अगर सत्ता न हिल जाये तो फिर ये खून कैसा है
अगर सत्ता न हिल जाये तो फिर ये खून कैसा है
◆★◆★◆★◆★◆★◆★◆★◆★◆ हमें जो रोटियाँ वापस मिली ना तो समझ लेना अगर मुश्किल हुआ जीना हमारा तो समझ लेना कि अब तो जिंदगी जैसे खिलौना हो गयी है यह उतारू हो गया जिद पे खिलौना तो समझ लेना ★★★ किसी की रोटियाँ छीनें भला कानून कैसा है हमारा हक नहीं देता तो अफलातून कैसा है सभी हम मर रहे लेकिन सियासत मौज है करती अगर सत्ता न हिल जाये तो फिर ये खून कैसा है ★★★ हमें खुशहाल करना था मगर बरबाद कर डाला हमारे दिल को गम से है बहुत आबाद कर डाला हमें तो सिर्फ इज्जत के लिए संघर्ष करना था मगर गूंगो व बहरों से तूने संवाद कर डाला ★★★ ये धरना और चलने दो ये धरना और चलने दो कि पापी हैं सियासतदां न डरना और चलने दो हमें जबतक नहीं मिलता हमारा हक सुनों साथी नहीं ये भीख तुम स्वीकार करना और चलने दो रचना- आकाश महेशपुरी ◆◆★◆◆★◆◆★◆◆★◆◆★◆◆ वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी' ग्राम- महेशपुर, पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर, उत्तर प्रदेश |
Re: अगर सत्ता न हिल जाये तो फिर ये खून कैसा है
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