होली की ठिठोली
( 1 )
जेब कतरे ने होली पर ख़ूब मजे लिए गले मिलने वालों के पर्स मार दिए . ( 2 ) होली पर गल गयी देवर की दाल मलने को मिला गुलाल छूने को भाभी का नर्म - नर्म गाल . ( 3 ) रसिक लाल के घर उनके ऑफिस की कुछ लड़कियां होली पर आयीं गुलाल ख़त्म हो चुका था बाज़ार था दूर इसीलिये रसिक लाल ने लगा दिया सबके गुलाल जैसा , पत्नी का लाल - लाल सिन्दूर . ( 4 ) पत्नी ने छेड़ दिया पति गुस्सा गए लाल - पीले रंग उनके चेहरे पर आ गए . ( 5 ) होली पर भिखारी अपनी धुन में बोला -- " अपनी तो किस्मत ही भीख मांग कर पलना है . हे बाबू , थोड़ा सा रंग दे दो पड़ोसन के मलना है . " रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ . |
Re: होली की ठिठोली
वाह वाह वाह डॉक्टर साहब
बहुत ही सुन्दर रंगोँ का मिश्रण करके पिचकारी मारी है | |
Re: होली की ठिठोली
मजा आ गया.. राकेश जी. होली के दिन पर आपकी कविता ने समा बाँध दिया..
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Re: होली की ठिठोली
वाह वाह वाह डॉक्टर साहब
बहुत ही सुन्दर रंगोँ का मिश्रण करके पिचकारी मारी है | |
Re: होली की ठिठोली
मजा आ गया...
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Re: होली की ठिठोली
बहुत खूब डॉ. साहेब.......
होली के इस शानदार तोहफे के लिए धन्यवाद ! |
Re: होली की ठिठोली
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पढ़ने व पसंद करने के लिए आपका बहुत - बहुत शुक्रिया . |
Re: होली की ठिठोली
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Re: होली की ठिठोली
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पढ़ने व पसंद करने के लिए आपका बहुत - बहुत शुक्रिया . |
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पढ़ने व पसंद करने के लिए आपका बहुत - बहुत शुक्रिया . |
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