खुश्बु (१९७५)
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अभी कुछ ही सालों पहेले की बात है। हमारे एरिया में केबलवालों के झगड़े चल रहे थे। घर से केबल-कनेक्शन काम नहीं कर रहे थे। मैने छत पर पुराने जमाने का एन्टेना लगा दिया था। अब देखने के लिए फिर से सिर्फ दूरदर्शन रह गया था। |
Re: खुश्बु (१९७५)
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वैसे मुझे अंग्रेजी फिल्मों का ईतना चाव चढ़ा था की चार-पांच साल तक कोम्प्युटर पर वही हैरतअंगेज करनेवाली फिल्मे देखता रहा। मुझे हंमेशा से लगता था की ईन हैरतअंगेज करनेवाली फिल्में सभी देखते है, लेकिन वे अमेरिका मे भी सबकी प्यारी तो नही होगी। बाद में लगा की ज्यादातर लोगो को दरअसल सीदी-सादी फिल्में ही पसंद है जो वहां के कल्चर से प्रभावित हो, फेमिली ड्रामा हो ईत्यादि। वहां एक्शन फिल्में हीट हो कर चली जाती है। उसका प्रभाव भी युवापीढी पर दिखाई देता है। फिर भी ईन सब के बीच ड्रामा फिल्में अपनी छाप छोड ही जाती है। |
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मुझे सिर्फ फिल्मों का ही शौक है ओर मेरी गीनती थी की मुझे तीन फिल्म प्रति सप्ताह देखने को मिल जाए तो भी बड़ी बात है। शनिवार, ईतवार को दो फिल्में देखने को मीलती थी लेकिन तीसरी फिल्म की भुक मिटाई 'बायोग्राफी' ने। यह बायोग्राफी नामक प्रोग्राम फिल्मों को तीन घंटो में बांट कर सोम से बुध तक रोजाना १०-३० से ११-३० तक प्रस्तुत करता था। उन दिनों बहूत अच्छी फिल्में देखने को मिली, जो आज तक मै नहीं भुल पाया। |
Re: खुश्बु (१९७५)
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उस दिन आई फिल्म 'खुश्बु' । मैने ईस से पहेले गुलज़ार की 'परिचय' देखी थी। उसे कोमेडी फिल्म के बाद ईस गामठी फिल्म में क्या मज़ा आएगा...मै वही सोच रहा था। तीन दिन, तीन टुकडों मे वह फिल्म देखने के बाद वह मेरी मनपसंद फिल्मों की सूची में शामिल हो गई। |
Re: खुश्बु (१९७५)
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फिल्म में सब कुछ एक के बाद एक परतों में रखा गया है। फिल्म को रीयालिस्टीक बनाया गया है। आप एक के बाद एक सक्षम चरित्र आपके समक्ष आते रहते है। फिर जब तक हम हेमामालिनी और जितेन्द्र का रिश्ता समज पाए कई तकलीफ, उलझनें भी उजागर होती है। साथ में असरानी और मास्टर राजु को देख जबरन मुस्कुराना भी पडता है। |
Re: खुश्बु (१९७५)
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असरानी जी का यह रोल मुझे बहूत पसंद है। उनको छोटी सी बात में देख कर जितना गुस्सा आता है, उतना ही अच्छा खुश्बु में गरीब भाई का रोल देख कर लगता है। |
Re: खुश्बु (१९७५)
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एक ओर छोटी सी बात याद आ गई। जितेन्द्र का एक पुराना हीट गाना टीवी पर चल रहा था। मुझे देख कर लगा की क्या ईस जंपीग जेक ने सिर्फ एसी ही फिल्में की थी? फिर अचानक याद आया...हां परिचय और खुश्बु ही मेरे लिए काफी नहीं थी?! जितेन्द्र का लुक ईस फिल्म में एकदम अलग है। हां वह परिचय जैसा ही है....लेकिन उनकी बाकी सभी फिल्मों से तो एकदम जुदा है। उन्हें ईतना सिन्सीयर शायद कभी नहीं देखा गया। |
Re: खुश्बु (१९७५)
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https://cinemanthan.files.wordpress....emakhushbu.jpg फिल्मों के गाने बहुत ही कर्णप्रिय है। ओ माझी रे, घर जाएगी तर जाएगी, दौ नेनों में आसूं भरे है...सभी एक से बढ कर एक। |
Re: खुश्बु (१९७५)
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http://sim01.in.com/edaa41008532d055...7dab3948_m.jpg अब बारी है कुसुम के पात्र की। उसकी हालत एसी है की वह ना तो त्यक्ता है और न तो ब्याह्ता। अत्यंत गरीब होने के बावजुद वह जीस गर्व और स्वाभिमान का प्रदर्शन करती है उससे नारी जाति के प्रति मान और बढ जाता है। साथ साथ कभी समाज के रिवाजों और उनके प्रभाव भी दिखते है। हेमामालिनी ईस फिल्म में सीदे-सादे गेटअप में भी ग्रेसफुल लगती है। |
Re: खुश्बु (१९७५)
http://www.thehindu.com/multimedia/d...4_1488456g.jpg
उनकी सहेली फरिदा जलाल का छोटा लेकिन खास रोल भी दिल को छू जाता है। |
Re: खुश्बु (१९७५)
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ईनके अलावा कई पात्र एसे है जो फिल्म की खुश्बु बनाए रखते है। फिल्म में उसी जमाने की खुबसुरत, मशहुर अभीनेत्री का भी एक अत्यंत भावुक रोल आपको देखने को मिलेगा, जो एक अलग ही कहानी बयां करेगा। |
Re: खुश्बु (१९७५)
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यह फिल्म एसी है, मानो भारत की तरफ से ओस्कार के लिए जा रही हो! अकारण मारधाड नहीं, अकारण संगीत नहीं, अकारण कुच भी नहीं! वैसा ही जैसे ईग्लींश क्लासिक फिल्मों में होता है! वहां एसी फिल्मों को बढावा और प्रोत्साहन सदा सदा मिलता रहा है। यहां अभी तक क्यूं नही? |
Re: खुश्बु (१९७५)
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अगर उस वक्त ही गुलज़ार, बासु दा की फिल्में को ध्यान में रख कर फिल्में बनने लगती...तो आज हमारी ईन्डस्ट्री अपने उत्कृष्टता के मुकाम पर होती। आज भी टेलेन्टेड लोगों की कमी नहीं है...उल्टा मल्टी टेलेन्टेड लोगों से ईन्डस्ट्री भरी पडी है। फिर भी कुछ चुनींदा लोग मिल के अपना वही पुराना राग आलाप रहें है। करोंडों कमाने में लगे हुए है और फिल्म से कला का लेबल निकाल कर वहां एन्टरटेईनमेन्ट का स्टीकर चिपका दिया गया है। |
Re: खुश्बु (१९७५)
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युवा लोगों को ध्यान में रख कर फिल्में बनाते है। युवावर्ग को चाहिए की होलिवुड की फिल्में देखे, लेकिन बोलिवुड की फिल्मों से ईनकी तुलना न करें। बोलिवुड की लेटेस्ट फिल्म, जो युवा वर्ग को ध्यान में रख कर बनाई गई है....वह भी किसी ४०-५० साल के लोगों ने ही बनाई है। ईस लिए कोलेज की या प्रेम कहानीयों वाली फिल्म देखते वख्त यह भी याद रहेना चाहिए। :giggle: पुरानी फिल्में देख कर या पुराने गाने सुनना कोई दखियानुसी बात नहीं है। ईन फिल्मों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। आज कल के युवा डाईरेक्टर बहुत अलग काम करना चाहतें है...आप उनकी फिल्मों को बढावा दें! |
Re: खुश्बु (१९७५)
यह फिल्म ओनलाईन भी देख सकते है!
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Re: खुश्बु (१९७५)
very nice
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Re: खुश्बु (१९७५)
भई ईस शनिवार १५ और २२ अगस्त, शाम छः बजे गुलज़ार साहब की दो फिल्में दिखाई जाएंगी....चैनल झी क्लासीक पर! परिचय और खुश्बु। देखना न भुलें!
:egyptian::egyptian::egyptian::egyptian: |
Re: खुश्बु (१९७५)
did not heard about this movie yet but after read this i'm defiantly going to watch this movie...
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Re: खुश्बु (१९७५)
जरुर देखिएगा। उपर यु-ट्युब लिंक भी दे रखी है।
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Re: खुश्बु (१९७५)
इस सूत्र में आपने फिल्म 'खुशबू' के अतिरिक्त भी अच्छी अच्छी बाते शेयर की हैं, दीप जी. धन्यवाद.
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Re: खुश्बु (१९७५)
Thanks for sharing this one
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