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internetpremi 11-11-2013 02:21 AM

Re: मुहावरों की कहानी
 
Have copied all these to my Kindle reader.
Thanks.
If possible please continue
Regards
GV

rajnish manga 17-11-2013 06:56 PM

Re: मुहावरों की कहानी
 
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Originally Posted by internetpremi (Post 413833)
have copied all these to my kindle reader.
thanks.
if possible please continue
regards
gv

आपका बहुत बहुत धन्यवाद, मित्र. अन्य मुहावरे जल्द प्रस्तुत करूंगा.

rajnish manga 30-11-2013 06:49 PM

Re: मुहावरों की कहानी
 
बीरबल की खिचड़ी

एक दफा शहंशाह अकबर ने घोषणा की कि यदि कोई व्यक्ति सर्दी के मौसम में नर्मदा नदी के ठंडे पानी में घुटनों तक डूबा रह कर सारी रात गुजार देगा उसे भारी भरकम तोहफ़े से पुरस्कृत किया जाएगा.

एक गरीब धोबी ने अपनी गरीबी दूर करने की खातिर हिम्मत की और सारी रात नदी में घुटने पानी में ठिठुरते बिताई और जहाँपनाह से अपना ईनाम लेने पहुँचा.

बादशाह अकबर ने उससे पूछा तुम कैसे सारी रात बिना सोए, खड़े-खड़े ही नदी में रात बिताए? तुम्हारे पास क्या सबूत है?

धोबी ने उत्तर दिया जहाँपनाह, मैं सारी रात नदी छोर के महल के कमरे में जल रहे दीपक को देखता रहा और इस तरह जागते हुए सारी रात नदी के शीतल जल में गुजारी.


तो, इसका मतलब यह हुआ कि तुम महल के दीए की गरमी लेकर सारी रात पानी में खड़े रहे और ईनाम चाहते हो. सिपाहियों इसे जेल में बन्द कर दो - बादशाह ने क्रोधित होकर कहा.

बीरबल भी दरबार में था. उसे यह देख बुरा लगा कि बादशाह नाहक ही उस गरीब पर जुल्म कर रहे हैं. बीरबल दूसरे दिन दरबार में हाजिर नहीं हुआ, जबकि उस दिन दरबार की एक आवश्यक बैठक थी. बादशाह ने एक खादिम को बीरबल को बुलाने भेजा. खादिम ने लौटकर जवाब दिया बीरबल खिचड़ी पका रहे हैं और वह खिचड़ी पकते ही उसे खाकर आएँगे.

जब बीरबल बहुत देर बाद भी नहीं आए तो बादशाह को बीरबल की चाल में कुछ सन्देह नजर आया. वे खुद तफतीश करने पहुँचे. बादशाह ने देखा कि एक बहुत लंबे से डंडे पर एक घड़ा बाँध कर उसे बहुत ऊँचा लटका दिया गया है और नीचे जरा सा आग जल रहा है. पास में बीरबल आराम से खटिए पर लेटे हुए हैं.

बादशाह ने तमककर पूछा यह क्या तमाशा है? क्या ऐसी भी खिचड़ी पकती है?

बीरबल ने कहा - माफ करें, जहाँपनाह, जरूर पकेगी. वैसी ही पकेगी जैसी कि धोबी को महल के दीये की गरमी मिली थी.


बादशाह को बात समझ में आ गई. उन्होंने बीरबल को गले लगाया और धोबी को रिहा करने और उसे ईनाम देने का हुक्म दिया.
**


rajnish manga 02-12-2013 12:40 PM

Re: मुहावरों की कहानी
 
जैसे को तैसा

एक राजा के पास एक नौकर था,यूँ तो राजा के पास बहुत सारे नौकर थे जिनका काम सिर्फ महल की देख-रेख और साफ़ सफाई करना था.

तो एक बार राजा का एक नौकर उनके शयन कक्ष की सफाई कर रहा था
,सफाई करते करते उसने राजा के पलंग को छूकर देखा तो उसे बहुत ही मुलायम लगा,उसे थोड़ी इच्छा हुयी कि उस बिस्तर पर जरा लेट कर देखा जाए कि कैसा आनंद आता है,उसने कक्ष के चरों और देख कर इत्मीनान कर लिया कि कोई देख तो नहीं रहा.

जब वह आश्वस्त हो गया कि कोई उसे देख नहीं रहा है तो वह थोड़ी देर के लिए बिस्तर पर लेट गया.


वह नौकर काम कर के थका-हारा था
,अब विडम्बना देखिये कि बेचारा जैसे ही बिस्तर पर लेटा,उसकी आँख लग गयी,और थोड़ी देर के लिए वह उसी बिस्तर पर सो गया..उसके सोये अभी मुश्किल से पांच मिनट बीते होंगे कि तभी कक्ष के सामने से गुजरते प्रहरी की निगाह उस सोये हुए नौकर पर पड़ी.

नौकर को राजा के बिस्तर पर सोते देख प्रहरी की त्यौरियां चढ़ गयी
,उसने तुरंत अन्य प्रहरियों को आवाज लगायी. सोते हुए नौकर को लात मार कर जगाया और हथकड़ी लगाकर रस्सी से जकड़ दिया.

नौकर को पकड़ लेने के पश्चात उसे राजा के दरबार तक खींच के लाया गया.


राजा को सारी वस्तुस्थिति बताई गयी. उस नौकर की हिमाकत को सुनकर राजा की भवें तन गयी
,यह घोर अपराध!! एक नौकर को यह भी परवाह न रही कि वह राजा के बिस्तर पर सो गया.

राजा ने फ़ौरन आदेश दिया
‘नौकर को उसकी करनी का फल मिलना ही चाहिए, तुरत इस नौकर को 50 कोड़े भरी सभा में लगाये जाएँ.’
नौकर को बीच सभा में खड़ा किया गया, और कोड़े लगने शुरू हो गए.


लेकिन हर कोड़ा लगने के बाद नौकर हँसने लगता था. जब 10-12 कोड़े लग चुके थे
, तब भी नौकर हँसता ही जा रहा था, राजा को यह देखकर अचरच हुआ.

राजा ने कहा
‘ठहरो!!’

सुनते ही कोड़े लगाने वाले रुक गए
, और चुपचाप खड़े हो गए.

राजा ने नौकर से पूछा
‘यह बताओ कि कोड़े लगने पर तो तुम्हे दर्द होना चाहिए, लेकिन फिर भी तुम हंस क्यूँ रहे हो?’
नौकर ने कहा ‘हुजूर, मैं यूँ ही हंस नहीं रहा,दर्द तो मुझे खूब हो रहा है,लेकिन मैं यह सोचकर हँस रहा हूँ कि थोड़ी देर के लिए मैं आपके बिस्तर पर सो गया तो मुझे 50 कोड़े खाने पड़ रहे हैं, हुजूर तो रोज इस बिस्तर पर सोते हैं, तो उन्हें उपरवाले के दरबार में कितने कोड़े लगाये जायेंगे.’
इतना सुनना था कि राजा अनुत्तरित रह गए, उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने तुरत उस नौकर को आजाद करने का हुक्म दे दिया.

rajnish manga 02-12-2013 01:08 PM

Re: मुहावरों की कहानी
 
जैसे को तैसा (दो)

एक लघु कथा : जैसे को तैसा

एक गड़रिया एक बनिए को मक्खन बेचता था। एक दिन बनिए को शक हुआ कि गड़रिया ठीक मात्रा में मक्खन नहीं दे रहा है। उसने अपने तराजू में तोलकर देखा तो मक्खन का वजन कम निकला। वह आग बबूला हुआ, राजा के पास गया। राजा ने गड़रिए को बुलवाकर उससे पूछा, क्यों, तुम मक्खन कम तोलते हो?

हाथ जोड़कर गड़रिए ने नम्रतापूर्वक कहा, हुजूर, मैं रोज एक किलो मक्खन ही बनिए को दे जाता हूं।

नहीं हुजूर, मैंने तोलकर देखा है, पूरे दो सौ ग्राम कम निकले, बनिए ने कहा।

राजा ने गड़रिए से पूछा, तुम्हें क्या कहना है
?

गड़रिया बोला, हुजूर, मैं ठहरा अनपढ़ गवार, तौलना-वोलना मुझे कहां आता है, मेरे पास एक पुराना तराजू है, पर उसके बाट कहीं खो गए हैं। मैं इसी बनिए से रोज एक किलो चावल ले जाता हूं। उसी को बाट के रूप में इस्तेमाल करके मक्खन तोलता हूं।

बनिए को मुंह छिपाने की जगह नहीं मिल रही थी।

(साभार: बालसुब्रमण्यम)

rajnish manga 02-12-2013 01:12 PM

Re: मुहावरों की कहानी
 
जैसे को तैसा (तीन)

रमेश और सुरेश दो भाई थे। रमेश बहुत धूर्त था, जबकि सुरेश बहुत सीधा था। पिता की मृत्यु के बाद उन्होने घर के सामान का बंटवारा करने की सोची। सामान मे एक भैंस, एक कम्बल, एक आम का पेड़ और एक 'आधा कच्चा, आधा पक्का' घर था। रमेश ने कहा मै बड़ा हूँ, इसीलिए मैं बँटवारा करता हूँ। सुरेश ने हामी भर दी। रमेश बोला, "भैंस का आगे का हिस्सा तेरा और पीछे का मेरा, कम्बल दिन में तेरा और रात में मेरा, पेड़ का नीचे का भाग तेरा और ऊपर का मेरा, छप्पर वाला घर तेरा और पक्के वाला मेरा।" सुरेश ने अपने सीधेपन मे भाई की सारी बात मान ली। रमेश के तो मजे आ गये। भैंस को चारा सुरेश खिलाता और दूध रमेश निकालता, दिन मे कम्बल यूँ ही पड़ा रहता और रात मे रमेश मजे से ओढ़कर सोता, सुरेश पेड़ में पानी देता और फल रमेश खाता, रात को रमेश कमरे मे सोता और सुरेश बेचारा मच्छरों व ठंड की वजह से रात को सो नहीं पाता। रमेश फल और दूध बेचकर पैसे कमा रहा था और आराम का जीवन बिता रहा था, जबकि सुरेश बेचारा दिन भर काम करता और रात को उसे चैन की नींद भी नसीब नही होती थी। इसी तरह दिन बीत रहे थे, बेचारा सुरेश सूखकर कॉंटा हो गया था।

एक दिन सुरेश के बचपन का दोस्त शहर से गॉव आया, सुरेश को इस तरह देखकर उसे बहुत दुख हुआ। जब उसने पूछा तो सुरेश ने सारी बात बताई। सुनकर उसके दोस्त ने उसके कान मे कुछ कहा और बोला ऐसे करने से उसकी सारी परेशानियां दूर हो जाएगी। अगले दिन सुबह ही जैसे ही रमेश दूध निकालने बैठा सुरेश ने भैंस के मुँह पर डंडे मारने शुरू कर दिये, जब रमेश ने रोकना चाहा तो वह बोला कि अगला हिस्सा उसका है, वह जो चाहे सो करे। उस दिन भैंस ने दूध नही दिया। रात को जब रमेश ने कम्बल ओढ़ना चाहा तो वह पूरा भीगा हुआ था, पूछने पर सुरेश ने कहा कि दिन मे कम्बल उसका है वह जो चाहे सो करे। रमेश दांत पीसता हुआ सोने चला गया, पर तभी उसने देखा कि उसके कमरे के बराबर वाले छप्पर मे सुरेश ने आग लगा दी है और पूछने पर उसने वही जबाब दिया। अब तक रमेश समझ चुका था कि सुरेश को उसकी चालाकी पता चल गयी है सो उसने हाथ जोड़कर सुरेश से माफी मांगी और उसका हिस्सा ईमानदारी से देने का वायदा किया।

(साभार: सविता अग्रवाल)

rajnish manga 02-12-2013 01:48 PM

Re: मुहावरों की कहानी
 
जैसे को तैसा (चार)

एक जंगल में एक लोमड़ी और एक सारस में दोस्ती हो जाती हैं. एक बार लोमड़ी सारस को दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित करती है, लेकिन वह एक कम ऊँचाई वाली तश्तरी में भोजन देती है जिसे सारस खा नही सकता. सारस उस अपमान का बदला लेने का फैसला करता है. वह अगले दिन लोमड़ी को दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित करता है और एक उंचे गर्दन के बर्तन में भोजन रखता है. लोमड़ी से कुछ खाया नहीं जाता और वह भूखी ही चली जाती है और इस प्रकार सारस का बदला पूरा होता है.

(पंचतंत्र की कथा के आधार पर)

rajnish manga 07-12-2013 09:54 AM

Re: मुहावरों की कहानी
 
चोर चोरी से जाये हेरा फेरी से न जाये

एक जंगल की राह से एक जौहरी गुजर रहा था । देखा उसने राह में । एक कुम्हार अपने गधे के गले में एक बड़ा हीरा बांधकर चला आ रहा है । चकित हुआ । ये देखकर कि ये कितना मूर्ख है । क्या इसे पता नहीं है कि ये लाखों का हीरा है । और गधे के गले में सजाने के लिए बाँध रखा है। पूछा उसने कुम्हार से । सुनो ये पत्थर जो तुम गधे के गले में बांधे हो । इसके कितने पैसे लोगे ? कुम्हार ने कहा - महाराज ! इसके क्या दाम । पर चलो । आप इसके आठ आने दे दो । हमनें तो ऐसे ही बाँध दिया था कि गधे का गला सूना न लगे । बच्चों के लिए आठ आने की मिठाई गधे की ओर से ल जाएँगे । बच्चे भी खुश हो जायेंगे । और शायद गधा भी कि उसके गले का बोझ कम हो गया है ।पर जौहरी तो जौहरी ही था । पक्का बनिया । उसे लोभ पकड़ गया । उसने कहा आठ आने तो थोड़े ज्यादा है । तू इसके चार आने ले ले ।

कुम्हार भी थोड़ा झक्की था । वह ज़िद पकड़ गया कि नहीं देने हो तो आठ आने दो । नहीं देने है । तो कम से कम छह आने तो दे ही दो । नहीं तो हम नहीं बेचेंगे । जौहरी ने कहा - पत्थर ही तो है ।चार आने कोई कम तो नहीं । उसने सोचा थोड़ी दूर चलने पर आवाज दे देगा । आगे चला गया । लेकिन आधा फरलांग चलने के बाद भी कुम्हार ने उसे आवाज न दी । तब उसे लगा । बात बिगड़ गई । नाहक छोड़ा । छह आने में ही ले लेता । तो ठीक था । जौहरी वापस लौटकर आया । लेकिन तब तक बाजी हाथ से जा चुकी थी । गधा खड़ा आराम कर रहा था । और कुम्हार अपने काम में लगा था ।

जौहरी ने पूछा - क्या हुआ ? पत्थर कहां है ? कुम्हार ने हंसते हुए कहा - महाराज एक रूपया मिला है । उस पत्थर का । पूरा आठ आने का फायदा हुआ है । आपको छह आने में बेच देता । तो कितना घाटा होता । और अपने काम में लग गया ।

पर जौहरी के तो माथे पर पसीना आ गया । उसका तो दिल बैठा जा रहा था ।सोच सोच कर । हाय । लाखों का हीरा । यूं मेरी नादानी की वजह से हाथ से चला गया । उसने कुम्हार से कहा - मूर्ख ! तू बिलकुल गधे का गधा ही रहा । जानता है । उसकी कीमत कितनी है । वह लाखों का था । और तूने एक रूपये में बेच दिया । मानो बहुत बड़ा खजाना तेरे हाथ लग गया ।

उस कुम्हार ने कहा - हुजूर मैं अगर गधा न होता तो क्या इतना कीमती पत्थर गधे के गले में बाँध कर घूमता ? लेकिन आपके लिए क्या कहूं ? आप तो गधे के भी गधे निकले । आपको तो पता ही था कि लाखों का हीरा है । और आप उस के छह आने देने को तैयार नहीं थे । आप पत्थर की कीमत पर भी लेने को तैयार नहीं हुए ।

यदि इन्सान को कोई वस्तु आधे दाम में भी मिले तो भी वो उसके लिए मोल भाव जरुर करेगा । क्योकि लालच हर इन्सान के दिल में होता है । कहते है न - चोर चोरी से जाये, हेरा फेरी से न जाये - । जौहरी ने अपने लालच के कारण अच्छा सौदा गँवा दिया ।

धर्म का जिसे पता है उसका जीवन अगर रूपांतरित न हो तो उस जौहरी की भांति गधा है । जिन्हें पता नहीं है वे क्षमा के योग्य है । लेकिन जिन्हें पता है उनको क्या कहें ?

(स्वामी मुक्तानंद)

rajnish manga 21-12-2013 03:24 PM

Re: मुहावरों की कहानी
 
इस बार मैं यहां किसी मुहावरे से जुड़ी कहानी नहीं दे रहा बल्कि एक कविता दे रहा हूँ जिसमे मुहावरों का बड़ा मनोहारी उपयोग किया गया है. मुझे विश्वास है कि इससे आपका मनोरंजन तो होगा ही, मुहावरों को याद रखने में भी मदद मिलेगी. यह निम्न प्रकार से है:

मुहावरों की ग़ज़ल
(साभार: विकिसौर्स)

तिलक लगाये माला पहने भेस बनाये बैठे हैं, तपसी की मुद्रा में बगुले घात लगाये बैठे हैं.
घर का जोगी हुआ जोगिया आन गाँव का सिद्ध हुआ, भैंस खड़ी पगुराय रही वे बीन बजाये बैठे हैं.

नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज करने को निकली है, सभी मियाँ मिट्ठू उसका आदाब बजाये बैठे हैं.
घर की इज्जत गिरवीं रखकर विश्व बैंक के लॉकर में, बड़े मजे से खुद को साहूकार बताये बैठे हैं.

उग्रवाद के आगे इनकी बनियों वाली भाषा है, अबकी मार बताऊँ तुझको ईंट उठाये बैठे हैं.
जब से इनका भेद खुला है खीस काढ़नी भूल गये, शीश उठाने वाले अपना मुँह लटकाये बैठे हैं.

मुँह में राम बगल में छूरी लिये बेधड़क घूम रहे, आस्तीन में साँप सरीखे फ़न फैलाये बैठे हैं.
विष रस भरे कनक घट जैसे चिकने चुपड़े चेहरे हैं, बोकर पेड़ बबूल आम की आस लगाये बैठे हैं.

नये मुसलमाँ बने तभी तो डेढ़ ईंट की मस्जिद में, अल्लाह अल्लाह कर खुद को ईमाम बताये बैठे हैं.
दाल भले ही गले न फिर भी लिये काठ की हाँडी को, ये चुनाव के चूल्हे पर कब से लटकाये बैठे हैं.

मुँह में इनके दाँत नहीं हैं और पेट में आँत नहीं, कुड़ी देखकर मेक अप से चेहरा चमकाये बैठे हैं.
खम्भा नोच न पाये तो ये जाने क्या कर डालेंगे, टी०वी० चैनेल पर बिल्ली जैसे खिसियाये बैठे हैं.

अपनी-अपनी ढपली पर ये अपना राग अलाप रहे, गधे ऊँट की शादी में ज्यों साज सजाये बैठे हैं.
पहन भेड़ की खाल भेड़िये छुरा पीठ में घोपेंगे, रंगे सियारों जैसे गिरगिट सब जाल बिछाये बैठे है.

एक-दूसरे की करके तारीफ़ बड़े खुश हैं दोनों, क्या पाया है रूप! आप क्या सुर में गाये बैठे हैं!
टका सेर में धर्म बिक रहा टका सेर ईमान यहाँ, चौपट राजा नगरी में अन्धेर मचाये बैठे हैं.

बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ थे छोटे मियाँ सुभान अल्ला, पैरों तले जमीन नहीं आकाश उठाये बैठे हैं.
अश्वमेध के घोड़े सा रानी का बेलन घूम रहा, शेर कर रहे "हुआ हुआ" गीदड़ झल्लाये बैठे हैं.

मुँह सी लेते हैं अपना जब मोहरें लूटी जायें तो, छाप कोयलों पर पड़ती तो गाल फुलाये बैठे हैं.
'क्रान्त' इन अन्धों के आगे रोये तो दीदे खोओगे, यहाँ हंस कौओं के आगे शीश झुकाये बैठे हैं.

Dr.Shree Vijay 21-12-2013 04:34 PM

Re: मुहावरों की कहानी
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 434582)
इस बार मैं यहां किसी मुहावरे से जुड़ी कहानी नहीं दे रहा बल्कि एक कविता दे रहा हूँ जिसमे मुहावरों का बड़ा मनोहारी उपयोग किया गया है. मुझे विश्वास है कि इससे आपका मनोरंजन तो होगा ही, मुहावरों को याद रखने में भी मदद मिलेगी. यह निम्न प्रकार से है:

मुहावरों की ग़ज़ल
(साभार: विकिसौर्स)

मुँह सी लेते हैं अपना जब मोहरें लूटी जायें तो, छाप कोयलों पर पड़ती तो गाल फुलाये बैठे हैं.
'क्रान्त' इन अन्धों के आगे रोये तो दीदे खोओगे, यहाँ हंस कौओं के आगे शीश झुकाये बैठे हैं.



अतिउत्तम और सरलतम.........

क्रान्त इन अन्धों के आगे रोये तो दीदे खोओगे,
यहाँ हंस कौओं के आगे शीश झुकाये बैठे हैं.......


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