आज का दिन (घटना और व्यक्तित्व)
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और आज की हमारी शख्सियत हैं (1 जनवरी) मौलाना हसरत मोहानी / Maulana Hasrat Mohani |
Re: आज का शायर
मौलाना हसरत मोहानी महान स्वतंत्रता सेनानी तथा हमारी संविधान सभा के सदस्य होने के साथ साथ एक प्रख्यात शायर भी थे. आज एक जनवरी उनका जन्मदिन है. इस अवसर पर हम उन्हें श्रद्धापूर्वक याद करते हैं और उनकी एक मशहूर ग़ज़ल के चुनिंदा अश'आर पेश करते है:
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है, हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है, तुझसे मिलते ही वो कुछ बेबाक हो जाना मेरा, और तेरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है, खींच लेना वो मेरा पर्दे का कोना दफ़्फ़ातन, और दुपट्टे से तेरा वो मुँह छिपाना याद है, जानकर सोता तुझे वो क़सा-ए-पाबोसी मेरा, और तेरा ठुकरा के सर वो मुस्कुराना याद है, तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़राह-ए-लिहाज़, हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है, ग़ैर की नज़रों से बचकर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़, वो तेरा चोरीछिपे रातों को आना याद है, आ गया गर वस्ल की शब भी कहीं ज़िक्र-ए-फ़िराक़, वो तेरा रो-रो के मुझको भी रुलाना याद है, दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिये, वो तेरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है, चोरी चोरी हम से तुम आकर मिले थे जिस जगह, मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है, बेरुख़ी के साथ सुनाना दर्द-ए-दिल की दास्तां, और तेरा हाथों में वो कंगन घुमाना याद है, वक़्त-ए-रुख़सत अलविदा का लफ़्ज़ कहने के लिये, वो तेरे सूखे लबों का थरथराना याद है, |
Re: आज का शायर
[बहुत खुब । मैने पहली बार पुरी गज़ल पढी । पता नहीं था की सिर्फ चुनिंदा शेर ही फिल्म की गज़ल में है । धन्यवाद रजनीश जी।... Deep] |
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आज का शायर (1 जनवरी)
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Re: आज का शायर
आज का शायर (1 जनवरी) राहत इन्दोरी / Rahat Indori
जो आज साहिबे मसनद है कल नहीं होंगे किरायेदार है जाती मकान थोड़ी है सभी का खून है शामिल यहाँ की मिटटी में किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है ** ग़ज़ल चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया| आईना सारे शहर की बीनाई ले गया| डूबे हुए जहाज़ पे क्या तब्सरा करें, ये हादसा तो सोच की गहराई ले गया| झूठे क़सीदे लिखे गये उस की शान में, जो मोतीयों से छीन के सच्चाई ले गया| यादों की एक भीड़ मेरे साथ छोड़ कर, क्या जाने वो कहाँ मेरी तन्हाई ले गया अब असद तुम्हारे लिये कुछ नहीं रहा, गलियों के सारे संग तो सौदाई ले गया| अब तो ख़ुद अपनी साँसें भी लगती हैं बोझ सी, उमरों का देव सारी तवानाई ले गया| (तवानाई = ऊर्जा / शक्ति) (डॉ. राहत इंदौरी) |
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आज का शायर (1 जनवरी)
मख़मूर जालंधरी / Makhmoor Jalandhari http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1483289432 जनाब मखमूर जालंधरी जिनका वास्तविक नाम गुरबक्श सिंह था मूलतः उर्दू के उल्लेखनीय शायरों में शुमार किये जाते हैं. उनकी ग़ज़ले और नज्में उर्दू साहित्य में विशेष स्थान रखती हैं. उन्हें आज भी बहुत आदर सहित याद किया जाता है. |
Re: आज का शायर
आज का शायर (1 जनवरी) मख़मूर जालंधरी / Makhmoor Jalandhari हिंदी में जासूसी नॉवेल उपन्यास पढ़ने वालों ने कर्नल रंजीत के लिखे उपन्यास अवश्य देखे और पढ़े होंगे लेकिन आपको शायद यह नहीं पता होगा कि मखमूर जालंधरी ही कर्नल रंजीत के नाम से लिखते थे. मैं आपको यह भी बताना चाहता हूँ कि मखमूर साहब ने लगभग 60 साल पहले जालंधर रेडियो के लिये करीब 250 रेडियो नाटक भी लिखे थे. |
Re: आज का शायर
आज का शायर (1 जनवरी) मख़मूर जालंधरी / Makhmoor Jalandhari ग़ज़ल ‘मख़मूर’ जालंधरी पाबंद-ए-एहतियात-ए-वफ़ा भी न हो सके हम क़ैद-ए-ज़ब्त-ए-ग़म से रिहा भी न हो सके दार-ओ-मदार-ए-इश्क़ वफ़ा पर है हम-नशीं वो क्या करे कि जिससे वफ़ा भी न हो सके गो उम्र भर भी मिल न सके आपस में एक बार हम एक दूसरे से जुदा भी न हो सके जब जुज़्ब की सिफ़ात में कुल की सिफ़ात है फिर वो बशर भी क्या जो खुदा भी न हो सके ये फैज़-ए-इश्क़ था कि हुई हर खता मुआफ़ वो खुश न हो सके तो खफ़ा भी न हो सके वो आस्तान-ए-दोस्त पे क्या सर झुकाएगा जिस से बुलंद दस्त-ए-दुआ भी न हो सके ये एहतिराम था निगह-ए-शौक़ का जो तुम बेपर्दा हो सके जल्वा-नुमां भी न हो सके ‘मख़मूर’ कुछ तो पूछिए मजबूरी-ए-हयात अच्छी तरह खराब-ए-फ़ना भी न हो सके शब्दार्थ: पाबंद-ए-एहतियात-ए-वफ़ा = अच्छाई करने में सावधानी व प्रतिबद्धता / क़ैद-ए-ज़ब्त-ए-ग़म= दुःख को छुपाने का बंधन / दार-ओ-मदार-ए-इश्क़ = प्यार की निर्भरता / वफ़ा = अच्छाई / हम-नशीं = साथी / जुज़्ब की सिफ़ात = एक अंश की विशेषतायें / बशर = व्यक्ति / फैज़-ए-इश्क़ = प्यार की देन / आस्तान-ए-दोस्त = मित्र का घर / दस्त-ए-दुआ = दुआ के लिये उठे हुये हाथ / एहतिराम = आदर सहित / निगह-ए-शौक़ = प्यारभरी दृष्टि / जल्वा-नुमां = सामने प्रगट होना / मजबूरी-ए-हयात = जीवन की विवशतायें / खराब-ए-फ़ना = मृत्यु से विनष्ट होना |
Re: आज का शायर
[QUOTE=rajnish manga;560105]
मौलाना हसरत मोहानी महान स्वतंत्रता सेनानी तथा हमारी संविधान सभा के सदस्य होने के साथ साथ एक प्रख्यात शायर भी थे. आज एक जनवरी उनका जन्मदिन है. इस अवसर पर हम उन्हें श्रद्धापूर्वक याद करते हैं और उनकी एक मशहूर ग़ज़ल के चुनिंदा अश'आर पेश करते है: चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है, हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है, खींच लेना वो मेरा पर्दे का कोना दफ़्फ़ातन, और दुपट्टे से तेरा वो मुँह छिपाना याद है, तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़राह-ए-लिहाज़, हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है, दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिये, वो तेरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है, चोरी चोरी हम से तुम आकर मिले थे जिस जगह, मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है, बेरुख़ी के साथ सुनना दर्द-ए-दिल की दास्तां, और तेरा हाथों में वो कंगन घुमाना याद है, [size=3]वक़्त-ए-रुख़सत अलविदा का लफ़्ज़ कहने के लिये, वो तेरे सूखे लबों का थरथराना याद है, bhai bahut pyari si jazal hai ek gazalkaar ke liye isase achhi shrdhdhanjali or kya ho sakati hai bhai . bahut khoob |
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