राधा-मोहन (परमिन्दर सिंह अज़ीज़)
दोस्तो,
यह मेरी इस फ़ोरम पर पहली पोस्ट है। उम्मीद करता हूँ आप इस प्रयास को सराहेंगे। राधा-मोहन हम से धीरज धरने वाले, धीरज ही तो धरते हैं। आओ प्रिये! अब आ ही जाओ, अब हम लीला करते हैं। पलकों को पलकों से छू कर, स्वप्न तुम्हारा छनता है। सिन्दूरी शामों में इन्द्रधनुष का नक़्शा बनता है। उन अधरों से जब रस बरसे, चक्र समय का रुक जाए। महक तुम्हारी साँसों की, मेरी साँसों को महकाए। जिन का दिल है पत्थर का, वो करनी का फल पाएंगे। जो कहते हैं, हम को देखा है, पत्थर हो जाएंगे। बंसी की धुन शाम सवेरे, बजती है वृन्दावन में। हलचल पैदा कर देती है, राधा के अन्तर्मन में। मैंने भी कुछ गीत लिखे हैं, बिलकुल मूरत जैसे हैं। मेरे मन में बसने वाली, भोली सूरत जैसे हैं। व्याकुलता कुछ थम जाएगी, तुम जो दिल को बहलाओ। तुम से धड़कन कुछ कहती है, आओ, आ कर सुन जाओ। मुझे में जैसे आधा तू है, तुझ में आधा मैं भी हूँ। जैसे तू है आधा मोहन, आधी राधा मैं भी हूँ। |
Re: राधा-मोहन (परमिन्दर सिंह अज़ीज़)
Azeez ji aap bahut hi umdaa likhte ho....maine bhi apni website pe naye poets k liye community banayi hai...aap chahein toh use kr sakte hain ose
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