केसे मनाएं महाशिव रात्रि :.........
कब और केसे मनाएं महाशिव रात्रि 2014 का व्रत एवं पर्व – त्यौहार :......... |
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कब और केसे मनाएं महाशिव रात्रि का व्रत एवं पर्व – त्यौहार : महाशिवरात्रि का पावन व्रत एवं पर्व – त्यौहार इस वर्ष 2014 में हिन्दू पंचांग के अनुसार दिनांक 27 फरवरी, 2014 दिन गुरुवार को मनाया जायेगा :......... भारत पर्वों का देश है यह तो हम सब जानते हैं और यह पर्व ज्यादातर हमारी भक्ति और ईश्वर की स्तुति पर निर्भर होते हैं. महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है।भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला यह त्यौहार हमारी संस्कृति का एक अहम अंग है. फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया। तीनों भुवनों की अपार सुंदरी तथा शीलवती गौरां को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों व पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप बड़ा अजीब है। शरीर पर मसानों की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते हैं और श्री-संपत्ति प्रदान करते हैं। महाशिव रात्रि अर्थात कल्याणकारी रात्रि. फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को किया जाने वाला महाशिवरात्रि का पर्व इसी को दर्शाता है. इस शिवरात्रि का शास्त्रों में बहुत माहात्म्य माना है. मान्यता है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव ज्योतिर्मय लिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे इसलिए इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है. शिवरात्रि के व्रत के बारे में भिन्न-भिन्न मत हैं :......... साभार :......... |
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कब और केसे मनाएं महाशिव रात्रि का व्रत एवं पर्व – त्यौहार :......... शिव महिमा— पंडित “विशाल” दयानंद शास्त्री जी के अनुसार शिव सबसे क्रोधी होने के साथ सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले भी हैं. इसीलिए युवतियां अपने अच्छे पति के लिए शिवजी का सोलह सोमवार का व्रत रखती हैं. हिंदू मान्यता के अनुसार शिव जी की चाह में माता पार्वती ने भी शिव का ही ध्यान रखकर व्रत रखा था और उन्हें शिव वर के रुप में प्राप्त हुए थे. इसी के आधार पर आज भी स्त्रियां अच्छे पति की चाह में शिव का व्रत रखती है और शिवरात्रि को तो व्रत रखने का और भी महत्व और प्रभाव होता है. शिव की आराधना करने वाले उन्हें प्रसन्न करने के लिए भांग और धतूरा चढ़ाते हैं. इस दिन मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाया जाता है. अगर पास में शिवालय न हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर उसे पूजने का विधान है. इसके साथ ही रात्रि के समय शिव पुराण सुनना चाहिए. जैसा कि हमेशा ही कहा जाता है शिव भोले हैं और साथ ही प्रलयकारी भी तो अगर आप भी अपने सामर्थ्य के अनुसार ही शिव का व्रत रखते हैं तो आपकी छोटी सी कोशिश से ही भगवान शिव अतिप्रसन्न हो सकते हैं :......... साभार :......... |
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कब और केसे मनाएं महाशिव रात्रि का व्रत एवं पर्व – त्यौहार :......... भोले है शिव—- शिव को जहां एक ओर प्रलय का कारक माना जाता है वहीं शिव को भोला भी कहा जाता है. मात्र बेल और भांग के प्रसाद से प्रसन्न होने वाले भगवान शिव की आज के दिन पूजा अर्चना करने का विशेष महत्व और विधान है. प्राचीन कथा के अनुसार आज के दिन ही शिव और पार्वती का विवाह हुआ था. नर, मुनि और असुरों के साथ बारात लेकर शिव माता पार्वती से विवाह के लिए गए थे. शिव की नजर में अच्छे और बुरे दोनों ही तरह के लोगों का समान स्थान है. वह उनसे भी प्रेम करते हैं जिन्हें यह समाज ठुकरा देता है. शिवरात्रि को भगवान शिव पर जो बेल और भांग चढ़ाई जाती है यह शिव की एकसम भावना को ही प्रदर्शित करती है. शिव का यह संदेश है कि मैं उनके साथ भी हूं जो सभ्य समाजों द्वारा त्याग दिए जाते हैं. जो मुझे समर्पित हो जाता है, मैं उसका हो जाता हूं :......... साभार :......... |
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कब और केसे मनाएं महाशिव रात्रि का व्रत एवं पर्व – त्यौहार :......... केसे मनाएं फाल्गुन महाशिवरात्रि उत्सव —– फाल्गुन का महीना वसंत के आगमन को दर्शाता है, फाल्गुन माह का स्वागत प्रकृति भी करने लगती हैं और देवताओं के रथ सजने लगते हैं. वैसे तो यह पर्व संपूर्ण भारत में मनाया जाता है किंतु हिमाचल के मंडी में मनाया जाने वाला महा शिवरात्रि का त्यौहार लोकोत्सव एवं दर्शनिय होता है है. फाल्गुन मास में प्रारंभ होने वाले इस उत्सव में देवी-देताओं का दर्शन करने हेतु दूर दूर से लोग आकर एकाकार होते हैं. इस समय का प्रमुख आकर्षण मेले और उनमें शामिल होने वाली शोभायात्राएं होती हैं. क्या हें महाशिवरात्रि व्रत-पूजन के नियम —– सर्वसाधारण मान्यता के अनुसार जब प्रदोष काल रात्रि का आंरभ एवं अर्द्धरात्रि के समय चतुर्दशी तिथि रहे तो उसी दिन शिव रात्रि का व्रत किया जाना चाहिए. कुछ के अनुसार यह व्रत प्रातः काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यंत तक करना चाहिए व रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए. इस विधि से किए गए व्रत द्वारा पुण्य कर्मों का अनुमोदन हो जाता है और भगवान शिव की अनुकंपा प्राप्त होती है. जीवन पर्यंत इस विधि से श्रद्धा-विश्वास पूर्वक व्रत का आचरण करने से भगवान शिव की कृपा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. जो लोग इस विधि से व्रत करने में असमर्थ हों वे रात्रि के आरंभ में तथा अर्द्धरात्रि में भगवान शिव का पूजन करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं तथा इस विधि से व्रत करने में असमर्थ हों तो पूरे दिन व्रत करके सायंकाल में भगवान शंकर की यथाशक्ति पूजा अर्चना करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं. :......... साभार :......... |
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कब और केसे मनाएं महाशिव रात्रि का व्रत एवं पर्व – त्यौहार :......... क्यों करें महाशिवरात्रि पूजन —- पंडित “विशाल” दयानंद शास्त्री जी के अनुसार महाशिवरात्रि की रात्रि महा सिद्धिदायी होती है. इस समय में किए गए दान पुण्य, शिवलिंग की पूजा, स्थापना का विशेष फल प्राप्त होता है. पारद अथवा स्फटिक शिवलिंग की पूजा एवं स्थापना सिद्धिदायक मानी गई है इसके नित्य पूजन और दर्शन से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. पारद शिव लिंग की पूजा अर्चना करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है और स्फटिक शिवलिंग द्वारा धन, यश मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है. केसे करें महाशिवरात्रि में शिवलिंग पूजा —— सर्वप्रथम गंगाजल जल से शिवलिंग को स्नान कराएं तथा दूध, दही, घी, मधु, शक्कर से स्नान कराकर उन पर चंदन लगाना चाहिए फिर फूल, बिल्वपत्र अर्पित करें, धूप और दीप से पूजन करते हुए शिव मंत्रों से जप प्रारंभ करके नित्य एक माला जप करनी चाहिए. नमः शिवाय तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् | त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् | उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् || नित्य काम्य रुप में पूर्ण होता है, फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को, अर्धरात्रि के समय शिव लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था. इस कारण यह महाशिव रात्रि मानी जाती है. सिद्धांत रूप में सूर्योदय से सूर्योदय पर्यंत रहने वाली चतुर्दशी अर्धरात्रि व्यापिनी ग्राह्य होती है. यदि यह शिव रात्रि त्रयोदशी चतुर्दशी अमावस्या के स्पर्श की हो, तो और भी महत्वपूर्ण हो जाती है. इस विधि से व्रत करने से भी भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है :......... http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1392964835पंडित “विशाल” दयानंद शास्त्री जी : साभार :......... |
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