bhagawan ke dost
एक बच्चा जला देने वाली गर्मी में नंगे पैर
गुलदस्ते बेच रहा था . लोग उसमे भी मोलभाव कर रहे थे। . एक सज्जन को उसके पैर देखकर बहुत दुःख हुआ, सज्जन ने बाज़ार से नया जूता ख़रीदा और उसे देते हुए कहा "बेटा लो, ये जूता पहन लो" . लड़के ने फ़ौरन जूते निकाले और पहन लिए . उसका चेहरा ख़ुशी से दमक उठा था. वो उस सज्जन की तरफ़ पल्टा और हाथ थाम कर पूछा, "आप भगवान हैं? . "उसने घबरा कर हाथ छुड़ाया और कानों को हाथ लगा कर कहा, "नहीं बेटा, नहीं, मैं भगवान नहीं" . लड़का फिर मुस्कराया और कहा, "तो फिर ज़रूर भगवान के दोस्त होंगे, . क्योंकि मैंने कल रात भगवान से कहा था कि मुझे नऐ जूते देदें". . वो सज्जन मुस्कुरा दिया और उसके माथे को प्यार से चूमकर अपने घर की तरफ़ चल पड़ा. . अब वो सज्जन भी जान चुके थे कि भगवान का दोस्त होना कोई मुश्किल काम नहीं.. . खुशियाँ बाटने से मिलती है , मंदिर में नहीं .... Internet ke madhyam se |
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Re: bhagawan ke dost
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जी सही कहा भाई आज तो बड़ी दयनीय स्थिति है इंसानी समाज की परिवार के लिए सोचना अब लोग जहाँ पसंद नहीं करते वहां परायों की चिंता कौन करे. किन्तु इस तरह के प्रसंग पढ़कर शायद किसी एक का भला हो जाय। कहते हैं न भाई साहित्य में बहुत शक्ति होती है और इस वजह से अच्छी चीज़े पढ़ने के लिए अक्सर लोग कहा करते हैं। |
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