जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
यहाँ संस्कृत के कुछ खास श्लोक तथा उनके अर्थ दिए जायेंगे ......... आशा है मित्रों को पसंद आयेंगे ........रेपो ++++ दे कर उत्साह बढ़ाये ......... |
Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
<b>
ॐ नमः भगवते वासुदेवाय नम:</b>
|
Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
<b>
येषां न विद्या, न तपो, न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । </b> |
Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
<b>
पिता रत्नाकरो यस्य, लक्ष्मीर्यस्य सहोदरी । </b> |
Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
<b>
उदारस्य तृणं वित्तं शूरस्य मरणं तृणम् । </b> |
Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
<b>
आरभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचै: प्रारभ्य विघ्नविहता विरमंति मध्या: विघ्नै: </b> |
Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
<b>
सहसा विदधीत न क्रियां अविवेक: परमापदां पदम् वृणुते हि विमृशकारिणं गुणलुब्धा: स्वयमेव संपद: </b> |
Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
Thanking You Very Much for Giving me Status of Diligent Member मेहनती and * * * * * :egyptian::egyptian::egyptian::egyptian::egyptian: :egyptian: :gm::gm::gm::gm::gm::gm::gm::gm::gm::gm::gm::gm: |
Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
श्लोक 1 :
अलसस्य कुतो विद्या , अविद्यस्य कुतो धनम् | अधनस्य कुतो मित्रम् , अमित्रस्य कुतः सुखम् || अर्थात् : आलसी को विद्या कहाँ अनपढ़ / मूर्ख को धन कहाँ निर्धन को मित्र कहाँ और अमित्र को सुख कहाँ | |
Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
श्लोक 2 :
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || अर्थात् : मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता | |
All times are GMT +5. The time now is 02:31 AM. |
Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.