अजीबोगरीब बीमारियों के बारे में
दुनिया भर में मेडिकल साइंस को चुनौती देने वाले मामले आते रहते हैं, जिसको डॉक्टर्स भी देखकर हैरान रह जाते हैं। कई तो बीमारियां ऐसी होती हैं, जिसके होने की संभावना न के बराबर होती है. बावजूद इसके उस बीमारी का नाम मेडिकल की किताब में पहले से दर्ज होता है. |
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एलीफेंटियासिस हालांकि इसके बारे में पहले भी सुना जा चुका है। इस तरह की बीमारी ख़ास किस्म के वायरस या परजीवी कीड़े से मच्छर द्वारा आदमी के शरीर को लगती है। इसे लिम्फैटिक फाइलेरिया या एलीफेंटियासिस कहा जाता है। जिसमें पैरों का आकार असामान्य रूप से बढ़ जाता है। एक बार संक्रमित होने के बाद फाइलेरिया के कीड़े लिम्फैटिक सिस्टम को बिगाड़ देते हैं। |
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कोटार्डस सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति, जिसमें व्यक्ति अपने को मरा हुआ समझने लगता है। इसे कोटर्ड इल्युज़न (भ्रम) भी कहा जाता है। इसमें व्यक्ति को विश्वास होने लगता है कि वह अंदर से खत्म हो रहा है। इसमें अंदर से शरीर सड़ने लगता है. खून धीरे-धीरे सूख जाता है और आंतरिक अंग काम करना बंद कर देते हैं. इसके बारे में पहली बार 1880 में फ्रेंच न्यूरोलॉजिस्ट जूल्स कोटर्ड ने पेरिस में एक लेक्चर के दौरान बताया था। हालांकि यह बीमारी बड़ी दुर्लभतम है. |
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हाइपरट्राईकोसिस इस अजीबोगरीब बीमारी के कारण पूरे शरीर में असमानरूप से बाल बढ़ने लगते हैं। एक समय में स्थिति जानवरों जैसी हो जाती है। इसे वॉल्फ सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है। दुनियाभर में इस तरह के अभी तक 50 केस सामने आए हैं। 18वीं और 19वीं शताब्दी में इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को सर्कस में डाल दिया जाता था, क्योंकि ऐसे लोग आकर्षण का केंद्र होते थे। |
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पिरयोडिक पैरालिसिस हम सभी लोग पैरालिसिस से अंजान नहीं हैं। इसमें शरीर को कोई हिस्सा या पूरा शरीर कुछ समय लिए काम करना बंद कर देता है। इसकी अवधि कुछ घंटे और कुछ दिनों के लिए हो सकती है। यह तंत्रिका कोशिकाओं में आयन चैनल के फेल होने से होता है। जिसमें दिमाग का शरीर के अंगों से संपर्क खत्म हो जाता है। |
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एपिडरमोडिसप्लेसिया वरुसीफोर्मिस यह भयानक बीमारियों में से एक है, जिसे ट्री बार्क भी कहा जाता है। यह हमारी पृथ्वी पर त्वचा से संबंधित दुर्लभतम बीमारी में से एक है। पापीलोमा नामक वायरस इस बीमारी की जड़ होता है, जिससे पूरा शरीर एक पेड़ की तरह दिखने लगता है। |
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मेथेमोग्लोबिनेमिया यह एक दुर्लभ और वंशानुगत त्वचा संबंधी बीमारी है, जिसमें पीड़ित का पूरा शरीर नीला पड़ जाता है। खून में मेथेमोग्लोबिनेमिया का लेवल उच्च स्थान पर पहुंच जाने से शरीर में नाटकीयरूप से परिवर्तन होने लगता है। इसके कारण सांस लेने में दिक्कत, सिरदर्द, थकान और मेहनत में कमी होने लगती है। |
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ट्रिमेथीलेमिन्यूरिया इस मेटाबोलिक विकार को फिश ऑडर (गंध) सिंड्रोम भी कहा जाता है। एंजाइम्स की कमी के कारण शरीर में ट्रिमेथीलेमाइन का लेवल बढ़ जाता है, जिससे भयानक बदबू पैदा होती है। यह बदबू व्यक्ति के यूरिन, लार और पसीने से मिलकर बनी होती है। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि बदबू किस तरह की होगी। |
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फॉरेन एसेंट सिंड्रोम यह सुनने में थोड़ा अजीब लगे, लेकिन एक बीमारी ऐसी भी होती है, जो दिमाग में ऐसी जगह प्रहार करती है कि भाषा के बोलने का तरीका बदल जाता है। एक स्ट्रोक या रक्तस्त्राव से मस्तिष्क को आघात पहुंचता है। कई मामलों में पाया गया कि बचपन से अपनी भाषा बोलने वाला मरीज विदेशी भाषा का लहजा सीख लेता है। कोमा से उठकर आया व्यक्ति अचानक विदेशी लहजा अपना लेता है। यह वाकई सुनने में थोड़ा अजीब लगता है। |
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प्रोजेरिया यह बीमारी किसी त्रासदी से कम नहीं है। इसमें छोटी उम्र का व्यक्ति भी बुजुर्गों जैसा दिखने लगता है। 80 लाख में से सिर्फ एक ही ऐसा मामला सामने आता है। प्रोजेरिया के कारण बचपन से बाल नहीं आते, गठिया रोग और आंखों से दिखना कम हो जाता है। यह किशोर होने तक अपने चरम पर होता है। |
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