पौराणिक कथायें एवम् मिथक
पौराणिक कथायें एवम् मिथक
मित्रो, संसार की लगभग सभी संस्कृतियों, सभ्यताओं तथा प्राचीन महाकाव्यों में असंख्यों दंतकथाएं, किम्वदंतियां, आख्यान, कथायें और मिथकीय विवरण प्राप्त होते हैं जो रूढ़ियों से आबद्ध भी लगते हैं और रोमांचित भी करते हैं, भयभीत भी करते हैं और साहस का संचार भी करते है. बहुत सी कथाएं तो जन-मानस में ऐतिहासिक घटनाओं के तौर पर भी रच बस गई हैं. भारतीय कथाओं व मिथकों के अलावा हम ग्रीस, मिस्र, नॉर्स, चीन, अफ्रीका, अमरीका आदि में प्रचलित कथाओं तथा मिथकों को भी शामिल करेंगे. इस प्रकार इस सूत्र मैं हम संसार के अलग अलग क्षेत्रों की मनोरंजक मिथक कथाओं को आपके समक्ष प्रस्तुत करेंगे. आशा है आपको यह आयोजन पसंद आएगा. |
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कौरव स्वर्ग में और पांडव नरक में क्यों गए ?
महाभारत युद्ध में कौरवों को पराजित करने के बाद जब पाँचों पांडवों को अपनी पत्नि द्रौपदी के साथ हस्तिनापुर पर राज्य करते हुए 36 वर्षों व्यतीत हो गये तो उन्होंने यह सोचा कि उन्होंने धर्मानुसार राज्य का संचालन कर पर्याप्त पुण्य अर्जित कर लिया है जिसके आधार पर वे बिना किसी असुविधा के सशरीर स्वर्ग की ओर आरोहण कर सकते हैं. स्वर्गारोहण के निमित्त उन्होंने मेरु पर्वत पर चढ़ना शुरू किया. दुर्भाग्य से राह में ही वे फिसल कर एक एक कर मृत्यु को प्राप्त हुए. सर्वप्रथम द्रौपदी मृत्यु को प्राप्त हुयी. यह इसलिए क्योंकि वह दोष-मुक्त न थी; उसका दोष यह था कि वह अर्जुन को अपने अन्य पतियों की तुलना में अधिक चाहती थी. उसके बाद सहदेव मृत्यु को प्राप्त हुआ. उसमे यह दोष था कि उसे अपने ज्ञान का घमंड हो गया था. सहदेव के बाद नकुल मृत्यु को प्राप्त हुआ क्योंकि उसे अपने रूपवान होने का घमंड था जो कि एक दोष था. फिर अर्जुन का वही हाल हुआ क्योंकि वह अपने सम्मुख किसी अन्य धनुर्धारी योद्धा को कुछ नहीं समझता था. उसके बाद भीम ने प्राण त्यागे. उसका दोष था कि वह बहुत अधिक खाता था. केवल पांडव भाइयों में सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर ही आकाश से पार देवलोक में पहुँच सके. वहा पहुँच कर उसे यह देख कर बहुत वेदना हुयी कि वहां सारे कौरव तो दिखाई दे रहे थे लेकिन उसके भाइयों तथा द्रौपदी का कई अता-पता न था. इस पर युधिष्ठिर ने यमराज से पूछा कि ऐसा क्यों है? यमराज ने उसकी शंका का समाधान करते हुए कहा, “कौरव युद्धभूमि में क्षत्रियों की भाँति लड़ते हुए और अपने कर्तव्य का पालन करते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए, उन्होंने वही किया जो उन्हें करना चाहिए था. ऐसा करने से उन्हें इतने पुण्य की प्राप्ति हुयी कि उनके दोष धुल गये. आगे युधिष्ठिर ने अपने भाइयों और पत्नि के बारे में पूछा. यमराज ने बताया कि वे अपने कर्मों का फल भुगत रहे हैं. युधिष्ठिर को पाताल लोक में ले जाया गया जहाँ नरक का दृश्य अंधकारपूर्ण और भयानक था, जहाँ रहने वालों को प्रताड़ित किया जा रहा था व भीषण यातनाएं दी जा रही थीं. युधिष्ठिर ने वहां से जाने के लिए मना कर दिया. उन्होंने कहा कि मैं इस दुःख की घड़ी में अपने भाइयों और पत्नि को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगा. यमराज ने समझाया कि नरक का यह आवास सदा के लिए नहीं है बल्कि थोड़े समय के लिए है. जैसे ही वे अपने कर्मों का प्रतिफल भुगत लेंगे वैसे ही वे भी कौरवों के साथ ही स्वर्ग में चले जायेंगे. तुम्हें भी जीवन में (एक मात्र) झूट बोलने के लिए कुछ समय के लिए नरक में जाना पड़ेगा. |
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महान योद्धा ऐकिलिस की एड़ियाँ
यूनानी दन्त कथाओं में एक योद्धा का विवरण मिलता है जिसका नाम एकीलिस था. देवताओं ने उसकी माँ से कहा कि वह अपने पुत्र का जितना शरीर स्टिक्स नदी में डुबो देगी, उसका उतना शरीर अभेद्य हो जाएगा. माता ने अकिलीस की एडियाँ पकड़ कर उसके सारे शरीर को स्टिक्स नदी में डुबकी लगवाई. परिणामस्वरूप उसका सारा शरीर तो वज्र जैसा हो गया लेकिन उसकी एडियाँ कमज़ोर रह गयीं. होमर द्वारा रचित महाकाव्य ‘इलियड’ में वर्णित ट्रोजन युद्ध में एकीलिस के शत्रुओं ने उसकी एडियाँ तोड़ कर विजय प्राप्त की. (इस यूनानी पौराणिक कथा का महाभारत में वर्णित पात्र दुर्योधन की कथा से तुलना कर सकते हैं जिसका सारा शरीर वज्र के समान कठोर हो गया था लेकिन जंघा प्रदेश कमज़ोर रह गया जिसकी वजह से अन्ततः दुर्योधन की मृत्यु हुयी). |
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दुर्योधन का वज्र सा शरीर
महाभारत का युद्ध समाप्ति की ओर अग्रसर था. कर्ण भी युद्ध में मारा जा चुका था. धृतराष्ट्र के पुत्रों में सबसे बड़े और बलशाली दुर्योधन को उसकी माँ गांधारी ने अपने कक्ष में बुलाया और कहा कि आज मैं तुम्हारे सारे शरीर को वज्र के समान कठोर तथा अजेय बना दूँगी. मैं आज अपनी आँखों की पट्टी खोलूंगी. तुम जाओ और मेरे सम्मुख बिना वस्त्रों के आओ. माँ की आज्ञा सुन कर दुर्योधन उनके कक्ष से बाहर निकला. रास्ते में कृष्ण मिल गए. उन्हें सारी घटना का पता चल चुका था. उन्होंने दुर्योधन को सलाह दी कि तुम अवश्य अपनी माँ की आज्ञा का पालन करो लेकिन सोचो कि तुम अपनी माता के सामने नग्न हो कर कैसे जाओगे? ऐसा उपाय करो जिससे तुम्हारी माता की इच्छा भी पूरी हो जाये और तुम्हारी लज्जा भी रह जाए. दुर्योधन ने पूछा कि वह क्या करे? श्रीकृष्ण ने सुझाव दिया कि तुम अपनी जंघा क्षेत्र में केले का पत्ता लपेट कर जा सकते हो. दुर्योधन ने ऐसा ही किया. वस्त्रहीन दुर्योधन, जो कि जंघा क्षेत्र पर केले का एक पत्ता लपेटे हुए था, जब माँ के सम्मुख पहुंचा तो माँ ने अपनी आँखों की पट्टी खोल दी. उसकी आँखों से उसका तेज निकल रहा था. शरीर के जितने भाग पर माँ की दृष्टि पड़ी, वह वज्र के समान कठोर हो गया. लेकिन जहाँ दुर्योधन ने केले का पत्ता लपेट रखा था शरीर का वह स्थान पूर्ववत माँसल व कोमल बना रहा. माँ के पूछने पर दुर्योधन ने श्रीकृष्ण द्वारा दी गई सलाह के बारे में बता दिया. किन्तु अब क्या हो सकता था ? गांधारी ने अपनी आँखों पर फिर से पट्टी बाँध ली. पाठकगण देखेंगे कि महाभारत के युद्ध में भीम ने श्रीकृष्ण की सलाह पर दुर्योधन के साथ भीषण गदा युद्ध किया और अन्ततः श्रीकृष्ण के कहने पर (गदा युद्ध के नियमों के विरुद्ध जा कर) उसकी जंघा प्रदेश पर ही गदा का भयानक वार किया. जंघाओं के कोमल रह जाने के कारण दुर्योधन इस घाव को सहन न कर पाया और अन्ततः मृत्यु को प्राप्त हुआ. |
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पेन्डोरा का बॉक्स (यूनान की मिथकीय कथा) यह अंग्रेजी में एक कहावत के रूप में भी प्रयुक्त होता है जिसका अर्थ है चारों ओर से मुसीबतों या परेशानियों का हमला होना. यूनानी दंत कथाओं के अनुसार पेन्डोरा एक स्वर्ग बाला थी जिसे देवताओं ने प्रोमीथियस के भाई ऐपिमीथियस की पत्नि के रूप में भेजा था और दहेज़ में उसे एक संदूक दिया था. लेकिन साथ ही यह हिदायत कर दी थी कि वह संदूक को खोले नहीं. नारी सुलभ कौतुहल से एक दिन पेन्डोरा ने यह देखने के लिए कि उस उस वर्जित संदूक में क्या हो सकता है, उसका ढक्कन खोल दिया. और इसके साथ ही मानव की सारी आपदा विपदायें संदूक से निकल कर संसार में फ़ैल गयीं. इन सब के नीचे थी बेचारी ‘आशा’. इससे पूर्व कि आशा भी संदूक से बाहर निकल पाती, पेन्डोरा ने ढक्कन छोड़ दिया और वही आशा मनुष्य की सारी दुरावास्थाओं में उसे संभालती है |
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रावन - कथा
रेड इंडियंस की लोक कथाओं का एक पात्र है ‘रावन’. इसे हम रावण भी कह सकते हैं क्योंकि यह भी हमारे रावण की तरह मायावी भी था और छल बल से भी काम लेता था. रावन को एक बार मालूम हुआ कि उस इलाके में मछेरे की एक रूपवती कन्या है जिसने अपने बक्से में चन्द्रमा को बंद कर रखा है. रावन के मन में लालच आ जाता है और वह चन्द्रमा को अपने कब्जे में करना चाहता है. वह एक चाल चलता है. वह अपनी माया से बेर के वृक्ष की निचली टहनी पर एक पत्ते के रूप में स्थित हो जाता है. मछेरे की लडकी जब उस पेड़ से बेर तोड़ने आती है तो पत्ती का रूप लिए रावन उसके ऊपर गिर जाता है और उसके शरीर में पहुँच जाता है. परिणामस्वरूप वह लड़की गर्भवती हो जाती है और कुछ समय बाद वह एक पुत्र को जन्म देती है. पुत्र की नाक बहुत लम्बी और झुकी हुयी है जसे पक्षियों की चोंच. कुछ बड़ा होने पर यह बच्चा उस बक्से के पास आता है जिसमे लड़की ने चन्द्रमा को बंद कर रखा था. उस पर चोंच मारते हुए कहता है कि मैं बक्से में बंद चमकता हुआ चन्द्रमा लूँगा. बूढ़ा मछेरा और उसकी लड़की उसकी जिद पर कोई ध्यान नहीं देते थे लेकिन जब वह नहीं माना तो मछेरे ने अपनी लड़की से कहा कि वह बच्चे को चन्द्रमा से खेलने दे. लड़की अपना बक्सा खोलती है. बक्सा खुलते ही हर तरफ उजाला फ़ैल जाता है. लड़का चन्द्रमा को पकड़ लेता है, उसे बाहर निकालता है और जोर से कुछ कहता है. पूछने पर लड़की बतलाती है कि वह चन्द्रमा को ले कर तारों में जाना चाहता है. मछेरा कहता है कि बक्से का दरवाजा खोल दो और बच्चे को चाँद से खेलने दो. जैसे ही लडकी ने चाँद को बक्से में से बाहर निकाला, जैसे ही चन्द्रमा को बाहर निकाला गया, बच्चा रावन में परिवर्तित हो गया और चन्द्रमा को ले कर आकाश में उड़ गया. वहां जा कर उसने चन्द्रमा को तारों के बीच में टांग दिया. कहते हैं कि तब से चन्द्रमा प्रतिदिन तारों से संग आकर धरती पर अपनी रौशनी भेजता है. |
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अति उत्तम सूत्र शुरू किया है, मित्र रजनीशजी। पौराणिक अथवा कहें कि पुरा कथाओं में रोमांच के जो तत्व हैं, वे और कहीं नहीं हैं। आपका यह सूत्र सदस्यों के लिए रोमांच के साथ ज्ञान का खज़ाना भी साबित होगा। पुनः आभार। :bravo:
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रोमुलस और रीमस http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1366862848 एक रोमन मिथक के अनुसार रोमन साम्राज्य के केंद्रबिन्दु रोम की स्थापना के पीछे जुड़वां भाइयों रोमुलस और रीमस तथा भ्रात्र-हत्या का प्रसंग जुड़ा हुआ है. इन दोनों जुड़वां भाइयों की माँ एल्बा लोंगा राज-परिवार से सम्बन्ध रखने वाली रीया सिल्विया थी जिसे युद्ध का देवता मंगल जबरदस्ती उठा कर ले जाता है और अपनी हवस का शिकार बनाता है. जब उसके चाचा एम्युलियस को मालूम होता है कि वह गर्भवती है, उसने रीया सिल्विया को बंदीगृह में डाल दिया. सिल्विया के प्रसव के बाद उसने उसके बच्चों को मरने के लिए टाइबर नदी के किनारे फिंकवा दिया. इन जुड़वां बच्चों पर वहीँ रहने वाली एक मादा भेड़िये की नज़र पड़ी. उसने उन बच्चों को अपना दूध पिलाया और पालन पोषण किया. इस बीच फौस्ट्युलस नाम के गड़रिये ने उनको देखा और अपने घर ले आया. जब वे दोनों युवावस्था को प्राप्त हुए तो उन्होंने अपनी मां के चाचा राजा एम्युलियस के गड़रियों को लूटना शुरू कर दिया. एक बार रीमस पकड़ा गया और उसे राजा के सम्मुख ले जाया गया. इस बीच फौस्ट्युलस ने निश्चय किया कि वह रीमस को उन हालात के बारे में बतायेगा जिसमे उन बच्चों का जन्म हुआ था. रोम्युलस ने रीमस को कैद से छुडाया और राजा एम्युलियस का वध कर के उसकी जगह अपने नाना न्यूमीटौर को एल्बा लोंगा का राजा घोषित कर दिया. रोमुलस और रीमस ने अपने लिए एक अलग शहर की नींव ठीक उसी जगह रखने का विचार किया जहाँ मादा भेड़िये ने सर्वप्रथम उनको देखा था और उनकी परवरिश की थी. लेकिन उस विशिष्ट स्थान के विषय में दोनों भाइयों में तर्क-वितर्क होने लगा. इस तरह विवाद बहुत बढ़ गया. क्रोध में आकर रोमुलस ने अपने भाई रीमस का खून कर दिया और स्वयं रोम का एकछत्र राजा बन गया. उसने अपने नाम पर ही इस शहर का नाम रोम रख दिया. कहा जाता है कि मादा भेड़िये द्वारा रोमुलस और रीमस नामक जुड़वां भाइयों को टाइबर नदी के किनारे जंगल में बचाने और अपना दूध पिला कर पोषण करने के चित्रों के माध्यम से उस समय के रोम की बढ़ती हुयी शक्ति को प्रतीक रूप में दिखाया जाता था. ***** |
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पुराने किस्से कहानियो और पौराणिक कथाओं में कितनी रोचकता रहती है यह इस सूत्र से पता चलता है। बहुत ही उम्दा सूत्र है रजनीश जी।
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