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rajnish manga 26-01-2013 10:34 PM

आज़ादी के ज़ब्तशुदा गीत
 
झंडा गीत
(कवि: श्याम लाल गुप्त ‘पार्षद’ )

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा.

सदा शक्ति बरसाने वाला, प्रेम सुधा सरसाने वाला,
वीरों को हरषाने वाला, मातृभूमि का तन मन सारा. झंडा.

स्वतंत्रता के भीषण रण में,लाख कर जोश बढ़े क्षण क्षण में,
कांपें शत्रु देख कर मन में, ृमिट जाए भय संकट सारा. झंडा.

ईस झंडे के नीचे निर्भय, लें स्वराज्य यह अविचल निश्चय,
बोलेन भारत माता की जय, स्वतंत्रता हो ध्येय हमारा. झंडा.

आओ! प्यारे वीरो, आओ! देश-धर्म पर बलि बलि जाओ,
एक साथ सब मिल कर गाओ,प्यारा भारत देश हमारा. झंडा.

इस की शान न जाने पाए, जाहे जान भले ही जाए,
विश्व विजय करके दिखलायें, तब होवे प्राण पूर्ण हमारा. झंडा.

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा. झंडा ऊँचा रहे हमारा.
*****

rajnish manga 26-01-2013 10:35 PM

Re: आज़ादी के ज़ब्तशुदा गीत
 
वन्दे मातरम
(कवि: अज्ञात)

छीन सकती है नहीं सरकार वन्दे मातरम,
हम ग़रीबों के गले का हार वन्दे मातरम.
सरचढ़ों के सर में चक्कर उस समय आता ज़रूर,
कां में पहुँची जहाँ झंकार वन्दे मातरम.
मौत के मुंह में खड़ा है, कह रहा जल्लाद से
भोंक दे सीने में वो तलवार वन्दे मातरम.
ईद, होली, दशहरा, शब्रात से भी सौ गुना,
है हमारा लाड़ला त्यौहार वन्दे मातरम.
जालिमों का ज़ुल्म भी काफ़ूर सा उड़ जाएगा,
फैंसला होगा सरे बाज़ार वन्दे मातरम.
*****

rajnish manga 26-01-2013 10:36 PM

Re: आज़ादी के ज़ब्तशुदा गीत
 
वन्दे मातरम
(कवि: विश्व नाथ शर्मा)
कौम के ख़ादिम की है जागीर वन्दे मातरम,
मुल्क के है वास्ते अक्सीर वन्दे मा त र म.
ज़ालिमों को है उधर बन्दूक अपनी पर ग़रूर,
है इधर हम बेकसों का तीर वन्दे मातरम.
क़त्ल कर हमको न क़ातिल तू, हमारे खून से,
तेग पर हो जाएगा तहरीर वन्दे मातरम.
फ़िक्र क्या जल्लाद ने ग़र क़त्ल पर बाँधी कमर,
रोक देगा ज़ोर से शमशीर वन्दे मातरम.
ज़ुल्म से गर कर दिया खामोश मुझको देखना,
बोल उठ्ठेगी मेरी तस्वीर वन्दे मातरम.
संतरी भी मुज़्तरिब है जब कि हर झंकार से,
बोलती है जेल में ज़ंजीर वन्दे मातरम.
*****

rajnish manga 26-01-2013 10:37 PM

Re: आज़ादी के ज़ब्तशुदा गीत
 
हिन्दोस्तां हमारा
(शायर: इक़बाल)
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोसतां हमारा,
हम बुलबुलें हैं इसकी, ये गुलसितां हमारा.
पर्बत वो सब से ऊंचा, हमसाया आसमां का,
वो संतरी हमारा वो पासबान हमारा.
गोदी में खेलती हैं उसकी हज़ारों नदियां,
गुलशन है जिनके दम से रश्के-जिनां हमारा.
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,
हिंदी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा.
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन दौरे ज़मां हमारा.
*****

rajnish manga 26-01-2013 10:37 PM

Re: आज़ादी के ज़ब्तशुदा गीत
 
सैय्याद की करामात
(शायर: असग़र)

मुर्ग़ दिल मत रो, यहाँ आंसू बहाना है मना,
अन्दलीबों को कफ़स में चहचहाना है मना.
हाय ! जल्लादी तो देखो, कह रहा सैय्याद से,
वक्ते-ज़िबह बुलबुलों को फड़फड़ाना है मना.
ऐ मेरे ज़ख्मे-जिगर नासूर बनना है तो बन,
क्या करूं इस ज़ख्म पर मरहम लगाना है मना.
खूने दिल पीते हैं असग़र, खाते है लख्ते-जिगर,
इस कफ़स में कैदियों को आबो-दाना है मना.
*****

rajnish manga 26-01-2013 10:39 PM

Re: आज़ादी के ज़ब्तशुदा गीत
 
हिन्दू-मुस्लिम एकता
(शायर: अज्ञात)

क्या हुआ ग़र मर गए अपने वतन के वास्ते,
बुलबुलें कुर्बान होती हैं चमन के वास्ते.
तरस आता है तुम्हारे हाल पे, ऐ हिन्दियो,
ग़ैर के मोहताज हो अपने कफ़न के वास्ते.
देखते हैं आज जिसको शाद है, आज़ाद है,
क्या तुम्हीं पैदा हुए रंजो-मिहन के वास्ते?
हिन्दुओं को चाहिए अब क़स्द क़ाबे का करें,
और फिर मुस्लिम बढ़ें गंगो-जमन के वास्ते.
*****

rajnish manga 26-01-2013 10:40 PM

Re: आज़ादी के ज़ब्तशुदा गीत
 
अहद
(शायर: सागर निज़ामी)

जब तिलाई रंग सिक्कों को नचाया जाएगा,
जब मेरी गैरत को दौलत से लड़ाया जाएगा,
जब रगे इफ़्लास को मेरी दबाया जाएगा,
ऐ वतन! उस वक़्त भी मैं तेरे नग़में गाउंगा.
और अपने पांव से अम्बारे-ज़र ठुकराऊंगा.

जब मुझे पेड़ों से उरियां करके बांधा जाएगा,
गर्म आहन से मिरे होठों को दाग़ा जाएगा,
जब दहकती आग पर मुझको लिटाया जाएगा,
ऐ वतन! उस वक़्त भी मैं तेरे नग़में गाउंगा.
तेरे नग़मे गाऊंगा और आग पर सो जाऊंगा.

खून से रंगीन हो जायेगी जब तेरी बहार,
सामने होंगी मिरे जब सर्द लाशें बेशुमार,
जब मिरे बाज़ू पे सर आ कर गिरेंगे बार बार,
ऐ वतन! उस वक़्त भी मैं तेरे नग़में गाउंगा.
और दुश्मन की सफ़ों पर बिजलियाँ बर्साऊंगा.

जब दरे-ज़िन्दां खुलेगा बरमला मेरे लिए,
इन्तकामी जब सज़ा होगी रवा मेरे लिए,
हर नफ़स जब होगा पैगामे कज़ा मेरे लिए,
ऐ वतन! उस वक़्त भी मैं तेरे नग़में गाउंगा.
बादाकश हूँ, ज़हर की तल्खी से क्या घबराऊँगा.

हुक्म आखिर क़त्ल गह में जब सुनाया जाएगा,
जब मुझे फांसी के फंदे पर चढ़ाया जाएगा,
जब यकायक तख्ता-ए-खूनी हटाया जाएगा,
ऐ वतन! उस वक़्त भी मैं तेरे नग़में गाउंगा.
अहद करता हूँ कि मैं तुझ पर फ़िदा हो जाऊंगा.
*****

rajnish manga 26-01-2013 10:42 PM

Re: आज़ादी के ज़ब्तशुदा गीत
 
मैं उनके गीत गाता हूँ
(शायर: जां निसार ‘अख्तर’)

मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ!
जो शाने पर बग़ावत का अलम ले कर निकलते हैं,
किसी ज़ालिम हकूमत के धड़कते दिल पे चलते हैं,
मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ!

जो रख देते हैं सीना गर्म तोपों के दहानों पर,
नज़र से जिनकी बिजली कौंधती है आसमानों पर,
मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ!

जो आज़ादी की देवी को लहू की भेंट देते हैं,
सदाक़त के लिए जो हाथ में तलवार लेते हैं,
मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ!

जो परदे चाक करते हैं हुकूमत की सियासत के,
जो दुश्मन हैं क़दामत के, जो हामीं है बग़ावत के,
मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ!

वो दहकां जिनके खिरमन में हैं पिन्हाँ बिजलियाँ अपनी,
लहू से जालिमों के सींचते हैं खेतियाँ अपनी,
मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ!

कुचल सकते हैं जो मजदूर ज़र के आस्तानों को,
जो जल कर आग दे देते हैं जंगी कारखानों को,
मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ!

झुलस सकते हैं जो शोलों से कुफ्रो-दीं की बस्ती को,
जो लानत जानते हैं मुल्क मैं फ़िरका-परस्ती को,
मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ!

वतन के नौजवानों में नए जज्बे जगाऊंगा,
मैं उनके गीत गाऊंगा, मैं उनके गीत गाऊंगा.
*****

rajnish manga 26-01-2013 10:43 PM

Re: आज़ादी के ज़ब्तशुदा गीत
 
पुष्प की अभिलाषा
(रचना: कविवर माखन लाल चतुर्वेदी)

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूंथा जाऊं.
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ.

चाह नहीं सम्राटों के शव पर,
हे हरी, डाला जाऊं.
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ.

मुझे तोड़ लेना, बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढाने,
जिस पथ जाएँ वीर अनेक.
*****

rajnish manga 26-01-2013 10:44 PM

Re: आज़ादी के ज़ब्तशुदा गीत
 
आगे बढ़ेंगे
(शायर: अली सरदार जाफ़री)

वो बिजली सी चमकी, वो टूटा सितारा,
वो शोला-सा लपका, वो तदपा शरारा,
जुनूने-बग़ावत ने दिल को उभारा,
बढ़ेंगे अभी और आगे बढ़ेंगे.

कुदालों के फल, दोस्तो, तेज कर लो,
मुहब्बत के साग़र को लबरेज़ कर लो
ज़रा और हिम्मत को मह्मेज़ कर लो,
बढ़ेंगे अभी और आगे बढ़ेंगे.

विज़ारत की मंजिल हमारी नहीं है,
यह आंधी है, बादे-बहारी नहीं है,
जिरह हमने तन से उतारी नहीं है,
बढ़ेंगे अभी और आगे बढ़ेंगे.

उफ़ुक़ के किनारे हुए हैं गुलाबी,
सहर की निगाहों में है बर्कताबी,
क़दम चूमने आई है कामयाबी,
बढ़ेंगे अभी और आगे बढ़ेंगे.

महकते हुए मुर्ग़जारों से आगे,
लचकते हुए आबशारों से आगे,
बिहिश्ते-बरीं की बहारों से आगे,
बढ़ेंगे अभी और आगे बढ़ेंगे.
*****


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