़े का दण्ड दिया। इस पर पापबुद्धि कांपने लगा और बोला, "महाराज, वह पेड़ पक्षी है। हम उससे पूछ लें तो वह हमें बता देगा कि उसके नीचे से धन किसने निकाला है।"

यह सुनकर न्यायधीश ने उन दोनों को साथ लेकर वहां जाने का निश्यच किया। पापबुद्धि ने कुछ समय के लिए अवकाश मांगा और वह अपने पिता के पास जाकर बोला, "पिताजी, अगर आपको यह धन और मेरे प्राण बचाने हों तो आप उस पेड़ की खोखर में बैठ जायं और न्यायधीश के पूछने पर चोरी के लिए धर्मबुद्धि का नाम ले दें।"



rajnish manga 26-01-2014 09:48 PM

Re: लोककथा संसार
 
पिता राजी हो गये। अगले दिन न्यायधीश, पापबुद्धि और धर्मबुद्धि वहां गये। वहां जाकर पापबुद्धि ने पूछा, "ओ वृक्ष ! सच बता, यहां का धन किसने चुराया है।"

खोखर में छिपे उसके पिता ने कहा, " धर्मबुद्धि ने।"

यह सुनकर न्यायधीश धर्मबुद्धि को कठोर कारावास का दण्ड देने के लिए तैयार हो गये। धर्मबुद्धि ने कहा, "आप मुझे इस वृक्ष को आग लगाने की आज्ञा दे दें। बाद में जो उचित दण्ड होगा, उसे मैं सहर्ष स्वीकार कर लूंगा।"

न्यायधीश की आज्ञा पाकर धर्मबुद्धि ने उस पेड़ के चारों ओर खोखर में मिटटी के तेल के चीथड़े तथा उपले लगाकर आग लगा दी। कुछ ही क्षणों में पापबुद्धि का पिता चिल्लाया "अरे, मैं मरा जा रहा हूं। मुझे बचाओ।"

पिता के अधजले शरीर को बाहर निकाला गया तो सच्चाई का पता चल गया। इस पर पापबुद्धि को मृत्यु दण्ड दिया गया। धर्मबुद्धि खुशी-खुशी अपने घर लौट गया।




rajnish manga 26-01-2014 10:00 PM

Re: लोककथा संसार
 
निमाड़ी लोककथा
सेवा का फल
आलेख: रामनारायण उपाध्याय

(निमाड़ नाम कतिपय पुस्तकों में निमाउड़ के रूप में लिखा गया है। कालान्तर में तथा कई अवस्थाओं से गुजरने के बाद निमाउड़, नेमावड़ या निमाड़ नाम सरल रूप से निमाड़ हो गया। भौगोलिक सीमाओं की बात करें तो निमाड़ के एक तरफ़ विन्ध्य पर्वत और दूसरी तरफ़ सतपुड़ा हैं, जबकि मध्य में नर्मदा नदी है।विश्व की प्राचीनतम नदियों में से एक बड़ी नदी नर्मदा का उद्भव और विकास निमाड़ में ही हुआ।)

छोटे-से गणपति महाराज थे। उन्होंने एक पुड़िया में चावल लिया, एक में शक्कर ली, सीम में दूध लिया और सबके यहां गये। बोले, "कोई मुझे खीर बना दो।"

किसी ने कहा, मेरा बच्चा रोता है; किसी ने कहा, मैं स्नान कर रहा हूं; किसी ने कहा, मैं दही बिलो रही हूं।

एक ने कहा, "तुम लौंदाबाई के घर चले जाओ। वे तुम्हें खीर बना देंगी।"

वे लौंदाबाई के घर गये। बोले, "बहन, मुझे खीर बना दो।"

उसने बड़े प्यार से कहा, "हां-हां, लाओ, मैं बनाये देती हूं।"

उसने कड़छी में दूध डाला, चावल डाले, शक्कर डाली और खीर बनाने लगी तो कड़छी भर गई। तपेले में डाली तो तपेला भर गया, चरवे में डाली तो चरवा भर गया। एक-एक कर सब बर्तन भर गये। वह बड़े सोच में पड़ी कि अब क्या करूं ?

गणपति महाराज ने कहा, "अगर तुम्हें किन्हीं को भोजन कराना हो तो उन्हें निमंत्रण दे आओ।"


वह खीर को ढककर निमंत्रण देने गई। लौटकर देखा तो पांचों पकवान बन गये थे।

उसने सबको पेट भरकर भोजन कराया। लोग आश्चर्यचकित रह गये। पूछा, "क्यों बहन, यह कैसे हुआ ?"

उसने कहा, "मैंने तो कुछ नहीं किया। सिर्फ अपने घर आये अतिथि को भगवान समझकर सेवा की, यह उसी का फल था। जो भी अपने द्वार आए अतिथि की सेवा करेगा, अपना काम छोड़कर उसका काम पहले करेगा, उस पर गणपति महाराज प्रसन्न होंगे।


**




rajnish manga 26-01-2014 10:07 PM

Re: लोककथा संसार
 
निमाड़ की लोककथा

बड़ा कौन?

भूख, प्यास, नींद और आशा चार बहनें थीं। एक बार उनमें लड़ाई हो गई। लड़ती-झगड़ती वे राजा के पास पहुंचीं।

एक ने कहा, "मैं बड़ी हूं।" दूसरी ने कहा, " मैं बड़ी हूं।" तीसरी ने कहा, "मैं बड़ी हूं।" चौथी ने कहा, "मैं बड़ी हूं।" सबसे पहले राजा ने भूख से पूछा, "क्यों बहन, तुम कैसे बड़ी हो ?"

भूख बोली, "मैं इसलिए बड़ी हूं, क्योंकि मेरे कारण ही घर में चूल्हे जलते हैं, पांचों पकवान बनते हैं और वे जब मुझे थाल सजाकर देते हैं, तब मैं खाती हूं, नहीं तो खाऊं ही नहीं।"


राजा ने अपने कर्मचारियों से कहा, "जाओ, राज्य भर में मुनादी करा दो कि कोई अपने घर में चूल्हे न जलाये, पांचों पकवान न बनाये, थाल न सजाये, भूख लगेगी तो भूख कहां जायगी ?"

सारा दिन बीता, आधी रात बीती। भूख को भूख लगी। उसने यहां खोजा, वहां खोजा; लेकिन खाने को कहीं नहीं मिला। लाचार होकर वह घर में पड़े बासी टुकड़े खाने लगी।


प्यास ने यह देखा, तो वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पास पहुंची। बोली, "राजा! राजा ! भूख हार गई। वह बासी टुकड़े खा रही है। देखिए, बड़ी तो मैं हूं।" राजा ने पूछा, तुम कैसे बड़ी हो ?

प्यास बोली, "मैं बड़ी हूं क्योंकि मेरे कारण ही लोग कुएं, तालाब बनवाते हैं, बढ़िया बर्तानों में भरकर पानी रखते हैं और वे जब मुझे गिलास भरकर देते हैं, तब मैं उसे पीती हूं, नहीं तो पीऊं ही नहीं।"


राजा ने अपने कर्मचारियों से कहा, "जाओ, राज्य में मुनादी करा दो कि कोई भीअपने घर में पानी भरकर नहीं रखे, किसी का गिलास भरकर पानी न दे। कुएं-तालाबों पर पहरे बैठा दो। प्यास को प्यास लगेगी तो जायगी कहां?"

सारा दिन बीता, आधी रात बीती। प्यास को प्यास लगी। वह यहां दौड़ी। वहां दौड़, लेकिन पानी की कहां एक बूंद न मिली। लाचार वह एक डबरे पर झुककर पानी पीने लगी।

>>>

rajnish manga 26-01-2014 10:10 PM

Re: लोककथा संसार
 
नींद ने देखा तो वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पास पहुंची और बोली, "राजा ! राजा ! प्यास हार गई। वह डबरे का पानी पी रही है। सच, बड़ी तो मैं हूं।"

राजा ने पूछा, "तुम कैसे बड़ी हो?"

नींद बोली, "मैं ऐसे बड़ी हूं कि लोग मेरे लिए पलंग बिछवाते हैं, उस पर बिस्तर डलवाते हैं और जब मुझे बिस्तर बिछाकर देते हैं तब मैं सोती हूं, नहीं तो सोऊं ही नहीं।


राजा ने अपने कर्मचारियों से कहा, "जाओ, राज्य भर में यह मुनादी करा दो कोई पलंग न बनवाये, उस पर गद्दे न डलवाये ओर न बिस्तर बिछा कर रखे। नींद को नींद आयेगी तो वह जायगी कहां ?"

सारा दिन बीता। आधी रात बीती। नींद को नींद आने लगी।उसने यहां ढूंढा, वहां ढूंढा, लेकिन बिस्तर कहीं नहीं मिला। लाचार वह ऊबड़-खाबड़ धरती पर सो गई।


आशा ने देखा तो वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पा पहुंची। बोली, "राजा ! राजा ! नींद हार गयी। वह ऊबड़-खाबड़ धरती पर सोई है। वास्तव में भूख, प्यास और नींद, इन तीनों में मैं बड़ी हूं।"

राजा नेपूछा, "तुम कैसे बड़ी हो ?"

आशा बोली, "मैं ऐसे बड़ी हूं कि लोग मेरी खातिर ही काम करते हैं। नौकरी-धन्धा, मेहनत और मजदूरी करते हैं। परेशानियां उठाते हैं। लेकिन आशाके दीप को बुझने नहीं देते।"


राजा ने अपने कर्मचारियों से कहा, "जाओ, राज्य में मुनादी करा दो। कोई काम न करे, नौकरी न करे। धंधा, मेहनत और मजदूरी न करे और आशा का दीप न जलाये। आशा को आश जागेगी तो वह जायेगी कहां?"

सारा दिन बीता। आधी रात बीती। आशा को आश जगी। वह यहां गयी, वहां गयी। लेकिन चारों ओर अंधेरा छाया हुआ था। सिर्फ एक कुम्हार टिमटिमाते दीपक के प्रकाश में काम कर रहा था। वह वहां जाकर टिक गयी।


और राजा ने देखा, उसका सोने का दिया, रुपये की बाती तथा कंचन का महल बन गया।

जैसे उसकी आशा पूरी हुई, वैसे सबकी हो।
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Dr.Shree Vijay 27-01-2014 06:25 PM

Re: लोककथा संसार
 

बड़ी महत्वपूर्ण ज्ञानवर्धक लघुकथाऐ :.........



rajnish manga 28-01-2014 02:33 PM

Re: लोककथा संसार
 
चीनी लोककथा
पश्चिमी झील और सफ़ेद नाग की कहानी

पूर्वी चीन के हानचाओ शहर में स्थित पश्चिमी झील अपने असाधारण प्राकृतिक सौंदर्य के कारण विश्वविख्यात है । 14वीं शताब्दी में इटली के मशहूर यात्री मार्कोपोलो जब हानचाओ आया, उस नेपश्चिमी झील की खूबसूरती देख कर उस की इन शब्दों में सराहना की कि ‘जब मैं यहां पहुंचा, तो लगा जैसे मैं स्वर्ग में आ गया हूँ।‘

पश्चिमी झील पूर्वी चीन के चेच्यांग प्रांत की राजधानी हानचाओ शहर का एक मोती मानी जाती है । वह तीनों तरफ पहाड़ों से घिरी है, झील के पानी स्वच्छ और दृश्य मनमोहक है । चीन के प्राचीन महाकवि पाई च्युई और सु तुंगपो के नाम से नामंकित दो तटबंध पाई बांध और सु बांध झील के स्वच्छ जल राशि के भीतर दो हरित फीतों की तरह लेटे मालूम पड़ते हैं । तटबंधों पर कतारों में हरेभरे पेड़ खड़े झील के सौंदर्य में चार चांद लगा देते हैं । सदियों से बड़ी संख्या में कवियों और चित्रकारों ने पश्चिमी झील के सुन्दर दृश्यों का कविता और चित्रों में वर्णन किया है ।

पश्चिमी झील के दस खूबसूरत दृष्य चीन में हर व्यक्ति की जुबान पर रहते है जिन में सु बांध का वासंती सौंदर्य , अनूठे प्रांगण में कमल का तालाब , झील की जल राशि पर शरद कालीन चांद की परछाई, टूटे पुल पर बर्फ की खूबसूरती, विलो पेड़ों के झुंड में कोयल की मदिर कूक, कमल-तालाब में सुनहरी मछलियों का दर्शन,त्रिपगोडों के बीच पानी पर चांदनी , लेफङ पगोडे पर सुर्यास्त का अनोखा दृश्य,
नानपिन मठ में संध्या वेला की घंटी तथा दूर पर्वतशिखर पर मेघों का मनोहर आच्छादन शामिल हैं।
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rajnish manga 28-01-2014 02:38 PM

Re: लोककथा संसार
 
पश्चिमी झील के बारे में अनेक मनमोहक लोक कथाएं प्रचलित हैं , जिन में से टूटे पुल पर बर्फ नामक सौंदर्य में चर्चिक टूटे पुल से जुड़ी एक लोक कथा आज तक चीनियों में असाधारण रूप से लोकप्रिय है । इस कथा में सफेद नाग से मानव सुन्दरी में परिवर्तित एक युवती और श्युस्यान नाम के युवक के सच्चे प्रेम का वर्णन किया गया है । दोनों की पहली मुलाकात इस टूटे पुल पर ही हुई थी ।

लोककथा का कथानक इस प्रकार हैः एक सफेद नाग ने हजार साल तक कड़ी तपस्या कर अंत में मानव का रूप धारण किया , वह एक सुन्दर व शीलवती युवती में परिणत हुई , एक नीले नाग ने भी पांच सौ साल तक तपस्या की तथा वह एक छोटी लड़की के रूप में बदल गई , नाम पड़ा श्योछिंग । पाईल्यांगची नाम की सफेद नाग वाली युवती और श्योछिंग दोनों सखी के रूप मं पश्चिमी झील की सैर पर आयीi जब दोनों टूटे पुल के पास पहुंची तो भीड़ के बीच एक सुधड़ बड़ा सुन्दर युवा दिखाई पड़ा । पाईल्यांगची को उस युवा से प्यार हो गया। श्योछिंग ने अलोकिक शक्ति से वर्षा बुलाई , वर्षा में श्युस्यान नाम का वह सुन्दर युवा छाता उठाए झील के किनारे पर आया ।

वर्षा के समय पाईल्यांगची और श्योछिंग के पास छाता नहीं था अतः वे बुरी तरह पानी से भीग गयीं, उन की मदद के लिए श्युस्यान ने अपनी छाता उन दोनों को थमा दिया, खुद वह पानी में भीगता रहा। ऐसे सच्चरित्र युवा से पाईल्यांगची बहुत प्रभावित हुइ और उसे दिल दे बैठी और श्युस्यान के दिल में भी उस खूबसूरत युवती पाईल्यांगची के लिये प्यार का अंकुर फूटा। श्योछिंग की मदद से दोनों की शादी हुई और उन्हों ने झील के किनारे दवा की एक दुकान खोली , श्युस्यान बीमारियों की चिकित्सा जानता था , दोनों पति-पत्नी निस्वार्थ रूप से मरीजों का इलाज करते थे और स्थानीय लोगों में वे बहुत लोकप्रिय हो गये।
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rajnish manga 28-01-2014 02:44 PM

Re: लोककथा संसार
 
लेकिन शहर के पास स्थित चिनशान मठ के धर्माचार्य फाहाई पाईल्यांगची को निशिचर समझता था । उस ने गुप्त रूप से श्य़ुस्यान को उस की पत्नी का रहस्य बताया कि वह सफेद नाग से बदली हुई थी । उस ने श्युस्यान को पाईल्यांगची का असली रूप देखने की एक तरकीब भी बताई। श्युस्यान को फाहाई की बातों से आशंका हुई । चीन का त्वानवू पर्व प्राचीन काल से ही खूब हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है। इस उत्सव पर लोग चावल से बनाई मदिरा पीते थे , वे मानते थे कि इससे किसी भी प्रकार के अमंगल से बचा जा सकता है। इस उत्सव को मनाने के दिन श्युस्यान ने फाहाई द्वारा बताए तरीके से अपनी पत्नी पाईल्यांगची को मदिरा पिलाई। इन दिनों पाईल्यांगची गर्भवर्ती थी, मदिरा उस के लिए हानिकर थी, लेकिन पति के बारंबार कहने पर उसे मदिरा का सेवन करना पड़ा। मदिरा पीने के बाद वह सफेद नाग के रूप में बदल गयी, जिस से भय खा कर श्योस्यान की मौत हो गयी। अपने पति की जान बचाने के लिए गर्भवती पाईल्यांगची हजारों मील दूर तीर्थ खुनलुन पर्वत में रामबाण औषधि गलोदर्म की चोरी करने गयी । गलोदर्म की चोरी के समय उस ने जान हथली पर रख कर वहां के रक्षकों से घमासान युद्ध लड़ा , पाईल्यांगची के सच्चे प्रेम भाव से प्रभावित हो कर रक्षकों ने उसे रामबाण औषधि भेंट की । पाईल्य़ांगची ने अपने पति की जान बचायी , श्युस्यान भी अपनी पत्नी के सच्चे प्यार के वशभूत हो गया , दोनों के बीच का प्रेम पहले से भी अधिक प्रगाढ़ हो गया ।
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rajnish manga 28-01-2014 02:47 PM

Re: लोककथा संसार
 
किन्तु धर्माचार्य फाहाई को यह सहन न हुआ कि पाईल्यांगची अभी तक जीवित है । उस ने श्युस्यान को धोखा दे कर चिनशान मठ में बंद कर दिया और उसे भिक्षु बनने पर मजबूर किया । इस पर पाईल्यांगची और श्योछिंग को अत्यन्त क्रोध आया , दोनों ने जल जगत के सिपाहियों को ले कर चिनशान मठ पर हमला बोला और श्युस्यान को बचाना चाहा । उन्हों ने बाढ़ बुला कर मठ पर धावा करने की कोशिश की , लेकिन धर्माचार्य फाहाई ने भी दिव्य शक्ति दिखा कर हमले का मुकाबला किया । क्योंकि पाईल्यांगची गर्भवती हुई थी और बच्चे का जन्म देने वाली थी , इसलिए वह फाहाई से हार गयी और श्योछिंग की सहायता से पीछे हट कर चली गई । वो दोनों फिर पश्चिमी झील के टूटे पुल के पास आयी , इसी वक्त मठ में नजरबंद हुए श्युश्यान मठ के बाहर चली युद्ध की गड़बड़ी से मौका पाकर भाग निकला , वह भी टूटे पुल के पास आ पहुंचा । संकट से बच कर पति-पत्नी दोनों को बड़ी ख़ुशी हुई। इसी बीच पाईल्यांगची ने अपने पुत्र का जन्म दिया । लेकिन बेरहम फाहाई ने पीछा करके पाईल्यांगची को पकड़ा और उसे पश्चिमी झील के किनारे पर खड़े लेफङ पगोडे के तले दबा दिया और यह शाप दिया कि जब तक पश्चिमी झील का पानी नहीं सूख जाता और लेफङ पगोड़ा नहीं गिरता , तब तक पाईल्यांगची बाहर निकल कर जग में नहीं लौट सकती ।

वर्षों की कड़ी तपस्या के बाद श्योछिंग को भी सिद्धि प्राप्त हुई , उस की शक्ति असाधारण बढ़ी , उस ने पश्चिमी झील लौट कर धर्माचार्य फाहाई को परास्त कर दिया , पश्चिमी झील का पानी सोख लिया और लेफङ पगोडा गिरा दिया एवं सफेद नाग वाली पाईल्यांगची को बचाया ।

यह लोककथा पश्चिमी झील के कारण सदियों से चीनियों में अमर रही और पश्चिमी झील का सौंदर्य इस सुन्दर कहानी के कारण और प्रसिद्ध हो गया ।

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rajnish manga 03-02-2014 09:14 PM

Re: लोककथा संसार
 
यहूदी लोक कथा
भिखारी का ईनाम

एक भिखारी को बाज़ार में चमड़े का एक बटुआ पड़ा मिला. उसने बटुए को खोलकर देखा. बटुए में सोने की सौ अशर्फियाँ थीं. तभी भिखारी ने एक सौदागर को चिल्लाते हुए सुना – “मेरा चमड़े का बटुआ खो गया है! जो कोई उसे खोजकर मुझे सौंप देगा, मैं उसे ईनाम दूंगा!

भिखारी बहुत ईमानदार आदमी था. उसने बटुआ सौदागर को सौंपकर कहा – “ये रहा आपका बटुआ. क्या आप ईनाम देंगे?”

ईनाम!” – सौदागर ने अपने सिक्के गिनते हुए हिकारत से कहा – “इस बटुए में तो दो सौ अशर्फियाँ थीं! तुमने आधी रकम चुरा ली और अब ईनाम मांगते हो! दफा हो जाओ वर्ना मैं सिपाहियों को बुला लूँगा!

इतनी ईमानदारी दिखाने के बाद भी व्यर्थ का दोषारोपण भिखारी से सहन नहीं हुआ. वह बोला – “मैंने कुछ नहीं चुराया है! मैं अदालत जाने के लिए तैयार हूँ!

अदालत में काजी ने इत्मीनान से दोनों की बात सुनी और कहा – “मुझे तुम दोनों पर यकीन है. मैं इंसाफ करूँगा. सौदागर, तुम कहते हो कि तुम्हारे बटुए में दो सौ अशर्फियाँ थीं. लेकिन भिखारी को मिले बटुए में सिर्फ सौ अशर्फियाँ ही हैं. इसका मतलब यह है कि यह बटुआ तुम्हारा नहीं है. चूंकि भिखारी को मिले बटुए का कोई दावेदार नहीं है इसलिए मैं आधी रकम शहर के खजाने में जमा करने और बाकी भिखारी को ईनाम में देने का हुक्म देता हूँ”.

बेईमान सौदागर हाथ मलता रह गया. अब वह चाहकर भी अपने बटुए को अपना नहीं कह सकता था क्योंकि ऐसा करने पर उसे कड़ी सजा हो जाती. इंसाफ-पसंद काजी की वज़ह से भिखारी को अपनी ईमानदारी का अच्छा ईनाम मिल गया.
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rajnish manga 03-02-2014 09:28 PM

Re: लोककथा संसार
 
उत्तर भारत की लोक कथा
चिड़िया का दाना

एक थी चिड़िया चूं-चूं। एक दिन उसे कहीं से दाल का एक दाना मिला। वह गईचक्की के पास और दाना दलने को कहा। कहते-कहते ही वह दाना चक्की में जागिरा। चिड़िया ने दाना मांगा तो चक्की बोली-
बढ़ई से चक्की चिरवा ले, अपना दाना वापस पा ले।


चिड़िया बढ़ई के पास पहुंची। उसने बढ़ई से कहा-बढ़ई, तुम खूंटा चीरों, मेरी दालवापस ला दो।बढ़ई के पास इतना समय कहां था कि वह छोटी-सी चिड़िया की बातसुनता? चिड़िया भागी राजा के पास। राजा घिरा बैठा था चापूलसों से।


उसने चूं-चूं को भगा दिया। वह भागी रानी के पास, रानी सोने की कंघी से बाल बनारही थी। उसने चूं-चूं से कहा। भूल जा अपना दाना, आ मैं खिलाऊं तुझकोमोती।


मोती भी भला खाए जाते हैं? चिड़िया ने सांप से कहा, ‘सांप-सांप, रानी को डस ले।


रानी, राजा को नहीं मनाती

राजा बढ़ई को नहीं डांटता
बढ़ई खूंटा नहीं चीरता
मेरी दाल का दाना नहीं मिलता।


सांप भी खा-पीकर मस्ती में पड़ा था। उसने सुनी-अनसुनी कर दी। चूं-चूं ने लाठीसे कहा-लाठी-लाठी तोड़ दे सांप की गर्दन।अरे! यह क्या! लाठी तो उसी परगिरने वाली थी।


चूं-चूं जान बचाकर भागी आग के पास। आग से बोली-जरा लाठी की ऐंठ निकाल दो। उसे जलाकर कोयला कर दो।आग न मानी। चूं-चूं कागुस्सा और भी बढ़ गया। उसने समुद्र से कहा-इतना पानी तेरे पास, जरा बुझातो इस आग को।समुद्र तो अपनी ही दुनिया में मस्त था। उसकी लहरों के शोरमें चूं-चूं की आवाज दबकर रह गई।

एक हाथी चूं-चूं का दोस्त थामोटूमल। वह भागी-भागी पहुंची उसके पास। मोटूमल ससुराल जाने की तैयारी मेंथा। उसने तो चूं-चूं की राम-राम का जवाब तक न दिया। तब चूं-चूं को अपनीसहेली चींटी रानी की याद आई।

कहते हैं कि मुसीबत के समय दोस्त हीकाम में आते हैं। चींटी रानी ने चूं-चूं को पानी पिलाया और अपनी सेना केसाथ चल पड़ी। मोटूमल इतनी चींटियों को देखकर डर गया और बोला-हमेंमारे-वारे न कोए, हम तो समुद्र सोखब लोए।’ (मुझे मत मारो, मैं अभी समुद्रको सुखाता हूं।)


इसी तरह समुद्र डरकर बोला-हमें सोखे-वोखे न कोए, हम तो आग बुझाएवे लोए।और देखते-ही-देखते सभी सीधे हो गए। आग ने लाठी कोधमकाया, लाठी सांप पर लपकी, सांप रानी को काटने दौड़ा, रानी ने राजा कोसमझाया, राजा ने बढ़ई को डांटा, बढ़ई आरी लेकर दौड़ा।


अब तो चक्कीके होश उड़ गए। छोटी-सी चूं-चूं ने अपनी हिम्मत के बल पर इतने लोगों कोझुका दिया। चक्की आरी देखकर चिल्लाई-हमें चीरे-वीरे न कोए, हम तो दानाउगलिने लोए।’ (मुझे मत चीरों, मैं अभी दाना उगल देती हूं।)

चूं-चूं चिड़िया ने अपना दाना लिया और फुर्र से उड़ गई।

प्रस्तुति : गजेन्द्र ओझा

rajnish manga 03-02-2014 09:45 PM

Re: लोककथा संसार
 
उत्तर भारत की लोक कथा
पाप की जड़

राजा चंद्रभान ने एक दिन अपने मंत्री शूरसेन से पूछा कि पाप की जड़ क्या होती है? शूरसेन इसका कोई संतोषजनक उत्तर नही दे पाया। राजा ने कहा- इस प्रश्न का सही उत्तरढूंढने के लिए मैं तुम्हें एक माह का समय देता हूं। यदि दी गई अवधि में तुम सहीउत्तर नहीं ढूंढ सके, तो मैं तुम्हें मंत्री पद से हटा दूंगा। राजा की बात सुनकरशूरसेन परेशान हो गया। वह गांव-गांव भटकने लगा।

एक दिन भटकते-भटकते वह जंगलजा पहुंचा। वहां उसकी नजर एक साधु पर पड़ी। उसने राजा का प्रश्न उसके सामने दोहरादिया। साधु ने कहा- मैं डाकू हूं, जो राजा के सिपाहियों के डर से यहां छुपा बैठाहूं। वैसे मैं तुम्हारे प्रश्नका उत्तर दे सकता हूं। लेकिन इसके लिए तुम्हे मेराएक काम करना होगा।


शूरसेन ने सोचा काम चाहे जो भी हो, कम से कम उत्तर तोमिल जाएगा। उसने डाकू के बात के लिए हामी भर दी। इस पर डाकू ने कहा- तो ठीक है, आजरात तुम्हें नगर सेठ की हत्या करनी होगी और साथ ही उसकी सारी संपत्ति चुरा कर मेरेपास लानी होगी।

यदि तुम यह काम करने में सफल हो जाते हो, तो मैं तुम्हेप्रश्न का उत्तर बता दूंगा। शूरसेन लालच में आ गया। उसे अपना पद जो बचाना था।शूरसेन इसके लिए तैयार हो गया और जाने लगा। उसे जाता देख डाकू ने कहा- एक बार फिरसोच लो। हत्या व चोरी करना पाप है। शूरसेन ने कहा- मैं किसी भी हाल में अपना पदबचाना चाहता हूं और इसके लिए मैं कोई भी पाप करने के लिए तैयार हूं।


यहसुनकर डाकू ने कहा- यही तुम्हारे सवाल का जवाब है। पाप की जड़ होती है- लोभ। पद केलोभ मे आकर ही तुम हत्या और चोरी जैसा पाप करने के लिए तैयार हो गए। इसी के वशीभूतहोकर व्यक्ति पाप कर्म करता है। शूरसेन ने डाकू का धन्यवाद किया और महल की ओर चलदिया।


दूसरे दिन राजदरबार में जब उसने राजा को अपना उत्तर बताया, तो राजाउसकी बात से प्रसन्न हो गया। उसने मंत्री को ढेर सारे स्वर्णाभूषण देकर सम्मानितकिया।


**



rajnish manga 03-02-2014 10:25 PM

Re: लोककथा संसार
 
उत्तर भारत की लोक कथा
सच्चा ईनाम

एक बार उसके राज्य में भयानक अकाल पड़ा। राजा ने आज्ञा दी कि अनाज के भंडार व गोदाम खोल दिए जाएं। उसकी आज्ञा का तुरंत पालन हुआ। सभी अनाज के भंडार व गोदाम प्रजा के लिए खोल दिए गए। कुछ दिनों में भंडार भी खाली हो गए। तब राजा ने महल की रसोई में पकने वाला भोजन गरीबों व जरूरतमंदों को बांटने का आदेश दिया। धीरे-धीरे महल का भंडार भी खाली हो गया। हालत यह हो गई कि एक दिन राज परिवार के पास भी खाने को कुछ नहीं बचा। उस दिन शाम को अचानक एक अजनबी राजा के सामने प्रकट हुआ। उसके हाथ में एक बड़ा सा कटोरा था, जिसमें दूध, गेहूँ और चीनी से बनी दलिया थी। उसने भूखे राजा को वह कटोरा दे दिया, पर राजा ने उसे चखा भी नहीं। पहले अपने सेवकों को बुलाया और कहा, तुम्हारे भूखे रहते मैं इसे नहीं खा सकता। सेवक भूखे तो थे, लेकिन राजा को भूखा देख कर उन्होंने अनमने भाव से ही दलिया खाई और उसमें से भी आधी राजा व उसके परिवार के लिए बचा दिया। राज परिवार जैसे ही वह बची दलिया खाने बैठा, दरवाजे पर एक भूखा अतिथि आ पहुँचा। राजा ने वह भोजन भी भूखे अतिथि को दे दिया। वह खा कर तृप्त होने के बाद उस व्यक्ति ने अपना वेश बदला। वह स्वयं भगवान थे, जिन्होंने राजा के धैर्य की परीक्षा लेने के लिए ऐसा रूप धारण किया था। उन्होंने राजा से कहा, मैं तुम्हारे आचरण से अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुम मुझ से जो भी वरदान चाहो, माँग लो। भगवान को सामने पा कर राजा उनके चरणों में गिर पड़ा और बोला, हे प्रभु! मैं इस लोक या परलोक का कोई ईनाम नहीं चाहता। मुझे ऐसा हृदय दें जो दूसरों की पीड़ा को महसूस करे और ऐसा मन व तन दें जो दूसरों की सेवा में लगा रहे। भगवान तथास्तु कह कर अंतर्ध्यान हो गए।
**

internetpremi 04-02-2014 09:00 PM

Re: लोककथा संसार
 
Ref: भिखारी का ईनाम

Good judgment.
It is obvious that the merchant was lying and the beggar was speaking the truth.
If the beggar were dishonest, why would he not keep all the 200 coins?
Why would he risk getting caught by announcing that he had found a purse with only 100 gold coins.
The merchant was not only dishonest but also stupid.
He deserved what he got
Thanks for sharing this simple but charming story.

internetpremi 04-02-2014 09:15 PM

Re: लोककथा संसार
 
Ref: उत्तर भारत की लोक कथा चिड़िया का दाना

Moral:
One should know at what level to pull strings!



internetpremi 04-02-2014 09:22 PM

Re: लोककथा संसार
 
Ref: पाप की जड़

It is true.
There is enough for everyone's need.
Never enough for one's greed.
Greed for more and more is the root of all sin.


internetpremi 04-02-2014 09:28 PM

Re: लोककथा संसार
 
Re: सच्चा ईनाम
Will any modern politician / ruler ever ask for such a boon from God?
In Bihar, a politician stole even the fodder for animals!
This is Kaliyug after all.



internetpremi 04-02-2014 10:02 PM

Re: लोककथा संसार
 
Ref: बदी का फल

Lying witnesses.
Dishonesty.
Cheating.
These existed thousands of years ago.
They exist today.
They will continue to exist a thousand years hence.


rajnish manga 05-02-2014 03:29 PM

Re: लोककथा संसार
 
Quote:

Originally Posted by internetpremi (Post 458897)
ref: उत्तर भारत की लोक कथा चिड़िया का दाना

moral:
One should know at what level to pull strings!



आपने इस कहानी का सार ठीक बताया है. यहाँ मुझे यह बताने में बड़ी प्रसन्नता हो रही है कि यह कहानी चूं चूं चिड़िया की यह कहानी मेरी माता जी मुझे मेरे बचपन में पंजाबी में सुनाया करती थीं.

Quote:

Originally Posted by internetpremi (Post 458903)
ref: पाप की जड़

it is true.
There is enough for everyone's need.
Never enough for one's greed.
Greed for more and more is the root of all sin.

आपकी प्रतिक्रिया हेतु आभार प्रगट करता हूँ.

Quote:

Originally Posted by internetpremi (Post 458907)
re: सच्चा ईनाम
will any modern politician / ruler ever ask for such a boon from god?
In bihar, a politician stole even the fodder for animals!
This is kaliyug after all.

आपने उचित कहा कि आज के नेता व सेवक तो अपने भाग्य विधाता को ही बेच सकते हैं. बहुत बहुत धन्यवाद, मित्र विश्वनाथ जी.
Quote:

Originally Posted by internetpremi (Post 459005)
ref: बदी का फल

lying witnesses.
Dishonesty.
Cheating.
These existed thousands of years ago.
They exist today.
They will continue to exist a thousand years hence.

सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद.


rajnish manga 05-02-2014 03:34 PM

Re: लोककथा संसार
 
झारखंड की लोककथा
लालच का फल

एक गांव में एक समृद्ध व्यक्ति रहता था. उसके पास धातु से बने हुए कई बरतन थे. गांव के लोग शादी आदि के अवसरों पर यह बरतन उससे मांग लिया करते थे. एक बार एक आदमी ने ये बरतन मांगे. वापस करते समय उसने कुछ छोटे बरतन बढा कर दिये.
समृद्ध व्यक्ति ने पूछा- बरतन कैसे बढ गये?


उसने कहा- मांग कर ले जाने वाले बरतनों में से कुछ गर्भ से थे. उनके छोटे बधे हुए हैं.

समृद्ध व्यक्ति को छोटे बरतनों से लोभ हो गया. उसने बरतन लौटाने वाले व्यक्ति को ऐसे देखा, जैसे उसे कहानी पर विश्वास हो गया हो. उसने सारे बरतन रख लिये.

कुछ दिन बाद वही व्यक्ति फिर से बरतन मांगने आया. समृद्ध व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए बरतन दे दिये. काफी समय तक बरतन वापस नहीं मिले.

इस पर बरतनों के मालिक ने इसका कारण पूछा.

बरतन मांग कर ले जाने वाले व्यक्ति ने जवाब दिया- मैं वह बरतन नहीं दे सकता, क्योंकि उनकी मृत्यु हो गयी है.
समृद्ध व्यक्ति ने पूछा- परंतु बरतन कैसे मर सकते हैं
?
उत्तर मिला- यदि बरतन बधे दे सकते हैं, तो वे मर भी सकते हैं.
अब उस समृद्ध व्यक्ति को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह हाथ मलता रह गया.


internetpremi 06-02-2014 03:05 AM

Re: लोककथा संसार
 
First prepare the trap.
Then entrap.

rajnish manga 06-02-2014 12:08 PM

Re: लोककथा संसार
 
Quote:

Originally Posted by internetpremi (Post 459559)
first prepare the trap.
Then entrap.

इस छोटे से प्रसंग से यही पता चलता है कि जो व्यक्ति छोटे प्रलोभन में आ सकता है वह बड़े प्रलोभन में भी फंसाया जा सकता है. आपके विचार कथा के सन्दर्भ में सटीक बैठते हैं. आपका हार्दिक धन्यवाद, विश्वनाथ जी.

rajnish manga 07-02-2014 03:35 PM

Re: लोककथा संसार
 
बुंदेलखंड की लोककथा
पंछी बोला चार पहर –
(आलेख: रामकान्त दीक्षित)


दोस्तों, पुराने समय की बात है। एक राजा था। वह बड़ा समझदार था और हर नई बात को जानने को इच्छुक रहता था। उसके महल के आंगनमें एक बकौली का पेड़ था। रात को रोज नियम से एक पक्षी उस पेड़ पर आकर बैठता और रात के चारों पहरों के लिए अलग-अलग चार तरह की बातें कहा करता।

पहले पहर में कहता :


किस मुख दूध पिलाऊं,
किस मुख दूध पिलाऊं



दूसरा पहर लगते बोलता :

ऐसा कहूं न दीख,
ऐसा कहूं न दीख !


जब तीसरा पहर आता तो कहने लगता :


अब हम करबू का,
अब हम करबू का
?”

जब चौथा पहर शुरू होता तो वह कहता :


सब बम्मन मर जायें,
सब बम्मन मर जायें !


राजा रोज रात को जागकर पक्षी के मुख से चारों पहरों की चार अलग-अलग बातें सुनता। सोचता, पक्षी क्या कहता? पर उसकी समझ में कुछ न आता। राजा की चिन्ता बढ़ती गई। जब वह उसका अर्थ निकालने में असफल रहा तो हारकर उसने अपने पुरोहित को बुलाया। उसे सब हाल सुनाया और उससे पक्षी के प्रश्नों का उत्तर पूछा। पुरोहित भी एक साथ उत्तर नहीं दे सका। उसने कुछ समय की मुहलत मांगी और चिंता में डूबा हुआ घर चला आया। उसके सिर में राजा की पूछी गई चारों बातें बराबर चक्कर काटती रहीं। वह बहुतेरा सोचता, पर उसे कोई जवाब न सूझता। अपने पति को हैरान देखकर ब्राह्रणी ने पूछा, “तुम इतने परेशान क्यों दीखते हो ? मुझे बताओ, बात क्या है
?”

>>>




rajnish manga 07-02-2014 03:36 PM

Re: लोककथा संसार
 
ब्राह्मण ने कहा, “क्या बताऊं ! एक बड़ी ही कठिन समस्या मेरे सामने आ खड़ी हुई है। राजा के महल का जो आंगन है, वहां रोज रात को एक पक्षी आता है और चारों पहरों मे नित्य नियम से चार आलग-अलग बातें कहता है। राजा पक्षी की उन बातों का मतलब नहीं समझा तो उसने मुझसे उनका मतलब पूछा। पर पक्षी की पहेलियां मेरी समझ में भी नहीं आतीं। राजा को जाकर क्या जवाब दूं, बस इसी उधेड़-बुन में हूं।

ब्राह्राणी बोली, “पक्षी कहता क्या है? जरा मुझे भी सुनाओ।


ब्राह्राणी ने चारों पहरों की चारों बातें कह सुनायीं। सुनकर ब्राह्राणी बोली। वाह, यह कौन कठिन बात है! इसका उत्तर तो मैं दे सकती हूं। चिंता मत करो। जाओ, राजा से जाकर कह दो कि पक्षी की बातों का मतलब मैं बताऊंगी।


ब्राह्राण राजा के महल में गया और बोला, “महाराज, आप जो पक्षी के प्रश्नों के उत्तर जानना चाहते हैं, उनको मेरी स्त्री बता सकती है।


पुरोहित की बात सुनकर राजा ने उसकी स्त्री को बुलाने के लिए पालकी भेजी। ब्राह्राणी आ गई। राजा-रानी ने उसे आदर से बिठाया। रात हुई तो पहले पहर पक्षी बोला:


किस मुख दूध पिलाऊं,

किस मुख दूध पिलाऊं
?”

राजा ने कहा, “पंडितानी, सुन रही हो, पक्षी क्या बोलता है
?”

वह बोली, “हां, महाराज ! सुन रहीं हूं। वह अधकट बात कहता है।


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rajnish manga 07-02-2014 03:39 PM

Re: लोककथा संसार
 
राजा ने पूछा, “अधकट बात कैसी ?”

पंडितानी ने उत्तर दिया, “राजन्, सुनो, पूरी बात इस प्रकार है-


लंका में रावण भयो बीस भुजा दश शीश,

माता ओ की जा कहे, किस मुख दूध पिलाऊं।


किस मुख दूध पिलाऊं ?”

लंका में रावण ने जन्म लिया है, उसकी बीस भुजाएं हैं और दश शीश हैं। उसकी माता कहती है कि उसे उसके कौन-से मुख से दूध पिलाऊं
?”

राज बोला, “बहुत ठीक ! बहुत ठीक ! तुमने सही अर्थ लगा लिया।


दूसरा पहर हुआ तो पक्षी कहने लगा :


ऐसो कहूं न दीख,

ऐसो कहूं न दीख।


राजा बोला, ‘पंडितानी, इसका क्या अर्थ है ?”

पडितानी नेसमझाया, “महाराज ! सुनो, पक्षी बोलता है :


घर जम्ब नव दीप

बिना चिंता को आदमी,

ऐसो कहूं न दीख
,

ऐसो कहूं न दीख !


चारों दिशा, सारी पृथ्वी, नवखण्ड, सभी छान डालो, पर बिना चिंता का आदमी नहीं मिलेगा। मनुष्य को कोई-न-कोई चिंता हर समय लगी ही रहती है। कहिये, महाराज! सच है या नहीं
?”

राजा बोला, “तुम ठीक कहती हो।




rajnish manga 07-02-2014 03:41 PM

Re: लोककथा संसार
 
तीसरा पहर लगा तो पक्षी ने रोज की तरह अपनी बात को दोहराया :

अब हम करबू का
,

अब हम करबू का
?”

ब्राह्मणी राजा से बोली, “महाराज, इसका मर्म भी मैं आपको बतला देती हूं। सुनिये:

पांच वर्ष की कन्या साठे दई ब्याह
,

बैठी करम बिसूरती, अब हम करबू का
,

अब हम करबू का।

पांच वर्ष की कन्या को साठ वर्ष के बूढ़े के गले बांध दो तो बेचारी अपना करम पीट कर यही कहेगी-अब हम करबू का, अब हम करबू का ?” सही है न, महाराज !


राजा बोला, “पंडितानी, तुम्हारी यह बात भी सही लगी।


चौथा पहर हुआ तो पक्षी ने चोंच खोली :

सब बम्मन मर जायें
,

सब बम्मन मर जायें !


तभी राजा ने ब्राह्मणी से कहा, “सुनो, पंडितानी, पक्षी जो कुछ कह रहा है, क्या वह उचित है
?”

ब्रहाणी मुस्कायी और कहने लगी, “महाराज ! मैंने पहले ही कहा है कि पक्षी अधकट बात कहता है। वह तो ऐसे सब ब्राह्मणों के मरने की बात कहता है :

विश्वा संगत जो करें सुरा मांस जो खायें
,

बिना सपरे भोजन करें, वै सब बम्मन मर जायें

वै सब बम्मन मर जायें।

जो ब्राह्मण वेश्या की संगति करते हैं, सुरा ओर मांस का सेवन करते हैं और बिना स्नान किये भोजन करते हैं, ऐसे सब ब्रह्राणों का मर जाना ही उचित है। जब बोलिये, पक्षी का कहना ठीक है या नहीं
?”

राजा ने कहा, “तुम्हारी चारों बातें बावन तोला, पाव रत्ती ठीक लगीं। तुम्हारी बुद्धि धन्य है !


राजा-रानी ने उसको बढ़िया कपड़े और गहने देकर मान-सम्मान से विदा किया। अब पुरोहित का सम्मान दरबार में पहले से भी अधिक बढ़ गया था.

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rajnish manga 07-02-2014 03:50 PM

Re: लोककथा संसार
 
वियतनाम की लोककथा
स्वर्ग का चाचा


बहुत पहले की बात है। धरती पर दो सालों तक बिलकुल वर्षा नहीं हुई। अकाल पड़ गया।

अपने तालाब को सूखता देख कर मेढ़क को चिंता हुई। उसने सोचा, अगर ऐसा रहा तो वह भूखा मर जाएगा। उसने सोचा कि इस अकाल के बारे स्वर्ग में जाकर वहां के राजा को बताया जाए।

साहस कर मेंढक अकेला ही स्वर्ग की ओर चल पड़ा। राह में उसे मधुमक्खियों का एक झुंड मिला। मक्खियों के पूछने पर उसने बताया कि भूखे मरने से अच्छा है कि कुछ किया जाए। मक्खियों का हाल भी अच्छा नहीं था। जब फूल ही नहीं रहे तो उन्हें शहद कहां से मिलता। वे भी मेंढक के साथ चल दीं।

आगे जाने पर उन्हें एक मुर्गा मिला। मुर्गा बहुत उदास था। जब फसल ही नहीं हुई, तो उसे दाने कहां से मिलते। उसे खाने को कीड़े भी नहीं मिल रहे थे। इसलिए मुर्गा भी उनके साथ चल दिया।

अभी वे सब थोड़ा ही आगे गए थे कि एक खूंखार शेर मिल गया। वह भी बहुत दुखी था। उसे खाने को जानवर नहीं मिल रहे थे। उनकी बातें सुन शेर भी उनके साथ हो लिया।

कई दिनों तक चलने के बाद वे स्वर्ग में पहुंचे। मेंढक ने अपने सभी साथियों को राजा के महल के बाहर ही रुकने को कहा। उसने कहा कि पहले वह भीतर जाकर देख आए कि राजा कहां है।

मेंढक उछलता हुआ महल के भीतर चला गया। कई कमरों में से होता हुआ वह राजा तक पहुंच ही गया। राजा अपने कमरे में बैठा परियों के साथ बातें कर रहा था। मेंढक को क्रोध आ गया। उसने लम्बी छलांग लगाई और उनके बीच पहुंच गया। परियां एकदम चुप हो गईं। राजा को एक छोटे से मेंढक की करतूत देख गुस्सा आ गया।

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rajnish manga 07-02-2014 03:51 PM

Re: लोककथा संसार
 
पागल जीव! तुमने हमारे बीच आने का साहस कैसे किया?’ राजा चिल्लाया। परंतु मेंढक बिलकुल नहीं डरा। उसे तो धरती पर भी भूख से मरना था। जब मौत साफ दिखाई दे तो हर कोई निडर हो जाता है।

राजा फिर चीखा। पहरेदार भागे आए ताकि मेंढक को पकड़ कर महल से बाहर निकाल दें। मगर इधर-उधर उछलता मेंढक उनकी पकड़ में नहीं आ रहा था। मेंढक ने मधुमक्खियों को आवाज दी। वे सब भी अंदर आ गईं। वे सब पहरेदारों के चेहरों पर डंक मारने लगीं। उनसे बचने के लिए सभी पहरेदार भाग गए।

राजा हैरान था। तब उसने तूफान के देवता को बुलाया। पर मुर्गे ने शोर मचाया और पंख फड़फड़ा कर उसे भी भगा दिया। तब राजा ने अपने कुत्तों को बुलाया। उनके लिए भूखा खूंखार शेर पहले से ही तैयार बैठा था।

अब राजा ने डर कर मेंढक की ओर देखा। मेंढक ने कहा, ‘महाराज! हम तो आपके पास प्रार्थना करने आए थे। धरती पर अकाल पड़ा हुआ है। हमें वर्षा चाहिए।

राजा ने उससे पीछा छुड़ाने के लिए कहा, ‘अच्छा चाचा! वर्षा को भेज देता हूं।

जब वे सब साथी धरती पर वापस आए तो वर्षा भी उनके साथ थी। इसलिए वियतनाम में मेंढक को स्वर्ग का चाचाकह कर पुकारा जाता है। लोगों को जब मेंढक की आवाज़ सुनाई देती है वे कहते हैं, ‘चाचा आ गया तो वर्षा भी आती होगी।
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