जिसने ग़म को साध लिया
चितवन करती काम तमाम ;
क़ातिल बनता है अन्जान . जब से उनसे आँख लड़ीं ; कितना छोटा हुआ जहान . पत्थर में धड़कन ढूंढें ; उम्मीदें कितनी नादान . वो मेरे ख़ातिर क्या हैं ; उनको शायद नहीं गुमान . आँखों में वो कौंध उठें ; कानों में जब पड़े अजान . हुस्न हमेशा ईद मनाये ; आशिक की किस्मत रमजान . जिसने ग़म को साध लिया ; जग में पायी है पहचान . ज़ख्म सजाकर पेश किये ; ग़ज़लों की चल पड़ी दुकान . रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2, गोमती नगर , लखनऊ . |
Re: जिसने ग़म को साध लिया
काफी दिनों के बाद आपकी नयी कविता पढने का मौका मिला, बहुत ही अच्छा लगा. अब तो आपकी नयी रचनाओ की आदत सी हो गयी है. :bravo:
|
Re: जिसने ग़म को साध लिया
जिसने ग़म को साध लिया ; जग में पायी है पहचान . ज़ख्म सजाकर पेश किये ; ग़ज़लों की चल पड़ी दुकान . डा . साहब आपकी ये रचना काव्य शास्त्र के अथाह सागर से चुन के लाया हुआ एक नायाब हीरा है , सच पूछिए तो आपकी इन्ही कविताओं ने हमें कविताओ शोकीन बना दिया है , और हमें साहित्य की डगर पर धकेलने वाले आप और सिर्फ आप है ,धन्यवाद एक बार फिर से , |
Re: जिसने ग़म को साध लिया
Quote:
|
Re: जिसने ग़म को साध लिया
एक और उम्दा नज्म
एक साहित्य प्रेमी को आपकी कविताओं को पढने के बाद वही सुकून हासिल होता है, जो भोजन के शौक़ीन को एक लजीज व्यंजन ग्रहण करने के बाद मिलता है धन्यवाद |
Re: जिसने ग़म को साध लिया
Quote:
|
Re: जिसने ग़म को साध लिया
Quote:
|
Re: जिसने ग़म को साध लिया
Quote:
|
Re: जिसने ग़म को साध लिया
Quote:
|
Re: जिसने ग़म को साध लिया
मित्र विक्रम जी ,
पढ़ने व पसंद करने के लिए आपका आभारी हूँ .आशा करता हूँ कि आगे भी पढ़ते रहेंगे . |
All times are GMT +5. The time now is 10:02 PM. |
Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.