इस्लाम से आपका परिचय
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
सुरु करता हूँ अल्लाह के नाम से प्यारे दोस्तों इस सूत्र का मकसद आप तक इस्लाम को पहुँचाना है सूत्र को पढ़कर इस्लाम के बारे में जाने मेरा ये प्रयास होगा की आपको ज्यादा से ज्यादा बता सकूँ नोट :किसी भी प्रकार की बहस या विवाद न करें |
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इस्लाम का जन्म
इस्लाम का अर्थ इस्लाम अरबी शब्द है जिसकी धातु सिल्म है। सिल्म का अर्थ सुख, शांति, एवं समृद्धि है। कुरआन के अनुसार जो सुख, संपदा और संकट में समान रहते हैं, क्रोध को पी जाते हैं और जिनमें क्षमा करने की ताकत हैं, जो उपकारी है, अल्लाह उन पर रहमत रखता है।शब्दकोश में दिए अर्थ के अनुसार इस्लाम का अर्थ है - अल्लाह के सामने सिर झुकाना, मुसलमानों का धर्म। इस्लाम को अरबी में हुक्म मानना, झुक जाना, आत्म समर्पण, त्याग, एक ईश्वर को मानने वाले और आज्ञा का पालन करने वाला कहा है। इस प्रकार संक्षिप्त में हम कह सकते हैं कि विनम्रता और पवित्र ग्रंथ कुरआन में आस्था ही इस्लाम की पहचान है। वास्तव में इस्लाम अरबी भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ है 'शांति में प्रवेश करना होता है। अत: सच्चा मुस्लिम व्यक्ति वह है जो 'परमात्मा और मनुष्य के साथ पूर्ण शांति का सम्बंध रखता हो। अत: इस्लाम शब्द का लाक्षणिक अर्थ होगा वह धर्म जिसके द्वारा मनुष्य भगवान की शरण लेता है तथा मनुष्यों के प्रति अङ्क्षहसा एवं प्रेम का बर्ताव करता है। इस्लाम धर्म का उद्भव और विकास इस्लाम धर्म के प्रर्वतक हजरत मुहम्मद साहब थे। इनका जन्म अरब देश के मक्का शहर में सन् 570 ई. में हुआ था। जब हजरत मुहम्मद अरब में इस्लाम का प्रचार कर रहे थे उन दिनों भारत में हर्षवर्धन और पुलकेशी का राज्य था। इस्लाम धर्म के मूल ग्रंथ कुरआन और हदीस हैं। कुरआन उस पुस्तक का नाम है जिसमें मुहम्मद साहब के पास देवदूतोँ के माध्यम से ईश्वर के द्वारा भेजे गए संदेश एकत्रित हैं। हदीश उस पुस्तक का नाम है जिसमें मुहम्मद साहब के कर्मों का उल्लेख और उपदेशों का संकलन(एकत्रित) हैं। संस्थापक मुहम्मद साहब ने इस्लाम धर्म की स्थापना किसी योजना के तहत नहीं की बल्कि इस धर्म का उन्हें इलहाम (ध्यान समाधि की अवस्था में प्राप्त हुआ) हुआ था। कुरान में उन बातों का संकलन है जो मुहम्मद साहब के मुखों से उस समय निकले जब वे अल्लाह के संपर्क में थे। यह भी मान्यता है कि भगवान कुरआन की आयतों को देवदूतों के माध्यम से मुहम्मद साहब के पास भेजते थे। इन्हीं आयतों के संकलन (इकट्ठा करना) से कुरआन तैयार हुई है। मुहम्मद साहब का आध्यात्मिक जीवनजब से मुहम्मद साहब को धर्म का इलहाम हुआ तभी से लोग उन्हें पैगम्बर, नबी और रसूल कहने लगे। पैगम्बर कहते हैं पैगाम (संदेश) ले जाने वाले को। हजरत मुहम्मद के जरिए भगवान का संदेश पृथ्वी पर पहुंचा। इसलिए वे पैगम्बर कहे जाते हैं। नबी का अर्थ है किसी उपयोगी परम ज्ञान की घोषणा को। मुहम्मद साहब ने चूंकि ऐसी घोषणा की इसलिए वे नबी हुए। तब से नबी का अर्थ वह दूत भी गया जो परमेश्वर और समझदार प्राणी के बीच आता जाता है। मुहम्मद साहब रसूल हैं, क्योंकि परमात्मा और मनुष्यों के बीच उन्होंने धर्मदूत का काम किया। इस्लाम का मूल मंत्र ला इलाह इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलल्लाह यह इस्लाम का मूल है। जिसका अर्थ है-''अल्लाह के सिवा और कोई पूज्यनीय नहीं है तथा मुहम्मद उनके रसूल है। ऐसी मान्यता हैं, कि केवल अल्लाह को मनाने से कोई आदमी पक्का मुसलमान नहीं हो जाता, उसे यह भी मानना पड़ता है कि मुहम्मद अल्लाह के नबी, रसूल और पैगम्बर हैं। |
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इस्लाम धर्म की मान्यताएं एवं परंपराएं
कुरान ही इस्लाम धर्म का प्रमुख ग्रंथ है। कुरान में मुसलमानों के लिए कुछ नियम एवं तौर-तरीके बताए गए हैं। जिनका पालन करना सभी मुसलमानों के लिए अनिवार्य बताया गया है। कुरान हर मुसलमान के लिए पांच धार्मिक कार्य निर्धारित करता है। वे कृत्य हैं :- १. कलमा पढऩा- कलमा पढऩे का मतलब यह है कि हर मुसलमान को इस आयत को पढऩा चाहिए। अल्लाह एक है और मुहम्मद उसके रसूल है। 'ला इलाह इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलल्लाहó इस्लाम का ऐकेश्वरवाद (तोहीद) इसी मंत्र पर आधारित है। २. नमाज पढऩा- हर मुसलमान के लिए यह नियम है कि वह प्रतिदिन दिन में पांच बार नमाज पढ़े। इसे सलात भी कहा जाता है। ३. रोजा रखना- अर्थात् रमजान के पूरे महीनेभर केवल सूर्यास्त के बाद भोजन करना। वर्षभर में रमजान महीना इसलिए चुना गया कि इसी महीने में पहले-पहल कुरान उतारा था। ४. जकात- इस्लाम धर्म में जकात का बड़ा महत्व है। अरबी भाषा में जकात का अर्थ है- पाक होना, बढऩा, विकसित होना। अपनी वार्षिक आय का चालीसवां हिस्सा (ढाई प्रतिशत) दान में देना। ५. हज- अर्थात् तीर्थों में जाना। इस्लाम धर्म में हज (तीर्थयात्रा) के लिए अरब देश के मक्का मदीना शहर जाया जाता है । |
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इस्लाम के रीति-रिवाज
१. जन्नत- इस्लाम धर्म जन्नत पर यकीन करने वाला धर्म है। जन्नत स्वर्ग को कहते हैं। जहां पर अल्लाह को मानने वाले, सच बोलने वाले, ईमान रखने वाले (ईमानदार) मुसलमान रहेंगे। २. जिहाद- इस्लाम धर्म में जिहाद से बड़ा महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। जिहाद का वास्तविक मतलब है किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपनी जान की पूरी ताकत लगा देने वाला। जिहाद केवल लडऩा या युद्ध करना नहीं है। जिहाद का वास्तविक तात्पर्य यह है कि हर इंसान, हर घड़ी अपने उद्देश्य की प्राप्ति में पूरे दिलो-दिमाग से लगा रहे। अपनी समस्त क्षमता धन, यश, बुद्धि, वाणी व लेखनी से लगातार अपनी मंजिल को पाने की कोशिश करता रहे, अपने लक्ष्य और उद्देश्य के लिए ही पूरी तरह समर्पित हो जाए। लक्ष्य प्राप्ति तक बिना रुके जुटा रहे यही जिहाद है। ३. कुर्बानी- इस्लाम धर्म में कुर्बानी की बड़ी मान्यता है। मुस्लिम मत के अनुसार हजरत इब्राहिम की यादगार को कुर्बानी कहते हैं। हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे इस्माइल को अल्लाह की प्रसन्नता के लिए कुर्बान करना चाहा। अल्लाह ने हजरत इब्राहीम की ये भेंट दूसरे रूप में स्वीकार की। अल्लाह ने हजरत इब्राहीम को पवित्र काबा में नियुक्त कर दिया। तब से अपनी जान के बदले जानवर की कुर्बानी करने की प्रथा बन गई। ४. आखरियत- इस्लाम धर्म में आखरियत को बहुत अधिक महत्व दिया गया है। आखरियत का आशय परलोकगामी है और परलौकिक जीवन भी है। ये बात इस्लाम की मौलिक शिक्षाओं में शामिल है। इस्लाम धर्म की मान्यता है कि वर्तमान जीवन अत्यंत सीमित एवं छोटा है।एक समय आएगा जब विश्व की व्यवस्था बिगड़ जाएगी और ईश्वर नए विश्व का निर्माण करेगा जिसके नियम कायदे वर्तमान विश्व से भिन्न होंगे। जो कि वर्तमान में अप्रत्यक्ष है। ईमान और कुफ्रइस्लाम के समग्र सिद्धांत दो भागों में बांटे जा सकते हैं। एक का नाम 'उसूल' और दूसरे का नाम 'फरु' है। कुरान सिर्फ ईमान और अमल, इन दो शब्दों को उल्लेख करता है। अब ईमान का पर्याय उसूल और अमल का फरु है। उसूल वे धार्मिक सिद्धांत है जिन्हें नबी ने बताया है। फरु उन सिद्धांतों के अनुसार आचरण करने को कहते हैं। अतएव मुहम्मद साहब के उपदेश उसूल अथवा मूल हैं और उन पर अमल करने का नाम 'फरु' अथवा शाखा है।इस्लाम धर्म की मान्यता है कि अल्लाह ही अपने में सभी को समेटे है। उसने सभी को एक समान बनाया है। न कोई छोटा है और न कोई बड़ा । इस्लाम धर्म भी अन्य धर्मों की तरह स्त्रियों को अधिकार देता है। इस्लाम धर्म की मान्यता है कि मनुष्यों की एक जाति है। |
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इस्लाम धर्म के उपदेश
१ अल्लाह है और वह एक है, सबसे बड़ा है। २ अल्लाह ने मनुष्यों के मार्गदर्शन को नबी भेजें। ३ मोहम्मद साहब आखिरी रसूल हंै। ४ आखरियत सत्य हंै। ५ एक दिन दुनिया मिट जाएगी। फिर खुदा दूसरी दुनिया बनाएगा। जीवन दान देगा। ६ खुदा बंदे के अच्छे बुरे कामों का बदला देगा। ७ धर्म के पाबंद लोग ही जन्नत जाएंगे। ८ धर्म न मानने वाले काफिर जहन्नुम में जाएंगे। ९ नमाज पढऩा व रोजा रखना फर्ज है। १० कुरान की बात मानना हर मुसलमान का फर्ज है। यह खुदा की किताब है। ११ किसी पर बुरी नजर न रखो, किसी पर जुल्म मत करो, बदचलनी से बचो। १२ जकात व कुर्बानी मानना हर मुस्लिम का फर्ज है। १३ अन्याय के शिकार व्यक्ति की आह को अल्लाह कभी भी अनसुना नहीं करता। १४ अल्लाह की दया काफिर व मोमिन दोनों को समान रूप। जन्नत का रास्ता इस्लाम धर्म के अनुसार हदीस कहती है कि बंदे तू मुझे छह बातों का विश्वास दिला, मैं तुझे जन्नत बख्श दुंगा। ये छ: बातें हैं: 1. सच बोलो 2. अपना वायदा पूरा करो 3. बदचलनी से बचो 4. अमानत में पूरे उतरो 5. किसी पर बुरी नजर मत डालो 6. किसी पर जुल्म न करोइन छह बातों के अतिरिक्त हदीस का यह भी कहना है कि जिसके पड़ौसी दु:खी हो वह सच्चा मुसलमान नहीं। जो स्वार्थी है, अल्लाह को नहीं मानता, वो मुसलमान नहीं। |
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जिहाद और कुर्बानी: क्या कहता है इस्लाम ?
इस्लाम धर्म में जिहाद को बड़ा महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। जिहाद इतना अद्भुत और कीमती शब्द है कि इसको समझने में अक्सर भूल या गलती की जाती है। जिहाद के मायने- जिहाद का वास्तविक मतलब है किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपनी जान की पूरी ताकत लगा देने वाला कारनामा। जिहाद केवल लडऩा या युद्ध करना नहीं है। जिहाद का असली मतलब यह है कि हर इंसान, हर घड़ी अपने उद्देश्य की प्राप्ति में पूरे दिलो-दिमाग से लगा रहे। अपनी समस्त क्षमता धन, यश, बुद्धि, वाणी व लेखनी से लगातार अपनी मंजिल को पाने की कोशिश करता रहे। अपने लक्ष्य और उद्देश्य के लिए ही पूरी तरह समर्पित हो जाए। लक्ष्य प्राप्ति तक बिना रुके जुटा रहे यही जिहाद है। क्या है कुर्बानी -इस्लाम धर्म में कुर्बानी की बड़ी मान्यता है। मुस्लिम मत के अनुसार हजरत इब्राहिम की यादगार को कुर्बानी कहते हैं। हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे इस्माइल को अल्लाह की प्रसन्नता के लिए कुर्बान करना चाहा। अल्लाह ने हजरत इब्राहिम को पवित्र काबा में नियुक्त कर दिया। तब से अपनी जान के बदले जानवर की कुर्बानी करने की प्रथा बन गई। कुर्बानी की प्रथा इंसान को धर्म के लिये सबकुछ बलिदान कर देने की प्रेरणा देती है। |
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कुरान शरीफ एवं प्रमुख त्यौहार
मुस्लिम धर्म की सर्व प्रमुख पुस्तक का नाम कुरान है इस पुस्तक में मुहम्मद साहब के पास अल्लाह द्वारा भेजे गए संदेशों का संकलन है। मान्यता है कि इसे फरिश्तों (देवदूतों) ने मुहम्मद साहब पर उतारा था। इस्लाम धर्म की ऐसी मान्यता है कि खुदा ने मुहम्मद साहब को अपना दूत मुकर्रर किया। (ऐसा कुरान में लिखा है।) अत: इस्लाम धर्म में, मुसलमान मोहम्मद साहब को पैगम्बर (अल्लाह का दूत) व कुरान को उन पर उतारी गई (अवतरित की गई) ईश्वरीय पुस्तक मानते हैं। कुरान को मुस्लिम धर्म में खुदा की किताब यानी सुंदर पुस्तक मानते हैं। मुस्लिम धर्म के प्रमुख त्यौहार रमजान का पहला दिन: रमजान मास- 1शहादत हजरत अली: रमजान मास- 21शबे कद्र: रमजान मास- 27जमेपतुल विदा: रमजान मास- 23ईदुल फितर: शव्वाल मास- 1ईदुल जुहा: जिल्काद मास-१०मोहर्रम: मोहर्रम मास- 1०चेहलम: सफर मास- २0आखरी चहारशम्बा: सफर मास -2६बारा वफात: सफर मास- १2ईद ए गौलात: रवि- उल- अव्वल मास -17पातिहाप जदुहुम: रबि- उल- अव्वल मास- 11जन्म हजरत अली: रज्जब मास-13शबे मीराज: रज्जब मास- 27 http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1298242362 |
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इबादत के साथ अनुशासन भी देती है नमाज
मुस्लिम समाज में खुदा की इबादत की एक खास पद्धति है जिसे नमाज कहा जाता है। नमाज पढऩे वालों पर अल्लाह मेहरबान होता है। ऐसी मान्यता है। नमाज खुदा को याद करने का तरीका है। दिनभर में 5 बार नमाज अदा की जाती है। प्रात: फजर, दोपहर में जौहर, सूरज ढलने पर असर, गोधुली बेला पर मगरिब एवं रात्रि के प्रथम पहर पर इशा की नमाज अदा की जाती है। इनके समय में ऋतुओं के हिसाब से अंग्रेजी समय से फेरबदल होता है। नमाज अदा करने से खुदा की इबादत के साथ ही शरीर को स्वस्थ रखने की क्रिया भी संपन्न हो जाती है। नमाज जिस तरह से अदा की जाती है उसको करने से शरीर के पाचन तंत्रों का विकास होता है। नेत्रों की ज्योति बढ़ती है तथा स्फूर्ति बनी रहती है। बल की वृद्धि होती है। स्वास्थ्य अच्छा हो तो मन भी प्रसन्न रहता है। यही प्रसन्नता खुदा की नियामत मानी जाती है। उसकी तरफ से गेबी मदद मिलती है।नमाजी व्यक्ति छल-कपट व अन्य अनैतिक कर्मों से दूर रहता है। वैसे नमाज हर दिन आवश्यक है परंतु शुक्रवार को यह पांचों समय पर पूरे रीति रिवाज के साथ ही जाती है। मुस्लिम समाज के स्त्री, पुरुष, बच्चे सभी बड़े सम्मान के साथ अदा करते है। |
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क्यों पढ़ते हैं पांच बार नमाज?
http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1298242832 मुस्लिम समाज में इबादत को लेकर नियम काफी सख्त हैं। इबादत यानी अल्लाह से प्रार्थना में थोड़ी भी लापरवाही नहीं चलती है। दिन में पांच बार नमाज अदायगी का नियम है। कई गैर-मुस्लिम लोग आजकल की दौड़भाग भरी और आधुनिक जिंदगी में ऐसे नियमों को गैर-जरूरी समझते हंैं लेकिन यह नियम पूरी तरह वैज्ञानिक है। पांच बार नमाज के पीछे केवल धार्मिक कट्टरता का भाव नहीं है बल्कि यह तो जिंदगी में अनुशासन और स्वास्थ्य के लिए है। पांच बार नमाज के पीछे व्यक्ति में वक्त की पाबंदी लाना सबसे बड़ा उद्देश्य है। आदमी अपने रोजमर्रा के काम समय पर निपटाए ताकि पांचों वक्त की नमाज पढ़ सके। नमाज पढ़ने में दूसरा सबसे बड़ा फायदा है शारीरिक कसरत का। शरीर के सारे जोड़ों की कसरत हो जाती है। तीसरा फायदा है रात को जल्दी सोने और सुबह नमाज के लिए जल्दी उठने का, यह भी सीधा सेहत से जुड़ा हुआ है। इसलिए मुस्लिम समाज में दिन में पांच बार नमाज पढ़ने का नियम है। |
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पांच बार नमाज करने के कई अन्य फायदे
http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1298243064 नमाज पांच बार करने के कई अन्य फायदे भी है। नमाज का जो समय निर्धारित किया गया है। वह पूरी तरह मनुष्य के शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए किया गया है। प्रात: फजर की नमाज के लिए जल्दी उठना ही पड़ता है। जो उसको तन और मन की प्रसन्नता देता है। नमाज की क्रिया से हुआ हल्का व्यायाम स्फूर्ति देने वाला है। ऐसे मान्यता है कि इसी समय अल्लाह के भेजे हुए दो फरिश्ते उसके दोनों कंधों पर बैठ जाते हैं। जो उसके दिन भर के क्रिया कलाप पर नजर रखते हैं। दोपहर की जौहर, सूर्यास्त की असर एवं गोधुली बेला की मगरिब की नमाज का वक्त ऐसा इसलिए निर्धारित किया गया कि मनुष्य दिनभर अनुशासन में रहे। दोपहर के समय सोये नहीं एवं कोई भी अनैतिक कार्य नहीं कर पाए। दोपहर में सोने से कफ, सर्दी एवं श्वास संबंधी कई प्रकार के रोग होने की संभावना रहती है। रात्रि प्रथम पहर ईशा की नमाज का वक्त वह खुदा से दिनभर में अलग कोई, खता हुई हो तो उसकी क्षमा मांग सकता है तथा वे दोनों फरिश्ते भी कंधे से उतरकर अल्लाह के समक्ष जाकर नमाजी के दिनभर के कर्मों का वर्णन करते हैं। अल्लाह नमाजी के सत्कर्मों से उसका सिला प्रदान करते हैं। अलगे दिन सुबह जल्दी नमाज पढऩे के लिए उसको जल्दी सोना भी पड़ता है। जल्दी सोने से भी उसको तन-मन को स्वस्थ्ता मिलती है तथा शरीर को अधिक कार्य की क्षमता प्राप्त होती है। |
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मुस्लिम क्यों करते हैं हज यात्रा?
http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1298244719 दुनिया के हर मुसलमान की ख्वाहिश होती है कि वह अपने जीवन काल में एक बार हज की यात्रा अवश्य करे। हज यात्रियों के सपनों में काबा पहुंचना, जन्नत पहुंचने के ही समान है। काबा शरीफ़ मक्का में है। असल में हज यात्रा मुस्लिमों के लिये सर्वोच्च इबादत है। इबादत भी ऐसी जो आम इबादतों से कुछ अलग तरह की होती है। यह ऐसी इबादत है जिसमें काफ़ी चलना-फि रना पड़ता है। सऊदी अरब के पवित्र शहर मक्का और उसके आसपास स्थित अलग-अलग जगहों पर हज की इबादतें अदा की जाती हैं। इनके लिए पहले से तैयारी करना ज़रूरी होता है, ताकि हज ठीक से किया जा सके। इसीलिए हज पर जाने वालों के लिए तरबियती कैंप मतलब कि प्रशिक्षण शिविर लगाए जाते हैं। एहराम: हज यात्रा वास्तव में पक्का इरादा यानि कि संकल्प करके 'काबा' की जिय़ारत यानी दर्शन करने और उन इबादतों को एक विशेष तरीक़े से अदा करने को कहा जाता है। इनके बारे में किताबों में बताया गया है। हज के लिए विशेष लिबास पहना जाता है, जिसे एहराम कहते हैं। यह एक फकीराना लिबास है। ऐसा लिबास जो हर तरह के भेदभाव मिटा देता है। छोटे-बड़े का, अमीर-गऱीब, गोरे-काले का। इस दरवेशाना लिबास को धारण करते ही तमाम इंसान बराबर हो जाते हैं और हर तरह की ऊंच-नीच ख़त्म हो जाती है। जुंबा पर एक ही नाम: पूरी हज यात्रा के दरमियान हज यात्रियों की ज़बान पर 'हाजिऱ हूँ अल्लाह, मैं हाजिऱ हूँ। हाजिऱ हूँ। तेरा कोई शरीक नहीं, हाजिऱ हूँ। तमाम तारीफ़ात अल्लाह ही के लिए है और नेमतें भी तेरी हैं। मुल्क भी तेरा है और तेरा कोई शरीक नहीं है़,...जैसे शब्द कायम रहते हैं। कहने का मतलब यह है कि इस पूरी यात्रा के दोरान हर पल हज यात्रियों को यह बात याद रहती है कि वह कायनात के सृष्टा, उस दयालु-करीम के समक्ष हाजिऱ है, जिसका कोई संगी-साथी नहीं है। इसके अलावा यह भी कि मुल्को-माल सब अल्लाह तआला का है। इसलिए हमें इस दुनिया में फ़क़ीरों की तरह रहना चाहिए। |
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जन्नत पंहुचाने का वादा करती है हदीस
http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1298244923 क्या वाकई होते हैं जन्नत और जहन्नुम....यदि हां तो कहां और कैसे होते हैं.... आखिर क्या है जन्नत का रास्ता.... किन पापों की सजा है- जहन्नुम....क्या इंद्रलोक की सुन्दर अप्सराओं की तरह जन्नत में भी बेहद हसीन हूरें होती हैं?...। ऐसे और भी कितने प्रश्र हैं जो यदाकदा जहन में उठते हैं। जिस तरह हिन्दू व दूसरे अन्य धर्मों में स्वर्ग और नर्क की प्रबल मान्यता पाई जाती है, उसी तरह इस्लाम धर्म के मानने वाले मुस्लिम भाइयों की यह दृड़ मान्यता है कि, इंसान को उसके कर्मों के अनुसार ही जन्नत या जहन्नुम मिलते हैं। इस्लाम धर्म के अनुसार हदीस कहती है कि बंदे तू मुझे छह बातों का विश्वास दिला, तुझे निश्चित रूप से जन्नत में स्थान प्राप्त होगा। आइये जाने उन महत्वपूर्ण छ: बातें को... 1. सच बोलो। 2. बिना सोचे-समझे कभी वादा मत करो यदि करो तो उसे हर हाल में पूरा करो। 3. बदचलनी से बचो यानि हमेशा विनम्र और पवित्र व्यवहार करो। 4. अमानत में पूरे उतरो यानि ईमानदारी बनाए रखो। 5. किसी पर बुरी नजर मत डालो मतलब कि किसी को भी गलत भावना से मत देखो। 6. किसी पर जुल्म न करो यानि कि किसी को भी मन, वचन और कार्य से कष्ट मत पहुंचाओ। |
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बहुत बढियाँ सिकंदर भाई जानकारी बांटने के लिए आप का धन्यवाद
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बहुत अच्छा धार्मिक महत्व से परिपूर्ण सूत्र बनाया है सिकंदर भाई.
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
अधिकांश गैर-मुस्लिमों को यही गलत फहमी है कि इस्लाम का आरम्भ लगभग १५०० वर्ष पहले हजरत मुहम्मद स० अ० व० से हुआ है जबकि हजरत मुहम्मद स० अ० व० पर तो नबुव्वत समाप्त होने का ऐलान हुआ। अर्थात हजरत मुहम्मद स० अ० व० को अंतिम नबी के रूप में भेजा गया, अब उनके बाद कोई नबी संसार में नही आने वाला।
जबकि वास्तविकता यह है कि इस सृष्टि की रचना के बाद सबसे पहले नबी हजरत आदम अ० स० को संसार में भेजा गया जिनको आदम और हव्वा के नाम से जाना जाता है। उसके बाद एक एक करके एक लाख चौबीस हजार नबी दुनिया में आये और उन्होंने इस्लाम को फ़ैलाने के लिए लोगों को दीन (इस्लाम) की दावत दी। परन्तु इन सभी नबियों के नियमों में थोड़ा-थोड़ा फ़र्क था और धीरे-धीरे जैसे-जैसे मानव का मानसिक विकास होता गया, उसी के अनुसार इस्लाम के नियमों एवं ज्ञान में परिवर्तन किया जाता रहा। |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
सिकंदर जी
इस्लाम धर्म से परिचय करवाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद बहुत ही अच्छी जानकारी है आपने कई ऐसी जानकारी बांटी जो एक गैरमुस्लिम व्यक्ति शायद ही कभी जान पाता. |
Re: इस्लाम से आपका परिचय
इस सूत्र का कोई जोड़ नही क्योकि यह बेजोड़ है, मुस्लिम समाज के प्रति आज दुनिया में जो भ्रांति और अविश्वास का वातावरण है, उसको कम करने में यह सूत्र ज़रूर योगदान करेगा. सिकंदर जी का इस्लाम धर्म की काफ़ी बारीकी से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद.
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
रूहानी सूत्र
बहुत बहुत शुक्रिया सिकंदर भाई इस पाक धर्म से हमारा परिचय करने हेतु |
Re: इस्लाम से आपका परिचय
बहुत बढिया सुत्र बनाया आपने सिकन्दर
शुक्रिया |
Re: इस्लाम से आपका परिचय
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
सिकन्दर साहब बहुत बढिया सूत्र बनाया है मै आपको पाक इस्लाम धर्म के बारे मे बताने के लिये त्ह दिल से शुक्रिया करता हूँ
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
एक बात तो मैं यहाँ यह स्पष्ट करना चाहूँगा कि अधिकांश नॉन मुस्लिम्स एवं कुछ मुस्लिम्स भी इस गलत फहमी में मुब्तिला हैं कि इस्लाम का आरम्भ १५०० वर्ष पूर्व हजरत मुहम्मद स०अ०व० द्वारा किया गया जबकि सत्य यह है कि कुरान के अनुसार इस्लाम का आरम्भ स्रष्टि की रचना के साथ ही हो गया था सबसे पहले नबी हजरत आदम अ०स० को पृथ्वी पर भेजा गया और उसके बाद एक लाख चोबीस हज़ार नबियों को दुनिया में इस्लाम फेलाने के लिए भेजा गया |कुरान में बहुत से नबियों का ज़िक्र है जैसे कि हजरत युसूफ अ०स० ,हजरत इब्राहीम अ०स०.हजरत ईसा अ०स० (जिन्हें ईसाई लोग जीसस के नाम से जानते है)|विज्ञानं के अनुसार भी मानव का मानसिक स्तर आरम्भ में उतना विकसित नहीं था जितना कि आज है इसलिए इस्लाम के नियम उसकी सुविधानुसार परिवर्तित किये जाते रहे परन्तु एक समय ऐसा आया कि अल्लाह ताला को लगा कि अब मानव उस मानसिक स्तर पर है जब यह कुरान को समझ सकता है तब कुरान को मुहम्मद साहब स०अ०व० पर नाजिल किया गया (यह इस प्रश्न का भी उत्तर है कि लोग कहते हैं कि यदि इस्लाम सबसे पहला धर्म हे तो कुरान बाद में क्यूँ आया) और हजरत मुहम्मद स०अ०व० को अंतिम नबी के रूप में भेजने का उद्देश्य यह भी रहा कि इस्लाम अब मुकम्मल (सम्पूर्ण)हो गया है अर्थात अब कयामत तक इसमें कोई परिवर्तन नही किया जायेगा |
इस बात का एक और सबूत यह भी है कि खाना काबा जिसके चरों और आप हज यात्रा के समय चक्कर लगते हैं वो हजरत मुहम्मद स०अ०व० द्वारा नही बनाया गया बल्कि उसकी तामीर (कन्स्ट्रक्शन) हजरत इब्राहीम अ०स० द्वारा अपने बेटे हजरत इस्माइल अ०स० के साथ मिलकर की गयी |हजरत इस्माइल अ०स० भी बाद में नबी बनाये गए | अभी कुछ सबूत और दूंगा इस बात के कि इस्लाम १५०० वर्ष पुराना नही बल्कि पृथ्वी की रचना होने के समय से है | |
Re: इस्लाम से आपका परिचय
" सुन्नत वह ग्रंथ (पुस्तक) है जिसमें मुहम्मद साहब "
हंसी आती है पढ़ कर ! शायद कोई गैर मुस्लिम भी जानता होगा कि सुन्नत क्या होती है |
Re: इस्लाम से आपका परिचय
कुरान का नाजिल होना -अल्लाह ताला ने अपना संदेश हमेशा फरिश्तों के माध्यम से भेजा और एक फरिश्ते का नाम है "हजरत जिब्राईल अ०स०"(ईसाई लोग इन्हें गेब्रियल के नाम से जानते हैं) |हज़त जिब्राईल अ०स० ही हजरत आदम से लेकर हजरत मुहम्मद स०अ०व० तक अल्लाह का संदेश नबियों तक लाते रहे हैं |
कुरान भी समय समय पर हजरत जिब्राईल अ०स० के द्वारा अल्लाह के आदेश पर हजरत मुहम्मद स०अ०व० तक पंहुचाया जाता था |अर्थात हजरत जिब्रईल अ०स० स्वयम मुहम्मद स०अ०व० को कुरान का पाठ पढाया करते थे जिसमे उनको कुल मिलाकर २७ वर्षों का समय लगा | उसके बाद यह आप स०अ०व० को जुबानी याद हो जाता था और आप दुसरे सहाबियों को यह सुनाया करते थे और ये सहाबी भी इसे याद करके अन्य लोगों तक पहुचाते थे | सहाबी -जिस व्यक्ति ने इस्लाम स्वीकार करने के बाद अर्थात मुस्लिम होने के बाद अपनी आँखों से हजरत मुहम्मद स०अ०व० को देखा हो उसे सहाबी कहते हैं | |
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सुन्नत-किसी ग्रन्थ का नाम नही है बल्कि उन सभी कार्यों को सुन्नत कहा जाता है जिसको आप स०अ०व० ने स्वयम किया और अपने उम्मतीयों को करने का आदेश दिया |जैसे कि सीधे हाथ से पानी पीना ,बैठ कर पानी पीना ,अच्छी सवारी रखना ,खाना खाने के बाद मीठा खाना ,दाढ़ी रखना (कुछ लोग दाढ़ी रखने को फर्ज समझते हैं जबकि यह सुन्नत है),
सुन्नत और फर्ज में अंतर-जिस कार्य को हुज़ूर स०अ०व० ने स्वयम किया और हमे करने को कहा उसे सुन्नत कहते हैं परन्तु जिस कार्य को करने का आदेश मुहम्मद साहब स०अ०व० ने यह कहकर दिया कि यह अल्लाह का आदेश है उसे फर्ज कहते हैं |जैसे कि नमाज़ पढ़ना,रोज़ा रखना ......... अभी आपकी पहली पोस्ट ही पढ़ी है दोस्त आगे की पोस्ट पढकर और भी करेक्शन करने होंगे | |
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सिकन्दर भाई किसी भी पीर के मजार पर जाने का कोई ज़िक्र कुरान में नही है वास्तव में ये सब बिदअत है |बिदअत उसे कहते हैं जो कुरान में नही है या अल्लाह या उसके पैगम्बर ने नही बताया बल्कि हम लोगों ने अपनी और से उसका प्रचलन शुरू कर दिया और यह बहुत बड़ा गुनाह है बल्कि हराम है |और इन मजारों पर जाने की तुलना कम से कम हज से नहीं करनी चाहिए दोस्त | इस्लाम के पांच रुक्न सिकन्दर भाई ने बिलकुल ठीक से बताए है लेकिन इनमे से पांचवां रुक्न प्रत्येक मुसलमान पर फर्ज नही है और वो है हज |हज फर्ज होने के लिए मर्द पर पांच और महिलाओं पर ६ विशेष शर्तें है ,यदि आप इनमे से एक भी कंडीशन को पूरा नहीं करते तो आप पर हज करना फर्ज नहीं है |ये शर्तें निम्न हैं | १-मुसलमान होना | २-बालिग (वयस्क) होना | ३-आकिल (अक्ल वाला अर्थात पागल न होना) होना | ४-शारीरिक एवं आर्थिक रूप से सक्षम होना | ५-आज़ाद होना (पहले समय में लोग गुलाम भी होते थे इसलिए गुलामों पर आजाद होने से पहले हज फर्ज नही है) | ६-मेहरम (जिससे विवाह करना हराम हो) का साथ में होना ,जैसे कि बेटा,पति ,भाई,पिता इत्यादि |(यह नियम केवल महिलाओं पर लागू है) |
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६-मेहरम (जिससे विवाह करना हराम हो) का साथ में होना ,जैसे कि बेटा,पति ,भाई,पिता इत्यादि |(यह नियम केवल महिलाओं पर लागू है)
इस पर और रोशनी डालें मासूम जी ! |
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जहाँ तक मेरी मालूमात हैं _ कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसके ऊपर घरेलू जिम्मेदारियाँ हो यानि जैसे बेटी की शादी ना हुई हो तो वह भी हज पर नहीं जा सकता !
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लेकिन उसके पास इतनी मालियत होनी चाहिए की शादी मे कोई रुकावट न आए घर पर एक जिम्मेदार सदस्य का होना जरुरी है |
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अच्छा जनकारी इस्लाम के बारे मै
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जेहाद का शाब्दिक अर्थ होता है -जद्दोजहद अर्थात संघर्ष(struggle) |परन्तु यह संघर्ष अपने स्वार्थ के लिए न होकर केवल और केवल अल्लाह के आदेश के पालन के लिए होना अनिवार्य है |जैसे कि दाढ़ी रखना आजकल ऐसा हो गया है कि दाढ़ी वाले को अधिकांश लोग बेवकूफ और पुराने विचारों वाला व्यक्ति मानते हैं इसलिए आज के युग में दाढ़ी रखना भी एक प्रकार का जेहाद ही है |
जेहाद में जंग करने के भी कठोर नियम हैं जैसे कि-बच्चे,बूढ़े,महिला,बुज़ुर्ग,निहत्ते,जो लड़ना न चाहे,और धोके से या पीठ पर प्रहार करना मना है | इसमें कोई लूट पाट नहीं होनी चाहिए |परन्तु आजकल जेहाद को जिस रूप में विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है वो निहायत ही चिंताजनक है |जो लोग जेहाद के नाम पर आतंकवाद फैला रहे हैं वो केवल और केवल अपने स्वार्थ के लिए ऐसा कर रहे हैं | एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण बात बताना चाहूँगा कि जेहाद के लिए जंग करना केवल उस स्थिति में जायज़ है जब आपको अल्लाह का आदेश मानने से रोका जाये |उदाहरण के लिए यदि भारत में मुसलमानों को नमाज़ पढ़ने पर पाबंदी लगाई जाये तो यहाँ पर जेहाद करना जयाज होगा |लेकिन यदि कुछ लोग कुछ मासूम मुस्लिम्स को इकट्ठा करके एक आतंकी ग्रुप बनाकर हिंसा करना शुरू कर दे तो चाहे ये लोग किसी राज्य अथवा देश को स्वतंत्र कराने का बहाना बनाये ये किसी भी स्थिति में जेहाद नहीं माना जा सकता | |
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मासूम जी
आपका योगदान सूत्र के लिए अति महत्वपूर्ण है हमारी कमियों को आपने पूरा किया इसके लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया |
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तलाक के 3 महीने १३ दिन तक दोबारा निकाह पर बंदिश क्यों ?
इस्लाम को मानने वाले मुस्लिम भाई अपने धार्मिक नियम-कायदों का पालन पूरे समर्पण और निष्ठा से करते हैं।हर एक मुस्लिम चाहे वह दुनिया में कहीं भी रहता हो, इन नियमों का कड़ाई से पालन करने में विश्वास रखता है। इस्लाम धर्म के अनुयाई यानि कि इस्लाम को मानने वाले शरियत के नियम कायदों को अटल एवं अंतिम मानते हैं। शरियत एक ऐसा कायदानामा (धार्मिक संविधान) है, जिसमें प्रत्येक मुस्लिम मर्द और औरत के लिए अनियार्य नियम- कानून होते हैं। शरियत में इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक की सारी प्रमुख घटनाओं में जो नियम पालने होते हैं, उनका विस्तार से वर्णन किया गया है। शरियत में विवाह को लेकर भी स्पष्ट दिशा-निर्देश दिये गए हैं। विवाह के विषय में शरियत में नियम है, कि जब किसी भी जायज कारण से पति-पत्नी के बीच तलाक हो जाए, तो अगले ३ महीने १३ दिन तक औरत को दूसरा विवाह नहीं करना चाहिये। (जिसे तलाक की इद्दत पूरी करना कहा जाता है ) ३ महीने १३ दिन तक किसी स्त्री के निकाह न करने के पीछे एक प्रमुख कारण है, जो कि परेशानी से बचाने के लिये ही होता है। तलाकशुदा स्त्री से तीन महीने १३ दिन तक दोबारा निकाह इसलिये नहीं हो सकता, क्योंकि 3 महीने १३ दिन में यह खुलासा हो जाएगा कि वह स्त्री गर्भवती है या नहीं ? अगर स्त्री गर्भवती है तो ? जब तक बच्चे का जन्म न हो जाये दूसरा निकाह नहीं कर सकती है ( इद्दत भी बच्चे के जन्म तक पूरी करनी होगी ) |
इस्लाम से आपका परिचय
सिकंदर साब अच्छा सूत्र बनाया है|:bravo: वैसे मैं पहले ही इस पर सूत्र बनाना चाहता था| लेकिन विवादों का आगमन न हो ये सोच कर मैंने नहीं बनाया|
कुछ सहयोग मेरी तरफ से|:good: |
इस्लाम से आपका परिचय
जहाँ तक इस क़ायनात (सृष्टि) के मालिक (जिसका वास्तविक नाम 'अल्लाह' है) का संबंध है, आप उसे उसकी बहुत सी निशानियों के ज़रिये आसानी से पहचान सकते हैं, आप उसे अपने नजदीक कर सकते हैं, उसके नामों के ज़रिये अपने और उसके रिश्ते को समझ सकते हैं और आप उसे दिन में २४ घंटे और पूरे साल अपनी नमाजों के ज़रिये अपनी बात कह सकते हैं. आप इस दुनिया में क्यूँ आये? आपका इस दुनिया में पैदा होने का मकसद क्या है? सबसे बड़ी बात है कि आप के पास जवाब होंगे उन सब शब्दों के जिन्हें क्यूँ, कैसे, कब, कहाँ, क्या और दीगर दार्शनिक और तत्वज्ञान सम्बन्धी सवालों के.
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इस्लाम से आपका परिचय
इस्लाम की कुछ विशेषताएं/फायदे....
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