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Dark Saint Alaick 15-03-2012 02:07 PM

कुतुबनुमा
 
मित्रो ! आज मैं फोरम पर अपना ब्लॉग शुरू कर रहा हूं ! यह शीर्षक इसलिए कि मैं कभी इसी शीर्षक से एक सायंकालीन अखबार में प्रतिदिन समाज के प्रति अपने सरोकारों का प्रतिदान किया करता था ! मैं प्रयास करूंगा कि समाज में उठ रहे ज्वलंत मुद्दों पर अपने विचारों से आपको प्रतिदिन अवगत कराऊं, कभी समयाभाव के कारण यह संभव नहीं हो पाया, तो मेरा प्रयास रहेगा कि किसी एक दिन दो-तीन मुद्दों को अपनी टिप्पणी में शामिल कर लूं ! धन्यवाद !

Dark Saint Alaick 15-03-2012 02:13 PM

Re: कुतुबनुमा
 
व्यर्थ है विरोध के लिए 'विरोध'

लोकसभा में बतौर रेल मंत्री पहली बार बजट पेश कर रहे दिनेश त्रिवेदी ने बुधवार को जब कहा कि रेलवे बहुत कठिनाई के दौर से गुजर रही है और उसके कंधे और कमर झुक गई है, तो लगा पिछले आठ बरस में जो रेल बजट पेश हुए, उनमें कहीं न कहीं इस सचाई को वास्तव में छिपाया गया कि दुनिया की सबसे बड़ी परिवहन व्यवस्था भारतीय रेल उस खुशनुमा हालत में नहीं है, जैसी कि बजट में दिखाई जाती रही है, वरना वर्तमान रेल मंत्री को यह नहीं कहना पड़ता कि रेलवे ‘आईसीयू’ में है और अगर यात्री किराए में बढ़ोतरी नहीं की गई, तो हालात काफी खराब हो सकते हैं। रेलवे की परिचालन लागत में लगातार हो रही बढ़ोतरी के अलावा सुरक्षा व खानपान समेत अनेक ऐसे विषय हैं, जहां खर्च निरन्तर बढ़ रहा है। इसी को ध्यान में रखकर रेल मंत्री ने सभी श्रेणियों के रेल यात्री किराए में दो पैसे से 30 पैसे प्रति किलोमीटर वृद्धि करने के साथ रेल टिकट की न्यूनतम दर 4 रूपए से बढ़ाकर 5 रूपए करने की घोषणा की है। अब भले ही विपक्षी दल ‘परम्परा’ के तहत किराए में बढ़ोतरी का विरोध करें या तृणमूल कांग्रेस के ही कोटे से मंत्री बने दिनेश त्रिवेदी की पार्टी की मुखिया भी उन पर किराए में बढ़ोतरी वापस लेने का दबाव बढ़ाएं, लेकिन रेल बजट में जो कुछ सकारात्मक प्रस्ताव किए गए हैं, उनसे परिचालन लागत को कम करने में तो अवश्य मदद मिलेगी; साथ ही रेलवे को अपनी क्षमता बढ़ाने का अवसर भी प्राप्त होगा। इसके अलावा रेल मंत्री रेलवे सुरक्षा को अब भी कमजोर पहलू मानते हुए, उसे यूरोप और जापान जैसी विश्व की आधुनिक रेल प्रणालियों वाली सुरक्षा की कसौटी पर खरा उतारना चाहते हैं । आंकड़े भी कहते हैं कि देश में 40 प्रतिशत से अधिक रेल दुर्घटनाएं बिना चौकीदार वाले फाटकों पर होती हैं अर्थात स्पष्ट है कि यात्री को सुरक्षित रेल सफर चाहिए, रेल में मिलने वाला खाना भी बेहतर होना चाहिए और यात्रा भी आरामदायक चाहिए तो कहीं न कहीं जेब तो ढीली करनी पड़ेगी ही। हालात तो हम देख ही रहे हैं। पिछले आठ बरसों में रेल किराया नहीं बढ़ा, तो उसके बदले सुविधाएं भी कितनी बढ़ी? ज़ाहिर है कि केवल विरोध के लिए विरोध देश के रेल परिवहन की दशा नहीं सुधार सकता।

sombirnaamdev 15-03-2012 02:29 PM

Re: कुतुबनुमा
 
Quote:

Originally Posted by Dark Saint Alaick (Post 136929)
व्यर्थ है विरोध के लिए 'विरोध'

लोकसभा में बतौर रेल मंत्री पहली बार बजट पेश कर रहे दिनेश त्रिवेदी ने बुधवार को जब कहा कि रेलवे बहुत कठिनाई के दौर से गुजर रही है और उसके कंधे और कमर झुक गई है, तो लगा पिछले आठ बरस में जो रेल बजट पेश हुए, उनमें कहीं न कहीं इस सचाई को वास्तव में छिपाया गया कि दुनिया की सबसे बड़ी परिवहन व्यवस्था भारतीय रेल उस खुशनुमा हालत में नहीं है, जैसी कि बजट में दिखाई जाती रही है, वरना वर्तमान रेल मंत्री को यह नहीं कहना पड़ता कि रेलवे ‘आईसीयू’ में है और अगर यात्री किराए में बढ़ोतरी नहीं की गई, तो हालात काफी खराब हो सकते हैं। रेलवे की परिचालन लागत में लगातार हो रही बढ़ोतरी के अलावा सुरक्षा व खानपान समेत अनेक ऐसे विषय हैं, जहां खर्च निरन्तर बढ़ रहा है। इसी को ध्यान में रखकर रेल मंत्री ने सभी श्रेणियों के रेल यात्री किराए में दो पैसे से 30 पैसे प्रति किलोमीटर वृद्धि करने के साथ रेल टिकट की न्यूनतम दर 4 रूपए से बढ़ाकर 5 रूपए करने की घोषणा की है। अब भले ही विपक्षी दल ‘परम्परा’ के तहत किराए में बढ़ोतरी का विरोध करें या तृणमूल कांग्रेस के ही कोटे से मंत्री बने दिनेश त्रिवेदी की पार्टी की मुखिया भी उन पर किराए में बढ़ोतरी वापस लेने का दबाव बढ़ाएं, लेकिन रेल बजट में जो कुछ सकारात्मक प्रस्ताव किए गए हैं, उनसे परिचालन लागत को कम करने में तो अवश्य मदद मिलेगी; साथ ही रेलवे को अपनी क्षमता बढ़ाने का अवसर भी प्राप्त होगा। इसके अलावा रेल मंत्री रेलवे सुरक्षा को अब भी कमजोर पहलू मानते हुए, उसे यूरोप और जापान जैसी विश्व की आधुनिक रेल प्रणालियों वाली सुरक्षा की कसौटी पर खरा उतारना चाहते हैं । आंकड़े भी कहते हैं कि देश में 40 प्रतिशत से अधिक रेल दुर्घटनाएं बिना चौकीदार वाले फाटकों पर होती हैं अर्थात स्पष्ट है कि यात्री को सुरक्षित रेल सफर चाहिए, रेल में मिलने वाला खाना भी बेहतर होना चाहिए और यात्रा भी आरामदायक चाहिए तो कहीं न कहीं जेब तो ढीली करनी पड़ेगी ही। हालात तो हम देख ही रहे हैं। पिछले आठ बरसों में रेल किराया नहीं बढ़ा, तो उसके बदले सुविधाएं भी कितनी बढ़ी? ज़ाहिर है कि केवल विरोध के लिए विरोध देश के रेल परिवहन की दशा नहीं सुधार सकता।


व्यर्थ है विरोध के लिए 'विरोध' ek dum sahi hai

khalid 15-03-2012 09:10 PM

Re: कुतुबनुमा
 
भाई जान आप ने बहुत अच्छी तरह से यह मुद्दा उठाया हैँ
लेकिन नतीजा भी वही होगा ढाक के तीन पात
किराया चाहे मर्जी जितना बढा ले ले देकर यात्री होगा बदहाल ही
क्षमा करे यह मेरी अपनी सोच हैँ

Dark Saint Alaick 15-03-2012 09:39 PM

Re: कुतुबनुमा
 
Quote:

Originally Posted by khalid (Post 136963)
भाई जान आप ने बहुत अच्छी तरह से यह मुद्दा उठाया हैँ
लेकिन नतीजा भी वही होगा ढाक के तीन पात
किराया चाहे मर्जी जितना बढा ले ले देकर यात्री होगा बदहाल ही
क्षमा करे यह मेरी अपनी सोच हैँ

मित्र, आपकी बात अपनी जगह बिलकुल उचित है, लेकिन एक मंत्री को अपनी सदिच्छा को पूरा करके दिखाने के बजाय इस्तीफा देने को विवश करना मेरे खयाल से उचित नहीं है ! श्री दिनेश त्रिवेदी को एक मौक़ा दिया जाना चाहिए था ! यह विचारणीय है कि झूठे दावे करते हुए आपकी इस जेब में पैसा रख, उस जेब से निकालने वालों के बजाय, सीधी-साफ़ बात करने वाले लोग ज्यादा भरोसेमंद होते हैं और मुझे श्री त्रिवेदी ऐसे ही इंसान लगते हैं, जो अपने दूरदर्शी क़दमों के कारण बलि की भेंट चढ़ा दिए गए ! क्या आपको पता है कि हाल ही डीजल और पेट्रोल की कीमतों में की गई कमी की कीमत आपने कहां चुकाई है ? जिस दिन यह कमी की गई ठीक उसी रात विमानों के लिए ईंधन की दरें बढ़ा दी गई अर्थात भुगतना आपको ही है, क्योंकि बहुत सी ऎसी चीजें विमानों से भी ढोई जाती हैं, जिन्हें हम इस्तेमाल करते हैं ! मेरा मानना है कि यदि श्री त्रिवेदी यह चाहते थे कि 'जर्जर और झुकी कमर वाली' रेल के बजाय एक बेहतर रेल जनता को चाहिए तो उसे मामूली वृद्धि से गुरेज नहीं करना चाहिए, तो यह उचित सोच थी ! आपकी प्रतिक्रया के लिए धन्यवाद !

sombirnaamdev 15-03-2012 10:04 PM

Re: कुतुबनुमा
 
Quote:

Originally Posted by dark saint alaick (Post 136964)
मित्र, आपकी बात अपनी जगह बिलकुल उचित है, लेकिन एक मंत्री को अपनी सदिच्छा को पूरा करके दिखाने के बजाय इस्तीफा देने को विवश करना मेरे खयाल से उचित नहीं है ! श्री दिनेश त्रिवेदी को एक मौक़ा दिया जाना चाहिए था ! यह विचारणीय है कि झूठे दावे करते हुए आपकी इस जेब में पैसा रख, उस जेब से निकालने वालों के बजाय, सीधी-साफ़ बात करने वाले लोग ज्यादा भरोसेमंद होते हैं और मुझे श्री त्रिवेदी ऐसे ही इंसान लगते हैं, जो अपने दूरदर्शी क़दमों के कारण बलि की भेंट चढ़ा दिए गए ! क्या आपको पता है कि हाल ही डीजल और पेट्रोल की कीमतों में की गई कमी की कीमत आपने कहां चुकाई है ? जिस दिन यह कमी की गई ठीक उसी रात विमानों के लिए ईंधन की दरें बढ़ा दी गई अर्थात भुगतना आपको ही है, क्योंकि बहुत सी ऎसी चीजें विमानों से भी ढोई जाती हैं, जिन्हें हम इस्तेमाल करते हैं ! मेरा मानना है कि यदि श्री त्रिवेदी यह चाहते थे कि 'जर्जर और झुकी कमर वाली' रेल के बजाय एक बेहतर रेल जनता को चाहिए तो उसे मामूली वृद्धि से गुरेज नहीं करना चाहिए, तो यह उचित सोच थी ! आपकी प्रतिक्रया के लिए धन्यवाद !


ठीक कहा है भाई जी अगर गाय को निरंतर दूध निकलते रहे
और खाने को कुछ न दे , तो वो गाय कितने दिन दूध देगी
रेलवे को आज ट्रेन की संख्या बढ़ने की बजाये
उसकी स्पीड बढ़ने की और ध्यान देना होगा
और स्पीड बढ़ने के लिए उसका पटरी वाला ढ़ांच मजबूत करना पड़ेगा
जिसके लिए पैसे की जरूरत होगी वो कहाँ से आएगा

Dark Saint Alaick 17-03-2012 04:15 AM

Re: कुतुबनुमा
 
अब आप थोड़ी महंगी सिगरेट, थोड़ी सस्ती माचिस से सुलगाएं

मित्रो ! अगर आप मेरा सूत्र 'एकदम ताज़ा ख़बरें' देखते हैं, तो आप सवाल करेंगे कि केन्द्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा प्रस्तुत बजट पर उसमें मैंने बतौर 'प्रतिक्रिया' सिर्फ सरकारी पक्ष प्रस्तुत किया है ! एक भी विपक्षी दल की प्रतिक्रिया नहीं दी ! ऐसा क्यों ? वज़ह सिर्फ यह है कि आप सब जानते हैं कि विपक्ष का काम सिर्फ आलोचना करना है, लेकिन उनकी किसी टिप्पणी में तार्किक बात नहीं होती ! यह बजट जन-विरोधी है, यह ग़रीबों का जीना मुश्किल कर देगा, जनता की कमर करों के बोझ से दोहरी हो गई है और ... इसी प्रकार की टिप्पणियां हम पिछले साठ साल से निरंतर सुन रहे हैं और अब कान पक चुके हैं ! हां, सिर्फ सत्ता पक्ष के विचार प्रस्तुत करने के पीछे मेरा मकसद क्या है, यह मैं स्पष्ट किए देता हूं ! मेरी कामना है कि जिन मतदाताओं ने इन्हें संसद में भेजा है और इस काबिल बनाया है कि यह मंत्री बन कर ऐश करें, वही ... हां, वही जनता इनके विचारों अथवा कहें कि 'अपनी ढफली, अपना राग' से अवगत अवश्य हो, ताकि उसे इनका गला पकड़ने में आसानी हो और वह इनसे साधिकार कह सके, "महाशय, बहुत हुआ ! अब आप नीचे आ जाइए !" आपने यदि गौर से पढ़ा हो, तो एक 'मज़ाक' पर आपकी नज़र अवश्य गई होगी - 'सिगरेट महंगी, माचिस सस्ती !' यानी अब आप थोड़ी महंगी सिगरेट, थोड़ी सस्ती माचिस से सुलगाएं ! यह बजट ऐसे तमाम मजाकों से भरा हुआ है ! लेकिन ज़रा ठहरिए, इस मज़ाक में भी एक गंभीर बात छिपी हुई है, वह यह कि देश का बच्चा-बच्चा जानता है कि आज एक माचिस एक रुपए में आती है ! आप उसकी कीमत कितनी कम करेंगे ? दस-बीस ... पच्चीस पैसे ? अगर कोई वित्त मंत्री से पूछे, "महाशय, ये सारे सिक्के तो आप बंद कर चुके हैं, फिर इस कम कीमत का फायदा जनता को क्या हुआ - उसे तो माचिस अब भी एक रुपए में ही मिलेगी ! इस एक माचिस की न कोई रसीद मिलती है, न किसी उपभोक्ता फोरम में इसकी कोई शिकायत ही की जा सकती है ! ऎसी स्थिति में यह फायदा किसकी जेब में जा रहा है? क्या आप कालेधन पर काबू पाने की घोषणा करते हुए उसे बढ़ाने के लिए कई और खिड़कियां नहीं खोल रहे हैं ? ... तो मेरे विचार से किसी के पास कोई जवाब नहीं है ! अगर आप आंकड़ों पर गौर करेंगे, तो दादा का कौशल अथवा चतुराई, साफ़ आपके समझ आ जाएगी ! वैसे दोष इसमें दादा का भी नहीं है, क्योंकि अब तक लगभग सभी वित्त मंत्री यही करते रहे हैं ! पिछले सालों में पेश हुए तमाम बजट की 'सस्ता यह हुआ' सूची पर नज़र डालें, नज़र तकरीबन ऎसी ही चीजें आएंगी - मच्छरदानी, चिमटा, कपड़ा धोने का साबुन, झाडू, कान कुरेदने वाली सलाई, स्वेटर बुनने वाली सलाई, लालटेन, खुरपी, चम्मच, गमछा ... आदि ! दरअसल ऎसी सामग्री बजट को ग्राम्योंमुखी साबित करने के लिए पूरी तरह मुफीद है ! यह अनुभव कर अफ़सोस होता है कि देश की अधिकांश शहरी जनता तो आज के ग्रामीण भारत से वाकिफ है ही नहीं, देश के लिए योजनाएं बनाने का जिम्मा जिन लोगों ने संभाल रखा है, उन्होंने भी कभी गांव देखा ही नहीं ! इन्हें कौन बताए, कि महाशय जिस वाशिग मशीन, टीवी, कार, एसी और फ्रिज पर आप कर बढ़ा रहे हैं, वह आज ग्रामीण भारत के लिए सामान्य चीजें हैं ! यहां मैं उन गांवों की बात नहीं कर रहा, जहां आपकी 'कृपा' से अब तक बिजली ही नहीं पहुंची है और जो आदिम अवस्था में जीने के कारण किसानों की आत्महत्याओं का अभिशाप झेलने को विवश हैं, लेकिन अब अधिकांश ग्राम्य भारत वह नहीं है, जैसा आप सोचते हैं ! कृपया गांव को देखें ... समझें और फिर उसके लिए बजट बनाएं ! यह कतई न सोचें कि देश की जनता निपट मूर्ख है, 'जैसी पट्टी हम पढ़ाएंगे, पढ़ लेगी' ! यह भूल एक दिन बहुत महंगी साबित होगी, ऐसा मेरा मानना है !

Dark Saint Alaick 19-03-2012 08:06 PM

Re: कुतुबनुमा
 
प्रधानमंत्री का यह दुखद सच

जब मैं यह खबर पढ़ रहा था कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में घोषणा की है कि रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी का इस्तीफा मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेज दिया गया है और नए रेल मंत्री मुकुल राय कल प्रातः दस बजे शपथ ग्रहण करेंगे, तो मेरे मस्तिष्क में सबसे पहले उभरने वाला विचार था - यह भारतीय संसदीय इतिहास का वह दुखद क्षण है जिसने अंततः यह साबित कर दिया कि श्री मनमोहन सिंह देश के इतिहास के अब तक के सबसे असहाय और निर्बल प्रधानमंत्री हैं ! मेरे विचार से आप सभी को याद होगा कि इन्हीं मुकुल राय को इन्हीं प्रधानमंत्री ने कुछ अरसा पहले अपनी अवज्ञा के लिए रेल राज्य मंत्री पद से हटाया था ! जिन्हें स्मरण नहीं है, उनके लिए उल्लेख करता चलूं कि असम में हुई एक रेल दुर्घटना के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तत्कालीन रेल राज्य मंत्री मुकुल राय को दुर्घटना स्थल जाकर हालात का जायजा लेने के निर्देश दिए थे ! संवेदनहीनता की यह पराकाष्ठा थी कि जहां राय को स्वेच्छा से जाना चाहिए था, वहां वह प्रधानमंत्री के निर्देश के बावजूद नहीं गए ! इससे खफा प्रधानमंत्री ने उनका विभाग बदल दिया था ! अब वही राय तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी के अनुपम हठ के कारण बढ़े हुए दर्जे के साथ रेल मंत्री बनने जा रहे हैं ! यह मेरे विचार से भारतीय इतिहास को कलंकित करने वाली दुर्घटना है ! इससे सिर्फ मनमोहन सिंह का ही व्यक्तित्व उजागर हुआ हो, ऐसा नहीं है; इस घटना ने कवयित्री, दार्शनिक, चिन्तक और जुझारू नेत्री मानी जाने वाली ममता बनर्जी के कुछ आवरण भी हटा दिए हैं ! एक बेहतर लेखक की सबसे बड़ी पहचान एक श्रेष्ठ मनुष्य भी है ! कहा गया है कि श्रेष्ठ लेखक वही हो सकता है, जो एक बेहतर इंसान भी हो और बेहतर इंसान की पहली शर्त संवेदनशीलता है ! कुछ मित्र कह सकते हैं कि इस मामले में तो ममताजी बाजी मार ले गईं, क्योंकि उन्होंने अपनी संवेदनशीलता के कारण ही जनता के लिए यह जंग लड़ी है ! लेकिन यह साफ़ समझा जाना चाहिए कि मामला सिर्फ किराया बढ़ोतरी ही नहीं है, इसके पीछे बहुत कुछ है ! अगर ऐसा ही होता, तो आज ममता बनर्जी के सुर में यह बदलाव नहीं आया होता कि ऊपरी श्रेणी के किराए में वृद्धि मंजूर की जा सकती है, लेकिन निचली श्रेणी के में नहीं ! यही शर्त उन्होंने त्रिवेदी के समक्ष रखी होती और उन्होंने नहीं मानी होती, यह तर्क तभी चल सकता था ! घटनाक्रम स्पष्ट संकेत दे रहा है कि राय पर वे कुछ अतिरिक्त मेहरबान हैं और इसी कारण वे ऐसे ही किसी पल की शिद्दत से प्रतीक्षा कर रही थीं, जिसमें वे मनमोहन सिंह को बता सकें कि संप्रग की यह सरकार उनके रहमो-करम पर है और वे एक कठपुतली से ज्यादा कुछ नहीं हैं ! यदि ऐसा नहीं है, तो सवाल यह है कि मुकुल राय ही क्यों ? क्या अठारह-उन्नीस सांसदों में एकमात्र वे ही इतने योग्य हैं कि उनके लिए बढ़ाए गए किराए में कमी के साथ कुछ समझौता भी मंजूर है !

और अंत में -

किसी मित्र ने मुझे बताया कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के एक जिक्र के रूप में एक एसएमएस संचार जगत में तेज़ी से फ़ैल रहा है, वह कुछ इस प्रकार है !

नरेंद्र मोदी ने कहा कि मुझे एक एसएमएस मिला, जिसमें कहा गया था कि मनमोहन सिंह को ऑस्कर अवार्ड मिला है ! मैंने भेजने वाले से पलट कर पूछा, भाई मनमोहन सिंह को ऑस्कर कैसे मिला? उन्होंने बताया, "प्रधानमंत्री के रूप का श्रेष्ठ अभिनय करने के लिए !"

arvind 19-03-2012 08:13 PM

Re: कुतुबनुमा
 
Quote:

Originally Posted by dark saint alaick (Post 137277)
प्रधानमंत्री का यह दुखद सच

जब मैं यह खबर पढ़ रहा था कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में घोषणा की है कि रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी का इस्तीफा मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेज दिया गया है.....

.......भाई मनमोहन सिंह को ऑस्कर कैसे मिला? उन्होंने बताया, "प्रधानमंत्री के रूप का श्रेष्ठ अभिनय करने के लिए !"

जो देश की जितनी ज्यादा वाट लगा सकता है, वही सबसे अच्छा राजनीतिज्ञ है।

khalid 19-03-2012 08:21 PM

Re: कुतुबनुमा
 
Quote:

Originally Posted by arvind (Post 137279)
जो देश की जितनी ज्यादा वाट लगा सकता है, वही सबसे अच्छा राजनीतिज्ञ है।

बिल्कुल सत्य हैँ
राज +निती
राज करना हो तो निती से करो

Dark Saint Alaick 29-03-2012 09:49 AM

Re: कुतुबनुमा
 
दोस्तो, भारत में एक तिब्बती कार्यकर्ता जामयांग येशी ने आत्मदाह किया ! दुनिया में यह पहला नहीं है, खुद चीन में तकरीबन चालीस बौद्ध भिक्षु यह कदम उठा कर मौत का साक्षात्कार कर चुके हैं, लेकिन ज़रा-ज़रा सी बात पर खाड़ी देशों का रुख करने वाले पश्चिम के कानों पर जूं नहीं रेंग रही ! इस स्थिति की व्यथा मेरे इन शब्दों में प्रकट हुई है ! यद्यपि अभी मैं इस अभिव्यक्ति को अधूरा पाता हूं, तथापि यहां आपके लिए प्रस्तुत है !


वे क्यों आएं तिब्बत


उन्हें जरूरत नहीं धवल उत्तुंग पर्वत चोटियों की
उन्हें भाती हैं बुर्ज-खलीफा सी अट्टालिकाएं

उन्हें नहीं चाहिए पहाड़ों के सीने चीर
बह रहा खनिज युक्त शुद्ध जल
उनके पास हैं तमाम शुद्धि-यंत्र
और प्रयोगशालाएं

उन्हें पसंद नहीं पहाड़ से तने सीने
और वज्र से कठोर अंग
उन्हें मिस तिब्बत से नहीं बिकवानी
बालों को रंगने वाली क्रीम

उन्हें गवारा नहीं
तुम्हारी बर्फ सी आंखों में बसे
सच के स्वप्न
उन्हें बेचना है हॉलीवुड का रंगीन झूठ

बोलो, तुम क्या खरीद सकते हो
विमान का क्या करोगे तुम
तोप छोड़ो, अखबार तो निकाल नहीं सकते तुम
तुम्हारा धर्म अहिंसक है, बन्दूक का क्या करोगे तुम
यह सब बेकार है तुम्हारे लिए

ओ भोले तिब्बतियो
आत्मदाह में नष्ट न करो
वह अमूल्य तेल जो चाहिए उन्हें
जिसके लिए आते हैं वे इराक़, मिस्र, सीरिया, ईरान ...

बताओ तो, वे क्यों आएं यहां
यहां नहीं है कोई तानाशाह
यहां है एक खौफनाक ड्रैगन
जो रातों को भी डराता है उन्हें !

Dark Saint Alaick 31-03-2012 12:01 AM

Re: कुतुबनुमा
 
विरोध का मतलब हिंसा तो नहीं

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की 31 अगस्त 1995 को दिन-दहाड़े हत्या के मामले में मौत की सजा का सामना कर रहे बलवंतसिंह राजोआना पर दया करने के लिए पंजाब की मौजूदा सरकार ने जिस तरह का अभियान छेड़ा उसकी उच्चतम न्यायालय द्वारा की गई कड़ी निंदा ने यह तो साबित कर ही दिया है कि अपने राजनीतिक हित के लिए सत्तारूढ़ सरकार ने राज्य के हितों को ही मानो तिलांजली दे दी थी। यह तो अच्छा रहा कि केन्द्र सरकार ने समय रहते पंजाब में बिगड़ती कानून व्यवस्था की दशा को देखते हुए राजोआना की फांसी पर रोक लगा दी, वरना पंजाब में हिंसा और भी उग्र रूप धारण कर सकती थी, जिसे संभालना राज्य सरकार के लिए बेहद मुश्किल हो जाता क्योंकि वह एक तरह से सरकार प्रायोजित ही थी। जहां तक फांसी की सजा का सवाल है,हो सकता है इससे व्यक्ति के मूल मानवाधिकार का घोर हनन होता हो। यह एक बहस का विषय हो सकता है लेकिन इसके मायने यह तो नहीं कि कानून को ही अपने हाथ में ले लिया जाए और वो भी सरकार के समर्थन से? दुनिया के 96 देशों में फांसी की सजा पर रोक है। संविधान निर्माता बी.आर.अंबेडकर ने भी संविधान सभा में मृत्युदंड हटाने का समर्थन किया था। यह भी हो सकता है कि मौत की सजा मानव धर्म का अपमान हो लेकिन इसका विरोध करने के और भी शांतिपूर्ण तरीके हो सकते हैं। यही कारण है कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश जी.एस. सिंघवी और न्यायाधीश एस.जे. मुखोपाध्याय की पीठ को गुरूवार को कहना पड़ा कि एक व्यक्ति को हत्या के आरोप में दोषी ठहराया गया है। मुख्यमंत्री की दिनदहाड़े हत्या की गई थी। यह अपने आप में विरला उदाहरण हैं जहां आतंकी कृत्य के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति को राजनीतिक समर्थन मिला है। दोनो न्यायाधीशों की पीठ ने राजोआना की फांसी की सजा के विरोध में सिख संगठनों के आह्वान पर पंजाब में बंद और उस दौरान हुई हिंसक घटनाओं पर चिंता जताई और इसे राजनीतिक ड्रामा करार दिया। अब देखना तो यह है कि उच्चतम न्यायालय की इस अपूर्व टिप्पणी से सत्तारूढ़ सरकार क्या सबक सीखेगी क्योंकि यह मुद्दा भले ही कुछ दिनो के लिए टल गया है लेकिन पंजाब की मौजूदा सरकार लगता है इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न भी बना चुकी है।

Dark Saint Alaick 01-04-2012 09:28 PM

Re: कुतुबनुमा
 
भाजपा को जवाब तो देना ही होगा

भाजपा के शासन वाले हो बड़े राज्यों गुजरात और मध्य प्रदेश में हाल ही में नियंत्रक एंव महालेखा परीक्षक(सीएजी) तथा लोकायुक्त छापों की कार्यवाही ने पार्टी के शुचिता और साफ सुथरे प्रशासन के दावे की मानो हवा ही निकाल दी है। दो माह पहले सीएजी ने राज्य सरकार को रिपोर्ट दी जिसमें एक ही वर्ष में 16,706 करोड़ रूपए का भ्रष्टाचार होने का खुलासा किया गया। इस तरह सीएजी ने नरेन्द्र मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल में कुल 43 हजार करोड़ रूपए से अधिक के भ्रष्टाचार का खुलासा किया है। रिपोर्ट में यह भी साफ किया है कि कच्चे तेल की खोज के नाम पर सरकारी कोष को हजारों करोड़ का चूना लगाया गया है। तेल खोज के नाम पर करोड़ों रूपए कहां खपाए कोई नहीं जानता जबकि विशेषज्ञों ने शंका जता दी थी कि तेल खोज में बड़ी कामयाबी नहीं मिलेगी। और तो और तेल खोज के नाम पर राज्य के पेट्रोलियम निगम को करीब साढ़े बारह हजार करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा। इसी तरह सरकार ने जाने माने अदानी समूह को कच्छ के मुंदडा में 5.94 करोड़ वर्ग मीटर जमीन 32 रूपए प्रति वर्ग मीटर की दर से उपलब्ध कराई जबकि उसकी बाजार कीमत 15 हजार रूपए प्रति वर्ग मीटर है। सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार मोदी सरकार ने अदानी समूह के अलावा रिलायंस और एस्सार को भी बहुत फायदा पहुंचाया। उधर मध्य प्रदेश पर नजर दौडाएं तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं। राज्य में महज पिछले दो वर्षों में लोकायुक्त छापों में सरकारी कर्मचारियों की 348 करोड़ की काली कमाई जब्त की गई है। यह आंकड़ा तो राज्य सरकार द्वारा विधानसभा में रखा गया अधिकृत है। अपुष्ट आंकड़ा तो न जाने कहां तक पहुंच सकता है। पिछले दो बरसों में जिन 67 सरकारी कर्मियों के ठिकानों पर छापे मारे गए उनमें चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर भारतीय प्रशासनिक सेवा के बड़े अफसर शामिल हैं। जब चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी जैसे अदने कर्मचारियों के यहां छापों में करोड़ों रूपए की बेनामी संपत्ति मिल रही है, आला अफसरों और मंत्रियों की काली कमाई क्या होगी, इसका तो अंदाजा लगाना ही मुश्किल है। भ्रष्टाचार विरोध केनाम पर संसद तक ठप कर देने वाली भाजपा गले तक भ्रष्टाचार में डूबे इन दो राज्यों को लेकर चुप क्यों है, यह समझ से परे है। उसे जवाब तो देना ही होगा।

Dark Saint Alaick 02-04-2012 07:24 PM

Re: कुतुबनुमा
 
व्यावसायिक शिक्षा एक दूरदर्शी कदम

कहते हैं जो समय से पहले ही चेत जाए वह हर चुनौती का सामना आसानी से कर सकता है। केन्द्र सरकार ने देश की बढ़ती आबादी को देखते हुए सन 2020 में शिक्षा और रोजगार की संभावनाओं का आकलन कर जो तैयारी अभी से की है वह एक बड़ा दूरदर्शी कदम कहा जा सकता है। सरकार को राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा पात्रता ढांचा (एनवीईक्यूएफ) पर राज्यों के शिक्षा मंत्रियों की समिति की जो रिपोर्ट मिली है उसमें कहा गया है कि 2020 में जब बीस से पैंतीस वर्ष के लोगों की आबादी 32.5 करोड़ हो जाएगी, तब लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना महत्वपूर्ण चुनौती हो जाएगी । इस समस्या का हल व्यावसायिक शिक्षा के माध्यम से निकाला जा सकता है। इस लक्ष्य को ध्यान में रखकर ही शिक्षा को रोजगारोन्मुखी बनाने की कवायद के तहत सरकार अगले वर्ष से स्कूली स्तर से स्नातक स्तर तक व्यवसायिक पाठ्यक्रम शुरू करने जा रही है। सरकार ने व्यवसायिक शिक्षा पाठ्यक्रम का जो खाका तैयार किया है, उसमें सात स्तरों के प्रमाणन की व्यवस्था होगी और यह स्नातक स्तर तक होगी । पहले दो स्तरों तक पढ़ाई और प्रशिक्षण कार्य सीबीएसई एवं राज्य शिक्षा बोर्ड के तहत होगा। इसके तहत नवीं, दसवीं, 11वीं और12वीं स्तर के छात्रों को प्रतिवर्ष 1000 घंटे से 1200 घंटे तक पढ़ाई एवं प्रशिक्षण जरूरी बनाया गया है। इसे स्नातक स्तर तक बढ़ाया जाएगा। व्यवसायिक शिक्षा में आटोमोबाइल, मनोरंजन, सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंचार, मार्केटिंग, कृषि, निर्माण, एप्लायड साइंस, पर्यटन तथा प्रिंटिंग व पब्लिशिंग क्षेत्र का लगभग हर विषय पाठ्यक्रम में होगा। अब तक उपलब्ध सरकारी आंकड़ों के अनुसार स्कूल स्तर पर फिलहाल 11वीं और 12वीं के केवल तीन फीसदी बच्चे व्यवसायिक शिक्षा पाठ्यक्रम के दायरे में हैं जबकि लक्ष्य 25 प्रतिशत निर्धारित है। कुल मिला कर आने वाले समय की सभी संभावनाओं को देखते हुए सरकार जो कदम उठाने जा रही है उसके दूरगामी परिणाम तो सामने आएंगे ही साथ ही एक दशक बाद भी भारत का युवा रोजगार के क्षेत्र में खुद को इसलिए आत्म निर्भर महसूस करेगा क्योंकि उसके सामने नौकरी ही विकल्प नहीं होगा । वह खुद का व्यवसाय भी आसानी से शुरू कर सकेगा। युवाओं को सरकार की इस पहल का स्वागत करना चाहिए।

Dark Saint Alaick 03-04-2012 09:01 PM

Re: कुतुबनुमा
 
भारत की प्रतिबद्धता पर अमेरिकी मुहर?

आतंकवाद के खिलाफ मौजूदा केन्द्र सरकार जिस गंभीरता के साथ काम कर रही है, उसे एक बड़ी कामयाबी मंगलवार को उस समय मिली, जब अमेरिका ने मुम्बई हमलों के मास्टर माइंड, पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक और इस संगठन की राजनीतिक शाखा जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज मोहम्मद सईद पर एक करोड़ अमेरिकी डालर के इनाम की घोषणा की। इस घोषणा के साथ ही उसने आतंक के खिलाफ भारत की प्रतिबद्धता पर भी एक तरह से मुहर लगा दी। भारत नवंबर 2008 में मुंबई पर आतंकी हमले के बाद से लगातार सभी मंचों से कहता आया है कि इन हमलों में पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हाथ है। भारत यह भी खुलासा कर चुका है कि लश्कर के प्रशिक्षण का मुख्य केन्द्र पाकिस्तान में लाहौर के पास मुरीदके में है और इसकी शाखाएं पाकिस्तान में फैली हुई हैं। यही कारण है कि मंगलवार को अमेरिकी घोषणा के बाद विदेश मंत्री एस. एम. कृष्णा ने कहा कि सईद पाकिस्तान में कहीं सुरक्षित रह रहा है। निश्चित रूप से अब यह कहा जा सकता है कि आतंकवाद के खिलाफ मनमोहन सिंह सरकार द्वारा हाल के बरसों में उठाई गई आवाज के चलते पाकिस्तान में लगातार पनप रही आतंकी चुनौतियों की प्रकृति पर भारत और अमेरिका में पारस्परिक समझ काफी गहरी हुई है। यही कारण है कि विदेश मंत्री कृष्णा ने न केवल अमेरिकी सरकार के ‘रिवार्ड्स फॉर जस्टिस’ कार्यक्रम के तहत सईद के खिलाफ एक करोड़ अमेरिकी डालर के इनाम की घोषणा का स्वागत किया, बल्कि यह भी कहा कि अमेरिका दुनियाभर में इन सभी आतंकवादियों पर नजर रखता है, उसे सईद पर भी अपनी नजर रखनी चाहिए थी, क्योंकि भारत हमेशा जोर देता रहा है कि सईद मुम्बई हमले का मास्टरमाइंड है। एक बात और है कि भारत और अमेरिका ने हाल के वर्षों में आतंकवाद विरोधी संयुक्त कार्य समूह, आतंकवाद विरोधी सहयोग पहल, गृह सुरक्षा वार्ता और खुफिया तथा कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच सूचनाओं के नियमित आदान प्रदान के जरिए आतंक के खिलाफ जिस सहयोग को मजबूत किया है उससे लश्कर और आतंकी संगठनो के बीच यह संदेश भी जाएगा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एकजुट है। ... लेकिन विचारणीय यह है कि क्या इसे अमेरिका की भारतीय हितों और न्याय के प्रति प्रतिबद्धता माना जाना चाहिए ! कहना ही होगा कि जब तक पाकिस्तान पर भारत के वांछितों पर कार्रवाई का कोई प्रत्यक्ष दबाव अमेरिका की ओर से नज़र नहीं आता, यह मान लेना सिर्फ खुशफहमी ही होगा !

Dark Saint Alaick 04-04-2012 09:48 PM

Re: कुतुबनुमा
 
भरोसेमंद युवा पीढ़ी को तराशने की जरूरत

अक्सर हमें यही सुनने को मिलता है कि आज का युवा केवल अपने करियर,पढ़ाई, कंप्यूटर और आधुनिक सुख-सुविधाओं में ही उलझा रहता है, लेकिन हाल ही में छेड़े गए एक खास अभियान के निष्कर्षों को चौंकाने वाला कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अंतर्राष्ट्रीय मानवीय संगठन केयर इंडिया द्वारा दिल्ली और हैदराबाद में युवाओं की सोंच का पता लगाने के लिए पिछले दिनो चलाए गए एक अभियान में सामने आया कि आज के युवा और छात्र अपनी पढ़ाई के अलावा न केवल सामाजिक कार्यों से भी जुड़ना चाहते हैं बल्कि इसके लिए फेस बुक जैसे आधुनिक संचार माध्यम को अपना हथियार भी बनाना चाहते हैं। भारत में महिलाओं और लड़कियों की समस्याओं के प्रति छात्रों और युवाओं को जागरुक करने के मकसद से चलाए गए इस अभियान के तहत करीब चालीस हजार छात्रों से संपर्क किया गया। इनमें 9 हजार छात्रों ने लिखित रूप से तथा 21 हजार छात्रों ने ई-मेल के जरिए महिलाओं और लड़कियों की स्थिति बेहतर बनाने के अभियान को समर्थन देने का संकल्प जताया। यदि हम इस अभियान को एक पैमाना माने तो यह साफ हो जाएगा कि आज की युवा पीढ़ी वाकई बेहद संवेदनशील है और समाज के प्रति अपने गुरूत्तर दायित्व को भी भली-भांति समझती है। अभियान से यह तथ्य भी सामने आया कि नई पीढ़ी बदलाव चाहती है और अपने देश के लिये कुछ करना चाहती है। वह चाहती है कि इसके लिए उसे उचित दिशा, मंच और राह मिले। निश्चित रूप से यह हमारे देश के लिए एक शुभ संकेत तो है लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि हम इस पीढ़ी की उम्मीदों को किस नजरिए से देखते हैं। इस अभियान ने यह तो साबित कर दिया युवा पीढ़ी को अगर सही नेतृत्व मिले तो वह समाज को एक नई दिशा दे सकता है। वह चाहता भी है कि उसे समाज का एक महत्वपूर्ण अंग मान कर उसका इस्तेमाल किया जाए। महिलाओं और युवतियों के प्रति हमारे युवाओं की जो सोंच इस अभियान में परीलक्षित हुई है, उससे हम इतने तो भरोसेमंद हो ही सकते हैं कि आज का युवा अपने इर्द-गिर्द हो रही हर हलचल पर नजर रखे हुए है। बस,जरूरत है तो ऐसी पारखी नजरों की जो बेहतर सोच वाले युवाओं को तराश कर उन्हे देश सेवा से जुड़े कार्यों से जोड़ सके।

aksh 05-04-2012 10:12 PM

Re: कुतुबनुमा
 
Quote:

Originally Posted by dark saint alaick (Post 136964)
मित्र, आपकी बात अपनी जगह बिलकुल उचित है, लेकिन एक मंत्री को अपनी सदिच्छा को पूरा करके दिखाने के बजाय इस्तीफा देने को विवश करना मेरे खयाल से उचित नहीं है ! श्री दिनेश त्रिवेदी को एक मौक़ा दिया जाना चाहिए था ! यह विचारणीय है कि झूठे दावे करते हुए आपकी इस जेब में पैसा रख, उस जेब से निकालने वालों के बजाय, सीधी-साफ़ बात करने वाले लोग ज्यादा भरोसेमंद होते हैं और मुझे श्री त्रिवेदी ऐसे ही इंसान लगते हैं, जो अपने दूरदर्शी क़दमों के कारण बलि की भेंट चढ़ा दिए गए ! क्या आपको पता है कि हाल ही डीजल और पेट्रोल की कीमतों में की गई कमी की कीमत आपने कहां चुकाई है ? जिस दिन यह कमी की गई ठीक उसी रात विमानों के लिए ईंधन की दरें बढ़ा दी गई अर्थात भुगतना आपको ही है, क्योंकि बहुत सी ऎसी चीजें विमानों से भी ढोई जाती हैं, जिन्हें हम इस्तेमाल करते हैं ! मेरा मानना है कि यदि श्री त्रिवेदी यह चाहते थे कि 'जर्जर और झुकी कमर वाली' रेल के बजाय एक बेहतर रेल जनता को चाहिए तो उसे मामूली वृद्धि से गुरेज नहीं करना चाहिए, तो यह उचित सोच थी ! आपकी प्रतिक्रया के लिए धन्यवाद !

पिछले दस सालों में सार्वजनिक जीवन में मूल्यों में तेजी से गिरावट आयी है और ममता बनर्जी जैसी गरीबों की हिमायती होने का दम भरने वाले नेता खुद निरंकुश होकर शासन करना चाहते हैं...जनता की भावनाओं, जमीनी हकीकतों से इन लोगों का सरोकार नहीं रह गया है ये बात खुल कर सामने आ गयी है और इस सबसे एक बात और रेखांकित होती है कि इन लोगों का लोकतंत्र में विश्वास का दावा एक दम खोखला है क्योंकि अगर ऐसा होता तो उक्त रेल मंत्री को एक तानाशाही आदेश का पालन करने के लिए विवश ना होना पड़ता..

मैं अपने चारों तरफ देखता हूँ और यही पाता हूँ कि सत्ता का लालच विकेन्द्रीयकरण के रास्ते गाँव मोहला स्तर तक और गाँव के स्तर तक पहुँच जाने का एक नुक्सान ये हुआ है कि हर स्तर पर फैसले ढुलमुल तरीके से और वोटों की राजनीती को ध्यान में रखकर लिए जा रहे हैं...

इसी विकेन्द्रीयकरण के चलते हमारे गली और मोहल्ले अराजकता के अड्डे बन चुके हैं क्योंकि कुछ सत्ता लोलुप नेता ये चाहते हैं कि उनको सता मिलती रहनी चाहिए...फिर चाहें देश में क़ानून का राज रहे या ना रहे, देश में समता रहे या ना रहे....और सबसे बड़ी बात...देश में लोकतंत्र रहे या मरे...

Dark Saint Alaick 05-04-2012 10:18 PM

Re: कुतुबनुमा
 
आपका कथन एकदम सत्य है, मित्र ! यह भी देखिए कि मैंने पहले ही कहा था कि किराए में एक धेला कम होने वाला नहीं है ! यह बस, ममता बनर्जी की एक चाल है - प्रधानमंत्री और संप्रग को नीचा दिखाने तथा अपने मनपसंद व्यक्ति को मंत्री पद पर काबिज़ कराने की ... और अब यह सच साबित हो गया है !

Dark Saint Alaick 06-04-2012 11:45 PM

Re: कुतुबनुमा
 
पाक को ठोस कदम तो उठाना ही होगा

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी रविवार को हांलाकि एक तरह से निजी यात्रा पर भारत आ रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान ने उनकी इस यात्रा और भोजन पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से जरदारी की मुलाकात को भी आखिर कश्मीर से जोड़ ही दिया। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल बासित का यह कहना तो ठीक है कि दोपहर के भोजन पर जरदारी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मुलाकात विश्व के इस भाग में अंतर-क्षेत्रीय शांति एवं समृद्धि को बढावा देने के राष्ट्रपति के विचारों को मूर्त रूप देने में योगदान करेगी और इससे क्षेत्र में शांति बहाली के प्रयासों को बल मिलेगा, लेकिन बासित को यह कहने की जरूरत आखिर क्यों आ पड़ी कि दोनों नेता पड़ोसी मुल्कों के द्विपक्षीय संबंधों में लगातार महत्वपूर्ण बने रहने वाले सभी मुद्दों पर बात करेंगे, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि हम अन्य मामलों विशेष तौर पर जम्मू कश्मीर पर अपने रूख से समझौता करेंगे। उन्होंने कहा कि कश्मीर विवाद दोनों देशों के बीच अहम मुद्दा है। जम्मू कश्मीर विवाद पर पाकिस्तान का अपने रूख में बदलाव लाने को कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है। इससे यह साफ हो गया है कि पाकिस्तान कहता कुछ है और करता कुछ है। यही हाल लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद को लेकर सामने आया है। अमेरिका ने जैसे ही सईद के खिलाफ एक करोड़ डॉलर के ईनाम की घोषणा की पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने कह दिया कि सईद का मामला एक आंतरिक मुद्दा है तथा यदि जमात उद दावा प्रमुख के खिलाफ कोई ठोस सबूत है तो उसे पाकिस्तान को मुहैया कराया जाना चाहिए। जहां तक सईद के खिलाफ सबूतों का सवाल है, भारत मुंबई पर आतंकी हमले में सईद के लिप्त होने के सबूत पाकिस्तान को दे चुका है लेकिन पाकिस्तान ने कोई जांच नहीं की। गृह मंत्री पी. चिदंबरम की ओर से पाकिस्तान को सौंपे गए डोजियर में सईद के मुंबई हमले में शामिल होने संबंधी सारा ब्यौरा मौजूद है। ऐसे में भारत के विदेश मंत्री एसएम कृष्णा का यह कहना बेहद तार्किक है कि किसी न्यायिक जांच के बगैर भारत द्वारा सौंपे गए दस्तावेजों से पाकिस्तान मुकर कर बच नहीं सकता। पाकिस्तान को चाहिए कि वह आतंक के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करने के लिए धरातल पर कुछ ठोस कदम उठाकर इसे साबित करे।

Dark Saint Alaick 08-04-2012 10:34 PM

Re: कुतुबनुमा
 
चेन्नई सुपर किंग्स बनाम डेक्कन चार्जर्स
दिन ही जडेजा का था.....

यही तो है क्रिकेट की खूबी। गत दो बार से आईपीएल जीत रही चेन्नई सुपर किंग्स इस बार अपने पहले ही मैच में जब मुंबई इंडियन से हारी तो लगा सूरमाओं से भरी यह टीम अब आगे क्या करेगी । लेकिन दूसरे मैच में इस सीजन में बीस लाख डॉलर में बिके सबसे मंहगे खिलाड़ी रविंदर जडेजा ने पहले बल्ले और फिर गेंद से जो करिश्मा दिखाया, लगा यह टीम यूं ही खेलती रही तो उसे तीसरी बार जीतने से कौन रोक सकेगा। इंडियन प्रीमियर लीग के छठे मैच में शनिवार रात चेन्नई सुपर किंग्स ने विशाखापट्टनम में डेक्कन चार्जर्स पर 74 रन से धमाकेदार जीत हासिल की जिसमें जडेजा ने पहले 29 गेंद पर तीन चौकों और तीन छक्कों की मदद से 48 रन बनाए और फिर अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 16 रन देकर पांच विकेट भी झटक लिए यानी शनिवार जडेजा का दिन था। चेन्नई सुपरकिंग्स के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी और उनकी टीम ने टास हारने के बाद पहले बल्लेबाजी के लिए मिले न्यौते का जमकर फायदा उठाया। जडेजा ने तो बल्लेबाजी में हाथ दिखाए ही, डी.ब्रावो ने भी 18 गेंद पर नाबाद 43 रन की पारी खेली। ब्रावो ने आखिरी दो ओवर में पांच छक्कों की बरसात की । रनों की बहती गंगा में फाफ डु प्लेसिस ने चार छक्कों की मदद से 39 रन और एस बद्रीनाथ ने 25 रन रूपी हाथ धोए और उसकी बदोलत चेन्नई सुपर किंग्स ने छह विकेट पर 193 रन का बड़ा स्कोर खड़ा कर डाला। चार्जर्स के दो गेंजबाजों मनप्रीत गोनी और सुधींद्र कुलकर्णी ने आठ ओवर में 100 रन लुटा दिए।
जब डेक्कन चार्जर्स के बल्लेबाज इस मुकाम को हासिल करने मैदान में उतरे तो किसी भी ओवर में नहीं लगा कि वे लक्ष्य पाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। और जब जडेजा ने 11वें ओवर में गेंद संभाली तो फिर डेक्कन चार्जर्स का ऐसा फ्यूज उड़ा कि उसने चार ओवर में छह विकेट गंवा दिए और पूरी टीम 17.1 ओवर में 119 रन पर ढेर हो गर्ई। जाहिर है शानदार प्रदर्शन के लिए 'मैन आफ द मैच' का पुरस्कार तो जडेजा के खाते में जाना ही था। पुरस्कार लेते समय जडेजा ने कहा- यह मेरा शानदार प्रदर्शन था। मैं अपनी मां और परिवार का आभार व्यक्त करना चाहूंगा। मैं बहुत खुश हूं कि मेरे लिए आज का दिन बहुत अच्छा रहा।

Dark Saint Alaick 08-04-2012 10:36 PM

Re: कुतुबनुमा
 
ठोस कदमों पर टिकी रिश्तों की बुनियाद

पाकिस्तान और भारत के बीच आपसी रिश्ते निश्चित रूप से पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाने पर ही टिके हैं। यह बात रविवार को तब और पुख्ता हो गई जब करीब सात घंटों की निजी यात्रा पर भारत आए पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को मेहमानवाजी के तहत दिए दोपहर के भोज से पहले आधे घंटे की बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कह ही डाली। अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद के खिलाफ एक करोड़ डॉलर के ईनाम की घोषणा के बाद भले ही पाकिस्तान पिछले चार दिनो से यह सफाई दे रहा हो कि सईद के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं लेकिन सच्चाई तो यही है कि सईद मुंबई पर हुए आतंकी हमले का मास्टर माइन्ड है और भारत उसके खिलाफ सभी सबूत पाकिस्तान को दे भी चुका है। रविवार को डॉ. मनमोहन सिह ने जिस तरह जरदारी से मुलाकात में यह दो टूक कह दिया कि हाफिज सईद और मुंबई आतंकी हमले के अन्य साजिशकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और यह कार्रवाई ही द्विपक्षीय संम्बधों में प्रगति के आकलन का महत्वपूर्ण बिन्दु होगी,साफ हो गया कि भारत चाहता है कि केवल बातचीत ही नहीं पाकिस्तान ठोस कदम भी उठाए ताकि दोनो देशों के बीच लंबित मसलों पर भी आगे बातचीत हो सके। मनमोहन सिंह ने जरदारी से यह भी कह दिया है कि पाकिस्तान की जमीन से भारत के खिलाफ हो रही गतिविधियों को रोकना अत्यंत आवश्यक है । अब देखना तो यही है कि पाकिस्तान इस विषय पर क्या कदम उठाता है क्योंकि डॉ. सिंह से मुलाकात के बाद जरदारी ने सईद के मुद्दे पर कहा कि दोनों देशों की सरकारों को इस मामले पर आगे और बातचीत की आवश्यकता है। भारत और पाकिस्तान के गृह सचिवों की जल्द होने वाली मुलाकात में इस मसले पर चर्चा होगी। जरदारी अमन चैन की दुआ के लिए अजमेर मे ख्वाजा की चौखट पर भी पहुंचे जो उनकी भारत यात्रा का मुख्य उद्देश्य भी था लेकिन कहते हैं कि ताली एक हाथ से नहीं बजती। भारत तो हमेशा ही चाहता है कि पड़ौसी से उसके रिश्ते बेहतर रहें लेकिन आतंक के खिलाफ पाकिस्तान को वे कदम तो उठाने ही होंगे जो इन रिश्तों को सामान्य बनाने में कहीं ना कहीं आड़े आ रहे हैं।

Dark Saint Alaick 12-04-2012 11:18 AM

Re: कुतुबनुमा
 
पड़ौसी से सचेत तो रहना ही पड़ेगा

पाकिस्तान की कथनी और करनी में फर्क हमेशा ही से देखने को मिला है। हाल ही में सामने आई एक रिपोर्ट में जो चौंकाने वाला खुलासा हुआ है वह निश्चित रूप से भारत के लिए भी सावचेती के साथ आंखें खुली रहने जैसा है। अमेरिका की संस्था रिचिंग क्रीटिकल विल आॅफ द वूमेंस इंटरनेशनल लीग फार पीस एंड फ्रीडम ने दुनिया में परमाणु आधुनिकीकरण शीर्षक से एक रिपोर्ट तैयार की है। डेढ़ सौ से ज्यादा पेज वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान जिस तरह से अपने परमाणु हथियारों के जखीरे में तेज से वृद्धि कर रहा है उसके बारे में अनुमान है कि उसके पास भारत से अधिक परमाणु हथियार हैं। हाल ही पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी निजी दौरे पर भारत आए थे तो उसकी पूर्व संध्या पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी ने पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में कहा था कि पाकिस्तान कभी भी पहला परमाणु हमला भारत पर नहीं करेगा। सवाल यही उठता है कि जब पाकिस्तान की सोच यही है तो फिर वह परमाणु हथियारों का जमावड़ा बढ़ा क्यों रहा है जबकि शांतिप्रिय भारत से तो उसे ऐसा कोई खतरा होना ही नहीं चाहिए। अगर हम पिछला इतिहास उठा कर देखें तो जब-जब अमेरिका ने भारत के साथ सामरिक रिश्तों को मजबूत करने के प्रयास किए हैं, तब तब पाकिस्तान खौफ में आकर या तो सीमा पर अपनी हरकतें तेज कर देता है या अपने सैन्य जमावड़े में बढ़ोतरी के प्रयास करने लगता है। ताजा रिपोर्ट में रहा गया है कि अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान के पास 90 से 110 परमाणु हथियार हैं। यही नहीं पाकिस्तान के पास कम दूरी, मध्यम और लंबी दूरी की जमीन से जमीन पर मार करने वाली कई बैलिस्टिक मिसाइलें विकास के अलग अलग चरणों में हैं। इसके अलावा उसके पास 2750 किलोग्राम हथियार बनाने वाला उच्च संवर्द्धित यूरेनियम है। यह प्रयास साफ यही इशारा कर रहे हैं कि हमारा पड़ौसी याने पाकिस्तान भले ही अपने विकास के साधनो पर खर्च होने वाली राशि में कमी कर रहा हो लेकिन खुद को हथियारों से लैस करने व परमाणु हथियार विकसित करने पर अपने सामर्थ्य से ज्यादा सालाना करीब 2.5 अरब डालर खर्च कर रहा है। पाकिस्तान के इस कदम पर लगातार नजर रख कर भारत को सावचेत तो रहना ही पड़ेगा।

Dark Saint Alaick 14-04-2012 12:37 PM

Re: कुतुबनुमा
 
जनता के समक्ष विकल्प ही क्या है ?

मध्य प्रदेश में आठ वर्षों से सत्तारूढ़ शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार पिछले कई महीनों से जिस तरह खनन माफिया और भ्रष्ट मंत्रियों के बीच साठगांठ के आरोप से घिरी है, उससे बच निकलने का उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। खास बात तो यह है कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की ओर से राज्य सरकार के खिलाफ विधानसभा में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में उठाए गए इस सभी गंभीर मुद्दों का भी सरकार की तरफ से कोई सकारात्मक जवाब नहीं आया। ऐसे में कांग्रेस ने इसका करारा जवाब देने के लिए जो कदम उठाया है, वह निश्चित रूप से भाजपा को और संकट में डाल देगा। कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ उठाए गए सभी आरोपों की एक पुस्तक प्रकाशित की है और अब उसे जनता के सामने रखने का फैसला किया है। इस पुस्तक में राज्य में अवैध खनन व मंत्रियों के भ्रष्टाचार से लेकर राज्य में कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति और हर संवेदनशील मसलों को समाहित किया गया है। इसमें कोई हो राय नहीं कि पिछले वर्षों में राज्य में अवैध खनन नासूर की तरह से फैल गया और खास बात यह रही कि जब-जब ऐसे मामले सामने आए,उसमें राज्य के ही किसी मंत्री का नाम भी जुड़ता गया। मुख्यमंत्री चौहान लाख सफाई देते रहें कि राज्य में अवैध खनन नहीं हो रहा है, लेकिन यह सच्चाई से परे है। मुरैना, भिंड, टीकमगढ़ और पन्ना जिले तो अवैध खनन के मुख्य अड्डे बने हुए हैं और माफिया मंत्रियों की शह पर बेखौफ अपना काम ही नही कर रहा, बल्कि विरोध करने वालों को जान से भी हाथ धोना पड़ रहा है। मुरैना जिले में युवा पुलिस अधिकारी नरेंद्र कुमार की हत्या इसका ज्वलंत उदाहरण है। खुद भाजपा के लोग मानते हैं कि यह समस्या विकराल रूप ले रही ही। भाजपा के बैतूल जिला अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने स्वयं एक पत्र सरकार को लिखा है, जिसमें उन्होंने जिले में रेत के अवैध खनन का जिक्र किया है। बताया जाता है कि वहां राज्य की एक मंत्री का भाई ही अवैध खनन में लगा है। इसके बावजूद प्रश्न यह है कि क्या यह स्थिति सिर्फ इसी शासन की देन है ? जवाब है - नहीं, यह तो हमेशा से होता आया है । ... तो फिर यह हाय-तौबा क्यों ? जनाब, मुख्य विपक्षी दल इसके अलावा और क्या कर सकता है । ज़रा, पड़ोसी राज्य राजस्थान का उदाहरण लीजिए। काबिले-गौर है कि एमपी में इसी मुद्दे पर हाय-तौबा कर रही कांग्रेस ही यहां सत्ता पर काबिज है। यहां एक मंत्री ने वन-भूमि में ही अपने पुत्रों को खानें आवंटित कर दी थीं। मामला उजागर होने पर भी कुछ नहीं हुआ और काफी जद्दो-जहद के बाद जब कोर्ट ने लताड़ लगाई, तब भारी मन से मंत्री को विदा किया गया। ऐसे ही उदाहरण अन्य अनेक राज्यों में भरे पड़े हैं। लेकिन मध्य प्रदेश की स्थित अलग इसलिए है, यहां इन दोनों दलों के अलावा जनता के समक्ष कोई अन्य विकल्प ही नहीं है । वह करे, तो क्या ? राज किसी का भी हो, पिसना तो उसी को है !

Dark Saint Alaick 15-04-2012 10:09 PM

Re: कुतुबनुमा
 
रणनीति में मात खा गए माही

पहले रणनीति बनाकर और बाद में उसे फंसा कर विरोधी टीम को मात देने में माहिर माने जाने वाले महेन्द्र सिंह धोनी लगता है इस बार आईपीएल में अपनी रणनीति को अंजाम देने में कहीं ना कहीं खुद मात खा रहे हैं वरना शनिवार रात पुणे वारियर्स को जीतने का 156 रनो का अच्छा लक्ष्य देने के बाद भी वे इस मैच को अपने हाथ से केवल जाता हुए ही देखते रह गए। अंतिम ओवर में जब उन्होने यो महेश को गेंद थमाई तो उनके चेहरे पर आत्म विश्वास नहीं झलक रहा था यह तो साफ नजर आ रहा था लेकिन इसके साथ ही वे यह भी शंका छोड़ गए कि फटाफट क्रिकेट में उनके पैंतरे अब कमजोर जरूर पड़ रहे हैं वरना हार के बाद उन्हे यह कहने की नौबत ही नहीं आती कि उनकी टीम को पावरप्ले और डेथ ओवरों में गेंदबाजी में सुधार करना होगा। चेन्नई सुपर किंग्स ने पुणे में खेले गए इस मैच में पांच विकेट पर 155 रन का स्कोर खड़ा किया था जिसके जवाब में पुणे वारियर्स ने 19.2 ओवर में तीन विकेट पर 156 रन बनाकर मैच जीता और अंक तालिका में अव्वल आ बैठी। पुणे वारियर्स चार में से तीन मैच अब तक जीत चुकी है। धोनी ने मैच के बाद स्वीकार किया कि मुकाबला बराबरी का था लेकिन हम अपनी रणनीति को सही तरह से अंजाम नहीं दे पाए। अंतिम ओवर में महेश को गेंदबाजी सौंपने के बारे में रणनीति क्या थी यह पूछने पर धोनी ने कहा, मैं देखना चाहता था कि कौन अंतिम ओवर फेंकने को तैयार है। महेश से पूछा कि तो वह सकारात्मक दिखा । मैंने उसे गेंदबाजी दी। दूसरी तरफ पुणे के कप्तान सौरव गांगुली ने मैच में मिली सात विकेट से जीत का श्रेय बल्लेबाज जेस्सी राइडर व स्टीव स्मिथ को दिया । निश्चित रूप से राइडर इस श्रेय के हकदार थे। राइडर ने 56 गेंद में सात चौकों और एक छक्के की मदद से 73 रन की नाबाद पारी खेलने के अलावा स्मिथ (नाबाद 44) के साथ 6.4 ओवर में 66 रन की साझेदारी की जिससे पुणे टीम जीती। धोनी को अब सतर्क हो जाना चाहिए क्योंकि इस बार आईपीएल में सबसे कमजोर माने जाने वाली पुणे की टीम ने उन्हे मात दी है। वैसे माही हार मानने वाले हैं नहीं और उन्हे पता है कि आईपीएल का सफर अभी बहुत लंबा है।

Dark Saint Alaick 15-04-2012 10:18 PM

Re: कुतुबनुमा
 
बच्चों के भविष्य से न हो खिलवाड़

कहते हैं कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं लेकिन छत्तीसगढ़ में सरकारी अनदेखी व कोताही का असर राज्य के बस्तर अंचल के आदिवासी बच्चों पर ऐसा पड़ रहा है कि वे चाहते हुए भी स्कूल जाने से कतराते हैं और अगर चले भी जाते हैं तो उन्हें पुलिस और नक्सलियों के बीच संघर्ष के चलते नतीजों को भुगतना पड़ता है, जिसके कारण उनकी पढ़ाई ही चौपट हुए जा रही है। हाल ही यह जानकारी सार्वजनिक हुई कि छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में एक ओर पुलिस स्कूली छात्रों को नक्सलियों का मुखबिर बता रही है, वहीं दूसरी ओर नक्सली इन्ही छात्रों को पुलिस का मुखबिर बता रहे हैं। इन शंकाओं के चलते छात्रों की पढाई पर व्यापक असर पड़ रहा है। पुलिस की तरफ से आधिकारिक तौर पर कहा जा रहा है कि नक्सली छात्रों की आड़ लेकर हिंसा की घटनाएं करते हैं। नक्सली संगठनों ने पुलिस की गोपनीय सूचना एकत्र करने और उन पर निगरानी के लिए बाल संगम का गठन किया है। बाल संगम के सदस्य पुलिस की आवाजाही और उसके क्रियाकलापों पर निगरानी रखकर उसकी सूचना नक्सली आकाओं को देते हैं। कुछ छात्रों को तो हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी दिया गया है। ऐसे छात्र स्कूली गणवेश में भीड़भाड़ वाले इलाकों में जाकर हिंसा की घटनाओ को अंजाम भी देते हैं। हाल में कुछेक ऐसी घटनाएं होने के कारण पुलिस इन छात्रों को नक्सलियों का मुखबिर मान चुकी है। उधर, दूसरी तरफ नक्सली नेता छात्रों पर पुलिस का मुखबिर होने की शंका कर रहे हैं। इसके चलते हाल ही में नारायणपुर के राष्ट्रीय स्तर के एक खिलाड़ी पाकलू का अपहरण किया गया था। पाकलू नक्सलियों के चंगुल से तो भाग निकला, लेकिन आज वह उनकी हिटलिस्ट में है। इस घटना के अलावा एक गांव में 12वीं के छात्र की पुलिस मुखबिर होने की शंका में हत्या कर दी गई। ये घटनाएं साबित करती हैं कि राज्य के नक्सल प्रभावित इलाकों में बढ़ रही समस्याओं पर राज्य सरकार ध्यान नहीं दे रही। माना नक्सल हिंसा व्यापक रूप ले चुकी है, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि इससे प्रभावित हो रहे स्कूली बच्चों को भी दयनीय हालत में छोड़ दिया जाए और वे पढ़ाई जैसे मूलभूत अधिकार से ही वंचित होने लग जाएं। सरकार को इस ज्वलंत मुद्दे पर गौर करना चाहिए। साथ ही एक अपील नक्सलियों से यह कि कोई भी 'वाद' या 'विचारधारा' इतनी निकृष्ट नहीं हो सकती कि अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए मासूम बच्चों को निशाना बनाने की इजाज़त दे। उन्हें चाहिए कि यदि वे अपने उद्देश्य को पवित्र साबित करना चाहते हैं, तो उन्हें बच्चों को निर्भय करना ही होगा, अन्यथा सामान्य डकैतों और उनमें अंतर ही क्या और किसे नज़र आएगा ?

Dark Saint Alaick 16-04-2012 11:26 PM

Re: कुतुबनुमा
 
शाही जीत में रहाणे का रौबदार अंदाज

इसे कहते हैं शाही जीत। राजस्थान रॉयल्स ने रविवार रात रायल चैलेंजर्स बेंगलूरू को चिन्नास्वामी स्टेडियम में आईपीएल के अपने पांचवें मैच में जो शिकस्त दी वह वाकई में ही शाही जीत थी। पहले बल्लेबाजी और बाद में गेंदबाजी में जो कहर रॉयल्स की युवा टीम ने बरपाया उससे रायल चैलेंजर्स की टीम अंत तक भी उभर नहीं पाई। सपाट शब्दों में कहा जाए तो रॉयल्स की यह एकतरफा जीत थी। पहले बल्लेबाजी के दौरान अजिंक्य रहाणे के एक ओवर में छह चौकों के रिकार्ड प्रदर्शन के साथ नाबाद शतक की बदौलत रॉयल्स टीम ने दो विकेट पर 195 रन का विशाल स्कोर खड़ा किया । ओवैस शाह ने भी 26 गेंद पर पांच चौकों और इतने ही छक्कों की मदद से 60 रन की तूफानी पारी खेली। बाद में गेंदबाजी में सिद्वार्थ त्रिवेदी के चार विकेट के कहर ने रायल चैलेंजर्स को 19.5 ओवर में 136 रन पर ढेर कर दिया और 59 रन से जीत दर्ज की। रहाणे को उनकी पारी के लिए मैन आफ द मैच चुना गया। इससे पहले रहाणे किंग्स इलेवन पंजाब के खिलाफ भी 98 रन बना चुके हैं। निश्चित रूप से रहाणे के रूप में राजस्थान रॉयल्स के पास एक विस्फोटक बल्लेबाज है और वे अपने खास खेल से लोगों को चौंका भी रहे हैं। मैच के बाद खुद रहाणे ने कहा, यह मेरी विशेष पारी है। मैं अपने साथियों को भी उनके प्रदर्शन के लिए बधाई देना चाहूंगा। अभी हमें लंबा रास्ता तय करना है। यह केवल पांचवां मैच है और मैं अपनी इस फार्म को आगे भी बरकरार रखना चाहूंगा। रहाणे ने अपनी इस फार्म का श्रेय टीम के कप्तान राहुल द्रविड़ को दिया व कहा, मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मैं अपने आदर्श खिलाड़ी के साथ खेल रहा हूं। राहुल से मैं काफी कुछ सीख रहा हूं। वह बल्लेबाजी में मेरी काफी मदद करते हैं। याने साफ हो गया कि पूरी टीम राहुल के नेतृत्व की कायल है और पिछले पांच में से तीन मैच जीत कर अंक तालिका में शीर्ष पर आकर राहुल ने इसे साबित भी कर दिया है। जहां तक रायल चैलेंजर्स की बात है उसकी कुछ कमजोरियां सामने आई हैं और इन्ही कमजोरियों के चलते वह लगातार अपना तीसरा मैच हारी है। खुद कप्तान डेनियल विटोरी ने माना कि मध्यक्रम के बल्लेबाजों का खराब प्रदर्शन और पांचवें गेंदबाज की कमी उन्हें बुरी तरह खल रही है। गेंदबाजी में समस्या की जड़ पांचवें अच्छे गेंदबाज का अभाव है। हमें इस समस्या से जल्दी पार पाना होगा ताकि टूर्नामेंट में वापसी की जा सके। हम लक्ष्य का पीछा कर पाने में इसलिए भी नाकाम हो रहे हैं क्योंकि पहले बल्लेबाजी करते हुए टीमें बड़ा स्कोर बना रही हैं। अब देखना यह है कि राजस्थान रॉयल्स अपनी इस बेहतर जीत को किस मुकाम तक ले जाती है।

Dark Saint Alaick 16-04-2012 11:39 PM

Re: कुतुबनुमा
 
मनमोहन के वक्तव्य का मंतव्य

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने सोमवार को दिल्ली में आंतरिक सुरक्षा पर राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में संजीदगी के साथ देश को विश्वास दिलाया कि आतंकवाद, वामपंथी उग्रवाद, धार्मिक कट्टरता और जातीय हिंसा के मामले में पिछले दिनों कमी आई है, लेकिन हमें अभी और लंबा रास्ता तय करना है। निश्चित रूप से पिछले कुछ वर्षों पर नजर दौड़ाई जाए, तो यह तो कहा जा सकता है कि सरकार ने आतंकवाद और हिंसा पर नकेल कसने के जो प्रयास किए हैं, उसके बेहतरीन नतीजे सामने आए हैं। इसका ज्वलंत उदाहरण आतंकवाद से लंबे समय तक प्रभावित रहा राज्य जम्मू कश्मीर है, जहां हाल के कुछ वर्षों में न केवल देश-विदेश के पर्यटकों, बल्कि विभिन्न धार्मिक स्थलों पर पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या में आशा से भी ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। जम्मू के माता वैष्णोदेवी मंदिर में तो वर्ष 2011 में रिकॉर्ड एक करोड़ से ज्यादा धर्मावलम्बी पहुंचे। वहां पंचायत चुनाव सफल रहे और लंबे समय बाद फिर से बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग भी बड़ी संख्या में हो रही है। इससे साफ पता चलता है कि न केवल जम्मू-कश्मीर, बल्कि पूरे देश की जनता हिंसा और आतंकवाद के साये से निकलकर सामान्य जीवन जीने की इच्छा रखती है। प्रधानमंत्री के बयान से यह भी साफ हो गया कि भले ही देश में आतंकवाद और हिंसा को लेकर हालात काबू में है, लेकिन सरकार को हर वक्त चौकस और चौकन्ना रहने की जरूरत लगातार बनी हुई है। प्रधानमंत्री का यह बयान ही इस मुद्दे पर उनकी चिंता को प्रदर्शित करता है कि आंतरिक सुरक्षा हालात भले ही संतोषजनक हैं, लेकिन अभी और अधिक करने की जरूरत है । आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियां अभी बनी हुई हैं। हमें अपनी ओर से इन चुनौतियों के प्रति लगातार सतर्क रहना होगा। इन चुनौतियों से कड़ाई से निपटने की आवश्यकता है, लेकिन पूरी संवेदनशीलता के साथ। आने वाले समय में भी सरकार ने आतंकवाद की समस्या से निपटने के लिए मजबूत एवं प्रभावशाली संस्थागत तंत्र स्थापित करने के इरादे से राज्यों के साथ मिलकर काम करने की जो तैयारी की है, उससे यह संकेत मिलता है कि अब धीरे-धीरे ही सही, आतंक और हिंसा से देश को निजात मिल सकती है, लेकिन विचित्र स्थिति यह है कि देश की इन परिस्थितियों में भी राज्य क्षेत्रीयता की संकुचित मानसिकता नहीं छोड़ पा रहे हैं। आतंक के खिलाफ एक केन्द्रीय इकाई हो और वह पूरे देश पर नज़र रखे, तो इसमें राज्यों के अधिकारों में कटौती या हस्तक्षेप की बात कहां से आ जाती है, यह समझ से परे है ! वह भी उस स्थिति में जब वे किसी भी ऐसे हादसे के लिए केन्द्रीय खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा बलों की चूक को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं।

Dark Saint Alaick 21-04-2012 04:02 AM

Re: कुतुबनुमा
 
भारत ने फिर दिखा दी अपनी ताकत

ओडिसा में बालासोर के निकट समुद्र में व्हीलर द्वीप से गुरूवार सुबह परमाणु क्षमता से लैस और स्वदेशी तकनीक से विकसित पहली इंटर कॉन्टिनेटल बैलेस्टिक मिसाइल(आईसीबीएम)अग्नि पांच का सफल परीक्षण कर भारत ने एक बार फिर दुनिया को अपनी क्षमता और ताकत का अहसास तो करवा ही दिया है साथ ही उन चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल हो गया है जिनके पास आईसीबीएम है। फिलहाल इस क्लब में अमेरिका,रूस,फ्रांस,ब्रिटेन और चीन शामिल हैं। निश्चित रूप से आज हर भारतीय के लिए यह गौरव का दिन है क्योंकि हमारे वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत और समर्पण से भारत को अग्रणी देशों की पंक्ति में ला खड़ा किया है। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने इसे बड़ी सफलता बताया और कहा, यह कामयाबी देश के मिसाइल शोध और विकास कार्यक्रम में मील का पत्थर है। भारत ने हमेशा ही अपनी सामरिक क्षमता को अपने बूते केवल शांति और सुरक्षा के मकसद से ही विकसित किया है और अग्नि पांच उसी की एक कड़ी है। भारत की इस बड़ी कामयाबी की जहां सभी सर्वत्र प्रशंसा हो रही है वहीं चीन इस सफलता को पचा नहीं पा रहा है। उसका कहना है कि मिसाइल की ताकत में भारत अब भी पीछे है और अग्नि पांच के परीक्षण से भारत को कुछ भी हांसिल होने वाला नहीं है जबकि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन( डीआरडीओ ) के प्रमुख डॉ. वी. के. सारस्वत का मानना है कि मिसाइल तकनीक के लिहाज से कुछ मामलों में भारत चीन से भी आगे है। चीन भले ही तेवर दिखा रहा हो लेकिन इसके विपरीत नाटो के सेक्रेट्री जनरल एंडर्स एफ राममुसेन ने कहा कि हमें नहीं लगता कि अग्नि पांच का परीक्षण कर भारत नाटो के सहयोगी देशों के लिए कोई खतरा पैदा करेगा। अब भारत की इस कामयाबी पर प्रतिक्रियाएं तो होती रहेंगी लेकिन हमारे वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया है कि वे किसी से कम नहीं हैं। इससे पहले अग्नि के चार संस्करण के अलावा हमारे वैज्ञानिक पृथ्वी, धनुष, ब्रह्मोस, सागरिका, आकाश और प्रहार जैसी मिसाइलें भारत को दे चुके हैं और गुरूवार को अग्नि पांच का सफल परीक्षण व हिन्द महासागर में अचूक निशाना लगा कर उन्होने फिर साबित कर दिया है कि भारत ठान ले तो कुछ भी कर सकता है।

Dark Saint Alaick 21-04-2012 04:45 AM

Re: कुतुबनुमा
 
लोकतंत्र की मजबूती के लिए सीआईआई का सुझाव

लोकतंत्र की मजबूती के लिए पिछले दिनो उद्योग मंडल सीआईआई ने जो सुझाव दिया है वह निश्चित रूप से देश और चुनावी व्यवस्था के लिए बेहद कारगर साबित हो सकता है। सीआईआई ने सुझाव दिया है कि कंपनियों सहित सभी आयकरदाताओं पर 0.2 प्रतिशत का लोकतंत्र उपकर लगाया जाना चाहिए और इसी उपकर का राजनीतिक गतिविधियों और देश में चुनाव के दौरान होने वाले खर्च में उपयोग किया जाना चाहिए। इन सुझावों वाली रिपोर्ट सीआईआई ने मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी को सौंपी है और अब आगे इन पर कैसे अमल संभव है इसका आकलन चुनाव आयोग को ही करना है। अगर सुझावों पर आगे बढ़कर काम किया जाए तो तय है कि देश में चुनाव के दौरान होने वाले बेतहाशा खर्च पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी साथ ही देश के हर आयकरदाता को यह महसूस होगा कि वह केवल वोट के जरिए ही नहीं बल्कि अपनी आय के एक हिस्से को देश के ऐसे काम में लगा रहा है जिससे लोकतंत्र मजबूत होगा। इस कदम को पूर्ण रूप से पारदर्शी बनाने के बारे में भी व्यापक सुझाव दिए गए हैं और कहा गया है कि इसमें ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि करदाता सीधे उपकर की राशि का चेक अपनी पसंद के राजनीतिक दल या फिर चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त दल के खाते में डाल सके। आयकरदाता को खुद यह फैसला करने दिया जाए कि वह किस राजनीतिक दल का समर्थन करना चाहता है। अगर कोई आयकर दाता एक से ज्यादा राजनीतिक दल को उपकर की राशि देना चाहता है तो वह ऐसा कर सके इसकी व्यवस्था भी होनी चाहिए। इसके अलावा सुझावों में यह भी कहा गया है कि अगर किसी करदाता द्वारा सीधे राजनीतिक दलों को किया गया भुगतान इस उपकर से कम हो तो शेष राशि को सरकार के खाते में जमा करवा देना चाहिए। इस उपकर सुझाव में सबसे बेहतरीन सुझाव यह भी है कि इस तरह के उपकर देने वाले करदाता को आयकर में छूट का प्रवधान भी किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सीआईआई ने लोकतंत्र को मजबूत करने के सरकार के प्रयासों को सार्थक करने में मददगार रहने का यह सुझाव देकर अपनी दूरदृष्टि का जो परिचय दिया है वह स्वागत योग्य है। सरकार को इस पर निश्चित रूप से पहल करनी चाहिए।

Dark Saint Alaick 22-04-2012 12:17 PM

Re: कुतुबनुमा
 
आय बढ़ाने के चक्कर में दर्शक परेशान न हो

पिछले कई अर्से से टेलीविजन चैनल्स पर एक विज्ञापन लगातार प्रसारित हो रहा है जिसमें उपभोक्ताओं को उनके हक से रूबरू करवाया जाता है कि वे जो भी सामान खरीदें उसका बिल लें या उत्पाद पर लिखी गई कीमत से ज्यादा अदा न करें वगैरह-वगैरह। ‘जागो ग्राहक जागो’ शीर्षक वाले इस विज्ञापन में कभी-कभार कोई बड़ी हस्ती भी दिख जाती है जो ग्राहक को यह बताने का प्रयास करती है कि बाजार से जो भी सामान खरीदा जाए उसे देख-परख लिया जाए। आम तौर पर माना जाता है कि मीडिया लोगों को सही और गलत की पहचान करवाता है लेकिन इन दिनो ‘जागो ग्राहक जागो’वाला विज्ञापन प्रदर्शित करने वाले कई चैनल्स पर उपभोक्ताओं को कथित तौर पर भ्रमित करने वाले विज्ञापनों का प्रसारण भी हो रहा है। उससे दर्शक यह समझ ही नहीं पा रहे कि सही क्या है और गलत क्या। मूल रूप से ये विज्ञापन लोगों की धार्मिक भावनाओं से खेलते दिखाई देते हैं। मसलन एक चैनल पर देर रात धार्मिक यंत्रों वाला एक विज्ञापन प्रसारित होता है जिसमें दर्शकों को बताया जाता है कि उक्त यंत्र को घर के मंदिर में रखने से लक्ष्मी का आगमन होता है। दर्शक को यह भी कहा जाता है कि इस यंत्र के साथ यदि वे कुछ और धार्मिक वस्तुएं भी लेंगे तो भविष्य सुखमय होगा। ताज्जुब की बात तो यह है कि इस तरह के यंत्र की बाजार में तो कीमत बहुत ज्यादा बताई जाती है लेकिन यदि उस चैनल के दर्शक विज्ञापन में दिखाए गए नंबर पर बात कर यंत्र खरीदेंगे तो उसकी कीमत आधी ही रहेगी। अब एक आम दर्शक इस विज्ञापन को किस संदर्भ में ले, यह बताने वाला कोई नहीं है। इसी तरह एक चैनल पर इन दिनो एक धार्मिक पुस्तक को लेकर देर रात में विज्ञापन प्रसारित हो रहा है जिसमें एक नामचीन कलाकार उसका प्रचार-प्रसार करते नजर आते हैं और कहते हैं कि इस पुस्तक को घर में रखने से दुख दूर हो जाते हैं। इस विज्ञापन में कुछ ऐसे लोगों के साक्षात्कार भी दिखाए जाते हैं जो पुस्तक खरीदने के बाद कथित तौर पर लाभान्वित हुए हैं। अब अगर हम इन विज्ञापनो को इन दिनो चर्चा में रहे निर्मल बाबा के समागम वाले विज्ञापन से जोड़ कर देखें तो दोनो में कोई अंतर नहीं दिखाई देगा। लोगों की धार्मिक भावनाओं से खेलने वाले ऐसे विज्ञापन पहले तो चैनल खुद दिखाते हैं लेकिन जब ग्राहक या दर्शक ही ठगे जाते हैं तो वही चैनल उसे ऐसा मुद्दा बनाते हैं मानो आसमान टूट पड़ा। यही हाल विभिन्न चैनल्स पर दिखाए जाने वाले टेली शॉपिंग विज्ञापनो का है जहां ग्राहक को सिर्फ नंबर डायल कर अपनी मनचाही वस्तु खरीदने का आॅफर किया जाता है और यह भी बताया जाता है कि उक्त वस्तु बाजार में नहीं मिलेगी क्योंकि हमारी कोई शाखा नहीं है। ऐसे में उपभोक्ता का भ्रमित होना लाजिमी है। मीडिया को चाहिए कि वह ऐसे विज्ञापनो के प्रसारण से पहले ठोक बजा कर यह तो पता कर ही ले कि कहीं अपनी आय बढ़ाने के चक्कर में वे जो विज्ञापन दिखा रहे हैं उससे उनका नियमित दर्शक आर्थिक या मानसिक रूप से बाद में परेशान तो नहीं होगा। मीडिया को खुद आगे चल कर ऐसी नीति बनानी चाहिए जिसमें ऐसे विज्ञापनो के प्रसारण से पहले दर्शक को चेता दिया जाए कि जो हम दिखा रहे हैं वह केवल और केवल एक विज्ञापन है।

aksh 22-04-2012 05:56 PM

Re: कुतुबनुमा
 
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Originally Posted by dark saint alaick (Post 142243)
आय बढ़ाने के चक्कर में दर्शक परेशान न हो

पिछले कई अर्से से टेलीविजन चैनल्स पर एक विज्ञापन लगातार प्रसारित हो रहा है जिसमें उपभोक्ताओं को उनके हक से रूबरू करवाया जाता है कि वे जो भी सामान खरीदें उसका बिल लें या उत्पाद पर लिखी गई कीमत से ज्यादा अदा न करें वगैरह-वगैरह। ‘जागो ग्राहक जागो’ शीर्षक वाले इस विज्ञापन में कभी-कभार कोई बड़ी हस्ती भी दिख जाती है जो ग्राहक को यह बताने का प्रयास करती है कि बाजार से जो भी सामान खरीदा जाए उसे देख-परख लिया जाए। आम तौर पर माना जाता है कि मीडिया लोगों को सही और गलत की पहचान करवाता है लेकिन इन दिनो ‘जागो ग्राहक जागो’वाला विज्ञापन प्रदर्शित करने वाले कई चैनल्स पर उपभोक्ताओं को कथित तौर पर भ्रमित करने वाले विज्ञापनों का प्रसारण भी हो रहा है। उससे दर्शक यह समझ ही नहीं पा रहे कि सही क्या है और गलत क्या। मूल रूप से ये विज्ञापन लोगों की धार्मिक भावनाओं से खेलते दिखाई देते हैं। मसलन एक चैनल पर देर रात धार्मिक यंत्रों वाला एक विज्ञापन प्रसारित होता है जिसमें दर्शकों को बताया जाता है कि उक्त यंत्र को घर के मंदिर में रखने से लक्ष्मी का आगमन होता है। दर्शक को यह भी कहा जाता है कि इस यंत्र के साथ यदि वे कुछ और धार्मिक वस्तुएं भी लेंगे तो भविष्य सुखमय होगा। ताज्जुब की बात तो यह है कि इस तरह के यंत्र की बाजार में तो कीमत बहुत ज्यादा बताई जाती है लेकिन यदि उस चैनल के दर्शक विज्ञापन में दिखाए गए नंबर पर बात कर यंत्र खरीदेंगे तो उसकी कीमत आधी ही रहेगी। अब एक आम दर्शक इस विज्ञापन को किस संदर्भ में ले, यह बताने वाला कोई नहीं है। इसी तरह एक चैनल पर इन दिनो एक धार्मिक पुस्तक को लेकर देर रात में विज्ञापन प्रसारित हो रहा है जिसमें एक नामचीन कलाकार उसका प्रचार-प्रसार करते नजर आते हैं और कहते हैं कि इस पुस्तक को घर में रखने से दुख दूर हो जाते हैं। इस विज्ञापन में कुछ ऐसे लोगों के साक्षात्कार भी दिखाए जाते हैं जो पुस्तक खरीदने के बाद कथित तौर पर लाभान्वित हुए हैं। अब अगर हम इन विज्ञापनो को इन दिनो चर्चा में रहे निर्मल बाबा के समागम वाले विज्ञापन से जोड़ कर देखें तो दोनो में कोई अंतर नहीं दिखाई देगा। लोगों की धार्मिक भावनाओं से खेलने वाले ऐसे विज्ञापन पहले तो चैनल खुद दिखाते हैं लेकिन जब ग्राहक या दर्शक ही ठगे जाते हैं तो वही चैनल उसे ऐसा मुद्दा बनाते हैं मानो आसमान टूट पड़ा। यही हाल विभिन्न चैनल्स पर दिखाए जाने वाले टेली शॉपिंग विज्ञापनो का है जहां ग्राहक को सिर्फ नंबर डायल कर अपनी मनचाही वस्तु खरीदने का आॅफर किया जाता है और यह भी बताया जाता है कि उक्त वस्तु बाजार में नहीं मिलेगी क्योंकि हमारी कोई शाखा नहीं है। ऐसे में उपभोक्ता का भ्रमित होना लाजिमी है। मीडिया को चाहिए कि वह ऐसे विज्ञापनो के प्रसारण से पहले ठोक बजा कर यह तो पता कर ही ले कि कहीं अपनी आय बढ़ाने के चक्कर में वे जो विज्ञापन दिखा रहे हैं उससे उनका नियमित दर्शक आर्थिक या मानसिक रूप से बाद में परेशान तो नहीं होगा। मीडिया को खुद आगे चल कर ऐसी नीति बनानी चाहिए जिसमें ऐसे विज्ञापनो के प्रसारण से पहले दर्शक को चेता दिया जाए कि जो हम दिखा रहे हैं वह केवल और केवल एक विज्ञापन है।

बहुत ही अच्छा विषय उठाया है मित्र आपने...मन इसमें एक और दिन दहाड़े हो रही धोखाधड़ी को जोड़ना चाहता हूँ जो शायद मैंने पहले भी उठाई है...पर एक बार और सब के सामने लाना चाहता हूँ...

ये उन लोगों के लिए एक सबक है जो ये सोचते हैं कि मीडिया पर सरकारी नियंत्रण है...और संचार कम्पनियाँ भी सरकार के कड़े नियंत्रण का शिकार है...

कुछ टी वी चैनल अक्सर एक प्रोग्राम दिखा रहे होते हैं जिसमें एक सरल सा आसानी से पहचाने जाना वाला चित्र दिखाते हैं और पब्लिक से पुरजोर अपील की जा रही होती है उस चेहरे को पहचानने के लिए.

उस प्रोग्राम में जितने भी फोन आते हैं वो गलत जवाब ही देते हैं और इनाम की राशि बढती रहती है..
बिना पढ़ा लिखा मजबूर टेलीफोन उपभोक्ता ( जो अक्सर प्री पैड कस्टमर होता है...) इनाम की राशि जीतने के चक्कर में अपने सेंकडों रूपये गँवा बैठता है...और ये पैसे टेलीफोन कंपनी और टेलीविजन चैनल आपस में बंदरबांट कर लेते हैं...

क्योंकि इस प्रोग्राम में दिखाए जाने वाले चित्र इतने आसान होते हैं कि कोई भी उनको पहचान लेता है और इस तरह के प्रोग्राम का एक मात्र लक्ष्य सिर्फ भोले भाले लोगों को उल्लू बना कर पैसा कमाना होता है...और वो भी दिन दहाड़े लूट कर....

Dark Saint Alaick 23-04-2012 02:58 AM

Re: कुतुबनुमा
 
Quote:

Originally Posted by aksh (Post 142283)
बहुत ही अच्छा विषय उठाया है मित्र आपने...मन इसमें एक और दिन दहाड़े हो रही धोखाधड़ी को जोड़ना चाहता हूँ जो शायद मैंने पहले भी उठाई है...पर एक बार और सब के सामने लाना चाहता हूँ...

ये उन लोगों के लिए एक सबक है जो ये सोचते हैं कि मीडिया पर सरकारी नियंत्रण है...और संचार कम्पनियाँ भी सरकार के कड़े नियंत्रण का शिकार है...

कुछ टी वी चैनल अक्सर एक प्रोग्राम दिखा रहे होते हैं जिसमें एक सरल सा आसानी से पहचाने जाना वाला चित्र दिखाते हैं और पब्लिक से पुरजोर अपील की जा रही होती है उस चेहरे को पहचानने के लिए.

उस प्रोग्राम में जितने भी फोन आते हैं वो गलत जवाब ही देते हैं और इनाम की राशि बढती रहती है..
बिना पढ़ा लिखा मजबूर टेलीफोन उपभोक्ता ( जो अक्सर प्री पैड कस्टमर होता है...) इनाम की राशि जीतने के चक्कर में अपने सेंकडों रूपये गँवा बैठता है...और ये पैसे टेलीफोन कंपनी और टेलीविजन चैनल आपस में बंदरबांट कर लेते हैं...

क्योंकि इस प्रोग्राम में दिखाए जाने वाले चित्र इतने आसान होते हैं कि कोई भी उनको पहचान लेता है और इस तरह के प्रोग्राम का एक मात्र लक्ष्य सिर्फ भोले भाले लोगों को उल्लू बना कर पैसा कमाना होता है...और वो भी दिन दहाड़े लूट कर....

मित्र ! मेरी राय आप सभी को यह है कि आप में से कोई भी दिनांक और समय दर्शाने वाले कैमरे से उस प्रोग्राम का चित्र उतार लें और फिर नियामक संस्था तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को शिकायत करें ! इसके लिए भारतीय प्रेस परिषद् से भी शिकायत की जा सकती है ! हालांकि वह इसके लिए उपयुक्त संस्था नहीं है, तथापि मेरा मानना है कि वर्तमान अध्यक्ष जस्टिस काटजू काफी मुखर हैं और इस विषय को वे सरकार के समक्ष पुरजोर तरीके से अवश्य उठा सकते हैं ! यकीन मानें कार्यवाही अवश्य होगी !

Dark Saint Alaick 23-04-2012 03:03 AM

Re: कुतुबनुमा
 
अफसर के अपहरण से खुली दावों की पोल

छत्तीसगढ़ में माओवादियों द्वारा एक आईएस अफसर के अपहरण ने भाजपा के नेतृत्व वाली रमन सिंह सरकार के इस दावे की पोल खोल दी है कि राज्य में सब कुछ ठीक चल रहा है और सरकार नक्सली हिंसा से कड़ाई से निपट रही है। इस घटना से साबित हो गया है कि राज्य में न तो खुफिया तंत्र अपनी भूमिका को ढंग से निभा पा रहा और न पुलिस नक्सलियों के मामले में गंभीर दिख रही है वरना क्या कारण है कि माओवादी आला पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच से एक आईएएस अफसर को राइफल और बंदूक की नोक पर उठा ले जाने की हिमाकत कर गए और सभी अफसर या तो छुप गए या केवल घटना को देखते भर रहे। यह हालत तो तब है, जब केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय ने खुफिया सूचना के बाद तीन-तीन पत्र भेज कर राज्य सरकार को आगाह किया था कि माओवादी ओडिसा में विधायक के अपहरण के बाद छत्तीसगढ़, खासकर राज्य के बस्तर अंचल में कोई बड़ी वारदात कर सकते हैं, लेकिन राज्य के खुफिया विभाग ने केन्द्र की सूचना की अनदेखी कर दी और उसी का नतीजा था कि माओवादियों ने शुक्रवार को संसदीय सचिव के काफिले पर हमला किया और शनिवार को बस्तर जिले में कलेक्टर को ही अगवा कर ले गए। इसमें राज्य सरकार की कोताही खुलकर सामने आ गई है। कुछ दिनों पहले सरकार ने वाहवाही लूटने के इरादे से ग्राम सुराज अभियान शुरू किया था, तब मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भी आगाह किया था कि सरकार को अभियान रूपी यह नाटक बंद कर वरिष्ठ अधिकारियों की सुरक्षा पर गौर करना चाहिए, लेकिन रमन सिंह सरकार ने इसे भी नजरअंदाज कर दिया और कलेक्टर के अपहरण के बावजूद हठधर्मिता दिखाते हुए घोषणा की कि ग्राम सुराज अभियान जारी रहेगा। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह घटना राज्य सरकार की ढिलाई का नतीजा है। अब भी समय रहते सरकार को चेत जाना चाहिए और माओवादियों के बाहुल्य वाले इलाकों में लोगों की दयनीय दशा को संभालने के ठोस कदम उठाने चाहिए। राज्य सरकार का यह तर्क एकदम बेमानी है कि माओवादी या नक्सली हिंसा के खिलाफ केन्द्र द्वारा मदद से ही कुछ हो सकता है। आखिर राज्य के लोगों की सुरक्षा का जिम्मा तो राज्य सरकार पर ही है।

Dark Saint Alaick 28-04-2012 01:09 AM

Re: कुतुबनुमा
 
अंतरिक्ष कार्यक्रम को मिली बड़ी कामयाबी

वैज्ञानिकों ने एक और बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए पीएसएलवी- सी 19 के माध्यम से रीसेट- एक का गुरूवार को प्रक्षेपण कर उसे अंतरिक्ष में स्थापित कर देश का मस्तक गौरव से ऊंचा कर दिया। करीब एक सप्ताह पहले ही अग्नि - 5 का सफल परीक्षण कर देश के वैज्ञानिक अपनी क्षमता का लोहा पहले ही मनवा चुके हैं। इस उपग्रह के प्रक्षेपण के साथ ही भारत अमेरिका, कनाडा, जापान व यूरोपीय संगठन के उस समूह में शामिल हो गया है जिनके पास मौसम की सटीक जानकारी हासिल करने की अत्याधुनिक तकनीक उपलब्ध है। 1858 किलोग्राम वजनी माइक्रोवेव रिमोट सेंसिंग उपग्रह रीसेट- एक के प्रक्षेपण के साथ ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने जटिल आप्टिकल इमेजिंग तकनीक के क्षेत्र में भी महारत हासिल कर ली है। रीसेट- एक की खास बात यह है कि इस पर सिंथेटिक अपरचर राडार लगा है जो किसी भी मौसम,दिन और रात तथा बादलों के छाए रहने की स्थिति में भी सटीक जानकारी देने में सक्षम है। पूरी तरह स्वदेश में निर्मित इस उपग्रह को 2008 में मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों के बाद प्राथमिकता के आधार पर तैयार किया गया है। इससे देश की दूर संवेदी क्षमता में इजाफा तो होगा ही साथ ही कृषि तथा आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में भी मदद मिलेगी। भारत कृषि प्रधान देश है। यहां अधिकतर फसलें आज भी मानसून पर निर्भर रहती हैं। देश को अब तक भारत कनाडाई उपग्रह की तस्वीरों पर निर्भर रहना था क्योंकि मौजूदा घरेलू दूर संवेदी उपग्रह बादलों की स्थिति में धरती की तस्वीरें नहीं ले सकते थे । ऐसे में मौसम की सटीक जानकारी सही समय पर नहीं मिल पाती थी और किसान अच्छी फसल के बावजूद कई बार अपनी फसल को यकायक खराब होने वाले मौसम से बचा नहीं सकते थे। अब हमारे देश के वैज्ञानिकों ने जो कर दिखाया है वह निश्चित रूप से कृषि क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा। यह उपग्रह जब मिट्टी की नमी, ग्लेशियरों की स्थिति और अन्य विवरणों जैसी महत्वपूर्ण जानकारी देने लगेगा तो तय है इससे देश को बड़ा फायदा होगा और इस फायदे को कामयाबी की सीढ़ी बनाकर भारत के लिए आर्थिक क्षेत्र में काफी आगे बढ़ने के अवसर और बढ़ेंगे। इसके लिए हमारे देश के वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं।

Dark Saint Alaick 29-04-2012 10:50 PM

Re: कुतुबनुमा
 
सोशल मीडिया को अब गंभीरता दिखानी होगी

सभी जानते हैं कि हमारे लोकतांत्रिक देश भारत में सभी को अपने विचार व्यक्त करने की पूरी आजादी है। संविधान में भी इसका उल्लेख है और अभिव्यक्ति की आजादी को सर्वोपरि माना गया है, लेकिन इस आजादी के यह मायने तो नहीं है कि हम इसका सदुपयोग करने की बजाय दुरूपयोग करने लग जाएं। यह ध्यान तो रखना ही होगा कि इस आजादी के सहारे हम कहीं उच्छृंखल न हो जाएं। आम आदमी के साथ- साथ यह बात मीडिया पर भी लागू होती है कि वह अभिव्यक्ति की आजादी की अपनी जिम्मेदारियों के दायरे में रख कर ही काम करे, लेकिन पिछले दिनों जो सामने आया, उससे यह साफ हो गया कि मीडिया, खास कर सोशल मीडिया ने इस सहूलियत का बेजा फायदा उठाया और अदालती आदेश तक की अनदेखी कर डाली। सोशल मीडिया में लोगों, संगठनों, धर्मों और समुदायों को बदनाम करने के लिए इसका दुरुपयोग करने का नया चलन शुरू हो गया है। जाहिर है जब इस तरह की घटनाएं बढ़ेंगी, तो लोगों का भरोसा धीरे-धीरे मीडिया पर से भी उठने लगेगा, जबकि देश में मीडिया को जानकारी का सबसे सशक्त माध्यम माना जाता है। यही कारण था कि काटजू को केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी को पत्र लिख कर यह आग्रह करने का बहाना मिल गया कि सरकार को मीडिया की आजादी को जिम्मेदारियों से जोड़ने तथा सोशल मीडिया का दुरुपयोग लोगों और संगठनों को बदनाम करने से रोकने के तरीके तलाशने के लिहाज से विशेषज्ञों का एक दल बनाना चाहिए। यह वजह एक सीडी के सोशल मीडिया पर प्रसार के कारण पैदा हुई, जिसमें सीडी बनाने वाले तक ने यह स्वीकार किया कि उच्चतम न्यायालय के एक प्रतिष्ठित वरिष्ठ वकील और संसद सदस्य को बदनाम करने तथा एक केंद्रीय मंत्री को धमकाने के लिए इसमें छेड़छाड़ की गई है। ऐसे में सोशल मीडिया पर नजर रखने के लिहाज से कानून बनाने की वकालत करने वाले काटजू के इस तर्क में दम नज़र आने लगती है कि जब तक सोशल मीडिया पर कुछ लगाम नहीं कसी जाती, तब तक भारत में किसी की प्रतिष्ठा सुरक्षित नहीं रहेगी। निश्चित रूप से निरन्तर बढ़ती जा रही इस समस्या से निपटने के रास्ते तलाशने के लिए सरकार को विधि एवं तकनीक विशेषज्ञों की एक टीम तो बनानी ही चाहिए और अगर यह लगता है कि इस पर रोक अनिवार्य है, तो सरकार को इस तरह की आपत्तिजनक सामग्री को सोशल मीडिया की साईट से हटाने के लिए उचित कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। सोशल मीडिया को भी खुद इसमें आगे आकर पहल करनी चाहिए और जो सामग्री वह प्रसारित करने जा रहा है, पहले उसके गुण-दोष को उसे खुद पहचानना होगा। साथ ही यह भी ध्यान में रखना होगा कि कहीं वह ऐसी कोई सामग्री अपने उपभोक्ता को नहीं परोस दे, जिसके चलते किसी के निजी जीवन पर ही आंच आ जाए। सोशल मीडिया को इस विषय पर अपने मकसद भी सार्वजनिक करने होंगे, ताकि लोगों में किसी तरह का भ्रम न फैले और वह उसका उपयोग केवल जानकारी हासिल करने तक ही सीमित कर सकें। उम्मीद की जानी चाहिए कि सोशल मीडिया गंभीरता से इस मुद्दे पर विचार करेगा।

Dark Saint Alaick 05-05-2012 08:41 PM

Re: कुतुबनुमा
 
सामने आई नीतीश की दोहरी चाल

अब इसे गिरगिट की तरह से रंग बदलना कहें या सोंची समझी सियासी चाल कि कल तक गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को फूटी आंख नहीं सुहाते थे, उन्हीं मोदी से नीतीश मेलमिलाप की पींगें लड़ाते दिख रहे हैं। शनिवार को राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई एनसीटीसी पर सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में जिस तरह से नीतीश कुमार ने कैमरों की मौजूदगी में न सिर्फ मोदी से हाथ मिलाया, बल्कि काफी देर तक उनसे बतियाते भी रहे तो यह एकदम साफ हो गया कि दोनों ही नेता अपने-अपने मकसद को कहीं न कहीं पूरा करने के लिए अपने पुराने गिल-शिकवे दूर कर राजनीति की नई गोटियां फिट करने में लगे हैं। हालांकि इसे दूर के ढोल सुहावने वाली कहावत के रूप में ही लिया जा सकता है कि दोनों को आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री पद की दावेदारी की संभावनाएं नजर आ रही हैं। राजनीतिक क्षेत्र में वक्त के साथ ऊंट किस करवट बैठेगा, यह भविष्यवाणी तो कम से कम कोई भी नहीं कर सकता, लेकिन जिस तरह से अब तक धर्मनिरपेक्षता की चादर ओढ़ कर घूम रहे नीतीश कुमार ने सार्वजनिक तौर पर मोदी से मिलकर उस चादर को हटा फैंका हैं, उससे नीतीश की दोहरी चाल का तो पर्दाफाश हो ही गया है, मोदी को बार-बार सांप्रदायिक कहने वाले नीतीश इस मेलमिलाप के बाद बेनकाब भी हो गए। यह वही नीतीश हैं, जो मोदी के साथ फोटो खिंचवाने से भी परहेज करते रहे हैं और जब बिहार में विधानसभा चुनाव हुए थे, तो उन्होंने मोदी की सांप्रदायिक छवि के चलते ही उन्हें राज्य में चुनाव प्रचार से अलग रखा था। नीतीश यह भलीभांति जानते हैं कि आने वाले लोकसभा चुनाव में यदि उन्हें केन्द्र की राजनीति की तरफ रुख करना है, तो उन सिद्धान्तों को तो ताक पर रखना ही होगा, जिन्हें लेकर वे अब तक स्वच्छ राजनीति का ढिंढोरा पीटते रहे हैं। हो सकता है कि उन्हें उन लोगों का भी साथ लेना पड़ जाए, जिन्हें वे अब तक देखना भी पसंद नहीं करते थे। जो भी हो नीतीश ने सार्वजनिक तौर पर मोदी से नजदीकियां दिखा कर यह साबित तो कर ही दिया कि अपने राजनीतिक हित के लिए वे किसी भी सीमा तक जा सकते हैं, फिर भले ही उन्हें अपनी विचारधारा से ही समझौता क्यों न करना पड़े।

Dark Saint Alaick 06-05-2012 08:28 PM

Re: कुतुबनुमा
 
इस्तीफों की महत्वाकांक्षाएं

राजस्थान भाजपा में भूचाल आया हुआ है। महत्वाकांक्षाएं आपस में टकरा रही हैं। ढाई-तीन साल पहले की राजनीति एक बार फिर शुरू हो गई है। ऐसे में राजनीति के जानकारों को कर्नाटक के पुराने मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा की शतरंज की चालें याद आ रही हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता गुलाबचंद कटारिया की मेवाड़ में प्रस्तावित 28 दिन की जनजागरण यात्रा पर फैसला लेने के लिए शनिवार शाम बुलाई गई पार्टी की कोर कमेटी की बैठक में अपनी दाल गलती नहीं देखकर वसुंधरा राजे ने जिस तरह बिफरते हुए पार्टी से इस्तीफे की धमकी दी, उससे साफ जाहिर हो गया कि वे अपने सामने प्रदेश में किसी का राजनीतिक कद बढ़ता हुआ नहीं देखना चाहती। हालांकि कटारिया ने अपनी यात्रा वापस लेने की घोषणा कर दी, लेकिन इसके बाद जो भाजपा में जो राजनीतिक खेल शुरू हुआ है, उसके कई मायने हैं, जिनके दूरगामी असर दिखाई देंगे। रविवार को भाजपा विधायकों ने इस्तीफों का जो खेल शुरू किया, वह साफतौर पर आलाकमान पर दबाव बनाने की शतरंजी बिसात है। यह बात राजे के नजदीकी भवानी सिंह राजावत के मीडिया को दिए गए बयानों से भी साफ हो गई कि भाजपा विधायकों ने आगामी विधानसभा चुनाव में राजे कोे मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की मांग को लेकर अपने इस्तीफे नेता प्रतिपक्ष को सौपे हैं। इसका मतलब राजे गुट को इस बात को खतरा है कि डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में आलाकमान किसी अन्य नेता को मुख्यमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट कर सकता है। राजे गुट के मन में डर समाया हुआ है। उन्हें कटारिया से भी इसी बात का खतरा है, इसीलिए उन्होंने पिछले दिनों किरण माहेश्वरी के जरिए राजसमंद में हुई पार्टी की बैठक में कटारिया की मौजूदगी में यात्रा के विरोध का डंका बजाया। मामला दिल्ली में आलाकमान के पास पहुंचा तो आलाकमान ने कटारिया की यात्रा की गेंद प्रदेश भाजपा के पाले में डालते हुए 5 मई को कोर कमेटी की बैठक बुलाकर फैसला करने के निर्देश दे दिए। भाजपा के एक धड़े को पहले से ही इस बात का अहसास था कि कोर कमेटी की बैठक शांतिपूर्ण तरीके से नहीं होगी, इसमें कोई न कोई अनहोनी जरूर होगी। वसुंधरा राजे ने शनिवार रात जो बगावती तेवर दिखाए, वह कोई नई बात नहीं है। वे पहले भी येदियुरप्पा की तरह आलाकमान को आंखें दिखा चुकी हैं। ढाई-तीन साल पहले वसुंधरा राजे को आलाकमान ने जब नेता प्रतिपक्ष के पद से हटा दिया था, तब भी राजे ने पार्टी को अलग-थलग कर इसी तरह के बगावती तेवर दिखाए थे। बाद में भाजपा के कमजोर आलाकमान ने राजे को फिर से नेता प्रतिपक्ष के पद पर बैठा दिया। किसी राजनीतिक दल में ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी नेता को पद से हटाकर कुछ दिन बाद वापस उसी पद पर बैठा दिया गया। बहरहाल, वसुंधरा राजे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते अब फिर से दबाव की राजनीति कर रही हैं। इससे उन्हें क्या फायदा और नुकसान होगा, यह कहना अभी मुश्किल है, लेकिन इससे यह बात साफ नजर आ रही है कि पार्टी नेताओं में आपसी कलह कम होने के बजाय और बढ़ेगी और इसका नुकसान भाजपा को ही उठाना पड़ेगा।

ndhebar 06-05-2012 09:03 PM

Re: कुतुबनुमा
 
भाजपा के भीतर की कलह ही पार्टी को पीछे धकेल रही है

abhisays 07-05-2012 06:30 AM

Re: कुतुबनुमा
 
Quote:

Originally Posted by ndhebar (Post 146245)
भाजपा के भीतर की कलह ही पार्टी को पीछे धकेल रही है


सही बात है, अगर ऐसा ही चलता रहा तो यह लोग फिर २०१४ में भी हार जायेंगे..

Dark Saint Alaick 14-05-2012 06:23 AM

Re: कुतुबनुमा
 
पाक को बेनकाब करने वाला विधेयक

आतंकवाद को शह और प्रश्रय देने के आरोप अक्सर पाकिस्तान पर लगते रहते हैं। भारत तो आरोप ही नहीं दस्तावेजी सबूतों के आधार पर यह बता चुका है कि भारत में मुंबई हमले जैसे कारनामों के तार सीधे-सीधे पाकिस्तान से जुड़े हैं लेकिन पाकिस्तान हमेशा ही उससे मुकरता रहा है। ऐसे में अमेरिकी संसद में पेश किए गए एक विधेयक से यह शक और पुख्ता हो जाता है कि पाकिस्तान कहीं ना कहीं इस तरह की गतिविधियों को अपना मूक समर्थन देता रहा है। जो विधेयक पेश किया गया है उसमें इस बात का प्रावधान किया गया है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की करतूत से जब भी कोई अमेरिकी मारा जाएगा तो पाकिस्तान को मिलने वाली अमेरिकी मदद में से पांच करोड़ डॉलर की राशि की कटौती कर ली जाएगी। विधेयक में पाकिस्तान पर यह आरोप भी लगाया गया है कि उसने दशकों से अपने यहां आतंकवादी संगठनों को भारत और अफगानिस्तान में हमले करने की खुली छूट दे रखी है। सांसद डाना रोहराबाशेर की ओर से पेश ‘पाकिस्तान आतंकवाद जवाबदेह कानून 2012’ विधेयक के प्रावधानों के तहत रक्षा मंत्रालय को पाकिस्तान सरकार के कुछ तत्वों की ओर से समर्थन प्राप्त और देश में तथा अफगानिस्तान में बेधड़क अपनी गतिविधियां चलाने वाले आतंकवादी संगठनों द्वारा मारे गए सभी अमेरिकियों की सूची तैयार करनी होगी। मारे गए हर अमेरिकी के बदले पाकिस्तान को अमेरिका की ओर से दी जा रही आर्थिक मदद में से पांच करोड़ डॉलर की राशि की कटौती की जाएगी। यह राशि पीड़ितों के परिजनों को दी जाएगी। विधेयक में कहा है कि पाकिस्तान आईएसआई के जरिए आतंकवादी संगठनों का भारत के खिलाफ कश्मीर में भी इस्तेमाल करता है। निश्चित रूप से यह विधेयक गहन अध्ययन और जांच के बाद ही अमेरिकी संसद में रखा गया होगा जो यह साबित करता है कि पाकिस्तान ना तो पहले और ना ही अब तक अपनी हरकतों से बाज आ रहा है। संभवतया यह पहला मौका होगा जब अमेरिका की संसद में किसी देश के खिलाफ इस तरह की व्यवस्था वाला ऐसा विधेयक पेश किया गया है। विधेयक को मंजूरी मिलगी या नहीं यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इससे पाकिस्तान एक बार फिर दुनिया के सामने बेनकाब तो हो ही गया है।


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