Re: दोहावली
रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग पाताल ।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल ॥ रहिमन निज मन की विथा, मन ही राखो गोय । सुनि अठिलै है लोग सब, बांटि न लैहे कोय ॥ रहिमन जाके बाप को, पानी पिअत न कोय । ताकी गैर अकास लौ, क्यों न कालिमा होय ॥ रहिमन उजली प्रकृति को, नहीं नीच को संग । करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग ॥ |
Re: दोहावली
रहिमन थोरे दिनन को, कौन करे मुंह स्याह ।
नहीं छनन को परतिया, नहीं करन को ब्याह ॥ रहिमन रहिबो व भलो जौ लौं सील समूच । सील ढील जब देखिए, तुरन्त कीजिए कूच ॥ रहिमन पैंडा प्रेम को, निपट सिलसिली गैल । बिछलत पांव पिपीलिका, लोग लदावत बैल ॥ रहिमन ब्याह बियाधि है, सकहु तो जाहु बचाय । पायन बेड़ी पड़त है, ढोल बजाय बजाय ॥ रहिमन प्रिति सराहिए, मिले होत रंग दून । ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून ॥ ॥ रहिमन तब लगि ठहरिए, दान मान, सम्मान । घटत मान देखिए जबहि, तुरतहिं करिय पयान ॥ राम नाम जान्या नहीं, जान्या सदा उपाधि । कहि रहीम तिहि आपनो, जनम गंवायो बादि ॥ ॥ रहिमन जगत बड़ाई की, कूकुर की पहिचानि । प्रीति कैर मुख चाटई, बैर करे नत हानि ॥ सबै कहावै लसकरी सब लसकर कहं जाय । रहिमन सेल्ह जोई सहै, सो जागीरें खाय ॥ रहिमन करि सम बल नहीं, मानत प्रभु की थाक । दांत दिखावत दीन है, चलत घिसावत नाक ॥ |
Re: दोहावली
रहिमन छोटे नरन सों, होत बड़ों नहिं काम ।
मढ़ो दमामो ना बने, सौ चूहे के चाम |
Re: दोहावली
रहिमन प्रीत न कीजिए, जस खीरा ने कीन ।
ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फांके तीन |
Re: दोहावली
रहिमन धोखे भाव से, मुख से निकसे राम ।
पावत मूरन परम गति, कामादिक कौ धाम |
Re: दोहावली
रहिमन मनहि लगई कै, देखि लेहु किन कोय ।
नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय ॥ ॥ रहिमन असमय के परे, हित अनहित है जाय । बधिक बधै भृग बान सों, रुधिरै देत बताय ॥ |
Re: दोहावली
लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार ।
जो हानि मारै सीस में, ताही की तलवार ॥ रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग पाताल । आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल ॥॥ रहिमन निज मन की विथा, मन ही राखो गोय । सुनि अठिलै है लोग सब, बांटि न लैहे कोय |
Re: दोहावली
रहिमन जाके बाप को, पानी पिअत न कोय ।
ताकी गैर अकास लौ, क्यों न कालिमा होय ॥ रहिमन उजली प्रकृति को, नहीं नीच को संग । करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग ॥ |
Re: दोहावली
रहिमन कठिन चितान ते, चिंता को चित चेत ।
चिता दहति निर्जीव को, चिंता जीव समेत ॥ रहिमन विद्या बुद्धि नहीं, नहीं धरम जस दान । भू पर जनम वृथा धरै, पसु बिन पूंछ विषान ॥ |
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