Movie review: जय हो
कहानी
कहानी: 'दबंग 2' के बाद सलमान खान 16 महीने बाद सिल्वर स्क्रीन पर उतरे हैं जय अग्निहोत्री बनकर. जय एक आम आदमी है जो आर्मी से निकाल दिया गया. उसे आर्मी से इसलिए नहीं निकाला जाता क्योंकि वह अपने काम के प्रति वफादार नहीं है बल्कि इसलिए निकाला जाता है क्योंकि वह कुछ ज्यादा ही ईमानदार है. एक रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान वह अपने बड़े अधिकारियों की बात नहीं मानता और इसी वजह से उसे सेना से हमेशा के लिए सस्पेंड कर दिया जाता है. जय दिल का बहुत ही नर्म इंसान है, उसे समाज में व्याप्त हर बुराई से उसे नफरत है. लोग उसके पास अपनी समस्याएं लेकर आते हैं और वह सबकी समस्याएं हल कर देता है. बदले में उसे सब थैंक यू कहते हैं मगर इसी थैंक यू के आधार पर वह एक नई शुरुआत करता है. वह लोगों से कहता है कि थैंक यू न बोलें बल्कि उसकी जगह तीन जरुरतमंद लोगों की मदद करें. इस तरह से हर कोई एक दूसरे की मदद करेगा और देश प्रगति करेगा.एक्स आर्मी ऑफिसर होने की वजह से जय किसी से भी नहीं डरता और हर चैलेंज का सामना करने को तैयार रहता है. इस तरह जय अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वालों की पूरी फौज खड़ी कर देता है। जनता में उसकी लोकप्रियता देखकर एक राजनीतिक पार्टी के दबंग नेता उसके दुश्मन बन जाते हैं। लंबी लड़ाई के बाद अंतत: विजय होती है जय की. वैसे कहानी के लिहाज से अगर देखा जाए तो यही पुराने फ़ॉर्मूले पर टिकी है जिसे आप कई फिल्मों में देख चुके हैं. हीरो बुराई के खिलाफ जंग लड़ता है और अंत में विजय होकर निकलता है. निर्देशन:' जय हो' से पहले सोहेल खान 'हैलो ब्रदर' और 'मैंने दिल तुझको दिया' जैसी फ्लॉप फिल्मों को डायरेक्ट कर चुके हैं. इस फिल्म में भी उन्होंने वही फ़ॉर्मूले को रिपीट किया है जिन्हें अब तक आप सलमान की लगभग हर फिल्म में देखते आये हैं. |
Re: Movie review: जय हो
Thank you, दीपू जी. फिल्म की संतुलित समीक्षा प्रस्तुत करने के लिये.
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Re: Movie review: जय हो
हम सलमान खान के fan नहीं हैं और उनकी फिल्में देखना पसन्द नहीं करते।
यहाँ कैलिफ़ोर्निया में पिछले सप्ताह हम "डेढ़ इष्किया" देखने गए थे, पत्नि के साथ। हर जगह, इंटर-नेट पर, अलोचक इसकी प्रशंसा कर रहे थे। बडी उम्मीदें लेकर हम भी इसे देखने गए। पता नहीं मुझ में क्या कमी है, पर हम ज्यादा enjoy नहीं कर सके। एक तो हमारी उर्दू कुछ कमज़ोर है। शेर, शायरी का हमें कोई खास शौक नही। हमारी समझ में नहीं आती। पर "शतरंज के खिलाडी" और "पाकीज़ा" हमें बहुत अच्छी लगी थी और हम ने सोचा इस फिल्म का भी हम आनन्द उठा सकेंगे। पर हम निराश होकर वापस आए। वैसे ज्यादा बोर तो नहीं हुए पर हमें sequences, घटनाएं समझने में कठिनाई महसूस हुई। ये आधुनिक Director लोगों का Style हमें अच्छी नहीं लगती। बाद में इस फ़िल्म के बारे में पढकर थोडी बहुत कहानी समझ में आई। यह भी पता चला कि इसमें lesbian overtones हैं जो बडी खूबसूरती और संवेदनशील ढंग से दर्शाया गया है पर हमें फिल्म देखते समय कुछ नहीं मालूम पडा। किस scene में? कहाँ। शायद हम इस मामले में कुछ innocent हैं। हम तो पहचानना भी नहीं जानते क्या लेस्बियन क्रिया है क्या नहीं। प्रति टिकट का बारह डॉलर । पॉपकॉर्न / कॉफ़्फ़ी का खर्च सो अलग। करीब ३०-३५ डॉलर का चूना लगवाकर घर वापस आए। काश हम इसे भारत लौटने के बाद देखते। काफ़ी पैसा बच जाता था। मेरी बातों पर मत जाइए। शायद आप लोग इस फिल्म को पसन्द करेंगे। |
Re: Movie review: जय हो
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Re: Movie review: जय हो
Thanks Jitendra for responding.
I am not cynical. I did enjoy many Indian movies. The last time I was here in California I saw Sridevi's English Vinglish and had enjoyed it. Even now I enjoy old Basu Chatterjee and Hrishikesh Mukherjee films of the seventies and eighties. I liked Taare Zameen Par, Chak De India and quite a few others too. This one was a rare case of being attracted by the film reviews in various internet sites and not trusting my own hunches in the matter. I am planning to see "Lunchbox" when I get the opportunity. Any opinions? Have you seen this movie? Regards GV |
Re: Movie review: जय हो
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"Lunchbox" is an interesting movie but payoff was weird. Climax felt half-baked, but script dragged for a while near half time. Both main characters were well acted but there was not much meat to the story. You can probably summarize the whole movie in 4 lines. Compared to typical Bollywood and their 2 line scripts, it was much better though. It is not worthy of a Friday night ticket. I would prefer a rental if it is an option, or cheaper evening shows. |
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