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-   -   जिसने ग़म को साध लिया (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=4288)

Dr. Rakesh Srivastava 18-04-2012 08:37 PM

जिसने ग़म को साध लिया
 
चितवन करती काम तमाम ;
क़ातिल बनता है अन्जान .

जब से उनसे आँख लड़ीं ;
कितना छोटा हुआ जहान .

पत्थर में धड़कन ढूंढें ;
उम्मीदें कितनी नादान .

वो मेरे ख़ातिर क्या हैं ;
उनको शायद नहीं गुमान .

आँखों में वो कौंध उठें ;
कानों में जब पड़े अजान .

हुस्न हमेशा ईद मनाये ;
आशिक की किस्मत रमजान .

जिसने ग़म को साध लिया ;
जग में पायी है पहचान .

ज़ख्म सजाकर पेश किये ;
ग़ज़लों की चल पड़ी दुकान .


रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2, गोमती नगर , लखनऊ .

abhisays 18-04-2012 08:55 PM

Re: जिसने ग़म को साध लिया
 
काफी दिनों के बाद आपकी नयी कविता पढने का मौका मिला, बहुत ही अच्छा लगा. अब तो आपकी नयी रचनाओ की आदत सी हो गयी है. :bravo:

sombirnaamdev 18-04-2012 09:51 PM

Re: जिसने ग़म को साध लिया
 

जिसने ग़म को साध लिया ;
जग में पायी है पहचान .

ज़ख्म सजाकर पेश किये ;
ग़ज़लों की चल पड़ी दुकान .


डा . साहब आपकी ये रचना काव्य शास्त्र के अथाह सागर से चुन के लाया हुआ एक नायाब हीरा है ,
सच पूछिए तो आपकी इन्ही कविताओं ने हमें कविताओ शोकीन बना दिया है ,
और हमें साहित्य की डगर पर धकेलने वाले आप और सिर्फ आप है ,धन्यवाद एक बार फिर से ,

Sikandar_Khan 19-04-2012 03:32 PM

Re: जिसने ग़म को साध लिया
 
Quote:

Originally Posted by dr. Rakesh srivastava (Post 141496)
चितवन करती काम तमाम ;
क़ातिल बनता है अन्जान .

जब से उनसे आँख लड़ीं ;
कितना छोटा हुआ जहान .

पत्थर में धड़कन ढूंढें ;
उम्मीदें कितनी नादान .
:fantastic:

वो मेरे ख़ातिर क्या हैं ;
उनको शायद नहीं गुमान .

आँखों में वो कौंध उठें ;
कानों में जब पड़े अजान .

हुस्न हमेशा ईद मनाये ;
आशिक की किस्मत रमजान .

जिसने ग़म को साध लिया ;
जग में पायी है पहचान .

ज़ख्म सजाकर पेश किये ;
ग़ज़लों की चल पड़ी दुकान .


रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2, गोमती नगर , लखनऊ .

डॉक्टर साहब , अल्फ़ाजोँ के जादू से एक बार फिर समां बाँधने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया |

ndhebar 19-04-2012 04:46 PM

Re: जिसने ग़म को साध लिया
 
एक और उम्दा नज्म
एक साहित्य प्रेमी को आपकी कविताओं को पढने के बाद वही सुकून हासिल होता है, जो भोजन के शौक़ीन को एक लजीज व्यंजन ग्रहण करने के बाद मिलता है
धन्यवाद

Dr. Rakesh Srivastava 19-04-2012 08:43 PM

Re: जिसने ग़म को साध लिया
 
Quote:

Originally Posted by abhisays (Post 141497)
काफी दिनों के बाद आपकी नयी कविता पढने का मौका मिला, बहुत ही अच्छा लगा. अब तो आपकी नयी रचनाओ की आदत सी हो गयी है. :bravo:

मित्र , काफी दिनों बाद इस लिए लिख पाया क्योंकि किसी के सुझाव पर उत्सुकतावश विगत एक माह से फेस बुक की ख़ाक छान रहा था , इसी व्यस्तता व नए चस्के के कारण लय बिगड़ गयी थी . फलस्वरूप कोई रचना ही नहीं सूझ रही थी .और कोई दूसरी वजह नहीं है देरी की . फिलहाल ये तय है कि जब भी कुछ नया लिख पाऊंगा तो सर्व प्रथम आप लोगों के सम्मुख ही प्रस्तुत होऊंगा .फोरम की तो बात ही कुछ और है .

Dr. Rakesh Srivastava 19-04-2012 08:51 PM

Re: जिसने ग़म को साध लिया
 
Quote:

Originally Posted by sombirnaamdev (Post 141498)

जिसने ग़म को साध लिया ;
जग में पायी है पहचान .

ज़ख्म सजाकर पेश किये ;
ग़ज़लों की चल पड़ी दुकान .


डा . साहब आपकी ये रचना काव्य शास्त्र के अथाह सागर से चुन के लाया हुआ एक नायाब हीरा है ,
सच पूछिए तो आपकी इन्ही कविताओं ने हमें कविताओ शोकीन बना दिया है ,
और हमें साहित्य की डगर पर धकेलने वाले आप और सिर्फ आप है ,धन्यवाद एक बार फिर से ,

मित्र , यदि मुझसे किसी को कोई प्रेरणा मिलती है तो ये मेरे लिए संतोष का विषय है . कृपया लिखते रहें और प्रयास ये रहे कि जब लिखें तो पहले से बेहतर लिखें . बस इतना ही कह सकता हूँ . निरंतर उत्साहवर्धन हेतु आपका धन्यवाद .

Dr. Rakesh Srivastava 19-04-2012 09:02 PM

Re: जिसने ग़म को साध लिया
 
Quote:

Originally Posted by sikandar_khan (Post 141657)
डॉक्टर साहब , अल्फ़ाजोँ के जादू से एक बार फिर समां बाँधने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया |

मित्र , हमेशा ही उत्साह बढ़ाने के लिए मैं आपका बहुत आभारी हूँ .

Dr. Rakesh Srivastava 19-04-2012 09:08 PM

Re: जिसने ग़म को साध लिया
 
Quote:

Originally Posted by ndhebar (Post 141662)
एक और उम्दा नज्म
एक साहित्य प्रेमी को आपकी कविताओं को पढने के बाद वही सुकून हासिल होता है, जो भोजन के शौक़ीन को एक लजीज व्यंजन ग्रहण करने के बाद मिलता है
धन्यवाद

मित्र , मेरे बारे में आपकी ऐसी राय आपका मेरे प्रति प्रेम है . इसे बनाए रखें .वैसे आप भले ही मुझसे संतुष्ट हों किन्तु मैं अब तक स्वयं से असंतुष्ट ही हूँ . आपका आभार .

Dr. Rakesh Srivastava 19-04-2012 09:12 PM

Re: जिसने ग़म को साध लिया
 
मित्र विक्रम जी ,
पढ़ने व पसंद करने के लिए आपका आभारी हूँ .आशा करता हूँ कि आगे भी पढ़ते रहेंगे .


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