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-   -   पारख साहब के दिलचस्प किस्से (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=7082)

rajnish manga 13-03-2013 11:09 PM

पारख साहब के दिलचस्प किस्से
 
पारख साहब के दिलचस्प किस्से

किस्से का नाम सुनते ही आपको कुछ नाम तत्काल याद आ जाते हैं जैसे किस्सा तोता मैना, किस्सा गुल बकावली, किस्सा रूप-बसंत आदि आदि. कुछ ऐसे महापुरुषों के नाम भी याद आ जायेंगे जिनके नाम से भी अनेकों किस्से सुनाये जाते हैं. इनमे से प्रमुख हैं - मुल्ला नसरुद्दीन, बीरबल, तेनाली राम आदि.

मित्रो, आपके परिवार में, बुजुर्गों में, मिलने वालों में, स्कूल या कॉलेज फेकल्टी में, दफ्तर में भी ऐसे महाशय मिल जायेंगे जिनके पास किस्से-कहानियों का न ख़त्म होने वाला भंडार होता है. यदि ये किस्से दिलचस्प होने के साथ साथ शिक्षाप्रद भी हों तो कहना ही क्या? मेरे दफ्तर में भी पारख साहब नाम के एक अधिकारी थे जिन्होंने स्टाफ को भरपूर प्यार भी दिया, ट्रेनिंग भी दी और तुरत बुद्धि से किसी भी परिस्थिति के अनुरूप किस्से कहानियां सुना कर व्यवहारिक ज्ञान भी बाँटते रहे. स्टाफ भी उन्हें हार्दिक प्यार व इज्ज़त देता था. कभी कोई नाराज हो भी गया तो तुरत फुरत उसकी नाराजगी दूर करने में भी माहिर थे. हमारे पारख साहब जो किस्से कहावतें सुनाते, हम उन्हें कलमबद्ध कर लिया करते. उन्हीं किस्सों में से चंद आपकी सेवा में हाजिर हैं.

rajnish manga 13-03-2013 11:10 PM

Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
 
(खब्ती बाप)

तीन चार दिन पहले कोई बात चली तो पारख साहब ने यह किस्सा सुनाया:-

एक बाप ने अपने होनहार बेटे को अच्छी तालीम दी और बड़ा होने पर वकालत करवाई. एक दिन बेटा अपने कुछ मित्रों के साथ अपने कमरे में बैठा हुआ था जहाँ चारों ओर अलमारियों में क़ानून की मोटी मोटी पोथियाँ सजी हुयी थीं. कमरे का दरवाजा भिड़ा हुआ था. अचानक उधर से उसका बाप आ निकला. उसने दरवाजे को थोड़ा सा खोल कर अन्दर बैठे लोगों को देखना चाहा. एक क्षण में ही उसने दरवाजा पूर्ववत बंद कर दिया. तभी उसके कानों में यह शब्द सुनाई पड़े,

“यह कौन है, भाई?” लड़के के मित्रों ने लड़के से पूछा.

“है एक खब्ती.” लड़के ने जवाब दिया.

बाप ने यह वार्तालाप सुन लिया. उसका मन आश्चर्य, ग्लानि और क्रोध से भर गया. अब वह पूरा दरवाजा खोल कर अन्दर आ गया और चारों ओर अलमारियों में लगी किताबें बड़े गौर से देखते हुए बोला,

“हम ये सारी किताबें काबिले ज़ब्ती समझते हैं
कि जिनको पढ़के बेटे बाप को खब्ती समझते हैं.”

(उक्त शे’र अकबर इलाहाबादी का है)
(21/10/1976)

rajnish manga 13-03-2013 11:12 PM

Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
 
जंगली पौधे और शहरी पौधे

कल पारख साहब ने एक किस्सा सुनाया. आज कल हमारे दफ्तर में रंग-रोगन का काम चल रहा है. झाड़ – पोंछ – रगड़ाहट की वजह से काफी धूल उडती रहती है जिसके कारण वहां बैठे रहना दुश्वार हो जाता है. बात बात में मैंने कहा कि कल परसों से इस धूल के कारण मेरा गला खराब हो गया है तो उन्होंने मुझसे यह कहा कि ये जो मजदूर काम कर रहे हैं, इनकी ओर तो देखो, इनका तो यह पेशा है. इस पर मैंने कहा कि चूना मिली धूल का जो असर हम पर होता है कुछ न कुछ तो इन पर भी होता होगा. यह बात दूसरी है कि आदतवश या मजबूरी में यह लोग सहन कर लेते हैं. इस पर पारख साहब ने निम्नलिखित किस्सा सुनाया:-

एक बार एक राजा जंगल में शिकार खेलने गया हुआ था. जंगल में वह अपने साथियों से बिछड़ गया और एक लक्कड़हारे की झोंपड़ी में पहुँच गया. लक्कड़हारे की बीवी ही उस समय झोंपड़ी में थी और लक्कड़हारा काम पर गया हुआ था. लक्कड़हारे की पत्नि प्रसव में थी. राजा ने देखा कि बच्चे के प्रसव के बाद उठ कर अपने काम काज में लग गई.

राजा के मन पर इस घटना का बड़ा भारी असर हुआ. उसकी रानी भी गर्भवती थी और शिशु को जन्म देने वाली थी. उस घटना से प्रभावित राजा ने यह आज्ञा दी कि कि कोई वैद्य व हकीम रानी की देखभाल करने के लिए नहीं बुलाया जाएगा. किसी प्रकार की सुगंधि तथा वैभव रानी के पास तक नहीं जाने चाहिए. उसके मन में यह विचार था कि यदि जंगल में एक स्त्री बिना किसी की सहायता के और बिना किसी देखभाल के अपने बच्चे को जन्म दे सकती है तो रानी क्यों ऐसा नहीं कर सकती? इसके लिए ये सारा दिखावा क्यों?

दो चार दिन तक यह क्रम चलता रहा. राजा के प्रधानमंत्री भी सोच में पड़ गए. क्या किया जाए? राजा को समझाना आसान नहीं था. खैर उन्होंने मन ही मन कुछ निश्चय किया. उन्होंने शाही वाटिका में काम करने वाले मालियों को कह दिया कि वे लोग अब से पौधों में और गमलों में दो तीन दिन पानी न डालें. ऐसा ही किया गया. एक दिन राजा शाही वाटिका में घूमने के लिए आये. उन्हें यह देख कर बड़ा अहंभा हुआ कि फूलों वाले सभी पौधे मुरझा गए हैं. उनकी डालियाँ कुम्हला गई थीं. उन्होंने अपनी बगल में चल रहे प्रधान मंत्री की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा. प्रधानमंत्री राजा का आशय समझ कर बोले,
“महाराज, जंगल में पौधों को कौन पानी डालता है? और कौन उनकी देखभाल करता है? कोई नहीं.लेकिन वे फिर भी फलते फूलते रहते हैं. तो इन पौधों को देख भाल की या मालियों की जरूरत क्यों हो?
महाराज प्रधान मंत्री की बात का मर्म समझ कर मुस्कुरा दिए और उन्होंने अपनी जिद छोड़ दी.
(29/10/1976)

rajnish manga 13-03-2013 11:15 PM

Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
 
गलत लिफाफा बनाम दुल्हे राजा

कल शाम की बात है. बनवारी जी डिस्पैच चढ़ा कर पारख साहब से चैक करवा रहे थे.एक पत्र के ऊपर लिफाफा गलत लग गया तो पारख साहब ने वो कहानी सुना दी जिसके अनुसार एक युवक की लड़कपन में ही शादी हो जाती है और युवावस्था में वह अपनी ससुराल आता है. इधर न तो वो ही ससुराल में किसी को जानता था न उसे लेने आये हुए लोग ही उसे पहचानते थे. सब उलट पलट हो गया.हुआ यह कि वह तो उस पते पर पहुँच गया जो उसके पास नोट किया हुआ था. थोड़ी देर में वो लोग भी आ पहुंचे जो कुंवर जी को (यानि उसे) लेने रेलवे स्टेशन गए थे. लेकिन वो लोग खाली हाथ नहीं आये थे. कुंवर जी को लिवा लाये थे. हुआ यह कि अनभिज्ञता में वह किसी और को ले आये थे. भारी समस्या उठ खड़ी हुयी जिसे बड़े कौशल से लेकिन मुश्किल से सुलझाया जा सका.
(03/11/1976)

Dark Saint Alaick 13-03-2013 11:27 PM

Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
 
आपकी डायरी के इन अनमोल पलों के बलिहारी। कृपया ज़ारी रखें। :egyptian:

rajnish manga 13-03-2013 11:48 PM

Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
 
Quote:

Originally Posted by Dark Saint Alaick (Post 242429)
आपकी डायरी के इन अनमोल पलों के बलिहारी। कृपया ज़ारी रखें। :egyptian:

:gm:

सूत्र पर विजिट करने के लिए और प्रशंसा के अनमोल शब्दों के लिए आपका धन्यवाद, अलैक जी. डायरी लिखने का सुख या उससे प्राप्त होने वाले आत्म-संतोष को एक डायरी लिखने वाला ही जान सकता है. इन किस्सों को जारी रखने का प्रयास करूंगा.

rajnish manga 16-03-2013 12:21 AM

Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
 
मस्त रहेंगे मस्ती में, आग लगे जी बस्ती में

उक्त कहावत पारख साहब ने सुनाई और हमसे इसका मतलब पूछने लगे. जब हमने कोई उत्तर नहीं दिया तो कुछ क्षणों के बाद अपने आप ही बताने लगे –

कुछ लोग इसका यह मतलब लगाते हैं कि ‘बस्ती में चाहे आग लग जाए या कोई और मुसीबत आ जाए, हम तो अपनी मस्ती में मस्त रहेंगे, हमें किसी से कुछ लेना देना नहीं है’.

उन्होंने बताया कि उपरोक्त उत्तर ठीक नहीं है, बल्कि इसका मतलब यह है कि बस्ती में चाहे आग लग जाए या अन्य आपदा आ जाए, हम पूरे उत्साह, धैर्य और शक्ति से उस पर काबू पा लेंगे, इसलिए घबराने की कोई बात नहीं है.

(04/11/1976)

rajnish manga 16-03-2013 11:50 PM

Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
 
हम रहे ऊत के ऊत
आज पारख साहब ने निम्नलिखित दोहा हमें सुनाया –
जवाईं ले गए बेटियाँ,
बहुएं ले गयीं पूत,
तिरिया जोबन ले गई
हम रहे ऊत के ऊत.

उन्होंने हमें समझाया कि किस प्रकार आदमी बड़ा होता है, पढ़ाई लिखाई करता है, अपनी शादी करता है, बच्चे पालता है, फिर उनकी भी शादी करता है और फिर मर जाता है. ऐसे जीवन में भी क्या तंत है, क्या रखा है? इस प्रकार का भाव इस दोहे से प्रकट होता है.

(4/11/1976)

rajnish manga 16-03-2013 11:52 PM

Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
 
कोई खात मस्त, कोई ख्वात मस्त

आज के इंसान की आत्म-केन्द्रित मनोवृत्ति के बारे में टिप्पणी करते हुए पारख साहब ने निम्नलिखित कविता सुनाई:

कोई खात मस्त, कोई ख्वात मस्त,
कोई मस्त है जूए में,
मालिक तो हैं अपने में मस्त,
और गए सब कूयें में.
(4/11/1976)

rajnish manga 16-03-2013 11:53 PM

Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
 
उदासी का कारण

उन दिनों पारख साहब मुनि नथमल रचित एक पुस्तक पढ़ रहे थे. इसी पुस्तक से एक प्रसंग उन्होंने हमें सुनाया जो इस प्रकार है –
कोई व्यक्ति तो दुःख में से सुख ढूँढता है, और कोई सुख में से दुःख ढूंढ लेता है. एक व्यक्ति की लाटरी निकली. बहुत से लोग बधाई देने पहुंचे. लेकिन इतनी मुबारकबाद मिलने के बाद भी वो भाई ग़मगीन बैठा था. ‘ऐसा क्यों?’ लोगों ने उससे पूछा, “ क्या बात है, इतनी अच्छी खबर सुन कर भी तुम्हें कोई ख़ुशी नहीं हुयी, तुम उदास और गुमसुम बैठे हो.”

उसने जवाब दिया, “मैंने दो रुपये खर्च कर के लाटरी के दो टिकट लिए थे. सिर्फ एक टिकट पर ईनाम निकला है, दूसरा तो बेकार चला गया.
(30/11/1976)


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