महबूबा ऐसी दिखती....!
मय -भरी आँख में ,पीने के संदेशे तैरें ;
चाँद से मुख पे जहाँ ,जुल्फ के बैठे पहरे . सिलवटें माथे की,गज़लों की पंक्तिया लगतीं ; रस -भरे होंठ,जैसे मिसरी की डलियां लगतीं. दांत मोती-जड़े से ,खिलखिलाते लगते हैं; कान की जगह पर ,दो सीप जड़े लगते हैं. चाल जिसकी चुरा के ,हिरन वन में इठलाते ; बदन की ख़ुश्बू से जिसकी ,गुलाब शर्माते . कमर बल खाए तो ,लहरों-सी अदा करती है ; जो अगर हँस दे तो ,सरगम - सी बजा करती है . निगाहे ताज महल भी,उसी पे अटकी है ; जिस्म ऐसा है , 'खजुराहो ' से जैसे भटकी है . जानना चाहती हो , कौन सी ' वीनस ' है वो ; मैं क्यों बताऊँ तुम्हें , आईने में देख लो खुद. रचनाकार ~~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव लखनऊ,इंडिया. |
Re: महबूबा ऐसी दिखती....!
अति सुंदर... क्या वर्णन किया है? :thanks:
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Re: महबूबा ऐसी दिखती....!
धन्यवाद Arvind ji.
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Re: महबूबा ऐसी दिखती....!
dil ka haal shabdon men nikaal kar rakh diya hai dr. sahab
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Re: महबूबा ऐसी दिखती....!
धन्यवाद .
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Re: महबूबा ऐसी दिखती....!
बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति है..
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Re: महबूबा ऐसी दिखती....!
लाजवाब.. ...
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Re: महबूबा ऐसी दिखती....!
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Re: महबूबा ऐसी दिखती....!
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