मेरी रचनाएँ-3- दीपक खत्री 'रौनक'
परिन्दा
==== परिन्दा यूँ पंख फैलाये उड़ रहा नील गगन मे लहराता उन्मुक्त सा बेफिक्र जैसे छूना चाहता हो हर एक बुलंदी हौसला भरी उड़ान के साथ कर रहा ताल मेल हवाओं से जैसे सिखा रहा हो मुझे कि क्यों मै रहा हूँ रेंग क्यों नहीं है मेरे हौसलों मे उड़ान क्यों मुझे नहीं दिखाई देती वो बुलंदी क्यों मै नहीं बन सकता उस जैसा एक परिन्दा दीपकखत्री 'रौनक' |
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बदल रहे है हालात मेरे पांवो की आहट से
डरते है जीस्त के राजदार हल्की सुगबुगाहट से कह देना ना खा बैठे ठोकर बैचैनी मे वो 'रौनक' आते है बदलाव मजबूत इरादों की जगमगाहट से दीपक खत्री 'रौनक' |
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की है कमाई बहुत सपने हज़ार बेचकर
हम बावकार हो गए किरदार बेचकर लब थरथरा रहे है इश्क के इज़हार को लूट रही है रंगीनियाँ वो प्यार बेचकर गुजरता है समां इश्क की दरयाफ्त मे हो रहा है लेन-देन मनुहार बेचकर ले रही है जिंदगी बेचैन सी करवटे हंस रहा आदमी संस्कार बेचकर बचपन करहा रहा ममता की गोद मे दस्ती होता बालहित आहार बेचकर बोलती आँखों मे दम तोडती है उम्मीद फन जी रहा अब यहाँ फनकार बेचकर बानगी है जीस्त की अहसान बेचना कर रहे है मोल भाव विकार बेचकर बदहाल जिन्दगी तरसती कोड़ियों को 'रौनक' है सूद बढा रहा वजन कर्ज़दार बेचकर दीपक खत्री 'रौनक' |
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नामुराद थी वो शह कोई जो हमे जुदा कर गई
जानलेवा गुजरी वो घड़ी जब तुम शुबा कर गई है बोझ सा बना जीस्त पर हर लम्हा तेरे बिन 'रौनक' क्या कशिश थी वो जो तुझे मेरा खुदा कर गई दीपक खत्री 'रौनक' |
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कयामत
===== कयामत है जहन मे हर किसी के कोई सोचता एक दिन है वो कोई ...मानता एक अदा है वो कोई डरता है इस से कोई मरता है इस पर फिर वो आएगी भी मगर मुकरर नहीं उसका दिन लेकिन है खौफ बहुत उस दिन का वो दिन कयामत का दीपक खत्री 'रौनक' |
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कभी गुजारिश, कभी बंदगी,पूरी जिंदगी मेरे साथ है
कभी बेबसी,कभी बेहिसी,कभी तिस्नगी मेरे साथ है हर लम्हा एक सदमा,अहसास है ग़ुरबत-ए-जीस्त का वो लाचारी,अनेक जिम्मेदारी, वो संजीदगी मेरे साथ है क़त्ल होता हूँ हर रोज़,हर लम्हा है मुफलिसी का मारा गुज़रेगी ये जीस्त यूँही गर्त मे,बदकिस्मती मेरे साथ है कामयाबी तो नसीब में है नही,मुस्तकबिल क्या होगा पीरी गुज़र जाये राहत से, यही एक उम्मिदगी मेरे साथ है ना लगा कहकहे ए जिंदगी मुझपर, अभी मै गुजरा नहीं गर पलटा जो वक्त मेरा,त देखेगी एक बुलंदी मेरे साथ है एक दिन का अरमान, अकेली सी आरजु आसमान छूने की पनप रहा है हौसला दिल में 'रौनक', मेरी शायरी मेरे साथ है दीपक खत्री 'रौनक' |
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खो गयी है लायकी सिफ़ारिशो के खेल मे
फंस गया है आदमी एफडीआई के खेल मे होता है हल्ला खूब रोटी की चोरी पर 'रौनक' नहीं जाता मुस्तकबिल का चोर कभी जेल मे दीपक खत्री 'रौनक' |
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आते जाते खो गए कई अरमान राहों मे
सोते जागते चूर हुए कई खवाब निगाहों मे चाँद भी तरस रहा खुद चांदनी को 'रौनक' बज़्म यूँही गुज़र गई वक़्त की सजाओं मे दीपक खत्री 'रौनक' |
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मुलाकात
===== मुलाक़ात बहुत जरूरी है एक पहचान के लिए एक रिश्ते के लिए एक ख्वाब के लिए ...एक जहान के लिए चाहे हो ये मुस्कान के लिए या तो हो आंसुओं से भरी चाहे हो ये आगाज़ के लिए या तो हो अंजाम के लिए कैसी भी हो कहीं भी हो कभी भी हो लेकिन बहुत जरुरी है ये एक मुलाक़ात दीपक खत्री 'रौनक' |
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दर्द जब हद से गुजर जायेगा......
खुद ब खुद छलक जायेगा........ तब हर जुबान से बोला जायेगा........ हर कान से सुना जायेगा...... दीपक खत्री 'रौनक' |
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