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-   -   मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक' (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=6312)

deepuji1983 23-01-2013 06:31 PM

मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
 
Sunday- Funday

कमल को हम गुलाब कर देंगे
चेहरा तेरा आफताब कर देंगे
मिलते रहना युंही हमेशा हमसे
मर्ज तेरा हम लाईलाज कर देंगे

दीपक खत्री 'रौनक'

deepuji1983 23-01-2013 06:32 PM

Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
 
गुजरा सारा वक्त जिसकी छाँव तले कभी
उस दरख्त की तन्हाई मुझे खलने लगी है
यादों को सीने से ना मिटने देना कभी 'रौनक'
सहारे यादों के शामे जिस्त अब ढ़लने लगी है

दीपक खत्री 'रौनक'

deepuji1983 23-01-2013 06:33 PM

Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
 
सुना है वो आदत से मजबूर बहूत है 'रौनक'
ए खुदा ! मै उनकी आदतों में शुमार क्यों नहीं

दीपक खत्री 'रौनक'

deepuji1983 23-01-2013 06:34 PM

Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
 
देखा है क्या तुने मेरे आसमान को कभी
मेरे साथ एक उड़ान की आरजू तो कर

दीपक खत्री 'रौनक'

deepuji1983 23-01-2013 06:35 PM

Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
 
मै कायल हूँ खूब परिंदों के पंखो का
वो देते है मुझे हौंसला उड़ान का

दीपक खत्री 'रौनक'

deepuji1983 23-01-2013 06:36 PM

Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
 
नजारे माहौल के लाजवाब होंगे
कहने को ख्याल भी बेहिसाब होंगे
गर हो कमी महसूस 'रौनक' की
याद करना हम आसपास ही होंगे

दीपक खत्री 'रौनक'

deepuji1983 23-01-2013 06:38 PM

Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
 
लालिमा
=====
लालिमा
कितनी
भली सी
मनमोहक सी
नयनाभिराम सी
लेकिन है
इतनी खूबसूरत
ये
तभी
गर हो
किसी की
माँग मे
उगते-छिपते
सूरज मे
हँसते चेहरे मे
अल्हड़ ख्यालों मे
मचलते सवालों मे
मगर
हो जाती है
ये
कई बार
इतनी डरावनी
जब ये
होती है
किसी रोती
आँख मे
चोटिल जिस्म पर
क्रोध से जलते
नैनों मे
लालची
वीभत्स
अश्लील
इरादों मे
और
दहशत का
पर्याय है ये
सड़को पर
बहते रक्त
की
लालिमा

दीपक खत्री 'रौनक'

deepuji1983 23-01-2013 06:40 PM

Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
 
आ के जिन्दगी बैठ साथ कुछ गुफ्तगू करे
कर ले आगाज़ अब कुछ नया रूबरू करे

गुजर जाने दे अब वक़्त को मत आवाज दे
तामील हो खाब तेरे क्यों तू आरज़ू करे

मिल जा मुझे तू याके हो फना जिंदगी
ता-जिंदगी ये दिल न कोई आरजू करे

आये ऐसा कोई इन्कलाब बिगड़े जहान मे
पानी हुआ है खून जो फिर से लहू करे

निभाए नहीं जाते अब किरदार वक़्त के
हो ख़ास कुछ के जीस्त तेरी जुस्तजू करे

तन्हा बहुत किया इस जमाने ने 'रौनक' को
ए तन्हाई चल बैठें तन्हा कहीं गुफ्तगू करे

दीपक खत्री 'रौनक'

deepuji1983 23-01-2013 06:41 PM

Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
 
चल बैठ संग मेरे थोड़ी गुफ्तगू कर ले
जाने कब से दबा रक्खी है चाहत दिल मे

दीपक खत्री 'रौनक'

deepuji1983 23-01-2013 06:44 PM

Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
 
महक उठेगी फ़िज़ा दर फ़िज़ा तेरे आने से
मेरे इश्क की महक सारी फ़िज़ा मे होगी

दीपक खत्री 'रौनक'


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