Re: नवरात्रि पर्व.......................
अन्त में आपसे एक बात कहना चाहूँगा कि ये जो पर्व है,इसे रात्रि प्रधान माना गया है। जैसा कि आप देखते हैं कि इसके नाम के साथ ही रात्रि शब्द जुडा हुआ है(नव+रात्रि)। इस विषय में शास्त्र वाक्य है कि “रात्रि रूपा यतोदेवी, दिवा रूपो महेश्वर:” अर्थात दिन को शिव(पुरूष) रूप में तथा रात्रि को (शक्ति) प्रकृ्ति रूपा माना गया है। एक ही तत्व के दो स्वरूप हैं फिर भी शिव(पुरूष) का अस्तित्व उसकी शक्ति(प्रकृ्ति) पर ही आधारित है........................... |
Re: नवरात्रि पर्व.......................
यदि आप शक्ति(देवी) के उपासक हैं और उनके निमित किसी भी प्रकार का मंत्र जाप,पाठ इत्यादि करते हैं तो सदैव रात्रिकाल का ही चुनाव करें। दिनवेला में आत्मसंयंम पूर्वक व्रत-उपवास रखें और रात्रिवेला में कुछ समय किसी भी मंत्र,स्तुति अथवा ग्रन्थ का,उसके अर्थ को ह्रदयंगम करते हुए पारायण कीजिए,उसमें प्रोक्त गुणों को अपनी आत्मा में उतारिए……तत्पश्चात भूमी शयन कीजिए तो फिर देखिए आपकी आत्मिक शक्ति सर्वात्मना विकसित होती है या नहीं?........................... |
Re: नवरात्रि पर्व.......................
कभी कभी तो ये देखकर विस्मित हो जाना पडता है कि पिंड ब्राह्मंड के संबंध संकेतों के पारखी हमारे ऋषि-मुनियों नें प्रकृ्तिप्रद नैसर्गिक सुअवसरों को परख कर हमें विशेष रूप से संस्कारित बनाने के कैसे कैसे प्रयास किए है,जिन्हे कि हम लोग यूँ ही गवाँ देते हैं। देखा जाए तो ऎसे सुअवसर किसी धर्म,सम्प्रदाय विशेष से संबंधित न होकर समस्त मानवमात्र के लिए कल्याणप्रद हैं........................... |
Re: नवरात्रि पर्व.......................
या देवी सर्व भूतेषु माँतृ रूपेण संस्थिता | नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम: ।।........................... |
Re: नवरात्रि पर्व.......................
इस सूत्र पर उपलब्ध की गयी जानकारी निस्संदेह सभी सदस्यों के लिए कल्याणकारी है और अपनी पौराणिक विरासत की महानता के प्रति हमें आश्वस्त भी करती है. अतिशय धन्यवाद, डॉ. विजय.
|
Re: नवरात्रि पर्व.......................
नवरात्री पर्व की आप सब को हार्दिक शुभकामनाऎं……… माँ भगवती आप सब के जीवन में खुशियों का संचार करे......... माँ सबकी मंगलकामनाओं को परिपूर्ण करे................................ |
Re: नवरात्रि पर्व.......................
Quote:
आपके बहुमूल्य अभिप्राय के लिए हार्दिक आभार....................... |
Re: नवरात्रि पर्व.......................
हर साल देवता सोने क्यूँ चले जाते हैं ?......... एक मित्र ने मुझ से पूछा की हिन्दु धर्म में प्रत्येक वर्ष देवशयन तथा देवप्रबोध(देवोत्थान) के बीच जो चार मास का एक समयकाल आता है, उसका क्या अर्थ है ? साथ ही उन्होने ये भी जानना चाहा है कि वर्षाकाल में देवता अधोलोक में, शीतकाल में मध्यलोक में तथा ग्रीष्म ऋतु में उर्ध्वलोक में चले जाते हैं—-इसका क्या तात्पर्य है ? उत्तर:- जैसा कि मैं समझता हूँ कि हिन्दू धर्म में अधिकतर लोगों को इस विषय में तनिक भी जानकारी नहीं हैं कि हमारे जो पर्व, त्योहार, व्रत-उपवास इत्यादि हैं, उनका वास्तविक प्रयोजन क्या है ? एक साधारण मनुष्य की तो बात ही छोड दीजिए, जो लोग धर्म के नाम पर कमा खा रहे हैं, वो भी इसके बारे में पूरी तरह से अनभिज्ञ हैं । अब यदि कोई इन सब का गहन विश्लेषण करे तो पता चलेगा कि इस धर्म(सनातन धर्म) के प्रत्येक नियम, परम्परा में कितनी वैज्ञानिकता छिपी हुई है । लेकिन आज की पाश्चात्य रंग में रंगी युवा पीढी इन सब को रूढिवादिता, आडम्बर, पुरातनपंथिता जैसे नामों से संबोधित करने लगी है । खैर जैसी ईश्वर की इच्छा….और इन लोगों की समझ............ |
Re: नवरात्रि पर्व.......................
हर साल देवता सोने क्यूँ चले जाते हैं ?......... चलिए हम मूल विषय पर बात करते हैं…..देवशयन(देवताओं की निन्द्रा) और देवोत्थान(देवताओं का जागना) के बीच का जो अन्तराल होता है, वो वर्षाकाल और शीतऋतु(सर्दियों) के प्रारंभ(आषाढ़ शुक्ल से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक) होने तक का समय होता है । शरीर शास्त्र के अनुसार किसी मनुष्य के शरीर में रोग उत्पन होने का एकमात्र कारण है—वात,पित्त अथवा कफ नामक इन तीनों तत्वों मे से किसी की न्यूनाधिक्ता । अब यदि शरीर में इनमे से कोई भी तत्व कम या अधिक हुआ तो ही शरीरग्रस्त होगा अन्यथा नहीं । निरोगी काया के लिए शरीर में इन तत्वों का संतुलन आवश्यक है । अब जो ये चार मास की समयावधि है, इसमें एक तो दिनमान घटने लगता है और शरीर में वात की मात्रा बढने लगती है—- फलस्वरूप शरीर में विधमान तेज(उर्जा) क्षीण होने लगता है, जठराग्नि मंद पडने लगती है, पाचनतंत्र से संबंधित विकार उत्पन होने लगते हैं । इसलिए जठराग्नि के रक्षण और दीपन के लिए देवशयन के बहाने से हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा विभिन्न पर्व-त्योहारों के माध्यम से व्रत-उपवास इत्यादि रखने की एक परम्परा निर्धारित की गई है । वर्ष के अधिकतर त्योहार इन्ही चार महीनों के दौरान आने का यही एक कारण है, ताकि मनुष्य श्रद्धावश ही सही व्रत-उपवास इत्यादि का आश्रय ले और कुछ समय भूखा रहकर अपनी जठराग्नि को प्रदीप्त रख सके............ |
Re: नवरात्रि पर्व.......................
हर साल देवता सोने क्यूँ चले जाते हैं ?......... देवता वर्षाकाल में अधोलोक, शीतकाल में मध्यलोक तथा ग्रीष्मकाल में उधर्वलोक को चले जाते हैं — इसका तात्पर्य ये है कि वर्षा ऋतु में शरीर का समस्त तेज पैरों में, शीत ऋतु में पेट में और ग्रीष्म ऋतु में सिर पर होता है । प्रमाणस्वरूप वर्षाकाल में पैरों में सर्दी का अनुभव नहीं होता, शीतकाल में भूख अधिक लगती है और ग्रीष्मकाल में सिर पर शीघ्र गर्मी चढ जाती है । जैसे कि आपने देखा ही होगा कि तेज धूप में घर के बडे बुजुर्ग बच्चों को घर के बाहर निकलने से मना करते हैं; उसका कारण यही है कि एक तो उष्मा/गर्मी(तेज)पहले ही सिर पर विराजमान है, ऊपर से सूर्य की तेज गर्मी से कहीं मूर्च्छा, चक्कर इत्यादि न आ जाएं। देवोत्थान(देवताओं के जाग उठने) का अर्थ ये है कि जब जठराग्नि जाग उठी तो उसका तेज(उष्मा) पैरों से चलकर पेट में आ गया। हमारे ऋषि मुनि ये भलीभांती जानते थे कि इन्सान एक ऎसा प्राणी है जिसे कि यदि कोई सीधा स्पष्ट मार्ग भी दिखाया जाए तो भी वो उसका अनुसरण करने की बजाय अपने मन का अनुसरण करना ज्यादा पसंद करता है—इसीलिए उन्होने उसके हित को ध्यान में रखते हुए कहीं तो उसके भय को माध्यम बनाया तो कहीं श्रद्धा को । यूँ तो चाहे विश्व का कोई भी धर्म हो उसके मूल में सिर्फ इन्सान का भय और श्रद्धा ही काम करती है लेकिन यदि आप गहराई से सनातन धर्म का अध्ययन करें तो पाएंगे कि हिन्दू धर्म विश्व का एकमात्र वैज्ञानिक धर्म है, जिसका प्रत्येक नियम, परम्परा अपने भीतर विज्ञान समेटे हुए है............ इस स्रोत का लिंक:......... |
All times are GMT +5. The time now is 12:44 PM. |
Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.