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ABHAY 08-01-2011 05:00 PM

~!!महाभारत!!~
 
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~!!महाभारत!!~

http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1294491247
महाभारत महाकाव्य की हस्तलिखित पाण्डुलिपि
अन्य प्रसिद्ध नाम : भारत,जय
लोकप्रियता : भारत, नेपाल, इण्डोनेशिया, श्रीलंका, जावा द्वीप, जकार्ता, थाइलैंड, तिब्बत, म्यान्मार
रचयिता : वेदव्यास
लेखक :
गणेश
प्रचारक : वैशम्पायन,सूत,जैमिनि,पैल
ग्रंथ का परिमाण

श्लोक संख्या(लम्बाई) : १,१०,००० - १,४०,०००
रचना काल : ३१०० - १२०० ईसा पूर्व
१)वेदव्यास द्वारा १०० पर्वो में ३१०० ईसा पूर्व
२)सूत द्वारा १८ पर्वो में २००० ईसा पूर्व
३)आधुनिक लिखित अवस्था में १२००-६०० ईसा पूर्व

ABHAY 08-01-2011 05:04 PM

Re: ~!!महाभारत!!~
 
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मूलतत्त्व और आधार

आधार कौरवों औ*र पाण्डवों के मध्य का आपसी संघर्ष

मुख्य पात्र श्रीकृष्ण,अर्जुन,भीष्म,कर्ण,भीम,दुर्योधन,युधि ष्ठिर

http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1294491812

कुरुक्षेत्र युद्ध में श्रीकृष्ण और अर्जुन

ABHAY 08-01-2011 05:08 PM

Re: ~!!महाभारत!!~
 
आरम्भ

महाभारत ग्रंथ का आरम्भ निम्न श्लोक के साथ होता है:
“नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।
देवीं सरस्वतीं चैव ततो जयमुदीरयेत्।।„


परन्तु महाभारत के आदिपर्व में दिये वर्णन के अनुसार के अनुसार कई विद्वान इस ग्रंथ का आरम्भ "नारायणं नमस्कृत्य" से, तो कोई आस्तिक पर्व से और दूसरे विद्वान ब्राह्मण उपचिर वसु की कथा से इसका आरम्भ मानते हैं।

विभिन्न नाम
यह महाकाव्य "जय" ,"भारत" और "महभारत" इन तीन नामों से प्रसिद्ध हैं। वास्तव में वेद व्यास जी ने सबसे पहले १,००,००० श्लोकों के परिमाण के "भारत" नामक ग्रंथ की रचना की थी, इसमें उन्होने भारतवंशियों के चरित्रों के साथ साथ अन्य कई महान ऋषियों, चन्द्रवंशी-सूर्यवंशी राजाओं के उपाख्यानों सहित कई अन्य धार्मिक उपाख्यान भी डालें। इसके बाद व्यास जी ने २४,००० श्लोकों का बिना किसी अन्य ऋषियों, चन्द्रवंशी-सूर्यवंशी राजाओं के उपाख्यानों का केवल भारतवंशियों को केन्द्रित करके "भारत" काव्य बनाया। इन दोनों रचनाओं में धर्म की अधर्म पर विजय होने के कारण इन्हें "जय" भी कहा जाने लगा। महाभारत में एक कथा आती है कि जब देवताओं ने तराजू के एक पासे में चारों "वेदों" को रखा और दूसरे पर " भारत ग्रंथ" को रखा, तो "भारत ग्रंथ" सभी वेदों की तुलना में सबसे अधिक भारी सिद्ध हुआ, अतः "भारत" ग्रंथ की इस महता (महानता) को देखकर देवताओं और ऋषियों ने इसे "महाभारत" नाम दिया और इस कथा के कारण मनुष्यों में भी यह काव्य "महाभारत" के नाम से सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ।

ABHAY 08-01-2011 05:11 PM

Re: ~!!महाभारत!!~
 
ग्रन्थ लेखन की कथा
महाभारत में ऐसा वर्णन आता है कि वेदव्यास जी ने हिमालय की तलहटी की एक पवित्र गुफा में तपस्या में संलग्न तथा ध्यान योग में स्थित होकर महाभारत की घटनाओं का आदि से अन्त तक स्मरण कर मन ही मन में महाभारत की रचना कर ली। परन्तु इसके पश्चात उनके सामने एक गंभीर समस्या आ खड़ी हुई कि इस काव्य के ज्ञान को समान्य जन साधारण तक कैसे पहुँचाया जाये क्योंकि इसकी जटिलता और लम्बाई के कारण यह बहुत कठिन था कि कोई इसे बिना कोई गलती किए वैसा ही लिख दे जैसा कि वे बोलते जाए। इसलिए ब्रह्मा जी के कहने पर व्यास गणेश जी के पास पहुँचे। गणेश जी लिखने को तैयार हो गये, किंतु उन्होंने एक शर्त रखी कि कलम एक बार उठा लेने के बाद काव्य समाप्त होने तक वे बीच नहीं रुकेंगे। व्यासजी जानते थे कि यह शर्त बहुत कठनाईयाँ उत्पन्न कर सकती हैं अतः उन्होंने भी अपनी चतुरता से एक शर्त रखी कि कोई भी श्लोक लिखने से पहले गणेश जी को उसका का अर्थ समझना होगा। गणेश जी ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस तरह व्यास जी बीच बीच में कुछ कठिन श्लोकों को रच देते थे, तो जब गणेश उनके अर्थ पर विचार कर रहे होते उतने समय में ही व्यास जी कुछ और नये श्लोक रच देते। इस प्रकार सम्पूर्ण महाभारत ३ वर्षों के अन्तराल में लिखी गयी। वेदव्यास जी ने सर्वप्रथम पुण्यकर्मा मानवों के उपाख्यानों सहित एक लाख श्लोकों का आद्य भारत ग्रंथ बनाया। तदन्तर उपाख्यानों को छोड़कर चौबीस हजार श्लोकों की भारत संहिता बनायी। तत्पश्चात व्यास जी ने साठ लाख श्लोकों की एक दूसरी संहिता बनायी, जिसके तीस लाख श्लोकों देवलोक में, पंद्रह लाख पितृलोक में तथा चौदह लाख श्लोकों गन्धर्वलोक में समादृत हुए। मनुष्यलोक में एक लाख श्लोकों का आद्य भारत प्रतिष्ठित हुआ। महाभारत ग्रंथ की रचना पूर्ण करने के बाद वेदव्यास जी ने सर्वप्रथम अपने पुत्र शुकदेव को इस ग्रंथ का अध्ययन कराया तदन्तर अन्य शिष्यों वैशम्पायन, पैल, जैमिनि, असित-देवल आदि को इसका अध्ययन कराया। शुकदेव जी ने गन्धर्वों, यक्षों और राक्षसों को इसका अध्ययन कराया। देवर्षि नारद ने देवताओं को, असित-देवल ने पितरों को और वैशम्पायन जी ने मनुष्यों को इसका प्रवचन दिया। वैशम्पायन जी द्वारा महाभारत काव्य जनमेजय के यज्ञ समारोह में सूत सहित कई ऋषि-मुनियों को सुनाया गया था।

ABHAY 08-01-2011 05:12 PM

Re: ~!!महाभारत!!~
 
विशालता
महाभारत की विशालता और दार्शनिक गूढता न केवल भारतीय मूल्यों का संकलन है बल्कि हिन्दू धर्म और वैदिक परम्परा का भी सार है। महाभारत की विशालता का अनुमान उसके प्रथमपर्व में उल्लेखित एक श्लोक से लगाया जा सकता है :
"जो यहाँ (महाभारत में) है वह आपको संसार में कहीं न कहीं अवश्य मिल जायेगा, जो यहाँ नहीं है वो संसार में आपको अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा"

VIDROHI NAYAK 08-01-2011 05:17 PM

Re: ~!!महाभारत!!~
 
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Originally Posted by abhay (Post 37963)
विशालता
महाभारत की विशालता और दार्शनिक गूढता न केवल भारतीय मूल्यों का संकलन है बल्कि हिन्दू धर्म और वैदिक परम्परा का भी सार है। महाभारत की विशालता का अनुमान उसके प्रथमपर्व में उल्लेखित एक श्लोक से लगाया जा सकता है :
"जो यहाँ (महाभारत में) है वह आपको संसार में कहीं न कहीं अवश्य मिल जायेगा, जो यहाँ नहीं है वो संसार में आपको अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा"

धन्यवाद मित्र !

ABHAY 08-01-2011 05:20 PM

Re: ~!!महाभारत!!~
 
Quote:

Originally Posted by vidrohi nayak (Post 37967)
धन्यवाद मित्र !

सुक्रिया भाई स्वागत है

ABHAY 08-01-2011 05:22 PM

Re: ~!!महाभारत!!~
 
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महाभारत का १८ पर्वो और १०० उपपर्वो में विभाग
http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1294492888

ABHAY 08-01-2011 05:28 PM

Re: ~!!महाभारत!!~
 
http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1294492878

ABHAY 08-01-2011 05:29 PM

Re: ~!!महाभारत!!~
 
http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1294492878


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