करम बनाये रखिये
ज़ख्म दर ज़ख्म मेरे दिल पे सजाये रखिये ;
अपने बीमार पे कुछ करम बनाये रखिये . आप संवरेंगे , तभी ग़ज़ल मेरी निखरेंगी ; अपनी मेंहदी में मेरा खून मिलाये रखिये . मेरी नज़रों को कभी और ना जँचे कोई ; अश्क का पहरा इन आँखों पे बिठाये रखिये . जब भी अँदेशा लगे मेरा दम निकलने का ; गुदगुदा करके मुझमें आस जगाये रखिये . कुछ वजह भी तो ज़रूरी है ज़िन्दगी के लिये ; आपको पाने की उम्मीद बँधाये रखिये . साँच की आँच में जलकर मेरा दम निकले ना ; छाँव गफ़लत की मेरे सिर पे बनाये रखिये . डोर और पेंच तेरे और मैं पतंग तेरी ; आपका मन है , कटा दें या उड़ाये रखिये . रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ . |
Re: करम बनाये रखिये
vystta ke kaarn aapki kavitaayen padh nhin paaya tha,
aapki rachanaa padhakar man ko sakun mila ,dhnyavaad |
Re: करम बनाये रखिये
आप संवरेंगे , तभी ग़ज़ल मेरी निखरेंगी ;
अपनी मेंहदी में मेरा खून मिलाये रखिये . nice gajal nice presentation no word to say more . |
Re: करम बनाये रखिये
आप की कवितायेँ कड़ी धुप में ठंडी छावं की तरह है
जो रूह को राहत देती है |
Re: करम बनाये रखिये
सर्वश्री एन . ढेबर जी , सोमवीर नामदेव जी , मलेथिया जी , जितेन्द्र गर्ग जी एवं abhisays ji ; पढ़ने व हौसला बढ़ाने हेतु आप सभी का आभारी हूँ .
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Re: करम बनाये रखिये
उन सभी पाठकों का भी आभार व्यक्त करता हूँ , जिन्होंने सूत्र पर अपने चिन्ह नहीं छोड़े हैं .
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Re: करम बनाये रखिये
गज़लों के प्रति आपकी लगन तारीफ़ के काबिल है. बहुत अच्छा लिख रहे हैं और लेखन में नयापन लाने की कोशिश कर रहे हैं. धन्यवाद एवं बधाई.
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Re: करम बनाये रखिये
प्रोत्साहन हेतु आपका अत्यधिक आभार श्री रजनीश मँगा जी .
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Re: करम बनाये रखिये
बहूत खूबसूरत गजल लिखी आपने
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