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dipu 16-10-2013 04:10 PM

First look of satya 2
 
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dipu 16-10-2013 04:11 PM

Re: First look of satya 2
 
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dipu 16-10-2013 04:11 PM

Re: First look of satya 2
 
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dipu 16-10-2013 04:11 PM

Re: First look of satya 2
 
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dipu 16-10-2013 04:12 PM

Re: First look of satya 2
 
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dipu 06-06-2014 07:08 AM

Movie Reviews
 
भारतीय दर्शक इस तरह के सिनेमा से अक्सर दूरी बनाकर रखते हैं, लेकिन सिटी लाइट्स शायद इस ट्रेंड को बदल कर रख दे।

हिंदी सिनेमा में बदलाव का दौर आ गया है। पैरलल सिनेमा को लेकर मिथक टूटते दिखें तो आश्चर्य नहीं, तो दूसरी ओर ऐसी फिल्मों को दर्शक भी मिल रहे हैं। कम से कम 'आर राजकुमार', 'रागिनी एमएमएस-2' और 'हीरोपंती' जैसी फिल्मों को देख कर ऊब चुके दर्शकों के लिए तो सुकून भरी खबरें इधर आने लगी हैं।

कमर्शियल सिनेमा को कड़ी टक्कर देने के लिए न केवल पैरलल सिनेमा मजबूत हो रहा है बल्कि निर्माता अब इन फिल्मों में पैसा लगाने से भी नहीं हिचकिचा रहे हैं। अब शायद ऐसी फिल्मों का दौर आने लगा है जो सिनेमा हॉल के अंदर तो दर्शकों को बांधे ही रखे, लेकिन जब दर्शक सिनेमा हॉल की सीट छोड़े तो कुछ सवाल भी अपने साथ लेकर जाए।

ऐसी फिल्में जो न केवल सिनेमा के व्यापक मायनों को जीवित करे बल्कि ऐसी भी जो कि महज टाइमपास तक ही ना सिमटी रहें। 'सिटी लाइट्स' ऐसी ही फिल्म है, जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगी।

कहानी: फिल्म की कहानी राजस्थान के एक ऐसे छोटे व्यापारी की कहानी है, जो बेहतर जिंदगी की तलाश में अपने परिवार के साथ मुंबई पहुंच जाता है। मुंबई जैसा कि वह सोचता है उससे कई गुना उलट है। एक ऐसा शहर जो कभी किसी की परवाह नहीं करता और रात भर जागता है। अगर आप 'सिटी लाइट्स' के ट्रेलर को देखकर दंग हैं तो फिर पिक्चर तो अभी बाकी है मेरे दोस्त।

यहां हम फिल्म के दो न भुलाए जा सकने वाले सीन के साथ फिल्म के बारे में बात करते हैं। फिल्म के मध्य में राखी (पत्रलेखा) नौकरी की तलाश में एक डांस बार मालिक के पास जाती है, जो राखी को ऊपर से नीचे तक घूरता है और उसे पूरा देखने के लिए पीछे घूमने के लिए कहता है। इसके बाद वह उसे खुश करने के लिए रेखा को डांस करने के लिए कहता है, जबकि वह चिल्ला रही होती है।

एक अन्य सीन में दीपक (राजकुमार) जो यह जानता है कि उसकी पत्नी एक डांस बार में काम कर रही है, गुस्से में घर लौटता है और अपनी पत्नी से डांस करने के लिए कहता है। वह इसके विरोध में दीपक को एक थप्पड़ जड़ती है, जिससे वह जमीन पर गिर जाता है।

हंसल ने फिल्म के हर सीन को बेहद संजीदगी और खूबसूरती से कैमरे में कैद कर लिया है। फिल्म ने मुंबई के प्रति उस धारणा को भी खारिज किया हे, जिसे आप अक्सर फिल्मों में देखते हैं। फिल्म आपका ध्यान खींचती है और आपको बांधे रखती है। फिल्म खत्म होने के बाद भी आपको कचोटती रहेगी, जो आपके अंदर सवाल पैदा करती है।

एक्टिंग: नेशनल अवार्ड विनिंग एक्टर राजकुमार राव दुबारा से अपनी परफॉरमेंस के जरिए अवार्ड की दौड़ में हैं। राजकुमार ने अपनी बेहतरीन अदाकारी से अपने किरदार में जान फूंक दी, जैसा कि उनसे उम्मीद की जा रही थी। इस फिल्म को देखकर लगता है मानों हंसल मेहता राजकुमार के लिए ही बने हों, जैसे करण जौहर शाहरुख खान या फिर डेविड धवन गोविंदा के लिए।

पत्रलेखा ने भी राजकुमार राव की ही तरह फिल्म में बेहतर अभिनय किया है। कहीं भी फिल्म में उनकी अदाकारी को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि यह उनकी पहली फिल्म है। फिल्म के कुछ दृष्यों में वह राजकुमार को ओवरशैड़ो भी कर रही हैं।

डायरेक्शन: फिल्म 'शाहिद' के बाद हंसल मेहता अपने चहेते राजकुमार राव के साथ ऐसी ही एक और फिल्म 'सिटी लाइट्स' लेकर आएं हैं जो अपको डराएगी भी तो जिंदगी की भयावह सच्चाई का आईना भी दिखा देगी। इसे महज एक फिल्म नहीं कहा जा सकता।

यह एक आर्ट पीस है, लेकिन यह भी सच है कि यह कमर्शियल सिनेमा नहीं है। फिल्म का डायरेक्शन नि:संदेह शानदार है। डायरेक्टर हंसल मेहता ने महानगरों की सच्चाई और आम आदमी के सपनों, संघर्षों और डर को जिस खूबी से कैमरे में कैद किया है, वह काबिले तारीफ है।

संगीत: इस तरह की जोनर की फिल्मों से अलग हटकर सिटी लाइट्स का संगीत भी प्रभावित करता है। हालांकि फिल्म में दो गाने अनावश्यक डाले गए हैं, लेकिन इसका बैकग्राउंड म्यूजिक कर्णप्रिय बन पड़ा है।

क्यों देख सकते हैं फिल्म?
यह एक बड़ा सवाल है कि आखिर फिल्म को क्यों देखा जाए। 'सिटी लाइट्स' एक कमर्शियल फिल्म नहीं है। यह ऐसी फिल्म नहीं है जिसे आप अपने परिवार के साथ महज मूड को सही करने के लिए सिनेमाघरों में जाएं।

rajnish manga 06-06-2014 10:08 AM

Re: Movie Review: सिटी लाइट्स
 
दीपू जी का धन्यवाद कि उन्होंने 'सिटी लाइट्स' जैसी नई फिल्म की एक संतुलित समीक्षा प्रस्तुत की है जिसमें उन्होंने फिल्म के सभी प्लस पॉइंट्स को दर्शकों के सामने रखा है ताकि सिनेमा हाल तक जाने के लिये उनके पास एक मकसद तो हो.

rafik 06-06-2014 10:52 AM

Re: Movie Review: सिटी लाइट्स
 
Quote:

Originally Posted by dipu (Post 508307)
भारतीय दर्शक इस तरह के सिनेमा से अक्सर दूरी बनाकर रखते हैं, लेकिन सिटी लाइट्स शायद इस ट्रेंड को बदल कर रख दे।

लेख को पड़कर फिल्म देखने की इच्छा हो गई !धन्यवाद भाई

dipu 07-06-2014 09:25 PM

Movie Review: फिल्मिस्तान
 
फिल्मिस्तान बॉलीवुड फिल्मों की दीवानगी को नए सिरे से दिखाती एक ऐसी फिल्म है, जिसमें पाकिस्तान भी साथ-साथ चलता दिखता है। फिल्म की कहानी ताजा और मजेदार है।

इधर कुछ समय से कमर्शियल फिल्मों के साथ ही एक-दो फिल्में लगातार लीक से हटकर सामने आई हैं, जिन्होंने अपनी अलग पटकथा से सिने प्रेमियों का ध्यान खींचा है। पिछले हफ्ते सिनेमाघरों में 'सिटी लाइट्स' ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी शुरुआत कर यह साबित किया कि कमर्शियल फिल्मों के इतर भी सिने प्रेमियों की अच्छी-खासी जमात है। इस हफ्ते भी बॉलीवुड की मसाला फिल्मों से हटकर एक ताजा कहानी 'फिल्मिस्तान' के रूप में सिनेमाघरों में अपने अलग सब्जेक्ट के चलते चर्चाओं में है।

युवा निर्देशक नितिन कक्कड़ की इस फिल्म को थिएटर तक पहुंचने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ी है। करीब दो वर्ष पूर्व इस फिल्म को नेशनल अवॉर्ड तो मिला, लेकिन फिल्म को कोई खरीदार नहीं मिल पाया। अब जाकर यह फिल्म सिनेमाघरों तक पहुंच सकी है।

हालांकि, फिल्म की डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी ने अक्षय कुमार स्टारर मेगा बजट फिल्म 'हॉलिडे' के सामने रिलीज का जोखिम उठाया। फिल्म को देख कर लगता है कि 100 करोड़ रुपए क्लब फिल्मों के इस दौर में भी लीक से हटकर फिल्म बनाने का जोखिम लेने वाले जुनूनी फिल्मकारों की कोई कमी नहीं है।

कहानी : सनी अरोड़ा (शारीब हाशमी) बॉलीवुड की फिल्मों का दीवाना है और वह खुद को बॉलीवुड के किसी हीरो से कम नहीं आंकता। सनी के बोलने का अंदाज, उसके हंसने, रोने और चलने का अंदाज पूरा फिल्मी है। सिल्वर स्क्रीन पर चमकने का उसका यही जुनून उसे एक दिन मायानगरी मुंबई खींच लाता है। यहां आने पर उसे फिल्म इंडस्ट्री के कायदा और उसकी रफ्तार के बारे में समझ आता है।

सनी को यहां आकर हीरो बनने का मौका तो नहीं मिल पाता, लेकिन एक विदेशी प्रोडक्शन कंपनी में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम मिल जाता है। यहीं से सनी का सफर शुरू होता है। उसे पता चलता है कि खाली वह कहने भर को असिस्टेंट डायरेक्टर है, जबकि उसे स्पॉट ब्वॉय तक का काम करना होता है। सनी फिल्म की यूनिट के साथ राजस्थान बॉर्डर से सटे एक छोटे से गांव में शूटिंग के लिए आता है।

पाकिस्तान बॉर्डर से सटे इस एरिया में फिल्म की शूटिंग के दौरान विदेशी प्रोडक्शन कंपनी के लोगों को बंदी बनाने के लिए पाकिस्तानी आंतकवादी हमला कर देते हैं, और रात के अंधेरे में सनी को उसके कैमरे सहित उठाकर अपने साथ ले जाते है। पाकिस्तानी बॉर्डर से सटे एक छोटे से गांव में सनी को आफताब (इनामउल हक) के घर में बंदी बनाकर रखा जाता है।

आफताब हिंदी फिल्मों के साथ-साथ पोर्न फिल्मों की पाइरेटेड सीडी बेचने के बिजनेस में लिप्त है। आफताब का भी सपना है कि वह फिल्म बनाए। सनी को बंधक बनाने वाले आतंकवादी अब उसके अपहरण का विडियो बनाकर भारत सरकार से अपनी मांगें मनवाना चाहते है। आगे सनी का क्या होता है? क्या सनी भारत पहुंच पाता है? क्या आफताब अपनी फिल्म बनाने में कामयाब हो पाता है और आतंकवादी जो विदेशी फिल्मकारों को अपने साथ ले आए हैं उनका क्या होता है? यही फिल्म की कहानी है।

एक्टिंग : सनी अरोडा के किरदार में शारिफ हाशमी ने अपनी दमदार अदाकारी से जान फूंक दी है। कहीं-कहीं शारिफ के ऐसे सीन्स भी फिल्म में ठूंसे हुए लगते हैं, जिनकी बहुत ज्यादा जरूरत महसूस नहीं होती। बॉलीवुड फिल्मों की पायरेटेड फिल्में बेचकर अपनी फैमिली का पेट पालने वाले आफताब के रोल में इनामउल हक की अदाकारी भी फिल्म में देखने लायक है।

आफताब बेचता तो इंडियन फिल्मों की पायरेटेड सीडी है, लेकिन उसका सपना पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री लॉलीवुड को बॉलीवुड से आगे देखने का है। उसके अंदर गलत धंधों के बावजूद एक कलाकार को निर्देशक ने बखूबी पर्दे पर दिखाया है। आतंकवादी सरगना के किरदार में कुमुद मिश्रा भी अपनी अदाकारी से ध्यान खींचते हैं।

डायरेक्शन : फिल्म के निर्देशक और लेखक नितिन कक्कड़ की तारीफ पहले तो इसलिए करनी चाहिए कि उन्होंने इस तरह के सब्जेक्ट पर फिल्म बनाने का जोखिम उठाया है। अपने काम में नितिन ने पूरी ईमानदारी दिखाई है जो पर्दे पर नजर आती है। नितिन ने कहीं ना कहीं भारत-पाक के रिश्तों पर बनी अपनी इस फिल्म को अन्य हिंदी मसाला फिल्मों से दूर रखा और एक बेहद ताजी कहानी में व्यंग्यों के जरिए अपनी बात कही। कुछ एक सीन्स को छोड़ दें तो नितिन ने बेहद खूबसूरती से फिल्म के दृश्यों को कैमरे में कैद किया है।

क्यों देखें : नई कहानी देखने से गुरेज ना हो तो यह फिल्म जरूर देखें। लीक से हटकर अच्छी फिल्मों के शौकीन सिने प्रेमियों के लिए यह फिल्म संजोने लायक है।

dipu 07-06-2014 09:26 PM

Re: Movie Review: फिल्मिस्तान
 
http://i4.dainikbhaskar.com/thumbnai.../06/1624_1.jpg

dipu 21-07-2014 05:20 PM

Movie Review: पिज्जा 3D
 
बहुत सारी तकनीकी कमियों के बावजूद 'पिज्जा 3d' आपको मायूस नहीं करेगी। यह आपको डराएगी भी और एंटरटेन भी करेगी।

बॉलीवुड में कई हॉरर फिल्में आती हैं, जो डराने के नाम पर अपना मूल आधार ही छोड़कर खाली खून और घटिया आवााजों से हॉरर पैदा करने की कोशिशें करती हैं। इन फिल्मों में न तो तो ढंग की कहानी होती है और न दर्शक खुद को इनसे ठीक ढंग से जोड़ ही पाते हैं। खुशकिस्मती से 'पिज्जा 3d' ऐसे सारे मिथक तोड़ती है जो अब तक हमने बॉलीवुड की हॉरर फिल्मों को देखकर अपने दिमाग में बिठा लिए थे। 'पिज्जा 3d' हॉरर तो है ही, इसका मूल आधार है फिल्म की मजबूत कहानी। इस फिल्म को देखकर एकता कपूर और भट्ट कैंप के हॉरर ड्रामा रचने वाले फिल्मकारों को जरूर सबक लेना चाहिए कि फालतू की ओझा-बाबा गिरी से इतर भी लोगों को एक साफ-सुथरी हॉरर फिल्म परोसी जा सकती है, जो वास्तव में 'पिज्जा 3d' की तरह 'डिलीशियस' हो..!

कहानी: फिल्म न्यूली मैरिड कपल कुणाल (अक्षय ओबेराय) और निक्की (पार्वती ओमनाकुट्टन) के इर्द-गिर्द घूमती है। कुणाल एक कंपनी में पिज्जा डिलिवरी ब्वॉय का काम करता है, जबकि निक्की एक स्ट्रगलिंग राइटर है। निक्की अक्सर अपने कंटेट में भुतहा किस्से-कहानियों को तवज्जो देती है। दोनों की जिंदगी छोटे-छोटे संघर्षों के बावजूद मजे में कट रही है। एक दिन पता लगता है कि निक्की गर्भवती है, लेकिन कुणाल का मानना है कि उनके हालात ऐसे नहीं हैं कि घर में एक और सदस्य का खर्चा वह दोनों उठा सकें। दोनों में इसी बात पर विवाद होता है, मगर जल्द ही दोनों इसे आपसी सहमति से सुलझा लेते हैं। दोनों अपने-अपने कामों में मशगूल हो जाते हैं कि तभी एक दिन कुणाल ऐसे बंगले में पिज्जा डिलीवर करने पहुंचता है, जहां अंदर जाते ही दरवाजे बंद हो जाते हैं। कुणाल घर से निकलने की कोशिश करता है, लेकिन वह नहीं निकल पाता। यही फिल्म का टर्निंग प्वाइंट है। इसके बाद कुणाल के साथ एक के बाद एक रोमांचित करने वाली घटनाएं घटने लगती हैं। सब कुछ कुणाल के लिए किसी पहेली से कम नहीं होता। इसके बाद की कहानी कुणाल के बंगले से बाहर निकलने और पहेलियों से पर्दा उठने की है। क्या कुणाल बंगले से बाहर निकलने में कामयाब हो पाता है? क्या बंगले में भूत हैं? भूत नहीं तो फिर दरवाजे कैसे खुद ब खुद बंद होने लगे? निक्की कुणाल की गैरमौजूदगी में क्या करेगी? इन्हीं तमाम सवालों के जवाब देते हुए फिल्म अपने अंत तक पहुंचती है।

एक्टिंग: कुणाल की भूमिका में अक्षय का काम सराहने योग्य है। अक्षय के हाव-भाव खौफ तो पैदा करते ही हैं आपको रोमांचित भी करेंगे। पार्वती ओमनाकुट्टन के हिस्से जितने भी सीन आए वह अपनी भूमिका में जंची हैं। फिल्म के सह-कलाकार भी इसकी जान हैं, जिनके बारे में चर्चा करने से बेहतर है कि उन्हें फिल्म में अदाकारी करते हुए देखा जाए। ओवरऑल इस फिल्म में सभी किरदारों ने शानदार अभिनय किया है।

डायरेक्शन: अक्षय अक्कानी का निर्देशन कुछ कमियों को यदि नजरअंदाज कर दिया जाए तो बढिय़ा है। उन्होंने घटिया साउंड और डरावने चेहरों को बस फ्रेम में इधर-उधर फेंकने से हॉरर पैदा करने के बजाय परिस्थितियों से खौफ पैदा करने की कोशिश की है, जो रोमांचित करता है। फिल्म की मजबूत पटकथा अक्षय को स्वतंत्रता देती है, जिससे उनका निर्देशन स्क्रीन पर साफ निखर कर सामने आता है।

क्यों देखें: 'पिज्जा 3d' में तकनीकी रूप से मसलन एडिटिंग, एनिमेशन और कुछ अस्पष्ट सीन्स कमियों का अहसास जरूर करवाते हैं, लेकिन बावजूद इसके यह बॉलीवुड में बनने वाली हॉरर फिल्मों से बहुत उम्दा और शानदार है। इसमें कहानी, अदाकारी, मनोरंजन और रोमांच सब कुछ है। आप इस हफ्ते यह फिल्म देखेंगे, तो आपके पैसे वेस्ट तो नहीं जाएंगे। हां एक बात जरूर याद रखियेगा कि इसे 2d फॉर्मेट से 3d में बदला गया है, इसलिए 2d में ही देखें तो ज्यादा बेहतर होगा।

dipu 21-07-2014 05:21 PM

Movie Preview: Kick
 
सलमान खान 'किक' में एकदम अलग अंदाज में नजर आएंगे।

साल 2014 में सलमान खान की मोस्ट अवेटेड फिल्म ‘किक’ रिलीज हो रही है। इस फिल्म में सलमान के अपोजिट जैकलिन फर्नांडीज हैं। अपनी पिछली कुछ फिल्मों की तरह इस फिल्म में भी सलमान फुलऑन एक्शन में नजर आएंगे।

सलमान खान की इस फिल्म को साजिद नाडियाडवाला डायरेक्ट और प्रोड्यूस कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि सलमान खान इस फिल्म में एकदम अलग अंदाज में नजर आएंगे। उनका हेयर स्टाइल भी उनकी पिछली फिल्मों से हटके होगा। इस फिल्म से जुड़े करीबी सूत्रों की मानें, तो ‘किक’ में सलमान 30-40 मिनट तक फ्रेंच कट दाढ़ी में भी दिखेंगे।

सलमान-जैकलिन के अलावा ‘किक’ में नवाजुद्दीन सिद्दीकी, मिथुन चक्रवर्ती, रणदीप हुड्डा और अर्चना पूरन सिंह भी हैं। सिनेमाघरों में सलमान की ये एक्शन फिल्म 25 जुलाई को रिलीज होगी। वैसे, इस फिल्म के साथ ये देखना भी दिलचस्प होगा कि सलमान अपनी इस फिल्म से शाहरुख और आमिर को पीछे छोड़ते हैं या नहीं।

parvesh14 30-07-2014 04:36 PM

Re: First look of satya 2
 
Very good movie in deed. You can even watch it online..

dipu 21-12-2014 10:18 AM

Movie Review: 'पीके'
 
Plot: 2014 की शुरुआत से ही हम बॉलीवुड की बेसिर पैर की मसाला फिल्में देखकर ऊब गए हैं।

सौ-करोड़, दो सौ करोड़ और न जानें कितने करोड़ों के पीछे बॉलीवुड भागता रहा मगर आमिर खान और राजकुमार हिरानी चुपचाप 'पीके' बनाने में लगे रहे। दोनों ने समय-समय पर फिल्म को लेकर उत्सुकता पैदा करनी शुरू की। इससे हर दर्शक के मन में यह उम्मीद जाग गई कि कहीं कहीं न साल का अंत एक अच्छी फिल्म देखकर होगा। हिरानी और आमिर इस भरोसे पर खरे उतरे और सोशल मैसेज और एंटरटेनमेंट से भरपूर फिल्म बनाई। फिल्म समाज में फैले धर्म के ठेकेदारों पर प्रहार करती है।

फिल्म में पीके बताता है कि कैसे समाज में दो तरह के भगवान हो चुके हैं। एक जिसने इंसान को बनाया उसे कोई नहीं पूछता और दूसरे वह भगवान हैं जो धर्म के ठेकेदारों, ढोंगी, पाखंडी बाबाओं ने बनाए हैं। उन्हें जाति-धर्म के अनुसार बांट दिया है और उनके नाम पर लोगों को डराकर बेवक़ूफ़ बनाया जा रहा है।

कैसी है कहानी:
फिल्म देखने से पहले हर किसी के मन में यही सवाल था कि पीके क्या है? दरअसल पीके एक एलियन है जो दूसरे गृह से धरती पर जीवन को लेकर रिसर्च करने आता है। धरती पर उतरते ही उसके स्पेसशिप का वो यंत्र एक चोर चुराकर भाग जाता है जिससे वह अपने गृह पर वापस जाने का सिग्नल स्पेसशिप को भेज सकता है। अब पीके तब तक वापस नहीं लौट सकता जब तक उसे वो यंत्र नहीं मिल जाता। बस इसी यंत्र की खोज में वह दिल्ली पहुंच जाता है। उसका कोई नाम नहीं है मगर उसके अटपटे सवालों से लोग अपना सिर पकड़ लेते हैं और उससे पूछते हैं: पीके है क्या (यहीं से उसे नाम मिलता है पीके)। एक दिन उससे मिलती है जगत जननी जो कि एक टीवी रिपोर्टर है और उसे एक धांसू टीआरपी स्टोरी की तलाश है। वह पीके की कहानी सुनती है मगर उसे लगता है कि वह फेंक रहा है। एक दिन उसे यकीन होता है कि पीके सच्चा है और वह उससे वादा करती है कि वह उसे उसका वह यंत्र ढूंढ कर ही दम लेगी। दूसरी तरफ फिल्म में पाखंडी बाबा तपस्वी (सौरभ शुक्ला) और टीवी चैनल के हेड बोमन ईरानी भी हैं।कैसे पीके से इन सबकी कड़ियां जुड़ती हैं और फिर कैसे पीके पाखंडी बाबा (सौरभ शुक्ला) के जरिए समाज में फैले धर्म के नाम पर पाखंड से तर्कों के बल पर पर्दा उठाता है, यह देखने लायक है।

एक्टिंग: 'पीके' के रोल में आमिर एकदम यूनिक और ब्रांड न्यू अवतार में हैं। उन्हें ऐसे रूप में देखने की कल्पना शायद किसी ने नहीं की होगी। सतरंगी कपड़े, मुंह में पान, होठों पर लिपस्टिक और सबसे मजेदार उनकी भोजपुरी बोली। आमिर पीके के किरदार में एकदम उतर गए हैं। यही वजह है कि आप किसी भी एज ग्रुप के हों पीके से आसानी से कनेक्ट हो जाते हैं और उसकी मासूमियत में खोने से खुद को रोक नहीं पाते। वहीं, अनुष्का ने भी जग्गू के रोल को बखूबी प्ले किया है। बेशक वह लुक्स के मामले में अपनी पिछली फिल्मों से बिल्कुल अलग नजर आई हैं लेकिन अपने रोल के हिसाब से उन्होंने बढ़िया एक्टिंग की है। सौरभ शुक्ला, सुशांत सिंह राजपूत और बोमन ईरानी और संजय दत्त का अभिनय ठीक-ठाक है।

निर्देशन: राजकुमार हिरानी ने फिल्म बनाने में चार साल क्यों लगाए, यह आप फिल्म देखकर समझ सकते हैं। उन्होंने फिल्म की हर छोटी से छोटी चीज़ पर काफी रिसर्च की है। कहानी पर उनकी पकड इतनी मजबूत है कि आप फिल्म से अपना ध्यान नहीं हटा पाते। फिल्म की कहानी थोड़ी सी 'ओह माय गॉड' से मेल खाती है मगर कॉन्सेप्ट और ट्रीटमेंट बिल्कुल राजकुमार हिरानी की स्टाइल में है।

क्यों देखें: आमिर की जबरदस्त एक्टिंग, बढ़िया स्क्रिप्ट, राजकुमार हिरानी का डायरेक्शन और फैमिली एंटरटेनिंग है। इसके अलावा इंट्रेस्टिंग तरीके से सेंसिटिव इश्यू को उठाया गया गया है जिससे आपको यह नहीं लगता कि फिल्म में बेवजह का ज्ञान दिया गया है। इन्हीं कुछ वजह से फिल्म को जरूर देखना चाहिए।

Preetikarmakar 24-12-2014 07:46 AM

Re: Movie Review: 'पीके'
 
I Have watched it really nice dialogues, Movie not that good

DevRaj80 11-01-2015 09:19 PM

Re: Movie Review: 'पीके'
 
कुछ ज्यादा ही बकवास कर गये दिर्देशक और आमिर खान जी

Deep_ 11-01-2015 09:24 PM

Re: Movie Review: 'पीके'
 
मै दरअसल आज यह फिल्म देख पाया हूं। ईसका फायदा यह हुआ की मिडीया और एडवर्टाईझींग की मदद से जो प्रभाव उत्पन्न किया गया था वह कम हो गया था, और में उससे बाहर आ चुका था। ईसलिए फिल्म को साफ-साफ देख पाया।

मै ईस फिल्म को पांच में से चार अंक देना चाहूंगा।

क्युं की इसकी कहानी ओ माय गोड से मीलती झुलती है, ईसलिए मेरे लिए रोचकता थोडी कम हो गई। सुना है की असल में पीके की कहानी से ही ओ माय गोड का निर्माण हुआ है, ईसलिए डाईरेक्टर को सारे सीन (फिल्म ओ माय गोड देखते देखते) लिखने पडे।

फिल्म का क्लाईमेक्स ढीला ढाला सा लगा, जो खास कर के हीरानी जी की बाकी मुवीज़ जैसा दिलचस्प नही था।
बोमन ईरानी, सौरभ शुक्ला जैसे दिग्ग्ज एक्टर के लिए रोल थोडे से छोटे थे। हीरोईन बकवास लगी। एक गाने को छोड कर सारे गाने भी बेकार थे।

आमीरखान, हीरानी जी की महेनत साफ छलकती है। फिल्म के काम प्रति उनका समर्पण लाजवाब है। फिल्म को यही सफल बना गया।

ईनकी जुगलबंदी वाली ओर फिल्मो का ईन्तजार रहेगा!

(यह फिल्म समीक्षा नहीं मेरी निजी राय है । )

rajnish manga 12-01-2015 07:35 AM

Re: Movie Review: 'पीके'
 
दीपू जी को इस फिल्म की समीक्षा प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. पुराने बंधे-बंधाये फार्मूलों से बाहर निकल कर कुछ साहसी निर्माता बॉलीवुड में अपनी फिल्मों के द्वारा मनोरंजन की परिभाषा बदल रहे हैं (पिछले वर्ष प्रदर्शित कुछ कम बजट की अच्छी फ़िल्में भी इसका उदाहरण हैं). हिंदी फिल्म 'पी के' इसी कड़ी की नवीनतम फिल्म है. इसमें ठुमकों तथा नाच गानों से परहेज़ रखा गया है. 'थ्री इडियट्स' के बाद हिरानी-आमिर की यह फिल्म भी ताजा हवा के झोंके की तरह लगती है. फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर मिली सफलता इशारा करती है कि भारत के फिल्म दर्शक फार्मूलों से हट कर बनी साफ़ सुथरी फ़िल्में देखने के लिए भी टिकटें खरीद सकते हैं और सिनेमा संस्कृति को आगे बढ़ा सकते हैं. फिल्म से जुड़े सभी लोग बधाई के पात्र हैं.

harry26 12-01-2015 09:34 AM

Re: Movie Review: 'पीके'
 
PK is very interesting Movie and Amir khan play very good role in this movie.

PankajSaxena 12-01-2015 11:03 AM

Re: Movie Review: 'पीके'
 
Pk theme was same like OMG. Story was now that much good although Aamir khan has played very good funny role.

Biscootshowtym 12-01-2015 03:56 PM

Re: Movie Review: 'पीके'
 
I like the story of Pk movie

Rehana 14-01-2015 11:26 AM

Re: Movie Review: 'पीके'
 
Hi 'Pk' is really a awesome movie of Aamir Khan. Actually throgh the movie 'Pk' Aamir Khan wants to give the message for huminity to us. If you are going for temple, mosque or Church. If you are paying your money for 'Dhoop', 'Agrbti, Candle or Shawl for the different religious place. God never give you blessings but you give the food for hunger people, i.e. the help for a poor man.

Teach Guru 14-01-2015 11:35 AM

Re: Movie Review: 'पीके'
 
Quote:

Originally Posted by devraj80 (Post 546148)
कुछ ज्यादा ही बकवास कर गये दिर्देशक और आमिर खान जी

सही बात ....

saru4d 14-01-2015 11:56 AM

Re: Movie Review: 'पीके'
 
Quote:

Originally Posted by DevRaj80 (Post 546148)
कुछ ज्यादा ही बकवास कर गये दिर्देशक और आमिर खान जी

Quote:

Originally Posted by Teach Guru (Post 546477)
सही बात ....

i feel you are right .
can u tell why you feel so !!!

Biscootshowtym 15-01-2015 05:00 PM

Re: First look of satya 2
 
Quote:

Originally Posted by dipu (Post 392909)

Good Job.

PriyaAachari 17-01-2015 04:45 PM

Re: Movie Reviews
 
Satya 2 was such a fantastic Gangster Movie. I love the Movie. Thank you for the great post.


https://encrypted-tbn1.gstatic.com/i...yV8360Kn5z92pw

biscootbajao. 22-01-2015 04:17 PM

Muskurane - mp3 song
 
:egyptian:

biscootbajao. 29-01-2015 11:57 AM

Re: First look of satya 2
 
nice pics of "Anaika Soti"

dipu 23-02-2015 08:37 AM

Re: Movie Reviews
 
बदले की कहानी है 'बदलापुर'


सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है डायरेक्टर श्रीराम राघवन की फिल्म 'बदलापुर'। फिल्म के नाम ने दर्शकों को पहले से ही सस्पेंस में रखा हुआ था कि आखिर इसकी कहानी क्या होगी? हालांकि, नाम में ही पूरी कहानी छुपी हुई है। जी हां, यदि बदलापुर से 'पुर' हटा दिया जाए तो सिर्फ रह जाता है 'बदला', यानी फिल्म एक इंसान के बदले की कहानी है। वैसे, हिंदी सिनेमा में बदले की कहानी पर फ़िल्में अक्सर बनी हैं। कभी हीरो को मां-बाप के कत्ल का बदला लेते देखा गया तो कभी बहन से हुए बलात्कार का। 'बदलापुर' में भी डायरेक्टर श्रीराम राघवन ने ऐसा ही कुछ दर्शकों के सामने परोसा है, लेकिन एक नए कलेवर में।

कैसी है फिल्म की कहानी
'बदलापुर' में बदला है ऐड एजेंसी में काम करने वाले एक आम आदमी रघु (वरुण धवन) का। कहानी की शुरुआत में ही रघु की बीवी मिशा (यामी गौतम) और बेटा रॉबिन का बैंक में डकैती के दौरान कत्ल कर दिया जाता है। दरअसल, दो चोर लायक (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) और हरमन (विनय पाठक) घूमने निकली मिशा की गोली मारकर हत्या कर देते हैं। वहीं, मिशा और रघु के बेटे रॉबिन की मौत भी इसी दौरान कार से गिरने के कारण हो जाती है। घटना के बाद पुलिस लायक को गिरफ्तार कर जेल में डाल देती है और उसका दूसरा साथी फरार हो जाता है। इधर, रघु अपनी पत्नी और बेटे की मौत का बदला लेने के लिए नौकरी छोड़ बदलापुर में रहने लगता है और लायक की रिहाई का इंतजार करता है। 15 साल लंबे इंतजार के बाद आखिर रघु अपना बदला लेने में कामयाब हो जाता है। कहानी में झिमली (हुमा कुरैशी) और शोभा (दिव्या दत्ता) भी अहम किरदार हैं। उनका क्या रोल है और वे रघु के जीवन में क्या बदलाव लाती हैं, यह सब जानने के लिए आपको 'बदलापुर' देखनी होगी।

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श्रीराम राघवन का डायरेक्शन
श्रीराम राघवन के निर्देशन में बनी यह चौथी फिल्म है। फिल्म के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की है, जो साफ दिखाई देती है। हालांकि, सेकंड हाफ में कुछ खामियां हैं और फिल्म की रफ्तार भी धीमी हुई है। लेकिन फिल्म की कहानी को जिस तरह श्रीराम राघवन ने बांधा है, वह दर्शकों को सीट से चिपकाए रखती है।
स्टार्स का परफ़ॉर्मेंस
वरुण धवन की छवि अब तक एक चॉकलेटी ब्वॉय की थी, लेकिन 'बदलापुर' देखने के बाद उनके प्रति दर्शकों का नजरिया बदल जाएगा। उन्होंने रघु के किरदार के लिए अपनी ओर से पूरी मेहनत की है। हालांकि, कहीं-कहीं यह एहसास भी होता है कि उन्हें ऐसे सीरियस रोल करने के लिए अभी भी थोड़ी-बहुत मेहनत की जरूरत है। नवाजुद्दीन की एक्टिंग की तारीफ करनी होगी। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि 'लायक' के किरदार के लिए उनसे लायक कोई नहीं हो सकता था। बाकी स्टार्स ने अपने-अपने हिस्से का काम बखूबी किया है। विनय पाठक इसमें सीरियस किरदार में दिखे हैं। हुमा कुरैशी, दिव्या दत्ता और राधिका आप्टे ने भी अच्छा काम किया है, तीनों ने ही फिल्म में बोल्डनेस की थोड़ी बहुत छौंक लगाई है। हालांकि, यामी गौतम का बहुत कम रोल है, जिससे दर्शक निराश हो सकते हैं।
फिल्म का संगीत
'बदलापुर' में जहां शानदार कहानी और परफ़ॉर्मेंस है, तो वहीं इसका संगीत भी काफी अच्छा है। आतिफ असलम की आवाज में 'जीना जीना' और दिव्य कुमार की आवाज में 'जी करदा' सॉन्ग्स पहले ही पॉपुलर हो चुके हैं। बाकी सॉन्ग्स 'जुदाई' और 'बदला-बदला' भी अपनी जगह ठीकठाक हैं।
देखें या नहीं
बदलापुर में नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने नेगेटिव किरदार निभाया है। हालांकि, वह फिल्म के हीरो से तरह उभरकर सामने आए है। विलेन होने के बावजूद उन्होंने अपनी एक्टिंग के दर्शकों को गुदगुदाया है। वहीं, अगर आप वरुण धवन के फैन हैं और उन्हें एक अलग अवतार में देखना चाहते हैं तो यह फिल्म आपके लिए है। सस्पेंस और थ्रिलर के शौकीन भी इसे देख सकते हैं।

dipu 10-04-2015 07:47 PM

Re: Movie Reviews
 
सनी लियोनी की फिल्*म एक पहेली लीला 10 अप्रैल शुक्रवार को रिलीज हो गई। फिल्*म को लेकर जितनी उत्*साहित खुद सनी लियोनी थीं, उतने ही उनके चाहने वाले भी। यही वजह है कि फिल्*म देखने के लिए पहले शो में दिल्*ली सहित नोएडा के कई मॉल्*स के मल्*टीप्*लेक्*स भरे दिखाई दिए। इसमें भी लीला की पहेली समझने युवा काफी संख्*या में पहुंचे। आईबीएनखबर डॉट कॉम की टीम दर्शकों से इस फिल्*म की प्रतिक्रिया जानने पहुंची। आइए जानते हैं कैसी लगी दर्शकों को यह फिल्*म।
यह मूवी मुझे बहुत अच्*छी लगी। सनी लियोनी ने अच्*छी एक्टिंग की। वे काफी अच्*छी भी लगी हैं। मैं सभी को सलाह दूंगा कि एक बार इस फिल्*म को जरूर देखें। मैं इस फिल्*म को 3.5 स्*टार देना चाहूंगा।-दीपक फरीदाबाद
यह फिल्*म बहुत ही शानदार है। इसका सस्*पेंस बहुत ही अच्*छा लगा। मैं इसे पांच में से 4 स्*टार देना चाहूंगा।-संजय चौहान स्*टूडेंट, दिल्*ली
दिस इज रियली ऑसम मूवी। सनी लियोनी बहुत ही सुंदर दिखाई दे रही हैं। करण के रूप में जय भानुशाली ने काफी अच्*छा अभिनय किया है।-अभिषेक,रिसर्च एनालिस्*ट
सनी लियोनी इज टू गुड इन दिज मूवी। यह एक शानदार फिल्*म है। लोकेशन एंड म्*युजिक बहुत ही अच्*छा है। डायरेक्*शन भी बहुत अच्*छा है। इट इज अ मस्*ट, मस्*ट वॉच मूवी। फिल्*म के लिए मैं पांच में से 3.5 स्*टार देना चाहूंगा।-सक्षम,स्*टूडेंट
पुनर्जन्*म के फंडे पर बनी फिल्*म बॉलीवुड में अक्*सर हिट साबित होती हैं। मैंने पहली बार सनी लियोनी को पर्दे पर देखा। अंदाजा नहीं था कि वह इंडियन लुक में इतनी अच्*छी लगती हैं। डायरेक्*शन के स्*तर पर फिल्*म औसत है। कुछ सीन और संवाद ठीक हैं। कुल मिलाकर यह एक टाइमपास मूवी है। फुरसत में हो तो झेली जा सकती है।-विभू गोयल, रिसर्च एनालिस्*ट
यह एक अच्*छी मूवी है। सनी लियोनी ने बहुत ही अच्*छी एक्टिंग की है। इस मूवी को मैं 4.5 स्*टार देना चाहूंगा।-आकाश त्*यागी, स्*टूडेंट

dipu 12-04-2015 09:58 AM

Re: Movie Reviews
 
अभी तक की ‘फास्ट एंड फ्यूरियस’ फिल्मों ने ये तो साबित कर ही दिया है कि उनकी दुनिया में लोजिक, फिजिक्स और ग्रेविटी जैसी चीजों की कोई जगह नहीं है। ये बात एक बार फिर साबित होती है ‘फास्ट एंड फ्यूरियस 7’ के उस सीन में जहां एक हवाईजहाज में से पांच कार पेराशूट के साथ तेजी से जमीन पर उतरती हैं और किसी को एक खरोंच तक नहीं आती। ये सीन असल में फिल्म के मुख्य एक्शन का एक छोटा सा भाग है जिसमें शामिल है एक बस, ऊंचे पहाड़ और कुछ निडर और सहासी हीरोज जो एक दूसरे की जान बचाने के लिए कोई भी खतरा मोल लेने के लिए तैयार हैं।
2001 में अंडरग्राउंड स्ट्रीट रेसिंग को लेकर एक शानदार एक्शन फिल्म के साथ शुरुआत करने के बाद ‘फास्ट एंड फ्यूरियस’ सीरीज अब एक ब्लॉकबस्टर फ्रेंचाइजी बन चुकी है जो हर बार खूब एक्साइटिंग बाहनों से होने वाले खूनखराबे और खूब सारे हेंड टू हेंड फाइट सीन्स देती है। भले ही हॉरर फिल्मों के वेटर्न डायरेक्टर जेम्स वान इस बार इस फिल्म की बागडोर संभाले हुए हैं, पर इसके डायलॉग अब भी बहुत बकवास हैं और हमें माइकल बे स्टाइल में औरतों का घटिया अंग-प्रदर्शन भी मिलता है।
देखा जाए तो फिल्म का प्लॉट हमेशा की तरह ही काफी कमजोर है। कठोर हत्यारा डेकार्ड शॉ यानी जेसन सटेथेम, डॉम यानी विन डीजल और उसके लोगों के खिलाफ बदले की साजिश रच रहा है जिन्होंने पिछली फिल्म में भाई को इनटेंसिव केयर यूनिट में पहुंचा दिया था। एक सीक्रेट गवर्नमेंट ऑपरेटिव यानी कर्ट रसेल, शॉ को ढ़ूंढ निकालने में डॉम को मदद ऑफर करता है, पर बदले में वो एक कीमती सर्विलांस डिवाइस चाहता है जो आतंकियों के हाथ लग चुका है।
इस फिल्म का प्लॉट हमारे हीरो को लॉस एंजिल्स, टोक्यो, डोमिनिकन गणराज्य और काकेशस पहाड़ों से होते हुए अबुधाबी तक ले जाती है, लगातार वाल-टू-वाल एक्शन के साथ जो सिर्फ तब रुकता है जब टाइरिस गिब्सन कोई भद्दा जोक मारता है, या जब डॉम लेट्टी यानी मिशेल रोड्रिग्ज़ की याद ताजा करने की दोबारा कोशिश करता है, हालांकि लेट्टी को अभी भी अपनी याददाश्त खोई हुई है। फिल्म में मिडिल ईस्ट में फिल्माया गया एक शानदार सेट पीस है जहां डीजल और पॉल वॉकर के किरदार एक गगनचुंबी इमारत से दूसरी और फिर तीसरी गगनचुंबी इमारत में कार उड़ाते हैं। ये बहुत ही अटपटा है, पर यही इस सीन को मजेदार भी बनाता है।
मैं यही बात फिल्म के हद से ज्यादा लंबे क्लाइमेक्स के बारे में नहीं कहूंगा जो लॉस एंजिल्स की सड़कों पर कई सारे हेलीकॉप्टरों और कारों का पीछा करने के बीच हेंड टू हेंड फाइट के साथ फिल्माया गया है। इस 20 मिनट के तेजी से एडिट किए हुए शो डाउन के बाद मेरा सिर जोर से दर्द करने लगा।
फिल्म की कास्ट में ड्वेन जॉनसन एजेंट हाब्स के तौर पर लौटे हैं, हालांकि वो अपना ज्यादातर समय हॉस्पीटल के बिस्तर पर ही गुत्थियां सुलझाने में निकालते हैं। जेसन सटेथेम फिल्म के मुख्य खलनायक के तौर पर खतरनाक हैं। बॉलीवुड के अपकमिंग एक्टर अली फजल को फिल्म में मिडिल ईस्टर्न फ़िक्सर के तौर पर दो सीन का कैमियो मिलता है और वो अपने कॉमिक अंदाज के साथ अच्छा काम करते हैं। पर वो विन डीजल हैं जो फिल्म के अहम किरदार में सारी लाइमलाइट चुरा ले जाते हैं। वो अपने टिपिकल स्टोन फेस एक्सप्रेशंस के साथ भी करिश्माई लगते हैं, और आप आज भी हर बार हंसेगें जब-जब वो परिवार की अहमियत बताते हैं।
जो सही में इस फिल्म को इसकी पिछली फिल्मों से अलग बनाती है वो है इसकी इमोशनल डेप्थ, ये सच है कि ब्रायन ओ 'कॉनर के तौर पर ये पॉल वॉकर की आखिरी फिल्म है। फिल्म के प्रोडेक्शन के बीच में ही उनकी दुखद मौत के बावजूद भी, पॉल वॉकर इस फिल्म का अहम हिस्ता हैं, जिसका श्रेय जाता है फिल्म में खूबी से इस्तेमाल किए गए बॉडी डबल्स और सीजीआई इफेक्ट को। आपकी आंखें भर आएंगी जब फिल्म के अंत में उनके किरदार को अलविदा कहा जाता है। किसने सोचा था कि हम ‘फास्ट एंड फ्यूरियस’ फिल्म को नम आंखों के साथ छोड़ेंगे? मैं ‘फास्ट एंड फ्यूरियस 7’ को पांच में से तीन स्टार देता हूं।

aiden1988 16-04-2015 04:25 PM

Re: Movie Reviews
 
Nice reviews on movie, specially reading hindi forums.

PriyankaC 21-04-2015 12:00 PM

Re: Movie Reviews
 
I love City Lites Song.."Muskurane ki vajah tum ho"


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