आधार कार्ड: यूआईडीः यह कार्ड खतरनाक है ?.........
आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://www.chauthiduniya.com/wp-cont.../2011/08/1.jpg |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://www.samaylive.com/pics/2012_1...15280851-l.jpg वर्ष 1991 में भारत सरकार के वित्त मंत्री ने ऐसा ही कुछ भ्रम फैलाया था कि निजीकरण और उदारीकरण से 2010 तक देश की आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी, बेरोज़गारी खत्म हो जाएगी, मूलभूत सुविधा संबंधी सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी और देश विकसित हो जाएगा. वित्त मंत्री साहब अब प्रधानमंत्री बन चुके हैं. 20 साल बाद सरकार की तरफ से भ्रम फैलाया जा रहा है, रिपोट्*र्स लिखवाई जा रही हैं, जनता को यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि आधार कार्ड बनते ही देश में सरकारी काम आसान हो जाएगा, सारी योजनाएं सफल होने लगेंगी, जो योजना ग़रीबों तक नहीं पहुंच पाती वह पहुंचने लगेगी और सही लोगों को बीज एवं खाद की सब्सिडी मिलने लगेगी. लेकिन अगर यह सब नहीं हुआ तो इसके लिए किसे ज़िम्मेदार माना जाएगा? :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://www.p7news.com/images/05-2013...AADHAR-377.jpg अब पता नहीं कि सरकार क्यों इस कार्ड को अलादीन का चिराग बता रही है. हमारी तहक़ीक़ात तो यही बताती है कि राशनकार्ड, कालेज या दफ्तर का पहचान पत्र, पासपोर्ट, पैनकार्ड और निहायत ही घटिया मतदाता पहचान पत्र की तरह हमारे पास एक और कार्ड आ जाएगा. जिसकी नकल भी मिलेगी, फर्ज़ीवाड़ा भी होगा, कार्ड बनाने वाले दलालों के दफ्तर भी खुल जाएंगे और कुछ दिनों बाद सरकार कहेगी कि कार्ड की योजना में कुछ कमी रह गई. क्या भारत सरकार संसद और सुप्रीम कोर्ट में यह हल़फनामा देगी कि इस कार्ड के बनने से ग़रीबों तक सभी योजनाएं पहुंच जाएंगी, भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा? दरअसल, इस कार्ड की संरचना, योजना और कार्यान्वयन की कामयाबी भारत में संभव ही नहीं है. आधार कार्ड से कुछ ऐसे सवाल खड़े हुए हैं, जिनका जवाब देना सरकार की ज़िम्मेदारी है :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://i3.dainikbhaskar.com/thumbnai...0_18937310.jpg इस सरकारी अलादीन के चिराग से जुड़ा पहला सवाल यह है कि दुनिया के किसी भी देश में क्या इस तरह के पहचान पत्र का प्रावधान है? क्या अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी एवं फ्रांस की सरकार ने इस कार्ड को अपने यहां लागू किया? अगर दुनिया के किसी देश ने यह नहीं किया तो क्या हमने इस बायोमेट्रिक पहचान पद्धति के क्षेत्र में रिसर्च किया या कोई प्रयोग किया या फिर हमारे वैज्ञानिकों ने कोई ऐसा आविष्कार कर दिया, जिससे इस पहचान पत्र को अनोखा बताया जा रहा है. सभी सवालों का जवाब नहीं में है. हकीकत तो यह है कि हमने सीधे तौर पर पूरी योजना को निजी कंपनियों पर आश्रित कर दिया. ऐसी कंपनियों पर, जिनका सीधा वास्ता विदेशी सरकारों और खु़फिया एजेंसियों से है :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://images.jagran.com/inext/ad_p_250913.jpg भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने इसके लिए तीन कंपनियों को चुना-एसेंचर, महिंद्रा सत्यम-मोर्फो और एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन. इन तीनों कंपनियों पर ही इस कार्ड से जुड़ी सारी ज़िम्मेदारियां हैं. इन तीनों कंपनियों पर ग़ौर करते हैं तो डर सा लगता है. एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन का उदाहरण लेते हैं. इस कंपनी के टॉप मैनेजमेंट में ऐसे लोग हैं, जिनका अमेरिकी खु़फिया एजेंसी सीआईए और दूसरे सैन्य संगठनों से रिश्ता रहा है. एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन अमेरिका की सबसे बड़ी डिफेंस कंपनियों में से है, जो 25 देशों में फेस डिटेक्शन और इलेक्ट्रानिक पासपोर्ट आदि जैसी चीजों को बेचती है. अमेरिका के होमलैंड सिक्यूरिटी डिपार्टमेंट और यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के सारे काम इसी कंपनी के पास हैं. यह पासपोर्ट से लेकर ड्राइविंग लाइसेंस तक बनाकर देती है :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://aankhodekhi.com/wp-content/up...dhaar-card.jpg इस कंपनी के डायरेक्टरों के बारे में जानना ज़रूरी है. इसके सीईओ ने 2006 में कहा था कि उन्होंने सीआईए के जॉर्ज टेनेट को कंपनी बोर्ड में शामिल किया है. जॉर्ज टेनेट सीआईए के डायरेक्टर रह चुके हैं और उन्होंने ही इराक़ के खिला़फ झूठे सबूत इकट्ठा किए थे कि उसके पास महाविनाश के हथियार हैं. अब कंपनी की वेबसाइट पर उनका नाम नहीं है, लेकिन जिनका नाम है, उनमें से किसी का रिश्ता अमेरिका के आर्मी टेक्नोलॉजी साइंस बोर्ड, आर्म्ड फोर्स कम्युनिकेशन एंड इलेक्ट्रानिक एसोसिएशन, आर्मी नेशनल साइंस सेंटर एडवाइजरी बोर्ड और ट्रांसपोर्ट सिक्यूरिटी जैसे संगठनों से रहा है. अब सवाल यह है कि सरकार इस तरह की कंपनियों को भारत के लोगों की सारी जानकारियां देकर क्या करना चाहती है? एक तो ये कंपनियां पैसा कमाएंगी, साथ ही पूरे तंत्र पर इनका क़ब्ज़ा भी होगा. इस कार्ड के बनने के बाद समस्त भारतवासियों की जानकारियों का क्या-क्या दुरुपयोग हो सकता है, यह सोचकर ही किसी का भी दिमाग़ हिल जाएगा. समझने वाली बात यह है कि ये कंपनियां न स़िर्फ कार्ड बनाएंगी, बल्कि इस कार्ड को पढ़ने वाली मशीन भी बनाएंगी. सारा डाटाबेस इन कंपनियों के पास होगा, जिसका यह मनचाहा इस्तेमाल कर सकेंगी. यह एक खतरनाक स्थिति है :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://aankhodekhi.com/wp-content/up...dhaar-card.jpg इस कंपनी के डायरेक्टरों के बारे में जानना ज़रूरी है. इसके सीईओ ने 2006 में कहा था कि उन्होंने सीआईए के जॉर्ज टेनेट को कंपनी बोर्ड में शामिल किया है. जॉर्ज टेनेट सीआईए के डायरेक्टर रह चुके हैं और उन्होंने ही इराक़ के खिला़फ झूठे सबूत इकट्ठा किए थे कि उसके पास महाविनाश के हथियार हैं. अब कंपनी की वेबसाइट पर उनका नाम नहीं है, लेकिन जिनका नाम है, उनमें से किसी का रिश्ता अमेरिका के आर्मी टेक्नोलॉजी साइंस बोर्ड, आर्म्ड फोर्स कम्युनिकेशन एंड इलेक्ट्रानिक एसोसिएशन, आर्मी नेशनल साइंस सेंटर एडवाइजरी बोर्ड और ट्रांसपोर्ट सिक्यूरिटी जैसे संगठनों से रहा है | अब सवाल यह है कि सरकार इस तरह की कंपनियों को भारत के लोगों की सारी जानकारियां देकर क्या करना चाहती है? एक तो ये कंपनियां पैसा कमाएंगी, साथ ही पूरे तंत्र पर इनका क़ब्ज़ा भी होगा. इस कार्ड के बनने के बाद समस्त भारतवासियों की जानकारियों का क्या-क्या दुरुपयोग हो सकता है, यह सोचकर ही किसी का भी दिमाग़ हिल जाएगा. समझने वाली बात यह है कि ये कंपनियां न स़िर्फ कार्ड बनाएंगी, बल्कि इस कार्ड को पढ़ने वाली मशीन भी बनाएंगी. सारा डाटाबेस इन कंपनियों के पास होगा, जिसका यह मनचाहा इस्तेमाल कर सकेंगी. यह एक खतरनाक स्थिति है :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://media2.intoday.in/aajtak/imag...1513095330.jpg यही वजह है कि कई लोग इस कार्ड की प्राइवेसी और सुरक्षा आदि पर सवाल उठा चुके हैं. बताया तो यह जा रहा है कि इस कार्ड को बनाने में उच्चस्तरीय बायोमेट्रिक और इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होगा. इससे नागरिकों की प्राइवेसी का हनन होगा, इसलिए दुनिया के कई विकसित देशों में इस कार्ड का विरोध हो रहा है. जर्मनी और हंगरी में ऐसे कार्ड नहीं बनाए जाएंगे. अमेरिका ने भी अपने क़दम पीछे कर लिए हैं. हिंदुस्तान जैसे देश के लिए यह न स़िर्फ महंगा है, बल्कि सुरक्षा का भी सवाल खड़ा करता है. अमेरिका में यह योजना सुरक्षा को लेकर शुरू की गई. हमारे देश में भी यही दलील दी गई, लेकिन विरोध के डर से यह बताया गया कि इससे सामाजिक क्षेत्र में चल रही योजनाओं को लागू करने में सहूलियत होगी. देश में जिस तरह का सड़ा-गला सरकारी तंत्र है, उसमें इस कार्ड से कई और समस्याएं सामने आ जाएंगी. सरकारी योजनाएं राज्यों और केंद्र सरकार के बीच बंटी हैं, ऐसे में केंद्र सरकार को सबसे पहले राज्य सरकारों की राय लेनी चाहिए थी :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://hindi.pardaphash.com/uploads/.../660/95326.jpg यह कार्ड राशनकार्ड की तरह तो है नहीं कि कोई भी इसे पढ़ ले. इसके लिए तो हाईटेक मशीन की ज़रूरत पड़ेगी. जिला, तहसील और पंचायत स्तर तक ऐसी मशीनें उपलब्ध करनी होंगी, जिन्हें चलाने के लिए विशेषज्ञ लोगों की ज़रूरत पड़ेगी. अब दूसरा सवाल यह है कि देश के ज़्यादातर इलाक़ों में बिजली की कमी है. हर जगह लोड शेडिंग की समस्या है. बिहार में तो कुछ जगहों को छोड़कर दो-तीन घंटे ही बिजली रहती है. क्या सरकार ने मशीनों, मैन पावर और बिजली का इंतजाम कर लिया है? अगर नहीं तो यह योजना शुरू होने से पहले ही असफल हो जाएगी. अब तो वे संगठन भी हाथ खड़े कर रहे हैं, जो इस कार्ड को बनाने के कार्य में लगे हैं. इंडो ग्लोबल सोशल सर्विस सोसायटी ने कई गड़बड़ियों और सुरक्षा का सवाल उठा दिया है. इस योजना के तहत ऐसे लोग भी पहचान पत्र हासिल कर सकते हैं, जिनका इतिहास दाग़दार रहा है. एक अंग्रेजी अ़खबार ने विकीलीक्स के हवाले से अमेरिका के एक केबल के बारे में ज़िक्र करते हुए यह लिखा कि लश्कर-ए-तैय्यबा जैसे संगठन के आतंकवादी इस योजना का दुरुपयोग कर सकते हैं :......... |
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आधार कार्ड : यूआईडी : यह कार्ड कितना खतरनाक है ?......... http://readerblogs.navbharattimes.in...8854d02e8c.jpg यूआईडीएआई ने न स़िर्फ प्राइवेसी को ही नज़रअंदाज़ किया है, बल्कि उसने अपने पायलट प्रोजेक्ट के रिजल्ट को भी नज़रअंदाज़ कर दिया है. इतनी बड़ी आबादी के लिए इस तरह का कार्ड बनाना एक सपने जैसा है. अब जबकि दुनिया के किसी भी देश में बायोमेट्रिक्स का ऐसा इस्तेमाल नहीं हुआ है तो इसका मतलब यह है कि हमारे देश में जो भी होगा, वह प्रयोग ही होगा. यूआईडीएआई के पायलट प्रोजेक्ट के बारे में एक रिपोर्ट आई है, जो बताती है कि सरकार इतनी हड़बड़ी में है कि उसने पायलट प्रोजेक्ट के सारे मापदंडों को दरकिनार कर दिया. मार्च और जून 2010 के बीच 20 हज़ार लोगों के डाटा पर काम हुआ. अथॉरिटी ने बताया कि फाल्स पोजिटिव आईडेंटिफिकेशन रेट 0.0025 फीसदी है. फाल्स पोजिटिव आईडेंटिफिकेशन रेट का मतलब यह है कि इसकी कितनी संभावना है कि यह मशीन एक व्यक्ति की पहचान किसी दूसरे व्यक्ति से करे. मतलब यह कि सही पहचान न बता सके :......... स्रोत :......... |
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