इस लड़ाई को थोड़ा-सा आप भी लड़िए
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मित्रों , एक पुराना जुमला है- हिन्दुस्तान अमीर है, पर हिन्दुस्तानी गरीब। पता नहीं किस खोजी दिमाग ने भारतीय शासन प्रणाली में पसरे भ्रष्टाचार के लिए यह शानदार बात कही थी, जो दशकों से लोगों के दिलो-दिमाग पर राज कर रही है। संगठित घूसखोरी ने इस देश के सत्ता प्रतिष्ठानों ही नहीं, बल्कि समूचे सिस्टम को ही कब्जे में ले लिया है............ आपका सहयोग अपेक्षित है ........... |
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मित्रों , इसके खिलाफ लोगों की छटपटाहट कभी-कभी गुस्से में तब्दील हुई, पर यह इलाकाई घटनाएं साबित होकर रह गईं। सब कुछ पहले जैसा चलता रहा। इस अनीति के कारोबार को अन्ना हजारे ने अपने साहस और दृढ़ संकल्प शक्ति से जोरदार झटका दिया है। वह और उनके सहयोगी बधाई के पात्र हैं........... आपका सहयोग अपेक्षित है ........... |
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मित्रों , अन्ना की ऐतिहासिक जीत के बाद आप भी सोच रहे होंगे कि रालेगण सिद्धि के संत में ऐसा क्या है कि उसने न केवल हिन्दुस्तान की हुकूमत को झुका दिया, बल्कि उन राजनेताओं को भी करारा धक्का दिया, जो सारी सीमाएं तोड़कर भ्रष्टाचार के दलदल में गले तक डूबे हुए हैं। लोग अन्ना की तुलना महात्मा गांधी से कर रहे हैं। पर दोनों के हालात में बहुत फर्क है। गांधी 19वीं शताब्दी से लेकर अब तक जनमे लोगों में महानतम माने जाते हैं। मुझे नहीं मालूम कि हजारे की हैसियत कभी उनके बराबर होगी या नहीं, पर यह सच है कि इस मराठी लड़ाके की लड़ाई बहुत मुश्किल है.......... आपका सहयोग अपेक्षित है ........... |
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मित्रों , वैसे तो दो बड़ी शख्सियतों में कोई तुलना पूरी तरह कभी भी जायज नहीं होती, पर यह सच है कि तुलनाएं हमें सोचने का एक नया नजरिया प्रदान करती हैं। मौका है और दस्तूर भी। लिहाजा कुछ बातें गांधी और हजारे के हालात पर भी कर लेते हैं। मोहनदास एक अमीर घर में जनमे थे। वह पढ़ने के लिए लंदन भेजे गए। बैरिस्टरी की पढ़ाई की। नतीजों के मामले में भले ही अच्छे न रहे हों, परंतु अपने अनुभवों को गुनने की उनमें अद्भुत क्षमता थी.............. आपका सहयोग अपेक्षित है ........... |
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मित्रों , दक्षिण अफ्रीका के व्यावसायिक दौरे के दौरान जब उन्हें पीटर मेरिट्सबर्ग स्टेशन पर धक्का मारकर उतार दिया गया, तो उन्होंने विरोध के लिए प्रचलित ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ के तरीके का सहारा नहीं लिया। वह चाहते, तो आंख के बदले आंख की रवायत का अनुसरण करते हुए अपने कानूनी ज्ञान का प्रयोग एक अत्याचारी गोरे को सबक सिखाने के लिए कर सकते थे। उन्होंने इससे आगे की सोची। वह उस समूची व्यवस्था के खिलाफ अकेले ही उठ खड़े हुए, जो दमनकारी मानसिकता की प्रतीक थी............. आपका सहयोग अपेक्षित है ........... |
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मित्रों , संयोग से दक्षिण अफ्रीका में उसे गोरी चमड़ी वाले लोग चला रहे थे। गांधी ने अपनी जिंदगी में बार-बार साफ किया कि मेरी लड़ाई किसी व्यक्ति या तबके के खिलाफ नहीं है। मैं अत्याचारी व्यवस्था को बदलना चाहता हूं। यही वजह है कि जब वह इस रास्ते पर चले, तो लोगों के मन में सुलग रहा गुस्सा उनके पीछे-पीछे लावे की तरह बहने लगा............. आपका सहयोग अपेक्षित है ........... |
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मित्रों , भारत आने के बाद जब वह गोखले और अन्य तमाम लोगों से मिले, तो उनके मन में आने वाले दिनों की तस्वीर साफ होने लगी। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले भारत के गांवों को नजदीक से देखने का फैसला किया। चंपारण की यात्रा के क्या निष्कर्ष निकले? किस तरह एक बैरिस्टर महात्मा में परिवर्तित हो गया? किस तरह देश के आम आदमी के मन में बदलाव की नई ललक जगी? इन सवालों के जवाब देने की जरूरत नहीं है। यह एक जाना-बूझा इतिहास है........... आपका सहयोग अपेक्षित है ........... |
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मित्रों , इसके उलट महाराष्ट्र के एक गांव में जनमे किशन बाबूराव हजारे की जिंदगी आसान नहीं थी। पिता मजदूर थे और घर में उनके अलावा छह और भाई थे। तंगी का आलम यह कि खाने के लिए हाथ और मुंह की दूरी हर रोज दूभर जान पड़ती थी। परिवार के दुख से द्रवित बुआ उन्हें मुंबई ले गईं। स्कूल में दाखिल हुए, पर सातवीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। गुरबत हर रोज तकलीफों का सिलसिला बढ़ा देती थी। लिहाजा 40 रुपये की पगार पर दादर के बाहर एक फूल बेचने वाले की दुकान पर नौकरी कर ली। बाद में फौज में ड्राइवर हो गए........... आपका सहयोग अपेक्षित है ........... |
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मित्रों , 1965 की भारत-पाक जंग में मौत से भी सीधा सामना हुआ। एक दिन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से विवेकानंद की एक किताब खरीदी, जिसने उनके सोचने और जीने के नजरिये को हमेशा के लिए बदल दिया। 1975 में फौज को अलविदा कहकर जब अपने गांव गए, तो उन्हें लगा कि बदलाव की हवा यहां तक आते-आते दम तोड़ देती है। इससे जूझने के लिए उन्होंने ‘तरुण मंडल’ नाम की एक संस्था बनाई। उन्होंने नौजवानों को शराब, अशिक्षा, अस्पृश्यता और पानी की तंगी से जूझना सिखाया.......... आपका सहयोग अपेक्षित है ........... |
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मित्रों , गरीबी उन्होंने बेहद पास से देखी थी। वह जानते थे कि खाली पेट पाप की ओर भी मोड़ देता है। इसलिए उन्होंने सबसे पहले रालेगण सिद्धि में दूध का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया। 1975 से पहले यह गांव सिर्फ सौ लीटर दूध प्रतिदिन दुहा करता था, जो बाद में ढाई हजार लीटर तक पहुंच गया। यह वह क्रांतिकारी तकनीक थी, जिसने लोगों के आचार-विचार और व्यवहार में क्रांतिकारी परिवर्तन किए। आज यह गांव पूरी तरह आत्मनिर्भर है। लोग इसकी नजीर देते हैं.......... आपका सहयोग अपेक्षित है ........... |
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