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-   -   लाल बहादुर शास्त्री और आधुनिक जनप्रतिनिध (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=5910)

jai_bhardwaj 11-01-2013 05:30 PM

लाल बहादुर शास्त्री और आधुनिक जनप्रतिनिध
 
प्रस्तुत सामग्री अंतरजाल के विशाल भण्डार से निकाल कर इस मंच पर प्रेषित की जा रही है। सामग्री के मूल प्रस्तोता एवं मूल स्थान के प्रति हम आभारी हैं एवं हम उन्हें धन्यवाद प्रेषित कर रहे हैं।

jai_bhardwaj 11-01-2013 05:33 PM

Re: लाल बहादुर शास्त्री और आधुनिक जनप्रतिनि
 
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http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1357911168



आज के नेतागण जो हजारों करोड़ों के घोटाले डकार कर भी उफ तक नहीं करते वह शायद उस महान शख्स की महानता को नहीं समझ सकते जिसने प्रधानमंत्री पद पर होते हुए भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कभी किसी गलत कार्य से नहीं की बल्कि हमेशा प्रधानमंत्री पद पर होते हुए भी अपने वेतन में से ही गरीबों को भी एक भाग दिया. ऐसे महान शख्स का नाम है लाल बहादुर शास्त्री. भारतीय राजनीति में लाल बहादुर शास्त्री का नाम अगर स्वर्णाक्षरों से लिखा है तो इसकी एक सटीक वजह भी है.


सादा जीवन उच्च विचार
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री सादा जीवन और उच्च विचार रखने वाले व्यक्तित्व थे. उनका पूरा जीवन हर व्यक्ति के लिए अनुकरणीय है. जय जवान जय किसान का नारा देकर उन्होंने न सिर्फ देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात जवानों का मनोबल बढ़ाया बल्कि खेतों में अनाज पैदा कर देशवासियों का पेट भरने वाले किसानों का आत्मबल भी बढ़ाया.

jai_bhardwaj 11-01-2013 05:34 PM

Re: लाल बहादुर शास्त्री और आधुनिक जनप्रतिनि
 
50 रुपए में चलाया करते थे घर

बात उन दिनों की है जब लाल बहादुर शास्त्री जेल में थे. जेल से उन्होंने अपनी माता जी को पत्र लिखा कि 50 रुपये मिल रहे हैं या नहीं और घर का खर्च कैसे चल रहा है?

मां ने पत्र के जवाब में लिखा कि 50 रुपये महीने मिल जाते हैं. हम घर का खर्च 40 रुपये में ही चला लेते हैं.

तब बाबू जी ने संस्था को पत्र लिखकर कहा कि आप हमारे घर प्रत्येक महीने 40 रुपये ही भेजें. बाकी के 10 रुपये दूसरे गरीब परिवार को दे दें.

जब यह बात पंडित जवाहर लाल नेहरू को पता चली तो वह शास्त्री जी से बोले कि त्याग करते हुए मैंने बहुत लोगों को देखा है, लेकिन आपका त्याग तो सबसे ऊपर है. इस पर शास्त्री जी पंडित जी को गले लगाकर बोले, ”जो त्याग आपने किया उसकी तुलना में यह कुछ भी नहीं है, क्योंकि मेरे पास तो कुछ है ही नहीं. त्याग तो आपने किया है जो सारी सुख सुविधा छोड़कर आजादी की जंग लड़ रहे हैं.” क्या ऐसी सादगी और ऐसा त्याग आज संभव है?

जिम्मेदारी लेने को रहते थे तैयार
आज भारतीय नेता बड़े-बड़े कांड होने पर भी कुर्सी का मोह नहीं छोड़ पाते हैं लेकिन शास्त्री जी एक ऐसे नेता थे जो किसी भी घटना पर अपराधबोध होने की सूरत में अपनी जिम्मेदारी लेने से नहीं हिचकते थे. बात 1952 की है जब उन्हें राज्यसभा के लिए चुना गया. उन्हें परिवहन और रेलमंत्री का कार्यभार सौंपा गया. 4 वर्ष पश्चात 1956 में अडियालूर रेल दुर्घटना के लिए, जिसमें कोई डेढ़ सौ से अधिक लोग मारे गए थे, अपने को नैतिक रूप से उत्तरदायी ठहरा कर उन्होंने रेलमंत्री का पद त्याग दिया. शास्त्रीजी के इस निर्णय का देशभर में स्वागत किया गया. आज के नेताओं को इससे बहुत बड़ी सीख लेने की जरूरत है.

jai_bhardwaj 11-01-2013 05:36 PM

Re: लाल बहादुर शास्त्री और आधुनिक जनप्रतिनि
 
पाकिस्तान को दिखाई थी औकात


हाल ही में भारतीय सेना के दो जवानों को पाकिस्तानी सेना ने जान से मार डाला लेकिन इसके जवाब में भारतीय सरकार और सेना की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं की गई. ऐसे में लाल बहादुर शास्त्री की जीवनी बेहद प्रासंगिक है जिन्होंने देश को 1965 में पाकिस्तान हमले के समय बेहतरीन नेतृत्व प्रदान किया था.


लालबहादुर शास्त्री को 1964 में देश का दूसरा प्रधानमंत्री बनाया गया था. 1966 में उन्हें भारत का पहला मरणोपरांत भारत रत्न का पुरस्कार भी मिला था. 1965 में अचानक पाकिस्तान ने भारत पर सायं 7.30 बजे हवाई हमला कर दिया. परंपरानुसार राष्ट्रपति ने आपात बैठक बुला ली जिसमें तीनों रक्षा अंगों के चीफ व मंत्रिमंडल सदस्य शामिल थे. लालबहादुर शास्त्री कुछ देर से पहुंचे. विचार-विमर्श हुआ तीनों अंगों के प्रमुखों ने पूछा सर क्या हुक्म है?

शास्त्री जी ने तुरंत कहा आप देश की रक्षा कीजिए और मुझे बताइए कि हमें क्या करना है?

इतिहास गवाह है उसी दिन रात्रि के करीब 11.00 बजे करीब 350 हवाई जहाजों ने पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की ओर उड़ान भरे. कराची से पेशावर तक जैसे रीढ़ की हड्डी को तोड़ा जाता है ऐसा करके सही सलामत लौट आए. बाकी जो घटा उसका इतिहास गवाह है. शास्त्री जी ने इस युद्ध में पं. नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और जय जवान-जय किसान का नारा दिया. इससे भारत की जनता का मनोबल बढ़ा और सब एकजुट हो गए. इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी नहीं की थी.

किसी ने सच ही कहा है कि वीर पुत्र को हर मां जन्म देना चाहती है. लालबहादुर शास्त्री उन्हीं वीर पुत्रों में से एक हैं जिन्हें आज भी भारत की माटी याद करती है.

jai_bhardwaj 11-01-2013 05:37 PM

Re: लाल बहादुर शास्त्री और आधुनिक जनप्रतिनि
 
लालबहादुर शास्त्री का जीवन लखनऊ से दिल्ली तक काफी उथल-पुथल भरा रहा। आजादी के बाद उत्तर प्रदेश में गोविंदबल्लभ पंत जब मुख्यमंत्री बने तो लाल बहादुर शास्त्री को उत्तर प्रदेश का गृहमंत्री बना दिया गया। प्रयाग विश्वविद्यालय के गंगानाथ झा छात्रावास में नवंबर 1950 में एक आयोजन हुआ जिसमें लालबहादुरजी मुख्य अतिथि थे। नाटे कद व कोमल स्वभाव वाले शास्त्री को देखकर किसी को कल्पना भी नहीं थी कि वह कभी भारत के दूसरे सबसे सफल प्रधानमंत्री बनेंगे। 1951 में बेंगलूरू में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन नेहरू ने संपूर्णानंद की सलाह पर जवाहर लाल नेहरू ने लालबहादुर शास्त्री को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का महामंत्री नियुक्त करा दिया, लेकिन लालबहादुर शास्त्री ने अनमने मन से ही पद ग्रहण किया। लालबहादुर शास्त्री ने महामंत्री पद तो ग्रहण कर लिया, परंतु सामने 1952 का प्रथम आम चुनाव एक बड़ी समस्या बन गया।

नेहरू प्रधानमंत्री थे और उन्हीं की तरह लालबहादुर शास्त्री भी उच्च नैतिक मूल्यों वाले व्यक्ति थे। वह किसी उद्योगपति से धन मांगना नहीं चाहते थे। खैर शास्त्रीजी ने किसी प्रकार संगठन में जान फूंकी। इस प्रथम चुनाव में पं.जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद के फूलपुर सीट से और लालबहादुर मिर्जापुर और बनारस के ग्रामीण सीट से लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे। मेरा सामना लालबहादुरजी से 7 जनवरी 1952 को आनंद भवन में हुआ। उस समय मैं इलाहाबाद युवक कांग्रेस के सचिव के रूप में आनंद भवन में कार्यरत था। फूलपुर चुनाव संचालन का दायित्व बहन मृदुला साराभाई व इंदिरा गांधी पर था। विपक्ष में एकजुट होकर नेहरू को हराने के लिए हिंदू नेता प्रभुदत्त ब्रह्मचारी को खड़ा कर दिया। दोनों तरफ से धुंआंधार प्रचार हुआ, परंतु जब परिणाम सामने आया तब ब्रह्मचारीजी करीब 5000 मतों से अपनी जमानत बचा पाए। कांगे्रस ने इलाहाबाद से 3 संसदीय सीट व 16 विधायक सीटें जीती। पूरे भारत में कांगे्रस ने भारी बहुमत से लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की और जवाहर लाल नेहरू पुन: प्रधानमंत्री बन गए।

jai_bhardwaj 11-01-2013 05:38 PM

Re: लाल बहादुर शास्त्री और आधुनिक जनप्रतिनि
 
लालबहादुर शास्त्री को बहुत ही महत्वपूर्ण रेल मंत्रालय का दायित्व मिला। वर्ष 1954 में इलाहाबाद में महाकुंभ मेला लगा। करीब 20 लाख तीर्थयात्रियों के लिए व्यवस्था की गई। नेहरू ने खुद जायजा लिया ताकि कोई दुर्घटना न हो जाए। लालबहादुर शास्त्री स्वयं समय-समय पर रेल व्यवस्था का जायजा लेते रहते। दुर्भाग्यवश मौनी अमावस्या स्नान के दौरान बरसात होने के फलस्वरूप बांध पर फिसलन होने से प्रात: 8.00 बजे दुर्घटना हो ही गई। सरकारी आंकड़ों ने 357 मृत व 1280 को घायल बताया, परंतु ग्राम सेवादल कैंप जिसकी देखरेख मृदुला साराभाई व इंदिरा गांधी कर रही थी की गणना के अनुसार यह संख्या दोगुनी थी। दुर्घटना पर जांच कमीशन बैठा। उसने डेढ़ वर्ष बाद रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए रत्तर प्रदेश सरकार और रेल अव्यवस्था को दोषी करार दिया।


1956 के मध्य में भी कुछ और रेल दुर्घटनाएं हो गई। इसलिए नैतिकता के आधार पर शास्त्रीजी ने नैतिक दायित्व मानते हुए रेलमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। इसी तरह लालबहादुर जब जून 1964 में प्रधानमंत्री बने तो अनेक उद्योगपतियों ने उन्हें घेरना चालू कर दिया। साजिश के तहत उनके पुत्र हरीशास्त्री को गोयनका ग्रुप के भारत बैरल्स लि. में 10 हजार प्रतिमाह के वेतन पर निदेशक बना दिया गया। जैसे ही लालबहादुर को इसका पता चला उन्होंने त्यागपत्र दिलवा दिया। ऐसी ही एक घटना है कि उद्योगपति शांति प्रसाद जैन की। वह अक्टूबर 1964 में उनसे मिलने दिल्ली आए, लेकिन लालबहादुर ने मना कर दिया। बाद में पता चला कि जब मोरारजी देसाई नेहरू मंत्रिमंडल में वित्तमंत्री थे तब लंदन से जैन ने उनके साथ यात्रा की थी और वह पालम हवाई अड्डे पर विदेशी मुद्रा के चक्कर में पकड़े गए थे और उन पर मुकदमा चल रहा था इसीलिए वह उनसे नहीं मिले। प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू व शास्त्री में जमीन-आसमान का अंतर था। नेहरू निर्देश देते थे और चाहते कि तीनों सेना प्रमुख उसका पालन करें। इसके विपरीत लालबहादुर ने भारत-पाक युद्ध में तीनों सेना प्रमुखों को खुली छूट दी।

jai_bhardwaj 11-01-2013 05:39 PM

Re: लाल बहादुर शास्त्री और आधुनिक जनप्रतिनि
 
1965 में अचानक पाकिस्तान ने भारत पर सायं 7.30 बजे हवाई हमला कर दिया। परंपरानुसार राष्ट्रपति ने आपात बैठक बुला ली जिसमें तीनों रक्षा अंगों के चीफ व मंत्रिमंडल सदस्य शामिल थे। लालबहादुर शास्त्री कुछ देर से पहुंचे। विचार-विमर्श हुआ तीनों अंगों के प्रमुखों ने पूछा सर क्या हुक्म है? शास्त्री ने तुरंत कहा आप देश की रक्षा कीजिए और मुझे बताइए कि हमें क्या करना है? इतिहास गवाह है रात्रि के करीब 11.00 बजे करीब 350 हवाई जहाजों ने पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की ओर उड़ान भरे। कराची से पेशावर तक जैसे रीढ़ की हड्डी को तोड़ा जाता है ऐसा करके सही सलामत लौट आए। बाकी जो घटा उसका इतिहास गवाह है। शास्त्रीजी ने इस युद्ध में पं. नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और जय जवान-जय किसान का नारा दिया। इससे भारत की जनता का मनोबल बढ़ा और सब एकजुट हो गए। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी नहीं की थी। ताशकंद समझौते के दौरान उनकी मृत्यु देश के लिए दुखद आघात था।

jai_bhardwaj 11-01-2013 05:44 PM

Re: लाल बहादुर शास्त्री और आधुनिक जनप्रतिनि
 
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लालबहादुर शास्त्री: क्या सुलझेगी मौत की गुत्थी ?


कुछ मौतें ऐसी होती हैं जो तमाम उम्र रहस्य बनी रहती हैं. ऐसी ही मौत लालबहादुर शास्त्री जी की भी थी जो आज भी रहस्य बनी हुई है. लालबहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे. लालबहादुर शास्त्री की सादगी ऐसी थी कि उन्हें देखने वाला व्यक्ति उनकी तरफ आकर्षित हो जाता था. लालबहादुर शास्त्री जी का नाम भले ही इतिहास के पन्नों में नजर नहीं आता है पर यह वो नाम है जिसने जय जवान-जय किसान का नारा देकर देश के किसानों और सीमा पर तैनात जवानों का आत्मबल बढ़ाने की नई मिसाल कायम की थी.



लालबहादुर शास्त्री की मौत को जब कई साल बीत चुके थे तब लालबहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री ने लालबहादुर शास्त्री के मौत के रहस्य की गुत्थी सुलझाने को कहा था. पूर्व सोवियत संघ के ताशकंद में 11 जनवरी, 1966 को पाकिस्तान के साथ ताशकंद समझौते पर दस्तखत करने के बाद शास्त्री जी की मौत हो गई थी. लालबहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री का कहना था कि जब लालबहादुर शास्त्री की लाश को उन्होंने देखा था तो लालबहादुर शास्त्री की छाती, पेट और पीठ पर नीले निशान थे जिन्हें देखकर साफ लग रहा था कि उन्हें जहर दिया गया है. लालबहादुर शास्त्री की पत्नी ललिता शास्त्री का भी यही कहना था कि लालबहादुर शास्त्री की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई थी.


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jai_bhardwaj 11-01-2013 05:46 PM

Re: लाल बहादुर शास्त्री और आधुनिक जनप्रतिनि
 
लालबहादुर शास्त्री: स्वयं को जिम्मेदार तो नहीं मान रहे थे……..
लालबहादुर शास्त्री के बारे में कहा जाता है कि वे निणर्य लेने से पहले कई बार सोच-विचार करते थे इसलिए उनके अधिकांश निर्णय सही होते थे. पर कहते हैं कि लालबहादुर शास्त्री का ताशकंद समझौते ( Tashkent Agreement) पर हस्ताक्षर करना गलत निर्णय था और यही बात शास्त्री जी को महसूस होने लगी थी जिस कारण लालबहादुर शास्त्री ने अपने आप को हानि पहुंचाई थी या फिर वास्तव में लालबहादुर शास्त्री की मौत 11 जनवरी, 1966 को ह्रदयाघात के कारण हुई थी.

देश लालबहादुर शास्त्री जी के समय में काफी आर्थिक समस्याओं से घिरा हुआ था. ऐसा कहा जाता है कि लालबहादुर शास्त्री आर्थिक समस्याओं को सुलझा नहीं पा रहे थे जिस कारण वे काफी आलोचनाओं से घिर गए थे.

शास्त्री जी का जीवन और मां के साथ लगाव
भारत माता के लिए भी वो दिन खुशी का रहा होगा जब 2 अक्टूबर, 1904 को मुगलसराय, उत्तर प्रदेश में लालबहादुर शास्त्री ने जन्म लिया होगा. लालबहादुर शास्त्री का का वास्तविक नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था. लालबहादुर शास्त्री बचपन से ही शिक्षा में कुशल थे जिस कारण स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्हें ‘शास्त्री’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था. लालबहादुर शास्त्री भारत संघ से जुड़े थे जहां उन्होंने राजनीति को समझने की शुरुआत की थी.

बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो अपने व्यस्त जीवन में भी मां की नरम-नरम हथेलियों से प्यार और दुलार लेना नहीं भूलते हैं. लालबहादुर शास्त्री पर उनके पुत्र सुनील शास्त्री द्वारा लिखी पुस्तक ‘‘लालबहादुर शास्त्री, मेरे बाबूजी’’ में बताया गया है कि शास्त्री जी की मां उनके कदमों की आहट से उनको पहचान लेती थीं और बड़े प्यार से धीमी आवाज में कहती थीं ‘‘नन्हें, तुम आ गये?” लालबहादुर शास्त्री का लगाव अपनी मां के साथ इतना था कि वे दिन भर अपनी मां का चेहरा देखे बगैर नहीं रह सकते थे.

jai_bhardwaj 11-01-2013 05:50 PM

Re: लाल बहादुर शास्त्री और आधुनिक जनप्रतिनि
 
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लालबहादुर शास्त्री: विनम्र प्रधानमंत्री


लालबहादुर शास्त्री कहा करते थे कि ‘हम चाहे रहें या न रहें, हमारा देश और तिंरगा झंडा रहना चाहिए’. लालबहादुर शास्त्री उन राजनेताओं में से एक थे जो अपने पद के दायित्व को भली प्रकार समझते थे. आजादी के बाद उत्तर प्रदेश में गोविंद वल्लभ पंत जब मुख्यमंत्री बने तो लाल बहादुर शास्त्री को उत्तर प्रदेश का गृहमंत्री बना दिया गया. नाटे कद व कोमल स्वभाव वाले शास्त्री को देखकर किसी को कल्पना भी नहीं थी कि वह कभी भारत के दूसरे सबसे सफल प्रधानमंत्री बनेंगे. एक समय ऐसा आया जब लालबहादुर शास्त्री को रेल मंत्री बनाया गया. लाल बहादुर शास्त्री ऐसे राजनेता थे जो अपनी गलती को सभी के सामने स्वीकार करते थे जिसके चलते लालबहादुर शास्त्री ने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था.

लालबहादुर शास्त्री को 1964 में देश का दूसरा प्रधानमंत्री बनाया गया था. 1966 में उन्हें भारत का पहला मरणोपरांत भारत रत्न का पुरस्कार भी मिला था. लालबहादुर शास्त्री को चाहने वाले लोगों को वो दिन आज भी याद आता है जब 1965 में अचानक पाकिस्तान ने भारत पर सायं 7.30 बजे हवाई हमला कर दिया था तो उस समय तीनों रक्षा अंगों के चीफ ने लालबहादुर शास्त्री से पूछा ‘सर आप क्या चाहते है आगे क्या किया जाए…आप हमें हुक्म दीजिए’ तो ऐसे में लालबहादुर शास्त्री ने कहा कि “आप देश की रक्षा कीजिए और मुझे बताइए कि हमें क्या करना है?” ऐसे प्रधानमंत्री बहुत कम ही होते हैं जो अपने पद को सर्वोच्च नहीं वल्कि अपने पद को जनता के लिए कार्यकारी मानकर चलते है. किसी ने सच ही कहा है कि वीर पुत्र को हर मां जन्म देना चाहती है. लालबहादुर शास्त्री उन्हीं वीर पुत्रों में से एक हैं जिन्हें आज भी भारत की माटी याद करती है.


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