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Sikandar_Khan 29-10-2010 02:21 PM

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Originally Posted by munneraja (Post 6561)
:)आप हैं किन खयालो में
आपके बनियान में भी बेहोशी की शक्ति है
बहुत काम आएगा अस्पतालों में :)

हा हा हा..........

ndhebar 29-10-2010 06:43 PM

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Originally Posted by munneraja (Post 6561)
:)आप हैं किन खयालो में
आपके बनियान में भी बेहोशी की शक्ति है
बहुत काम आएगा अस्पतालों में :)

बढ़िया तुकबंदी जोड़ी है

पर दादा मेहनतकश का बनियान हो या जुराब

मेहनत की खुशबू तो आएगी ही

अब अगर लोग इससे भी बेहोश होने लगे तो

खुदा खैर करे

munneraja 29-10-2010 08:04 PM

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Originally Posted by ndhebar (Post 6762)
बढ़िया तुकबंदी जोड़ी है

पर दादा मेहनतकश का बनियान हो या जुराब

मेहनत की खुशबू तो आएगी ही

अब अगर लोग इससे भी बेहोश होने लगे तो

खुदा खैर करे

मैं एक बात जानता हूँ जो सत्य भी है
कि जो व्यक्ति खूब मेहनत करके पसीना बहाता है
उसके पसीने में बदबू नहीं होती

लेकिन यहाँ हसीं मजाक चल रहा है इसलिए मैंने कविता लिखी

jai_bhardwaj 29-10-2010 08:19 PM

भाई जी , अनजाना जी , निशाँत भाई, तारा बाबू और सिकंदर भाई आप सभी का अभिनंदन है सूत्र मेँ । सर्वथा मृत तरंगोँ के कारण मैँ खिन्न हूँ । आपके होठोँ को आपके कानोँ तक खीचने का कार्य फिर कभी । धन्यवाद ।

munneraja 29-10-2010 08:23 PM

रिजल्ट साफ़ है
किसी भी चीज को ज्यादा खीचने से वो मृत हो जाती है :)

ndhebar 29-10-2010 09:28 PM

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Originally Posted by munneraja (Post 6901)
यहाँ हसीं मजाक चल रहा है इसलिए मैंने कविता लिखी

तो मैंने कौन सा तोप छोड़ दिया
मैंने भी तो बस वही आगे बढाया जो आपने शुरू किया
आखिर बुजुर्गों की परम्परा बढ़ाना हमारा कर्त्तव्य जो ठहरा :cheers:

munneraja 30-10-2010 09:45 AM

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Originally Posted by ndhebar (Post 6990)
तो मैंने कौन सा तोप छोड़ दिया
मैंने भी तो बस वही आगे बढाया जो आपने शुरू किया
आखिर बुजुर्गों की परम्परा बढ़ाना हमारा कर्त्तव्य जो ठहरा :cheers:

यदि इसी को आगे बढ़ाना है तो जल्दी से एक चुटीली कविता लिख मारो

ndhebar 30-10-2010 11:39 AM

Quote:

Originally Posted by munneraja (Post 7189)
यदि इसी को आगे बढ़ाना है तो जल्दी से एक चुटीली कविता लिख मारो

जो हुक्म दादा
ये लो झेलो :-

कौन कहता है,

एक

म्यान में -

दो तलवारें नहीं होती!

शादी के बाद

वह दोनों तलवारें

एक ही -

मकान में तो होती है.

ndhebar 30-10-2010 11:44 AM

करें क्या शिकायत अँधेरा नहीं है
अजब रौशनी है कि दिखता नहीं है

ये क्यों तुमने अपनी मशालें बुझा दीं
ये धोखा है कोई, सवेरा नहीं है

ये कैसी है बस्ती, ना दर, ना दरीचा
हवा के बिना दम घुटता नहीं है!

नई है रवायत या डर हादसों का
यहाँ कोई भी शख्स हंसता नहीं है

ABHAY 30-10-2010 11:57 AM

क्या बात है क्या बात है लगे रहे भाई :cheers:


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