मुक्त होने के लिये
मुक्त होने के लिये
मुक्त होना है तो अभी होना है। ध्यान करना है तो अभी करना है। प्रार्थना से भरना है तो अभी भरना है। एक—एक क्षण में तुम धीरे—धीरे प्रार्थना के मनके पिरोते चले जाओ तो मृत्यु के समय तक तुम्हारे जीवन की माला तैयार हो जायेगी। (osho) |
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ज़हर को अमृत बनाइये
जीवन में क्रोध है, घृणा है, वैमनस्य है, ईष्या है; ये जहर हैं। अगर इन्हीं जहरों को पीते रहे तो तुम्हारा जीवन जहरीला हो जाएगा, विषाक्त हो जाएगा। लेकिन ये जहर रूपांतरित भी हो सकते हैं। ये जहर अमृत भी बन सकते हैं। उसी कला का नाम धर्म है जो तुम्हारे भीतर के जहर को अमृत बना दे। मिट्टी को छू दे और सोना हो जाए— उसी कला का नाम धर्म है। क्रोध को करुणा बनाया जा सकता है। काम को राम बनाया जा सकता है। (ओशो) |
Re: मुक्त होने के लिये
अहं और आनंद
आनंद सहज दशा है। यह सारा जगत् आनंद से भरा है। तुम दुःख पैदा करते हो। और तुम्हारे दुःख पैदा करने का जो पहला आधार है, वह अहंकार है। मैं हूं–बस तुम सिकुड़े । मैं हूं कि तुम छोटे बने। कहां विराट थे, जब मैं का भाव नहीं होता, तब यह सारा अस्तित्व तुम्हारा है; यह सारा आकाश तुम्हारा है। जैसे ही मैं-भाव आया, तुम छोटे हो गए, दीन हो गए, क्षुद्र हो गए। इस छोटी-सी देह में बंध गए। देह में भी जिनको लगता है काफी बड़े हैं, वह छोटी-सी खोपड़ी में समा गए हैं। बस उनकी खोपड़ी में ही उनका मैं रहने लगा। इतनी छोटी जगह में इतने विराट को समाने की कोशिश करोगे, दुःख न पैदा होगा तो क्या होगा? असंभव को करने की कोशिश कर रहे हो। फिर शिकायतें उठती हैं। (ओशो) |
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