मनोहर कविताओ का संग्रह
प्रस्तुत है एक और नया सूत्र मनोहर कविताओ का संग्रह by Great_Brother.....
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा ..... मित्रों आपका स्वागत है इस सूत्र को जारी रखने के लिए अपने विचार को देते रहे ............... |
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' मित्रो सबसे पहली कविता का शीर्षक है "मां एक रिश्ता नहीं एक एहसास है"
मां ' एक रिश्ता नहीं एक एहसास है ' भगवान मान लो या खुदा, खुद वह मां के रूप में हमारे आस-पास है इस एक शब्द में पूरे जीवन का सार समाया है जब भी रहा है दिल बेचैन मेरा, सुकून इसके आंचल तले ही पाया है। पलकें भीग जाती हैं पल में, ' मां ' को जब भी याद किया है तन्हाई में, जब भी पाया है खुद को मुश्किलों से घिरा, साथ दिखी है वह मुझे मेरी परछाई में। न जाने कौन सी मिट्टी से ' मां ' को बनाया है ऊपर वाले ने, कि वह कभी थकती नहीं, कभी रुकती नहीं, उसे अपने बच्चों से कभी शिकायत नहीं होती... आंसुओं का सैलाब है भीतर, पर आंखों से वह कभी नहीं रोती। उसे टुकड़ा-टुकड़ा होकर भी, फिर से जुड़ना आता है, अपने लिए कुछ किसी से नहीं उससे मांगा जाता है। कितना भी लिखो इसके लिए कम है, सच है ये कि ' मां ' तू है, तो हम हैं। बड़े खुशनसीब हैं वो जिन के सिर पर मां का साया है और बड़े बदनसीब हैं वो जिन्होंने अपनी मां को ठुकराया है मुझे दौलत नहीं चाहिए, शोहरत नहीं चाहिए, नहीं चाहिए मुझे वरदान कोई मुझे चाहिए ' मां ' के चेहरे पे सुकून के दो पल और उसके होठों पे मुस्कान। करना चाहूंगा मैं कुछ ऐसा कि मेरे नाम से मिले मेरी मां को पहचान। |
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बताव बबुवा कईसे परीक्षा दीयाई ! जब दिन रात खेलब ना करब पढ़ाई, बताव बबुवा कईसे परीक्षा दीयाई ! दोस्तों के संगें घुमिके समय गुजारेल ! ऊंच नीच कछू ना मन में विचारेल ! अबो से सुधरब की खाली करब घुमाई, बताव बबुवा कईसे परीक्षा दीयाई ! मन के तहरा सपना साकार कईसे होई , जब तू बीतयब दिन रात सोई सोई ! माई बाप के धोखा दे के करब बेहयाई , बताव बबुवा कईसे परीक्षा दीयाई ! आज कल बावे कमपतीशन के ज़माना , लिखब ना पढ़ब त तोहरा परी लजाना , बात अनसुनी कके करतार मुरखतई , बताव बबुवा कईसे परीक्षा दीयाई! केतनों समझाव मानत नईख केहुके , ऐसे त बीतयब तू ज़िंदगी कुहुकिके , वर्मा तबे तोहारा हमार बात याद आई ! बताव बबुवा कईसे परीक्षा दीयाई ! मित्रों आपका स्वागत है इस सूत्र को जारी रखने के लिए अपने विचार को देते रहे ............... |
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न जाने किस बात से ये दिल डरता है..... कुछ करने का मन करता है, पर न जाने किस बात से ये दिल डरता है कोई कर न सके जिस सवाल को क्यूं फिर भी तू, उसके जवाब का इंतज़ार करता है। कुछ करने का मन करता है, पर न जाने किस बात से ये दिल डरता है दूसरों पर ऐतबार करता है और खुद अपनी दुआओं से डरता है। कुछ करने का मन करता है, पर न जाने किस बात से ये दिल डरता है यह रास्ता तो तूने ही चुना था फिर क्यूं अब सफ़र ख़त्म होने का इंतज़ार करता है। कुछ करने का मन करता है, पर न जाने किस बात से ये दिल डरता है, कल का तो तू इंतज़ार करता है पर, रात न गुज़रने की भी बात करता है। कुछ करने का मन करता है, पर न जाने किस बात से ये दिल डरता है बिना बोले जो समझे तेरे दिल की बात क्यूं उन सुनने वालों का अब तक इंतज़ार करता है। मित्रों आपका स्वागत है इस सूत्र को जारी रखने के लिए अपने विचार को देते रहे ............... |
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गुमां नहीं होता... दिल हमारा ही नहीं, हर किसी का नाज़ुक होता है किसी को गुमां होता है, किसी को गुमां नही होता समझाने से पहले किसी को समझना बहुत जरूरी है सहर से पहले कभी कोहरे को गुमां नहीं होता रात भर फूल ओस की इक बूंद के लिए ठिठुरता रहा किस पंखुडी पर गिरेगी ओस, उसको गुमां नहीं होता कौन पूछता है आईने से चाहत उसकी किस सूरत को वो भला लगे, उनको गुमां नहीं होता। मित्रों आपका स्वागत है इस सूत्र को जारी रखने के लिए अपने विचार को देते रहे ............... |
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नदी डूब गई ....... आधुनिक भारतीय समाज में सुदूर विदेशों की तमाम सोशल नेटवर्किंग साइटों को बड़े ही जोशो खरोशों से अपनाने का उपक्रम बड़ी ही तेजी से चल रहा है। पर अपने ही नीचे की जमीन खिसक रही है। इसका पता हमें क्या लग रहा है? वर्चुअल वर्ल्ड के स्वागत को तत्पर दिखते हैं रियल वर्ल्ड से कोसों दूर हो रहे हैं अपनों की ही नेटवर्किंग से अंजान और क्रमशः दूर हो गए हैं। एकाकी जीवन में इस कदर खो गए हैं मित्रों आपका स्वागत है इस सूत्र को जारी रखने के लिए अपने विचार को देते रहे ............... |
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नदी डूब गई ....... टूटते घर और छीजते परिवार इस व्यथा को चीख कर कह रहे हैं फेसबुक पर तो सिस्टर वीक उद्यमता से सेलिब्रेट कर रहे हैं। पर, अपनी सगी बहनों की खबर से अंजान हो रहे हैं अपने जीवन के न जाने कितने मूल्यवान बसंत को जिसने अजीज भाई के लिए बड़े ही तत्परता से बलिदान कर डाला भाई को युवा करने के लिए अपने यौवन का गला घोंट डाला उस भाई ने इस मर्यादा को ही बड़े ही सिद्दत से धो डाला। रहे होंगे उन बहनों के भी कितने अरमान कभी कम नहीं थे सोसाइटी में। उनके भी मान सम्मान जब एक अज्ञात अनिष्ट की आशंका ने उन्हें स्वयं घर में कैद के लिए विवश कर दिया था। मित्रों आपका स्वागत है इस सूत्र को जारी रखने के लिए अपने विचार को देते रहे ............... |
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नदी डूब गई ....... क्या उस दशा में उस भाई का कोई फर्ज नहीं था उस भाई ने अपने को अपने सपनों की दुनिया में ही सिमटा लिया जिनकी बिनाह पर वह सपने देख रहा था उन्हीं को ठुकरा दिया न जाने कितनी फ़िल्मी और गैर फिल्मी गीत भाई बहन के रिश्ते पर लिखी गयी होगी जिन्हें पढ़ लिख कर कितनी बार हमारी आंखे नम हो गयी होगी पर नम क्यों नहीं होती इन रियल भाइयों की आंखे क्या रह जाएंगी ये सिर्फ किताब की बातें जिन्हें जब चाहा पढ़ा और आंसूं गिरा आँखों को धो लिया दिल के बोझ को इच्छानुसार जब चाह कम कर लिया फिर उन भावनाओं को पन्नों में दफ़न कर दिया मित्रों आपका स्वागत है इस सूत्र को जारी रखने के लिए अपने विचार को देते रहे ............... |
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नदी डूब गई ....... दूर करना होगा हमें इन विसंगतियों को गहराई से समझना होगा इन रक्त के रिश्तों को जीवन में एक दिन ऐसा हर किसी के जीवन में आता है जीवन के सबसे करीबी और कीमती रिश्तों के रूप में माँ बापू का साया सर से उठ जाता है ऐसे में मात्र एक बहन ही रक्त के रिश्ते के रूप में शेष रहती है बाकी रिश्ते तो बस रिश्तों के अवशेष सी दिखती है बहन अगर बड़ी है तो माँ का प्यार देती है मित्रों आपका स्वागत है इस सूत्र को जारी रखने के लिए अपने विचार को देते रहे ............... |
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नदी डूब गई ....... छोटी बहन का क्या कहना वह तो बेटियों सी होती है आंगन का श्रृंगार होती है जो कितनी भी आपदा से घिरी हो पर पापा पर अपने जान को बेहिचक न्यौछावर करती है आइए सुदृढ़ करे इन रिश्तों के जीव को सजीव करे पुनः निर्जीव हो चुके रिश्तों की नीव कोष। मित्रों आपका स्वागत है इस सूत्र को जारी रखने के लिए अपने विचार को देते रहे ............... |
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