घर हो मंदिर या घर में हो एक मंदिर
एक बात आज मैंने सुनी और वो बात सच में मुझे बहुत अछि लगी और सोचने वाली भी लगी की घर को एक मंदिर जेइसा बनाया जय या फिर घर में एक मंदिर हो ?
दोस्तों और मेरे पाठको से निवेदन है की इस विषय पर आप सब अपने अपने विचार यहाँ रखे फिर मै अ पने विचार आप सबके साथ सेर करुँगी सो कृपया इस बहस में सभी हिस्सा लें . आपकी क्या रराय है इस बारे में? |
Re: घर हो मंदिर या घर में हो एक मंदिर
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घर में मन्दिर तो ज्यादातर सभी घरों में मिल जाएँगे , पर बहुत ही कम घर ऐसे होते हैं जो खुद ही मन्दिर जैसे पवित्र हों । जहाँ शान्ति हो , सुकून हो , लोग अपना समय जहाँ गुजारना पसन्द करें, जहाँ उन्हें अपनी समस्याओं से लडने की हिम्मत मिल सके , जहाँ वो आनन्द का अनुभव कर सकें । और घर को मन्दिर बनाना भी कोई मुश्किल काम नहीं है , हम अपने थोडे से प्रयास से ये काम कर सकते हैं । अगर घर के सभी सदस्यों में आपसी समझ विकसित हो जाये , लोग एक दूसरे को सम्मान दें , एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करें , दूसरों को बदलने का प्रयास ना करें , उन्हें वैसे ही उनकी कमियों और खूबियों के साथ स्वीकार करें , कभी किसी भी सदस्य को नीचा ना दिखायें , किसी का मजाक ना बनायें , किसी को ताने ना दें तो हर घर मन्दिर अपने आप ही बन जायेगा । |
Re: घर हो मंदिर या घर में हो एक मंदिर
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बहुत बहुत धन्यवाद आपको पवित्रा जी ,.. जी हाँ मेरा मानना यही है पवित्रा जी की घर में मंदिर बनाने की जगह आज के समय में इन्सान को खुद का घर मंदिर जेइसा बनाना चहिये जिसमे घर के सदस्यों के बिच एकदूजे के लिए असीम प्यार हो, विश्वास हो और एकदूजे के लिए जीने की चाह हो और त्याग की भावना से घर के सदस्यों के दिल परिपूर्ण हो . मंदिर घर में हो भगवन की पूजा हर समय होती हो ये एक अछि बात है इससे लोगो के मन में सकारात्मक उर्जा का जन्म होता है किन्तु यदि पूजा सिर्फ एक यांत्रिक तरीके से की जाय की दिया जलना है बस जला दिया, तुलसी में पानी डालना है नौकर को कहके डलवा दिया , तो उस घर में सकारात्मक उर्जा नहीं आती और लोगो में एकदूजे के लिए जीने की भावना नहीं आती भगवन की पूजा में श्रध्धा का होना भी जरुरी है . और दूजे ये की जिस घर में माँ बाप की सेवा होती हो जिस घर में अपनत्व की भावना हो जहा छोटे बड़े का सम्मान करते हो और बड़े छोटो से बेहद प्यार करते हों, और समस्त परिवार मिलकर सभी सुख दुःख में भाग लेते हों क्यूंकि वहां एक स्वच्छ वातावरण होता है मन में मैल नहीं होता किसी के, वहां माँ लक्ष्मी अपनी कृपा बरसाती हैं इसलिए पहले एकबार घर को मंदिर बनाये तब अपने आप घर का मंदिर खिल उठेगा और भगवन खुद आकार वहां बिराजमान हो जायेंगे ..... कलह क्लेश के वातावरण में घर से बरकत चली जाती है. लोगो के मन की शांति चली जाती है और हर पल जहा आंसुओं की झड़ी हो वहां हंसी नहीं और हंसी जहाँ नहीं वहां आनंद नहीं और भगवन वहां होते है जहा आनंद हो क्यूंकि भगवान खुद आनंद स्वरुप हैं . |
Re: घर हो मंदिर या घर में हो एक मंदिर
होतें है....गांव में एसे भी घर मैने देखे है जहां हररोज बच्चे, बडे और बुढे मील कर एक साथ खाना खाते है फिर देर रात तक बतियाते रहेतें है। हंसी, मजाक, मस्ती, ज्ञान की बातें, पुरानी यादें और खास कर के माहिती का आदान-प्रदान भी होता रहेता है। परिवार में ईतना कोम्युनिकेशन मैने जब पहली बार देखा तो सचमुच बहुत अच्छा लगा था।
मुझे लगता की शहर में टीवी की वजह से यह सब बंध हो गया है। एक दुसरे के घर आनाजाना भी बहुत कम हो गया है। उपर से स्मार्ट फोन आ गए है, जो सभी का ध्यान कीसी वर्चुअल दुनिया में लगाए रहता है। |
Re: घर हो मंदिर या घर में हो एक मंदिर
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Re: घर हो मंदिर या घर में हो एक मंदिर
Mai aapki baat samajh nahi paya, mere hisab se to ghar me mandir hona chahiye jisme hum bhagwan ki murat rakh kar puja kare, agar ghar ko mandir bana diya jae to wo ghar kaha rahega wo to mandir ho jaega ek public place fir usme koi bhi aa ja sakta hai, fir aap kaha rahenge?
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Re: घर हो मंदिर या घर में हो एक मंदिर
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manish ji , shayd aapne meri bat ki gahanta ki or dhyan nahi diya hai mere kahne ka tatparya ye hai ki yadi ghar me etani shant,i prem, vatsaly bhar jay ki ghar ka vatavaran hi ek mandir jeisa ho jay jahan klesh kankas , ladai jhagade , ershya aadi ke liye koi sthan hi na ho yane ki ek mandir me jitni man ki shanti hoti hai utani hi shanti ek ek ghar me aa jay to? kitna achha ho na yadi ghar me shanti hogi to kisi ko ghar ke bahar mansik shanti khojne nahi jana padega .. ekduje ke liye jine ka vichaar, prem sauhard ki bhavna se bhara ghar ek mandir hi to ho jayega na ? |
Re: घर हो मंदिर या घर में हो एक मंदिर
Very nice topic pushpaji.....hum likhe bina nahi rahe paye.....
Humare khayal se Bhagwan vahi basera karta hai kiska dil suchha ho...nek ho...Jisse dil Mai a sim Pyar ho.....agar ghar ko hi mandir bana diya jaye to logo ko kisi or jagah sukun ki ta lash Mai Jane ki jarurat nahi padegi......aaj life bahot hard ho gayi hai....kaam se thakkar insan sukun ke liye apno ke paas ghar aata hai par agar ghar Mai bhi santi sukun nahi hoga to vo ghar aana hi nahi chahega.... Ghar Mai mandir hona ye achha hai par ghar ko mandir banaya jaye ye usse bhi achhi baat hai... |
Re: घर हो मंदिर या घर में हो एक मंदिर
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aapne sahi samjha mere likhne ka tatparya yahi hai ki ghar ko etna sukun , sauhard or prem se bhara banayen ki ghar me jate hi mandir me hone wali man ki shanti ki anubhuti insaan ko khud ke ghar me ho . |
Re: घर हो मंदिर या घर में हो एक मंदिर
“घर हो मंदिर या घर में हो एक मंदिर" नामक चर्चामें मंदिर शब्द पर अधिक जोर दिया गया है. जो लोग शहर भर में मौजूद सैंकड़ों मंदिरों के बावजूद अपने घर में एक निजी मंदिर बनाने को आवश्यक समझते हैं, तो वे ऐसा कर सकते हैं (और बहुत से लोग ऐसा करते भी हैं). लेकिन देखने वाली बात यह है कि जिस घर में सुख-शांति, परस्पर आदर भाव, स्नेह, प्रसन्नता तथा घर के हर सदस्य के मन में ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव रहता है तो वहाँ भौतिक रूप से मंदिर स्थापित हो या न हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता. ऐसे सद्गुणों से परिपूर्ण वातावरण जिस घर में व्याप्त हो, वह घर किसी मंदिर से कम नहीं है. वहाँ ईश्वर का वास रहता है. ऐसे स्थान पर बड़ों के श्रेष्ठ संस्कार बच्चों में भी प्रवाहित होने लगते हैं. मेरे विचार से यदि किसी को इससे सुकून प्राप्त होता है तो घर के किसी भाग में (इष्ट देवता /ओं की तस्वीर या प्रतिमा से युक्त) मंदिर बनाया जा सकता है मगर जब तक उपरोक्त भाव मन में जागृत नहीं होगे तब तक यह मंदिर नहीं बल्कि मंदिर का ढांचा या दिखावा मात्र कहा जायेगा.
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Re: घर हो मंदिर या घर में हो एक मंदिर
[QUOTE=rajnish manga;554366][size=3]“घर हो मंदिर या घर में हो एक मंदिर" नामक चर्चामें मंदिर शब्द पर अधिक जोर दिया गया है. जो लोग शहर भर में मौजूद सैंकड़ों मंदिरों के बावजूद अपने घर में एक निजी मंदिर बनाने को आवश्यक समझते हैं, तो वे ऐसा कर सकते हैं (और बहुत से लोग ऐसा करते भी हैं). लेकिन देखने वाली बात यह है कि जिस घर में सुख-शांति, परस्पर आदर भाव, स्नेह, [font="]प्रसन्नता तथा घर के हर सदस्य के मन में ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव रहता है तो वहाँ भौतिक रूप से मंदिर स्थापित हो या न हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता. ऐसे सद्गुणों से परिपूर्ण वातावरण जिस घर में व्याप्त हो, वह घर किसी मंदिर से कम नहीं है. वहाँ ईश्वर का वास रहता है. ऐसे स्थान पर बड़ों के श्रेष्ठ संस्कार बच्चों में भी प्रवाहित होने लगते हैं. मेरे विचार से यदि किसी को इससे सुकून प्राप्त होता है तो घर के किसी भाग में (इष्ट देवता /ओं की तस्वीर या प्रतिमा से युक्त) मंदिर बनाया जा सकता है मगर जब तक उपरोक्त भाव मन में जागृत नहीं होगे तब तक यह मंदिर नहीं बल्कि मंदिर का ढांचा या दिखावा मात्र कहा जायेगा.
बिलकुल सही बात कही है आपने भाई ,, घर में एक मंदिर बनाकर उसमे हजारो देवी देवताओं की तस्वीरे घर में पूजते रहें किन्तु घर में अशांति हो, मन में अशांति हो तो भगवन भी घर में न रहेंगे इसलिए सबसे पहली जरुरत है घर में शांति पूर्ण वतावरण बनाने की ...इस विषय पर आपके अनमोल विचार रखने के लिए ....बहुत बहुत धन्यवाद भाई .. bi |
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