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-   -   राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=2836)

The ROYAL "JAAT'' 18-05-2011 04:00 PM

राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
राजस्थान जीसके बारे जितना हम जानेगे कम ही रहेगा और मुझे गर्व है की मुझे इसको जानने और आपको बताने का मोका मिला .. ये भारत का गोरव है जिसका इतिहास जितना पुराना है उतना ही गोरवशाली है वो पवित्र धरती जिसकी माटी से नजाने कितने ही शूरवीरों और पवित्र आत्माओ ने जन्म लिया इसकी महान गाथा को शब्दों में अंकित करना किसी के बस में नही है में हमेसा प्राचीन इतिहास के लिए उत्सुक रहता हूं और जानकारी जुटाता रहता हू मेने ये सभी जानकारी नेट से ली है जो आपके सामने रख रहा हूं पसंद आये तो पोस्ट जरुर करना ............धन्यवाद

The ROYAL "JAAT'' 18-05-2011 06:57 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
राजस्थान पुत्र गर्भा सदा से रहा है। अगल भारत का इतिहास लिखना है तो प्रारंभ निश्चित रुप से इसी प्रदेश से करना होगा। यह प्रदेश वीरों का रहा है। यहाँ की चप्पा-चप्पा धरती शूरवीरों के शौर्य एवं रोमांचकारी घटनाचक्रों से अभिमण्डित है। राजस्थान में कई गढ़ एवं गढ़ैये ऐसे मिलेंगे जो अपने खण्डहरों में मौन बने युद्धों की साक्षी के जीवन्त अध्याय हैं। यहाँ की हर भूमि युद्धवीरों की पदचापों से पकी हुई है।

प्रसिद्ध अंग्रेज इतिहासविद जेम्स टॉड राजस्थान की उत्सर्गमयी वीर भूमि के अतीत से बड़े अभिभूत होते हुए कहते हैं, ""राजस्थान की भूमि में ऐसा कोई फूल नहीं उगा जो राष्ट्रीय वीरता और त्याग की सुगन्ध से भरकर न झूमा हो। वायु का एक भी झोंका ऐसा नहीं उठा जिसकी झंझा के साथ युद्ध देवी के चरणों में साहसी युवकों का प्रथान न हुआ हो।''

The ROYAL "JAAT'' 18-05-2011 07:03 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
आदर्श देशप्रेम, स्वातन्त्रय भावना, जातिगत स्वाभिमान, शरणागत वत्सलता, प्रतिज्ञा-पालन, टेक की रक्षा और और सर्व समपंण इस भूमि की अन्यतम विशेषताएँ हैं। ""यह एक ऐसी धरती है जिसका नाम लेते ही इतिहास आँखों पर चढ़ आता है, भुजाएँ फड़कने लग जाती हैं और खून उबल पड़ता है। यहाँ का जर्रा-जर्रा देशप्रेम, वीरता और बलिदान की अखूट गाथा से ओतप्रोत अपने अतीत की गौरव-घटनाओं का जीता-जागता इतिहास है। इसकी माटी की ही यह विशेषता है कि यहाँ जो भी माई का लाल जन्म लेता है, प्राणों को हथेली पर लिये मस्तक की होड़ लगा देता है। यहाँ का प्रत्येक पूत अपनी आन पर अड़िग रहता है। बान के लिये मर मिटता है और शान के लिए शहीद होता है।''
राजस्थान भारत वर्ष के पश्चिम भाग में अवस्थित है जो प्राचीन काल से विख्यात रहा है। तब इस प्रदेश में कई इकाईयाँ सम्मिलित थी जो अलग-अलग नाम से सम्बोधित की जाती थी। उदाहरण के लिए जयपुर राज्य का उत्तरी भाग मध्यदेश का हिस्सा था तो दक्षिणी भाग सपालदक्ष कहलाता था। अलवर राज्य का उत्तरी भाग कुरुदेश का हिस्सा था तो भरतपुर, धोलपुर, करौली राज्य शूरसेन देश में सम्मिलित थे। मेवाड़ जहाँ शिवि जनपद का हिस्सा था वहाँ डूंगरपुर-बांसवाड़ा वार्गट (वागड़) के नाम से जाने जाते थे। इसी प्रकार जैसलमेर राज्य के अधिकांश भाग वल्लदेश

The ROYAL "JAAT'' 18-05-2011 07:05 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
में सम्मिलित थे तो जोधपुर मरुदेश के नाम से जाना जाता था। बीकानेर राज्य तथा जोधपुर का उत्तरी भाग जांगल देश कहलाता था तो दक्षिणी बाग गुर्जरत्रा (गुजरात) के नाम से पुकारा जाता था। इसी प्रकार प्रतापगढ़, झालावाड़ तथा टोंक का अधिकांस भाग मालवादेश के अधीन था।
बाद में जब राजपूत जाति के वीरों ने इस राज्य के विविध भागों पर अपना आधिपत्य जमा लिया तो उन भागों का नामकरण अपने-अपने वंश अथवा स्थान के अनुरुप कर दिया। ये राज्य उदयपु, डूंगरपुर, बांसवाड़, प्रतापगढ़, जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़, सिरोही, कोटा, बूंदी, जयपुर, अलवर, भरतपुर, करौली, झालावाड़, और टोंक थे। (इम्पीरियल गजैटियर)

The ROYAL "JAAT'' 18-05-2011 07:06 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
इन राज्यों के नामों के साथ-साथ इनके कुछ भू-भागों को स्थानीय एवं भौगोलिक विशेषताओं के परिचायक नामों से भी पुकारा जाता है। ढ़ूंढ़ नदी के निकटवर्ती भू-भाग को ढ़ूंढ़ाड़ (जयपुर) कहते हैं। मेव तथा मेद जातियों के नाम से अलवर को मेवात तथा उदयपुर को मेवाड़ कहा जाता है। मरु भाग के अन्तर्गत रेगिस्तानी भाग को मारवाड़ भी कहते हैं। डूंगरपुर तथा उदयपुर के दक्षिणी भाग में प्राचीन ५६ गांवों के समूह को ""छप्पन'' नाम से जानते हैं। माही नदी के तटीय भू-भाग को कोयल तथा अजमेर के पास वाले कुछ पठारी भाग को ऊपरमाल की संज्ञा दी गई है। (गोपीनाम शर्मा / सोशियल लाइफ इन मेडिवियल राजस्थान / पृष्ठ ३)

अंग्रेजों के शासनकाल में राजस्थान के विभिन्न इकाइयों का एकीकरण कर इसका राजपूताना नाम दिया गया, कारण कि उपर्युक्त वर्णित अधिकांश राज्यं में राजपूतों का शासन था। ऐसा भी कहा जाता है कि सबसे पहले राजपूताना नाम का प्रयोग जार्ज टामस ने किया। राजपूताना के बाद इस राज्य को राजस्थान नाम दिया गया। आज यह रंगभरा प्यारा प्रदेश इसी राजस्थान के नाम से जाना जाता है।

abhisays 18-05-2011 09:14 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी है, इसके लिए सूत्रधार को बहुत बहुत बधाई.

The ROYAL "JAAT'' 18-05-2011 09:33 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
दोस्तों आगे आपको राजस्थान के महान योद्धाओ लोक देवता -देवियाँ महान विभूतिया गढ़ (किलों)और इसके राज्यों का भी विस्तार पूर्वक जानकारी दूँगा कृपया अपने विचार देकर आगे पोस्ट करने को प्रेरित करे

The ROYAL "JAAT'' 18-05-2011 10:08 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
माफ़ करे दोस्तों अगर आपके रिस्पांस बिना आगे ठीक से पोस्ट नही कर पाऊंगा तो कृपया आप अपना कीमती समय यहाँ जरुर दे आपका आभारी रहूँगा ..........धन्यवाद

amit_tiwari 19-05-2011 01:11 AM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
Bahut khoob. Bandhu!!!! Kaafi achchi jaankari share ki hai.

prashant 19-05-2011 06:10 AM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
हा बहुत ही अच्छी जानकारी बाँट रहे है/

The ROYAL "JAAT'' 20-05-2011 12:38 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
Quote:

Originally Posted by prashant (Post 87254)
हा बहुत ही अच्छी जानकारी बाँट रहे है/

धन्यवाद प्रशांत भाई

The ROYAL "JAAT'' 20-05-2011 12:48 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
Quote:

Originally Posted by abhisays (Post 87169)
बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी है, इसके लिए सूत्रधार को बहुत बहुत बधाई.

आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद .आप ने मेरा मनोबल बढ़ाया इसके लिए शुक्रिया

The ROYAL "JAAT'' 20-05-2011 02:59 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि राजपूताना और राजस्थान दोनों नामों के मूल में "राज' शब्द मुख्य रुप से उभरा हुआ है जो इस बात का सूचक है कि यह भूमि राजपूतों का वर्च लिये रही और इस पर लम्बे समय तक राजपूतों का ही शासन रहा। इन राजपूतों ने इस भूमि की रक्षा के लिए जो शौर्य, पराक्रम और बलिदान दिखाया उसी के कारण सारे वि में इसकी प्रतिष्ठा सर्वमान्य हुई। राजपूतों की गौरवगाथाओं से आज भी यहाँ की चप्पा-चप्पा भूमि गर्व-मण्डित है।

The ROYAL "JAAT'' 20-05-2011 03:01 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
प्रसिद्ध इतिहास लेखक कर्नल टॉड ने इस राज्य का नाम "रायस्थान' रखा क्योंकि स्थानीय साहित्य एवं बोलचाल में राजाओं के निवास के प्रान्त को रायथान कहते थे। इसा का संस्कृत रुप राजस्थान बना। हर्ष कालीन प्रान्तपति, जो इस भाग की इकाई का शासन करते थे, राजस्थानीय कहलाते थे। सातवीं शताब्दी से जब इस प्रान्त के भाग राजपूत नरेशों के आधीन होते गये तो उन्होंने पूर्व प्रचलित अधिकारियों के पद के अनुरुप इस भाग को राजस्थान की संज्ञा दी जिसे स्थानीय साहित्य में रायस्थान कहते थे। जब भारत स्वतंत्र हुआ तथा कई राज्यों के नाम पुन: परिनिष्ठित किये गये तो इस राज्य का भी चिर प्रतिष्ठित नाम राजस्थान स्वीकार कर लिया गया।अगर इस प्रदेश की भौगोलिक संरचना को देख तो राजस्थान के दो प्रमुख भौगोलिक क्षेत्र हैं। पहला, पश्चिमोत्तर जो रेगिस्तानीय है, और दूसरा दक्षिण-पूर्वी भाग जो मैदानी व पठारी है। पश्चिमोत्तर नामक रेगिस्तानी भाग में जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर जिले आते हैं।

The ROYAL "JAAT'' 20-05-2011 03:04 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
यहाँ पानी का अभाव और रेत फैली हुई है। दक्षिण-पूर्वी भाग कई नदियों का उपजाऊ मैदानी भाग है। इन नदियों में चम्बल, बनास, माही आदि बड़ी नदियाँ हैं। इन दोनों भागों के बीचोंबीच अर्द्धवर्तीय पर्वत की श्रृंखलाएं हैं जो दिल्ली से शुरु होकर सिरोही तक फैली हुई हैं। सिरोही जिले में अरावली पर्वत का सबसे ऊँचा भाग है जो आबू पहाड़ के नाम से जाना जाता है। इस पर्वतमाला की एक दूसरी श्रेणी अलवर, अजमेर, हाड़ौती की है जो राजस्थान के पठारी भाग का निर्माण करती हैं।

राजस्थान में बोली जाने वाली भाषा राजस्थानी कहलाती है। यह भारतीय आर्यभाषाओं की मध्यदेशीय समुदाय की प्रमुख उपभाषा है, जिसका क्षेत्रफल लगभग डेढ़ लाख वर्ग मील में है। वक्ताओं की दृष्टि से भारतीय भाषाओं एवं बोलियों में राजस्थानी का सातवां स्थान है। सन् १९६१ की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार राजस्थानी की ७३ बोलियां मानी गई हैं।

The ROYAL "JAAT'' 20-05-2011 03:08 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
सामान्यतया राजस्थानी भाषा को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। इनमें पहला पश्चिमी राजस्थानी तथा दूसरा पूर्वी राजस्थानी। पश्चिमी राजस्थानी की मारवाड़ी, मेवाड़ी, बागड़ी और शेखावटी नामक चार बोलियाँ मुख्य हैं, जबकि पूर्वी राजस्थानी की प्रतिनिधी बोलियों में ढ़ूंढ़ाही, हाड़ौती, मेवाती और अहीरवाटी है। ढ़ूंढ़ाही को जयपुरी भी कहते हैं।

पश्चिमी अंचल में राजस्थान की प्रधान बोली मारवाड़ी है। इसका क्षेत्र जोधपुर, सीकर, नागौर, बीकानेर, सिरोही, बाड़मेर, जैसलमेर आदि जिलों तक फैला हुआ है। साहित्यिक मारवाड़ी को डिंगल तथा पूर्वी राजस्थानी के साहित्यिक रुप को पिंगल कहा गया है। जोधपुर क्षेत्र में विशुद्ध मारवाड़ी बोली जाती है।

The ROYAL "JAAT'' 20-05-2011 10:10 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
दोस्तों में सूत्र के बिच में एक दोस्तके कहने पर आपको एक महान शक्सियत की फोटो दिखा रहा हूं
ये आपको कितनी पसंद आई आपका रेपो मुझे बताएगा.


रानी लक्ष्मीबाई की असली फोटो

http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1305910904
रेपो जरुर करे ताकि आगे भी अच्छे पोस्ट कर सकूँ ....धन्यवाद

The ROYAL "JAAT'' 23-05-2011 09:20 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
दक्षिण अंचल उदयपुर एवं उसके आसपास के मेवाड़ प्रदेश में जो बोली जाती है वह मेवाड़ी कहलाती है। इसकी साहित्यिक परम्परा बहुत प्राचीन है। महाराणा कुम्भा ने अपने चार नाटकों में इस भाषा का प्रयाग किया। बावजी चतर सिंघजी ने इसी भाषा में अपना उत्कृष्ट साहित्य लिखा। डूंगरपुर एवं बांसवाड़ा का सम्मिलित क्षेत्र वागड़ के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र में जो बोली बोली जाती है उसे वागड़ी कहते हैं।

उत्तरी अंचली ढ़ूंढ़ाही जयपुर, किशनगढ़, टोंक लावा एवं अजमेर, मेरवाड़ा के पूर्वी अंचलों में बोली जाती है। दादू पंथ का बहुत सारा साहित्य इसी में लिखा गया है। ढ़ूंढ़ाही की प्रमुख बोलियों में हाड़ौती, किशनगढ़ी, तोरावाटी, राजावाटी, अजमेरी, चौरासी, नागरचोल आदि हैं।

मेवाती मेवात क्षेत्र की बोली है जो राजस्थान के अलवर जिले की किशनगढ़, तिजारा, रामगढ़, गोविन्दगढ़ तथा लक्ष्मणगढ़ तहसील एवं भरतपुर जिले की कामा, डीग तथा नगर तहसील में बोली जाती है। बूंदी, कोटा तथा झालावाड़ क्षेत्र होड़ौती बोली के लिए प्रसिद्ध हैं।

The ROYAL "JAAT'' 23-05-2011 09:21 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
अहीरवाटी अलवर जिले की बहरोड़ तथा मुण्डावर एवं किशनगढ़ जिले के पश्चिम भाग में बोली जाती है। लोकमंच के जाने-माने खिलाड़ी अली बख्स ने अपनी ख्याल रचनायें इसी बोली में लिखी।

राजस्थान की इस भौगोलिक संरचना का प्रभाव यहाँ के जनजीवन पर कई रुपों में पड़ा और यहाँ की संस्कृति को प्रभावित किया। अरावली पर्वत की श्रेणियों ने जहाँ बाहरी प्रभाव से इस प्रान्त को बचाये रखा वहाँ यहाँ की पारम्परिक जीवनधर्मिता में किसी तरह की विकृति नहीं आने दी। यही कारम है कि यहाँ भारत की प्राचीन जनसंस्कृति के मूल एवं शुद्ध रुप आज भी देखने को मिलते हैं।

शौर्य और भक्ति की इस भूमि पर युद्ध निरन्तर होते रहे। आक्रान्ता बराबर आते रहे। कई क्षत्रिय विजेता के रुप में आकर यहाँ बसते रहे किन्तु यहां के जीवनमूल्यों के अनुसार वे स्वयं ढ़लते रहे और यहाँ के बनकर रहे। बड़े-बड़े सन्तों, महन्तों और न्यागियों का यहाँ निरन्तर आवागमन होता रहा। उनकी अच्छाइयों ने यहाँ की संस्कृति पर अपना प्रभाव दिया, जिस कारण यहाँ विभिन्न धर्मों और मान्यताओं ने जन्म लिया किन्तु आपसी सौहार्द और भाईचारे ने यहाँ की संस्कृति को कभी संकुचित और निष्प्रभावी नहीं होने दिया।

The ROYAL "JAAT'' 23-05-2011 09:22 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
राजस्थान में सभी अंचलों में बड़े-बड़े मन्दिर और धार्मिक स्थल हैं। सन्तों की समाधियाँ और पूजास्थल हैं। तीर्थस्थल हैं। त्यौहार और उत्सवों की विभिन्न रंगीनियां हैं। धार्मिक और सामाजिक बड़े-बड़े मेलों की परम्परा है। भिन्न-भिन्न जातियों के अपने समुदायों के संस्कार हैं। लोकानुरंजन के कई विविध पक्ष हैं। पशुओं और वनस्पतियों की भी ऐसी ही खासियत है। ख्यालों, तमाशों, स्वांगों, लीलाओं की भी यहाँ भरमार हैं। ऐसा प्रदेश राजस्थान के अलावा कोई दूसरा नहीं है।

स्थापत्य की दृष्टि से यह प्रदेश उतना ही प्राचीन है जितना मानव इतिहास। यहां की चम्बल, बनास, आहड़, लूनी, सरस्वती आदि प्राचीन नदियों के किनारे तथा अरावली की उपत्यकाओं में आदिमानव निवास करता था। खोजबीन से यह प्रमाणित हुआ है कि यह समय कम से कम भी एक लाख वर्ष पूर्व का था।

यहां के गढ़ों, हवेलियों और राजप्रासादों ने समस्त वि का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। गढ़-गढ़ैये तो यहाँ पथ-पथ पर देखने को मिलेंगे। यहां का हर राजा और सामन्त किले को अपनी निधि और प्रतिष्ठा का सूचक समझता था। ये किले निवास के लिये ही नहीं अपितु जन-धन की सुरक्षा, सम्पति की रक्षा, सामग्री के संग्रह और दुश्मन से अपने को तथा अपनी प्रजा को बचाने के उद्देश्य से बनाये जाते थे।

The ROYAL "JAAT'' 23-05-2011 09:23 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
बोलियों के लिए जिस प्रकार यह कहा जाता है कि यहां हर बारह कोस पर बोली बदली हुई मिलती हैं - बारां कोसां बोली बदले, उसी प्रकार हर दस कोस पर गढ़ मिलने की बात सुनी जाती है। छोट-बड़ा कोई गढ़-गढ़ैया ऐसा नही मिलेगा जिसने अपने आंगन में युद्ध की तलवार न तानी हो। खून की छोटी-मोटी होली न खेली हो और दुश्मनों के मस्तक को मैदानी जंग में गेंद की तरह न घुमाया हो। इन किलों का एक-एक पत्थर अपने में अनेक-अनेक दास्तान लिये हुए है। उस दास्तान को सुनते ही इतिहास आँखों पर चढञ आता है और रोम-रोम तीर-तलवार की भांति अपना शौर्य लिये फड़क उठता है।

शुक नीतिकारों ने दुर्ग के जिन नौ भेदों का उल्लेख किया है वे सभी प्रकार के दुर्ग यहां देखने को मिलते हैं। इनमें जिस दुर्ग के चारों ओर खाई, कांटों तथा पत्थरों से दुर्गम मार्ग बने हों वह एरण दुर्ग कहलाता है। चारों ओर जिसके बहुत बड़ी खाई हो उसे पारिख दुर्ग की संज्ञा दी गई हैं। एक दुर्ग पारिख दुर्ग कहता है जिसके चारो तरफ ईंट, पत्थर और मिट्टी की बड़ी-बड़ी दिवारों का विशाल परकोटा बना हुआ होता है। जो दुर्ग चारों ओर बड़े-बड़े कांटेदार वृक्षों से घिरा हुआ होता है वह वन दुर्ग ओर जिसके चारों ओर मरुभूमि का फैलाव हो वह धन्व दुर्ग कहलाता है।

The ROYAL "JAAT'' 23-05-2011 09:25 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
इसी प्रकार जो दुर्ग चारों ओर जल से घिरा हो वह जल दुर्ग की कोटि में आता है। सैन्य दुर्ग अपने में विपुल सैनिक लिये होता है जबकि सहाय दुर्ग में रहने वाले शूर एवं अनुकूल आचरण करने वाले लोग निवास करते हैं। इन सब दुर्गों में सैन्य दुर्ग सर्वश्रेष्ठ दुर्ग कहा गया है।

""श्रेष्ठं तु सर्व दुर्गेभ्य: सेनादुर्गम: स्मृतं बुद:।''

राजस्थान का चित्तौड़ का किला तो सभी किलों का सिरमौर कहा गया है। कुम्भलगढ़, रणथम्भौर, जालौर, जोधपुर, बीकानेर, माण्डलगढ़ आदि के किले देखने से पता चलता है कि इनकी रचना के पीछे इतिहास, पुरातत्व, जीवनधर्म और संस्कृति के कितने विपुल सरोकार सचेतन तत्व अन्तर्निहित हैं।

यही स्थिति राजप्रासादों और हवेलियों की रही है। इनके निर्माण पर बाहर से आने वाले राजपूतों तथा मुगलों की संस्कृति का प्रभाव भी स्पष्टता: देखने को मिलता है। बूंदी, कोटा तथा जैसलमेर के प्रासाद मुगलसैली से प्रभावित हैं, जबकि उदयपुर का जगनिवास, जगमन्दिर, जोधपुर का फूलमहल, आमेर व जयपुर का दीवानेखास व दीनानेआम, बीकानेर का रंगमहल, शीशमहल आदि राजपूत व मुगल पद्धति का समन्व्य लिये हैं। मन्दिरों के स्थापत्य के साथ भी यही स्थिति रही। इन मन्दिरों के निर्माण में हिन्दू, मुस्लिम और मुगल शैली का प्रभाव देखकर उस समय की संस्कृति, जनजीवन, इतिहास और शासन प्रणाली का अध्ययन किया जा सकता है।

The ROYAL "JAAT'' 23-05-2011 09:28 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
आबू पर्वत पर ४००० फुच की ऊँचाई पर बसे देलवाड़ा गाँव के समीप बने दो जैन मन्दिर संगमरमर के प्रस्तरकला की विलक्षण जालियों, पुतलियों, बेलबूटों और नक्काशियों के कारण सारे वि के महान आश्चर्य बने हुए हैं। प्रख्यात कला-पारखी रायकृष्ण दास इनके सम्बन्ध में अपना विचार प्रकट करते हुए लिखते हैं -

संगमरमर ऐसी बारीकी से तराशा गया है
कि मानो किसी कुशल सुनार ने रेती से
रेत-रेत कर आभूषण बनाये हो। यहां पहुंचने
पर ऐसा मालूम होता है कि स्वप्न के
अद्भूत लोक में आ गये हैं। इनकी सुन्दरता
ताज से भी कहीं अधिक है। (भारतीय मूर्तिकार /
पृष्ठ १३३-१३४)

The ROYAL "JAAT'' 23-05-2011 09:50 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
इसी प्रकार जोधपुर का किराड़ मन्दिर, उदयपुर का नागदा का सास-बहू का मन्दिर, अर्घूणा का जैन मन्दिर, चित्तौड़ का महाराणा कुम्बा द्वारा निर्मित कीर्तिस्तम्भ, रणकपुर का अनेक कलात्मक खम्भों के लिये प्रसिद्ध जैन मन्दिर, बाड़मेर का किराडू मन्दिर स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। हवेली स्थापत्य की दृष्टि से रामगढ़, नवलगढ़, फतेहपुर की हवेलियां देखते ही बनती हैं। जैसलमेर की पटवों की हवेली तथा नथमल एवं सालमसिंह की हवेली, पत्थर की जाली एवं कटाई के कारण विश्वप्रसिद्ध हो गई। हवेली शैली के आधार पर यहां के वैष्णव मन्दिर भी बड़े प्रसिद्ध हैं। इन हवेलियों के साथ-साथ यहां के हवेली संगीत तथा हवेली-चित्रकला ने बी सांस्कृतिक जगत में अपनी अनूठी पहचान दी है।

चित्रकला की दृष्टि से भी राजस्थान अति समृद्ध है। यहाँ विभिन्न शैलियों के चित्रों का प्रचुर मात्रा में सजृन किया गया। ये चित्र किसी एक स्थान और एक कलाकार द्वारा निर्मित नहीं होकर विभिन्न नगरों, राजधानियों, धर्मस्थलों और सांस्कृतिक प्रतिष्ठानों की देन हैं। राजाओं, सामन्तों, जागीरदारों, श्रेष्ढीजनों तथा कलाकारों द्वारा चित्रकला के जो रुप उद्घाटित हुए वे अपने समग्र रुप में राजस्थानी चित्रकला के व्यापक परिवेश से जुड़े किन्तु कवियों, चितासे, मुसव्विरों, मूर्तिकारों, शिल्पाचार्यों आदि का जमघट दरबारों में होने के कारण राजस्थानी चित्रकला की अजस्र धारा अनेक रियासती शैलियों, उपशैलियों को परिप्लावित करती हुई १७वीं-१८वीं शती में अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंची। अधिकांश रियासतों के चित्रकारों ने जिन-जिन तौर-तरीकों के चित्र बनाए, स्थानानुसार अपनी परिवेशगत मौलिकता, राजनैतिक सम्पर्क, सामाजिक सम्बन्धों के कारण वहां की चित्रशैली कहलाई।

The ROYAL "JAAT'' 23-05-2011 09:57 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
पुरालेखा संग्रह का काल

भारत में पुरालेख संग्रह का काल वस्तुत: मुस्लिम शासकों की देन है। केन्द्रीय शासन का प्रान्तों और जिलों से तथा जिला इकाईयों का प्रांतीय प्रशासन और केन्द्र से पत्र व्यवहार, प्रशासनिक रिकॉर्ड, अभिदानों का वर्णन आदि हमें १३वीं शताब्दी से मिलने लगते हैं, किन्तु व्यवस्थित रुप में पुरालेखा सामग्री मुगलकाल और उसके पश्चात प्राप्त होती है। ब्रिटिश काल तो प्रशासनिक कार्यालयों पर आधारित था। अत: इस काल का रिकॉर्ड प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। राजस्थान में मुगल शासकों के प्रभाव तथा उनसे प्रशासनिक सम्बन्धों के कारण १६वीं शताब्दी के पश्चात् विभिन्न राज्यों में राजकीय पत्रों और कार्यवाहियों को सुरक्षित रखने का कार्य प्रारम्भ हुआ। मालदेव, मारवाड़ राज्य का प्रथम प्रशासक था, सम्भवत: जिसने मुगल बादशाह हुमायुं के पुस्तकलाध्यक्ष मुल्ला सुर्ख को रिका र्ड संग्रह अथवा पुस्तक संग्रह हेतु अपने राज्य में नियुक्त किया था। १५६२ ईं. से आमेर के राजघराने और १५१० ई. तक राजस्थान के अधिकांश शासकों ने मुगल शासक अकबर के समक्ष समपंण कर दिया था। उसके पश्चात वे मुगल प्रशासन में मनसबदार, जागीरदार आदि बनाये गये। इस प्रकार राजस्थान के राजघरानों में उनके और मुगल शासन के मध्य प्रशासनिक कार्यवाहियों का नियमित रिकॉर्ड रखा जाने लगा। ऐसे ही राज्यों और उनके जागीरदारों के मध्य भी रिकॉर्ड जमा हुआ। यह रिकॉर्ड यद्यपि १८-१९वीं शताब्दी में मराठा अतिक्रमणों, पिंडारियी की लूट-खसोट में नष्ट भी हुआ, किन्तु १९वीं शताब्दी के उतरार्द्ध से रियासतों के राजस्थान राज्य में विलय होने तक का रिकॉर्ड प्रचुर मात्रा में मिलता है। इसे रियासतों द्वारा राजस्थान सरकार को राज्य अभिलेखागार हेतु समर्पित कर दिया गया, फिर भी जागीरों के रिकॉर्ड तथा अन्य लोकोपयोगी पुरालेखा सामग्री भूतपूर्व राजाओं के पास अभी भी पड़ी हुई है।

The ROYAL "JAAT'' 23-05-2011 10:00 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास




देश (भारत) की आजादी के पूर्व राजस्थान १९ देशी रियासतों में बंटा था, जिसमें अजमेर केन्द्रशासित प्रदेश था। इन रियासतों में उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और शाहपुरा में गुहिल, जोधपुर, बीकानेर और किशनगढ़ में राठौड़ कोटा और बूंदी में हाड़ा चौहान, सिरोही में देवड़ा चौहान, जयपुर और अलवर में कछवाहा, जैसलमेर और करौली में यदुवंशी एवं झालावाड़ में झाला राजपूत राज्य करते थे। टोंक में मुसलमानों एवं भरतपुर तथा धौलपुर में जाटों का राज्य था। इनके अलावा कुशलगढ़ और लावा की चीफशिप थी। कुशलगढ़ का क्षेत्रफल ३४० वर्ग मील था। वहां के शासक राठौड़ थे। लावा का क्षेत्रफल केवल २० वर्ग मील था। वहां के शासक नारुका थे।

The ROYAL "JAAT'' 23-05-2011 10:04 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
राजस्थान के शौर्य का वर्णन करते हुए सुप्रसिद्ध इतिहाससार कर्नल टॉड ने अपने ग्रंथ ""अनाल्स एण्ड अन्टीक्कीटीज आॅफ राजस्थान'' में कहा है, ""राजस्थान में ऐसा कोई राज्य नहीं जिसकी अपनी थर्मोपली न हो और ऐसा कोई नगर नहीं, जिसने अपना लियोजन डास पैदा नहीं किया हौ।'' टॉड का यह कथन न केवल प्राचीन और मध्ययुग में वरन् आधुनिक काल में भी इतिहास की कसौटी पर खरा उतरा है। ८वीं शताब्दी में जालौर में प्रतिहार और मेवाड़ के गहलोत अरब आक्रमण की बाढ़ को न रोकते तो सारे भारत में अरबों की तूती बोलती न आती। मेवाड़ के रावल जैतसिंह ने सन् १२३४ में दिल्ला के सुल्तान इल्तुतमिश और सन् १२३७ में सुल्तान बलबन को करारी हार देकर अपनी अपनी स्वतंत्रता की रक्षी की। सन् १३०३ में सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने एक विशान सेना के साथ मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर हमला किया। चित्तौड़ के इस प्रथम शाके हजारों वीर वीरांगनाओं ने मातृभूमि की रक्षा हेतु अपने आपको न्यौछावर कर दिया, पर खिलजी किले पर अधिकार करने में सफल हो गए। इस हार का बदला सन् १३२६ में राणा हमीर ने चुकाया, जबकि उसने खिलजी के नुमाइन्दे मालदेव चौहान और दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद तुगलक की विशाल सेना को हराकर चित्तौड़ पर पुन: मेवाड़ की पताका फहराई।

The ROYAL "JAAT'' 23-05-2011 10:09 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
१५वीं शताब्दी के मध्य में मेवाड़ का राणा कुम्भा उत्तरी भारत में एक प्रचण्ड शक्ति के रुप में उभरा। उसने गुजरात, मालवा, नागौर के सुल्तान को अलग-अलग और संयुक्त रुप से हराया। सन् १५०८ में राणा सांगा ने मेवाड़ की बागडोर संभाली। सांगा बड़ा महत्वाकांक्षी था। वह दिल्ली में अपनी पताका फहराना चाहता था। समूचे राजस्थान पर अपना वर्च स्थापित करने के बाद उसने दिल्ली, गुजरात और मालवा के सुल्तानों को संयुक्त रुप से हराया। सन् १५२६ में फरगाना के शासक उमर शेख मिर्जा के पुत्र बाबर ने पानीपत के मैदान में सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली पर अधिकर कर लिया। सांगा को विश्वास था कि बाबर भी अपने पूर्वज तैमूरलंग की भांति लूट-खसोट कर अपने वतन लौट जाएगा, पर सांगा का अनुमार गलत साबित हुआ। यही नहीं, बाबर सांगा से मुकाबला करने के लिए आगरा से रवाना हुआ। सांगा ने भी समूचे राजस्थान की सेना के साथ आगरा की ओर कूच किया। बाबर और सांगा की पहली भिडन्त बयाना के निकट हुई। बाबर की सेना भाग खड़ी हुई। बाबर ने सांगा से सुलह करनी चाही, पर सांगा आगे बढ़ताही गया। तारीख १७ मार्च, १५२७ को खानवा के मैदान में दोनों पक्षों में घमासान युद्ध हुआ। मुगल सेना के एक बार तो छक्के छूट गए। किंतु इसी बीच दुर्भाग्य से सांगा के सिर पर एक तीर आकर लगा जिससे वह मूर्छित होकर गिर पड़ा। उसे युद्ध क्षेत्र से हटा कर बसवा ले जाया गया। इस दुर्घटना के साथ ही लड़ाई का पासा पलट गया, बाबर विजयी हुआ। वह भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डालने में सफल हुआ, स्पष्ट है कि मुगल साम्राज्य की स्थापना में पानीपत का नहीं वरन् खानवा का युद्ध निर्णायक था।

The ROYAL "JAAT'' 23-05-2011 10:11 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
खानवा के युद्ध ने मेवाड़ की कमर तोड़ दी। यही नहीं वह वर्षो तक ग्रह कलह का शिकार बना रहा। अब राजस्थान का नेतृत्व मेवाड़ शिशोदियों के हाथ से निकल कर मारवाड़ के राठौड़ मालदेव के हाथ में चला गया। मालदेव सन् १५५३ में मारवाड़ की गद्दी पर बैठा। उसने मारवाड़ राज्य का भारी विस्तार किया। इस समय शेरशाह सूरी ने बाबर के उत्तराधिकारी हुमायूं को हराकर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। शेरशाह ने राजस्थान में मालदेव की बढ़ती हुई शक्ति देखकर मारवाड़ के निकट सुमेल गांव में शेरशाह की सेना के ऐसे दाँत खट्टे किये कि एक बार तो शेरशाह का हौसला पस्त हो गया। परन्तु अन्त में शेरशाह छल-कपट से जीत गया। फिर भी मारवाड़ से लौटते हुए यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ा - ""खैर हुई वरना मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्तान की सल्तनत खो देता।''

The ROYAL "JAAT'' 23-05-2011 10:12 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
सन् १५५५ में हुमायूं ने दिल्ली पर पुन: अधिकार कर लिया। पर वह अगले ही वर्ष मर गया। उसके स्थान पर अकबर बादशाह बना। उसने मारवाड़ पर आक्रमण कर अजमेर, जैतारण, मेड़ता आदि इलाके छीन लिए। मालदेव स्वयं १५६२ में मर गया। उसकी मृत्यु के पश्चात् मारवाड़ का सितारा अस्त हो गया। सन् १५८७ में मालदेव के पुत्र मौटा राजा उदयसिंह ने अपनी लड़की मानाबाई का विवाह शहजादे सलीम से कर अपने आपको पूर्णरुप से मुगल साम्राज्य को समर्पित कर दिया। आमेर के कछवाहा, बीकानेर के राठौड़, जैसलमेर के भाटी, बूंदी के हाड़ा, सिरोही के देवड़ा और अन्य छोटे राज्य इससे पूर्व ही मुगलों की अधीनता स्वीकार कर चुके थे।

The ROYAL "JAAT'' 23-05-2011 10:13 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
अकबर की भारत विजय में केवल मेवाड़ का राणा प्रताप बाधक बना रहा। अकबर ने सन् १५७६ से १५८६ तक पूरी शक्ति के साथ मेवाड़ पर कई आक्रमण किए, पर उसका राणा प्रताप को अधीन करने का मनोरथ सिद्ध नहीं हुआ स्वयं अकबर प्रताप की देश-भक्ति और दिलेरी से इतना प्रभावित हुआ कि प्रताप के मरने पर उसकी आँखों में आंसू भर आये। उसने स्वीकार किया कि विजय निश्चय ही गहलोत राणा की हुई। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रताप जैसे नर-पुंगवों के जीवन से ही प्रेरणा प्राप्त कर अनेक देशभक्त हँसते-हँसते बलिवेदी पर चढ़ गए।

The ROYAL "JAAT'' 23-05-2011 10:22 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
दोस्तों आपके सामने राजस्थान के इतिहास से जुडी कुछ फोटो




http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1306171166

The ROYAL "JAAT'' 23-05-2011 10:23 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1306171166

The ROYAL "JAAT'' 23-05-2011 10:24 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1306171166

The ROYAL "JAAT'' 24-05-2011 11:52 AM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
महाराणा प्रताप की मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी अमर सिहं ने मुगल सम्राट जहांगीर से संधि कर ली। उसने अपने पाटवी पुत्र को मुगल दरबार में भेजना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार १०० वर्ष बाद मेवाड़ की स्वतंत्रता का भी अन्त हुआ। मुगल काल में जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, और राजस्थान के अन्य राजाओं ने मुगलों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर मुगल साम्राज्यों के विस्तार और रक्षा में महत्वपूर्ण भाग अदा किया। साम्राज्य की उत्कृष्ट सेवाओं के फलस्वरुप उन्होंने मुगल दरबार में बड़े-बड़े औहदें, जागीरें और सम्मान प्राप्त किये।

The ROYAL "JAAT'' 24-05-2011 11:53 AM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
राजस्थानी मंदिर वास्तु शिल्प


राजस्थान का वास्तुशिल्प की श्रीवृद्धि में उल्लेखनीय योगदान रहा है। मन्दिर वास्तु शिल्प के उद्भव का स्रोत वे छोटे-छोटे मन्दिर रहे हैं जिन्हें प्रारम्भ में लोगों की धार्मिक अनुभूतियों को प्रोत्साहित करने के लिए बनवाया गया था। प्रारम्भ में बने मन्दिरों में केवल एक कक्ष होता था जिसके साथ दालान जुड़ा रहता था, चौथी और पांचवी सदियां स्थापत्य शिल्प के इतिहास में स्वर्ण युग की अगुआ रही है जब रुप सज्जा और धार्मिक निष्ठा संयोग ने भक्तों पर प्रभाव डाला।

The ROYAL "JAAT'' 24-05-2011 11:55 AM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
राजस्थान केवल अपनी कीर्ति कथाओं या त्याग और बलिदानों के कारण ही यशस्वी नहीं है अपितु अपने असंख्य समृद्धिशाली मन्दिरों के लिए भी प्रसिद्ध है। स्थापत्य शिल्प के क्षेत्र में राजस्थान ने स्वयं अपनी एक अत्युत्तम शैली को जन्म दिया जो ओसिया, किराडु, हर्ष, अजमेर, आबू, चन्द्रावती, बाडौली, गंगोधरा, मेनाल, चित्तौड़, जालौर और बागेंहरा के रमणीक मन्दिरों में दृष्टव्य है। चौहानों, परमारों और कुछ अन्य राजपूत वंशों के महान निर्माताओं की संज्ञा दी जानी चाहिए और पृथ्वीराज विजय उनकी उपलब्धियों में मात्र जीते हुए युद्धों का ही नहीं वरन् उनके द्वारा निर्मित महान और श्रेष्ठ मन्दिरों के निर्माण की भी महान कहानी है।

The ROYAL "JAAT'' 24-05-2011 11:56 AM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
साथ-साथ बने हिन्दू और जैन मन्दिरों के निर्माण में स्थापत्य के सिद्धान्त एक-दूसरे के अत्यन्त अनुरुप थे। मुख्य संस्थापक मंदिरों की रुपरेखा और योजना बनाने के लिए उत्तरदायी होता ता। इनका निष्पादन शिल्पी, स्थापक, सूत्र ग्राहिणी, तक्षक और विरधाकिन आदि कारीगर करते थे। यद्यपि इन संरचनाओं में एकरुपता दृष्टिगोचर होती है तथापि इन पर क्षेत्रीय प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सका जो मंदिरों, गर्भग्रहों, शिखरों और छतों के अलंकरणों में दृष्टव्य है।


राजस्थान को स्थापत्य शिल्प का उत्तराधिकारी सीधा गुहा काल से प्राप्त हुआ जो कला के नये कीर्तिमानों की प्रचुरता के कारण स्वर्ण युग माना जाता है। ओसिया के मन्दिर स्थापत्य कला के केत्र में अत्यधिक पूर्णता प्राप्त स्मारक हैं।

The ROYAL "JAAT'' 24-05-2011 11:57 AM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
चित्तौड़ग के समीप नागरी में प्राप्त ४८१ ई. के एक शिलालेख से राजस्थान में प्रारम्भिक वैष्णव मन्दिरों का प्रभाव ज्ञात होता है#ै। जहां तक राजस्थान का सम्बन्ध है, पहली से सातवीं सदी तक मेवाड़ की भूमि वैष्णवों का मुक्य गढ़ रहा था जहां के भक्तों की कृष्ण और बलराम पर अनन्य श्रृद्धा थी। सातवीं सदी के पश्चात् निर्मित मन्दिरों पर तांत्रिक प्रभाव पड़े बिना न रह सका जो वैष्णव मन्दिरों की सज्जा में स्पष्टत: परिलक्षित होने लगा था।

अलवर के तसाई शिलालेख के अनुसार बलराम के साथ-साथ वारुणी की भी पूजा होती थी। दसवीं ग्याहरवीं सदी के जगत और रामगढ़ के मन्दिरों अन्य उदाहरण हैं जिनमें तांत्रिक अभ्यास का ज्ञान होता था। राजस्थान में प्रतिहारों का युग उन मन्दिरों के निर्माण के लिए उल्लेखनीय है जिनमें सूर्य और शिव की मूर्तियां प्रतिष्ठित की गई हैं। भीनमाल, ओसिया, मण्डोर और हर्षनाथ के मन्दिर जिनमें भगवान् सूर्य प्रतिष्ठित हैं, राजस्थानी स्थापत्य शिल्प की मनोहारी कृतियां हैं।

The ROYAL "JAAT'' 24-05-2011 11:58 AM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
प्रतिहार में कोई निश्चित देवी-देवता नहीं था। कुछ लोग वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी थे तो कुछ शैव सम्प्रदाय को मानने वाले थे। उदाहरण के लिए रामभद्र सूर्य का अनन्य भक्त था लेकिन माथनदेव शिवपूजा का समर्थक था। मेवाड़ में शिव मन्दिर की भरमार थी जिन में सर्वाधिक प्रसिद्ध है एकलिंग जी का मंदिर जिसे परम्परानुसार सर्वप्रथम महारावल द्वारा निर्मित बताया जाता है।

शिव, विष्णु और सूर्य निर्मित देवताओं के अतिरिक्त राजस्थान के मन्दिरों में शक्ति के साथ-साथ भगवती, दुर्गा की प्रतिष्ठा की गयी थी। इनमें जगत, मण्डोर, जयपुर और पुष्कर का ब्रह्मा मन्दिर उल्लेखनीय है। आबानेरी और मण्डोर में नृत्य करते हुए गणेश की मूर्तियां भी पाई जाती हैं।


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