'बुरे दिन आ गए'
समाचार-पत्रों में आप जब-तब यह तो पढ़ते ही रहते होंगे कि देश की सुरक्षा एजेंसियों को यह गोपनीय सूचना मिली, वह गोपनीय सूचना मिली. लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि यह गोपनीय सूचनाएँ उन्हें प्राप्त कैसे होती हैं? तो मेरा उत्तर यह है कि अपने कान खुले रखने से! यदि आप भी हमेशा अपने कान खुले रखें तो आपको भी कई मनोरंजक जानकारियाँ हासिल हो सकती है. अभी कुछ महीने पहले मैं दिल्ली गया तो यह ज्ञात हुआ कि देश के कुछ नेता चाहे जितनी कोशिश कर लें, भ्रष्टाचार को कम कर सकते हैं लेकिन खत्म नहीं कर सकते. नई दिल्ली में एक बस स्टॉप के निकट जब मैंने अपने कान खोले तो पता चला कि एक ओर जहाँ पूरे देश में ‘अच्छे दिन आ गए’ की खुशी मनाई जा रही थी वहीँ पर दूसरी ओर सत्ता के गलियारे में कभी निर्विरोध रूप से भ्रमण वाले के कुछ ‘विशिष्ट व्यक्ति’ सड़क पर खड़े दारू की बोतल के साथ ‘बुरे दिन आ गए’ का गम मना रहे थे. एक पल में उनकी बातों से मैं यह समझ गया कि ये सब वो ‘विशिष्ट व्यक्ति’ थे जो कभी ‘जोड़-तोड़’ की कला के महारथी समझे जाते थे. इन लोगों को अंग्रेज़ी में lobbyist कहा जाता है और इस शब्द का हिंदी समकक्ष ‘प्रचारक’ है. अब पता नहीं लोग क्यों इनके लिए ‘दलाल’ जैसे अशिष्ट शब्दों का प्रयोग करते हैं जबकि ‘दलाल’ का अंग्रेज़ी समकक्ष ‘broker’ है. एक ने पूछा- ‘चुनाव से पहले तो आप लोग बड़ी उछल-कूद कर रहे थे और बड़े खुश थे?’ दूसरा बोला- ‘अब किसे पता था- इतनी बहुमत से सरकार आ जायेगी. बहुमत बड़ी बुरी चीज़ है, भई!’ पहले ने मूर्खों की तरह पूछा- ‘इस तरह कैसे काम चलेगा? जनता का भला कैसे होगा?’ दूसरा बोला- ‘इसी तरह चलता रहा तो कहाँ होने वाला है ‘जनता’ का भला? कम से कम एक साल तो कोई उम्मीद न रखिए भला होने की!’ तीसरे ने आँखें चमकाते हुए कहा- ‘कोई छोटा-मोटा काम हो तो बोलिए. सरकार बदल गई तो क्या हुआ? अधिकारी और कर्मचारी तो नहीं बदले! सभी से अच्छी ‘दोस्ती’ है. कोशिश करेंगे.’ भ्रष्टाचार के समर्थन में एक व्यक्ति जो मीडिया से सम्बन्धित लगता था, एकाएक बीच में कूदते हुए नाराज़गी के साथ बोला- ‘कहाँ नहीं है भ्रष्टाचार? हमारे यहाँ खुद भ्रष्टाचार है और कुछ वर्ष पूर्व ज़ी न्यूज़ के संपादकों की गिरफ्तारी इसका एक जीवन्त उदाहरण है.’ यह कहते हुए उसने अपनी दोस्ती का व्यापक प्रदर्शन करते हुए एक मिनट में मीडिया में व्याप्त भ्रष्टाचार की पूरी पोल-पट्टी खोल दी. यह सब सुनकर मैं हैरान रह गया. देखा आपने- अपने कान खुले रखने पर कितनी मनोरंजक जानकारी हासिल हुई! इसीलिए तो देश की एक बहुचर्चित लेखिका हमेशा चीख-चीखकर कहती हैं कि ‘अपना मुँह बन्द रखो. सार्वजनिक स्थान पर जोर-जोर से बात मत करो! राज़ की बात कोई सुन लेगा तो क्या होगा?’ अब मेरी समझ में यह नहीं आता कि यदि इनकी बात मानकर सबने सार्वजनिक स्थान पर अपना-अपना मुँह बन्द करके ‘मौन-व्रत’ धारण कर लिया तो देश की सुरक्षा एजेंसियों को तमाम गोपनीय सूचनाएँ कहाँ से मिलेंगी? अतः सभी से मेरा अनुरोध है कि सार्वजनिक स्थान पर देश-हित में चिल्ला-चिल्लाकर जोर-जोर से बात करिए. बिलकुल न शरमाइए. यदि आपने सार्वजनिक स्थान पर 'मौन-व्रत' धारण करके धीरे-धीरे बात की तो वह दिन दूर नहीं जब देश-हित में 'Chatter Act-2050' नामक कानून बन जायेगा और सार्वजनिक स्थान पर जगह-जगह पर सरकारी बोर्ड लगे होंगे-
'सार्वजनिक स्थान पर धीरे-धीरे वार्तालाप करना चैटर एक्ट- २०५० के अधीन एक गम्भीर अपराध है. कृपया ज़ोर-ज़ोर से वार्तालाप करिए.' :giggle: |
Re: 'बुरे दिन आ गए'
हमारी गुप्तचर एजेंसियों की सूचना संग्रहण प्रणाली का आपने अच्छा विश्लेषण किया है. नया कानून इस प्रणाली को और मजबूत करेगा. हर आदमी के लिए बात बेबात पर बोलना कम्पलसरी होना चाहिए.
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