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-   -   उपन्यास: जीना मरना साथ साथ (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=13723)

rajnish manga 01-12-2014 09:46 PM

Re: उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
 
‘‘सुनलहीं न हो, साला के कहलिए हल की छोड़ इ शुदर मुदर के साथ, कुछ नै मिले बाला, पर नै मानलै और बोडीगार्ड रखलै, चल गेलै भित्तर...। सांढ़ा ने यह कहानी छेड़ी तो कई शुरू हो गए। कामरेड के हत्या के मामले में एक दर्जन से अधिक लोग बंदी थी।

‘‘हां हो, साला के खतम करे ले कहां कहां से समान नै जुटावे पड़लै, सन्तालिस के आगे रिवॉल्वर की टिकतै। बगैचा में घेर के पहले त बोडीगडबा के कहबे कैलिए की तों भाग जो, पर साला पक्का सिपाही हलै कहलै हमरो मार दा पर भागबो नै।’’ बीपो सिंह ने बड़े ही शान से कहा।

‘‘साला रार सुदर के भड़काबो हलै, गेलै। चंदा कर के ऐतना रूपया जमा कर देलिए हें कि केस सलटा जइतै।’’
वीरगाथ की तरह बखान चलती रही और मेरा मन इस सब में अकुलाता रहा। सामान्तवाद की इस गाथा में मेरा मन नहीं रम रहा था पर अनमनसक हो कर सुनना भी मजबूरी थी। मेरा मन बाहर की घटनाओं को जानने के लिए मचलने लगा। फिर मुझसे भी मेरी कहानी लोगो ंने जाननी चाही।


‘‘कैसे फंसइलहीं हो, त भागलीं काहे, छोड़ देथीं हल त जेल के हवा नै ने खाइले पड़तो हल।’’कई तरह के सवाल। पर जबाब कौन देता, किसके पास जबाब था। मैं चुप चाप सुनता रहा।
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rajnish manga 11-12-2014 10:47 PM

Re: उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
 
अगले दिन गांव का विपिन राम मिलने आया। कई दोस्त थे पर किसी ने हिम्मत नहीं किया पर वह गरीब होकर भी आया था। मेरा नाम पुकारा गया। दरवाजे पर गया। मिलने का नजराना दस रूपया था।
‘‘की हाल विपिन।’’


‘‘बस, चलो अब जे होबै, साहस कैलहीं न हो इहे बहुत है। कल रीनमां के कोर्ट में बयान होतई और ओकर बहुत सीखाबल जा रहलै हें।’’


‘‘चलहिं, अब पीछे मुड़े के कोई जगह नै है। जे होतई से होतई।’’

फिर उसी ने बताया कि पूरा गांव एक है और उसकी शादी के लिए डाक्टर, इंजीनियर लड़का का फोटो दिखाया जा रहा है। किसी तरह से उसे मनाने की बात कहीं जा रही है और कोर्ट में वह कह दे की उसका अपहरण हुआ। यानि की सबकुछ अब उसके उपर ही था। वह कोर्ट में बदल भी सकती है। जो हो। पर मुझे कुछ अजीब तरह का अनुभूति होने लगी। लगा जैसे प्यार की बाजी को मैं जीतना चाहता हंू और जीतने के लिए रीना का मेरे विरूद्ध बयान देना ही सही है। मन ही मन यही सांेचता रहा।


शाम को करीब तीन बजे गांव के कुछ साथी हाथ में एक कागज लहराते हुए जेल की तरफ आ रहे थे और वे खुश थे। मैं समझ गया कि रीना में मेरे पक्ष में ही गवाही दी। मैं आज दिन भर सुबह से ही भारी मन लिए छत के बरामदे पर टहलता रहा। गेट पर गया और गवाही का कागज मेरे हाथ में आ गया। उसने मुझसे शादी किये जाने और मेरे साथ ही रहने की बात कही और प्यार के अप्रत्यक्ष जंग में उसकी जीत हो गई। मेरे गांव का तीन चार साथी आज आया था और उसने भी खुशी जाहीर की। शादी, प्लेटफॉर्म पर और वह भी भादो के मलमास महीने में!
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rajnish manga 11-12-2014 10:48 PM

Re: उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
 
‘‘बहुत साहस बली लड़की है हो, सबके समझइला के बाद भी जज के सामने बोल्डली बोल देलकै।’’ राजीव ने कहा।

‘‘पर जैसे ही ओकर गवाही के बारे में परिवर के पता चललै, सब के सब वहां से भाग गेलै। ओकर बाबूजी तो कह देलखिन कि आज से हमर बेटी मर गेल।’’


‘‘सिंदूर कैले हलै की नै हो।’’ मैंने पूछ लिया शायद जोर जबरस्ती में उसे मिटा दिया गया हो।


‘‘हां हो सिंदूर तो टहापोर कैले हलै। एक ओकरे घर के आदमी कह रहलै हल गवाहिया से पहलै की जब लाख कोशीश और मारपीट करला के बाद भी ई छौंरी मांग से सिंदूर नै मेटैलक तब गवाही की पक्ष में देत?’’

चलो! जीवन तो अक्सर करवट लेती ही है और मेरा जीवन तो इस समय तेजी से करवट ले रहा था। नाटक के पात्रों की तरह। जैसे किसी ने पटकथा लिख कर रख दिया और हम सब पात्र अभिनय कर रहें हों। रीना ने मेरे पक्ष में वैसे समय में गवादी दी जब एक गांव की लड़की को न तो कानून की जानकारी थी न ही कोर्ट कचहरी को गयान पर उसने कई तरह के प्रलोभन और समझाने बुझाने के बाद भी कोर्ट में मुझसे प्रेम करने तथा शादी कर लेने की बात कबूल कर लिया।
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rajnish manga 11-12-2014 10:50 PM

Re: उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
 
‘‘तब! अब की होतै?’’ मेरा मन प्रसन्न हो गया। लगा की सबकुछ ठीक हो गया। पर नहीं, ऐसा नहीं था।


‘‘अरे अभी बहुत मुश्किल है। रीना त अपन परिवार के साथ जायसे मना कर देलकै और तोरा साथ रहे के बात कहलकै पर जब तक बालिग होबे के प्रमाण न हो जा है तब तक कोर्ट ओकरो जेल मे रखतै।’’

‘‘जेल’’

भोला! सुना तो था कि इश्क नहीं आसां पर आज देख भी लिया और आग के दरिया में डूब कर पार निकलने की परीक्षा हो रही थी। आग का दरिया! जिसमें प्रेम, मान-मर्यादा, स्वाभिमान, लज्जा और प्रेमी के अंदर के मैं को भी आग के दरिया में डुबा कर पार निकालता है बिल्कुल उसी तरह जैसे सोनार सोने को आग में तपा कर उसकी परख करता हो। एक पलड़े पर प्रेमी के परिवार की मर्यादा और उसका अपना मैं रख दिया जाता है और दूसरी तरफ प्रेम और तब उस पार निकला प्रेम साधु की तरह समाज के सामने आता है। बिल्कुल वैसा ही जैसा कि सालों साल तपस्या करते हुए, ध्यान धरते हुए ईश्वर के होने का ज्ञान होता है और आदमी दुनिया छोड़ कर साधु बन जाता है। प्रेम के होने का ज्ञान उसी तरह का होता है जैसे की ईश्वर के होने का ज्ञान बुद्व, महावीर, मीरा और कबीर को हुआ हो।
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rajnish manga 07-01-2015 10:21 PM

Re: उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
 
‘‘तब! अब की होतै?’’ मेरा मन प्रसन्न हो गया। लगा की सबकुछ ठीक हो गया। पर नहीं, ऐसा नहीं था।
‘‘अरे अभी बहुत मुश्किल है। रीना त अपन परिवार के साथ जायसे मना कर देलकै और तोरा साथ रहे के बात कहलकै पर जब तक बालिग होबे के प्रमाण न हो जा है तब तक कोर्ट ओकरो जेल मे रखतै।’’


‘‘जेल’’

भोला! सुना तो था कि इश्क नहीं आसां पर आज देख भी लिया और आग के दरिया में डूब कर पार निकलने की परीक्षा हो रही थी। आग का दरिया! जिसमें प्रेम, मान-मर्यादा, स्वाभिमान, लज्जा और प्रेमी के अंदर के मैं को भी आग के दरिया में डुबा कर पार निकालता है बिल्कुल उसी तरह जैसे सोनार सोने को आग में तपा कर उसकी परख करता हो। एक पलड़े पर प्रेमी के परिवार की मर्यादा और उसका अपना मैं रख दिया जाता है और दूसरी तरफ प्रेम और तब उस पार निकला प्रेम साधु की तरह समाज के सामने आता है। बिल्कुल वैसा ही जैसा कि सालों साल तपस्या करते हुए, ध्यान धरते हुए ईश्वर के होने का ज्ञान होता है और आदमी दुनिया छोड़ कर साधु बन जाता है। प्रेम के होने का ज्ञान उसी तरह का होता है जैसे की ईश्वर के होने का ज्ञान बुद्व, महावीर, मीरा और कबीर को हुआ हो।

भोला! एक धंटा बाद वह जेल के दरबाजे पर मुझसे मिलने आई। मेरा परिवार, छोटा भाई, चाचा और बाबूजी भी, उसके साथ थे। नजर मिलते ही उसका दिल लरज गया। जैसे यातना की आपार पीड़ा सहता हुआ मन फूट पड़ता हो। अविरल आंसू की धारा दोनों के आंखों से झरने लगा। कभी चंचल सी हिरणी की तरह फुदकने वाली रीना आज पत्थर की बेजान मूर्ति की तरह लग रही थी, जैसे की मरने के पुर्व आदमी को जीवन का मोह खत्म हो गया हो। एक बोल किसी के मुंह से नहीं फूटा पर खामोशी के एक संवाद ने दर्द को आंसूओं की जुबानी अपनी कहानी सुना दी। प्रेम में दोनों अडीग रहे पर बाजी उसने ही जीती। उसने जो कहा था कि कुछ नहीं होने देंगें,
वही किया।

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rajnish manga 07-01-2015 10:22 PM

Re: उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
 
खामोशी के इस वीरान रेगिस्तान में चाचा ने दस्तक दी।

‘‘घबराए के कौनो बात नै है। एक बीधा खेत बेच के पैसे के इंतजाम कर देलिए है। जहां तक होता, कोई कमी नै रहे ले देबै।’’ उन्होने डूबते को तिनके का सहारा देने की कोशिश की पर कहां? जो डूब चुका था उसे सहारे की क्या दरकार?
उन्होंने फिर कहा-


‘‘हम तो इनखर बाबूजी से भी मिलके कहलिए कि माफ कर दहो, बुतरू है। की करभो। अरे बाल बच्चा जब जांघ पर पैखाना कर दे है तब आदमी की अपन जांघ काट के फेंक देहै? वैसे ही जब इ तों दुनी के निर्णय है तब आगे भगवान जाने, पर नै मानलखिन। कहलखिन की हमर बेटी मर गेल। आज से । अब ओकर श्राद्धकर्म करके, माथा मुड़ा के पाक हो जाम।’’

फिर जानकारी मिली कि रिजर्व कार से इसको पटना के महिला सुधार गृह:ःजेलःः ले जाया जा रहा है। सब इंतजाम कर दिया गया है। मेरे परिवार के लोग भी साथ जाएगे। मेरे परिवार के हिस्से जो थोड़ी जमीन थी बिक गई।

भोला! अपने बार्ड के सामने छत के बरामदे पर खामोशी से खड़ा था। शाम ढल चुली थी। लगा जैसे सूरज ने भी आज अपना सर छुपा लिया हो। उसको भी लाज आ रही हो, मेरे कुकर्मो पर या कि समाज के,
पता नहीं पर आज सूरज लजा कर छुप गया था।

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rajnish manga 07-01-2015 10:23 PM

Re: उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
 
तीन-चार दिन बाद रीना के गांव से ही मेरा एक दोस्त आया मिलने और फिर जब उसने गांव की कहानी बताई तो कलेजा कांप गया। रीना के घर पर उसके बाबूजी ने उसका श्राद्धकर्म कर दिया है। बजाप्ते, कागज का एक पुतला बना कर उसे मुखाग्नि दी गई, और फिर उत्तरी पहन कर तीन दिनो तक श्राद्धकर्म किया गया। पूरे परिवार ने सर मुंडबाया! गंगा स्नान किया! दान पुण्या किया! तीसरे दिन पंडित और गरीबों को भोज देकर श्राद्धकर्म समाप्त हुआ।

भोला! लगा जैसे की घरती फटे और उसमें समा जायें। यह बात जब रीना को पता चलेगी तो वह उसी वेदना से तड़प उठेगी जिस वेदना की तड़प से घरती फटी थी और सीता उसमें समा गई थी। हर दिन, हर क्षण, जिंदगी यातना दे रही थी। बचपन की दहलीज से कदम बढ़ा कर किसी सुख की आशा में गलत-सही, कुछ भी किया पर इस तरह के परिणाम की कल्पना नहीं की थी। ज्यादा से ज्यादा प्राण देने की सोंच रखी थी। झंझट खतम। लगा था कि प्रेम में जान देकर उऋण हो लूंगा, पर जान पर भी भारी जीवन हो जाएगा, नहीं सोंचा था। चाचा जी ने ठीक ही कहा था कि जांध पर बच्चा जब पैखाना कर देता है तब आदमी पैखाना को साफ करता है न कि जांध को काटता है? पर कथित इज्जत को लेकर समाज के लोग अपनी जांध को भी काटने से गुरेज नहीं करते। क्या प्रेम इतना दुखद है। या कि इज्जत इतनी सस्ती है जो एक प्रेम का बोझ नहीं उठा सकती। समाज के पहरूआ कौन है। कौन है यह समाज जिसके डर से प्रेम को बलीबेदी पर चढ़ा दिया जाता है। या कि अपने पापों को छुपाने भर का नाम ही समाज है। जिस समाज में व्याभिचार की कोई सीमा नहीं, जिस समाज में धर्म-अधर्म का मर्म नहीं, जिस समाज की अपनी मर्यादा नहीं और झुठ-फरेब, छल-प्रपंच, त्रिया-चरित्र, बेइमानी रग रग में समाया हो वह प्रेम की मर्यादा क्या जाने? या कि उसके लिए ढकी हुई मर्यादा, मर्यादा है, छुपी हुयी इज्जत,
इज्जत है और उघड़ा हुआ प्रेम कलंक।

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pankajraj 23-12-2018 10:49 AM

Re: उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
 
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naresh1999811 10-01-2019 03:31 PM

Re: उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
 
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rajnish manga 30-01-2024 01:48 PM

Re: उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
 
सभी दोस्तों का शुक्रिया.


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