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rafik 15-10-2014 10:26 AM

दोस्ती की ज़रूरत!
 
एक बहुत बड़ा सरोवर था। उसके तट पर मोर रहता था, और वहीं पास एक मोरनी भी रहती थी। एक दिन मोर ने मोरनी से प्रस्ताव रखा कि "हम तुम विवाह कर लें, तो कैसा अच्छा रहे?"

मोरनी ने पूछा, "तुम्हारे मित्र कितने है?"

मोर ने कहा, "उसका कोई मित्र नहीं है।"

तो मोरनी ने विवाह से इनकार कर दिया।

मोर सोचने लगा सुखपूर्वक रहने के लिए मित्र बनाना भी आवश्यक है।

उसने एक शेर से, एक कछुए से, और शेर के लिए शिकार का पता लगाने वाली टिटहरी से, दोस्ती कर लीं।

जब उसने यह समाचार मोरनी को सुनाया, तो वह तुरंत विवाह के लिए तैयार हो गई।

दोनों ने पेड़ पर घोंसला बनाया और उसमें अंडे दिए, और भी कितने ही पक्षी उस पेड़ पर रहते थे।

एक दिन जंगल में कुछ शिकारी आए। दिन भर कहीं शिकार न मिला तो वे उसी पेड़ की छाया में ठहर गए और सोचने लगे, पेड़ पर चढ़कर अंडे और बच्चों से भूख बुझाई जाए।

मोर दंपत्ति को भारी चिंता हुई, मोर मित्रों के पास सहायता के लिए दौड़ा।

बस फिर क्या था, टिटहरी ने जोर- जोर से चिल्लाना शुरू किया। शेर समझ गया, कोई शिकार है। वह उसी पेड़ के नीचे जा पहुँचा जहाँ शिकारी बैठे थे। इतने में कछुआ भी पानी से निकलकर बाहर आ गया।

शेर से डरकर भागते हुए शिकारियों ने कछुए को ले चलने की बात सोची। जैसे ही हाथ बढ़ाया कछुआ पानी में खिसक गया। शिकारियों के पैर दलदल में फँस गए। इतने में शेर आ पहुँचा और उन्हें ठिकाने लगा दिया।

मोरनी ने कहा, "मैंने विवाह से पूर्व मित्रों की संख्या पूछी थी, सो बात काम की निकली न, यदि मित्र न होते, तो आज हम सबकी खैर न थी।`

मित्रता सभी रिश्तों में अनोखा और आदर्श रिश्ता होता है। और मित्र किसी भी व्यक्ति की अनमोल पूँजी होते हैं। इसलिए अपने दोस्तों को मत भूलो और ज्यादा से ज्यादा दोस्त बनाओ।

rajnish manga 16-10-2014 06:58 PM

Re: दोस्ती की ज़रूरत!
 
इतनी सुंदर व प्रेरणादायक कथा प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद्. एक नज़र में यह एक बालकथा लगती है लेकिन जीवन का एक सत्य भी खोलती है. सच्चा मित्र हर व्यक्ति की जरूरत है जिस पर वह किसी भी कुश्किल में विश्वास कर सकता है.

Suraj Shah 16-10-2014 07:06 PM

Re: दोस्ती की ज़रूरत!
 

सुंदर लघुकथा.......


rafik 17-10-2014 09:50 AM

Re: दोस्ती की ज़रूरत!
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 533627)
इतनी सुंदर व प्रेरणादायक कथा प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद्. एक नज़र में यह एक बालकथा लगती है लेकिन जीवन का एक सत्य भी खोलती है. सच्चा मित्र हर व्यक्ति की जरूरत है जिस पर वह किसी भी कुश्किल में विश्वास कर सकता है.

Quote:

Originally Posted by suraj shah (Post 533627)
सुंदर लघुकथा.......

दोस्ती इन्सान की ज़रूरत है,
दिलो पे दोस्ती की हुकूमत है ,
जिंदा है आपकी दोस्ती की वजह से,
वरना खुदा को भी हमारी ज़रूरत ह

rafik 17-10-2014 09:55 AM

Re: दोस्ती की ज़रूरत!
 
रुला ना दीजिएगा...
यू चुप रहके सज़ा ना दीजिएगा...
ना दे सके ख़ुशी, तो ग़म ही सही...
पर दोस्त बना के यूही भुला ना दीजिएगा...

खुदा ने दोस्त को दोस्त से मिलाया...
दोस्तो के लिए दोस्ती का रिस्ता बनाया...

पर कहते है दोस्ती रहेगी उसकी क़ायम...
जिसने दोस्ती को दिल से निभाया...

अब और मंज़िल पाने की हसरत नही...
किसी की याद मे मर जाने की फ़ितरत नही...

आप जैसे दोस्त जबसे मिले...
किसी और को दोस्त बनाने की ज़रूरत नही...!!!

rafik 17-10-2014 10:01 AM

Re: दोस्ती की ज़रूरत!
 
ज़रूरत नही पड़ती, दोस्त की तस्वीर ki


जरुरत नहीं पडती, दोस्त की तस्वीर की.
देखो जो आईना तो दोस्त नज़र आते हैं, दोस्ती में..
येह तो बहाना है कि मिल नहीं पाये दोस्तों से आज..
दिल पे हाथ रखते ही एहसास उनके हो जाते हैं, दोस्ती में..
नाम की तो जरूरत हई नहीं पडती इस रिश्ते मे कभी..
पूछे नाम अपना ओर, दोस्तॊं का बताते हैं, दोस्ती में..
कौन केहता है कि दोस्त हो सकते हैं जुदा कभी..
दूर रेह्कर भी दोस्त, बिल्कुल करीब नज़र आते हैं,
दोस्ती में..सिर्फ़ भ्रम हे कि दोस्त होते ह अलग-अलग..
दर्द हो इनको ओर, आंसू उनके आते हैं , दोस्ती में..
माना इश्क है खुदा, प्यार करने वालों के लियेपर
हम तो अपना सिर झुकाते हैं, दोस्ती में..
ओर एक ही दवा है गम की दुनिया में क्युकि..
भूल के सारे गम, दोस्तों के साथ मुस्कुराते हैं, दोस्ती में

soni pushpa 17-10-2014 11:20 AM

Re: दोस्ती की ज़रूरत!
 
Quote:

Originally Posted by rafik (Post 533767)
ज़रूरत नही पड़ती, दोस्त की तस्वीर ki


जरुरत नहीं पडती, दोस्त की तस्वीर की.
देखो जो आईना तो दोस्त नज़र आते हैं, दोस्ती में..
येह तो बहाना है कि मिल नहीं पाये दोस्तों से आज..
दिल पे हाथ रखते ही एहसास उनके हो जाते हैं, दोस्ती में..
नाम की तो जरूरत हई नहीं पडती इस रिश्ते मे कभी..
पूछे नाम अपना ओर, दोस्तॊं का बताते हैं, दोस्ती में..
कौन केहता है कि दोस्त हो सकते हैं जुदा कभी..
दूर रेह्कर भी दोस्त, बिल्कुल करीब नज़र आते हैं,
दोस्ती में..सिर्फ़ भ्रम हे कि दोस्त होते ह अलग-अलग..
दर्द हो इनको ओर, आंसू उनके आते हैं , दोस्ती में..
माना इश्क है खुदा, प्यार करने वालों के लियेपर
हम तो अपना सिर झुकाते हैं, दोस्ती में..
ओर एक ही दवा है गम की दुनिया में क्युकि..
भूल के सारे गम, दोस्तों के साथ मुस्कुराते हैं, दोस्ती में

अति सुन्दर कहानी और कविता दोनों ही , सच कहा आपने दोस्त और दोस्ती मानव को विधाता से मिली एक अनमोल दें कहें या भेट मिली है ... दोस्ती का महत्व सुदामा कृष्णा से सुरु हुआ और आज जब भी दोस्ती की बात आती है , उनका जिक्र हुए बिना नही रहता ... दोस्तों से खुलकर आपने मन की बातें कर सकता है इन्सान . हर सुख दुःख में दोस्त काम आते हैं और जब जब आपने साथ छोड़ देते हैं तब दोस्त साथ देते हैं

बहुत प्यारी होती है दोस्ती ... थैंक्स bhai इतना प्यारा विषय यहाँ रखने के लिए .

Rajat Vynar 17-10-2014 03:58 PM

Re: दोस्ती की ज़रूरत!
 
Quote:

Originally Posted by soni pushpa (Post 533768)
अति सुन्दर कहानी और कविता दोनों ही , सच कहा आपने दोस्त और दोस्ती मानव को विधाता से मिली एक अनमोल दें कहें या भेट मिली है ... दोस्ती का महत्व सुदामा कृष्णा से सुरु हुआ और आज जब भी दोस्ती की बात आती है , उनका जिक्र हुए बिना नही रहता ... दोस्तों से खुलकर आपने मन की बातें कर सकता है इन्सान . हर सुख दुःख में दोस्त काम आते हैं और जब जब आपने साथ छोड़ देते हैं तब दोस्त साथ देते हैं

बहुत प्यारी होती है दोस्ती ... थैंक्स bhai इतना प्यारा विषय यहाँ रखने के लिए .


माफ़ कीजिएगा, सोनी पुष्पा जी.. दोस्ती से बड़ी एक चीज़ होती है वह है मोहब्बत. वर्ष १९६८ में लोकार्पित फिल्म आँखें का साहिर लुधियानवी का लिखा वह चर्चित गीत तो आपने सुना ही होगा-

मिलती है ज़िन्दगी में मोहब्बत कभी कभी

होती है दिलबरो की इनायत कभी कभी

शर्मा के मुह ना फेर नज़र के सवाल पर
लाती है ऐसे मोड़ पर किस्मत कभी कभी

खुलते नाही हैं रोज दरीचे बहार के
आती है जानेमन ए क़यामत कभी कभी

तनहा ना कट सकेंगे जवानी के रास्ते
पेश आएगी किसीकी ज़रूरत कभी कभी

फिर खो ना जाये हम कही दुनिया की भीड़ में
मिलती है पास आने की मुहलत कभी कभी

होती है दिलबरो की इनायत कभी कभी
मिलती है ज़िन्दगी में मोहब्बत कभी कभी..


और अब सच्चे दोस्त रहे ही कहाँ? दोस्तों के नाम पर मेरे पास एक लंबी-चौड़ी फौज है मगर सच्चा कौन है कुछ पता नहीं चल पा रहा है. इसलिए सच्चे दोस्तों की पहचान के लिए पिछले वर्ष से ‘स्टिंग ऑपरेशन’ किया जा रहा है. जल्द ही सच्चे दोस्तों की वास्तविक संख्या पता चल जायेगी. कुछ पुराने अच्छे दोस्तों को सच्चा दोस्त बनने के लिए प्रोत्साहित भी किया जा रहा है. उनके लिए इनामी योजना भी निकाली जा रही है.

soni pushpa 17-10-2014 04:11 PM

Re: दोस्ती की ज़रूरत!
 
Quote:

Originally Posted by Rajat Vynar (Post 533769)

माफ़ कीजिएगा, सोनी पुष्पा जी.. दोस्ती से बड़ी एक चीज़ होती है वह है मोहब्बत. वर्ष १९६८ में लोकार्पित फिल्म आँखें का साहिर लुधियानवी का लिखा वह चर्चित गीत तो आपने सुना ही होगा-

मिलती है ज़िन्दगी में मोहब्बत कभी कभी

होती है दिलबरो की इनायत कभी कभी

शर्मा के मुह ना फेर नज़र के सवाल पर
लाती है ऐसे मोड़ पर किस्मत कभी कभी

खुलते नाही हैं रोज दरीचे बहार के
आती है जानेमन ए क़यामत कभी कभी

तनहा ना कट सकेंगे जवानी के रास्ते
पेश आएगी किसीकी ज़रूरत कभी कभी

फिर खो ना जाये हम कही दुनिया की भीड़ में
मिलती है पास आने की मुहलत कभी कभी

होती है दिलबरो की इनायत कभी कभी
मिलती है ज़िन्दगी में मोहब्बत कभी कभी..


और अब सच्चे दोस्त रहे ही कहाँ? दोस्तों के नाम पर मेरे पास एक लंबी-चौड़ी फौज है मगर सच्चा कौन है कुछ पता नहीं चल पा रहा है. इसलिए सच्चे दोस्तों की पहचान के लिए पिछले वर्ष से ‘स्टिंग ऑपरेशन’ किया जा रहा है. जल्द ही सच्चे दोस्तों की वास्तविक संख्या पता चल जायेगी. कुछ पुराने अच्छे दोस्तों को सच्चा दोस्त बनने के लिए प्रोत्साहित भी किया जा रहा है. उनके लिए इनामी योजना भी निकाली जा रही है.

omg
फिर से एक गाना ..रजत जी लगता है आपके पास गानों का भंडार भरा हुआ है , नही गानों की भी थोक की दुकान है आपके पास .. रही बात दोस्ती की तो ये सही है की आज दोस्ती में मिलावट आ गई है लेकिन सब जगह ये बात सही नही लगती मुझे , क्यूंकि मेरी जितनी फ्रेंड्स हैं वो सब बहुत अच्छी है और सच्ची हैं और हाँ आप भी देख लीजियेगा स्टिंग opration के माध्यम से की आपके दोस्त सही है या झूठे हैं ...

rafik 17-10-2014 04:51 PM

Re: दोस्ती की ज़रूरत!
 
किस राज्य में वीर नाम का एक युवक रहता था। एक बार वीर को दूसरे राज्य में किसी काम से जाना पड़ा और दुर्भाग्य से वीर वहाँ एक झूठे अपराध में फँस गया। गवाहों की ग़ैर मौजूदगी के कारण राजा ने उसे फाँसी का हुक़्म सुना दिया और मुनादी करवा दी गई-
"हर ख़ास-ओ-आम को सूचित किया जाता है कि अपराधी वीर को ठीक एक महीने बाद...याने पूर्णमासी के दिन... हमारे राज्य की प्रथा के अनुसार... प्रजा के सामने... सार्वजनिक रूप से फाँसी पर लटकाया जाएगाऽऽऽ ।"
जेल में बंद वीर बहुत परेशान था। उसे परेशान देखकर पहरेदार ने कहा-
"फाँसी की सज़ा से तुम परेशान हो गए हो। अब मरना तो है ही... आराम से खाओ-पीओ और मस्त रहो"
"मुझे अपने मरने की चिन्ता नहीं है। मेरी परेशानी कुछ और है... क्या मुझे जेल से कुछ दिन की छुट्टी मिल सकती है ?"
"जेल से छुट्टी ? ये कोई नौकरी है क्या, जो छुट्टी मिल जाएगी?... लेकिन बात क्या है, कहाँ जाना है तुम्हें छुट्टी लेकर ?"
"मेरी माँ अन्धी है और घर पर अकेली है। मुझे उसके शेष जीवन का पूरा प्रबंध करने के लिए जाना है जिससे मेरे मरने के बाद उसे कोई कष्ट न हो। उसका सारा प्रबंध करके मैं एक महीने के भीतर ही लौट आऊँगा।... क्या कोई तरीक़ा... क्या कोई क़ानून ऐसा नहीं है कि मुझे कुछ दिनों की छुट्टी मिल जाय ?"
"देखो भाई ! तुम पढ़े-लिखे और सज्जन आदमी मालूम होते हो... तुम्हारी समस्या को मैं राज्य के मंत्री तक पहुँचवा दूँगा... बस इतना ही मैं तुम्हारे लिए कर सकता हूँ।"
अगले दिन पहरेदार ने बताया-
"सिर्फ़ एक तरीक़ा है कि तुम छुट्टी जा सको...?"
"वो क्या ?"
"अगर तुम्हारी जगह कोई और यहाँ जेल में बन्द हो जाय... जिससे कि अगर तुम नहीं लौटे तो तुम्हारी जगह उसे फाँसी दे दी जाय...सिर्फ़ यही तरीक़ा है... लेकिन कभी ऐसा हुआ नहीं है क्योंकि कोई भी किसी की फाँसी की ज़मानत थोड़े ही देता है।"
"आप मेरे गाँव से मेरे दोस्त धीर को बुलवा दीजिए... मेहरबानी करके जल्दी उसे बुलवा दें"
"पागल हो क्या ! कोई दोस्त-वोस्त नहीं होता ऐसे मौक़े के लिए..."
"आप उसे ख़बर तो करवाइए..."
वीर और धीर की दोस्ती सारे इलाक़े में मशहूर थी। लोग उनकी दोस्ती की क़समें खाया करते थे। जैसे ही धीर को ख़बर मिली वो भागा-भागा आया और वीर को जेल से छुट्टी मिल गई।
धीरे-धीरे दिन गुज़रने लगे, वीर नहीं लौटा और न ही उसकी कोई ख़बर आई। धीर के चेहरे पर कोई चिन्ता के भाव नहीं थे बल्कि वह तो रोज़ाना ख़ूब कसरत करता और जमकर खाना खाता। पहरेदार उससे कहते कि वीर अब वापस नहीं आएगा तो धीर हँसकर टाल जाता। इस तरह फाँसी में केवल एक दिन शेष रह गया, तब सभी ने धीर को समझाया कि उसे मूर्ख बनाया गया है।
"आप लोग नहीं जानते वीर को... यदि वह जीवित है तो निश्चित लौटेगा... चाहे सूर्य पूरब के बजाय पच्छिम से उगे... लेकिन वीर अवश्य लौटेगा। एक बात और है, जिसका पता आप लोगों को नहीं है। मैंने उसे यह कहकर भेजा है कि वह कभी वापस न लौटे और मुझे ही फाँसी लगने दे... मगर मैं जानता हूँ उसे, वो नालायक़ ज़रूर लौटेगा, मेरी बात मानेगा ही नहीं !"
जब सबने यह सुना कि ख़ुद धीर ने ही वीर से लौटने के लिए मना कर दिया है तो राजा को सूचना दे दी गई।
पूर्णमासी आ गई और फाँसी का दिन भी...। अपार भीड़ एकत्र हो गई, इस विचित्र फाँसी को देखने के लिए। जिसमें किसी के बदले में कोई और फाँसी पर चढ़ रहा था। स्वयं राजा भी वहाँ उपस्थित था। फाँसी लगने ही वाली थी कि वहाँ वीर पहुँच गया।
"रोकिए फाँसी ! फाँसी तो मुझको दी जानी है... मैं आ गया हूँ अब... मुझे दीजिए फाँसी" - वीर बोला,
"नहीं ये समय पर नहीं लौट पाया है, इसलिए फाँसी तो अब मुझे लगेगी... मुझे !" धीर चिल्लाया,
इस तरह दोनों झगड़ने लगे। जनता के साथ-साथ राजा को भी बहुत आश्चर्य हो रहा था कि ये दोनों दोस्त फाँसी पर चढ़ने के लिए लड़-झगड़ रहे हैं ?
"लेकिन तुम इतनी देर से क्यों लौटे ?" राजा ने पूछा।
"महाराज ! मैंने तो अपनी माँ के लिए सारा इन्तज़ाम एक सप्ताह में ही कर दिया था और उसे समझा भी दिया था कि अब उसका ध्यान धीर ही रखेगा। जब मैं वापस लौट रहा था तो लुटेरों से मेरी मुठभेड़ हो गई। मैं 15 दिन घायल और बेसुध पड़ा रहा। जैसे ही मुझे होश आया, मैं भागा-भागा यहाँ आया हूँ।"
राजा ने कहा "अब तो तुम दोनों को ही सज़ा दी जाएगी... लेकिन वो फाँसी नहीं बल्कि हमारे राजदरबार में नौकरी करने की सज़ा होगी... तुम दोनों बेमिसाल दोस्त हो और ईमानदार भी... आज से तुम दोनों हमारे राजदरबार की शोभा बढ़ाओगे"
ये तो थी मित्रता की एक पुरानी कहानी, मित्रता और शत्रुता का आपसी रिश्ता बहुत गहरा है। मित्रता, बराबर वालों में होती है और इस 'बराबर' का संबंध पैसे की बराबरी से नहीं है, यह बराबरी किसी और ही धरातल पर होती है। इसी कारण हमारे 'स्तर' की पहचान हमारे दोस्तों से होती है। यही बात शत्रुता पर भी लागू होती है। हमारे शत्रु जिस स्तर के हैं, हमारा भी स्तर वही होता है।
यूनान के सम्राट सिकन्दर से किसी ने कहा-
"आपके बारे में सुना है कि आप बहुत तेज़ दौड़ सकते हैं। किसी दौड़ में आप हिस्सा क्यों नहीं लेते ?"
"जब सम्राटों की दौड़ होगी तो सिकंदर भी दौड़ेगा।" सिकंदर का उत्तर था।
इसी तरह 'नेपोलियन बोनापार्ट' से एक पहलवान ने कहा-
"आपकी बहादुरी मशहूर है, मुझसे कुश्ती लड़कर मुझे हरा कर दिखाइए !"
"तुमसे मेरा अंगरक्षक लड़ेगा... जो तुमसे दोगुना ताक़तवर है। उसके सामने तुम एक मिनिट भी नहीं टिक पाओगे। मुझे अपनी बहादुरी के लिए 'तुम्हारे' प्रमाणपत्र की नहीं बल्कि यूरोप की जनता के विश्वास की ज़रूरत है।"
मित्रता का कोई 'प्रकार' नहीं होता कि इस प्रकार की मित्रता या उस प्रकार की, जबकि शत्रुता के बहुत सारे 'प्रकार' हैं। जैसे- राजनीतिक शत्रुता, व्यापारिक शत्रुता, ईर्ष्या-जन्य शत्रुता आदि कई तरह की शत्रुता हो सकती हैं। शत्रुता के बारे में यह भी कहा जा सकता है कि शत्रुता कम हो गई या बढ़ गई। मित्रता कम या अधिक नहीं होती, या तो होती है या नहीं होती। जब हम यह कहते हैं "उससे हमारी उतनी दोस्ती अब नहीं रही..." तो हम सही नहीं कह रहे होते। वास्तव में दोस्ती समाप्त हो चुकी होती है। इसी तरह 'गहरी मित्रता' जैसी कोई स्थिति नहीं होती। दोस्ती और दुश्मनी में एक फ़र्क़ यह भी होता कि दोस्ती 'हो' जाती है और दुश्मनी 'की' जाती है।


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