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-   -   ग़ज़ल सबके सरोकार की (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=6863)

Dr. Rakesh Srivastava 19-02-2013 07:46 AM

ग़ज़ल सबके सरोकार की
 
आओ मिल जुल के इक मशाल जलाई जाये ;
गन्दगी जितनी दिखे , आग लगाई जाये .

ख़्वाब जिसके दिखाये थे , वो तो बन के न मिली ;
अब तो ख़ुद ही नई तस्वीर बनाई जाये .

रास्ता बेहतरी का ताकते जो पथराईं ;
फिर से उम्मीद उन आँखों में जगाई जाये .

जो अन्धेरों को मान बैठे मुकद्दर अपना ;
रौशनी उनके निशाने पे भी लाई जाये .

चन्द जिन लोगों ने हथिया लिया सूरज सारा ;
नक़ाब ऐसे शरीफ़ों की हटाई जाये .

झोपड़े रौंद के जितने भी बने ताज महल ;
वक़्त की माँग है , बुनियाद हिलाई जाये .

अवाम गूँगी हो तो तख़्त भी बहरा बनता ;
मिल के आवाज़ तबीयत से उठाई जाये .

खेल जज़्बात से , पत्थर जो ख़ुदा बन बैठे ;
या तो पसीजें , या फिर उनकी ख़ुदाई जाये .

रहनुमा जिनको बनाया था , बन गये रहजन ;
इनकी हद फिर से इन्हें याद दिलाई जाये .

हमने ख़ुद के ही मसअलों के गीत गाये बहुत ;
अब ग़ज़ल सबके सरोकार की गाई जाये .


रचयिता ~~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .

( शब्दार्थ > अवाम = जनता , तख़्त = शासक , खुदाई = ईश्वरीय भाव / देवतापना , रहनुमा= लीडर
/ गाइड , रहजन = लुटेरा , हद = सीमा , मसअलों = समस्याओं , सरोकार = सम्बन्ध / वास्ता )

Dark Saint Alaick 19-02-2013 02:46 PM

Re: ग़ज़ल सबके सरोकार की
 
बहुत बढ़िया कविवर। काफी दिन बाद आपका उत्तम सृजन पढने का मौक़ा मिला, धन्यवाद। :bravo:

Sikandar_Khan 20-02-2013 10:10 PM

Re: ग़ज़ल सबके सरोकार की
 
बहुत खूब डॉक्टर साहब .......:bravo:

sombirnaamdev 22-02-2013 08:02 PM

Re: ग़ज़ल सबके सरोकार की
 
रहनुमा जिनको बनाया था , बन गये रहजन ;
इनकी हद फिर से इन्हें याद दिलाई जाये .

हमने ख़ुद के ही मसअलों के गीत गाये बहुत ;
अब ग़ज़ल सबके सरोकार की गाई जाये .


बहूत ही भावात्मक कविता , सुंदर भाव और सब्दों का चयन
किया है डॉ साहब

बधाई स्वीकार करें

Dr. Rakesh Srivastava 25-02-2013 10:04 PM

Re: ग़ज़ल सबके सरोकार की
 
अत्यधिक आभार सर्व श्री डार्क सेंट अलैक जी , सोमवीर नामदेव जी , सिकंदर खान जी , अज्ञानी जी एवं रजनीश माँगा जी . साथ ही उन मित्रों का भी हार्दिक आभार जिन्होंने मुझे पढ़ा तो है किन्तु सूत्र विशेष पर अपने कोई चिन्ह नहीं छोड़े .

rajnish manga 26-02-2013 05:51 PM

Re: ग़ज़ल सबके सरोकार की
 
[QUOTE=Dr. Rakesh Srivastava;234313]

जो अन्धेरों को मान बैठे मुकद्दर अपना ;
रौशनी उनके निशाने पे भी लाई जाये .

चन्द जिन लोगों ने हथिया लिया सूरज सारा ;
नक़ाब ऐसे शरीफ़ों की हटाई जाये .

हमने ख़ुद के ही मसअलों के गीत गाये बहुत ;
अब ग़ज़ल सबके सरोकार की गाई जाये .

:bravo:

डॉ. राकेश श्रीवास्तव जी, एक बढ़िया ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए आपको धन्यवाद कहना चाहता हूँ और साथ ही आपको मुबारकबाद देना चाहता हूँ कि आपने अपनी इस छोटी सी रचना में एक पीड़ित लेकिन प्रबुद्ध व्यक्ति की तड़प बड़े मार्मिक शब्दों में प्रकट की है किन्तु साथ ही कवि की विद्रोही वाणी का प्रखर तेज भी दुनिया को दिखाया है. मैं मानता हूँ कि यही तेवर समाज में परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करते हैं. डॉ. साहब, ग़ज़ल- सूत्र पर मेरी उपस्थिति पहले ही दर्ज है. हाँ, प्रतिक्रिया के साथ उपस्थित होने में विलम्ब हुआ, ह्रदय से क्षमाप्रार्थी हूँ.


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