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-   -   अकबर - बीरबल.. (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=10607)

Dr.Shree Vijay 25-09-2013 10:21 PM

अकबर - बीरबल..
 



अकबर और बीरबल के व्यंग............





Dr.Shree Vijay 25-09-2013 10:23 PM

Re: अकबर - बीरबल...........................
 



अकबर और बीरबल की पहली मुलाकात.................



अकबर को शिकार का बहुत शौक था. वे किसी भी तरह शिकार के लिए समय निकल ही लेते थे. बाद में वे अपने समय के बहुत ही अच्छे घुड़सवार और शिकारी भी कहलाये. एक बार राजा अकबर शिकार के लिए निकले, घोडे पर सरपट दौड़ते हुए उन्हें पता ही नहीं चला और केवल कुछ सिपाहियों को छोड़ कर बाकी सेना पीछे रह गई. शाम घिर आई थी, सभी भूखे और प्यासे थे, और समझ गए थे की वो रास्ता भटक गए हैं. राजा को समझ नहीं आ रहा था की वह किस तरफ़ जाएं. कुछ दूर जाने पर उन्हें एक तिराहा नज़र आया. राजा बहुत खुश हुए – चलो, अब तो किसी तरह वे अपनी राजधानी पहुँच ही जायेंगे. लेकिन जाएं तो जायें किस तरफ़. राजा उलझन में थे. वे सभी सोच में थे किंतु कोई युक्ति नहीं सूझ रही थी. तभी उन्होंने देखा कि एक लड़का उन्हें सड़क के किनारे खड़ा-खडा घूर रहा है. सैनिकों ने यह देखा तो उसे पकड़ कर राजा के सामने पेश किया. राजा ने कड़कती आवाज़ में पूछा, “ऐ लड़के, आगरा के लिए कौन सी सड़क जाती है”? लड़का मुस्कुराया और कहा, “जनाब, ये सड़क चल नहीं सकती तो ये आगरा कैसे जायेगी”. महाराज जाना तो आपको ही पड़ेगा और यह कहकर वह खिलखिलाकर हंस पड़ा...................





Dr.Shree Vijay 25-09-2013 10:24 PM

Re: अकबर - बीरबल...........................
 



सभी सैनिक मौन खड़े थे, वे राजा के गुस्से से वाकिफ थे. लड़का फ़िर बोला,” जनाब, लोग चलते हैं, रास्ते नहीं”. यह सुनकर इस बार राजा मुस्कुराया और कहा,” नहीं, तुम ठीक कह रहे हो. तुम्हारा नाम क्या है, अकबर ने पूछा. मेरा नाम महेश दास है महाराज, लड़के ने उत्तर दिया, और आप कौन हैं? अकबर ने अपनी अंगूठी निकाल कर महेश दास को देते हुए कहा, “तुम महाराजा अकबर – हिंदुस्तान के सम्राट से बात कर रहे हो”. मुझे निडर लोग पसंद हैं. तुम मेरे दरबार में आना और मुझे ये अंगूठी दिखाना. ये अंगूठी देख कर मैं तुम्हें पहचान लूंगा. अब तुम मुझे बताओ कि मैं किस रास्ते पर चलूँ ताकि मैं आगरा पहुँच जाऊं.
महेश दास ने सिर झुका कर आगरा का रास्ता बताया और जाते हुए हिंदुस्तान के सम्राट को देखता रहा.
और इस तरह अकबर भविष्य के बीरबल से मिला.................





aspundir 25-09-2013 10:43 PM

Re: अकबर - बीरबल...........................
 
अतिसुन्दर, अपडेटस का इन्तजार है ।

rajnish manga 26-09-2013 08:05 AM

Re: अकबर - बीरबल...........................
 
बहुत बढ़िया सूत्र. अकबर बीरबल की मनोरंजक और ज्ञानवर्धक नोक-झोंक का इंतज़ार रहेगा.

internetpremi 26-09-2013 09:01 AM

Re: अकबर - बीरबल...........................
 
आपने अच्छी शुरुआत तो कर दी है।
अब आगे भी ले जाइए।
इन्तजार रहेगा।
धन्यवाद

khalid 26-09-2013 09:19 AM

Re: अकबर - बीरबल...........................
 
हमे भी
इन्तेजार रहेगा हार्दिक
धन्यवाद

rajnish manga 26-09-2013 01:56 PM

Re: अकबर - बीरबल...........................
 
अकबर के दरबारियों को अकबर की चित्रकला में अभिरुचि के बारे में पता था और यह भी मालूम था कि अकबर को व्यक्ति-चित्र (पोर्ट्रेट) बनाने वाले कलाकारों से विशेष मोह था. अकबर के दरबार में श्रेष्ठ कलाकारों का सम्मान किया जाता था. एक नौजवान कलाकार भी अपनी कला का प्रदर्शन करना चाहता था. उसने सोचा कि पहले किसी दरबारी से मिल कर उसे प्रभावित किया जाये.

दरबारी ने उस नये कलाकार को अपना चित्र बनाने के लिए कहा. जब वह चित्र पूरा कर के बाद दरबारी को दिखाने की आज्ञा मांगी. नियत समय पर चित्रकार दरबारी के यहां पहुंचा तो दरबारी ने अपनी दाड़ी मुंडवा राखी थी. अपना चित्र देख कर दरबारी ने कलाकार की हंसी उड़ाते हुये कहा कि क्या मैं ऐसा लगता हूँ. कलाकार ने कहा कि जब चित्र बनाया गया था तो आपने चेहरे पर दाड़ी थी, हुजूर. खैर, कलाकार ने कहा कि मैं फिर से आपका चित्र बनाता हूँ.

अगली बार जब कलाकार चित्र दिखाने ले गया तो दरबारी ने अपनी मूंछें काट दी थीं. इस बार भी उसने कलाकार की खिल्ली उड़ाई. इस प्रकार कलाकार ने चार बार दरबारी का चित्र बनाया लेकिन हर बार दरबारी ने उसके चित्रों में कुछ न कुछ कमी निकाल कर कलाकार की तौहीन की.

हार कर कलाकार बीरबल के पास गया और अपनी राम कहानी कह सुनाई. बीरबल ने उसे कहा कि अबकी बार वह उस दरबारी का कोई चित्र न बनाये. उसके स्थान पर बीरबल ने उसे एक उपाय करने को कहा. सो, जिस दिन दरबारी ने कलाकार को बुलाया था, कलाकार उसके यहां पहुँच गया. जब उसने चित्र दिखाने की फरमाइश की तो कलाकार ने मुंह देखने वाला दर्पण थैले में से निकाल कर उसके चेहरे के सामने कर दिया. दरबारी कहने लगा कि यह तो शीशा है!! कलाकार बोला कि हाँ हुजूर, यह शीशा ही है. यदि आप हू-ब-हू अपने आप को वैसा देखना चाहते हैं जैसे आप अभी हैं, तो आपको चित्र की नहीं दर्पण की जरुरत है.

दरबारी बहुत शर्मिंदा हुआ. उसने कलाकार को सभी चित्रों का मेहनताना दिया और खूब प्रशंसा भी की. दरबारी द्वारा यह पूछे जाने पर कि यह उपाय किसने सुझाया था तो उसने बीरबल से हुई मुलाकात के विषय में बताया. दरबारी को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने अकबर के सम्मुख उस चित्रकार की बहुत तारीफ़ की.

Dr.Shree Vijay 26-09-2013 05:02 PM

Re: अकबर - बीरबल...........................
 



बीरबल का जन्म.............


जब महेश दास जवान हुआ तो वह अपना भाग्य आजमाने राजा अकबर के पास गया. उसके पास राजा द्वारा दी गई अंगूठी भी थी जो उसने कुछ समय पहले राजा से प्राप्त की थी. वह अपनी माँ का आशीर्वाद लेकर भारत की नई राजधानी – फतहपुर सिकरी की तरफ़ चल दिया. भारत की नई राजधानी को देख कर महेश दास हतप्रभ था. वह भीड़-भाड़ से बचते हुए लाल दीवारों वाले महल की तरफ़ चल दिया. महल का द्वार बहुत बड़ा और कीमती पत्थरों से सजा हुआ था | ऐसा दरवाजा महेश दास ने कभी सपनों में भी नहीं देखा था. उसने जैसे ही महल में प्रवेश करना चाहा तभी रौबदार मूछों वाले दरबान ने अपना भाला हवा में लहराया.

“तुम्हें क्या लगता है, कि तुम कहाँ प्रवेश कर रहे हो”? पहरेदार ने कड़कती आवाज़ में पूछा.
महाशय, मैं महाराज से मिलने आया हूँ, नम्रता से महेश ने उत्तर दिया. ”
अच्छा! तो महाराज तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं, कि तुम कब आओगे”? दरबान ने हँसते हुए पूछा.
महेश मुस्कुराया और बोला, ” बिल्कुल महाशय, और देखो मैं आ गया हूँ”. और हाँ, ” तुम बेशक बहुत बहादुर और वीर होंगे किंतु तुम मुझे महल में जाने से रोक कर अपनी जान को खतरे में डाल रहे हो”. सुनकर दरबान सहम गया पर फ़िर भी हिम्मत कर के बोला, “तुम ऐसा क्यों कहा रहे हो”? तुम्हें पता है इस बात के लिए मैं तुम्हारा सिर कलम कर सकता हूँ. लेकिन महेश हार माने वालों में से नहीं था, उसने झट से महाराज कि अंगूठी दरबान को दिखाई. अब महाराज कि अंगूठी को न पहचानने कि हिम्मत दरबान में नहीं थी, और ना चाहते हुए भी उसे महेश को अंदर आने कि इजाज़त देनी पड़ी. हालांकि वह उसे नहीं जाने देना चाहता था | इसलिए वह महेश से बोला – ठीक है, तुम अन्दर जा सकते हो | लेकिन मेरी एक शर्त है.
वो क्या, महेश ने आश्चर्य से पूछा.
दरबान बोला, “तुम्हें महाराज जो भी ईनाम देंगे उसका आधा हिस्सा तुम मुझे दोगे”. महेश ने एक पल सोचा और फ़िर मुस्कुराकर बोला ठीक है, मुझे मंजूर है. और इस प्रकार महेश ने महल के अन्दर प्रवेश किया, अन्दर उसने देखा महाराजा अकबर सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं. धीरे-धीरे महेश अकबर के बिल्कुल करीब पहुँच गया और अकबर को झुक कर सलाम किया और कहा – आपकी कीर्ति सारे संसार में फैले. अकबर मुस्कुराया और कहा, “तुम्हे क्या चाहिए, कौन हो तुम”? महेश अपने पंजों पर उचकते हुए कहा महाराज मैं यहाँ आपकी सेवा में आया हूँ. और यह कहते हुए महेश ने राजा कि दी हुई अंगूठी राजा के सामने रख दी.
ओहो! याद आया, तुम महेश दास हो है ना.
जी महाराज मैं वही महेश हूँ.
बोलो महेश, तुम्हें क्या चाहिए?
महाराज मैं चाहता हूँ कि आप मुझे सौ कोडे मारिये.
यह क्या कहा रहे हो महेश?
राजा ने चौंकते हुए कहा. मैं ऐसा आदेश कैसे दे सकता हूँ जब तुमने कोई अपराध ही नहीं किया. महेश ने नम्रता से उत्तर दिया,” नहीं महाराज, मुझे तो सौ कोडे ही मारिये”. अब ना चाहते हुए भी अकबर को सौ कोडे मारने का आदेश देना ही पड़ा.
जल्लाद ने कोडे मारने शुरू किए – एक, दो, तीन, चार, . . . . . . . . . . . पचास. बस महाराज बस, महेश ने दर्द से करते हुए कहा. क्यों, क्या हुआ महेश, दर्द हो रहा है क्या? नहीं महाराज ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो केवल अपना वादा पूरा करना चाहता हूँ. कैसा वादा महेश? महाराज, जब मैं महल में प्रवेश कर रहा था तो दरबान ने मुझे इस शर्त पर अन्दर आने दिया कि मुझे जो भी उपहार प्राप्त होगा उसका आधा हिस्सा मैं दरबान को दूँगा. अपने हिस्से के पचास कोडे तो मैं खा चुका अब उस दरबान को भी उसका हिस्सा मिलना चाहिए. यह सुन कर सभी दरबारी हंसने लगे.
दरबान को बुलाया गया और उसको पचास कोडे लगाये गए. राजा ने महेश से कहा,”तुम बिल्कुल ही वैसे ही बहादुर और निडर हो जैसे बचपन में थे”. मैं अपने दरबार में से भ्रष्ट कर्मचारियों को पकड़ना चाहता था जिसके लिए मैंने बहुत से उपाय किए किंतु कोई भी काम नहीं आया. लेकिन यह काम तुमने जरा सी देर में ही कर दिया. तुम्हारी इसी बुद्धिमानी कि वजह से आज से तुम बीरबल कहालोगे. और तुम मेरे मुख्य सलाहकार नियुक्त किए जाते हो.

और इस तरह महेशदास से बीरबल का जन्म हुआ ..........................







Dr.Shree Vijay 26-09-2013 07:18 PM

Re: अकबर - बीरबल...........................
 



वासना की उम्र..............



एक दिन सम्राट अकबर ने दरबार में अपने मंत्रियों से पूछा कि मनुष्य में काम-वासना कब तक रहती है। कुछ ने कहा ३० वर्ष तक, कुछ ने कहा ६० वर्ष तक। बीरबल ने उत्तर दिया – “मरते दम तक”।

अकबर को इस पर यकीन नहीं आया। वह बीरबल से बोला – मैं इसे नहीं मानता। तुम्हें यह सिद्ध करना होगा की इंसान में काम-वासना मरते दम तक रहती है”।

बीरबल ने अकबर से कहा कि वे समय आने पर अपनी बात को सही साबित करके दिखा देंगे। एक दिन बीरबल सम्राट के पास भागे-भागे आए और कहा – “आप इसी वक़्त राजकुमारी को साथ लेकर मेरे साथ चलें”। अकबर जानते थे कि बीरबल की हर बात में कुछ प्रयोजन रहता था। वे उसी समय अपनी बेहद खूबसूरत युवा राजकुमारी को अपने साथ लेकर बीरबल के पीछे चल दिए।

बीरबल उन दोनों को एक व्यक्ति के घर ले गया। वह व्यक्ति बहुत बीमार था और बिल्कुल मरने ही वाला था। बीरबल ने सम्राट से कहा – “आप इस व्यक्ति के पास खड़े हो जायें और इसके चेहरे को गौर से देखते रहें”। इसके बाद बीरबल ने राजकुमारी को कमरे में बुलाया। मरणासन्न व्यक्ति ने राजकुमारी को इस दृष्टि से देखा कि अकबर के समझ में सब कुछ आ गया। बाद में अकबर ने बीरबल से कहा – “तुम सही कहते थे। मरते-मरते भी एक सुंदर जवान लडकी के चेहरे की एक झलक आदमी के भीतर हलचल मचा देती है”.......................





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